हार्मोन प्रतिस्थापन चिकित्सा यानी एचआरटी का अर्थ है एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टजन हार्मोनों का उत्पादन बंद कर देती हैं| एचआरटी एस्ट्रोजन की कमी तत्कालिक और दीर्घकालिक प्रभावों को दूर कर सकता है|
क्या आपके लिए एचआरटी की सिफारिश नहीं करते थे, हालांकि पश्चिमी देशों में दशकों से महिलाओं इसका उपयोग करती आ रही हैं| अब भारत में अनके रोग-विज्ञानी यह महसूस करते हैं कि यदि रजोनिवृत्ति के तत्काल पूर्व और बाद की अवधियों में अल्प मात्रा में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोजन की मिलीजुली खुराक दी जाए तो ओस्टोओपोरेसिस, हृदय संवहनी रोग और रजोनिवृत्ति के बाद अन्य रोगों में लाभ मिलता है|
हर महिला को एक रोकथामकारी चिकित्सा के रूप में एचआरटी दे संबंध में शि निर्णय लेने का अधिकार है पर किसी डॉक्टर के ठोस निरीक्षण के अंतर्गत| गहन परिक्षण और जाँच द्वारा एचआरटी के लिए महिलाओं का चयन एचआरटी का महत्वपूर्ण अंग है|
एचआरटी के बार में निर्णय करने से पहले, आइए इसके लाभों और नुकसानों पर विचार करें और यह जानें की एचआरटी के लिए चयन कैसे किया जाता है, क्या विशेष सावधानियाँ बरतनी चाहिए, एचआरटी के अंतर्विरोध क्या हैं और क्या-क्या एचआरटी-विकल्प उपलब्ध हैं|
रजोनिवृत्ति से तत्काल पूर्व और रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं को ओस्टोओपोरेसिस एस्टोजन की कमी की वजह से होता है| जैसा कि पहले उल्लेख किया जा सचुका है, ओस्टोओपोरेसिस एक “खामोश चोर” या “खामोश चोर” है| ओस्टोओपोरेसिस अपने को अनेक वर्षों के अस्थि- क्षरण के बाद प्रकट करता है| अस्थि-भंग आने की स्थिति पर पहुँचने तक हड्डी के द्रव्यमान और ढांचे की अपूरणीय क्षति हो चुकी होती है| इस प्रकार, जब ओस्टोओपोरेसिस पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो उसका उपचार कठिन होता है| इसलिए इस मामले में इलाज से बेहतर रोकथाम को माना जाता है|
रजोनिवृत्ति के बाद के दौर में हड्डियों में क्षति की रोकथाम की ली एस्ट्रोजन प्रतिस्थापन चिकित्सा एक प्रमुख उपचार है| एचआरटी रीढ़ की हड्डी और कूल्हे में अस्थि-भंग को कम करने में पूरी तरह से सक्षम एक अनूठी चिकित्सा पद्धति है जो ओस्टोओपोरेसिस की रोकथाम और उपचार में इस्तेमाल की जाती है| रजोनिवृत्ति के दौरान और पश्चात यह हड्डियों की क्षति को रोकती है और अस्थि- द्रव्यमान को बढ़ा तक सकती है| यदि एचआरटी उपचार डिम्बग्रंथियों के काम न करने के तत्काल बाद कुछ वर्षों में ही शुरू कर दिया जाए तो हड्डियों के क्षति से सर्वोत्तम तरीके से बचा जा सकता है| यदि इस पांच वर्ष तक जारी रखा जाए तो यह कूल्हे की हड्डी के टूटने की संभावना के स्तर जितनी ही है| यदि पूरी आबादी की दृष्टि से देखें तो अधिकतर अस्थि भंग 70 की उम्र के बाद होते हैं और औसत जीवन क्षमता 80 वर्ष है| यदि एचआरटी उपचार 5 से 8 वर्ष तक लिया जाए तो इससे कूल्हे की हड्डी के टूटने की घटनाओं में पर्याप्त कमी लाई जा सकती है|
