कुछ लड़कियों को सोलह वर्ष की उम्र तक मासिक धर्म नहीं होता। इसके लिए उन्हें सूर्या क्लिनिक भेज कर डॉक्टरी सलाह दिलवानी चाहिए। हो सकता है उसके शरीर के अंदर ही कहीं यह खून इकट्ठा हो रहा हो। यह भी हो सकता है कि उसके जनन-अंगों या हार्मोन- ग्रंथियों में कुछ दोष हो।
कुछ लड़कियों में माहवारी जल्दी आरंभ हो जाती है, कभी-कभी तो केवल 9-10 साल की उम्र में ही। इससे कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं पैदा होती लेकिन इस उम्र की लड़कियों को माहवारी की पूरी जानकारी देना जरुरी है। उसे डिम्ब उत्सर्ग और लिग उत्पीडन होने पर गर्भ ठहरने के खतरे से अवगत करा देना चाहिए। माहवारी आरंभ हो जाने पर कद बढ़ना कम हो जाता है। संतुलित भोजन और व्यायाम से कद कुछ बढ़ सकता है। खून की कमी से बचाने के लिए भी संतुलित भोजन जरुरी है।
औसत माहवारी चक्र 28 से 29 दिन तक का होता है। इसकी गणना माहवारी शुरु होने के पहले दिन से अगली माहवारी शुरु होने से एक दिन पहले से की जाती है। कुछ महिलाओं का चक्र काफी छोटा होता है, जो केवल 21 दिनों तक चलता है। वहीं, कुछ का माहवारी चक्र 35 दिनों तक लंबा भी होता है।हर महीने मासिक चक्र की अवधि का घटना या बढ़ना भी आम बात है।एक माहवारी से दूसरी माहवारी के बीच योनि से दूधिया सफेद स्त्राव होना सामान्य है। मासिक चक्र के दौरान हॉर्मोन का स्तर बढ़ने और घटने पर स्त्राव के गाढ़ेपन में बदलाव होता रहता है।जब आपकी उम्र बढ़ती है और आप रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के आसपास पहुंच जाती है, तो हो सकता है आप अपने माहवारी चक्र की अवधि में बदलाव पाएं। उम्र बढ़ने के साथ आपका मासिक चक्र घटने लग जाता है। रजोनिवृत्ति जितनी करीब आती जाती है, आपके मासिक चक्र में उतने अधिक बदलाव देखने को मिल सकते हैं। हो सकता है आपकी माहवारी में कई महीनों की देरी होने लगे या फिर यह दो या तीन हफ्तों बाद ही आने लगे।अगर, आपकी उम्र 40 साल से कम है और एक माहवारी से दूसरी माहवारी के बीच में लंबा अंतराल आ रहा है, या फिर लगता है कि माहवारी पूरी तरह बंद हो गई है, तो अपनी डॉक्टर से मिलें। वे आपको कुछ खून की जांचें करवाने के लिए कह सकती हैं। अगर, आपको मासिक चक्र के बीच में या संभोग के बाद रक्तस्त्राव हो, तो भी अपनी डॉक्टर को दिखाएं। कुछ गर्भनिरोधन के तरीकों जैसे कि हॉर्मोन इंजेक्शन और अंतर्गर्भाशयी उपकरण आदि के इस्तेमाल से अनियमित रक्तस्त्राव हो सकता है। मगर, यदि आप ऐसे उपायों का प्रयोग नहीं करती हैं, तो अपनी जांच करवा लेना ही बेहतर है।
कुछ महिलाओं की दो मावारियों के बीच का समय कम होता है। 21 दिन से कम समय में दुबारा रक्तस्राव हो और नियमित रूप से ऐसा होता रहे तो उसे छोटा चक्र कहते हैं। स्त्री के शरीर में डिम्ब का उत्सर्ग सामान्य रूप से होता है और उसकी प्रजनन क्षमता भी सामान्य रहती है। एन स्त्रियों में डिम्ब उत्सर्ग का समय जानने के लिए अगली माहवारी की अपेक्षित तिथि से 12 दिन पहले की तिथि निकालिए। (उदाहरण के तौर पर अगर अगली माहवारी 24 तारीख को आने की उम्मीद है तो डिम्ब 12 तारीख को बाहर आने की संभावना होगी) कुछ महिलाओं में माहवारी आरंभ होने के एक-दो सालों तक मासिक चक्र छोटा होता है परन्तु धीरे-धीरे सामान्य हो जाता है।
कुछ स्त्रियों, विशेषकर उन कम उम्र की लड़कियों का जिन्हें हाल में माहवारी आरंभ हुई है, मासिक चक्र लम्बा हो सकता है। अगर दो माहवारियों के 45 दिन से बड़ा अन्तराल हो तो वह लम्बा चक्र कहलाता है। हो सकता है इन महिलाओं में डिम्ब का उत्सर्ग ही न हो रहा हो। इन्हें डॉक्टरी सलाह के लिए सूर्या क्लिनिक भेज देना चाहिए।
