अभी तक आपने रेडियो , टेलीविजन पर, बाजार में, अपने पड़ोसियों से या स्वास्थ्य केंद्र में एड्स के बारे में जरुर सुन लिया होगा । आप शायद सोच सकती हैं कि एड्स आपकी समस्या नहीं है । तभी भी, लाखों लोग एड्स विषाणु से संक्रमित हैं । इनमें महिलाओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।
हम एड्स से अपनी रक्षा तभी कर सकते हैं जब हम यह समझें कि एड्स क्या है और यह कैसे फैलता है । हमें यह भी अवश्य समझना चाहिए कि गिरते हुए सामाजिक मूल्यों, बढ़ती हुई गरीबी तथा इस रोग का अपास में क्या संबंध हैं, इस रोग के बारे में खुले रूप से चर्चा करने से इसको कैसे नियंत्रित किया जा सकता है और इस रोग के कारण हमारे समाज, परिवारों तथा मित्रों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है ?
भारत में एच.आई.वी. से संक्रमित हर चौथा व्यक्ति एक किशोर है । इसलिए यह अति महत्वपूर्ण है कि हम एक सही सामाजिक परिवेश का निर्माण करें ताकि युवा जन आपसी संबंधों से बचने की आवश्यकता को समझ सकें । समाज को भी कड़ाई का रुख अपनाकर, उन लोगों का पर्दाफाश व दंडित करने के लिए कटिबद्ध होना चाहिए जो युवा लोगों का यौनिक रूप से शोषण व उत्पीडन करते है ।
भारत में एच.आई.वी. की महामारी लगभग 16 वर्ष पुरानी है और लगभग सभी प्रदेशों तथा केंद्र शासित प्रदेशों से एच.आई.वी. संक्रमणों की रिपोर्ट मिली है । 75 प्रतिशत संक्रमण यौन संबंधों के माध्यम से, 8 प्रतिशत खून चढ़ावाने के द्वारा तथा अन्य प्रतिशत सुई के द्वारा नशीली दवाइयों के माध्यम से होने की रिपोर्ट है ।
10 वर्ष पहले ऐसा लगता था कि महिलाओं को यौन, यौनिक स्वास्थ्य, यौ.सं.रोगों तथा एड्स से रक्षा के प्रति शिक्षित करना अति आवशयक है । इस बात पर जोर देना भी आवश्यक है कि महिलाएं कोई भोग व कामक्रिया की वस्तु नहीं हैं और शारीरिक संबंध हमेशा एक ऐसे गहरे संबंध का भाग होने चाहिए जो आपसी सम्मान, देखभाल, प्यार व समझ पर आधारित हैं ।
एड्स अब विश्व के उन भागों में तेजी से फैल रहा है जहां लोग गरीब और अशिक्षित हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में विकास तथा रोजगार के अवसर नहीं के बराबर होने से, जब भोजन व पानी का आभाव हो जहां युद्ध या अन्य किसी कारणवश अशांति होती हैं तो लोगों को भारी संख्या में अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है । प्राय: पुरुष अकेले ही काम की तलाश में शहर जाते हैं । वहां जाकर उन्हें एक बिल्कुल ही नया माहौल मिलता है जहां टेलिविजन, फिल्मों जैसे माध्यम महिला को आनंद व भोग की वस्तु के रूप में दिखाकर उस पर एक शक्तिशाली प्रभाव डालते हैं । इन परिस्थितियों में अच्छी परम्पराएं तथा व्यवहार भी टूट जाते हैं । पुरुषों की अन्य साथियों के साथ आकस्मिक या व्यवसायिक यौन संपर्क बनाने की संभावना अधिक रहती है ।
महिलाओं के लिए सामंजस्य बनाना विशेष रूप से कठिन होता है । गरीब महिलाओं के अपना जीवन नियंत्रण करने के शक्ति वैसे ही काफी कम होती है । उनके पास अपना गुजर बसर कनरे के शिक्षा व दक्षता का आभाव होता है, उन्हें अपने शरीर व स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान का आभाव होता है और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों का सहारा व सुरक्षा भी नही मिलती है । लड़कियों तथा महिलाओं के अवैध व्यापार के साथ-साथ यौनिक हिंसा में भी वृधि हो रही है । इसके साथ पहले से ही संक्रमित यौन साथियों से एड्स संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ रहा है ।
एच.आई.वी. नंगी आखों से न दिख सकने वाला एक सूक्ष्म विषाणु (वायरस) है । एड्स वह बीमारी है जो एच.आई.वी. से संक्रमित व्यक्ति में बाद में विकसित होती है ।
जब एक व्यक्ति एच.आई.वी. से संक्रमित हो जाता है तो यह उसके शारीर में गुणन करने लगता है अरु वह शरीर में बिमारियों के कीटाणु से लड़ने वाले इम्युन तंत्र को नष्ट करने लागता है । धीरे-धीरे यह इम्युन तंत्र की सभी कोशिकाओं को नष्ट कर देता है और शरीर किसी भी प्रकार के कीटाणुओं से अपनी रक्षा करने में अक्षम हो जाता है । शरीर में एच.आई.वी. संक्रमण होने के पश्चात कुछ लोग केवल थोड़े समय के लिए ही स्वस्थ महसूस करते हैं, जबकि उनके व्यक्तियों 5-10 वर्ष तक बिल्कुल ठीक रहते हैं । लेकिन अंततः इम्युन तंत्र बेकार हो जाता है और उन कीटाणुओं को भी काबू पाने में असमर्थ हो जाता है जो आम तौर पर बीमारी पैदा नहीं करते हैं । चूँकि एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति स्वस्थ महसूस करते हैं और उन्हें इस संक्रमण का पता भी नहीं होता है ।
महत्वपूर्ण: आप एच.आई.वी. से संक्रमित होने के तुरंत पश्चात से ही दूसरों को यह वायरस संचारित करने में सक्षम हैं चाहे आप स्वयं स्वस्थ महसूस करें या दिखें । किसी व्यक्ति को केवल देखकर यह नहीं कहा जा सकता है कि वह एच.आई.वी. संक्रमित है या नहीं । एच.आई.वी. संक्रमण का केवल रक्त परीक्षण करके ही पता लगाया जा सकता है ।
एड्स (एक्वायर्ड एम्युनो डेफिसिंएसी सिंड्रोम) वह स्थिति हैं जब एच.आई.वी. से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में इम्युन तंत्र इतना कमजोर हो जाता है कि वह साधारण संक्रमणों व बिमारियों से भी अपनी रक्षा नहीं कर पाता है । एड्स के लक्षण विभिन्न व्यक्तियों में अलग-अलग होते हैं । वे महिलाओं और पुरुषों में भी भिन्न हो सकते हैं । अकसर ही ये लक्षण साधारण बिमारियों के चिरस्थायी संक्रमण के कारण होते हैं ।
पौष्टिक भोजन तथा कुछ दवाइयां व्यक्ति के शारीर में एड्स से उतपन्न संक्रमणों से लड़ने और उसके जीवनकाल को बढ़ाने में सहायक होती हैं । लेकिन एड्स का कोई उपचार अभी तक नहीं है । इसलिए कुछ समय के पश्चात एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति को और भी अधिक बिमारियां होने लगती है और धीरे-धीरे शरीर इन पर काबू पाने में और भी असमर्थ होता जाता है । अंततः रोगी की मृत्यु हो जाता है ।
शरीर में एच.आई.वी. कहां पाया जाता है ?
यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के शरीर के द्रव्यों, योनि द्रव्य, रक्त तथा संक्रमित रक्त से निर्मित पदार्थों में पाया जाता है । एच.आई.वी. संक्रमित मां के स्तनों के दूध में भी इसकी मात्रा पाई जाती है । बहुत कम मात्रा ऐसे व्यक्ति के पसीने व आसुओं में भी पाई जाती है लेकिन वह इतनी नगण्य होती है कि दूसरों को संक्रमित नहीं कर सकती है ।
एच.आई.वी. शरीर में कैसे प्रवेश करता है ?
एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के साथ असुरक्षित यौन संपर्क से यह वायरस शरीर में प्रवेश कर सकता है । किसी व्यक्ति के अनके साथियों के साथ यौन संबंध होने से यह जोखिम बढ़ जाता है लेकिन केवल एक बार ही संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संपर्क से भी यह संक्रमण हो सकता है ।
दूषित रक्त या रक्त उत्पादों के माध्यम से भी एच.आई.वी. शरीर में प्रवेश कर सकता है । अगर एच.आई.वी. दूषित रक्त किसी व्यक्ति के शरीर में चढ़ा दिया जाए तो यह वायरस उसके शरीर में आसानी से प्रवेश आकर जाता है ।
सुई द्वारा नशीली दवाइयों का सेवन करने वाले व्यक्ति अगर दूषित सीरिंज व सुई का प्रयोग करते हैं । यह तब होता है जब संक्रमित व असंक्रमित व्यक्ति मिलकर एक ही सुई व सिरिंज से ये दवाईयां लेते हैं ।
यह वायरस शरीर में तब भी प्रवेश कर सकता है जब चिकित्सकीय औजारों या त्वचा को छेदने व काटने वाले औजार (उदाहरणतया नाक व कान छेदने वाले औजार) एच.आई.वी. से दूषित हों और उन्हें हर प्रयोग से पहले भली भांति कीटाणुरहित नहीं किया गया हो । एच.आई.वी. खुले जख्मों व घावों में किसी अन्य व्यक्ति के संक्रमित रक्त के प्रवेश करने से भी शरीर में प्रवेश कर सकता है ।
एक एच.आई.वी. संक्रमित मां इस संक्रमण को अपने नवजात शिशु को भी संचारित कर सकती है । ऐसा गर्भ में ही या प्रसव के दौरान हो सकता है । संक्रमित मां के स्तन के दूध से भी वायरस की बच्चे को संचारित होने की संभावना रहती है ।
किस प्रकार एच.आई.वी./एड्स नहीं फैलता है
शरीर से बाहर एच.आई.वी. कुछ मिनटों से अधिक जीवित नहीं रह पता है । यह अपने बलबूते पर पानी या हवा में नहीं रह सकता है । इसका अर्थ है कि आप न तो इन चीजों से इसे किसी को संचारित कर सकते हैं और न ही प्राप्त कर सकते हैं :
एच.आई.वी./एड्स के लिए महिला संवेदनशील इसलिए हैं क्योंकि :
एच.आई.वी./एड्स की रोकथाम
आप इन तरीकों से एड्स की रोकथाम कर सकते हैं :
कुछ यौन संबंध अन्यों की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं
चुंबन- होठों से होठों का चुंबन लेना सुरक्षित हैं चाहे आपके मुख खुले भी हों या आपके साथी के मुहं में कोई छाला या जख्म या कट हैं तो उसके ठीक होने तक ऐसा चुंबन न लें ।
स्पर्श (छूना): छूना हमेशा तब तक सुरक्षित होता है जब तक किसी भी व्यक्ति के हाथों जा जननांगों पर खून, स्त्राव या जख्म आदि न हो ।
मुख सहवास (मैथुन) : योनि व गुदा सहवास की तुलना में यह अधिक सुरक्षित है परंतु इसके तुरंत पश्चात मुहं भली भांति कुल्ला कर लेना चाहिए । मुख मैथुन से गले व मुहं में गोनोरिया व हर्पीस हो सकता है । कंडोम का प्रयोग एक सुरक्षित उपाय है ।
योनि सहवास – योनि सहवास हालांकि गुदा मैथुन की तुलना में कम खतरे वाला होता है परंतु यह मुख मैथुन की तुलना में अधिक खतरे वाला होता है । वीर्य का आपकी योनि के संपर्क में आना रोकने के लिए हमेशा कंडोम का प्रयोग करें ।
गुदा, सहवास – यह काफी जोखिमपूर्ण हो सकता है क्योंकि गुदा की आतंरिक भित्ति में सहवास के कारण कट व जख्म अधिक होते हैं । सहवास की एक ही क्रिया में गुदा में से निकाल कर लिंग को बिना धोए हुए योनि में नहीं डालने दें, नहीं तो आपको संक्रमण हो जाएगा ।
एच.आई.वी/एड्स की रोकथाम करना हमेशा आसान नहीं होता है
एड्स की रोकथाम के लिए –
जब एच.आई.वी. शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर इस वायरस से लड़ने के लिए उसी समय से एंटीबॉडीज बनाना शुरू कर देता है । लगभग 6-12 सप्ताह के पश्चात ये एंटीबॉडीज रक्त में आ सकती है हालांकि रक्त के परीक्षण से इन्हें पहचानने के लिए 3 महीने तक लग सकते हैं । संक्रमण होने तथा रक्त में इन एंटीबॉडीज आने के अंतराल को “विंडो पीरियड” कहते हैं । एच.आई.वी. रक्त परीक्षण से रक्त एंटीबॉडीज की पहचान की जाती है । यही एक तरीका है जिससे किसी व्यक्ति को एच.आई.वी. से संक्रमित होने का पता लगाया जा सकता है । यह एड्स का परीक्षण नहीं है ।
एच.आई.वी. परीक्षण के पॉजिटिव होने का अर्थ है कि आप एच.आई.वी. से संक्रमित हैं और आपके शरीर ने एच.आई.वी. के विरुद्ध एंटीबॉडीज बना ली है । अगर आप पूर्णतया स्वस्थ भी महसूस करते हैं तो भी इस अवस्था में आप इस वायरस (संक्रमण) के दूसरों को संचारित करने में सक्षम हैं ।
एच.आई.वी. टेस्ट के नेगेटिव आने के दो में से एक अर्थ हो सकता है :
अगर आपका एच.आई.वी. टेस्ट नेगेटिव आया है लेकिन आप समझते हैं कि आप एच.आई.वी. संक्रमित हैं तो कुछ महीनों के पश्चात फिर से यह टेस्ट कराएं । कभी-कभी टेस्ट के पॉजिटिव आने पर भी इसे दोहराने की आवश्यकता होती है । इसमें एक स्वास्थ्य कर्मचारी आपकी सहायता कर सकता है ।
विडों पीरियड
एच.आई.वी. संक्रमण होने और रक्त में एच.आई.वी. के विरुद्ध एंटीबॉडीज प्रकट होने के बीच के समय को विंडो पीरियड कहते हैं । इस काल के दौरान (एंटीबॉडीज के लिए) एच.आई.वी. रक्त परीक्षण नेगेटिव आ सकता है लेकिन एंटीजन टेस्ट के द्वारा वायरस की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है । इस काल के दौरान संक्रमित व्यक्ति अन्य लोगों को यह वायरस संचारित कर सकता है । अलग-अलग लोगों में विंडो पीरियड हो सकता है । यहां एक उदाहरण दिया जा रहा है कि एक महिला के लिए यह कितना लंबा था –
वह एच.आई.वी. संक्रमित था । वह संक्रमित हो गई । उन्होंने असुरक्षित सहवास किया ।
तीन सप्ताह बाद किए गए एच.आई.वी. टेस्ट में उसका परिणाम नेगेटिव आया । लेकिन फिर भी वह संक्रमित थी और दुसरे लोगों को यह संक्रमण संचारित करने में सक्षम थी । इसका अर्थ यह है कि वह विंडो पीरियड में थी ।
नौ सप्ताह बाद उसके रक्त परीक्षण पॉजिटिव आया ।
एच.आई.वी. संक्रमण |
विंडो पीरियड |
पॉजिटिव टेस्ट |
एच.आई.वी. संक्रमण होने और रक्त में एच.आई.वी. के विरुद्ध एंटीबॉडीज प्रकट होने के बीच के समय को विंडो पीरियड कहते हैं। चूँकि विंडो पीरियड 6 महीनों तक हो सकता है इसलिए एच.आई.वी. के संपर्क में आने के बाद एच.आई.वी. रक्त टेस्ट कराने के लिए उतनी प्रतीक्षा करें । अगर आप सोचते हैं की आप विडों पीरियड के 3-6 महीने के काल में फिर से एच.आई.वी. के संपर्क में आए हैं तो नए संपर्क के 6 महीने बाद फिर से टेस्ट कराएं ।
आपको एच.आई.वी परीक्षण कराने से बेहतर है असुरक्षित व्यवहार में बदलाव लाना । लेकिन हो सकता है कि आप और आपका साथी आपना परीक्षण कराना चाहें अगर –
परीक्षण के परिणाम जानने के फायदे
अगर आपके परीक्षण का परिणाम निगेटिव है तो आप अपनी सुरक्षा करने के बारे में सीखें ताकि सदैव निगेटिव ही रहें और कभी भी एच.आई.वी./एड्स के शिकार न बनें ।
अगर आपके परीक्षण पॉजिटिव है तो आप :
अपने साथी में एच.आई.वी. संक्रमण के संचरण को रोक सकती हैं ।
स्वास्थ्य की समस्याओं के लिए शिग्र उपचार करा सकती हैं ।
अपनी जीवन शैली में परिवर्तन ला सकती है ताकि आप लंबे समय तक स्वस्थ रह सकें ।
अपने समुदाय में अन्य एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्तियों का सहारा लें सकें ।
अपने व अपने परिवार के भविष्य की योजना बना सकती हैं ।
परीक्षण के परिणाम जानने के नुकसान
परीक्षण का परिणाम पोसिटिव आने पर आपके मन में अनके प्रकार की भावनाएं उत्पन्न हो सकती हैं । यह बिल्कुल सामान्य बात है कि आपको परिणाम जानकर धक्का लगे तथा आप इस परिणाम को मानने से इंकार कर दें । आपको क्रोध व विवशता भी महसूस हो सकती है और आप स्वयं व अन्य लोगों को इसका दोषी करार दें सकतें हैं ।
किसी स्वास्थ्यकर्मी या किसी अन्य विश्वसनीय व्यक्ति से बातचीत करने पर काफी राहत मिलती है । लेकिन अपने इस परिणाम के विषय में बताने से पहले उस व्यक्ति के बारे में आश्वस्त हों जाएं । आपका पति या आपका साथी आपको ही दोषी ठहरा सकता है चाहे वह स्वयं भी एच.आई.वी. संक्रमित हो । अन्य व्यक्ति आपसे भयभीत हो सकते हैं, आपसे बचना चाह सकते हैं क्योंकि उन्हें एच.आई.वी./एड्स तथा उसके फैलने के तरीकों के विषय में ज्ञान नहीं है । अगर संभव हो तो किसी प्रशिक्षित एच.आई.वी./एड्स काउंसलर से मिलें जो यह निश्चित करने के लिए आपकी सहायता करेगा कि किसे बताया जाए और आपके जीवन में हुए इस आकस्मिक परिवर्तन का कैसे सामना करें ।