यदि एचआरटी के साथ- साथ कैलशियम और विटामिन दी की पूरक खुराक ली जाए, सन्तुलित आहार लिया जाए, व्यायाम किया जाए, व्यक्ति की सुरक्षित वातावरण मिले और अत्यधिक मदिरा सेवन व धूम्रपान न करने की सलाह पर चला जाए तो ओस्टोओपोरेसिस की रोकथाम संभव है|
जिन रोगियों को किन्हीं कारणों से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोजन उपचार नहीं दिया जा सकता, उनके लिए कैल्सिटोनिन, आदि जैसे विशिष्ट एजेंटो पर विचार किया जा सकता है| कैल्सिटोनिन एक पोलिपेप्टडेस हार्मोन है और इसे पेशी पर या त्वचा के नीचे इंजेक्शन द्वारा अथवा नासारंध्र में स्प्रे द्वारा दिया जा सकता है| कुछ अन्य उपचार भी मौजूद हैं जिनके बारे में आपका डॉक्टर फैसला कर सकता है|
एस्ट्रोजन प्रतिस्थापन चिकित्सा धमनियों की भित्तियों पर अपना बचावकारी प्रभाव डाल कर और रक्त कोलस्ट्रोल को प्रभावित करके हृदय संवहनी रोग के खतरे को कम करती है|
जब एस्ट्रोजन लीवर से गुजरती है तो यह अच्छे कोलेस्ट्रोल एचडीएल (उच्च सघनायूक्त लाइपोप्रोटिन) को बढाती है और बुरे कोलेस्ट्रोल एलडीएल (निम्न सघन लाइपोप्रोटिन) को कम करती है|
पैंतीस वर्ष से अधिक आयु के पुरूषों और 65 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में ह्रदय संवहनी के रोग का सर्वाधिक समान्य कारण हैं| संयूक्त राज्य अमेरिका में किए गए एक व्यापक अध्ययन से पता चला है कि शल्य चिकित्सा- प्रेरित रजोनिवृत्ति से कोरोनरी ह्रदय का खतरा काफी बढ़ जाता है| पर ऐसा उन महिलाओं में नहीं देखा गया जिन्होंने एस्ट्रोजन चिकित्सा प्राप्त की थी|
हार्मोन चिकित्सा के एक सबसे विवादस्पद पहलू है --- स्तन कैंसर का खतरा बढ़ने से इसका संभावित संबंध| स्तनों में एस्ट्रोजन – ग्राही होते हैं जो स्टिरोइड हार्मोनों के लिए लक्ष्य ऊतक हैं| माहवारी आरंभ होने की आरंभिक आयु और रजोनिवृत्ति की बाद की आयु स्तन कैंसर की दृष्टि से जोखिम पूर्ण होती है| एक या एक अधिक पूर्ण गर्भधारण से नालिपैरीटी यानी कभी गर्भधारण न होने से संबंधित खतरा कम हो जाता है| गर्भधारण के समय कम आयु (20 वर्ष से कम) से खतरा कम होता है, जबकि 30 की आयु के बाद पहले पूर्ण गर्भधारण से कभी गर्भधारण न होने का खतरा बढ़ जाता है| रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में स्थूलता या मोटापा स्तर कैंसर के खतरे को बढ़ाता है|
यह भी संभव है कि जेनेटिक ग्रहणशीलता (यानी स्तन कैंसर का पारिवारिक इतिहास) से हार्मोन चिकित्सा के संबंधित स्तर कैंसर का खतरा बढ़ जाए|
वर्तमान जानपदिक रोग विज्ञान के (एपिडिमी ओलानिकल) साक्ष्य यह दर्शाते है कि:
1. रजोनिवृत्ति के बाद महिला द्वारा 5 वर्ष से कम समय तक केवल एस्ट्रोजन का उपयोग करने से स्तन कैंसर के खतरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है|
2. 5-9 वर्षों तक केवल एस्ट्रोजन के उपयोग का स्तन कैंसर के खतरे पर थोड़ा सा प्रभाव पड़ सकता है|
3. दस वर्ष या उससे अधिक समय तक अकेले एस्ट्रोजन का उपयोग इसके सापेक्ष खतरे में 30 से 80 प्रतिशत तक की वृद्धि का सकती है|
4. एस्ट्रोजन में प्रोजेस्टोजन को जोड़ देने से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ने की संभावना हो सकती है|
