किसी भी महिला को अपने दैनिक कार्य करने, बिमारियों की रोकथाम तथा सुरक्षित व स्वस्थ प्रसव के लिए अच्छे भोजन की आवश्यकता होती है। लेकिन फिर भी, पुरे संसार में में, किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या की तुलना में महिलाओं को कुपोषण का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है। इसके कारण थकावट, कमजोरी, अशक्तता और बुरा स्वास्थ्य हो सकता है।
भुखमरी और अच्छा भोजन न खा पाने के अनके कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख है गरीबी। संसार के कुछ भागों में वहां की अधिकार धन-दौलत कुछ गिने-चुने लोगों के पास होती है। वे भोजन देने वाली फसलों की बजाय गन्ना व तम्बाकू उगाते हैं क्योंकि उनसे ज्यादा आमदनी होती है । गरीब लोग कर्जे लिए गए जमीन के छोटे से टुकड़े पर खेती करते हैं जबकि उस जमीन के मालिक फसल का एक बड़ा भाग हड़प जाते हैं ।
गरीबी रेखा सबसे कुप्रभाव महिलाओं पर पड़ता है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चाहे खाने के लिए कितना भी कम हो, महिलाओं को सबसे कम भोजन मिलता है । महिलाएं तभी भोजन करती हैं जब पुरुषों व बच्चों ने खा लिया हो अर्थात वे सबसे अन्त में खाती हैं । इसलिए भुखमरी तथा कुपोषण की समस्या का तब तक कोई समाधान नहीं निकल सकता है जब तक जमीन व अन्य संसाधनों का न्यायपूर्वक वितरण नहीं होता है और महिलाओं को पुरुषों के बराबरी का दर्जा नहीं मिलता है ।
इन सबके बावजूद, अनके ऐसी बातें हैं जिनका पालन करके लोग, कम पैसे में भी, बेहतर भोजन प्राप्त कर सकते हैं । यथासंभव पौष्टिक भोजन खाकर वे अपनी सामर्थ में वृधि कर सकते हैं । और जब लोगों को पेट भरा होगा तो वे अपने परिवार व समुदाय की आवश्यकताओं पर ध्यान लगा सकते हैं और उनमें परिवर्तन लाने के लिए कार्यरत हो सकते हैं ।
विश्व के अधिकांश भागों की तरह, भारत में भी अधिकतर लोग, लगभग हर भोजन में कोई सस्ता मुख्य खाद्य पदार्थ खातें हैं । क्षेत्र पर निर्भर करते हुए यह गेहूँ, चावल , मक्का , बाजरा या आलू हो सकता है । यह मुख्य खाद्य पदार्थ ही शरीर की अधिकतर दैनिक आवश्यकताओं को पूर्ति करता है ।
लेकिन केवल यह मुख्य खाद्य पदार्थ अकेले ही व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त नहीं है । अन्य “सहायक” खाद्य पदार्थों की प्रोटीन्स(जो शरीर के निर्माण के आवश्यक हैं ) ,विटामिन व खनिज तत्व (जो शरीर की रक्षा व मरम्मत के लिए चाहिए) तथा वसा (चिकनाई) और चीनी (जो शक्ति या उर्जा देते हैं ) की प्राप्ति के लिए आवश्यकता पड़ती है ।
सबसे पौष्टिक भोजनों में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ सम्मिलित होते हैं । इनमें कुछ प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ तथा विटामिन क्युक्त ताजे फल व सब्जियां अवश्य होती हैं । प्रतिदिन आपको वसा व चीनी की बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है । लेकिन अगर आपको पर्याप्त मात्रा में भोजन न मिलने की समस्या है तो अच्छा यही होगा कि आप कम भोजन खाने की बजा, वसा व चीनी युक्त खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में खायें ।
एक महिला के स्वस्थ रहने के लिए नीचे दर्शाय गए सभी खाद्य पदार्थ खाने की आवश्यकता नहीं है । वह अपनी आदत के अनुसार एक मुख्य खाद्य पदार्थ खा सकती है और उसके साथ स्थानीय रूप से उपलब्ध, जितने अधिक हो सके, सहायक खाद्य पदार्थ खाए ।
महत्वपूर्ण विटामिन व खनिज
ऐसे 5 महत्वपूर्ण विटामिन व खनिज हैं जिनकी महिलाओं को आवश्यकता होती है – विशेषकर उन महिलाओं के लिए जो गर्भवती हैं या स्तनपान करा रही है । ये हैं, लौह तत्त्व, फोलिक, एसिड, कैल्सियम. आयोडीन तथा विटामिन ‘ए’ ।
लौह तत्व
इस तत्व की खून को स्वस्थ रखने व एनीमिया (रक्त अल्पता) की रोकथाम के लिए आवश्यकता होती है, विशेषत: उन वर्षों में जब उसे माहवारी हो रही होती है तो और जब वह गर्भवती हो ।
इन खाद्य पदार्थ में लौह तत्व काफी मात्रा में होता है :
इन खाद्य पदार्थों में भी थोडा बहुत लौह तत्व होता है :
आप और अधिक लौह तत्व प्राप्त कर सकते हैं यदि आप लोहे के बर्तनों ( जैसे की कढ़ाई) में खाना पकाएं । खाना पकाते समय आप अगर उसमें टमाटर या नींबू का रस (जिसमें काफी मात्रा में विटामिन “सी” होता है) डाल दें तो लोहे के बर्तन से और अधिक लौह तत्व खाने में मिल जाएगा ।
फोलिक एसिड (फोलेट)
शरीर को स्वस्थ लाल रक्त कण बनाने के लिए फोलिक एसिड की आवश्यकता होती है । फोलिक एसिड की कामी से मछलियों में एनीमिया तथा नवजात शिशुओं में गंभीर समस्याएं हो सकती है । इसलिए गर्भावस्था में पर्याप्त मात्रा में फोलिक एसिड का मिलना और भी अधिक महत्वपूर्ण है ।
फोलिक एसिड के अच्छे स्रोत यें हैं :
कैल्सियम
हर मनुष्य को मजबूत दांतों व हड्डियों के लिए कैल्सियम की आवश्यकता होती है । महिलाओं व लड़कियों को अतिरिक्त मात्रा में कैल्सियम चाहिए ।
बचपन में लड़की की कुल्हे को हड्डियों की चौड़ाई को ठीक से विकसित होने के लिए कैल्सियम चाहिए ताकि बड़ी होकर जब वह गर्भवती होंगी तो उसे प्रसव आसानी से रहे ।
गर्भावस्था में : एक महिला को पर्याप्त मात्रा में कैल्सियम चाहिए ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे की हड्डियों और उसकी खुद हड्डियां व दांत मजबूत रहे ।
स्तनपान कराने से काल में : स्तनों में दूध पर्याप्त मात्रा में बनने के लिए कैल्सियम चाहिए ।
प्रौढ़ावस्था तथा वृधावस्था में : ओस्तिओपोरोसिस (हड्डियों का कमजोर व भुरभुरा होने की बीमारी ) की रोकथाम के लिए कैल्सियम चाहिए ।
ये खाद्य पदार्थ कैल्सियम समृद्ध हैं :
