एक मानव शरीर की कल्पना कीजिये जिसकी दोनों बाहें फैली हुई हैं और हर फैली हुई बांह के हाथ में एक गोलाकार पिंड है| गर्भाशय, डिम्ब नलिकाएं (जिनके लिए डिम्बनाल का शब्द भी प्रयोग किया जाता है) और डिम्ब ग्रंथियाँ इस आकृति से मिलती जुलती दिखाई देंगी| शरीर के अंदर यह अंग एक छोटा सा स्थान घेरते हैं| यह स्थान पेट के निचले भाग में होता है| शरीर विज्ञान की भाषा में इस श्रोणि कहते हैं| साधारण बोल चाल की हिंदी में इसे कोख या पेडू कहा जाता है| स्त्री गर्भवती न हो तो यह सारे अंग (जो एक छोटे से तंत्र का हिस्सा हैं) छिपे रहते हैं| गर्भ की अवस्था में गर्भाशय विकसित होकर बढ़ जाता है| प्रसव के बाद सिकुड़ कर यह फिर अपने सामान्य आकार का हो जाता है|
अन्दर से खोखला और लाल रंग का यह अंग अर्थात गर्भाशय एक ऐसे पपीते जैसा होता है जिसमें बीज न हों| गर्भाशय को आम बोल चाल की भाषा में बच्चेदानी कहते हैं| अपने सामान्य रूप में में यह एक स्त्री की मुठठी के बराबर होता है| इसे आप एक उल्टी नाश्पाती जैसा भी समझ सकते हैं| इसका मुख नीचे की ओर होता हैं जिसे गर्भाशय ग्रीवा कहते हैं| जिस स्त्री को बच्चा हो चुका हो उसके गर्भाशय के द्वार में केवल छोटी ऊँगली डाली जा सकती है| कुंवारी कन्या में यह केवल पिन की नोक जैसा होता है|
गर्भाशय की बाहरी दीवारें मांसपेशियों से बनी होती हैं| प्रसव के समय यह सिकुड़ती और बच्चे को भींचती हैं| इसके कारण स्त्री को प्रसव पीड़ा होती है| पपीते की भांति बाहरी दीवारों के अलावा गर्भाशय में अन्दर एक मुलायम लाल झिल्ली होती हैं| मासिक धर्म के दौरान यह झिल्ली खून के साथ बाहर आ जाता है| अगले डिम्ब के बनने तक (अर्थात लगभग एक माह के समय में) यह झिल्ली भी दुबारा तैयार हो जाती है| गर्भाशय के दोनों ओर एक-एक डिम्ब नलिका होती है जिसकी तुलना फैली हुई बाँहों से की गई थी| नलिकाओं के सिरों पर एक टोकरी जैसी रचना होती है जिसमें कई उँगलियाँ निकली हुई होती हैं| यह उँगलियाँ बहुत धीरे-धीरे करके डिम्ब ग्रंथि से डिम्ब ग्रहण करती हैं| डिम्ब, डिम्ब नलिका द्वारा गर्भाशय में पहुँचता है| अगर रास्ते में इसे पुरुष का शुक्राणु मिल जाए तो स्त्री को गर्भ ठहर जाता है| परिवार नियोजन के आप्रेशन में डिम्ब नलिकाओं को काट कर बांध दिया जाता है| इस स्थिति में डिम्ब गर्भाशय में प्रवेश नहीं कर सकता और महिला गर्भवती नही हो पाती है|
डिम्ब नाल के टोकरी जैसी भाग के पास डिम्ब ग्रंथि होती है| चूँकि डिम्ब नलिकाएं दो होती है इसलिए डिम्ब ग्रंथियाँ भी दो होती हैं| प्रत्येक डिम्ब ग्रंथि में बहुत सी बीज कोशिकाएं होती हैं| हर महीने इनमें से एक कोशिका परिपक्व होती है और एक बीज की भांति आगे बढ़ने के लिए छोड़ दी जाती है| इस प्रक्रिया को डिम्ब उत्सर्ग कहते हैं| जिस ओर का बीज परिक्व होता है उस ओर की नलिका की उँगलियाँ उसे समेट लेती हैं| बीज ग्रंथियों का आकार शीशे की गोलियों जितनी होता है| डिम्ब ग्रंथियाँ स्त्रियों के विशेष हार्मोन ऐसे रसायनिक द्रव्य हैं जो शारीर पर तरह-तरह से प्रभाव डालते हैं| इनमें से ई (ईस्ट्रोजेन) एवं पी (प्रोजेस्टेरोन) हार्मोन मासिक धर्म का कारण बनते हैं|