हार्मोनों का उपयोग करने वालों में स्तन कैंसर का खतरे को निम्नलिखित कदम उठा का रोका जा सकता हैं:
क) एचआरटी आरम्भ करने से पहले उपचार हेतु चयन समय रजोनिवृत्ति महिला से निजी और पारिवारिक स्वास्थ्य संबंधी इतिहास जानना आवश्यक है|
ख) स्तनों की स्वयं जाँच करना|
ग) अपने स्त्रीरोग विज्ञानी से स्तनों की रोग विषयक जाँच कराएँ|
घ) हर वर्ष मैमोग्राफी विज्ञानी से स्तनों की रोग विषयक जाँच कराएं|
ङ) हर वर्ष स्तनों का अल्ट्रासाउंड कराएँ|
रजोनिवृत्ति के बाद एचआरटी का उपयोग करने वाली सभी महिलाओं की चिकित्सा उनके डॉक्टर की ठोस निगरानी में होती है इसलिए एचआरटी का उपयोग न करने वाली महिलाओं की तुलना में उनके स्तन कैंसर का शुरू में ही पता लगने की अधिक संभवना रहती है|
क) जो महिलाएँ “केवल एस्ट्रोजन” ले रही है, उनको निम्नलिखित खतरे हो सकते हैं:
ख) एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोजन को मिला कर लेने वाली वे महिलाएं अधिक सुरक्षित होती हैं जिनके गर्भाशय क्षतिग्रस्त नहीं होते हैं| कारण यह है कि:
वर्तमान तथ्यों से रजोनिवृत्ति, एस्ट्रोजन चिकित्सा और डिम्बग्रंथियों के कैंसर के बीच किसी संबंध का पता नहीं चलता है|
रजोनिवृत्ति एस्ट्रोजन चिकित्सा और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के बारे में वर्तमान जानकारी इन दोनों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए अपर्याप्त है| अल्पकालीन या दीर्घकालिक रोकथाम के उद्देश्य से हार्मोन का उपयोग करें या न करें, यह निर्णय ली जाने वाली चिकित्सा के जोखिमों और लाभों के समझ पर तथा साथ ही महिला की निजी पसंद पर आधारित होना चाहिए|
1. उत्तेजना, पसीना आना, थकान आदि जैसे वाहिका- प्रेरक (वासोमोटर) रोग- लक्षणों से छूटकारा| यौवनपूर्ण जीवन की इच्छुक महिलाओं के लिए जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार| मनोदशा का अचानक बदलना कम हो जाता है और चिडचिडापन और विषाद से छूटकारा मिलता|
2. योनि की स्थिति में सुधार के लक्षण दिखाई देते हैं- योनि की सिकुड़ना और रूखापन कम हो जाता है|
3. मूत्र- त्याग संबंधी रोग लक्षणों में सुधार|
4. हृदय संवहनी रोगों का खतरा कम होता है क्योंकी उपचार का धमनियों की भित्तियों पर सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है और साथ रक्त कोलस्ट्रोल पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है| जब एस्ट्रोजन लीवर से गुजरती है वो अच्छे कोलस्ट्रोल (एचडीएल) को बढ़ाती है और बुरे कोलस्ट्रोल (एलडीएल) को कम करती है|
5. यदि एचआरटी के साथ अच्छी खुराक ली जाए, नियमित व्यायाम किया जाए, पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम और विटामिन लिए जाएँ तो आस्टोपोरोसिस से बचाव होता है और कूल्हे व रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर का खतरा कम हो जाता है|
6. शल्य चिकित्सा द्वारा की गई रजोनिवृत्ति (यानी प्रेरित रजोनिवृत्ति) से एस्ट्रोजन में अचानक कमी आ जाती है| ऐसे में एचआरटी विशेष रूप से लाभदायक है स्वाभाविक और प्रेरित दोनों प्रकार की समय- पूर्व रजोनिवृत्ति में यह लाभकारी है|