महत्वपूर्ण : नेगेटिव परीक्षण परिणाम का यह अर्थ कदापि नहीं है कि आप कभी भी एच.आई.वी. संक्रमित नहीं होंगे । अगर आप असुरक्षित यौन व्यवहार करते हैं तो भी आप संक्रमित हो सकते हैं । इससे बचने के लिए परहेज, सुरक्षित यौन संबंध, कंडोम का सही व नियमित प्रयोग ही मूलभूत सुरक्षा विकल्प हैं ।
काउंसलिग
काउंसलर वह व्यक्ति होता है जो पीड़ित व्यक्ति तथा उसके परिवार के सदस्यों के बातें सुनकर और उनसे बातचीत करके उन्हें उनकी चिन्ताओं तथा भयों से निपटने और अपने निर्णय स्वयं लेने में उनकी सहायता करता है ।
किसी एच.आई.वी. पीड़ित व्यक्ति के लिए काउंसलिंग न केवल संक्रमित होने की स्थिति का पता लगने बल्कि उसके पुरे जीवन में महत्वपूर्ण है । अगर आप एच.आई.वी. संक्रमित है तो एक दक्ष काउंसलर आपकी इस प्रकार सहायता कर सकता है ।
यह निर्णय लेने के लिए कि किस को आपको संक्रमित होने के बारे में बताया जाए ।
स्वास्थ्य केंद्रों से आपकी देखभाल की सुविधा जुटाने में ।
आपके परिवारजनों को एच.आई.वी. संक्रमित होने के परिणामों तथा एच.आई.वी. के संचरण के तरीकों के बारे में बताने में । इससे उन्हें बिना भय के आपको स्वीकार करने व आपकी देखरेख करने में सहायता मिलेगी ।
आपको यह समझने में सहायता करके कि किस प्रकार आप लंबे समय तक स्वस्थ रह सकती है ।
भविष्य की योजनाएं बनाने में ।
आपको यौनिक रूप से सुरक्षित रहने के विषय में बताकर ।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति तथा पारम्परिक उपचारकों के पास अभी तक एड्स का कोई उपचार नहीं है लेकिंन एच.आई.वी. से पीड़ित अधिकतर लोग अनके वर्षों तक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं । इस काल में इन सबसे काफी सहायता मिलती है :
हालांकि यह जोखिमपूर्ण हो सकता है लेकिन अगर आप सुरक्षित यौन व्यवहार का ध्यानपूर्वक पालन करें तो बिना स्वयं संक्रमित हुए आप एच.आई.वी. संक्रमित साथी से यौन संबंध बनाए रख सकते हैं । सुरक्षित यौन तरीकों को अपनाने के साथ-साथ, आप अपने स्वास्थ्य पर भी ध्यान पूर्वक निगरानी रखें । त्वचा पर या अन्य भागों पर काटने-फटने का ध्यान रखें जहां से आपको संक्रमण हो सकता है । यह भी याद रखें कि बिना सहवास किये हुए भी आप यौन संपर्क का आनंद ले सकते हैं ।अपनी बाहों में किसी को भरना, गले लगाना या चुंबन लेना सुरक्षित है ।
एच.आई.वी. और एड्स पीड़ित लोगों का एक समूह बनाईए या ऐसे किसी समूह में सम्मिलित हो जाईए । एच.आई.वी. और एड्स पीड़ित कुछ लोग समुदाय को शिक्षित करने, एड्स पीड़ित लोगों की घर पर देखभाल करने तथा एच.आई.वी. और एड्स पीड़ित लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करते हैं ।
अपने मानसिक व आत्मिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें । आपकी मानसिक शकित व विश्वास आपको आशा व शक्ति प्रदान कर सकती है ।
भविष्य के बारे में सोचिए । अगर आपके बच्चे हैं तो –
उनके साथ समय बिताये, उसको प्यार-दुलार व मार्गदर्शन दें ।
आपके जाने के बाद परिवारजनों की देखभाल का प्रबंध करें ।
वसीयत लिखें । अगर आपके पास पैसा, घर, सम्पत्ति आदि है तो यह सुनिश्चित करें कि वे उन्हीं को मिलें जिन्हें आप देना चाहती हैं । कभी-कभी कानून रूप से विवाहित न होने के कारण कुछ महिलाएं अपनी जमीन-जायदाद आदि को अपने बच्चों या अन्य परिवार जनों को नहीं दे सकती हैं । इसलिए ऐसी स्थिति में, क़ानूनी रूप से विवाह करना एक अच्छा कदम है ताकि आप अपनी जमीन-जायदाद अपने प्रियजनों के लिए छोड़ कर जा सकें ।
अपने स्वास्थ्य की देखभाल करें
इसके अतिरिक्त उसका नवजात शिशु :
एच.आई.वी. संक्रमित हो सकता है ।
कमजोर व बीमार, समय से पहले हो सकता है और मर सकता है ।
इन सब संभावित समस्याओं को जानते हुए भी कुछ संक्रमित महिलाएं गर्भधारण करना चाह सकती है या फिर उनके पास गर्भधारण रोकने का कोई साधन नहीं होता है ।
अगर आप गर्भधारण करना चाहें :
नवजात शिशु आपके गर्भाशय में, प्रसव के दौरान या स्तनपान कराने से एच.आई.वी. संक्रमित हो सकता है । कुछ एंटीरेट्रोवायरल दवाईयां गर्भवस्था में शिशु के एच.आई.वी. संक्रमित होने के जोखिम को कम करती है । इस विषय में प्रशिक्षित किसी स्वास्थ्यकर्मी से परामर्श करें ।
एच.आई.वी. संक्रमती माता हमेशा अपने शिशु को एंटीबॉडीज ( लेकिन एच.आई.वी. सदैव नहीं) संचारित करती है । इसका अर्थ यह है कि टेस्ट करने पर ऐसा नवजात शिशु हमेशा एच.आई.वी. पॉजिटिव पाया जाएगा लेकिन तत्पश्चात अनके बच्चों में यह टेस्ट नेगेटिव हो जाता है । इसका अर्थ यह है कि उन्हें वास्तव में एच.आई.वी. संक्रमण नहीं हुआ था । 18 महीने की आयु से पहले यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि जन्म के समय एच.आई.वी. पॉजिटिव बच्चा वास्तव में संक्रमित है या नहीं । उस आयु तक के बच्चे के रक्त में, मां से प्राप्त, एंटीबॉडीज समाप्त हो जाती है ।
प्रसव के समय
अगर आप समझती हैं कि आपका प्रसव कराने वाली दाई या प्रसव सहायक समझ सकेगी तो आप उसे अपनी एच.आई.वी. संक्रमित अवस्था के बारे में बता दें ताकि वह आपको और आपके नवजात शिशु को संक्रमणों से बचा सके ।
प्रसव के पश्चात अपने जननांगों को एक दिन बार हल्के साबुन पानी से अवश्य हो सकने वाले संक्रमणों के लक्षणों के बारे में जानकारी प्राप्त करें और अगर आवश्यक हो तो तुरंत उपचार कराएं ।
स्तनपान के दौरान
एच.आई.वी. संक्रमण बच्चे को कभी-कभी स्तन दूध के माध्यम से भी संचारित हो सकता है । इसके बारे में अभी यह ज्ञात नहीं कि ऐसा कितनी बार होता है और यह केवल कुछ बच्चों के साथ ही क्यों होता है, अन्य के साथ क्यों नहीं ? जो माताएं अभी हाल में ही एच.आई.वी. संक्रमती हुई हैं या जो एड्स रोग के कारण अत्यधिक बीमार हैं, उनके स्तन दूध में एच.आई.वी. की मात्रा अधिक होती है ।
कुछ माताएं ऐसी कोई मित्र या रिश्तेदार ढूंढ लेती हैं जो एच.आई.वी. संक्रमित नहीं हैं और उसके बच्चे को अपने स्तनों से दूध पीला सकती है । यह आपके बच्चे के लिए एक सबसे सुरक्षित तरीका हो सकता है । लेकिन अगर आप एच.आई.वी. संक्रमित हैं तो भी अपने स्तनों से बच्चे को दूध पिलाना अन्य दूध या पाउडर दूध पिलाने से कहीं बेहतर है । अनके समुदायों में अन्य दूधों के माध्यम से बच्चे को दस्तों तथा कुपोषण होने का खतरा, एच.आई.वी. संक्रमण होने के खतरे से कहीं अधिक है । ऐसा होना बच्चे के जीवन के शुरू के 6 महीनों में और भी खतरनाक हो सकता है ।
6 महीने की आयु के पश्चात जब आपका बच्चा थोडा बड़ा और थोडा शक्तिशाली हो जाता है तो उसे दोस्तों व अन्य संक्रमणों का खतरा कम होता है । इसलिए 6 महीने की आयु के पश्चात आप उसे अन्य दूध व उपरी खाद्य पदार्थ देना शुरू कर सकती हैं । इस प्रकार आपके बच्चे को स्तनपान के अनके लाभों के साथ-साथ, एच.आई.वी. संक्रमण होने का खतरा भी कम हो जाता है ।
किसी प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी से स्तनपान तथा एच.आई.वी. के विषय में बातचीत करने से आपको निम्नलिखित कुछ कठिन प्रश्नों का उत्तर मिल सकता है और आप यह निर्णय कर सकती हैं कि आपको स्तनपान कराना है या नहीं :
क्या आपको विशवास है कि आप एच.आई.वी. संक्रमित है ? शायद आपको परीक्षण कराना अच्छा रहेगा ।
क्या आपके क्षेत्र में बच्चे अकसर संक्रमणों, दस्तों या कुपोषण के कारण बीमार होते हिं या मर जाते हैं । अगर इसका उत्तर हां है तो शायद स्तनपान कराना ही सर्वोतम होगा ।
क्या अन्य स्वस्छ, पौष्टिक दूध या फार्मूला पाउडर उपलब्ध हैं ? आपको ये 6 महीनों तक खरीदने पड़ सकते हैं और यह काफी महंगा हो सकता है । इसके अतिरिक्त आपको पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ व उबला हुआ पानी तथा इन अन्य प्रकार के दूधों को कटोरी या चम्मच से पीला सकने का प्रशिक्षण भी चाहिएगा ।
क्या आपके परिचितों में ऐसी अन्य महिला है जो आपके बच्चे को स्तनपान करा सकती है ? क्या आपको विश्वास है कि वह एच.आई.वी. संक्रमित नहीं है?