मासिक धर्म के आरंभ होने पर एक बालिका स्त्री में परिवर्तित हो जाती है| इस सारे घटना चक्र में बीज ग्रंथियाँ मुख्य भूमिका निभाती है| ई एवं पी नामक हार्मोन इन्हीं ग्रंथियों में बनते व बाहर निकलते हैं| हमारे मष्तिष्क में पिटयुटरी नाम की एक नन्हीं सी ग्रंथि है जो शरीर की दूसरी ग्रंथियों के स्राव को नियंत्रित करती है| इस तरह वास्तविक नियंत्रण पिटयुटरी का ही होता है| डिम्ब ग्रंथियों से निकलने वाले ई और पी हार्मोनों की मात्रा शरीर में कम व अधिक होती रहती है| गर्भाशय में इसी के अनुसार प्रतिक्रिया होती है जो मासिक धर्म के रूप में प्रकट होती है|
जब कोई लड़की मासिक धर्म की उम्र को पहुँचती है तो इसके मष्तिष्क में स्थित पिटयुटरी ग्रंथि उसकी डिम्ब ग्रंथियों को रसायनिक संकेत भेजती है| इन संकेतों के मिलने पर डिम्ब ग्रंथियाँ ई हार्मोन को रक्त में भेजती हैं| यह हार्मोन शरीर में कई परिवर्तन पैदा करते हैं| इनका मुख्य प्रभाव गर्भाशय पर पड़ता है| इसके द्वारा गर्भाशय के भीतर एक झिल्ली का अस्तर तैयार होता है| इसको आप यूँ समझिए जैसे वर्षा से पहले बीज बोने के लिए जमींन तैयार की जाए| यह प्रतिक्रिया पहले दो हफ्तों तक होती है| ई हार्मोन के कुछ गौण प्रभाव भी होते हैं जैसे स्तनों का भारी होना, शरीर में चर्बी बनना और शरीर में कुछ नमक व पानी का इकट्ठा होना| इसके अलावा बगल और गुप्तांग के आस पास बालों का उगना भी ई हार्मोन के प्रभाव के कारण ही होता है| यह हामोन इन स्थानों पर बाल उगता है और चेहरे पर बाल उगने से रोकता है| इसलिए स्त्रियों के चेहरे पर दाढ़ी मूंछे नहीं पाई जाती |
दस दिन बाद शरीर में ई हार्मोन का स्तर गिरने लगता और पी का स्तर बढ़ने लगता है| पी गर्भाशय गर्भित डिम्ब को अपने अन्दर रखने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है| अगर इस दौरान स्त्री का डिम्ब गर्भित नहीं होता है तो वह बेकार हो जाती है| समय चक्र पूरा हो जाने पर गर्भाशय में जो झिल्ली तैयार हुई थी वह उखड़ने लगती है| उसके साथ कुछ खून भी बाहर आता है| यह 2 से 4 दिनों तक आता रहता है| यही माहवारी है| इसके समाप्त होने पर ई हार्मोन फिर सक्रिय हो जाता और अगले चक्र की तैयारी करने लगता है| चक्र 28 दिन का होता है|
मासिक धर्म या माहवारी 12 से 15 वर्ष की उम्र में आरंभ होती है| स्त्री गर्भवती हो तो यह माहवारी गर्भ के पूरे 9 महीनों तक रुक जाती है| 45-50 की उम्र के बीच यह धीरे-धीरे बंद हो जाती है| इसलिए स्त्री के लिए गर्भवती होने और बच्चे पैदा करने की उम्र 15 से 45 के बीच है|
ऊपर 28 दिन के जिस चक्र का वर्णन किया गया है उसके बीच में किसी समय स्त्री का डिम्ब बाहर आता है| इसका जीवन 48 घंटों का होता है| पुरुष के शुक्राणु या बीज का जीवन काल भी 24 से 48 घंटें है| हर माहवारी चक्र में डिम्ब के बाहर आने की तिथि 1 से तीन दिन के बीच हो सकती है| इसलिए गर्भधारण करने का संभावित समय मासिक चक्र के बीच 4 से 6 दिन का होता है| नियोजन के प्राकृतिक तरीकों की भाषा में इसे असुरक्षित समय कहा जाता है| इस समय स्त्री के गर्भवती होने की पूरी संभावना होती है|
प्रजनन क्षमता की जाँच के लिए योनि स्राव की जाँच भी की जा सकती है| स्त्री स्वयं उसे दो उँगलियों की बीच लेकर देख सकती है| यदि ऊँगली अलग करने पर वह साफ और धागे की तरह खींचता दिखाई दे तो गर्भ धारण करने के लिए यह समय उपयुक्त है| दूसरे समय में जिसमें जनन क्षमता नहीं है, और जिसे सुरक्षित कहा जाता है, डिम्ब गर्भ धारण करने के लिए तैयार नहीं होता| माहवारी आंरभ होने के पहले व बाद के 8 -10 दिन आम तौर पर सुरक्षित रहते हैं| इन दिनों में योनि स्राव गाढ़ा, सफेद व अपारदर्शी हो जाता है| खींचने पर इसमें धागा नहीं बनता|
डिम्ब ग्रंथि से डिम्ब बाहर आने की प्रक्रिया डिम्ब उत्सर्ग कहलाती है| इस समय स्त्री के शरीर में कुछ बदलाव आते हैं| इन पर ध्यान दिया जाए तो अनुमान लगाना संभव हो सकता है कि डिम्ब किस दिन बहर आ रहा है| यह बदलाव कुछ इस प्रकार हैं:
आम तौर पर रक्तस्राव आरंभ होने के दिन को माहवारी का आरंभ माना जाता है| आम तौर पर माहवारी का खून पहले कुछ धब्बों के रूप में बाहर आता है| फिर इसकी मात्रा बढ़ जाती है| अब महिला को कपड़े की गद्दी लेने की आवश्यकता होती है| दूसरे या तीसरे दिन से रक्तस्राव में कमी आने लगती है| अगले एक या दो दिन में यह समाप्त हो जाता है| तरह रक्त २ से 5 दिन तक जारी रह सकता है| अलग –अलग स्त्रियों में रक्त की मात्रा अलग-अलग हो सकती है| यदि हम इसे गद्दी बदलने के अनुसार नापें तो 24 घंटों में 1 से 3 गद्दियाँ बदली जा सकती हैं| मासिक धर्म की य भिन्नता सामान्य है|
माहवारी के रक्त को सोखने और स्वयं को साफ रखने के लिए स्त्रियाँ कई तरीके अपनाती हैं| उनमें से कुछ इस प्रकार है|
माहवारी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण है सफाई| धुले तथा धुप में सुखाये हुए सूती कपडे को कई तहों में मोड़ कर इस्तेमाल करना रक्त को सोखने के लिए काफी है| यह कपडा साफ न हो तो कीटाणुओं को पनपने का अवसर मिल सकता है| रक्तस्राव के दिनों में गुप्तांगों के आस पास की जगह कीटाणुओं को खूब पोषण देती है| साफ रहने के लिए महिला को चाहिए कि वह गुप्तांग और आस-पास के स्थान को दिन में कई बार धो| माहवारी के दौरान रोज नहाने से कोई नुकसान नहीं होता| इसलिए नियमित रूप से नहाना चाहिए|
स्रोत:- जननी/ जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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