1. स्तनों की नरमी का वापस आना|
2. तरलता का अभिकरण (फ्लूइड रिटेंशन)|
3. लंबे समय तक केवल एस्ट्रोजन चिकित्सा करने से एंडोमीट्रिएल हाइपर पलासिया, यानी गर्भाशय अस्तर मोटा हो जाता है| अस्तर की मोटाई बढ़ने से गर्भाशय अस्तर खतरा हो सकता है| इसे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोजन को मिला कर उपयोग करने से दूर किया जा सकता है|
4. मुखसेव्य गोलियां (ओरल पिल्स) लेने से पहले से मौजूद समस्याएँ, जैसे कि लीवर और गाल ब्लैडर (पित्ताशय) के रोग बढ़ सकते हैं|
5. रक्त फिर से हो सकता है| इसे एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोन को मिला कर लगातार लेते रहने से दूर किया जा सकता है|
6. मितली और उलटी|
7. अतिसंवेदनशीलता|
जिन महिलाओं को निम्नलिखित में से कोई रोग हो उन्हें एचआरटी नहीं करानी चाहिए-
यदि रजोनिवृत्ति महिला को उच्च रक्तचाप हो; हृदय या गुर्दे को रोग हो, अस्थमा, एपिलेप्सी, माइग्रेन, मधुमेह, थाइराइड विकार, गर्भाशय में गैर- कैंसरकारी ट्यूमर, आदि हो तो विशेष सावधानियाँ बरतने की जरूरत होती है| एचआरटी आरम्भ करने से पहले महिला का स्वास्थ्य संबंधी इतिहास जानना और उसकी पूर्ण रोग विषयक जाँच आवश्यक है|
हार्मोन पूरक (सप्लीमेंटस) निम्न विभिन्न रूपों में उपलब्ध हैं:
1. क्रीम, 2. योनि वलय (वैजा इनल रिंग) 3. गोलीयां, 4. चित्ती या फाहा (पैच)
: एस्ट्रोजन क्रीम योनि के रूखेपन और मूत्र पथ की रोग – समस्याओं से राहत दिलाती है| इससे ओस्टेओपोरोसिस और हृदयसंवहनी रोग्से कोई बचाव नहीं होता|
– एक्ट्रोजन से भरी यह वेजाइनल रिंग जिसे एस्ट्रिंग कहते हैं, योनि के रोग – लक्षणों को दूर करते हुए धीरे-धीरे हार्मोन छोडती है| यह ऑस्टियोपोरोसिस और ह्रदय संवहनी रोग से रक्षा नहीं करती|
18 महीने से ले कर 5 वर्ष तक एक गोली को लेने से वाहिका- प्रेरक (वासोमोटर) और योनि के सिकुड़ने या क्षीण होने से संबंधित समस्याओं से राहत मिलत हैं| 5 से 10 साल तक इसे लेने से ओस्टोपोरोसीस की रोकथाम होती हैं|
एस्ट्रोजन के साथ चक्रीय अथवा सतत रूप से प्रोजेस्टोजन की गोली लेना उन महिलाओं के लिए सुरक्षित है जिनका गर्भाशय क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है| इससे गर्भाशय-अस्तर (एंडोमिट्रियल) कैंसर का खतरा कम होता है| किन्तु प्रोजेस्टोजन के उपयोग से मायोकार्डियल इनफ्रैक्शन और हृदय आघात के विरूद्ध एस्ट्रोजन का बचावकारी प्रभाव मंद पड़ जाता है|
जीवन के इस परिवर्तनशील दौर में एक समझदार जीवन साथी आपकी काफी मदद कर सकता है| पर इसके लिए उसे यह जानना होगा कि रजोनिवृत्ति और उसके संभावित लक्षण क्या हैं| रजोनिवृत्ति के बारे में लोगों का ज्ञान अभी भी बहुत कम है; इसलिए परिवार के सदस्य महिला में आए बदलावों को, हो सकता है, समझ ही न पाए| आम तौर पर ऐसे में लोग कहते हैं, बूढ़ापे के साथ-साथ वह ज्यादा ही चिडचिडी होती जा रही है|”
जीवन साथी आपकी कई तरह सर मदद कर सकता है, जैसे कि साथ-साथ सैर पर जाना, साथ-साथ व्यायाम करना, आपके अचानक मनोदशा बदलने पर धैर्य रखना, घर की समस्याओं पर मिल कर बात करना, छुट्टी मनाने साथ-साथ जाना और आपसे कम मांगे करना, आदि|