खाद्य पदार्थों से अधिक कैलिसयम प्राप्ति के लिए :
हड्डियों या अंडे के छिलकों को कुछ घंटों के लिए सिरके या नींबू के रस में भिगों दें । उसके बाद इस रस को सूप या अन्य खाद्य पदार्थ में प्रयोग करें ।
जब आप हड्डियों का सूप (शोरबा) बना रही हों तो उसमें टमाटर, नींबू का थोडा सा रस या सिरका मिला दें ।
अंडे के छिलकों को पीसकर बारीक पाउडर बना लें इसे भोजन में मिलकर प्रयोग करें ।
मक्की को चुने से भिगाएं ।
आयोडीन
भोजन में उपस्थित आयोडीन घेंघा या गायटर नामक बीमारी (गर्दन के सामने के भाग में मौजूद थायराइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाना) तथा अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की रोकथाम करती है । अगर किसी महिला को गर्भावस्था में पर्याप्त आयोडीन नहीं मिलता है तो उसको पैदा होने वाला शिशु मानसिक रूप से मंद बुद्धि हो सकता है । गायटर तथा मंद बुद्धि होना उन क्षेत्रों में सबसे अधिक पाया गया है जहां के पानी भूमि व भोजन में प्राकृतिक आयोडीन की कमी होती है ।
भारत में पर्याप्त आयोडीन प्राप्त करने का सर्वोतम तरीका है कि आप नियमित नमक की बजाय केवल आयोडीन युक्त नमक का ही सेवन करें । यह हर जगह उपलब्ध हैं । कुछ खाद्य पदार्थों जैसे कि झींगा मछली व तेपिओका में भी आयोडीन होता है ।
विटामिन ‘ए’
विटामिन ए रतौंधी रोक की रोकथाम करता है और कुछ संक्रमणों से शरीर की रक्षा करता है । अनके महिलाएं रतौंधी (कम रोशनी/हल्का अंधेरा होते ही ठीक से नहीं देख पाना ) का शिकार होती है । वह शायद इसलिए कि गर्भवती होने से पहले ही उनके भोजन में विटामिन ‘ए’ की कमी थी । जब गर्भधारण के कारण शरीर पर जोर पड़ता है तो यह कमी मुखरित हो उठती है ।
विटामिन ‘ए’ की कमी से बच्चों में भी अंधापन सकता है । गर्भावस्था के दौरान विटामिन ‘ए’ समृद्ध खाद्य पदार्थ खाने से उसके बच्चे को स्तनपान के माध्यम से, पर्याप्त मात्रा में विटामिन ‘ए’ मिल जाएगा ।
खाना पकाते समय ध्यान में रखने योग्य कुछ बातें :
जब पैसा सीमित हो तो आवश्यक है कि इसे समझदारी से खर्च किया जाए । यहां हम कुछ ऐसे सुझाव दे रहें हिं जिनका पालन करके आप कम खर्च में अधिक विटामिन , खनिज तथा प्रोटीन प्राप्त कर सकती हैं :
1. प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ । सोयाबीन, फलियां व दालें प्रोटीन के अच्छे व सस्ते स्रोत हैं । अगर इन्हें पकाने और खाने से पहले अंकुरित भी कर लिया जाए तो इनमें विटामिनों की मात्रा और भी बढ़ जाती है ।अंडे भी प्रोटीन का एक बढ़िया स्रोत है । अन्य मांसों की अपेक्षा गुरदे, कलेजी, तथा जिगर सस्ते लेकिन उतने ही पौष्टिक होते हैं।
2. अन्न जैसे गेहूं, चावल व अन्य अन्न तब अधिक पौष्टिक होते हैं जब कुटाई करके उनका चोकर (बाहरी सतह) अलग न कर दी जाए ।
3. फल व सब्जियां । इनकी फसल उतरने के बाद अगर इनका शीघ्रातिशीघ्र प्रयोग किया जाए तो इनमें अधिक पौष्टिक होती है । अगर आप इनका भंडारण करते हैं तो इनके विटामिन बचाये रखने के लिए इन्हें ठंडे व छायादार वाले स्थान में रखें । सब्जियां पकाते समय कम से कम पानी का प्रयोग करें क्योंकि पकाते समय सब्जियों के विटामिन पानी में मिल जातें हैं । ऐसा पानी को फैंके नहीं बल्कि उसे शोरबा (सूप) बनाने के लिए प्रयोग करें या फिर इसे वैसे ही पी लें । गाजर व गोभी की बाहरी सख्त सतह में अनके विटामिन होते हैं और उसका प्रयोग स्वास्थ्यवर्धक सूप बनाने के लिए किया जा सकता है । उदाहरण के लिए टेपिओका की पत्तियों में उसकी जड़ की अपेक्षा 7 गुणा अधिक विटामिन और प्रोटीन होते हैं । अनके जंगली फलों व बेर परिवार के फलों में काफी विटामिन सी तथा शक्कर होती है और ये काफी मात्रा में विटामिन व उर्जा (शक्ति) दे सकते हैं । केवल आपको इतना ज्ञान अवश्य होना चाहिए कि आप जहरीले व अच्छे जंगली फलों में अंतर पहचान सकें ।
4. दूध और दूध के बारे पदार्थ । इन्हें हमेशा ठंडी व छायादार जगह पर रखें । ये शरीर की रचना व वृधि करने वाले प्रोटीन तथा कैल्सियम में अत्यंत समृद्ध होते हैं ।
5. पैक करके बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों तथा विटामिन की दवाईयों पर पैसा बर्बाद न करें । अगर माता-पिता पैसे को मिठाईयों, शीतल पेयों व सोडा आदि पर व्यर्थ न करके पौष्टिक खाद्य पदार्थों पर खर्च करें तो उतने ही पैसों में उनके बच्चे अधिक स्वस्थ रहेंगे ।
चूँकि आवश्यक विटामिनों को लोगों भोजन से ही आसानी से प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए विटामिनों की गोलियां, कैपसूलों व सुईयों से बेहद सस्ती लेकिन उतनी ही असरदार होती है ।
भारत सहित विश्व के अनके भागों में महिलाओं के लिए भोजन के विषय में कुछ गलत परम्पराएं व विचार प्रचलित हैं जो काफी हानिकारक हैं । उदाहरण के लिए :
यह सच नहीं है कि लड़कियों को, लड़कों की अपेक्षा, कम भोजन की जरुरत होती है। कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि लड़कों को अधिक भोजन चाहिए । लेकिन यह गलत है अधिकतर समाजों में महिलाएं व लड़कियां उतना ही (कहीं कहीं तो अधिक ) कठोर परिश्रम करती है जीतना की पुरुष व लड़के करते हैं । इसलिए उन्हें भी उतनी ही स्वस्थ रहने की जरुरत होती है । जिन लड़कियों को बचपन में भली भांति खिलाया पिलाया जाता है और वे स्वस्थ रहती है तो बड़े होकर उन्हें पढाई या काम करने में कम समस्याएं होती है और वे स्वस्थ स्त्रियां बनती हैं ।