कुछ महिलाओं को माहवारी के समय बहुत कम खून जाता है। वह समझती हैं कि इससे उनका गर्भाशय पूरी तरह साफ नहीं हो पाता। लेकिन माहवारी का समय होने पर कुछ धब्बे आकर रह जाएँ तो कभी-कभी इसका कारण गर्भाशय से बाहर का गर्भ (एक्टोपिक गर्भ) भी हो सकता है। इसकी जाँच के लिए सूर्या क्लिनिक भेजें।
कुछ महिलाओं को माहवारी के दौरान भारी रक्तस्राव होता है। उन्हें एक दिन में सामान्य से ज्यादा गद्दियाँ बदलने के जरूरत होती है या रक्तस्राव कई दिनों तक जारी रहता है या यह दोनों समस्याएँ साथ होती हैं। इन स्त्रियों को खून क कमी की शिकायत हो सकती है। इन्हें सूर्या क्लिनिक की मदद की आवश्यकता है। उनसे कहिये कि जब माहवारी न हो रही हो उस समय सूर्या क्लिनिक जाएँ। माहवारी के दौरान जाने पर डॉक्टर उनकी जाँच नहीं कर सकेंगे। भारी रक्तस्राव कभी-कभी गर्भाशय में गांठ या रसौली के कारण भी हो सकता है। वैसे प्रायः इस का कारण हार्मोन की गड़बड़ी होती है। कुछ स्त्रियों का इलाज ई और पी हार्मोन द्वारा हो जाता है परन्तु कुछ में गर्भाशय निकालने की आवश्यकता पड़ सकती है।
महिलाओं की एक बहुत आम समस्या है माहवारी से कुछ दिन पहले तनाव की स्थिति। यह दो तीन दिनों पहले महसूस होता और रक्तस्राव आरंभ होने पर समाप्त हो जाता है। इसके लक्षण हैं चिड़चिड़ापन, थकान, बार-बार पेशाब की इच्छा, सिर व पेडू में दर्द, कब्ज, स्तनों में तनाव और कभी –कभी पैरों में सुजन। यह सभी लक्षण पी हार्मोन के कारण होते हैं जो शरीर में पानी की मात्रा को बढ़ता है। प्रत्येक महिला से कहिये कि वह पानी और दुसरे पेय जैसे चाय, कॉफी आदि कम ले और खाने में नमक की मात्रा कम कर दे। प्रायः इससे ही उसकी समस्या दूर हो जाती है।
ईलाज
दर्द निवारक गोलियों से दर्द कम किया जा सकता है। इन दवाओं को खाली पेट नहीं लेना चाहिए। दवाओं का सेवन 6 से 8 घंटे में दुबारा किया जा सकता है। निम्न उपाय भी लाभदायक हो सकते हैं
कुछ महिलाओं की माहवारी के तीन या चार दिन पहले कमर और पेट के निचले हिस्से में दर्द हो जाता है। यह भी मासिक आरंभ होने पर ठीक हो जाता है। कभी कभी श्रोणी में सूजन पैदा करने वाली बिमारी इसका कारण हो सकती है। लेकिन जरुरी नहीं कि ऐसा ही हो। कारण का पता लगाने के लिए महिला की अंदरूनी जाँच आवश्यक है। खासकर जब दर्द बहुत ज्यादा हो और बराबर होता रहे।
ईलाज
दर्द निवारक गोलियों से दर्द कम हो जाता है।
कुछ महिलाओं को माहवारी होने पर ऐठन जैसा तेज दर्द होता होता है। जब तक रक्तस्राव होता है, यह दर्द भी बना रहता है। आमतौर पर यह समस्या लड़कियों का मासिक धर्म आरंभ होने के दो तीन साल बाद शुरू होती है और पहले बच्चे के जन्म के बाद पूरी तरह समाप्त हो जाती है। इसका कारण नहीं मालूम हो सका है परन्तु हार्मोनों का असंतुलन एक बड़ा कारण हो सकता है।
ईलाज
दर्द निवारक गोलियाँ दर्द कम करके कष्ट दूर कर सकती हैं। अगर दवा खाने के बाद भी दर्द होता रहे तो महिला को सूर्या क्लिनिक भेजने की जरूरत है। निम्न उपाय भी आजमा लेने चाहियें। इनसे दर्द में कमी हो सकती है।
इसका मतलब है माहवारी का पूर्ण रूप से गायब रहना। इसमें लड़की को माहवारी होती ही नहीं। गर्भाशय या डिम्ब ग्रंथियों का पूरी तरह विकसित न होना इसका कारण हो सकता है। थायराइड या पिट्युट्र्री ग्रंथि के विकार भी या समस्या पैदा कर सकते हैं। कुछ विरले उदाहरण ऐसे हैं जिनमें महिला हिजड़े जैसी होती है। चूँकि उसके शरीर में हार्मोनों का चक्र नहीं बनता इस लिए डिम्ब उत्सर्ग भीं नहीं होता।
इसमें महिला को माहवारी आरंभ तो होती है परन्तु कभी पहली बार के बाद और कभी कुछ समस्या बाद बंद हो जाती है। इसके कुछ कारण इस प्रकार है:
स्रोत:- जननी/ जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची व पत्र सूचना कार्यालय ।
अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020
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