बच्चों को बताना चाहिए कि उनकी माँ की कुछ समस्याएँ हैं, नहीं तो माँ की मदद करने की बजाए वे समस्याएँ खड़ी कर देंगे| यदि आप एक संयूक्त परिवार में रह रही हैं (चाहें ससुराल हो या मायका), यह जरूरी है कि आप परिवार के लोगों के साथ खुल कर बात करें| यदि जीवन के इस परिवर्तनशील दौर में घर में लोग आपके प्रति संवेदनशील हों तो रजोनिवृत्ति के इस कथन दौर को पार करने में नैतिक रूप से आपकी सहायता कर सकते हैं|
एक बार एक 37 वर्षीय महिला, जिसे नियमित रूप से माहवारी हो रही थी, मेरे पास पीठ दर्द और लगातार चिडचिडेपनकी शिकायत ले कर आई| उसका कहना था कि वह भोपाल गैस कांड की शिकार बनी थी आउट इसके बाद से उसका स्वास्थ्य खराब रहने लगा है| जब हमने उसकी जाँच की तो पाया कि उसका सीरम एस्ट्रडीअल उसकी आयु के हिसाब से काफी कम था और उसकी हड्डियों की मिनरल सघनता से पता चला कि उसे हल्का ऑस्टियोपोरोसिस है जो उसकी आयु की महिलाओं में बिरले ही पाया जाता है| हमने इससे पहले प्रेरित रजोनिवृत्ति की बात की है, जिसमें विकिरण या कीमोथेरेपी द्वारा डिम्बग्रंथियों के के में कमी लाई जाती है| शायद उसके मामले में ऐसा हुआ; भोपाल गैस कांड ने उसकी डिम्बग्रंथि के कार्य में कमी आ गई हो जिसकी वजह से उसे इन समस्याओं का सामना करना पड़ रह है|
उसकी हड्डियों की क्षति को रोकने के लिए मैंने एचआरटी पैच और प्रोजेस्टोजन की गोली से उपचार किया ताकि उसकी नियमित माहवारी जारी रह सके| वह पिछले 9 महीने से एचआरटी ले रही है| उसका कहना है की उसके जीवन को गुणवत्ता में सुधार आया है; बस एक समस्या यह है कि उसे कभी-कभी सिरदर्द होता है|
एक 53 वर्षीय महिला जिसकी पांच वर्ष पहले रजोनिवृत्ति हुई थी, मेरे पास निम्नलिखित शिकायतें ले कर आई:
उसके मूड में बदलाव इतने तीव्र होते थे कि एक बार उसने गुस्से में आकर कर पति को मार दिया और पांव की हड्डी तुड़वा बैठी|
जब वह पहली बार मेरे कमरे में प्रविष्ट हुए तो मुझे लगा की वह काफी गर्म मिजाज वाली महिला है| उसके रोग - विषयक इतिहास को जानने और उसकी नैदानिक जाँच के बाद मैंने उसे सभी प्रकार की खून की जाँच कराने की सलाह दी| उसका सीरम एस्ट्रोजन स्तर बहुत निम्न निकला| इसके अलावा निम्न एस्ट्रोजन के कारण और मूत्रपथ के संक्रमण की वजह से उसे क्षयकारी योनिशोथ (वैजाइनाइटिस) भी था|
उसके मूत्रपथ संक्रमण का इलाज करने के बाद मैंने उसकी हार्मोन प्रतिस्थापन चिकित्सा (एच आरटी) आरंभ की (एस्ट्रड्रम पैच और प्रोजेस्टोजन की गोली के साथ) छह महीने के बाद जाँच के लिए जब वह फिर मेरे पास आई तो मुझे काफी खुशी हुई| वह शांत और तनाव- रहित लग रही थी| उसकी योनि और मूत्रपथ संबंधी समस्या दूर हो गई थी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि (खास कर उसके पति के लिए) उसके मूड में अचानक आने वाले बदलाव कम हो गए थे| वह अपने पति के साथ अब सामान्य जीवन जी रही थी|
स्रोत : वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इन्डिया
अंतिम बार संशोधित : 3/5/2020
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