यह सच नहीं है कि महिलाओं को गर्भावस्था तथा स्तनपान के काल में कुछ खाद्य पधार्थों से परहेज करना चाहिए । कुछ समुदायों में में ऐसा विश्वास है की महिला को अपने जीवन में कुछ खास कालों में कुछ विशेष खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए । इन कालों में उसकी माहवारी का समय, गर्भवस्था, प्रसव के तुरंत पश्चात का समय, स्तनपान कराने का काल या रजोनिवृति के समय शामिल हो सकता है । लेकिन वास्तविकता यह है कि महिला को हर काल में, हमेशा पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है विशेषकर गर्भावस्था तथा स्तनपान के काल में । भोजन के कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज करने से कमजोरी, बीमारी और मृत्यु भी हो सकती है ।
यह सत्य नहीं है कि महिला को पहले अपने परिवार को भोजन कराना चाहिए । कभी-कभी महिला के दिमाग में यह बात डाली जाती है कि वह तभी भोजन करे जब परिवार के अन्य लोगों ने भोजन कर लिया हो । ऐसी स्थिति में वह केवल बचा-खुचा भोजन की खा पाती है और घर के अन्य सदस्यों जिनता भोजन उसे नहीं मिलता है । यह कोई स्वस्थ प्रथा नहीं है । गर्भावस्था में या प्रसव के तुरंत पश्चात तो यह खतरनाक भी हो सकता है।
अगर कोई परिवार किसी महिला को पौष्टिक भोजन खाने में सहायता नहीं कर रहा है तो महिला को स्वयं भोजन खाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए । आवश्यक होगा कि वह खाना पकाते समय ही भोजन खाए या भोजन को छिपा कर रखें और तब खाये जब उसका पति घर पर न हों ।
यह सच नहीं है की रोगी व्यक्ति को, स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में , कम भोजन की आवश्यकता होती है । पौष्टिक भोजन न केवल बिमारियों की रोकथाम करता है बल्कि बीमार व्यक्ति को फिर से जल्दी स्वस्थ होने में सहायक होता है । एक सामान्य नियम यह है कि जो खाद्य पदार्थ स्वस्थ व्यक्तियों के लिए अच्छे होते हैं, वे रोगी व्यक्तियों के लिए भी उतने ही लाभदायक होते हैं ।
खानपान संबंधित गलत विश्वास
भारत के कुछ भागों में एक बहुत हानिकारक विश्वास प्रचलित है कि जिस महिला को अभी हाल ही में बच्चा हुआ है, उसे कुछ तरह के खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए । ऐसी महिला को कुछ बहुत ही पौष्टिक खाद्य पदार्थ खाने की बिल्कुल मनाही है और उसे केवल पनीली तरकारी के साथ चावल या चपाती खाने को दिए जाते हैं । इस कारण उसे आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पातें हैं, वह कमजोर व एनीमिया का शिकार हो जाती है । इस कारण उसमें संक्रमणों और खून के बहाव के विरुद्ध लड़ने की शक्ति कम हो जाती है और गंभीर रूप से बीमार या मौत का शिकार हो सकती है । स्वस्थ रहने, संक्रमणों व खून जाने के विरुद्ध अपने शरीर को मजबूत रखने तथा अपने बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में शरीर निर्माण, रक्षा करने वाले तथा शक्ति देने वाले खाद्य पदार्थ मिलने चाहिए । इस प्रकार के खाद्य पदार्थों से उसे कोई हानि नहीं, बल्कि अत्यधिक लाभ होगा व महिला स्वस्थ रहेगी ।
दक्षिण भारत के बहुत से ग्रामीणों क्षेत्रों में एक अन्य विचित्र मान्यता यह है कि बीमारियां “पिथम” उन व्यक्तियों को पीड़ित करता है जो प्रसव के पश्चात या दवाईयों के सेवन काल में उन खाद्य पदार्थों को खाते हैं जिनकी समाज द्वारा मनाही है । यही नहीं, अपचन, दस्तों, उल्टियां, चक्कर आना, या गठिया जैसी बिमारियों का भी कारण “पिथम” माना जाता है । खाद्य पदार्थ, जिनमें पिथम मौजूद माना जाता है वे हैं : बैंगन, सुखी मछली, मूंगफली तथा रसोई का तेल । हालांकि इन क्षेत्रों में बहुत से लोग “पिथम” के डर के कारण इन खाद्य पदार्थों को हाथ भी नहीं लगते हैं वास्तविकता यह है कि ये सभी खाद्य पदार्थ अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है और इनमें से कोई हानि नहीं होती है ।
यह सही नहीं है कि किसी जुकाम ग्रस्त व्यक्ति के लिए संतरे, अमरुद, अन्य फल अच्छे नहीं होते हैं । असलियत यह है कि इन फलों में विटामिन ‘सी’ प्रचुर मात्र में पाया जाता है जो इन संक्रमणों पर काबू पाने में अत्यंत सहायक होता है ।
यह भी सही नहीं है कि अगर कोई व्यक्ति दवाइयां खा रहा है तो उसे मसाले या अमरुद नहीं खाने चाहिए। यह आवश्यक है कि अगर किसी को पाचन तंत्र का कोई रोग है तो मसालेदार चीजों से बचना चाहिए क्योंकि चाहे दवाईयां चल रही हो या नहीं, मसालेदार खाद्य पदार्थ नुकसान पहुंचा सकते हैं ।
यह भी सही नहीं है कि मांस या मछली के साथ दूध या दही सेवन नहीं करना चाहिए ।
भारत के कुछ हिस्सों में खेसरी दाल (एक प्रकार की दाल) उगाई जाती है क्योंकि इसे उगाने के लिए अधिक पानी नहीं चाहिए और यह पानी के आभाव वाले क्षेत्र में आसानी से उपजती है । यह सस्ती तथा वजन में अन्य दालों की अपेक्षा अधिक भारी होती है इसलिए इसे मजदूरों को तनख्वाह के रूप में दिया जाता है । खेसरी दाल में एक जहरीला तत्व होता है जो इसे खाने वालों की तांत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालकर “लेथिरिज्म” नामक गंभीर बीमारी उत्पन्न कर देता है । इसमें रोगी की निचली टांगों को पूरी तरह से लकवा मार जाता है । एक बार इस बीमारी के लक्षण पैदा हो जाएं तो इसका कोई इलाज नहीं है ।
निम्नलिखित तरीकों से इस दाल में जहरीले तत्व को काफी कम किया जा सकता है ।
स्टीमिंग : खूब मात्रा में पानी उबाल लें । अब इसमें खेसरी दाल को 2 घंटों के लिए भिगो दें । फालतू पानी को फ़ैंक दें और दाल को ठंडे पानी से अच्छी तरह से धोकर, धुप में सूखा लें ।
पारबायलिंग : दाल को 1-2 घंटो तक सामान्य पानी में भिगोयें । उसके बाद इसे आधा घंटे तक उबालें ( भाप दें ) इसके बाद इसे फिर एक घंटे के लिए ठंडे पानी में भिगोएं ।