एड्स पीड़ित लोगों की देखभाल
एड्स के कारण होने वाली स्वास्थ्य व चिकित्सकीय समस्याएं पुरे जीवन चल सकती है । ये समस्याएं बीमार व्यक्ति, उसकी व उसके परिवारजनों की शक्ति व संसाधनों पर काफी हद तक भारी पड़ सकती है ।
अगर आपको एड्स है तो शायद आपको समय समय पर किसी स्वास्थ्यकर्मी अथवा चिकित्सा सुविधा में अपने संक्रमणों के उपचार के लिए जाना पड़ेगा । लेकिन हो सकता है कि आपको इनके लिए अस्पताल में कभी भी भर्ती न होना पड़े । आपको अपने घर के परिचित वातावरण में, अपने परिवारजनों की देखभाल से अधिक आराम महसूस होगा ।
अगर आपको ऐसी कोई समस्या है जो घर पर उपचार से ठीक नहीं है तो किसी ऐसे स्वस्थ्याकर्मी, डॉक्टर या क्लिनिक की खोज करें जिस पर आप विश्वास करती हों व जिसे एड्स रोगियों के उपचार का अनुभव हो । तत्पश्चात कोई भी समस्या होने पर उसी के पास जाएं । बार-बार क्लिनिक या डॉक्टर बदलने से समय, पैसे व शक्ति की बर्बादी ही होती है ।
घर पर बीमार व्यक्ति की देखभाल करने का काम अधिकतर महिलाओं द्वारा ही किया जाता है जो कि परिवार का वैसे भी ध्यान रखने का कार्य करती हैं । अगर आप किसी एड्स पीड़ित व्यक्ति को देखभाल कर रही हैं तो आपनी आवश्यकताओं का भी ध्यान अवश्य रखें । अन्य परिवारजनों, मित्रों तथा समुदाय के अन्य लोगों से सहायता मांगे । इस कार्य में सामुदायिक कल्याण समितियां, गैर-सरकारी संगठन, धार्मिक समूहों, युवा समूहों तथा एड्स आत्मा सहायता समूहों से आपको सहायता मिल सकती है।
जब चंदा एड्स की जटिलताओं के कारण बिस्तर पर पड़ी थी तो उसकी मां ने प्रसन्नचित रहकर उसकी सेवा की । प्रतिदिन वह अपनी बेटी को नहलाती, उसे साफ सुंदर कपड़े पहनाती और उसके बिस्तर के पास फूलों एक एक गुलदस्ता रखती थी । चंदा को भूख नहीं लगती थी परंतु उसकी मां इतने अच्छे तरीके से उसके लिए खाना सजाती थी कि उसे देखकर चंदा की भूख जागृत हो उठती । पूरा परिवार चंदा से अपने दिन भर की घटनाओं, काम आदि कि बातें करता। इस हल्के-फुल्के, उत्साहपूर्ण वातावरण से चंदा को अभी भी अकेलापन महसूस नहीं हुआ । हालांकि चंदा अक्सर ही थकावट महसूस करती और बीमार रहती थी, उसके परिवार के लोग उस समय उसके मित्रों को उसके पास बुलाते जब वह थोडा सा ठीक होती । संगीत, बातचीत तथा उत्साहपूर्ण व्यवहार ने जीवन को भरा-पूरा बना दिया था । चंदा को लगता था कि सभी उसे चाहते व प्यार करते हैं और एड्स भी उसकी अपने मित्रों व परिवार जनों के साथ नजदीकी को समाप्त नहीं कर सकता था ।
घर पर एच.आई.वी. संक्रमण की रोकथाम
अगर आप इन नियमों का पालन करें तो न तो आपको और न ही एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति से उसके आस-पास के अन्य लोगों को इसके फैलने का खतरा है ।
यथासंभव लंबे समय तक स्वस्थ रहना
जब किसी को एड्स रोग होता है तो शरीर का इम्युन तंत्र साधारण संक्रमणों तथा रोगों पर भी काबू नहीं कर पाता है । हर बीमारी के साथ यह इम्युन तंत्र और भी कमजोर पड़ता जाता है जिससे वह अगले संक्रमण को काबू में और भी असमर्थ हो जाता है । यही चक्र चलता रहता है और अंततः रोगी जीवित रहने में असमर्थ हो जाता है ।
संक्रमणों तथा रोगों की रोकथाम ही इम्युन तंत्र को कमजोर होने से बचाने का सर्वोतम तरीका है । हर संक्रमण का शीघ्र उपचार करके उसको बढ़ने से रोकने व बद्तर होने से बचाना भी महत्वपूर्ण है । इस तरह एड्स ग्रस्त यथासंभव लंबे समय तक स्वस्थ रह सकता है ।
एड्स पीड़ित व्यक्तियों में, कोट्राइमोक्साजोल एंटीबायोटिक के नियमित प्रयोग से कुछ प्रकार के निमोनिया तथा दस्तों की रोकथाम हो सकती है । जैसे ही आप गंभीर फेफड़ों के संक्रमण, दस्तों या त्वचा के संक्रमणों से बीमार होना शुरू हों , इस दवाई को लेना शुरू कर दें ।
खुराक : कोट्राइमोक्साजोल 480 मि.ग्रा.(80 मि.ग्रा. ट्राइमिथोप्रिम तथा 400 मि.ग्रा. सल्फमिथाक्साजोल ) की प्रतिदिन एक गोली या सप्ताह में दो बार दो गोलियां मुख से लें । अगर आप यह गोली लेते हैं तो प्रतिदिन खूब पानी पीयें ।
महत्वपूर्ण: एड्स पीड़ित व्यक्तियों को कोट्राइमोक्साजोल से एलर्जिक प्रतिक्रिया अधिक होती है। अगर आपकी त्वचा पर नए चकते अथवा एलर्जी के अन्य लक्षण होते हैं तो इसे लेना बंद कर दें । नियमित रूप से एंटीबायोटिक लेने वाले लोगों को मुहं, त्वचा या योनि में फफूंद संक्रमण हो सकते हैं । इनमें से कुछ संक्रमणों को दही अथवा खट्टे दूध उत्पादों के नियमित प्रयोग से आप रोक सकते हैं ।
महिलाओं को नियमित रूप से एंटीबायोटिक लेने से योनि का फफूंद संक्रमण हो सकता है । पानी में सिरका मिलाकर एक टब में भरें और उसमें बैठें । इस समस्या में राहत मिल सकती है।
मानसिक स्वास्थ्य
स्वास्थ्य रहने तथा बिमारियों की रोकथाम के लिए अच्छा मानसिक स्वास्थ्य होना बहुत महत्वपूर्ण है । एड्स रोग मस्तिष्क तथा भावनाओं पर भारी बोझ बन जाता है । अकसर लोग भयभीत तथा चिंतित या बेहद दुखी अथवा आव्नाशुन्य हो जाते हैं । कभी-कभी ये भावनाएं इतनी शक्तिशाली ही जाती हैं कि वे शारीरिक लक्षण उत्पन्न कर सकती हैं । चिंता तथा अवसाद शरीर को कमजोर कर देते हैं और उस व्यक्ति के बीमार पड़ने की संभावना को बढ़ा देता है ।
शारीरिक समस्याओं तथा चिंता व अवसाद द्वारा उत्पन्न लक्षणों में अंतर करना अति महत्वूर्ण है । किसी समस्या के कारण को जानने से उसका उपचार करना सरल हो जाता है । यह भी महत्वपूर्ण है कि इन नकारात्मक भावनाओं पर काबू पाया जाए ताकि ये एड्स पीड़ित व्यक्ति को और भी बीमार करने में योगदान न कर सकें ।
सामान्य चिकित्सकीय समस्याएं
एड्स से ग्रस्त कोई व्यकित अनेक सामान्य चिकित्सकीय समस्याओं से सरलता से पीड़ित हो सकता है । इस अध्याय में बाकी हिस्से में इन समस्याओं की जानकारी दी गई है और बताया गया है कि किस प्रकार एक व्यक्ति या परिवार इनसे निपट सकता है ।
लेकिन किसी व्यक्ति का इनमें से किसी समास्या से पीड़ित होने का अर्थ यह नहीं है कि उसे एड्स है । यह जानकारी इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति किसी ही व्यक्ति के लिए लाभकारी होगी ।
बुखार
बुखार अकसर होते रहते हैं । यह बताना कठिन होता है कि बुखार टी.बी., पेल्विक संक्रमण (पी.आई.डी.) या मलेरिया जैसे ठीक हो सकने वाले संक्रमणों के कारण है या यह स्वयं एच.आई.वी. के कारण है । अगर बुखार का कारण कोई संक्रमण हैं तो सुनिश्चित करें कि उसका उपचार हो जाए ।
बुखार की पहचान के लिए थर्मोमीटर का प्रयोग करें या अपने एक हाथ के पिछले हिस्से को रोगी के तथा दुसरे हाथ के पिछले हिस्से को स्वयं के माथे पर स्पर्श करें । अगर बीमार व्यक्ति अधिक गर्म लगता है तो शायद उसे बुखार है ।
उपचार :
रोगी के शरीर से अतिरिक्त कपड़े निकाल दें और कमरे में ताजी हवा आने दें ।
शरीर के ऊपर ठंडा पानी डालकर, त्वचा को गिले कपड़े से पोंछ कर या माथे व छाती पर गिले कपड़े रखकर – पंखें से हवा करें ।
अगर रोगी को प्यास नहीं भी लग रही है तो भी उसे अधिक मात्रा में तरल पदार्थ पिलायें । बुखार के कारण निर्जलीकरण (डीहाइड्रेशान) होना काफी आम होता है ।
पेरासिटामोल, एस्प्रीन या इब्रुप्रोफेन देकर बुखार उतारने में सहायता करें ।
त्वचा को साफ सूखा रखें । लोशन या मक्की के स्टार्च का प्रयोग करके त्वचा पर जख्मों तथा रैश की रोकथाम में सहायता करें ।
तुरंत सहायता कैसे प्राप्त करें जब :
शरीर का तापमान बहुत अधिक है ।
बुखार कई दिन से हैं ।
बुखार के साथ खांसी, सांस लेने में कठिनाई तथा वजन में कमी है ।
बुखार के साथ गर्दन में जकड़न, तेज दर्द है या अचानक तीव्र दस्त लग गए हैं।
बुखार पीड़ित रोगी गर्भवती है या उसे हाल ही में गर्भपात, प्रसव या स्वत: -गर्भपात हुआ है।
रोगी को मलेरिया के लिए उपचार किया गया है परंतु प्रथम उपचार के पश्चात भी वह ठीक नहीं हुआ है ।
बुखार के साथ योनि में स्त्राव पेट में दर्द है ।
दस्त
एक दिन में 3 या उससे अधिक पतले या पानी जैसे शौच होने को दस्त कहते हैं । अगर शौच सामान्य है तो 3 या उससे अधिक बार शौच होने को दस्त नहीं माना जाता है । दस्त होना और उनका ठीक हो जाना आब बात है तुरंत कभी-कभी इनका उपचार कठिन हो सकता है । एड्स के रोगियों में दस्तों का सर्वाधिक कारण होता है अस्वच्छ भोजन व जल से आंतों का संक्रमण एच.आई.वी. संक्रमण या कुछ दवाईयों का दुष्प्रभाव ।
दस्तों में :
कुपोषण हो सकता है । अगर भोजन आंतों में शीघ्रता से बाहर निकल जाता है तो शरीर उसका भली भांति शोषण नहीं कर पाता है । इसके अतिरिक्त दस्तों से पीड़ित व्यक्ति भूख कम लगने के कारण पर्याप्त मात्रा में नहीं खाते हैं ।
निर्जलीकरण (डीहाड्रेशन) हो सकता है अगर रोगी द्वारा ग्रहण किए तरल पदार्थ की मात्रा उसके शरीर से निकले तरल पदार्थ की मात्रा कम से कम है । गर्म वातावरण तथा बुखार पीड़ित रोगियों में निर्जलीकरण अधिक शीघ्रता से होता है।
निर्जलीकरण के लक्षण :
महत्वपूर्ण : अगर किसी को ये लक्षण हैं तथा उल्टियां भी लगी हुई हैं तो उसे नस के द्वारा तरल द्रव्य देने होंगे । तुरंत चिकित्सकीय सहायता प्राप्त करें । गंभीर निर्जलीकरण एक आपात स्थिति है ।
उपचार :
सामान्य से अधिक मात्रा में तरल पदार्थ पी कर निर्जलीकरण की रोकथाम करें । फलों का रस, नारियल पानी, हल्की मीठी चाय, पतला दलिया, सूप, चावल का पानी तथा पुनर्जलीकरण (जीवन रक्षक) घोल निर्जलीकरण से बचने के लिए उत्तम हैं । अगर रोगी को प्यास न भी हो तो भी उसे हर 5-10 मिनट के बाद कुछ पिते रहना चाहिए ।
भोजन खाते रहिए । शरीर द्वारा आसानी से पचाए जा सकने वाले खाद्य पदार्थों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खाते रहिए । भोजन को ठीक से पकाइए व उसे मसल कर खाइए । खिचड़ी, पकी हुई सब्जीयां, दलिया, उबला हुआ चावल, दाल दही व केला अच्छे खाद्य पदार्थ हैं । कच्ची सब्जियां, सम्पूर्ण अन्न, फलों के छिल्के, मिर्च या अधिक मीठा पेय नहीं खाइए । इनसे दस्त बदतर होते हैं ।
दवाइयां केवल इन प्रकार के दस्तों के लिए लें :
अचानक व बुखार के साथ होने वाले तीव्र दस्त (शौच में खून के साथ या उसे बिना) । कोट्राइमोक्साजोल 480 मि.ग्रा.(80 मि.ग्रा. ट्राइमिथोप्रिम तथा 400 मि.ग्रा. सल्फमिथाक्साजोल) की 2 गोलियां, दिन में दो बार 10 दिनों तक लें । अगर आपको सल्फा दवाइयों से एलर्जी है तो इसके स्थान पर नोरफ्लोक्सासिन 400 मि.ग्रा. की प्रतिदिन 1 गोली, 10 दिनों तक लें । अगर आपको 2 दिनों में आराम महसूस नहीं होता है तो किसी स्वास्थ्यकर्मी से मिलें ।
बुखार के बिना खूनी दस्त जो कि अमीबा (जल या आंतों में रहने वाले अति सूक्ष्म जीव) के कारण होते हैं । मेट्रोनिडाजोल 400 मि.ग्रा. की एक गोली, दिन में 3 बार, 7 दिनों तक लें । अगर आपको 2 दिनों में आराम महसूस नहीं होता है तो किसी स्वास्थ्यकर्मी से मिलें ।
जब किसी को लंबे समय तक दस्त चलते हैं तो उसे गुदा के आस-पास लाल जख्म हो सकते हैं और खाल कटी-फटी हो सकती है । शौच करने के पश्चात हर बार उस स्थान पर पेट्रोलियम जैली या जिंक आक्साइड की क्रीम लगाएं । ऐसे व्यक्ति को बावासीर भी हो सकती है ।
तुरंत चिकित्सकीय सहायता प्रदान करें अगर व्यक्ति को :
त्वचा में रैश व खुजली
त्वचा पर रैश (लाल दाने) व खुजली होने का कारण हमेशा पता करना कठिन होता है । शरीर को स्वच्छ रखने से त्वचा की अनके समस्याओं से बचा जा सकता है । दिन में एक बार हल्के साबुन तथा स्वच्छ पानी से स्नान करने का प्रयास करें ।
अगर त्वचा अधिक खुश्क हो जाए तो कम बार नहायें और साबुन का प्रयोग न करें । नहाने के पश्चात त्वचा पर ग्लिसरीन पेट्रोलियम जैली या वनस्पति तेल मलें । खुले-खुले सूती कपड़े पहनें ।
एलर्जिक प्रतिक्रियाएं
एलर्जिक प्रतिक्रियाएं, जिनसे अकसर खुजली वाले लाल दाने होते हैं, एड्स ग्रस्त लोगों को अधिक होती है । सल्फा युक्त दवाईयां, (जैसे कि कोट्राइमोक्साजोल ) काफी बुरी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कर सकती है । अगर आप इन दवाईयों को प्रयोग कर रही हैं और आपको त्वचा पर खुजली वाला रैश, आंखों में खुजली, उल्टियां हो जाती है या चक्कर आने लगें तो उनका प्रयोग तुरंत बंद कर दें और किसी स्वास्थ्यकर्मी से सलाह लें । यह आपको कोई अन्य सल्फा रहित कारगर दवाई देगा ।
फफूंद संक्रमण (यीस्ट, केंडिडा)
फफूंद संक्रमण का वर्णन करना कठिन हो सकता है क्योंकि उनके रूप अनके हो सकते हैं । कुछ फफूंद संक्रमण त्वचा पर खुजली युक्त, गोल, लाल या स्केली धब्बों जैसे दिख सकते हैं । एड्स पीड़ित महिलाओं के बार-बार योनि में फफूंद संक्रमण भी हो सकता है ।
अगर आपको इनमें से किसी भाग में त्वचा की समस्या है तो वह फफूंद संक्रमण हो सकता है :
उपचार
अगर आपको खुजली वाले, लाल धब्बे हैं तो उस भाग को साफ व सूखा रखें । हो सके तो प्रभावित भाग को खुला रखें और उसे हवा व सूर्य की रोशनी लगने दें ।
प्रभावित भाग पर निस्टेटिन क्रीम दिन में 3 बार या जेन्सन वायलेट दिन में 2 बार तक लगाएं जब तक रैश बिल्कुल ठीक न हो जाए ।
अगर आपको बहुत बदतर फफूंद संक्रमण है तो मुख से किटोकीनाजोल की गोलियां से आराम मिल सकता है । 200 मि.ग्रा. वाली एक गोली प्रतिदिन -10 दिनों तक लें ( अगर आप गर्भवती है तो ये दवा न लें )
मुख में या त्वचा पर भूरे अथवा जमुनी रंग के धब्बे
ये धब्बे रक्त वाहिनियों अथवा लिम्फ ग्रंथियों के कापोसी सारकोमा नामक कैंसर के कारण होते हैं । इस पर कोई दवा कारगर नहीं होती है अगर आपको मुख के अंदर इन धब्बों के कारण खाने में कठिनाई हो रही है तो किसी स्वास्थ्यकर्मी से सलाह लें ।
खुजली
दवाईयों के बिना उपचार
त्वचा को ठंडा रखें और इस पर पंखा झालें ।
त्वचा को गर्मी व गर्म पानी से बचायें ।
त्वचा को खुजलाएं नहीं । त्वचा को खरोंचने से और भी खुजली होती है तथा कभी-कभी संक्रमण भी हो सकता है । संक्रमण की रोकथाम के लिए नाख़ूनों को काटकर साफ व छोटा रखें ।
“ओट मील” या औषध पौधों को पानी में उबाल कर उसे छाने तथा कोई कपड़ा भिगो कर खुजली वाले भाग पर रखें । इससे ठंडक मिलेगी ।
दवाइयों से उपचार (इनमें से कोई भी प्रयोग करें ) :
एक साफ कपड़े से कैमलिन लोशन आवश्यकतानुसार लगायें ।
1% हाइड्रोकोटिरसोन क्रीम या मलहम की थोड़ी सी मात्रा प्रभावित भाग पर लगायें ।
मुख में डाइफेनाहाइड्रामिन या हाईड्रोक्सिजन जैसी कोई एंटीहिस्टामिन दवाई लें : प्रतिदिन 25 मि.ग्रा. दिन में चार बार । इनसे आपको नींद आ सकती है ।
हर्पीस जोस्टर (शिंग्लेस)
यह हर्पीस विषाणु से होने वाला संक्रमण है । आमतौर पर इसकी शुरुआत दर्दनाक फफोलों युक्त रैश के साथ होती है जो बाद में फूट जाते हैं । चहरे, गर्दन तथा छाती पर यह सर्वाधिक होता है । प्रभावित भाग में बेहद जलन व दर्द होता है । रैश तो कुछ सप्ताहों में ठीक होने लगता है परंतु दर्द अधिक समय तक रह सकता है ।
उपचार :
प्रभावित भाग पर कैलामिन लोशन दिन में दो बार लगायें । इससे दर्द व खुजली में राहत मिलती है ।
जख्मों को साफ व सुखा रखें । अगर इन पर कपड़ों की रगड़ लगती है तो उन पर ढीली पट्टी बांध लें ।
संक्रमण की रोकथाम के लिए 1 % जेन्सन वायलेट द्रव लगायें ।
दर्द निवारक दवाईयों की प्राय: आवश्यकता होती है ।
एसाइक्लोवीर नामक दवाई से लाभ हो सकता है । हर्पीस जोस्टर के रोगियों को रोग के सक्रिय होने की स्थिति में उंगलियों से अपनी आंखों को नहीं छूना चाहिए । आंखों में हर्पीस होने से आंखों को क्षति व अंधापन हो सकता है ।
जी मितलाना तथा उलटी लगना
अगर जी मितलाने तथा उल्टियां लगने से किसी रोगी के खाने-पीने में बाधा उत्पन्न हो रही हैं तो वह कमजोर, कुपोषित तथा निर्जलित हो सकती है ।
कुछ लोगों को ये दिनों-दिन, लंबे समय तक चल सकती है । इसके होने के मुख्य कारण है :
उपचार :
अगर उल्टियां बहुत अधिक हैं तो :
कब सहायता प्राप्त करें :
खांसी
खांसी शरीर द्वारा श्वास तंत्र को साफ करने का एक तरीका है जिससे श्लेष(बलगम) को बाहर फेंका जाता है । खांसी निमोनिया या तपेदिक जैसी फेफड़ों की समस्याओं का एक मुख्य लक्षण भी है । जब फेफड़ों में संक्रमण या अधिक शोध होता है तो वहां बलगम अधिक मात्रा में बनता है ।
जब खांसी के साथ बलगम आ रहा है हो तो खांसी रोकने के लिए दवाई न लें । इसकी बजाय बलगम को पतला करने वह उसे बाहर निकालने का यत्न करें । इससे खांसी जल्दी ठीक होगी ।
उपचार :
अधिक मात्रा में पानी पिएं । पानी किसी भी दवाई से बेहतर है क्योंकि इससे बलगम को पतला व ढीला करने में सहायता मिलती है और आप आसानी से इसे बाहर कर सकते हैं ।
फेफड़ों को साफ करने के लिए दिन में कई बार शक्तिपूर्वक खांसी करें । खांसते समय मुहं को ढकना न भूलें ।
चलने, बिस्तर में उलटने व करवटें बदलने या बैठकर सक्रिय रहें। इससे बलगम को फेफड़ों से बाहर आने में सहायता मिलती है ।
शहद व नींबू युक्त चाय या अपना कोई हर्बल उपचार का प्रयोग करके गले को तरो-ताजा करें । खांसी के शर्बत अधिक महंगे होते हैं अरु उनसे कोई अतिरिक्त लाभी नहीं मिलता है ।
अगर खांसी बहुत अधिक है और रात में सोने नहीं देती है तो कोडीन 30 मि.ग्रा. की गोली या कोडीन युक्त खांसी का शर्बत लें।
महत्वपूर्ण : अगर आपको पीला, हरा या रक्तरंजित बलगम आ रहा है तो खांसी निमोनिया या तपेदिक के कारण हो सकती है और आपको विशेष दवाईयां लेनी पड़ेंगी ।
तपेदिक (टी.बी.)
तपेदिक एक कीटाणु द्वारा होने वाला गंभीर संक्रमण है जो प्राय: फेफड़ों को प्रभावित करता है । एड्स व तपेदिक के लक्षण एक जैसे होते हैं परंतु ये अलग-अलग रोग हैं । तपेदिक से पीड़ित अधिकतर पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों को एड्स नहीं होता है लेकिन एड्स से ग्रस्त रोगियों को तपेदिक आसानी से हो सकती है क्योंकि उनका शरीर इतना कमजोर होता है कि वह उस पर काबू करने में असमर्थ होता है । एड्स से मरने वाले हर 10 लोगों में से एक में मृत्यु का कारण तपेदिक रोग होता है ।
एच.आई.वी./एड्स से पीड़ित महिला को तपेदिक होने की आशंका तब अधिक होती है जब उसका शरीर बार-बार गर्भधारण, कुपोषण या एनीमिया के कारण कमजोर हो ।
एड्स पीड़ित रोगियों में भी तपेदिक का पूर्ण उपचार संभव है, इसलिए शीघ्र उपचार कराना महत्वपूर्ण है । परंतु एड्स ग्रस्त रोगियों को तपेदिक के उपचार के लिए थायासीटाजोन दवाई नहीं लेनी चाहिए । अधिक जानकारी के लिए तपेदिक वाला अध्याय देखें ।
निमोनिया
निमोनिया फेफड़ों की गहराई में स्थित छोटी श्वास नलिकाओं में कीटाणुओं द्वारा संक्रमण के कारण होता है । निमोनिया प्राय: बूढों, बहुत बीमार या कमजोर लोगों को होता है ।
एड्स के रोगियों के लिए निमोनिया बहुत गंभीर हो सकता है । इसका तुरंत एंटीबायोटिक्स द्वारा उपचार करना चाहिए । कभी-कभी निमोनिया का अस्पताल में, नसों में दवाईयों के प्रयोग से ही उपचार किया जा सकता है ।
लक्षण
उपचार
गले की मुख्य समस्याएं
मुख व शरीर के ऐसे अन्य भागों में कोई समस्या होने से जहां से भोजन गुजरता है, रोगी सामान्य रूप से खाना खाने से वंचित हो सकता है । इसके कारण वह कमजोर व कुपोषित हो सकती है और संक्रमणों से लड़ना उकसे लिए एक दूभर कार्य बन जाता है।
मुख व गले में जख्म होना
एड्स पीड़ित अनेक रोगियों के मुख में जख्म तथा मसूढ़ों व दांतों में समस्याएं हो सकती हैं । ऐसे में –
मुख के आस पास जख्म, कट या फफोले होना
मुख के आस पास दर्दनाक फफोले तथा जख्म ( जिन्हें शीत जख्म या बुखार के फफोले) हर्पीस विषाणु के कारण होते हैं । इस स्वस्थ व्यक्ति को ये बुखार या जुकाम के साथ या बाद में हो सकते हैं । एड्स पीड़ित को ये कभी भी हो सकते हैं । ये फफोले तथा जख्म लंबे अरसे तक चल सकते हैं परंतु आम तौर पर ये स्वयं ठीक हो जाते हैं । इनमें संक्रमण की रोकथाम के लिए इन पर जेन्सन वायलेट लगाएं । एसाइक्लोवीर नमक दवाई भी इनमें सहायक हो सकती है । इनको छूने के पश्चात अपने हाथ भली भांति धो लें ।
मुख में सफ़ेद धब्बे होना ( थ्रश )
थ्रश एक ऐसा फफूंद संक्रमण है जिसके कारण मुख के भीतर सफेद धब्बे तथा जख्म हो सकते हैं । कभी-कभी ये जीभ पर या भोजन नलिका में भी फ़ैल जाते हैं । इस वजह से छाती में दर्द हो सकता है ।
दिखने में ये धब्बे ऐसे लगते हैं जिसे कि गाल के अंदर व जीभ पर दही जम गया हो । अगर इन धब्बों को खुरचा जा सकता है तो यह संभवत: थ्रश ही है । एंटीबायोटिक ले रहे रोगियों में थ्रश सर्वाधिक होता है ।
उपचार
मसूढ़ों तथा जीभ को हल्के-हल्के किसी नर्म टूथब्रश या नर्म साफ कपड़े से धीरे-धीरे रगड़ें । इसके पश्चात नमक युक्त पानी या नींबू के पानी से कुल्ला करें और उसे थूक दें (निगले नहीं) । इसके साथ निम्नलिखित में से कोई एक उपचार अपनायें :
जख्म व घाव
जख्म त्वचा की सतह में चोट के कारण कटाव आने से बनते हैं । घाव अकसर कीटाणुओं या त्वचा पर दबाव ( दबाव घाव) के कारण बनते हैं । ऐसा अधिक समय तक बिस्तर पर पड़े रहने वाले रोगियों में आसानी से हो जाता है । जख्म, घाव या कट की अच्छी देखभाल करे ताकि उनमें संक्रमण न हो ।
खुले घावों तथा जख्मों की सामान्य देखभाल
जख्म या घाव को स्वच्छ पानी व हल्की साबुन से दिन में कम से कम एक बार अवश्य धोयें । पहले जख्म के किनारों के साथ-साथ साफ करें और फिर जख्म के केंद्र से किनारों की तरह ।हर सफाई के लिए अलग कपड़ा प्रयोग करें।
अगर जख्म में मवाद या खून है तो इसे साफ कपड़े या पट्टी से ढक दें । अगर जख्म सूखा है तो इसे खुला ही छोड़ा जा सकता है । ऐसा करने से यह जल्दी भरेगा ।
अगर जख्म पैरों या टांगों पर है तो टांग को ह्रदय के स्तर से ऊपर उठाकर रखें । दिन में जितनी बार हो सके, ऐसा करें । रात में सोते समय टांगों का सिरा ऊपर ही करके रखें । लंबे समय तक खड़े रहने या बैठने से बचें । थोडा बहुत चलने से लाभ होता है ।
गंदे कपड़ों तथा पट्टियों को साबुन व पानी से धोकर उन्हें धूप में सुखा दें या उन्हें थोड़े समय के लिए उबलते हुए पानी में डालें और फिर निकाल कर धूप में सुखा दें । अगर ये कपड़े आदि फिर से प्रयोग नहीं किए जाएंगे तो उन्हें जला दें या गड्ढे में डालकर उन्हें मिटटी से ढक दें ।
दबाव घावों के लिए घरेलू उपचार
पपीता : इस फल में कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो दबाव घावों में मौजूद पुराने मांस को नरम कर देते हैं और फिर उसे आसानी से निकाला जा सकता है । एक कीटाणु रहित किए गए कपड़े के टुकड़े या गॉज के टुकड़े को पपीते के ताने या कच्चे फल से निकाले गए दूध में भिगों लें । इस घाव में पैक कर दें । ऐसा प्रतिदिन 3 बार करें ।
महत्वपूर्ण : घाव को प्रतिदिन कम से कम दो बार साफ करें ।
संक्रमित खुले घावों तथा जख्मों का उपचार
जख्मों तथा घावों में संक्रमण हो सकता है अगर :
संक्रमित भाग को साफ करें तथा इसके साथ यह भी करें :
जख्म के उपर दिन में 4 बार सिकाई करें । सिकाई हर बार 20 मिनट तक करें । या एक बाल्टी में साबुन या पोटेशियम परमेंगनेट मिला हुआ पानी भर कर जख्म को उसमें भिगोने का प्रयास करें । 5 लीटर पानी में 4-5 चाये के चम्मच भर पोटेशियम परमेगनेट डालें । जब जख्म को भिगोया न जा रहा हो तो उसे ह्रदय के स्तर से उपर उठाकर रखें ।
अगर जख्म का कोई भाग सलेटी रंग का या सडा हुआ लगता है तो पहले उसे भिगोएं और फिर हाइड्रोजन पराक्साइड से उसकी धुलाई करें । सड़े हुए भाग को कीटाणुरहित की गई चिमटी या गॉज के टुकड़े से उठाकर अलग करने की कोशिश करें ।
अगर संभव हो तो पट्टी करने से पहले जख्म पर जेन्सन वायलेट घोल डालें ।
अगर एक ही समय पर कई जख्म संक्रमित हैं और साथ में बुखार है तो एंटीबायोटिक्स से उपचार करें । दस दिनों तक इराथ्रोमाईसिन, डाइक्लोक्सासिलिन या पेनिसिलिन दें ।
बंद संक्रमित घावों का उपचार (गुमडीयां या एब्सेस)
गुमडीयां तथा एब्सेस त्वचा पर लाल व दर्दनाक उभार होते हैं । वे सर्वाधिक जांघों पर, बगलों या कूल्हों, कमर तथा टांगों के उपरी भाग में होते हैं ।
अगर आपको ये नजर आएं तो तुरंत ही दिन में चार बार 20 मिनट तक उनकी गर्म सिकाई करना शुरू कर दें । इससे ये बंद घाव फूट जाएंगे और मवाद बाहर आ जाएगी । यह सिकाई साफ, गर्म कपड़े से तब तक करती रहें जब तक मवाद आनी बंद हो जाए और वह जख्म भरना शुरू न कर दे । इस फोड़े को एक साफ, पट्टी से ढीला-ढाला ढक दें । अगर यह फोड़ा बहुत बड़ा या अधिक दर्दनाक हो जाए तो तुरंत किसी ऐसे स्वस्थ्य कर्मचारी से संपर्क करें जो कीटाणुरहित उपकरणों का प्रयोग करके मवाद निकालने में प्रशिक्षित हो ।
कब सहायता प्राप्त करें :
एड्स के लक्षणों के उपचार करने में प्रशिक्षित किसी व्यक्ति स्वास्थ्यकर्मी से संपर्क करें अगर आपको कोई घाव है और उसके साथ बुखार है या जख्म के आस-पास का लाली वाला भाग बढ़ रहा है ।
अगर आपको घाव है और साथ में गले, बगल या जांघों में गिल्टियां हो गई हैं या घाव से बदबू अथवा भूरा या सलेटी रंग का द्रव आ रहा है या वह काला पड़ रहा है और उसमें बुलबुले या फफोले बन गए हैं अथवा एंटीबायोटिक्स लेनेके बाद भी आपको आराम नहीं है ।
मानसिक संभ्रांति
थोड़ी बहुत मानसिक संभ्रांति या मानसिक परिवर्तन होना एड्स पीड़ित रोगियों में आम बात है विशेषत: अगर रोगी अधिक समय से बीमार रहा है । ये मानसिक परिवर्तन मस्तिष्क में एच.आई.वी. संक्रमण या अन्य संक्रमणों, अवसाद या दवाईयों के दुष्प्रभावों के कारण हो सकते हैं ।
दर्द
एड्स (या कैंसर जैसी गंभीर बीमारी) की अंतिम अवस्था में दर्द दैनिक जीवन का एक भाग सा बन जाता है ।
दवाईयों के बिना दर्द का उपचार :
दर्द का दवाईयों से उपचार :
लंबे समय तक रहने वाले दर्द पर काबू पाने के लिए निम्नलिखित दवाईयों का प्रयोग किया जा सकता है इन्हें निर्देशानुसार नियमित रूप से लें । अगर आप दर्द के अधिक बढ़ने का इंतजार करेंगी तो ये दवाईयां भी कम नही करेंगी ।
मरणासन्न व्यक्ति की देखभाल
एक अवस्था ऐसी आती है जब एड्स के रोगी के लिए कुछ और नहीं किया जा सकता है । यह समय आ गया है, इसका पता आपको तब चलता है जब :
अगर रोगी घर पर ही रहना चाहता है तो उसे शांति व चैन से बाकी के दिन पुरे करने में आप इस प्रकार सहायक हो सकते हैं
उसे मृत्यु का सामना करने के लिए तैयार करके । उसे मृत्यु व उसके भय और परिवार के भविष्य के लिए उसकी चिंता के बारे में बात करने देने से आप उसकी सहायता कर सकते हैं । आने वाली मृत्यु को नकारने से कोई लाभ नहीं होता है । उसे आश्वासन दें कि उसे दर्द व तकलीफ से राहत दिलाने के लिए आप हर संभव प्रयास करेंगे ।
एड्स से मरने वाले के शव की देखभाल
एड्स का वायरस मृत्यु के बाद 24 घंटे तक शरीर में जीवित रह सकता है । इस अवधि में शव के साथ वैसी ही सावधानियां बरतें जो आप रोगी के जीवित होते बरत रहे थे ।
संयुक्त प्रयास
यह आवश्यक है कि समुदाय का हर व्यक्ति यह जाने कि एड्स कैसे फैलता है और किस प्रकार इसकी रोकथाम की जा सकती है। लेकिन इस जानकारी का तब तक कोई लाभ नहीं होगा जब तक वे इस बात का आहसास नहीं करते हैं कि एड्स किसी को भी हो सकता है – उन्हें भी । अगर लोग यह समझते हैं कि एड्स उन्हें छू भी नहीं सकता है तो वे इसकी रोकथाम के लिए कदम नहीं उठाएंगे ।
व्यवसायिक व यौनिक रूप से शोषित महिलाओं, समलैंगिक या नशीली दवाओं की लत के शिकार जैसे लोगों पर एड्स फैलने का दोष लगाने से लोग सोचने लगते हैं कि केवल इन्हीं समूहों में एड्स वायरस के परीक्षण से पोसिटिव पाए जाने वाले लोगों की संख्या हर वर्ष बढ़ रही है और वह भी तब जब इन्हें सुरक्षित यौन व्यवहार सिखाने की अनेक परियोजनाएं चल रही हैं ।
यह सत्य है कि कार्यरत कर्मियों को एड्स होने की संभावना अधिक होती है क्योंकि वे अनेक पुरुषों के साथ सहवास करती हैं । लेकिन अनके कारण और भी हैं । हो सकता है कि उन्हें एच.आई.वी./एड्स या उससे बचाव के बारे में कोई जानकारी न हो । अगर उन्हें इस बारे में पता भी हो तो हो सकता है कि ग्राहकों को खो देने के भय से वे सुरक्षित यौन व्यवहार अपनाने की जिद न कर पाएं ।
सितंबर 1993 में ऑपरेशन रिसर्च ग्रुप द्वारा भारत के राज्य तमिलनाडु में किये गए एक सर्वेक्षण में जिन लोगों से बातचीत की गई, उनमें से अधिकतर ने यह कहा कि अनेक लोगों से यौन संबंध रखना खतरे से भरपूर है । फिर भी 70% तक लोगों को लगता है कि एच.आई.वी. केवल वेश्याओं के माध्यम से फैलता है, न कि ग्राहकों से । 50% हो यह मालूम था कि कंडोम के प्रयोग से एच.आई.वी. से बचाव हो सकता है परंतु केवल 15% ने ही उसका कभी प्रयोग किया था ।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि उन परिस्थितियों से लड़ा जाए जिनसे एड्स फैलता है न कि उन लोगों से जो एड्स पीड़ित हैं ।
और बात यह भी है कि अगर कोई महिला अपने पास कंडोम रखती है तो यही माना जाता है कि वह यौनकर्मी है और ग्राहकों को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है । इस बात को समाज अच्छा नहीं मानता है । असलियत यह है कि व्या.यौ.शो.म.से दूसरी ऐसी महिला तक पहुंचते हैं । प्राय: ही ये पुरुष अपनी पत्नियों या साथियों तक भी संक्रमण पहुंचा देते हैं जिन्होंने अपने पतियों या साथियों के अलावा किसी और से भी यौन संबंध नहीं बनाए होते हैं ।
गहन एड्स शिक्षा के बावजूद हम किसी न किसी वजह से यौनिक व्यवहार को परिवर्तित करने में सफल नहीं रहे हैं । जैसे-जैसे अधिकाधिक महिलाएं रोजगार के अन्य साधनों के आभाव के कारण व्या.यौ.शो.म. बन रही है, उन्हें यौ.सं.रो., एच.आई.वी. तथा एड्स के खतरों का सामना करना पड़ रहा है ।
हमारा रवैया एड्स पीड़ित लोगों के प्रति नहीं बदलता है । उनको स्वीकार करने व उनकी सहायता कनरे की बजाय, हम उनको अलग-थलग कर देते हैं, दुत्कारते हैं और उनसे अछूत की तरह व्यवहार करते हैं ।
ऐसा लगता है कि सुरक्षित यौन व्यवहार के बारे में शिक्षित करने व उसे बढ़ावा देने पर काफी धन व संसाधन खर्च किये जाते हैं लेकिन एच.आई.वी./एड्स पीड़ित लोगों के पुर्स्थापना के लिए पर्याप्त पैसा या संसाधन उपलब्ध नहीं है जहां व्यापारिक यौन गतिविधियां सर्वाधिक है ।
