माहवारी
- ज्यादातर लड़कीयों को ग्यारह – सोलह साल के बीच मासिक धर्म शुरू हो जाता है
- मासिक धर्म शुरू होने का मतलब है की वह लड़की अब माँ बन सकती है
- मासिक धर्म सामान्य तौर पर करीब अठाईस दिनों के बाद आता है
- यह अवधि बैएस दिनों या पैंतीस दिनों की भी हो सकती है|
- मासिक धरम में खून का बहाव तीन से छ दिनों तक रहता है| करीब आधा कप खून का बहाव होता है|
मासिक धरम कैसे होता है
- मासिक धरम एक चक्र है
- गर्भाशय के अन्दर गर्भधारण के लिए अंडा आकर गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है|
- अगर यह गर्भधारण करने लायक होता है तो विकसित होकर नौ महीने में बच्चा बन जाता है
- और अगर गर्भ धरण नहीं करता है तो दीवार पर जमें खून और बिना गर्भ धरण की ए अंडा सहित बेकार होकर योनी के रास्ते बाहर आ जाता है|
- यह अंडा तीन – चार दिनों बाद खतम हो जाता है
- यह एक सामान्य तरीका है जो लड़की यों और महिलाओं में हर महीने होता है|
- मासिक धर्म के दौरान अलग-अलग तरह के हार्मोन्स अलग-अलग तरह के बदलाव लाते हैं
- यह बदलाव दिमाग द्वारा गर्भाशय और अंडाशय में होते हैं|
अंडाशय पर असर डालने वाले हार्मोन्स
- हार्मोन्स के कारण ही अंडाशय में अंड या विंव विकसित होते हैं
- बहुत सारे अंडे बनते हैं लेकी न एक ही गर्भाशय तक पहुंचता है| इसे अन्दोगर्ग यानि बच्चा बनाने लायक होता है|
- यह क्रिया मासिक धरम शुरू होने के चौदह दिनों पहले होता है
- जब अंडा विकसित होता है तो संभोग के दौरान लड़की या महिला गर्भ धारण कर सकती है|
- अंडा के विकसित होने के समय कुछ लडकी यां या महिलाओं में पेट के नीचे दर्द होता है| हालांकी यह दर्द बहुत देर तक नहीं रहता है|
गर्भाशय में हार्मोन्स का असर
- हार्मोन्स के कारण दीवार पर जमने वाली परत मोटी हो जाती है
- खून की नालियां भी मोटी और दोहरी हो जाती हैं
- दीवारें मोटी होने से गर्भाशय इस लायक हो जाता है की बच्चा ठीक से पले, बढे|
- अगर गर्भ नहीं होता है तो खून की नालियां और शिराएँ अपनी जगह से हटने लगती है और योनी से खून निकलता है जिसे महावारी या मासिक धरम कहते हैं|
मासिक धरम के समय अपनी देखभाल
- सफाई रखना, साफ पैड या कपड़े का इस्तेमाल
- खूब सोना
- सेहतमंद भोजन
- रोज नहाना
- घर का काम करते रहना
- मासिक धरम कोई गन्दी प्रक्रिया नहीं है, पूरी सफाई की जरूरत होती है|
मासिक धरम के समय बदलाव
भावनात्मक शारीरिक
- चिडचिडापन - पेट के निचले भाग में असुविधा होना
- जल्दी उत्तेजना में आना - सूजन या दर्द
- ढीला पड़ जाना - स्तनों पर सूजन या दरद
- दुखी रहना - ऐसा लगना की वजन बढ़ गया है
- कमजोरी - चक्कर
- थकावट - सिर का दरद
- भोजन अच्छा न लगना - पीठ और कमर का दरद
- उल्टी जैसा महसूस
मेनोपॉज (मासिक धरम बन्द होने के बाद)
- मेनोपॉज जीवन का वह समय है जब स्त्रियों में मासिक धरम बन्द हो जाता है
- मेनोपॉज के बाद स्त्री गर्भवती नहीं हो सकती है
- सामान्य रूप से मेनोपॉज चालीस-पचास की आयु के बीच होता है
- पूरी तरह बन्द होने के पहले मासिक धरम कभी जल्दी और कभी देर से आता है
- वह नियमित नही रहता है
- मेनोपॉज के दौरान या बाद में यौन संबंध में की सी तरह के रोक की जरूरत नहीं है
- हाँ गर्भ ठहर सकता है, अगर बच्चे की जरूरत नहीं है तो गर्भ निरोधक अपनाएं
- मासिक धरम बन्द होने के बाद एक साल तक गर्भ निरोधक अपनाने की जरूरत पड्ती है| उसके बाद नहीं