चूँकि इसका सेवन करने वालों के लिए ऊपर बताये गए तरीकों का पालन करना सदैव संभव नहीं होता है, इसलिए अच्छा यही है कि इस दाल को बिल्कुल ही नहीं खाया जाए ।
चूँकि लडकियों तथा महिलाओं को आवश्यकता से कम भोजन – या यूँ कहिए कि कम पौष्टिक भोजन मिलता है, इसलिए उनके बीमार पड़ने की संभावना अधिक होती है । नीचे कुछ ऐसी बिमारियों का वर्णन किया जा रहा है तो ख़राब पोषण के कारण होती है ।
एनीमिया (खून की कमी)
एनीमियाग्रस्त व्यक्ति को खून की कमी होती है । यह तब होता है जब शरीर में रक्त के लाल कणों या कोशिकाओं के नष्ट होने की दर, अनके निर्माण की दर से अधिक होती है । चूँकि महिलाएं प्रतिमास आपनी माहवारी के माध्यम से खून गंवाती है, इसलिए किशोरावस्था तथा रजोनिवृति के बीच की आयु की महिलाओं को एनीमिया सबसे अधिक होता है । संसार की गर्भवती महिलाओं में से 50% से भी अधिक एनीमिया से पीड़ित होती हैं क्योंकि उन्हें गर्भ में बढ़ते हुए शिशु के लिए भी रक्त निर्माण करना पड़ता है ।
एनीमिया एक गंभीर बीमारी है । इसके कारण महिला को अन्य बीमरियों होने की संभावना भी बढ़ जाती है । यह महिला की कार्यक्षमता व सीखने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव डालती है । एनिमियाग्रस्त महिलाओं की प्रसव के दौरान रक्त स्त्राव तथा मरने की संभवना काफी अधिक होती है ।
लक्षण :
त्वचा का सफ़ेद दिखाना
जीभ, नाखूनों व पलकों के अंदर सफेदी (रक्तहीनता) का आभास होना ।
चक्कर आना विशेषकर लेटी व बैठी स्थिति में उठने पर ।
बेहोश होना ।
सांस फूलना ।
हृदय गति का तेज होना ।
एनीमिया के कारण
एनीमिया का सबसे प्रमुख कारण हिया लौह तत्व युक्त खाद्य पदार्थों का पर्याप्त मात्रा में न खाना क्योंकि लाल रक्त कणों के निर्माण के लये लौह तत्व की आवश्यकता होती है । इसके अन्य कारण हैं :
मलेरिया, जिसमें लाल रक्त कण नष्ट हो जाते हैं ।
बार-बार गर्भधारण करना ।
किसी भी कारण रक्त का नुकसान, जैसे कि-माहवारी में अधिक मात्रा में खून जाना (कॉपर टी या अन्त: गर्भस्थ साधन (आइ०यू०डी०) के कारण माहवारी भारी हो सकती है )।
प्रसव
पेट के कीड़ों पर परजीवियों के कारण खुनी दस्त लगना ।
पेट के अल्सरों से खून जाना ।
किसी जख्म से अधिक खून जाना ।
उपचार व रोकथाम
1. यदि मलेरिया, परजीवी या कीड़ों के कारण एनीमिया है तो पहले इनका उपचार करें ।
2. अधिक लौह तत्व युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें और उनके साथ विटामिन ‘ए’ व ‘सी’ समृद्ध खाद्य पदार्थ खायें क्योंकि ये शरीर में लौह तत्व के शोषण में वृधि करते है ।
3. खट्टे फल व टमाटर विटामिन ‘सी’ के अच्छे स्त्रोत हैं । गहरे पीले व गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियों में विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में होता है ।
4. अगर कोई महिला पर्याप्त मात्रा में लौह तत्व युक्त खाद्य पदार्थ नहीं खा सकती है तो उसे लौह तत्व की गोलियां खानी पड़ेगी ।
5. काली चाय या कॉफ़ी पीने तथा अन्नों की बाहरी परत (चोकर) खाने से परहेज करें । ये शरीर में लौह तत्व के शोषण को कम करती है ।
6. परजीवीयों के संक्रमण से बचाव के लिए स्वच्छ पेय जल ही पीयें ।
7. स्वच्छ शौचालय का प्रयोग करें ताकि कीड़ों के अंडे ( जो शौच में हो सकते हैं ) भोजन पानी के स्त्रोंतों में न फैलें । यदि आपके क्षेत्र में हुकवर्म काफी प्रचुर है तो नंगे पैर खेतों, जमीन पर न चलें ।
8. बच्चों के जन्म के बीच कम से कम 2 वर्ष का अंतर रखें । ऐसा करने से दो गर्भों के बीच आपका शरीर लौह तत्व का कुछ भंडारण कर पाएगा ।
बेरी-बेरी
यह रोग थायमिन ( एक प्रकार का विटामिन ‘बी’) की कमी के कारण होता है । थायमिन एक विटामिन है जो भोजन को उर्जा में परिवर्तित करने में सहायता करता है । एनीमिया की तरह यह रोग भी महिलाओं में किशोरवस्था (वय संधि) से लेकर रजोनिवृति के बीच की उम्र में अरु उनके बच्चों को होता है ।
बेरी-बेरी होने की संभवना सर्वाधिक तब होती है जब भोजन में मुख्य खाद्य इस प्रकार का होता है जिसमें से उसकी बाहरी सतह ( उदाहरण तया पॉलिश किया हुआ चावल) निकाल ली गई हो या ऐसा कंदमूल जिसमें स्टार्च की मात्रा काफी अधिक हो (जैसे कि-टेपिओका) ।
लक्षण :
भूख न लगना, खाने की इच्छा नहीं होना ।
भयंकर कमजोरी, विशेषकर पैरों में ।
शरीर पर सूजन आ जाना या दिल काम करना बंद कर देता है जिससे अचानक मृत्यु हो सकती है ।
उपचार व रोकथाम :
1. ऐसे खाद्य पदार्थ खायें जिनमें थायमिन अधिक होता है जैसे कि संपूर्ण अन्न (गेहूं व चावल), दालें (मटर, फलियां), दूध व अंडा ।
2. अगर ये सब खाना संभव नहीं है तो रोगी को थायमिन की गोलियां खानी पड़ेंगी ।
रतौंधी
यह आंखों की एक बीमारी है जो आम तौर पर दो से पांच वर्ष की आयु के बच्चों में सर्वाधिक होती है लेकिन वयस्कों में भी हो सकती है । यह विटामिन ‘ए’ की कमी के कारण होती है और गहरे पीले व गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियों, फलों व अन्य ऐसे खाद्य पदार्थों के पर्याप्त मात्रा में सेवन न करने के कारण होती है जिनमें विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रा में पाया जाता है । अगर लक्षणों की जल्दी पहचान करके समय पर इसका उपचार न कराया जाए तो अंधापन भी हो सकता है ।
लक्षण :
1. सबसे पहले, रतौंधी से पीड़ित महिला, कम रोशनी या हल्के अंधेरे में (जैसे कि शाम के समय), अन्य लोगों की तरह अच्छी तरह से नहीं देख पाती है ।
2. अगर उसे उपचार न मिले तो उसकी आंखों में सूखापन होने लगता है । आंखों के सफ़ेद हिस्से में सामान्य चमक कम होने लगती है और वहां सिलवटें पड़ने लगती है ।
3. आंखों में “बिटाट स्पॉट्स” बन जाते हैं । कोर्निया (पुतली के ऊपर पारदर्शी भाग) में सूखापन आने लगता है और वहां सूक्ष्म गड्ढे बनने लगते हैं ।
4. तत्पश्चात कोर्निया नरम होकर या तो जगह जगह से उभरने लगता है या वह फट भी सकता है । इस क्रिया में आंख में कोई दर्द नहीं होता है । संक्रमण, कोर्निया में सफेदी बनने या अन्य समस्या से अंधापन हो सकता है ।
उपचार व रोकथाम :
1. भोजन में गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियां (जैसे कि पलक, मेथी आदि) तथा पीले या लाल फल व सब्जियां (जैसे की गाजर, पपीता, आम आदि) जरुर खायें ।
2. दूध, अंडा, जिगर, व गुर्दे भी विटामिन ‘ए’ के अच्छे स्त्रोत हैं । इनके खाने से भी विटामिन ‘ए’ की कमी की रोकथाम होती है।
3.अगर आप किसी कारण से उपर बताये गए खाद्य पदार्थ खाने में असमर्थ हैं तो आपको विटामिन ‘ए’ के कैप्सूल लेने होंगे ।
जो महिला ठीक से भोजन खाती है, उसे सारे विटामिन प्राप्त हो जाते हैं । विटामिनों की गोलियां, इंजेक्शन, शर्बत या टॉनिक लेने से बेहतर है कि ठीक से भोजन खाया जाए ।
कभी-कभी पौष्टिक भोजन आसानी से उपलब्ध नहीं होता है । अगर कोई महिला पहले से ही कुपोषित है तो उसे यथासंभव मात्रा में भोजन खाना चाहिए और साथ में विटामिन की गोलियां भी खानी चाहिए । विटामिन की गोलियां, सुईयों की तुलना में, उतनी असरदार परंतु अधिक सस्ती व हानिकारक होती है । विटामिन की सुईयां कभी न लें । उन्हें खाने ही बेहतर है – हो सके तो पौष्टिक भोजन के रूप में ।
अत्यधिक मात्रा में या गलत तरह का भोजन खाने से होने वाली समस्याएं
अगर कोई महिला बहुत अधिक खाती है या चिकनाई का अधिक सेवन करती है तो उसका वजन अधिक हो जाता है । ऐसे में उसे उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, मधुमेह, लकवा, पित्त की बीमारी या कुछ प्रकार के कैंसरों के होने का खतरा अधिक बढ़ जाता है । अधिक शारीरिक वजन से टांगों व पैरों में गठिया रोग ( आर्थराइटिस) भी हो सकता है ।
जिन लोगों का वजन अधिक है उन्हें व्यायाम करके और भोजन पर नियंत्रण करके वजन कम करना चाहिए । उन्हें भोजन में मीठे व चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों के स्थान पर सब्जियां व फल अधिक मात्रा में लेने चाहिए । यहां हम भोजन में चिकनाई की मात्रा कम करने के कुछ सुझाव दे रहें हैं :
1. भोजन पकाने में कम से कम घी, तेल, मक्खन का प्रयोग करे । इनके स्थान पर भोजन को शोरबे व पानी में पकाने की आदत डालें ।
2. मांस पकाने से पहले उसमें से चर्बी हटा दें । मुर्गे का खाल न खायें ।
3. बाजार में उपलब्ध चिप्स, बर्गर, पिज्जा आदि खाद्य पदार्थ न खाएं क्योंकि इनमें चिकनाई अधिक मात्रा में होती है ।
मधुमेह
मधुमेह के रोगियों के रक्त में बहुत अधिक ग्लूकोज ( एक प्रकार का शक्कर) होती है । यह रोग आम तौर पर अधिक गंभीर तब होता है जब यह 10 वर्ष की आयु से पहले शुरू हो जाए (“जुवेनाइल मधुमेह”) । लेकिन यह 40 वर्ष से अधिक और अधिक वजन के लोगों में सर्वाधिक पाया जाता है ।
शुरूआती लक्षण :
ये सब लक्षण अन्य बिमारियों के भी होते हैं। आप मधुमेह की उपस्थिति का पता स्वयं भी मूत्र परीक्षण करके कर सकते हैं । इसके लिए विशेष कागज़ की पत्तियां, जैसे कि युरिस्टिकस (बाजार में आसानी से उपलब्ध), प्रयोग करें । शक्करयुक्त मूत्र में डुबोने से इनका रंग बदल जाता है। अगर ये पतीयां उपलब्ध नहीं हैं तो शक्कर के लिए मूत्र परीक्षण के लिए स्वास्थ्यकर्मी से संपर्क करें ।
उपचार :
यदि आपको मधुमेह है और आपकी आयु 40 वर्ष से कम हैं तो जहां संभव हो, आपका उपचार किसी स्वास्थ्यकर्मी द्वार ही होना चाहिए । यदि आप 40 वर्ष से अधिक आयु की हैं तो आप आपने आहार में कुछ परिवर्तन करके अपनी मधुमेह का नियंत्रण कर सकती हैं :
1. थोड़ी मात्रा में, ज्यादा बार भोजन खाईए । इससे रक्त में शक्कर का समान स्तर बनाये रखने में सहायता मिलती है ।
2. अधिक मात्रा में मीठे भोजन खाने से परहेज करें ।
3. यदि आपका वजन अधिक है तो इसे कम करें ।
4. अधिक चिकनाई वाले पदार्थों ( जैसे की मक्खन, घी व तेल ) का कम प्रयोग करें बशर्तें कि आपको पर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की परेशानी नहीं है ।
5. आपको मधुमेह के उपचार की दवाइयों की आवश्यकता भी पड़ सकती है ।
अगर संभव हो तो किसी स्वास्थ्यकर्मी से नियमित रूप से सलाह-मशवरा ले ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके कि आपका स्वास्थ्य बद्तर नहीं हो रहा है ।
संक्रमणों की रोकथाम तथा त्वचा को छोटे से बचाने के लिए भोजन के पश्चात आने दांत साफ करें, अपनी तवचा की सफाई रखें, तथा पैरों को चोटों से बचाने के लिए हमेशा जूते पहनें । दिन में एक बार अपने हाथों व पैरों का निरिक्षण अवश्य करें और देखें कि उन पर कोई जख्म आदि तो नहीं हैं । यदि कोई फुंसी या जख्म आदि है और उनमें संक्रमण के लक्षण ( सूजन, लाली या अधिक तापमान) हैं तो परंतु किसी स्वास्थ्यकर्मी से मिलें ।
जहां संभव हो, अपने पैरों को उठाकर उपर रखकर आराम करें । अगर पैरों को लटकाए रखने से उनका रंग थोडा गहरा और संवेदना में कमी हो जाती है तो यह और ही आवश्यक है । इसका यह अर्थ है कि आपके पैरों में रक्त का प्रवाह उचित नहीं है ।
भारत में मधुमेह के उपचार में काम आने वाले कुछ पारम्परिक उपचार
1. जामुन फलों को सुखाकर उन्हें बारीक पाउडर के रूप में पीस लें । अब किसी छोटे बर्तन में दो चम्मच पाउडर लेकर उस पर गर्म पानी डालिए । इसे अच्छी तरह मिलाईए । इस मिश्रण को छानकर उससे प्राप्त पानी को भोजन के पश्चात पीजिए । ऐसा कम से कम एक वर्ष तक करें ।
2. दो चम्मच भर मेथी के दाने लेकर उन्हें रात भर थोड़े से पानी में भिगोएं । सुबह उठकर खाली पेट रहते हुए उन्हें खाएं । यह भी कम से कम एक वर्ष तक करें ।
3. करेले का रस पिएं कम से कम एक वर्ष तक, आधा गिलास रस खाली पेट लें ।
4. “पेरिविंकल” पौधा लें । इस पौधे को जड़ सहित थोड़े से पानी में उबाल लें । कुछ भी खाए बिना इस पानी को पिएं ।
5. छुईमुई का पूरा पौधा लें । इसे अच्छी प्रकार धो लें अरु बारीक़ पीस कर चावल के साथ पकाएं । प्रतिदिन इसका सेवन करें ।
अन्य स्वास्थ्य समस्याएं को कुपोषण के कारण हो/बद्तर हो सकती है, वे हैं –
जब खाद्य पदार्थों में निम्न गुणवत्ता वाले अन्य पर्दार्थों को खाद्य पदार्थों की मात्रा बढाने के लिए मिलाया जाता है तो इसे खाद्य पदार्थों में मिलावट कहा जाता है । हानिकारक तत्वों की उपस्थिति से खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता काफी ख़राब हो जाती है और ये स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहंचा सकते हैं । मिलावट करके खाद्य पदार्थों के पोषक तत्वों को भी उनमें से निकाला जा सकता है । अज्ञानता व भंडारण की उचित व्ययस्था न होने के कारण भी, अनजाने में खाद्य पदार्थों में वितरण आदि में मिलावट हो सकती है । जानबूझ कर अधिक मुनाफा कमाने के लिए की गई मिलावट उपभोक्ताओं के साथ धोखा है और अनैतिक है ।
स्वास्थ्य पर परिणाम
मिलावट, विशेषकर रसायनों द्वारा, के दुष्परिणामों में मामूली से पेट में गड़बड़ी से लेकर कैंसर होना तक शामिल है । ये शरीर के आंतरिक अंगों जैसे कि गुर्दे, दिल, व जिगर पर प्रभाव डाल कर अनके बिमारियां पैदा कर सकते हैं । स्तनों, अंडाशय व जिगर में रसौली, एनीमिया, गर्भपात, लकवा, मंदबुद्धिपन, आंखों, हड्डियों, तवचा व फेफड़ों में असामान्यता आदि के पीछे मिलावट को मुख्य रूप से दोषी माना जाता है । गंभीर मामलों खाद्य पदार्थों में मिलावट से मृत्यु भी हो जाती है ।
मिलावट में प्रकार
मिलावट में अनके तरीके हैं । कुछ अधिक प्रचलित तरीकों में ये शामिल हैं : दूध में पानी मिलाना, चाय की पत्तियों में लौह का बुरादा मिलाना व अन्य रोजमर्रा उपयोग की वस्तुओं में बारीक़ रेट, स्टार्च, फल, चॉक पाउडर, या पत्थर के टुकड़े मिलाना । खाद्य पदार्थों में रासायनिक पदार्थ व कीटनाशक दवाईयां भी मिलाई जा सकती है । ऐसा करना घातक हो सकता है । चूँकि भारतीय मसाले काफी महंगे होते हैं इसलिए उनमें मिलावट की संभावना अधिक होती है । मिलावट के अति गंभीर तरीकों में जानवरों व पौधों में ऐसे रसायनों की सुईयां लगाना भी शामिल हो गया है जिनसे पैदावार अधिक मिलती है। यह स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक है ।
दैनिक उपभोग की वस्तुओं में की जाने वाली कुछ मिलावटें
खाद्य पदार्थ सामान्य मिलावट
जीरा – अन्य वैसे ही दिखने वाले बीज
कालीमिर्च – पपीते से सूखे बीज
हिंग – रेत, चॉक या मिलते-जुलते बीज
हल्दी – रेत, धुल, कोलतार, रंग या सीसा
कॉफी पाउडर- इमली की भूसी, अन्य पदार्थ
धनिया पाउडर- रेत, बुरादा, स्टार्च पाउडर
दुग्ध उत्पाद – अधिक नमी मिलाना, जानवरों की चर्बी, कोलतार, रंग, यूरिया
खाने का तेल- सस्ते तेल, रंग, खनिज तेल
आटा/मैदा – रेत, धुल, अधिक चोकर, स्टार्च , चॉक पाउडर
सरसों के बीज – सत्यानाशी के बीज जो विषैले होते हैं, ख़राब व कीड़े लगे हुए बीज
उपभोक्ताओं को सलाह
खाद्य पदार्थों की शुद्धता की जांच करवाने के लिए उपभोताओं स्थानीय खाद्य परीक्षण प्रयोगशाल में जा सकते हैं । इसके अतिरिक्त घर पर ही ऐसी जांच करने के लिए भी बेसिक किट उपलब्ध है ।
खरीदते समय पैकेट के लेबल को ध्यान से पढ़ें । उस पर लिखी निर्माण तिथि व समाप्ति (एक्सपाईरी ) तिथि अवश्य देखें । केवल अधिकृत बिक्रेताओं से ही समान खरीदें और खरीद के सबूत के रूप में बिल या कैशमेमो जरूर लें ।
भोजन पकाते व परोसते समय आस-पास का वातावरण साफ रखें । भोजन को हाथ लगाने से पहले पानी व साबुन से भली भांति हाथ अवश्य धो लें। रसोईघर को साफ रखें। अन्न, सब्जियों, फलों व अंडों का प्रयोग करने व भंडारण से पहले चलते पानी में अच्छी तरह से धो लें ।
अगर संभव हो तो भोजन को 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर भंडारण करें । भोजन की मक्खियों, कीड़ों व चूहों आदि से रक्षा करें । भोजन पकाने के लिए साफ पानी का प्रयोग करें ।
“खाद्य पदार्थों में मिलावट की रोकथाम, 1954” भारत में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता के विषय में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए बनाया गया सबसे महत्वपूर्ण कानून है । यह विभिन्न खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता के लिए मानदंड निर्धारित करता है। 1986 में इसमें कई संसोधन किये गए व इसे और भी व्यापक बना दिया गया है ।
यह कानून खाद्य पदर्थों का निरिक्षण करने वाले अधिकारीयों को खाद्य पदार्थों के परीक्षण, निरिक्षण व दोषी पाया जाने पर क़ानूनी कार्यवाही करने के व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
तदापि, जैसी आजकल स्थिति है, यह अकसर देखा गया है कि इस कानून को ठीक से लागू नहीं किया जाता है। फलस्वरूप, गंभीर अपराध करने वाले व्यापारी भी दंड से बचने व अपने खतरनाक धंधे को चालू रखने में सफल हो जाते हैं। अधिकतर लोगों को भी मिलावट का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावों ज्ञान नहीं है। इसलिए यह आवश्यक हैं उपभोक्ता, विशेषकर महिलाएं सामान खरीदते समय सावधान रहें, गुणवत्ता वाली चीजों की मांग करें, और जन स्वास्थ्य के हित में, अनैतिक व हानिकारक विक्रय प्रथाओं के विरुद्ध कड़ा रुख अपनायें।
अच्छे पोषण के लिए कार्य करने कर तरीके
कुपोषण की समस्या के कई कारण हिं और इसलिए इसे निपटने के भी कई तरीके हैं। आप और आपके समुदाय को सभी संभव उपायों पर विचार करना चाहिए और फिर तय करना चाहिए कि कौन से तरीके सर्वोतम है।
नीचे पोषण में सुधार लाने के कुछ उदाहरण दिए गए हैं। ये सुझाव आपको अधिक मात्रा में खाद्य पदार्थ उगाने या विभिन्न तरह के खाद्य पदार्थ उत्पादित करने तथा भोजन को ख़राब होने से बचाने में सहायक हो सकते हैं । इनमें से कुछ आपको जल्दी अच्छे परिणाम दे सकते हैं जबकि कुछ थोड़े समय के बाद प्रभावी होंगे।
पोषण में सुधार लाने के कुछ तरीके
फसलों को क्रमश: उगाना :
खेती के हर मौसम में कुछ ऐसी फसलें (जैसे कि फलियां, मटर, मूंगफली) अवश्य लगाईए जो जमीन को शक्तिशाली बनती है। आप ऐसी फसलें भी लगा सकते हैं जिसमें, खोल के अंदर होते हैं
विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने का प्रयत्न करें। ऐसा करने से यह फायदा होगा कि अगर एक प्रकार की फसल ख़राब भी हो गई तो फिर भी कुछ न कुछ तो खाने के लिए होगा।
उन्हीं खाद्य पदार्थों का चयन करने जो सुरक्षा की दृष्टि से प्रससंस्कृत किये गए हों
यह सही है कि फल व सब्जियों जैसे अनके खाद्य पदार्थ अपने प्राकृतिक रूप में ही सर्वोतम होते हैं, फिर भी अनके खाद्य पदार्थ ऐसे भी हैं जो बिना प्रससंस्करण किये सरक्षित नहीं होते हैं । उदाहरण के लिए, कच्चे दूध के स्थान पर केवल प्रससंस्कृत किया हुआ दूध ही खरीदें । कुछ खाद्य पदार्थों जैसे की खीरा, को खाने से पहले अच्छी प्रकार धोना आवश्यक है ।
भोजन पूरी तरह से पकाएं
मीट, मुर्गी उतपाद और बिना पाश्चारिकृत किया हुआ दूध जैसे अनके खाद्य पदार्थ अपने कच्चे रूप में बिमारियां पैदा करने वाले कीटाणुओं से प्रदूषित होते हैं। ऐसे पदार्थों को पूरी तरह से पकाने से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। लेकिन ध्यान रखिए कि खाद्य पदार्थ के हर भाग का तापमान कम से कम 70 डिग्री सेल्सियस तक अवश्य पहुंचे। अगर पके हुए मुर्गे (चिकन) का हड्डियों के पास का हिस्सा अभी भी कच्चा है तो उसे फिर से तब तक पकायें जब तक हर हिस्सा पक न जाये। जमे हुए मांस, मछली व चिकन आदि को पकाने से पहले पूरी तरह से नर्म होने दें।
पके हुए भोजन को शीघ्र खा लें
जब पका हुआ भोजन कमरे के तापमान तक ठंडा हो जाता है तको उसमें कीटाणु फिर से पनपना शुरू हो जाते हैं। भोजन खाने में जितनी देर होगी, उतनी ही हानि होगी । सुरक्षित यही होगा कि पके हुए भोजन को गर्मा-गर्म ही खाया जाए।
पके हुए भोजन का सुरक्षित रूप से भंडारण करें
अगर आपको भोजन अग्रिम रूप से बनाना ही पड़े या आप बचे-खुचे भोजन को रखना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि या तो आप उन्हें गर्म तापमान (60 डिग्री सेल्सियस या अधिक) पर रखें या फिर ठंडे तापमान पर ( 10 डिग्री सेल्सियस या उससे कम)। यह नियम उस समय और भी महत्वपूर्ण हैं जब आप भोजन को 4-5 घंटे से अधिक समय तक रखना चाहती हैं । शिशुओं के लिए बनाया भुआ भोजन कभी भी संग्रहित नहीं करना चाहिए । एक आम आदिमी, जो भोजन द्वारा होने वाली अनके बिमारियों के लिए जिम्मेवार है, यह है कि गर्म खाने की बड़ी मात्रा को फ्रिज में रख दिया जाता है। अगर फ्रिज में क्षमता से अधिक सामान ठुंसा जाता है तो भोजन के अंदरूनी भाग तक ठंडक नहीं पहुंच पाती है। जब भोजन का अंदरूनी भाग 10 डिग्री सेल्सियस से अधिक समय तक रहता है तो कीटाणु बहुत तेजी से पनपते हैं और बीमारी पैदा करने वाले स्तर तक पहुंच जाते हैं ।
भोजन को संपूर्ण रूप से दुबारा गर्म करें
उन कीटाणुओं से अपनी सुरक्षा करने का यह एक अच्छा तरीका है जो भंडारण की अवस्था में भोजन में विकसति हो गए हों (ठीक से भंडारण करने की कीटाणुओं के पनपने की दर में तो कमी आती है परन्तु वे नष्ट नहीं होते हैं )। या फिर से बताने की आवश्यकता है कि दुबारा गर्म करते समय भी भोजन के हर भाग का तापमान लगभग 70 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक पहुंचना चाहिए ।
कच्चे खाद्य पदार्थों और पके हुए भोजन में संपर्क न होने दें
सुरक्षित रूप से पकाया हुआ भोजन अगर कच्चे खाद्य पदार्थों के मामूली से संपर्क में भी आ जाए तो वह दूषित हो सकता है । यह संपर्क सीधा हो सकता है जैसे कि मुर्गे का कच्चा मीट, पके हुए भोजन के संपर्क में आ जाए। या फिर यह संपर्क और भी परोक्ष हो सकता है (अर्थात् हमें इसका ज्यादा अहसास न हो )। उदाहरण के तौर पर लड़की के तख्ते पर तथा चाकू से, पके हुए मुर्गे के मीट को काटने से वह संक्रमित हो सकता है अगर थोड़ी देर पहले उसी चाकू से व उसी तख्ते पर मुर्गे के मीट को काटा गया था। ऐसे ही तरीकों से कीटाणु पके हुए भोजन में प्रवेश कर जाते हैं।
हाथों को बार बार धोएं
भोजन पकाना शरू करने से पहले अपने हाथों को साबुन व पानी से अच्छी तरह धोयें। तत्पश्चात बीच में किसी भी कारण आको कोई अन्य कार्य, जैसे कि शौचालय जाना, करना पड़े तो फिर से हाथ धोएं। कच्चे मीट, मछली व मुर्गे आदि को हाथ लगाने के बाद, अन्य पदार्थों को हाथ लगाने से पहले फिर से हाथ धोएं। और अगर आपके हाथ में कोई संक्रमण है (फोड़ा, फुंसी, चोट आदि) तो भोजन पकाना शुरू करने से पहले इस पर पट्टी बांध लें। यह भी ध्यान रखें कि घर के पालतू जानवरों के शरीर पर भी अनके सूक्ष्म कीटाणु होते हैं और ये आपके हाथों के माध्यम से, आपके पके हुए भोजन में प्रवेश कर सकते हैं।
रसोईघर को एकदम स्वच्छ रखें
चूँकि खाद्य पदार्थ बहुत जल्दी व आसानी से संक्रमित हो जाते हैं इसलिए यह आवश्यक है कि खाना पकाने वाली सतह को एकदम साफ-सुथरा रखा जाए। खाद्य पदार्थों के हर व्यर्थ टुकड़े व रसोईघर के हर स्थान को कीटाणुओं का गहर मानें । ऐसे कपड़े जो पके हुए भोजन या बर्तनों के संपर्क में आते हैं उन्हें हर रोज बदलें, उन्हें अच्छी तरह से धोकर, धुप में सुखा कर प्रयोग करें । फर्श को साफ करने के लिए इस्तेमाल होने वाले कपड़ों को अलग रखें तथा उन्हें भी समय-समय पर धोएं ।
भोजन को मक्खियों, कीड़ों व चूहों आदि से बचाकर रखें।
स्वच्छ जल का प्रयोग करें
स्वच्छ जल भोजन पकाने के लिए भी उनता ही महत्वपूर्ण है जितना कि पीने के लिए। अगर आपको पानी की गुणवत्ता पर जरा भी शक है तो उसे उबालकर भी भोजन में डालें या फ्रिज में बर्फ बनाने के लिए प्रयोग करें । छोटे बच्चों व शिशुओं के लिए बनाए जाने वाले भोजन में इस्तेमाल होने वाले पानी के बारे में तो अरु भी ध्यान रखें ।
नये विचार अपनायें
हो सकता है इस अध्याय में दिए गए सभी सुझाव आपके क्षेत्र में लागू नहीं हो पायें। शायद इनमें से कुछ-आपके समुदाय व उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप ढालने पर काम करें। लेकिन कोई उपाय काम करेगा या नहीं, यह आप केवल उसको आजमाने की कोशिश करने के बाद ही जान पाएंगे।
जब आप कोई नया विचार आजमायें तो उसे छोटे पैमाने पर ही शुरू करें । यदि आप ऐसा करती हिं और यह विचार सफल रहता है तो लोगों को इसका विश्वास हो जाएगा और वे इसे बड़े पैमाने पर आजमाएंगे ।
यहां पर हम एक नये विचार को अपनाने के प्रयोग के बारे में एक उदाहरण दे रहे हैं :
आपको पता चलता है कि कुछ किस्म की फलियां– जैसे कि सोयाबीन-शरीर निर्माण के लिए बहुत अच्छी होती है । लेकिन क्या यह आपके क्षेत्र में उगेगी ? और अगर वह उग भी सकती है तो क्या लोग इसे खाएंगे ?
आप शुरुआत करें जमीन के एक छोटे टुकड़े पर या 2 या 3 छोटे छोटे दुकड़ों पर विभिन्न वातावरणीय परिस्थितियों में इसकी पौधें लगाकर (उदाहरण तया विभिन्न किस्म को मिट्टियों या पानी की विभिन्न मात्रा में सिंचाई करके)। अगर ये फलियां भली भांति उगती हैं तो इन्हें विभिन्न प्रकार से पकाकर यह देखें कि लोग इन्हें पसंद करते हैं या नहीं । अगर लोगों को ये पसंद आती है तो बड़े पैमाने पर उसे अनुकूल परिस्थितियों में उगायें। आप इनकी खेती करते समय यह भी आजमा सकती है ( जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों में उग रही खेती पर प्रयोग करके) कि कौन सी खाद या किस प्रकार का बीज सर्वोतम उपज देते हैं । प्रयोग करके आप यह भी पता कर सकती है कि किस चीज से अधिक उपज मिलती है और किस से कोई अंतर नहीं पड़ता है ।
प्रयोग करने के लिए कुछ अन्य विचार
1. जमीन के एक टुकड़े से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए, एक साथ विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने की कोशिश करें । उदाहरण के तौर पर, ऐसे पौधे की फसल जो जमीन के साथ-साथ बढ़ती है ( जैसे की मूंगफली), ऐसे पौधों की फसल के साथ लगाई जा सकती है जी लम्बाई में बढ़ती है । इन दोनों प्रकार की फसलों के साथ, फल वाले पेड़ भी लगाए जा सकते हैं जोक बहुत उंचाई तक जाते हैं । बढ़ने के लिए कम समय लेने वाले पौधों को ऐसे पौधों के साथ लगया जा सकता है जो बढ़ने में अधिक समय लेते हैं। ऐसे में, दूसरी फसल को काटा जा सकता है।
2. अगर आपको नगदी वाली फसल (जैसे की गन्ना ) लगानी है तो इनके साथ खाद्य पदार्थों की फसल (उड़द,मुंग,मुन्फाली) आदि भी लगायें। इन खाद्य पदार्थों की फसलों में से कुछ भाग घर में प्रयोग के लिए रखा जाना चाहिए ।
3. ऐसे पौष्टिक खाद्य पदार्थों वाले पौधे लगाईए जो स्थानीय परिस्थितियों में ठीक से बढ़ते हैं और जिन्हें खाद व पानी कम चाहिए ।
जमीन व लोगों के बीच संतुलन बनाने के लिए कार्यरत
अधिकांश भोजन जमीन से ही प्राप्त होता है। जमीन के बेहतर प्रयोग से अधिक भोजन उपलब्ध हो सकता है। लेकिन सर्वोत्तम ढंग से उपयोग किये जाने वाले जमीन के टुकड़े से भी सीमित मात्रा में केवल कुछ लोगों को ही भोजन मिल सकता है। और आज स्थिति यह है कि जो लोग खेतों पर काम करते हैं, उनके पास अपनी आवश्यकताएं पूरी करने व स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त जमीन नहीं है ।
एक तरफ अनके निर्धन परिवारों के लिए अधिक बच्चे पैदा करना एक आर्थिक मजबूरी है क्योंकि समाज में आर्थिक सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। चूँकि परिवार की सहायता करने के लिय वे जो काम करते हैं, वे उससे कहीं अधिक पैसा बनाते हैं जीतन 10-12 वर्ष की आयु तक परिवार ने उनके उपर खर्च किया हो । अधिक बच्चे होने का यह भी अर्थ है कि मां-बाप को बुढ़ापे में किसी का सहारा मिलने की संभावना बढ़ जाती है ।
दूसरी ओर, इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि लोग छोटा परिवार रखें ताकि परिवार के सभी सदस्यों को बेहतर भोजन व जीवन मिल सके । इससे बच्चे के ऊपर भी भार काम होगा और वे शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे ।
जमीन व प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) की सहभागिता के प्रयासों से खाद्य पदार्थों व भोजन की मात्रा में गुणवत्ता सुधारने में बहुत सहायता मिलेगी। न्यायोचित आय तथा बेहतर कार्य परिस्थितियों से मजदूरों को स्वयं व अपने परिवारों का बेहतर ध्यान रखने में मदद मिलेगी और वे अधिक उत्पादन करने में अधिक समर्थ होंगे ।
स्रोत: स्वास्थ्य विभाग, विहाई, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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