केवल इसलिए कि भारत में एड्स कुछ अन्य प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं जितना व्यापक नहीं है, इसका अर्थ यह नहीं है कि सामुदायिक शिक्षा कार्यक्रमों में इसे कम प्राथमिकता दी जाए । एड्स एक घातक रोग है । इसका कोई उपचार नहीं है । अकसर यह लोगों को उनके जीवन के चरम काल में प्रभावित करती है और उनके लिए असीमित तकलीफें व खर्चा लाता है । अंततः यह जीवन को नष्ट कर देता है । लेकिन काफी हद तक इसकी रोकथाम की जा सकती है यदि लोग इस रोग के बारे में व्यक्तिगत रूप से शामील हों और वे इसे महामारी का रूप लेने से रोकने के लिए जितने अधिक लोगों को संभव हो, इसके बारे में सही जानकारी फैलाएं । यहां कुछ ऐसी बातों का वर्णन किया जा रहा है जिन्हें आप स्वयं तथा समुदाय में अन्य लोगों की सहायता से कर सकते हैं :
अगर आप स्वास्थ्यकर्मी हैं तो
आप एड्स के फैलाव को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं । आप ऐसा इन तरीकों से कर सकते हैं :
जिस व्यक्ति का भी आप परीक्षण करें, उन्हें , विशेषत: अन्य यौन संक्रमित रोग से पीड़ित व्यक्तियों को, यह जानकारी दें कि एड्स किस प्रकार फैलता है और किस प्रकार नहीं फैलता है ।
लोगों को यौन संक्रमित रोग और उनके उपचार के बारे में जानकारी दें ।
पुरुषों को कंडोम का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें चाहे वे परिवार नियोजन के लिए किसी अन्य साधन का प्रयोग कर रहें हों ।
परीक्षण किये जाने वाले हर व्यक्ति के साथ एच.आई.वी. से बचाव की सावधानियां बरतें । चूँकि एच.आई.वी. संक्रमित मानकर ही उसका परीक्षण करें । जब भी आपको त्वचा काटनी पड़े या शरीर के द्रवों के संपर्क में आना पड़े, पृष्ठ- पर दी गई सलाह का पालन करें । इनमें इंजेक्शन लगाना, त्वचा या अंग को सिलना, प्रसव करना व योनि का परीक्षण करना सम्मिलित है ।
यह सुनिश्चित करें कि स्वास्थ्य सेवाएं समुदाय के सभी लोगों, विशेषत: युवा वर्ग को उपलब्ध हों और वे एकांतता तथा गोपनीय सुनिश्चित करती हैं ।
जिला अस्पताल से आपके क्षेत्र के स्वास्थ्यकर्मीयों से मिलने के लिए किसी अधिकारी को बुलवायें । वह आपको एड्स पीड़ित व्यक्तिओं को अक्सर होने वाले संक्रमणों का उपचार करना सिखाएगा / सिखाएगी । एड्स ग्रस्त लोगों को होने वाली अन्य समस्याओं पर उससे चर्चा करें ।
यह निर्णय लेने का प्रयास करें कि आपके पास उपलब्ध संसाधनों से आप किस प्रकार लोगों की सहायता कर सकते हैं । लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और संसाधन जुटाने के बारे में सोचें । अगर स्वास्थ्यकर्मी एकजुट हो कर काम कर सकें और संसाधनों को मिलकर प्रयोग करें तो उन्हें इस विकराल समस्या का अकेले सामना नहीं करना पड़ेगा ।
एड्स के बारे में अनेक लोगों में व्याप्त भय तथा नकारात्मक रवैये से लड़िए
एक अच्छी शुरुआत यह होगी कि एड्स के बारे में चर्चा करने के लिए अपने क्षेत्र के अन्य स्वास्थ्यकर्मीयों के साथ एक गोष्ठी आयोजित करें । सभी स्वास्थ्यकर्मी को एड्स के विषय में जानने में सहायता करें ताकि वे समुदाय में सही तथा एक जैसी जानकारी दे सकें । अगर सभी स्वास्थ्यकर्मी एक जैसी, सही जानकारी देंगे तो इससे एड्सके विषय में गलत धारणाओं में उत्पन्न भय को दूर किया जा सकेगा । जब पड़ोसियों का डर दूर हो जाएगा तो एड्स पीड़ित व एड्स पीड़ितों की देखभाल करने वालों को समाज में स्वीकार करना सरल हो जाएगा । तत्पश्चात ये लोग अन्य लोगों के हरेक के एड्स के जोखिम के बारे में समझने में सहायता कर सकते हैं ।
समुदाय में एक जिम्मेवार सदस्य के रूप में
वयस्कों व किशोरों को जीवन साथियों में वफ़ादारी के महत्त्व पर बातचीत कनरे के लिए प्रोत्साहित करें । उनसे इन पर चर्चा करें-
ऐसा क्यों है कि पुरुषों को यौनिक रूप से सक्रिय होना व कई साथियों में यौन संबंध रखना स्वीकार्य है जबकि लड़कियों व महिलाओं को भोग की केवल ऐसी निश्छल वस्तु माना जाता है जिसका चयन करने का कोई हक नहीं है ?
इस प्रकार के दोहरे मानदंड किस प्रकार पुरुषों, महिलाओं तथा पुरे समाज के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक सिद्ध होते हैं ?
किस प्रकार कुछ गैर-जिम्मेवार लडकियां व महिलाएं स्वयं अपने आपको व उनके संपर्क में आने वाले अन्य सभी लोगों को यौ.सं.रोगों, एच.आई.वी. तथा एड्स के उच्च जोखिम में डाल देती हैं ?
लोगों को प्र.तं.सं. व यौन संचारित रोगों के बारे में सलाह व उपचार प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें ।
लड़कियों व महिलाओं को अपने शरीर व यौनत्व के बारे में सही जानकारी पाने में सहायता करें । उन्हें आत्मविश्वास तथा दक्षता प्राप्त करने में सहायता करें ताकि वे अवांछित यौन प्रयासों तथा उत्पीडन से अपनी रक्षा कर सकें । उन्हें इसमें मदद करें कि पुरुषों से वफ़ादारी के उन्हीं मानदंडों की मांग कर सकें जिनकी अपेक्षा महिअलों से की जाती है ।
समुदाय में ऐसी वाद-विवाद प्रतियोगिताएं तथा परिचर्चाएं आयोजित करने को प्रोत्साहन दें जिनसे हानिकारक यौन व्यवहार तथा रिवाजों के विरुद्ध आंदोलन चलाने में सहायता मिले ।
शिक्षण पद्धति
अनेक एड्स परियोजनाओं को सखा शिक्षक पद्धति को केंद्र बिंदु मानकर विकसित किया गया है । इस पद्धति को सफलतापूर्वक लागू करने वाली भारत के तमिलनाडु राज्य में एक परियोजना है “ एड्स प्रिवेंशन एंड कंट्रोल प्रोजेक्ट” । एक कमजोर वर्ग के लोगों को एड्स तथा उसके फैलने के तरीकों के बारे में जानकारी फैलाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है । उन्हें अपने मित्रों में सुरक्षित यौन व्यवहार को प्रोत्साहित करने के इस कार्य के लिए मामूली सी रकम मानदेय के रूप में दी जाती है । कभी-कभी उन्हें इस कीमत पर बेचने के लिए कंडोम भी दिए जाते हैं ताकि समुदाय में इनकी सप्लाई निरंतर बनी रहे ।
एड्स के बारे में शिक्षा को सामुदायिक बैठकों, जैसे कि स्कूलों,धार्मिक स्थलों, पंचायतों, नागरिक गोष्ठियों, व्यापारियों, ट्रक चालकों तथा सुरक्षाकर्मियों तक ले जाने में सहायता करें । यह शिक्षा सरल, स्पष्ट व सीधी होनी चाहिए और इसका प्रचार-प्रसार गंभीरता से होना चाहिए । ऐसा करने से रुढ़िवादी समूहों तक से संचरण करने व एक प्रभावी संचरण नेटवर्क स्थापित करने में बेहद सहायता मिलेगी जिसका हर कोई उपयोग कर सकता है ।
आजकल हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जब अच्छी परम्पराएं टूट रही हैं और समाज प्रमुखत: भौतिकवादी व यौन लिप्त होता जा रहा है – विशेषत: मिडिया तथा बाजारी प्रभावों के कारण । इन अस्वस्थ ढर्रों का महिलाओं पर, जिनमें से अधिकांशत: निर्धन असिक्षित तथा शक्तिहीन है, सबसे अधिक दुष्प्रभाव हो रहा है । इसलिए समय की मांग है कि महिलाओं तथा समाज को सशक्त बनाया जाए ताकि न केवल वे वास्तविकता का सामना कर सके बल्कि उस सबको बदल सकें जो उनके हित में नहीं हैं ।
मानवीय यौनिक व्यवहार में जिम्मेवारी को प्रोत्साहित करने तथा इस बात पर जोर दने की आवश्यकता है की शारीरिक संबंधों में प्यार, एक दुसरे का सम्मान, समझ व देखभाल का बहुत महत्व है । इस प्रकार की कटिबद्धता से न केवल एड्स पीड़ित लोगों के लिए आशा जागेगी, बल्कि इस भयानक रोग की रोकथाम करने तथा उस पर काबू पाने में सहायता मिलेगी ।
स्रोत: विहाई, झारखण्ड राज्य एड्स नियंत्रण समिति,स्वास्थ्य विभाग, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान ।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में महिलाओं के स्वास्थ्य से सम्बंधित आवश्यक...
इस पृष्ठ में राजस्थान सरकार की ओजस-ऑनलाइन जेएसवाई ...
इस पृष्ठ में एनडीपीएस का वैध निर्माण, व्यापार तथा ...
इस पृष्ठ में अवैध निर्माण एवं अवैध तस्करी की जानका...