- मेनोपॉज के समय स्त्रियों में वेचैने होती है
- चिंता लगने लगती है
- उदास रहती है
- गर्मी लगती है
- दुखी रहती है
- बदन में दरद रहता है- कभी यहाँ, कभी वहां
- मेनोपॉज खतम होने के बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है
- अगर इन दिनों योनी से ज्यादा खून भे, काफी दिनों तक बढ़ता रहे और साथ में पीड़ा भी हो तो डाक्टर की सलाह लें
- मेनोपॉज के बाद हड्डियां कमजोर हो जाती है, जल्दी ही टूट सकती है| सावधानी बरतें|
गर्भ का ठहरना
जब स्त्री का अंड और पुरुष का शुक्राणु आपस में मिलते हैं तो गर्भ ठहरता है गर्भ को पूरी तरह विकसित होने में अड़तीस-चालीस हफ्ते लगते हैं|
लड़की या लड़का
- गर्भ ठहरने के समय ही यह तय हो जाता है की लड़की होगा या लड़का
- स्त्री के अंड कोशिका में दो एक्स गुण सूत्र होते हैं
- पुरुष के शुक्राणु में दो गुण एक्स और बाई होते हैं
- अगर संभोग के समय पुरुष का शुक्राणु गुण सूत्र के साथ स्त्री के अंडे से मिलता है तो लड़की पैदा होती है|
- लेकी न पुरुष का शुक्राणु वाई लद्द गुणा सूत्रा के साथ स्त्री के साथ अंड से मिलता है तो लड़का पैदा होता है|
- यह स्त्रियों के बस की बात नहीं है की वह निश्चित करे की लड़का पैदा होगा या लड़की|
- पुरुष का शुक्राणु ही तय करता है की पैदा होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की प्रकृति नए यह क्षमता केवल पुरुषों को दी है| हमरे देश में लड़का न होने पर ऑंखें को दोषी माना जाता है| यह अज्ञानता है| वह दोषी नहीं है| यह पुरुषों के शुक्राणु में पाए जाने के सूत्र पर निर्भर करता है की लड़की पैदा होती या लड़का|
गर्भवस्था के लक्षण
- स्त्री का मासिक धरम रुक जाता है
- सुबह-सुबह चक्कर का आना
- उल्टी होने जैसा महसूस करना
- दूसरे या तीसरे महीने तकलीफ बढ़ जाती है
- स्तर भारी होने लगता है, उसकी चमड़ी पर लाली आ जाती है और चमक बढ़ जाती है
- बार बार पेशाब लगती है
- पैर बड़ा हो जाता है
- चेहरे, छाती और पेट पर गहरे रंग की झैएयाँ या धब्बे निकल आते हैं|
- पांचवे महीने बच्चा गर्भाशय में हिलने डुलने लगता है
- छठे महीने बच्चे के अंग सही हालत में हो जाते है|
गर्भावस्था में स्वस्थ कैसे रहें
- यह बहुत जरूरी है की वजन बढ़ाया जाए, इसके लिए सेहतमन्द भोजन की जरूरत है|
- आप के भोजन में पूरी मात्रा में साग-सब्जी, दाल, अंडा, मांस, मछली, दूध, घी हो|
- गर्भावस्था के छठे महीने के बाद आपको आराम की जरूरत होगी| रात में कम से कम आठ घंटे सोएं| दोपहर में भी दो घंटे सो लें|
- वैसे नमक का इस्तेमाल करें जिसमें आयोडिन मिला है| नहीं तो बच्चे के जीवन पर खतरा हो सकता है|
- साफ-सुथरा रहें| रोज नहाएं| दांतों को साफ रखें|
- आखिरी महीने में मैथुन न करें| छूत लग सकता है
- कोशिश करें की कोई दवा लेने की जरूरत न पड़े कुछ दवाईयां पेट में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है|
- डाक्टर की सलाह पर ही कोई दवा लें
- विटामिन की गोलियां और खून में लौह तत्व, फालिक एसिड की गोलियां लेनी चाहिए|
- आरामदेह कपड़े पहने
- बीड़ी,हुक्का या सिगरेट न पिएं
- शराब भी न पिएं
- उन बच्चों से दूर रहें जिन्हें खसरा हो गया है
- घर का काम करते रहना चाहिए, लेकी न ध्यान रहे की थकावट न हो
- जहरीली चीजों और रसायन से बचें
- कीटनाशक दवाओं से भी बचें|
गर्भावस्था की छोटी-छोटी परेशानियाँ
- चक्कर आना या उल्टियां-यह सुबह के समय अधिक महसूस होता है
- दूसरे-तीसरे महीने असर ज्यादा होता है|
- सुबह के समय एक आधा रोटी खा लेने से आराम मिलता| एक ही समय अधिक भोजन करने से ज्यादा जरूरत है, थोड़ी-थोड़ी देर बाद थोड़ा भोजन लेना|
- अगर मामला खतरनाक हो तो उल्टी रोकने वाली दवा ले लेनी चाहिए|
- अक्सरहाँ तीसरे महीने के बाद उल्टियां आना रुक जाती है| अगर आती है और पांव में सूजन भी हो जाती है तो डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए|
- कभी-कभी नाभि या छाती में जलन होती है| अच्छा है की उस समय थोड़ा दूध पी लें|
- दिन में पावों को ऊपर रख कर बैठें, नही तो सूजन हो सकती है|
- नमक का इस्तेमाल कम कर दें
- ज्यादा सूजन हो जाने पर डाक्टर की सलह लें
- सूजन होने का कारण खून की कमी भी हो सकती है| नियम से फालिक एसिड की गोलियां लें|
- कमर के निचले हिस्से में भी दरद हो सकता है सपाट बिस्तर या चौकी पर ही सोना चाहिए|
- खून की कमी एक आम समस्या है
- हरी पत्तियों वाले सागों का खूब इस्तेमाल करना चाहिए
- साथ में फलियां, दूध, अंडा के भी सेवन करना चाहिए
- आपके स्वास्थ्य से ही बच्चे का स्वास्थ्य ठीक रहता है आप गर्भावस्था में बच्चे के स्वास्थ्य रहने के लिए भी भोजन लेती है|
- पैरों में खून की नालियां मोटी हो जाती है, क्योंकी उस पर बच्चे का वजन पड़ता है
- सूजन से आराम पाने के लिए पैरों में पट्टियाँ बांधे| रात के समय पट्टियाँ हटा दें
- गर्भवस्थ में बवासीर भी एक समस्या बन जाती है|
- अगर बहुत दरद होता है तो टब में पानी भर दें उसमें लाल दवा (पोटेशियम पर मैगनेट) मिला दें और करीब आधा घंटा दिन में तीन बार बैठें| आराम मिलेगा|
- कब्ज भी हो जाता है| चोकर वाली रोटियां खाएं| दिन भर खूब पानी पिएं|
- योनि से पानी बहने लगता है| कभी-कभी यह पीला ओर बदबूदार भी होता है| योनि वाले हिस्से को कई बार साफ पानी से धोएँ|
- बदन में अकड़न या ऐंठन भी हो जाती है| आराम के लिए मालिस करें|
गर्भावस्था के खतरनाक लक्षण
- योनि से थोड़ा भी खून निकले तो खतरे का लक्षण होता है
- गर्भ गिर भी सकता है, डाक्टर से सलाह कर दवा लें
- खून कई भारी कमी हो सकती है
- आप कमजोर हो जाती हैं, काफी थकान लगता है|
- तुरत इलाज कई जरूरत है, भोजन पौष्टिक चीजें लें, खून कई कमी दूर करने वाली दवाएं भी लें|
- पावों, हाथों और चेहरे कई सूजन के साथ-साथ अगर सिर दरद और चक्कर भी आवे तो तुरत डाक्टरी इलाज करावें|
- जरूरी है पौष्टिक भोजन, खून बढ़ाने वाली दवाइयाँ और आराम
- स्वास्थ्य केन्द्र में हर महीने जांच करावें
- प्रशिक्षित दाई कई सलाह लेती रहें
- आखिरी महीने में हर हफते जांच करवाएं|
खुद जाने, जानकारियों को बांटे
- ढंग का खाना
- पोषण देने वाला खाना, अनाज, दालें, हरी पीली सब्जियां और पफल, अंडा दूध|
- खून कई कमी दूर करने वाली हरी साग, पालक, मूली का पत्ता, लाल साग-चौलाई| साथ ही साथ फौलिक एसिड कई गोलियां|
- अगर गर्भावस्था में आपका वजन बढ़ रहा है तो समझें अच्छा भोजन मिल रहा है
- आपका वजन नौ महीने में आठ से दस की लो बढ़ना चाहिए
- अगर अंतिम महीने में ही एक-एक बहुत वजन बढ़ जाए तो यह खतरे कई निशानी है|
- दवाओं का बिलकुल नहीं या कम इस्तेमाल करें विटामिन और खून बढानें वाली दवाएं लेती रहें
- हुक्का-बीड़ी, सिगरेट, शराब बिलकुल ही न लें|
- टेटनस के टीके जरूर लें:
- पहला टीका - चौथे से छठे महीने के बीच
- दूसरा टीका -पहले टीके के चार हपते बाद
- तीसरा टीका - दूसरे टीके के छ महीने बाद
- चौथा टीका - तीसरे टीका में एक साल बाद
- पांचवा टीका - चौथे टीके के एक साल बाद
खतरे के लक्षण
- पेशाब करने में जलन
- जल्दी-जल्दी पेशाब आना
- पेशाब के साथ खून या पीब आना
- एकाएक वजन बढ़ना
- हाथों और चेहरे कई सूजन
- रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) का बढ़ना
- खून कई बहुत ज्यादा कमी
- योनि से खून का बहाव
- पेशाब में चीनी का होना
- पेशाब में प्रोटीन
हर हालत में डाक्टरी सहायता लें
गर्भाशय (बच्चे दानी)में बच्चे कई हालत
- हर माह यह देखें की बच्चा की तना बढ़ रहा है, नाभि से ऊपर की तरफ की तना और नीचे की तरफ की तना बढा|
महिला को प्रसव के लिए तैयार करना
- जैसे-जैसे बच्चा पैदा होने का समय नजदीक आए, महिला की जांच हर हपते करवाएं
- अगर महिला इसके पहले भी बच्चा हुआ हो तो पता कर लें की इसके पहले प्रसव के समय की तना दरद हुआ था|
- हर रोज उसे दिन में दो बार पावों को उंचा करके लेटने को कहें – एक बार में कम से कम एक घंटा|
- उससे कहें की लेटने के बाद धीरे-धीरे गहरी साँस लें|
प्रसव के लिए तैयार
- माँ का बच्चे को जनम देना प्रकृति की सामान्य घटना है
- हां, कई बार कुछ समस्यांए आ जाती हैं, कुछेक खतरनाक लक्षणों पर खास ध्यान देना चाहिए| जैसे –
- बच्चे के पैदा होने कई तारीख से तीन हपते पहले दरद शुरू हो जाए
- प्रसव पीड़ा के पहले खून का बहाव होने लगे
- बच्चा पैदा करने वाली महिला को लम्बी या खतरनाक बीमारी हो
- उसकी उम्र बीस साल से कम और चालीस साल से अधिक है
- पैंतीस साल उम्र के बाद गर्भवती हुई है
- उसके पांच ले अधिक बच्चे हैं
- उसकी ऊंचाई बहुत कम है
- उसमें खून कई कमी ज्यादा है
- पहले भी प्रसव के समय तकलीफ हो चुकी है
- उसे हर्निया हो
- ऐसा लगे की जुड़वाँ बच्चा होने वाला है
- बच्चेदानी में बच्चे की स्थिति ठीक नहीं है
- पानी की थैली फट गयी हो
- नाव महीने पूरा करने के दो हपते बाद प्रसव की पीड़ा शुरू हुई है|
ऐसे लक्षण जो बताते हैं की प्रसव की घड़ी नजदीक है
- बच्चा पेट में नीचे की तरफ खसक आता है इससे में को साँस लेने में आसानी होती| बार-बार पेशाब करना पड़ता है|
- पहला बच्चा पैदा होने के समय यह लक्षण दो हपते पहले दिखने लगता है
- प्रसव के पहले योनि से बलगम जैसी चीज निकलती है, कभी-कभी थोड़ा खून भी बलगम के साथ निकल आता है| इसमें घबड़ाना नहीं चाहिए|
- गर्भाशय में सिकुड़न मह्सुस होता है, खींचा-खींचा सा लगता है
- शुरू में सिकुड़न काफी देर या कुछ मिनटों तक रहता है
- बाद में सिकुड़न हर दस मिनट में होने लगता है, अब दरद भी शुरू हो जाता है, समझना चाहिए की प्रसव की घड़ी नजदीक है|
- प्रसव नजदीक आने के समय पानी की थैली फट जाती है, योनि से काफी पानी निकले लगता है|
- अगर सिकुड़ने के पहले ही पानी की थैली फट जाती है तो समझना चाहिए की प्रसव होने ही वाला है|
- पानी का रंग सफेद होता है, यदि यह हरे रंग का हो तो समझना चाहिए की बच्चे को खतरा है|
- ऐसी हालत में तुरत प्रसव कराना चाहिए|ज्यादा अच्छा होगा की डाक्टर की देख भाल में प्रसव हों|
प्रसव के तीन भाग होते हैं
पहला भाग
- दरद के साथ सिकुड़न, बच्चा नीचे के तरफ सरक जाता है
- इसकी अवधि पहले प्रसव में दस से बीस घंटे रहती है, बाद के प्रसवों में छ से दस घंटे
- पहले प्रसव के समय जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिए
- बच्चे को खुद नीचे खसकने दीजिए| की सी तरह जोर जबरदस्ती न करें| नली बच्चे को नीचे सरकने के बाद ही माँ को जोर देना चाहिए|
- माँ को चाहिए की प्रसव के पहले पेशाब पखाना कर लें| उसे बार-बार पेशाब करना चाहिए|
- पानी और तरल चीजें पीने के लिए दीजिए
- अगर प्रसव की पीड़ा लम्बे समय तक खींचे तो थोड़ा जलपान कर लेना चाहिए
- अगर उल्टियां आवे तो पानी, चाय, शरबत का दो चार घूंट ले लें
- थोड़ी-थोड़ी देर पर चल फिर लें
- प्रसव कराने वाली महिला या दाई को चाहिए की वह पेट, जनन वाली जगह, पिछला हिस्सा और टांगों को साबुन और गुनगुने पानी से धोएं
- बिस्तर साफ रखें
- ऐसे कमरे में लिटाएं जहां रौशनी हो
- नया ब्लेड अपने पास रखें, जिससे नाल काटा जा सके
- उबला पानी तैयार रखें
- अगर कैंची की जरूरत हो तो उसे भी उबलते पानी में रख दें
- पेट पर की सी तरह की मालिश न करें, की सी तरह की जोर जबरदस्ती भी न करें
- सिकुड़न के समय धीमी पर नियमित साँस लें
- माँ को ढाढस दें की प्रसव का दरद जरूरी है, उससे वह घबराएं नहीं
दूसरा भाग
- पानी की थैली फूटना शुरू हो जाता है
- सिकुड़न के समय अन्दर ही अन्दर जोड़ लगा कर बच्चे को बाहर की तरफ ढकेलती है
- ढकेलने की जरूरी हा की फेफड़ों में पूरी हवा भरी रहे ताकी माँ को ढकेलने में आसानी हो
- जब बच्चा धीरे-धीरे बाहर निकल रहा हो तो तकी या का सहारा लेकर बैठ जाना चाहिए|
- जब नली के पास बच्चा का सिर दिखने लगे तो दाई को चाहिए को वह प्रसव कराने की सभी चीजें तैयार कर लें
- एस समय माँ को अन्दर से जोर लगाने की जरूरत नहीं है
- दाई को में के योनि के आस-पास की उंगली या हाथ लगाने की जरूरत नहीं है| इससे छूत लग सकता है|
- हाथ लगाने के लिए हाथों में रबड़ के दस्ताने पहन लेने चाहिए|
प्रसव का तीसरा भाग
- इस भाग में बच्चे की पैदाइस शुरू हो जाती है
- आवला (प्लासेन्टा, बिजान्दसन बाहर निकलने लगता है)
- आवला पांच मिनट से एक घंटे के बीच समय लगता है| यह अपने आप बाहर निकल आता है
- अगर बहुत खून का बहाव हो तो डाक्टर की मदद लें
- बच्चे के बाहर निकलने के तुरत बाद
- बच्चे का सिर नीचा करें ताकी उसके मुंह में लगी लसलसी चीज साफ की या जा सके
- सिर तबतक नीचा रखें जबतक बच्चा सांस लेना नहीं शुरू कर देता है
- जबतक नाभि – नल कट न जाए, बंध न जाए तबतक बच्चे को माँ के बगल में नीचा करके लिटाएं ताकी उसे माँ का खून मिलता रहे|
- अगर बच्चा तुरत सांस नहीं लेता है तो बच्चे के पीठ को साफ कपड़े से मलें
- यदि फिर भी सांस नहीं लेता है तो समझना चाहिए की उसके नाक-मुंह में अभी लसलसी चीज फंसी है|
- साफ कपड़े को अंगुली में लपेट कर मुंह नाक साफ करें
- तुरत पैदा बच्चे को साफ कपड़े में लपेट दें, नहीं तो ठंड लग सकती है|
नाभि-नाल को कैसे काटें
- बच्चा जब जनम लेता है तो उसके नाभि-नाल में धडकन होती है
- यह नाल मोटी और नीले रंग की होती है
- थोड़ा इन्तजार करना पड़ता है
- थोड़ी देर बाद नाभि-नाल सफेद रंग की हो जाती है
- वह धड़कना भी बन्द कर देती है
- अब इसे दो जगहों पर साफ-सुथरे कपड़े की पट्टी से बांध देना चाहिए| जड़ों को कस कर बांधना चाहिए|
- इसके बाद इसे गाठों के बीच से काटिए
- काटने के लिए बिलकुल नए ब्लेड का इस्तेमाल करें
- ब्लेड के उपर कागज हटाने के पहले अपने हाथों को गरम पानी और साबुन से धो लें|
- अगर ब्लेड न हो तो ऐसी कैंची का इस्तेमाल करें जिसे उबले पानी में देर तक खौलाया गया है|
- नाभि से एक-दो अंगुल हट कर नाल-नाभि को काटें
- अगर आपने यह सावधानी नहीं बरती तो बच्चे की टेटनस हो जा सकता, वह में जा सकता है|
- ताजी कटी नाल-नाभि को सूखा रखें| उसे खुला रखें ताकी उसे हवा लग सके और जल्दी सूख जाए|
- ध्यान रखें की उसपर मक्खी न लगे
- धूल-मक्खी से बचाने के लिए कपड़े में लिपटा दवाई की दूकान से खरीदी रुई रख दें
- नए पैदा बच्चे पर मोम जैसी चीज लगी होती है
- यह तह बच्चे को छूत से बचाती है, इसे हटाना नहीं चाहिए, हल्के साफ कपड़े हल्के हाथों से पोछना ताकी खून या कोई अन्य तरह की चीज पूंछ जाए|
नाल-नाभि काटने तथा बच्चे को पोछने का तुरत बच्चे को माँ का दूध पीने दें| इसी समय उसे स्तन से निकला गाढ़ा पीला खीस (कोलस्ट्रम) पीने को मिलेगा| यह खीस उसे बहुत सारी बीमारियों से बचाएगा|
आंवला या नाड़ (प्लासेन्टा) निकालना
- आंवला बच्चे के जनम के बाद करीब पांच मिनट से एक घंटे की बीच बाहर आ जाता है|
- लेकी न कभी-कभी काफी समय भी लग सकता है
- निकलने के पहले गर्भाशय कड़ा हो जाता है
- पेट का निचला भाग उठ जाता है
- थोड़ा खून भी निकल सकता है
- निकल आने के बाद नाड़ को अच्छी तरह देखें
- देखें की कहीं टुटा हुआ तो नहीं है
- कुछ भाग अन्दर रह जाने पर खून का बहाव होगा|
- ऐसी हालत में डाक्टरी मदद लेनी पड़ेगी
- नाल को कभी भी खींचे नहीं
- खून के अधिक बहने पर चिंता होता है
- तुरत डाक्टरी सहायता लें|
कठिन प्रसव में
- सिकुड़ना होने में बाद और पानी थैली फटने के बाद भी अगर लम्बे समय तक दरद होता है तो समस्या गम्भीर हो जाती है|
- अगर बच्चा पैदा करने वाली महिला बहुत उमर की है, या
- पहली बार गर्भवती हुई है तो परेशानी हो सकती है
- हो सकता है पेट में बच्चा सही स्थिति में नहीं है
- वह चित या पट हो सकता है
- बच्चे को मुंह नाभि की तरफ हो सकता है
- बच्चे का सिर जरूरत से ज्यादा बड़ा हो सकता है
- जिन महिलाओं के नितम्ब छोटे होते हैं उन्हें भी बच्चा जनने में तकलीफ होती है|
- अगर माँ उल्टियां करती है उपर से पानी नहीं पीती तब भी गम्भीर हालत हो सकती है|
- पेट में बच्चा उल्टा भी हो सकता है सर ऊपर और पैर नीचे
- ऐसी सभी समस्याओं में अस्पताल की देख-रेख में प्रसव कराएं|
तुरंत पैदा हुए बच्चे की देखभाल
- ध्यान रहे की ताजी कटी नाभि-नाल को हाथ न लगाएं| छूत लग सकती है
- उसे साफ और सूखा रखें
- बदन, मुंह, नाक, कान, आंख को सूखे साफ पतले कपड़े से हल्के हाथों से पोछें
- बच्चे को साफ कपड़े में लपेट कर रखें
- ठंड से बचाएं
- माँ के स्तन में उसका मुंह लगा दें
- बच्चे जैसे पखाना पेशाब करे उसका पोतड़ा बदल दें
- बच्चे को नंगे ही रहने देना ठीक होगा, उपर से एक साफ कपड़ों से ढक दें
- जब नाभि-नाल सूख कर गिर जाए तो बच्चे को हर रोज गुनगुने पानी और हल्के साबुन से नहाना चाहिए|
- मच्छर-मक्खी से बचाएं| हल्के जालीदार कपड़े से ढके रखें
- छुतहा रोगी को उसके नजदीक न जाने दें
- धुआं-धूल से भी बच्चों को बचा कर रखें
- माँ का अपना दूध दुनिया में सबसे अच्छा भोजन है
- वे स्वस्थ्य और निरोग रहते हैं
- जरूरी है बच्चे के जनम में बाद माँ के स्तन से निकला पीला-गाढ़ा खीस वह जरूर पीए
- खीस (कोलेस्ट्राल) बच्चे को बहुत सारी बीमारियों से बचाता है|
- माँ का दूध पीने वाला बच्चा अपने को हर तरह से सुरक्षित महसूस करता है
- उसे ममता, स्नेह, सूख मिलता है
- चार महीने तक बच्चे को माँ के दूध पर ही जीना चाहिए ऊपर से उसे कुछ भी नहीं चाहिए|
- बच्चे को थोड़ी-थोड़ी पर दूध पिलाती रहें-कम निकले या ज्यादा
- काफी मात्रा में तरल चीजें पिएं – दाल, सब्जी, फल का रस, दूध
- खाने-पीने खूब पोषण रहना चाहिए
- थकान से बचना चाहिए, अच्छी नींद सोना चाहिए
- हर माँ अपने बच्चे को पूरा दूध पिला सकती है
- जरूरत है इच्छा शक्ति की , खुद के खान-पान को ठीक से रखने की
- बहुत मजबूती में गाय या बकरी का दूध देना चाहिए, डिब्बा वाला दूध बोतल पर बहुत सारी बीमारियां हो सकती है|
हाल में जनमें बच्चों की बीमारियां
- कुछ ऐसे रोग रोग हैं जो उनमें जनम से शुरू हो जाते हैं
- ये समस्याएं इसलिए भी हो सकती है की
- गर्भाशय में पलने बढने के समय ही कोई खराबी आ गयी है
- जनम लेते ही वह अच्छी तरह सांस नहीं ले पा रहा है
- उसके नबज को महसूस न की या जा सके या
- उसके नबज की गति एक मिनट में सौ से अधिक हो
- सांस लेने के बाद बच्चे का बदन सफेद, नीला या पीला हो जाए
- बच्चे की टांगों में कोई जान न हो, चुट्की काटने पर भी बच्चा कुछ महसूस नहीं करता है
- उसके गले में घरघराहट को
- ऐसी सभी समस्याओं में डाक्टर की देखरेख में इलाज करावें
जन्म के बाद पैदा होने वाली समस्याएं
- शुरू के पहले दो हफ्तों में ऐसी समस्याएं अधिक दिखती हैं
- नाभि से पीब निकलता है या फूट कर बदबूदार बहाव होता है
- कम तापमान या अधिक तापमान वाला बुखार आता है
- तेज बुखार बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है
- कम बुखार में बच्चे के बदन को ठंडे पानी से हल्के हल्के पोंछे
- अगर की सी प्रकार का दौरा पड़ता है तो यह हानिकारक हो सकता है| डाक्टर को दिखाएँ
- बच्चे का जनम के बाद वजन थोड़ा घट जाता है लेकी न दो हपते में कम से कम दो सौ ग्राम वजन बढ़ना चाहिए|
- बच्चा दूध पीने के बाद उल्टी कर देता है| पीठ को थपथपाएं| पेट से हवा निकल जाएगा| उसे आराम मिलेगा| तब उल्टियां कम हो जाएगी|
- बच्चा माँ का दूध पीना बन्द करता है, वैसे तो उसे हर चार घंटे पर माँ इ स्तनों की खोज न करता है, लेकी न कभी-कभी ऐसा नहीं करता है|
- वह हमेशा सोता रहता है, जगे रहने पर पलके झपकती रहती है| वह बीमार दिखता है
- ऐसी हालत में ध्यान दें की कहीं बच्चे को सांस लेने में तकलीफ तो नहीं हो रही है
- नाक तो बन्द नहीं हो गया है
- बदन का रंग तो नीला नहीं हो रहा है
- होंठों के रंग तो नहीं बदल रहे हैं
- उसके सर के कोमल भाग (तालु को छूकर देखें)
- अगर धंस गया है तो भी खतरा,अगर उभर गया है तो भी खतरा
- यह भी ध्यान दें की कहीं बच्चे का बदन या उसके हाथों, टागों में अकडन या ऐंठन तो नहीं है|
- वह अपने बदन और अंगों को सामान्य रूप से हिला-डुला रहा है
- खून की जांच करावें कोई दूत तो नहीं लग गया
- अगर हाँ, तो डाक्टरी इलाज की जरूरत है|
प्रसव के बाद माँ का स्वास्थ्य
- बच्चे के प्रसव के बाद माँ का शरीर थोड़ा गरम हो जाता है|
- लेकी न दूसरे दिन इसे पहले की हालत में आ जाना चाहिए
- उसे अब अधिक पौष्टिक भोजन चाहिए, अब उसे अपने बच्चे को भोजन भी अपने शरीर में ही पैदा करना है|
- इसके लिए अब फल,सब्जी, फलियों वाली सब्जियां पीले फल और सब्जियां मूगफली, दूध, अंडा, मुर्गी चाहिए|
- ऐसे ही भोजन खा कर वह अपने बच्चे का सही ढंग से दूध पिला पाएगी
- दूध और पानी
- दूध और पनीर के सेवन ससे उसके स्तनों में अधिक दूध बन जाता है
- प्रसव के कुछ दिनों के बाद उसे नहाना शुरू कर देना चाहिए
- वह साफ कपड़ा पहने, नहीं तो उसका बच्चा बीमार पड़ सकता है
- कभी-कभी प्रसव के बाद बुखार ठहर जाता है| ऐसा दाई या की सी अन्य व्यक्ति से छूत का लगना हो सकता है|
- योनि से खून या बदबूदार बहाव हो सकता है
- ऐसी हालत में योनि और जनन अंगों को गुनगुने पानी में थोड़ा सिरका या पोटाशियम परमेगनेट मिलाकर धोना चाहिए|
- अगर बुखार बना रहे तो डाक्टर की देख-रेख में इलाज कराएं
- कुछ स्त्रियाँ मानसिक रूप से निराश हो जाती हैं, उनमे डर समा जाता है|
स्तनों की देखभाल
- ऐसी हालत में परिवार के लोगों का स्नेह उसे चाहिए|
- यह माँ और बच्चा दोनों के हित में है की स्तनों की देख भाल ठीक ढंग से हो
- बच्चा के पैदा होते ही उसे स्तनपान कराना शुरू कर दें
- शुरू में बच्चा शायद स्तनों को ठीक दंग से न चूस सके लेकी न जल्दी ही वह सीख लेगा
- पहले दो दिन स्तनों से दूध निकलता है, उसे खीस कहते है
- खीस पानी की तरह पतला होता है
- माताएं समझती हा की खीस बच्चे को नुकसान पहुंचाता है, और खीस नहीं पिलाना चाहती हैं|
- सच तो यह है की खीस अमृत समान है
- खीस में सेहत ठीक करने वाली चीजें होती हैं
- पहले दिन दूध पिलाने से यह फायदा है की स्तनों से ज्यादा दूध मिलेगा
- आमतौर से स्तनों में इतना दूध बनता है जितना की बच्चे को जरूरत है
- बच्चा जितना ज्यादा दूध पिएगा, उतना ज्यादा दूध स्तनों में बनेगा
- अगर बच्चा बीमार पड़ता है और दूध नहीं पीता है तो स्तनों में दूध बनना बन्द हो जाता है|
- ऐसी हालत में माँ को चाहिए की वह बच्चे को दूध पिलाती रहें|
- अगर फिर बच्चा दूध न पीए तो माँ को चाहिए की एक-एक स्तन को बारी-बारी जड़ के पास दोनों हाथों से निचोड़ती रहे और दूध बाहर निकाल दें|
- इस क्रिया से स्तनों में दूध बनना बन्द नहीं होगा
- बीमार बच्चे को निचोड़ने से निकले दूध को चम्मच से पिलाएं
- अपने स्तनों को हमेशा साफ रखें, बच्चे को दूध पिलाने के पहले धो लें| इससे बच्चा छूत से बचेगा
- धोते समय ध्यान रखें की चूची पर पानी न लगे, चूची से कुछ ऐसी चीजें निकलती है, जो बच्चे को रोगों से सुरक्षा दिलाता है|
- अगर चूची में सूजन आ जाए या दरद हो तो दूध पिलाना बंद कर दें| एक दो दिन ऊपरी उबला दूध पिलाएं|
कम वजन के बच्चे की देखभाल
- कुछ बच्चों का वजन जनमने के समय दो से पांच की लोग्राम से कम होता है
- ऐसे बच्चों की खास देखभाल की जरूरत होती है
- ज्यादा अच्छा होगा की ऐसे बच्चे की देखभाल अस्पताल में हो
- सम्भव न होने पर ऐसे बच्चों को छाती से चिपका कर रखें
- उसे जरूरत मुताबिक स्तनों से दूध पिलाती रहे
- हर रोज बच्चे का चेहरा और निचला भाग साफ करें
- बदन से चिपके रहने से उसको बराबर गरमी मिलते रहेगी
- जब आप आराम करना चाहें या नहाना चाहें तो घर का कोई अन्य व्यक्ति उसे अपने से चिपका कर बैठें या लेटें
- ऐसे बच्चे को टीके समय से लगवाएं
- बच्चे को पिलाने वाला विटामिन और खून बढ़ाने वाली दवाइयां दें| ऐसे बच्चों के लिए खास ताकत की दवाइयां आती हैं|
स्त्रोत: संसर्ग, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान