परिचय
हाईड्रोजन-एक रंगहीन, गंधहीन गैस है, जो पर्यावरणीय प्रदूषण से मुक्त भविष्य की ऊर्जा के रूप में देखी जा रही है। वाहनों तथा बिजली उत्पादन क्षेत्र में इसके नये प्रयोग पाये गये हैं। हाईड्रोजन के साथ सबसे बड़ा लाभ यह है कि ज्ञात ईंधनों में प्रति इकाई द्रव्यमान ऊर्जा इस तत्व में सबसे ज्यादा है और यह जलने के बाद उप उत्पाद के रूप में जल का उत्सर्जन करता है। इसलिए यह न केवल ऊर्जा क्षमता से युक्त है बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है। वास्तव में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय गत दो दशकों से हाईड्रोजन ऊर्जा के विभिन्न पहलुओं से संबंधित वृहत् अनुसंधान, विकास एवं प्रदर्शन (आरडीएंडडी) कार्यक्रम में सहायता दे रहा है। फलस्वरूप वर्ष 2005 में एक राष्ट्रीय हाईड्रोजन नीति तैयार की गई, जिसका उद्देश्य हाईड्रोजन ऊर्जा के उत्पादन, भंडारण, परिवहन, सुरक्षा, वितरण एवं अनुप्रयोगों से संबंधित विकास के नये आयाम उपलब्ध कराना है। हालांकि, हाईड्रोजन के प्रयोग संबंधी मौजूदा प्रौद्योगिकियों के अधिकतम उपयोग और उनका व्यावसायिकरण किया जाना बाकी है, परन्तु इस संबंध में प्रयास शुरू कर दिये गये हैं।
हाईड्रोजन उत्पादन
हाईड्रोजन पृथ्वी पर केवल मिश्रित अवस्था में पाया जाता है और इसलिए इसका उत्पादन इसके यौगिकों के अपघटन प्रक्रिया से होता है। यह एक ऐसी विधि है जिसमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है। विश्व में 96 प्रतिशत हाईड्रोजन का उत्पादन हाईड्रोकार्बन के प्रयोग से किया जा रहा है। लगभग चार प्रतिशत हाईड्रोजन का उत्पादन जल के विद्युत अपघटन के जरिये होता है। तेल शोधक संयंत्र एवं उर्वरक संयंत्र दो बड़े क्षेत्र है जो भारत में हाईड्रोजन के उत्पादक तथा उपभोक्ता हैं। इसका उत्पादन क्लोरो अल्कली उद्योग में उप उत्पाद के रूप में होता है।
हाईड्रोजन का उत्पादन तीन वर्गो से संबंधित है, जिसमें पहला तापीय विधि, दूसरा विद्युत अपघटन विधि और प्रकाश अपघटन विधि है। कुछ तापीय विधियों में ऊर्जा संसाधनों की जरूरत होती है, जबकि अन्य में जल जैसे अभिकारकों से हाईड्रोजन के उत्पादन के लिए बंद रासायनिक अभिक्रियाओं के साथ मिश्रित रूप में उष्मा का प्रयोग किया जाता है। इस विधि को तापीय रासायनिक विधि कहा जाता है। परन्तु यह तकनीक विकास के प्रारंभिक अवस्था में अपनाई जाती है। उष्मा मिथेन पुनचक्रण, कोयला गैसीकरण और जैव मास गैसीकरण भी हाईड्रोजन उत्पादन की अन्य विधियां हैं। कोयला और
जैव ईंधन का लाभ यह है कि दोनों स्थानीय संसाधन के रूप में उपलब्ध रहते हैं तथा जैव ईंधन नवीकरणीय संसाधन भी है। विद्युत अपघटन विधि में विद्युत के प्रयोग से जल का विघटन हाईड्रोजन और ऑक्सीजन में होता है तथा यदि विद्युत संसाधन शुद्ध हों तो ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आती है।
हाईड्रोजन भंडारण
इससे संबंधित तकनीकी के वृहत् व्यावसायीकरण की दृष्टि से परिवहन के लिए हाईड्रोजन का भंडारण सभी तकनीकियों में से चुनौतीपूर्ण तकनीक है। गैसीय अवस्था में भंडारण करने का सबसे आम तरीका सिलेंडर में उच्च दबाव पर रखना है। हालांकि यह सबसे हल्का तत्व है जिसे उच्च दाब की आवश्यकता होती है। इसे द्रव अवस्था में क्रायोजिनिक प्रणाली में रखा जाता है, लेकिन इसमें अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसे धात्विक हाईड्राइड, द्रव कार्बनिक हाईड्राइड, कार्बन सूक्ष्म संरचना तथा रासायनिक रूप में इसे ठोस अवस्था में भी रखा जा सकता है। इस क्षेत्र में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय अनुसंधान एवं विकास संबंधी परियोजनाओं में मदद कर रही है।
प्रयोग
उद्योगों में रासायनिक पदार्थ के रूप में इस्तेमाल के अलावा इसे वाहनों में ईंधन के तौर पर भी प्रयोग किया जा सकता है। आंतरिक ज्वलन इंजनों (Internal combustion engines) और ईंधन सैलों के जरिए बिजली उत्पादन के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। हाईड्रोजन के क्षेत्र में देश में आंतरिक ज्वलन इंजनों, हाईड्रोजन युक्त सीएनजी और डीजल के प्रयोग के लिए अनुसंधान और विकास परियोजनाओं तथा हाईड्रोजन ईंधन से चलने वाले वाहनों का विकास किया जा रहा है। हाइड्रोजन ईंधन वाली मोटरसाइकिलों और तिपहिया स्कूटरों का निर्माण और प्रदर्शन किया गया है। हाईड्रोजन ईंधन के प्रयोग वाले उत्प्रेरक ज्वलन कुकर (Catalytic combustion cooker) का भी विकास किया गया है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने वाणिज्यिक लाभ वाली मोटरसाइकिलों और तिपहिया वाहनों में सुधार किया है, ताकि वे हाईड्रोजन ईंधन से चलाए जा सकें। वाहनों के लिए हाईड्रोजन युक्त सीएनजी उपलब्ध कराने के लिए नई दिल्ली में द्वारका में एचसीएनजी स्टेशन खोला गया है, जिसके लिए मंत्रालय ने आंशिक आर्थिक सहायता भी दी है। प्रदर्शन और परीक्षण वाहनों के लिए इस स्टेशन से बीस प्रतिशत तक हाईड्रोजन युक्त सीएनजी गैस दी जाती है। हाईड्रोजन युक्त सीएनजी (एच सीएनजी) को कुछ किस्म के वाहनों-बसों, कारों और तिपहिया वाहनों में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए विकास-सह-प्रदर्शन परियोजना को भी लागू किया जा रहा है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-आईआईटी, दिल्ली, हाईड्रोजन ईंधन से चलने वाला जनरेटर सेट भी विकसित कर रहे हैं।
हाइड्रोजन ऊर्जा का एक और उपयोग ईंधन सैल के रूप में है, जो एक इलेक्ट्रोकैमिकल उपकरण है, जिससे हाईड्रोजन की
रासायनिक ऊर्जा को बिना ज्वलन के सीधे बिजली में बदला जा सकता है। बिजली उत्पादन की यह एक स्वच्छ और कुशल प्रणाली है। इसका इस्तेमाल यूपीएस प्रणालियों यानी बेरोक-टोक बिजली आपूर्ति वाली प्रणालियों में बैटरियों और डीजल जनरेटरों के स्थान पर किया जा सकता है। वाहनों और बिजली उत्पादन में ईंधन सैलों की उपयुक्तता को देखते हुए दुनियाभर में कई संगठन इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास कार्य कर रहे हैं। इन ईंधन सैलों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाकर इस्तेमाल करने के बारे में भी प्रयोग हो रहे हैं। इस समय ईंधन सैल की लागत कम करने और इसके इस्तेमाल की अवधि को बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के ईंधन सैल कार्यक्रम का उद्देश्य विभिन्न प्रकार के ईंधन सैलों के लिए अनुसंधान और विकास गतिविधियों को सहायता देना है।
स्त्रोत : पत्र सूचना कार्यालय,प्रेस इंफोर्मेशेन ब्यूरो(पीआईबी), नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय