অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

राष्ट्रीय आयुष मिशन : औषधीय पादपों हेतु प्रचालनात्मक दिशानिर्देश

राष्ट्रीय आयुष मिशन : औषधीय पादपों हेतु प्रचालनात्मक दिशानिर्देश

  1. प्रस्तावना
  2. आवश्यकता एवं औचित्य
  3. राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड
  4. राष्ट्रीय आयुष मिशन की केंद्रीय प्रायोजित स्कीम के अधीन औषधीय पादपों का विकास एवं कृषि
  5. राज्यों में संघटक को लागू करने के लिए एजेंसी का चयन
  6. अन्य स्कीमों के साथ अनुबंध
  7. औषधीय पादपों की सहायक कृषि
  8. आदर्श पौधशालाएं
  9. लघु पौधशालाएं
  10. औषधीय पादप प्रसंस्करण और विपणन सहित फसलोंपरांत प्रबंधन हेतु सहायता
  11. सहायता के लिए देय संघटक
  12. गुणवत्ता परीक्षण, प्रमाणन और बीमा
  13. पात्रता
  14. वित्तीय सहायता का तरीका
  15. संस्थानिक कार्यनीति
  16. प्रस्तावों की तैयारी एवं प्रस्तुति
  17. अनुवीक्षण व मूल्यांकन
  18. राज्य मिशनों द्वारा परामर्श और अनुवीक्षण
  19. तृतीय पक्ष अनुवीक्षण
  20. केन्द्रिक अनुवीक्षण और परामर्श देने हेतु अन्य उपाय

प्रस्तावना

औषधीय पादप हमारे देश की स्वास्थ्य परिचर्या परम्पराओं का मुख्य संसाधन आधार हैं। आयुष पद्धति की ओर बढ़ना और उसे स्वीकार करना, राष्ट्रीय स्तर पर और वैश्विक स्तर भी, इस बात पर निर्भर करता है कि औषधीय पादपों पर आधारित गुणवत्तायुक्त कच्ची सामग्री निरंतर उपलब्ध राहे। व्यापार में 90% से अधिक प्रजातियां आज भी वनों से प्राप्त होती हैं जिन्नके लगभग 2/3 भाग की प्राप्ति उन्मूलनात्मक साधनों से की जाती है।

इसलिए औषधीय पादपों की कृषि उच्चतर आय के अवसर प्रदान करने, खेती में विविधता लाने और निर्यात में वृद्धि करने के अतिरिक्त आयुष उद्योग की कच्ची सामग्री की मांग को पूरा करने की कुंजी है। औषधीय पादपों और जड़ी-बूटीयों का भारतीय निर्यात अधिकांशतः कच्ची जड़ी-बूटियों और अकों के रूप में होता है जो इस समय की जड़ी-बूटियों/आयुष उत्पादों के निर्यात का लगभग 60-70% है। मूल्य वर्धित मदों के निर्यात को उत्पाद विकास, प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना, गुणवत्ता आश्वासन और ब्रांड संवर्धन की आवश्यकता है। वनों से असंधारणीय संग्रहण की बढ़ती चिंता, एक ओर कुछ प्रजातियों का विलोप और दूसरी ओर गुणवत्ता एवं मानकीकरण की चिंताओं ने यह अनिवार्य बना दिया है कि उपयुक्त वित्तीय प्रोत्साहनों, नीति और सहक्रियात्मक ढंग से अवसंरचनात्मक एवं विपणन सहायता के माध्यम से आयुष चिकित्सा पद्धतियों के लिए अनिवार्य प्रजातियों की कृषि को बढ़ावा दिया जाए।

आवश्यकता एवं औचित्य

आयुष के 95% से अधिक उत्पाद पादप आधारित होने के कारण इसकी कच्ची सामग्री के स्रोत को वनों से परिवर्तित कर कृषि आधारित करने की जरूरत है ताकि यह लम्बे समय तक चलता रहे। 22 विश्व व्यापार को भारी धातुओं तथा अन्य विषैली अशुद्धियों से मुक्त, मानक फाइटोरसायनों से युक्त और प्रमाणित जैविक या बेहतर कृषि अभ्यास (जी.ए.पी.) की पूर्ति करने वाले उत्पादों की आवश्यकता है। यह केवल कृषि मार्ग के माध्यम से ही संभव है जहां उसकी अभिरक्षा व्यवस्था की श्रृंखला को बनाए रखना संभव है। 2.3 विश्व के हर्बल व्यापार में भारत का अंश लगभग 17% है। यहां भी हर्बल उत्पाठों का निर्यात प्राय- कच्ची जड़ी-बूटियों के रूप में ही है क्योंकि निर्यात टोकरी का 2/3 भाग कच्ची सामग्री और अकों से भरा है। 120 बिलियन अमरीकी डालर के हर्बल बाजार को देखते हुये इसे बदलने की आवश्यकता है। यही कारण है कि इस योजना में उन चयनित पौधों, जिनकी आयुष उदयोगों में तथा निर्यात के लिये मांग है, के मूल्य संवर्धन और संसाधन से जुड़ी समुदाय (क्लस्टर) कृषि के लिये सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।

राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड

राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की स्थापना केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में 24 नवम्बर 2000 को अधिसूचित राजकीय संकल्प के माध्यम से की गयी थी। इस बोर्ड की स्थापना का उद्देश्य किसी ऐसी एजेन्सी की स्थापना करना था जो औषधीय पादपों  के समन्वय से संबंधित सभी मामलों के साथ इस क्षेत्र के प्रोत्साहन एवं विकास के उद्देश्य से नीतियों का निर्धारण एवं कच्चे माल के संरक्षण, उचित पैदावार, लागत प्रभावी कृषि, अनुसंधान एवं विकास, प्रसंस्करण, विपणन की रणनीति तैयार करने के दायित्वों का निर्वहन कर सके। इसे अनिवार्य इसलिए माना गया क्योंकि एक विषय के रूप में औषधीय पादपों का संबंध पर्यावरण एवं वन, कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और वाणिज्य जैसे विभिन्न मंत्रालयों/विभागों से रहता है इसलिये यह बोर्ड सामान्यत- औषधीय पादपों और विशेषत- निम्नलिखित क्षेत्रों के विकास के लिए अन्य मंत्रालयों/विभागों/संगठनों/राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों के साथ समन्वय का कार्य करता है--

i) देश एवं विदेश दोनों में औषधीय पादपों से संबंधित मांग/आपूर्ति का आंकलन।

ii) औषधीय पादपों के विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं से संबंधित नीतिगत विषयों पर संबंधित मंत्रालयों/विभागों/संगठनों/राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों को सलाह देना ।

iii) कृषि हेतु भूमि एवं औषधीय पौधों के संग्रहण, भण्डारण, परिवहन के लिए अवसंरचना वाली एजेंसियों के दवारा प्रस्तावों, स्कीमों एवं कार्यक्रमों को तैयार करने के लिये मार्गदर्शन देना।

iv) औषधीय पौधों की पहचान, सूचीबद्ध करना तथा उनकी गणना करना।

v) औषधीय पौधों के बाहय स्थलीय एवं अंत-स्थलीय कृषि एवं संरक्षण को प्रोत्साहित करना।

vi) संग्राहकों एवं उत्पादकों के मध्य सहकारिता को प्रोत्साहित करना तथा उन्हें उनके उत्पादों के प्रभावी तौर पर भण्डारण,परिवहन एवं विपणन हेतु सहायता करना।

vii) औषधीय पौधों की सांख्यिकीय आधार सामग्री की स्थापना, सूचीकरण, सूचनाप्रसारण और सार्वजनिक क्षेत्र के पादपों के औषधीय प्रयोग हेतु प्राप्त किए जाने वाले पादपों के पेटेंट को रोकने में सहायता करना।

viii) कच्चे माल के साथ-साथ मूल्य वर्द्धित उत्पादों, चाहे वे औषधियों, खाद्य-पूरकों अथवा हर्बल सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री के रूप में हों, देश व विदेश में उनकी गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता संबंधी ख्याति में वृद्धि के लिए उत्पादों की बेहतर विपणन तकनीक को अपना लेने सहित उनके आयात/निर्यात संबंधी मामले।

ix) वैज्ञानिक, तकनीकी अनुसंधान एवं लागत-प्रभावी अध्ययन करना और सौंपना।

x) कृषि एवं गुणवत्ता नियंत्रण के लिए संलेखों का विकास।

xi)पेटेंट अधिकारों एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण को प्रोत्साहित करना।

मंत्रिमंडल सचिवालय के का.ज्ञा.सं.सीसीईए/23/2008 (I) के अंतर्गत सम्प्रेषित आर्थिक मामलों पर

मंत्रिमंडल समिति के अनुमोदन के अनुसार बोर्ड का गठन निम्नानुसार है--

क) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री – अध्यक्ष

ख) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री - उपाध्यक्ष

ग) आयुष, पर्यावरण एवं वन, वैज्ञानिक एवं औदयोगिक अनुसंधान, जैव-प्रादयोगिकी, विज्ञान एवं प्रौदयोगिकी, वाणिजय, औदयोगिक नीति एवं संवर्धन, व्यय, कृषि एवं सहकारिता, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा, जनजातीय मामले, पर्यटन, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालयों/विभागों के सचिव।

घ) चिकित्सा नृजातीय वनस्पति, भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के फार्मास्युटिकल उद्योग, विपणन एवं व्यापार और विधिक मामलों एवं पेटेंटों के क्षेत्र में विशेषज्ञता  प्राप्त चार नामित सदस्य। ड.) भारतीय चिकित्सा पद्धतियों एवं होम्योपैथी की औषधियों के निर्यातकों, औषधीय पादपों के संबंध में जागरुकता पैदा करने और उनकी उपलब्धता बढ़ाने के लिए उत्तरदायी गैर-सरकारी संगठनों, औषधीय पादपों  को उगाने वालों, औषधीय पादपों  के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास करने वाले वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले चार नामित सदस्य।

च) औषधीय पादपों से संबंधित परिसंघों/सहकारी समितियों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो नामित सदस्य।

छ) आयुष विभाग की अनुसंधान परिषदों का एक सदस्य, भारतीय चिकित्सा भेषजसंहिता प्रयोगशाला, गाजियाबाद का एक सदस्य और राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो सदस्य (हर दो वर्ष में बारी-बारी से)।

ज) संयुक्त सचिव, भारत सरकार स्तर का मुख्य कार्यपालक अधिकारी सदस्य-सचिव के रूप में।

10वीं योजना के दौरान राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) ने “औषधीय पादप बोर्ड की स्थापना' की एक केंद्रीय क्षेत्रक स्कीम का कार्यान्वयन किया। तथापि, 11वीं योजना के दौरान इस केंद्रीय क्षेत्रक स्कीम में संशोधन किया गया ताकि संसाधनों की वृद्धि, आंतरिक संरक्षण, अनुसंधान एवं विकास, दुर्लभ एवं संकटापन्न प्रजातियों के बाहयसंरक्षण, मूल्य वर्धन, माल गोदाम बनाने के लिए संयुक्त वन प्रबंधन समिति को सहायता, क्षमता निर्माण तथा अच्छे संग्रहण एवं संधारणीय फसल अभ्यासों जैसे संवर्धनात्मक कार्यकलापों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सके। इस स्कीम का नाम तथा उसे 32130 करोड़ रुपये की 11वीं योजना के परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया। वाणिज्यिक कृषि संबंधी संघटक को संशोधन पूर्व की केंद्रीय क्षेत्रक स्कीम में से निकाल लिया गया और उससे एक नई स्कीम बनाई गई जिसमें कृषि को फसल से पूर्व और पश्चात के कार्यकलापों के साथ मिलाने का प्रयास किया गया अर्थात गुणवत्तायुक्त पादप रोपण सामग्री के लिए पौधशालाओं का विकास, एएसयू उदयोग जरूरत की प्रजातियों की कृषि, फसलोपरांत प्रबंधन हेतु सहायता, विपणन, विपणन अवसंरचना का सुधार, जैव/जीएपी प्रमाणन, गुणवत्ता आश्वासन एवं फसल बीमा। इन संघटकों को राष्ट्रीय औषध पादप मिशन की नई केंद्रीय प्रायोजित स्कीम में शामिल किया गया जो 11वीं योजना के लिए 630.00 करोड़ रुपये के परिव्यय सहित वर्ष 2008-09 के दौरान मंजूर की गई।

स्कीम के कार्यान्वयन के दौरान हुए अनुभवों और तृतीय पक्ष के स्वतंत्र मूल्यांकन से प्राप्त अनुभवों के आधार पर इस स्कीम को 12वीं योजना में भी चालू रखा गया है।

राष्ट्रीय आयुष मिशन की केंद्रीय प्रायोजित स्कीम के अधीन औषधीय पादपों का विकास एवं कृषि

इस संघटक को राष्ट्रीय आयुष मिशन के अधीन, 12वीं योजना के दौरान कार्यान्वयन हेतु 822 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया है। पूर्वोत्तर और पहाड़ी राजयों में केंद्र सरकार का अंशदान 100% होगा जबकि अन्य राज्यों में केंद्र सरकार का अंशदान 90:10 होगा।

उद्देश्य

  1. औषधीय पादप जो आयुष चिकित्सा पद्धतियों की अखंडता, गुणवत्ता, प्रभावोत्पादकता और सुरक्षा की कुंजी हैं, उन्हें कृषि प्रणालियों में शामिल करके, उनकी कृषि को बढ़ावा देना जिससे कृषि किसानों को फसल विविधता का एक विकल्प मिलेगा और उनकी आमदनी बढ़ेगी।
  2. मानकीकरण तथा गुणवत्ता आश्वासन को बढ़ावा देने के लिए अच्छी कृषि एवं संग्रहण अभ्यासों (जीएसीपी) का अनुकरण करते हुए कृषि करना जिससे आयुष पद्धतियों की वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता में वृद्धि होगी और जड़ी-बूटीय अर्कों, फाइटो-रासायनिकों, आहार पूरकों, सौन्दर्य प्रसाधनों और आयुष उत्पादों जैसी मूल्य वर्धित वस्तुओं के निर्यात में बढ़ोत्तरी होगी।
  3. कृषि अभिसरण, भंडारण, मूल्यवर्धन एवं विपणन के माध्यम से प्रसंस्करण समूहों की स्थापना को सहायता देना और उदयमियों के लिए अवसंरचना का विकास ताकि ऐसे समूहों में एकक सथापित की जा सकें।
  4. गुणवत्ता मानकों, अच्छे कृषि अभ्यासों (जीएपी), अच्छे संग्रहण अभ्यासों (सीसीपी) और अच्छे भंडारण अभ्यासों (सीएसपी) के लिए प्रमाणन क्रियाविधि को लागू करना तथा उसका समर्थन करना।
  5. राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, राजयीय और उप राजयीय स्तर पर सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास, प्रसंस्करण तथा विपणन में जुटे हुए पणधारियों के बीच भागीदारी, अभिसरण और सहक्रिया को बढ़ावा देना।

 

कार्यनीति

  1. उत्पादन, फसलोपरांत प्रबंधन, प्रसंस्करण और विपणन शामिल करके सम्पूर्ण दृष्टिकोण को अपनाना। औषधीय पादपों की कृषि की संभावना वाले राज्यों के चुनिन्दा जिलों में चिहिनत समूहों में औषधीय पादपों की कृषि को बढ़ावा देकर ही इसे प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार की कृषि को बढ़ावा देने के लिए गुणवत्तायुक्त पौध-रोपण सामग्री का उत्पादन एवं आपूर्ति, प्रसंस्करण, गुणवत्ता परीक्षण, प्रमाणन, भंडारण और आयुष उदयोग की मांगों को पूरा करने तथा मूल्यवर्धित वस्तुओं के निर्यात हेतु सहक्रियात्मक अनुबंध के माध्यम से अच्छे कृषि एवं संग्रहण अभ्यासों (सीएसीपी) को अपनाना आवश्यक है।
  2. औषधीय पादपों को इस प्रकार बढ़ावा देना कि वह कृषकों के लिए फसल का एक विकल्प बन जाएं। औषधीय पादपों की बढ़ी हुई फसल तथा प्रसस्करण, विपणन तथा परीक्षण हेतु अनुबंधों से फसल उत्पादकों/कृषकों को पारिश्रमिक मूल्य मिलेंगे। इससे वन संग्रहण के कारण जंगलों पर बढ़ता दबाव भी कम होगा।
  3. प्रिंट और इलैक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से संचार को अपनी कार्यनीति के एक सुदृढ़ संघटक के रूप में अपनाना ताकि फसल से पूर्व और उसके पश्चात के उपयुक्त अनुबंधों के माध्यम से गुणवत्ता तथा मानकीकरण पर जोर देते हुए कृषि/उदयानिकी प्रणालियों में औषधीय पादपों के एकीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। स्व-सहायता दलों, पादप उगाने वाली सहकारिताओं/एसोसिएशनों/उत्पादक कंपनियों और अन्य रखते हैं, के माध्यम से समूहों में कृषि और प्रसंस्करण के सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देना और उनको समर्थन देना।

कार्यान्वयन ढांचा

कार्यान्वयन ढांचे में यथावर्णित। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय स्तर के सांस्थानिक ढांचे में निम्नलिखित भी शामिल होंगे-

तकनीकी छानबीन समिति (टीएससी)

सचिव (आयुष) को तकनीकी छानबीन समिति का गठन करने और इस संघटक के अंतर्गत विभिन्न कार्यकलापों के अधीन प्राप्त कार्य योजना/परियोजना प्रस्तावों की संवीक्षा के लिए अध्यक्ष नामित करने का अधिकार होगा। इस समिति में संगत क्षेत्रों के विशेषज्ञ तथा निम्नलिखित संगठनों/मंत्रालयों में से एक या अधिक प्रतिनिधि शामिल होंगे -

क) राष्ट्रीय उदयानिकी बोर्ड के प्रतिनिधि

ख) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रतिनिधि

ग)वैज्ञानिक एवं औदयोगिक अनुसंधान परिषद के प्रतिनिधि

घ) आयुष विभाग के प्रतिनिधि

ड.) सचिव, पूर्वोत्तर परिषद, शिलांग के प्रतिनिधि

च) सचिव, आयुष दवारा नामांकित राष्ट्रीय विशेषज्ञों के 2 प्रतिनिधि

छ) राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के प्रतिनिधि - सदस्य सचिव

राज्यों में संघटक को लागू करने के लिए एजेंसी का चयन

राज्य उदयानिकी मिशन के निदेशक को राज्य सरकार राज्य कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नामित कर सकती है। जो राज्य राष्ट्रीय उदयानिकी मिशन के तहत नहीं आते उनकी राज्य सरकारें राज्य कृषि विभाग को नोडल विभाग के रूप में कार्यान्वयन हेतु नामित कर सकती हैं। निधियां आयुष सोसायटियों के माध्यम से निर्मुक्त की जाएंगी ताकि परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु निधियां समय से मिलती रहें। एक विकल्प यह भी है कि राज्य सरकारें राज्य औषधीय पादप  बोर्ड (एसएमपीबी) को कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में चुन सकती हैं। ऐसी स्थिति में निधियां राज्य आयुष सोसायटी के माध्यम से राज्य औषधीय पादप बोर्डों को दी जाएंगी। राज्य इस संघटक को लागू करने के लिए राज्य में उपलब्ध सबसे दक्ष और प्रभावशाली एजेंसी का चयन करेगा।

यदि राज्य सरकार दवारा राज्य उदयानिकी मिशन को राज्य कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नामित कर दिया जाता है तो वह इस संघटक का कार्यान्वयन कृषि, आयुष, उद्योग विभाग और एसएमपीबी के समन्वय से करेगा और उसे एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत करना होगा। इसे निधियां प्राप्त करने और संघटक को लागू करने के लिए कार्यात्मक स्वायतता भी होनी चाहिए।

जिला स्तर पर एजेंसियों की पहचान करने और समूहों की पहचान करने तथा पादप उगाने वालों को एसएचजी/सहकारिताओं/ एसोसिएशनों तथा उत्पादक कंपनियों को संगठित करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं को भी पूर्णतया शामिल किया जाएगा। कार्यान्वयन एजेंसी राज्य आयुष सोसायटी अथवा राज्य दवारा निश्चित किए गए किसी अन्य उपयुक्त तंत्र के माध्यम से कार्य करेंगी।

राज्य स्तर पर एक तकनीकी छानबीन समिति भी होगी जिसमें प्रस्तावों का मूल्यांकन करने के लिए क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञ भी होंगे। प्रसंस्करण, भंडारण, विपणन इत्यादि के लिए राज्यों के पास उपयुक्त मॉडल अर्थात सहकारिताएं, परिसंघ, वन विकास निगम, संयुक्त क्षेत्र कंपनियां को अपनाने का विकल्प होगा। जहां भी संभव हो, कृषि हेतु समूहों की पहचान के लिए राज्य उदयानिकी मिशन के साथ अनुबंध विकसित किया जाएगा और फसलोपरांत प्रबंध सुविधाओं यथा मालगोदाम, विपणन यार्ड, सुखाने के शेड, परीक्षण प्रयोगशाला और प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना हेतू अवसंरचना का विकास किया जाएगा।

राज्य स्तर की कार्यान्वयन एजेंसी के कार्य निम्नलिखित होंगे-

  1. राज्य स्तर पर "तकनीकी सहायता ग्रुप" से तकनीकी सहायता प्राप्त करके परिदृश्य और वार्षिक कार्ययोजना बनाना जिसमें राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, सुविधा केंद्रों, आईसीएआर, आईसीएफआरई, सीएसआईआर संस्थाओं और उस क्षेत्र के अन्य विशेषज्ञ इसके कार्यान्वयन को देखेंगे।
  2. कार्यकलापों को चालू रखने, उसका उपयुक्त हिसाब रखने और संबंधित एजेंसियों को उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए राज्य सरकार से निधियां प्राप्त करना।
  3. विभिन्न समूहों के लिए उत्तरदायी एसएचजी, पादप उगाने वालों की सहकारिताओं, पादप उगाने वालों की एसोसिएशनों, उत्पादक कंपनियों जैसे कार्यान्वयन संगठनों को निधियां निर्मुक्त करना और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का निरीक्षण, अनुवीक्षण और पुनरीक्षण करना।
  4. औषधीय पादपों की स्थिति का निश्चय करने के लिए विभिन्न भागों (जिला, उप जिला, अथवा जिलों के ग्रुप) में आधार-रेखा सर्वेक्षण और व्यवहार्यता अध्ययनों का आयोजन करना,इसकी संभाव्यता और मांग का पता लगाना और तदनुकूल सहायता प्रदान करना। इसी प्रकार के अध्ययन अन्य कार्यक्रमों के अन्य संघटकों हेतु भी चलाए जाएंगे।
  5. कृषकों, सोसाइटियों, गैर-सरकारी संगठनों, पादप उगाने वालों, एसोसिएशनों, स्व-सहायता दलों, राज्य संस्थाओं और ऐसी ही अन्य संस्थाओं के माध्यम से औषधीय पादपों को उगाने हेतु अनुकूल कृषि जलवायु के संदर्भ में चुने गए विभिन्न समूहों में इस संघटक के कार्यान्वयन में सहायता करना और निरीक्षण करना। राज्य कार्यान्वयन एजेंसी पादप उगाने वालों को स्व-सहायता दल/सहकारिताएं/परिसंघ, उत्पादक कंपनियां बनाने हेतु प्रेरित करने के लिए भी उत्तरदायी होगी। इन जमीनी स्तर के संगठनों को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध होगी जिसमें प्रशिक्षण और एनीमेटर्स इत्यादि जैसे अन्य आकस्मिक खर्च आदि भी शामिल होंगे।
  6. राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और आईसीएआर/आईसीएफआरई/सीएसआईआर संस्थाओं और तकनीकी विशेषज्ञता प्राप्त अन्य संगठनों में स्थापित सुविधा केंद्रों की सहायता से राज्य स्तर के सभी इच्छुक दलों/एसोसिएशनों के लिए कार्यशालाओं, संगोष्ठियों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना।

जिन राज्यों में कार्यान्वयन उदयानिकी विभाग के माध्यम से किया जाता है, उनमें जिले स्तर पर इस संघटक का समन्वय राष्ट्रीय उदयानिकी मिशन की जिला मिशन समिति (डीएमसी) दवारा किया जाएगा। यदि कृषि विभाग के माध्यम से कार्यान्वयन किया जाता हो तो जिला मिशन निदेशालय को एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया जाएगा जिसमें उप निदेशक (कृषि)/जिला कृषि अधिकारी उसका अध्यक्ष होगा। जिला मिशन समिति (डीएमसी) परियोजना के निरूपण और अनुवीक्षण हेतु उत्तरदायी होगी। डीएमसी में संबंधित विभागों, पादप उगाने वालों की एसोसिएशनों, विपणन बोर्डों, उदयोगों, विभागों, स्व-सहायता दलों (एसएचबी) और अन्य गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि इसके सदस्यों के रूप में होंगे। जिला योजना समिति और पंचायती राज संस्थाओं को राज्य सरकारों की पसंद और विवेकानुसार इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन में एकीकृत/सम्मिलित किया जाएगा।

राज्य कार्यान्वयन एजेंसी प्रस्तावों को जिला स्तरीय कार्यान्वयन एजेंसी के माध्यम से भेजने की आवश्यकता को पूरा किए बिना भी ख्याति प्राप्त गैर सरकारी संगठनों, सहकारिताओं, राज्य सरकार उपक्रमों, पादप उगाने वालों की एसोसिएशनों, उत्पादक कंपनियों, स्व-सहायता दलों को सीधे शामिल करके चुनिंदा समूहों में इस स्कीम को लागू करने पर भी विचार कर सकती है। ऐसे मामले में विभिन्न संगठनों/समूहों की रिपोर्ट राज्य कार्य योजना में समेकित की जाएगी और एनएमपीबी के विचारार्थ प्रस्तुत की जाएगी। कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसियों (एटीएमए) जैसे संगठनों को चुनिंदा समूहों में जिला और निम्नतर स्तर पर योजना, कार्यान्वयन और अनुवीक्षण में शामिल किया जा सकता है। ऐसे मामलों में निधियां भी जिला स्तर एजेंसी के माध्यम से भेजे बिना सीधे समूह स्तर की कार्यान्वयन एजेंसियों को निर्मुक्त की जा सकती हैं।

इस संघटक के अधीन समूह/अंचल स्तर पर मुख्य कार्यकलापों को लागू करने के लिए सांस्थानिक और विपणन इस कार्यक्रम के अधीन आने वाले राज्य में विद्यमान संगठनों/संस्थानों के अनुसार भिन्न-भिन्न होंगे। विभिन्न समूहों में कृषि, प्रसंस्करण, विपणन, गुणवत्ता आश्वासन और प्रमाणन संबंधी सभी कार्यकलापों को राज्य स्तर पर समेकित किया जाएगा ताकि मिशन कार्यकलापों के बीच बेहतर सहक्रिया रहे। राज्य सरकारें मिशन के उद्देश्यों को समग्र रूप में आगे ले जाने के लिए अपने मॉडल चुनने, वर्तमान संस्थाओं का सृजन करने अथवा उन्हें दिशा देने के लिए स्वतंत्र हैं।

अन्य स्कीमों के साथ अनुबंध

यदयपि इस स्कीम में वे सभी कार्यकलाप आते हैं जिनकी सहायता औषधीय पादप पर आधारित कृषि व्यापार को पूर्णत- सफल बनाने के लिए आवश्यक होती है, फिर भी कुछ संघटक ऐसे हो सकते हैं जिनका सामंजस्य अनन्य मंत्रालयों/विभागों तथा राज्य सरकारों की अन्य स्कीमों के साथ स्थापित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, सूक्ष्म सिंचाई, उर्वरकों का प्रयोग, सिंचाई तालाबों का निर्माण, संदर्शी प्लॉटों की स्थापना जैसे कुछ संघटक जो इस स्कीम का हिस्सा नहीं हैं, उन्हें संबंधित मंत्रालयों/विभागों की स्कीमों के अनुरूप बनाया जा सकता है। इससे फसल के पूर्व औरपश्चात के प्रबंधन कार्यकलापों के साथ कृषि का संपूर्ण अभिसरण सुनिश्चित होगा।

उपचार

औषधीय पादपों की सहायक कृषि

  1. देश में औषधीय पौधों की कृषि समाप्त नहीं हुई है, यहां तक कि वनों से कच्चे माल की उपलब्धता सस्ती दरों पर है और वनों में उपलब्धता पर इसका हानि युक्त प्रभाव है। कृषि को आकर्षक बनाने के लिए आवश्यक है कि दोनों तकनीकी एवं वित्तीय प्रयासों को समर्थन दिया जाए। दसवीं पंचवर्षीय योजना में अनुदान सहायता से कृषि समर्थन का कार्यक्रम कार्यान्वित किया गया है। यद्यपि कार्यक्रम के साधारणतः परिणाम संरक्षण योग्य अनेक प्रजातियों की कृषि, आयुष उद्योग की उच्च मांग तथा वनों से एकत्र की जाने वाली आयुष औषधियों के लिए उत्साहवर्धक रहे हैं। यह योजना आयुष चिकित्सा पद्धति में संकटमय मोड़ पर अधिक से अधिक प्रजातियों की कृषि के लिए समर्थित होनी चाहिए। यह भी प्रस्तावित है कि विभिन्न औषधीय पौधों के लिए उपलब्ध अनुदान सहायता में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि आयुष पद्धति की आवश्यकता के अनुरूप कृषि योग्य प्रजातियों एवं उनके संरक्षण से संबंधित मामलों में सीधी अनुदान सहायता प्रदान की जा सके।
  2. औषधीय पादपों के लिए प्रसंस्करण सुविधाओं और उपलब्ध बाजार के साथ सुविधाजनक तरीके से कृषि को प्रस्तावित किया जाए। यह भी प्रस्तावित किया जाता है कि राज्य शासन के दवारा औषधीय पौधों के उत्पादन से संबद्ध व्यक्ति, स्व-सहायता समूह, सहकारी समितियों के माध्यम से समूहों की पहचान की जाए। औषधीय पादपों के उत्पादक लघु एवं सीमांत कृषकों को स्वःसहायता समूहों एवं सहकारी समितियों में नियोजित कर यह सुनिश्चित करेंगे कि लघु एवं सीमांत कृषक औषधीय पादपों की कृषि कर रहे हैं, जो कि वर्तमान में वे करने में असमर्थ हैं। उत्पादकों के सहकारी संस्थानों/संघों को सक्रिय करने तथा अन्तत- राज्य कार्य योजना में समेकित की जाने वाली समूह विशेष की परियोजना रिपोर्टो/व्यवसाय योजनाओं को तैयार करने के लिए राज्य कार्यान्वयन एजेंसी को परियोजनाओं के आधार पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
  3. कृषि के लिए योजना में रोपण सामग्री/बीज प्राप्त करने का स्रोत भी स्पष्ट रूप से अंकित किया जाना होगा। योजना के अंतर्गत सहायता राशिी की अर्हता उन्हीं उत्पादकों को होगी जो कि केवल पहचान किये हुए बीज स्रोत या प्रमाणित रोपण सामग्री प्रदाय करने वाली रोपणियों से करेंगे। राज्य को प्रत्येक समूह के लिए एक व्यापार योजना/परियोजना रिपोर्ट की रूपरेखा बनाने का प्रयास करना चाहिए। राज्य के लिए बनी कार्ययोजना में उनकी क्षमता, अवसंरचना, उपलब्ध और विकसित की जा रही प्रजाति, उनके स्थान के विवरण के साथ अच्छी गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री के लिए संगठनों की सूची (सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र में) शामिल होनी चाहिए। रोपण सामग्री की उपलब्धता के लिए योजना की रूपरेखा तैयार करते समय राज्यों को विभिन्न विभागों (अर्थात उदयानिकी, कृषि, वन विभाग, आयुष/पारंपरिक चिकित्सा हेतु राज्य निदेशालय, राज्य कृषि विश्वविद्यालय, केवीके और सीएसआईआर, आईसीएआर, आईसीएफआरई इत्यादि की केन्द्रीय सुविधाओं) की पौधशाला सुविधाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि कुछ रोपण सामग्री राज्य से बाहर से प्राप्त की जानी प्रस्तावित हो तो उसका उल्लेख स्पष्ट रूप से किया जाना चाहिए। वार्षिक कार्ययोजनाओं में औषधीय पादपों के जीन पूल/सर्वश्रेष्ठ रोपण सामग्री/क्लोनल और पौध बीज फलोदयानों/बाड़ा उदयानों/जीन बैंक बनाने के लिए विशेष प्रावधान भी शामिल किए जा सकते हैं। इस प्रकार के प्रस्ताव संबंधित राज्य विभागों/और राज्य तथा केन्द्र सरकारों के अनुसंधान एवं विस्तार खण्ड संगठनों से लिए जाएंगे। इन प्रस्तावों को वार्षिक कार्य योजना में विशिष्ट संघटकों के रूप में शामिल किया जाना चाहिए जिनमें संक्रिया से संबद्ध आवर्तता और उसकी समय-सीमा का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए और उनके परिणाम भी दिए जाने चाहिए। सर्वश्रेष्ठ जर्मप्लाज्म अनुरक्षण के लिए संघटक और उसका मूल्यांकन केवल एक बार के प्रस्ताव के लिए तदर्थ नहीं हो सकता और इसलिए राज्य दवारा बनाई गई भावी योजना का हिस्सा हो सकता है तथा दो योजनावधियों के अंदर परिवर्तनशील प्रकृति का हो सकता है। तथापि, यह समझ लेना जरूरी है कि इस संघटक में केवल ऐसे संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए जिनमें ऐसा कार्यकलाप उनके मूल अधिदेश का एक अभिन्न अंग हो ताकि वे लंबे समय में केवल अपने संसाधनों से ही इस प्रकार की पहलों को बनाए रख सकें।
  4. यह कृषि ऐसे क्षेत्रों में करना प्रस्तावित है जहां प्रसंस्करण समूह स्थापित किए जाएंगे और ऐसे अन्य क्षेत्रों में भी जहां कृषि के लिए ऐसे समूहों की पहचान की जाती है जिनके निर्माताओं और विपणन के साथ उपयुक्त अनुबंध हों। इन्हें भी पादप उगाने वालों, एसएचवीजी और औषधीय पादप उगाने वालों की सहकारी समितियों, उत्पादक कंपनियों और कार्पोरटों के माध्यम से कृषि हेतु सहायता दी जाएगी।
  5. वह प्रजाति जिसके लिए कृषि लागत के 20% की दर से सहायिकी दी गई थी वह अब 30% हो जाएगी और वे प्रजातियां जिनको 11वीं योजना के दौरान कृषि लागत के 50% अथवा 75% तक की रेंज में सहायिकी देय थी, वह जारी रहेगी। तथापि, मंहगाई के दबाव के कारण कृषि लागत में हुई वृद्धि की पूर्ति के लिए सहायिकी की गणना हेतु बनाए गए मूल लागत के मानदंड वही रहेंगे जो इस प्रजाति के लिए 11वीं योजना में दी गई व्यवस्था के अनुसार बने रहेंगे, केवल उनके लागत मानदंडों में प्रत्येक आगामी वर्ष की कार्य योजना लिए 10% की वृद्धि की जाएगी बशर्ते कि एसएफसी की सहमति मिल जाए। इस कार्यक्रम को राज्यों के लिए और प्रभावशाली तथा आवश्यकता जनित बनाने की दृष्टि से इसके परिधि और कार्यक्षेत्र में और अधिक सुधार करने हेतु औषधीय गुणों वाले औषधीय और सुगन्धित पादपों को इस स्कीम के अधीन 30%, 50% और 75% की सहायिकी समर्थन श्रेणियों में रखा जा सकता है। ब्यौरा संलग्नक-I में देखा जा सकता है। तथापि, इस स्कीम के अधीन सहायिकी समर्थन हेतु नई प्रजातियां स्थाई वित्त समिति (एसएफसी) के विधिवत अनुमोदन के पश्चात ही शामिल की जाएगी। समिति अपना अनुमोदन देने से पूर्व औचित्य और प्रदत्त लागत मानदंडों पर ध्यानपूर्वक विचार करेगी। एक बार प्रजातियों को शामिल करने का निर्णय ले लिए जाने पर एसएफसी आगामी वर्षों के लिए लागत मानदंडों में 10% वृद्धि पर विचार कर सकती है बशर्तें पिछले वित्तीय वर्ष में राज्यों को प्रजातियों के विकास के निमित्त दी गई निधियां अप्रयुक्त न रखी गई हों। ऐसा होने पर कृषकों को महंगाई की मार से बचने के लिए परिवर्धित समर्थन देने पर विचार करना पूर्णतया संबंधित राज्य का दायित्व होगा। यह राज्यों में दोनों प्रयोजनों अर्थात 11वीं योजना के दौरान कृषि हेतु पहले से शामिल की गई प्रजातियों की कृषि अथवा 12वीं योजना के दौरान शामिल की जाने वाली नई प्रजातियों की कृषि हेतु निधियों के उपयोग के लिए एक प्रोत्साहन का कार्य करेगा। यदि यह पता चले कि इस प्रजाति की कृषि को और समर्थन देने की आवश्यकता नहीं है अथवा इसकी कृषि विशेष कारकों के कारण सफल नहीं है तो एसएफसी वित्तीय सहायता हेतु पहले से सम्मिलित किसी प्रजाति को छोड़ भी सकती है।

गुणवत्तायुक्त पादप रोपण सामग्री की आपूर्ति हेतु बीज/जर्मपलाज्म केन्द्रों तथा पौधशालाओं की स्थापना

  1. औषधीय पादपों की कृषि और इस प्रकार की कृषि से होने वाली पैदावार मुख्यत- प्रयुक्त पादप रोपण सामग्री की गुणवत्ता पर निर्भर होती है। तथापि, आज तक वाणिज्यिक पैमाने पर गुणवत्तायुक्त जर्मप्लाज्म प्रदान करने और गुणवत्तायुक्त पादपरोपण सामग्री का उत्पाद करने का कोई तरीका नहीं है।
  2. कृषि हेतु अग्रताप्राप्त औषधीय पादप प्रजातियों के प्रमाणित जर्मप्लाज्म के भंडारण और आपूर्ति के लिए राज्य वन विभागों/अनुसंधान संगठनों/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के अनुसंधान खण्डों के साथ बीज केन्द्रों को स्थापित करने का प्रस्ताव है। गैर-सरकारी संगठनों और कोर्पेरेटों के माध्यम से बीजों के उत्पादन और आपूर्ति को भी अनुमति दी जाएगी बशर्तें उनकी गुणवत्ता किसी प्रत्यायित प्रमाणन एजेंसी के माध्यम से की जा सके। तथापि, ऐसे केन्द्र आईसीएआर संस्थाओं में स्थापित नहीं किए जाएंगे क्योंकि इन संस्थाओं में उनकी अपनी योजनाओं के अधीन इस प्रकार के संघटक हेतु प्रावधान होता है जिसका उपयोग औषधीय पादपों से संबंधित जर्मप्लाज्म के भंडारण हेतु किया जा सकता है।

आदर्श पौधशालाएं

  1. कृषि हेतु गुणवत्तायुक्त पादप रोपण सामग्री की मांग को पूरा करने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के अधीन नई पौधशालाओं के लिए सहायता दी जाएगी। तथापि, निजी क्षेत्र में पौधशालाओं की स्थापना पर्याप्त तथा ऐसी प्रायोगिक परियोजनाओं को शुरू करने हेतु कार्य नीति बनाने के बाद ही की जाएगी। आदर्श पौधशालाओं की अवसंरचना में निम्नलिखित बातें शामिल होंगी-
  • मौसम की प्रतिकूल स्थितियों से बचाने के लिए मदर स्टॉक्स ब्लॉक का अनुरक्षण।
  • जालीदार गृह दशाओं के अंतर्गत मूल स्टाक पौध तैयार करना।
  • हवादार घरों का प्रसारण करना जिनकी साइडों में कीट-पतंगों को रोकने की जाली लगी हो और कोहरे एवं छिड़काव की प्रणाली से सिंचाई की व्यवस्था हो।
  • कीट-पतंगों को रोकने वाले ऐसे जालीदार गृहों का कठोरीकरण/अनुरक्षण जिनमें से प्रकाश गुजर सके और छिड़काव की प्रणाली से सिंचाई की व्यवस्था हो।
  • पर्याप्त सिंचाई करने तथा जल भंडारण की व्यवस्था करने के लिए पम्प हाउस।
  1. एक आदर्श पौधशाला में औसतन 4 हैक्टेयर का क्षेत्र होना चाहिए और प्रति एकांश 25 लाख रुपए की लागत आएगी। निजी क्षेत्र/स्व-सहायता दलों के अधीन स्थापित की जाने वाली आदर्श पौधशालाएं 100% सहायता की पात्र होंगी जो अधिकतम प्रति एकांश 25 लाख रुपए हो सकती है। आदर्श पौधशालाएं 2-3 लाख पौधे पैदा करेंगी जो इस बात पर निर्भर करेगा कि कितनी लागत लगाई गई है और पौध को रोपण योग्य बनाने में कितना समय लगेगा। रोपण सामग्री की गुणवत्ता सुनिश्चित करना पौधशालाओं का दायित्व होगा। निजी क्षेत्र में स्थापित आदर्श पौधशालाओं के लिए सहायता लागत की 50% होगी बशर्त वह प्रति एकांश अधिकतम 12.50 लाख रुपए हो। यह सहायता सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के माध्यम से दी जाएगी।

लघु पौधशालाएं

  1. लगभग एक हेक्टेयर क्षेत्र वाली लघु पौधशालाओं के पास अवसंरचना सुविधाएं ऐसी होंगी जिनमें 60,000 से 70,000 तक पौधे आ जाएं। ये पादप लगभग 9-12 महीनों के लिए रखे जाएंगे। लघु पौधशाला की अवसंरचना में एक जालीदार गृह होगा। उस जालीदार गृह में छिड़काव के माध्यम से सिंचाई का साधन दिया जाएगा। डिब्बों की आकस्मिक आवश्यकता को पूरा करने/छोटे से बड़े डिब्बों में स्थानान्तरित करने के लिए इन पौधशालाओं में मिट्टी को सूर्य प्रकाश के माध्यम से रोगाणुहीन करने का भी प्रावधान होगा।
  2. लघु पौधशालाओं में प्रति एकांश 6.25 लाख रुपए की लागत आएगी। सार्वजनिक क्षेत्रों/स्व-सहायता दलों के लिए यह सहायता 100% होगी और निजी क्षेत्र में यह लागत 50% होगी किंतु अधिकतम राशि 3.125 लाख तक ही रहेगी जो सार्वजनिक क्षेत्रों के माध्यम से दी जाएगी। ये लघु पौधाशालाएं प्रतिवर्ष कम से कम 60,000 पौंध उगाएंगी।
  3. पौध रोपण सामग्री की गुणवत्ता सुनिश्चित करना पौधशालाओं की जिम्मेदारी होगी।निजी

पौधशालाएं जो प्रारंभ में प्रायोगिक आधार पर होंगी, को स्व-प्रत्यायन की ओर बढ़ने हेतु भी प्रोत्साहित किया जाएगा। ये पौधशालाएं विविध फसलों अथवा किसी विशेष फसल के लिए हो सकती हैं जो उस क्षेत्र/परियोजना क्षेत्र में पौध सामग्री की मांग पर आश्रित है। इसलिए कार्य योजना में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए कि किस प्रकार की पौधशाला की स्थापना का प्रस्ताव है। इस कार्य योजना में वर्तमान पौधशालाओं का मूल्यांकन, उपजाई जाने वाली पौधों की फसलवार संख्या और पौधशालाओं की अतिरिक्त मांग भी दी जानी चाहिए।

औषधीय पादप प्रसंस्करण और विपणन सहित फसलोंपरांत प्रबंधन हेतु सहायता

अनुमान लगाया गया है कि निर्माताओं के पास पहुंचने वाली 30% कच्ची सामग्री घटिया किस्म की होती है इसलिए इसे अस्वीकार कर दिया जाता है। अतः औषधीय पादपों की कृषि के लिए मालगोदाम बनाने, सुखाने, ग्रेडिंग करने, भंडारण करने और यातायात करने हेतु अवसंरचना की सहायता दिए जाने की जरूरत है। ये सुविधाएं औषधीय पादपों की विपणन क्षमता बढ़ाने, उत्पादों का मूल्य बढ़ाने, लाभ बढ़ाने और हानियों को कम करने के लिए अनिवार्य हैं। एपीईडीए ने केरल और उत्तराखण्ड राज्यों में औषधीय और सुगंधित पादपों के लिए कृषि निर्यात आंचल (एईजैड) स्थापित किए हैं। इन राज्यों में औषधीय पादपों पर एईजेड के कार्यान्वयन से हुए अनुभव के आधार पर यह स्कीम देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित उन चिन्हित समूहों/आंचलों में प्रसंस्करण तथा फसलोपरांत प्रबंधन हेतु अवसंरचना को सहायता देने का प्रयास करती है जो विपणन की अवसंरचना/व्यापर के केंद्रों से सुसंपन्न हैं तथा औषधीय पादपों की कृषि परंपरा को कृषि विकल्प के रूप में रखते हैं और प्रौदयोगिकी प्रसारण एवं क्षमता निर्माण के लिए जिनके पास अनुसंधान एवं विकास संस्थाएं/एएसयू हैं। जबकि एपीईडीए दवारा कार्यान्वित की जाने वाली एईजैड स्कीमों का मुख्य केंद्रबिंदु निर्यात पर है किंतु वर्तमान स्कीम का प्रयास है कि कृषि किए गए/एकत्रित किए गए औषधीय पादपों का मूल्यवर्धन किया जाए और आयुष उद्योग की बृहद घरेलू मांग को पूरा किया जाए। इसके अतिरिक्त, जड़ी-बूदीय/आयुष उत्पादों के निर्यात में मूल्यवर्धित मदों के हिस्से में वृद्धि करने की दृष्टि से निर्यात विपणन वाली प्रजातियों को भी शामिल किया जाएगा। निर्यात के लिए लक्षित की गई प्रजातियों को अंतिम रूप उनके निर्यात विपणन का मूल्यांकन करने के बाद ही दिया जाए। समूहों में स्थित एकांश भौगोलिक रूप में एक दूसरे के निकटस्थ होने चाहिए ताकि समूह के सभी सदस्य साझी सुविधाओं का उपयोग सुगमता से कर सकें। सृजित की जाने वाली सुविधाओं का हिस्सा सभी पणधारियों दवारा प्राप्त किया जाएगा और अन्य भुगतान के आधार पर प्राप्त करने के लिए मुक्त हैं। फसलोपरांत अवसंरचना में सृजित की जाने वाली सुविधाओं की संदर्शी सूची निम्नलिखित है-

क. सुखाने के यार्ड

उत्पादों को स्वास्थ्यकर दशाओं में सुखाने के प्रारंभिक कार्य को पूरा करने के लिए सुखाने के यार्ड होते हैं। इसके अतिरिक्त, सुखाने और श्रेणीबद्ध करने की अवसंरचना जड़ी-बूटियों की उपयोगिता अवधि और बाजार मूल्य में वृद्धि करने के लिए एक ऐसा अनिवार्य कार्यकलाप है जिसे सुखाने से जोड़ा जाता है। चूंकि जड़ी-बूटियों को छाया में सुखाना पड़ता है, इसलिए सुखाने के ऐसे यार्ड बनाने की जरूरत है जिनमें छाया व जाली का प्रावधान हो या न्यून तापमान पर सुखाने की सुविधाएं हों।

ख. भंडारण गोदाम

भंडारण गोदामों में उत्पाद आस-पास के सुखाने के यार्डों से प्राप्त होने अपेक्षित होते हैं। ये भंडारण गोदाम सुखाने के यार्डों और प्रसंस्करण एकांशों के बीच कड़ी का काम करते हैं। भंडारण गोदाम पर्याप्त रूप से हवादार और अनुकूल जगहों पर होने चाहिएं। भंडार गोदाम और सुखाने के यार्ड इस तरह से बनाए जाने चाहिएं कि वे कृषि फार्मों से बहुत दूर न हों और कृषि के चिन्हित समूहों के अनुकूल हों।

ग. प्रसंस्करण एकांश

समूहों में उगाये जाने वाले औषधीय पादपों पर आधारित प्रसंस्करण एकांश स्थापित करने होंने जिनमें से कुछ तो पादप विशेष के लिए होंगे। ये प्रसंस्करण एकांश अधिमानत- विद्यमान औदयोगिक संपदाओं के अंदर ही स्थापित होने चाहिएं जिनमें बिजली, सड़क जाल और रेलवे स्टेशनों/समुद्री बंदरगाहों से संबंधित आवश्यक अवसंरचना होती है।

घ. कच्ची सामग्री का गुणवत्ता परीक्षण

कच्ची सामग्री और मूल्यवर्धित मर्दी का परीक्षण तथा घरेलू खपत एवं निर्यात हेतु उनका प्रमाणन वर्तमान प्रत्यायित प्रयोगशालाओं के माध्यम से किया जाएगा। यदि आंचल/समूहों में इस प्रकार की प्रयोगशालाएं नहीं हों तो नई प्रयोगशालाएं अधिमानत- पीपीपी मोड में स्थापित की जाएंगी।

ड. विपणन

इस संघटक के अंतर्गत सहायता प्रदान करने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं—

  • औषधीय पादपों के विपणन हेतु थोक बाजारों एवं कृषि मंडियों की अवसंरचना को सुदृढ़ करना।
  • जहां जड़ी-बूदी संग्रहण एवं खुदरा बाजार नहीं हैं, वहां उनकी स्थापना करना।
  • कृषकों और उद्योग/व्यापारियों के बीच संबंधों को सुदृढ़ करना।
  • विपणन, मूल्यों, विपणन रूड़ान पर सूचना का प्रसारण ताकि कृषक उपयुक्त औषधीय फसलों का चयन कर सके।

सहायता के लिए देय संघटक

सहायता के लिए देय संघटक निम्नलिखित हैं-

1 विपणन संवर्धन

मीडिया संवर्धन, प्रदर्शनियों में भागीदारी, व्यापार मेले, प्रदर्शन सुविधाओं को किराये पर लेने जैसे विपणन संवर्धन के कार्यक्रम परियोजना पर आधारित होते हैं किंतु प्रत्येक समूह के लिए 10 लाख रुपए तक सीमित होते हैं परंतु समूहों दवारा उत्पादित जड़ी-बूटियों/कच्ची सामग्री हेतु विपणन संवर्धन के अधीन 50% सहायता के पात्र होंगे।

2 विपणन आसूचना

कार्य योजना में उगाने वालों के लिए विपणन आसूचना के संग्रहण, समेकन और प्रसारण को भी शामिल किया जाना चाहिए। विपणन आसूचना से संबंधित कोई अन्य नवप्रवर्तनकारी कार्यकलाप भी इस संघटक केअधीन संगठित किया जाए। इस संघटक के लिए सहायता परियोजना पर आधारित होगी।

3 वापस खरीद हस्तक्षेप

स्कीम के इस संघटक के अधीन क्रेता-विक्रेता बैठकों के रूप में पुनः खरीद हस्तक्षेप, लचीले तथा नवप्रवर्तनकारी, विपणन व्यवस्थाओं, औषधीय पादपों के विपणन हेतु समूह स्तर पर परिक्रामी निधी का सूजन और स्व-सहायता दलों, सहकारिताओं, उत्पादक कंपनियों को प्रेरक सहायता दी जा सकती है। क्रेता और विक्रेता के बीच विपणन और सांस्थानिक अनुबंध को सुदृढ़ बनाने के लिए अन्य कोई कार्यकलाप भी इस संघटक में शामिल किया जा सकता है। यह सहायता परियोजना पर आधारित होगी। उपर्युक्त हस्तक्षेप एनएएम के अधीन लचीले कार्यकलापों के अंतर्गत प्रस्तावित किए जाएं।

4 विपणन अवसंरचना

इस संघटक के अधीन जिन जड़ी-बूदी संग्रहण एवं खुदरा बाजारों को ग्राम स्तर पर स्थापित किए जाने का प्रस्ताव है, उन्हें 20 लाख रुपए तक की सहायता दी जा सकती है। यह सहायता औषधीय पादपों के व्यापार हेतु गांवों में स्थित कृषि मंडियों में अवसंरचना के उन्नयन/सूजन हेतु भी उपलब्ध है। इसी प्रकार की सहायता औषधीय पादपों के व्यापार अवसंरचना उन्नयन एवं सृजन के लिए जिला/राज्य कृषि मंडियों को भी दी जाएगी। राज्य/जिला स्तर पर जड़ी-बूदी मंडियों की स्थापना हेतु भी सहायता उपलब्ध होगी। गांव निकायों/स्व-सहायता दलों/सहकारिताओं के माध्यम से संग्रहण और खुदरा बाजार हेतु वित्तीय सहायता का स्तर 20 लाख रुपए होगा और राज्य/जिला स्तर के संग्रहण एवं खुदरा बाजार हेतु अधिकतम 2 करोड़ रुपए तक होगा।

गुणवत्ता परीक्षण, प्रमाणन और बीमा

1)  गुणवत्ता परीक्षण

पादप उगाने वालों दवारा उत्पादित जड़ी-बूदी/औषधीय पादपों की गुणवत्ता का परीक्षण पारिश्रमिक मूल्य वसूलने की कुंजी होती है। यदि जड़ी-बूदीयां/औषधीय पादप आयुष/एनएबीएल प्रत्यायित प्रयोगशालाओं (लचीले कार्यकलापों के अधीन प्रस्तावित किए जाएं) में परीक्षित किए जाते हैं तो ये पादप उगाने वाले परीक्षण खचों के 50% के हकदार होंगे जिसकी अधिकतम सीमा 5 हजार रुपए होगी।

2)  प्रमाणन

जैव और जीएपी प्रमाणन औषधीय पादप/जड़ी-बूटियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की कुंजी है और वे कृषकों को उनके उत्पादों हेतु अच्छे मूल्यों के माध्यम से लाभ दिला सकते हैं और ग्राहकों को जड़ी-बूदी/आयुष उत्पादों की बेहतर गुणवत्ता के माध्यम से लाभ पहुंचा सकते हैं। प्रमाणन प्रभार दलों/समूहों में कृषि के 50 हेक्टेयर के लिए दल आधार पर 5 लाख रुपए की सीमा तक देय होंगे।

3)  फसलों का बीमा

कृषि के अंतर्गत औषधीय पादप एक नया कार्यकलाप हैं इसलिए कृषकों को सकल बीमा में शामिल करने की आवश्यकता है। यह संघटक किसी विशेष फसल के लिए लाभ के 50% भुगतान हेतु सहायता देने का प्रयास करता है। यह लाभ और स्कीम का विवरण कृषि बीमा निगम (लचीले कार्यकलापों के अंतर्गत प्रस्तावित किया जाए) की सलाह से तय किया जाएगा।

प्रत्येक समूह के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट/व्यापार योजना ऐसी परामर्शी फर्मों के माध्यम से कृषि हेतु तैयार की जाएगी जो इस क्षेत्र में मौलिक योग्यता रखती हों ताकि आयुष विभाग की अन्य स्कीमों और इस स्कीम के कार्यान्वयन से पूर्व अन्य मंत्रालयों की स्कीमों के बीच सहक्रिया स्थापित की जा सके। राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों को इस स्कीम के अधीन समर्थन हेतु चुने गए समूहों के लिए व्यापार योजनाएं/विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए परियोजना प्रबंध परामर्शदाताओं की नियुक्ति करने की अनुमति होगा अर्थात- आंचलों/समूहों से बाहर के क्षेत्रों में पैकिंग, शैडों, प्रसंस्करण एकांशों, परीक्षण प्रयोगशालाओं जैसी अवसंरचना सृजित करने हेतु समर्थन भी दिया जाएगा बशर्ते वे कृषि समूहों से संबंधित हों। नामित समूहों से बाहर के केवल उन्हीं एकांशों के लिए सहायता दी जाएगी जो सार्वजनिक क्षेत्र/कृषक समूहों/पंचायत/कृषक सहकारिताओं/उत्पादकों की कंपनी के होंगे। सभी परियोजनाएं उपयुक्त व्यापार योजना और विपणन सर्वेक्षणों के आधार पर उदयमियों दवारा संचालित होंगी। विभिन्न समूहों के लिए विस्तृत परियोजना/व्यापार योजना एनएमपीबी को प्रस्तुत की जाने वाली राज्य कार्य योजना में समेकित की जाएगी। राज्य कार्यान्वयन एजेंसी को भी परियोजना परामर्शदाता नियुक्त करने की अनुमति होगी।

पात्रता

  • पौधशाला

सरकारी संगठन (राज्य कृषि/वन/उदयानिकी विभाग) सरकारी अनुसंधान एवं विकास संस्था/एसएचजीआईसीएमआर, सीएसआईआर, आईसीएफआरई, डीबीदी, डीएसदी संस्थाएं,गैर सरकारी संगठन, निजी उद्यमी, कृषक (प्रारंभ में उन्हें केवल 50% अनुदान प्रायोगिक आधार पर मिलेगा।)

  • कृषि हेतु पादप उगाने वाले, किसान, कृषक

पादप उगाने वालों की एसोसिएशनें, परिसंघ, स्व-सहायता दल, कारपोरेशन,पादप उगाने वालों की सहकारिताएं केवल समूहों के मामले में कृषि को सहायता दी जाएगी। प्रत्येक कृषि समूह के पास कम से कम 2 हैक्टेयर भूमि होगी। प्रत्येक कृषि समूह ऐसे कृषकों में से लिया जाना चाहिए जिनके पास भूमि 15 कि.मी. के दायरे में हों। सहायता उन इच्छुक कृषकों को उपलब्ध होगी जो आगामी वर्षों में उसी भूमि पर औषधीय पादपों की कृषि करने के इच्छुक होंगे।

फसलोपरांत प्रबंधन एवं प्रसंस्करण तथा मूल्यवर्धन (विपणन सहित)

  1. औषधीय पादपों के व्यापार में लगे कम से कम तीन (3) उदयमों/कंपनी/फर्मों/ भागीदार फर्मों/उत्पादक कंपनी/व्यापारियों/पादप उगाने वालों/सहकारिताओं दवारा निर्मित एसपीवी और उनके उत्पाद इस स्कीम के अधीन निधियन हेतु पात्र होंगे। किसी एसपीवी के लिए कम से कम दो एकड़ भूमि चाहिए और वह भूमि राज्य के सक्षम प्राधिकारी दवारा औदयोगिक संपदा/आंचल/पार्क समूह/क्षेत्र के रूप में नामित होनी चाहिए। साझा सुविधा एकांश/प्रयोगशाला भी रख सकता है। यदि कोई सार्वजनिक क्षेत्र का एकांश या राज्य सरकार प्रसंस्करण/मूल्यवर्धन स्थापित करने की योजना बना ले तो पृथक एसपीवी बनाने की आवश्यकता नही होगी।
  2. बैंक खाता एसपीवी के नाम से खोला जाना चाहिए और सदस्यों के परियोजना के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने के लिए कम से कम 5 लाख रुपए कायिक निधी के रूप में जमा करने चाहिए।
  3. बाहय नामिति सहायता कृषि समूह से जुड़े केवल सार्वजनिक क्षेत्र/कृषक समूह/पंचायत/किसानों की सहकारिताओं/उत्पादक  कंपनियों को ही दी जाएगी।
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के मामलों में प्रत्येक परियोजना को 400 लाख रुपए की सीमा तक निरूपण सुगमता के लिए अधिसूचित बैंक दवारा किया जाएगा।
  5. कृषि अनुबंध के रूप में सुखाने के शेडों और भंडारण गोदामों के निर्माण हेतु 10 लाख रुपए की सीमा तक प्रत्येक को 100% की वित्तीय सहायता देय होगी, बशर्ते उन्हें औषधीय पादप  उगाने वाले स्व-सहायता दलों/सहकारिताओं दवारा स्थापित किया जाए। यह निमित्त सहायता 50% तक सीमित की जाएगी बशर्तें उनकी स्थापना व्यक्तियों या उदयमियों दवारा की जाए।

वित्तीय सहायता का तरीका

प्रसंस्करण सुविधाओं और अवसंरचनात्मक सहायता के लिए

  • कच्ची सामग्री और मूल्य वर्धित उत्पादों के परीक्षण हेतु गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाएं बनाने के लिए परियोजना लागत के 30% की दर से अधिकतम 30 लाख रुपए दिए जा सकते हैं जो संगठन, राज्य कार्यान्वयन एजेंसी और एनएमपीबी के बीच समझौता ज्ञापन के आधार पर पीपीपी मोड में दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त, मीडिया के माध्यम से विपणन संवर्धन, प्रदर्शनियों, व्यापार मेलों में भाग लेने, प्रदर्शन सुविधाओं का विकास करने और उन्हें किराए पर देने के लिए वित्तीय सहायता परियोजना लागत के 50% के हिसाब से 10 लाख रुपए की सीमा तक दी जा सकेगी।
  • मूल्य संवर्धन, प्रसंस्करण और परीक्षण सुविधाओं के लिए सहायिकी समाप्त की जा रही है। तथापि, यदि संगठन, सहकारिताओं, नयासों, कार्पोरेटों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के पास बैंक प्रमाण पत्रों से समर्थित पर्यापत निधियां हों और वे संगठन अन्यथा वित्तीय रूप से सक्षम हों तथा किसी वित्तीय संसथान के ऋणी न हों तो उनके लिए ऋण की आवशयकता अनिवार्य नहीं होगी।
  • राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड से मिलने वाली सहायता का उपयोग केवल भौतिक अवसंरचना, सिविल निर्माण कार्यों, भवन निर्माण, संयंत्र एवं मशीनरी और उपस्करों के लिए किया जाएगा। एसपीवी की भूमि की खरीद, समूह विकास अधिकारियों के वेतन, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में संयुक्त भागीदारी, विदेश में वयापार प्रतिनिधि मंडल और ब्रांड विकास इत्यादि पर होने वाले शेष सभी खचों का वहन एसपीवी दवारा किया जाएगा।

संस्थानिक कार्यनीति

  • मिशन के औषधीय पादप  संघटक के लिए राज्य कार्याळ्वयन एजेंसी ऐसी होळ्नी चाहिए कि उसके पास जिला एवं निम्नतम स्तर पर अवसंरचना को इस उद्देश्य के लिए उदयानिकी और कृषि विभाग जैसे विभागों को राज्य स्तर की कार्यान्यवन एजेंसी के रूप में उपयुक्त माना जाए। इसलिए राज्य उदयानिकी मिशन को यदि राज्य सरकार उचित समझे तो राज्य कार्यान्यवन एजेंसी नामित किया जा सकता है। यदि एसएमपीबीज को नोडल दायित्व दिया जाए तो राज्यों को राज्य औषधि पादप बोर्डों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करने चाहिएं और जहां राज्य उदयानिकी मिशन नहीं हैं उन राज्यों में निधियों को पहुंचाने के लिए एसएमपीबी को सोसायटियों के रूप में पंजीकृत कराया जाना अनिवार्य होगा।
  • राज्यों को क्षेत्र का विकास करने के लिए वार्षिक कार्य योजनाएं बनानी होंगी। सहायता केवल उन्हों राज्यों को देय होगी जो राज्य कार्ययोजना बनाएंगे। जिन राज्यों में प्रसंस्करण अंचल/समूह स्थापित किए जाएंगे उनमें चिन्हित अंचलों/समूह दलों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट/व्यापार योजनाएं तैयार करनी होंगी और राज्य कार्य योजना में विशेष व्यापार योजना/परियोजना रिपोर्ट को शामिल करना होगा।
  • राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) ने राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसंधान एवं विकास संस्थाओं (सीएसआईआरडीबीदी) में सुविधा केंद्र (एससी) स्थापित किए हैं ताकि वे औषधीय पादपों पर प्रौदयोगिकी हस्तांतरण, क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण, विस्तार, विपणन सूचना पर पादप उगाने वालों/कृषकों तथा उदयमियों के लिए एक सेवा दवार के रूप में कार्य कर सकें। राज्य कार्यान्वयन एजेंसी को इस मिशन के अधीन तकनीकी हैंड होल्डिंग के लिए सुविधा केंद्रों (एससी) के निकट समन्वय में काम करना चाहिए।

प्रस्तावों की तैयारी एवं प्रस्तुति

  • राज्य सरकार इस स्कीम के अधीन विभिन्न कार्यकलापों के लिए एक वार्षिक कार्य योजना तैयार करेगी और राज्य मिशन स्तर पर अनुमोदन होने के पश्चात उसे राज्य वार्षिक कार्य योजना (एसएएपी) के संघटक के रूप में आयुष विभाग को अग्रेषित कर देगी। इस कार्य योजना में अन्य बातों के साथ-साथ पोधाशाला, कृषि समूह और फसलोपरांत प्रबंधन एवं प्रसंस्करण के एकांशों तथा मूल्य संवर्धन का विवरण भी दिया जाना चाहिए। बोर्ड को इस कार्य योजना की सॉफट प्रति भी भेजी जाए।
  • एनएमपीबी वार्षिक कार्य योजनाओं के औषधीय पादप  संघटक को तकनीक छानबीन समिति के समक्ष रखेगा। तकनीकी छानबीन समिति दवारा छानबीन किए जाने के उपरांत यह वार्षिक कार्य योजना एनएएमपी मूल्यांकन समिति और अनुमोदक निकाय के समक्ष रखी जाएगी जो अपना अनुमोदन देकर उसे राज्य  कार्यान्यवन एजेंसी को निधियां एक या एक से अधिक किस्तों में राज्य  की समेकित निधि के माध्यम से वित्तीय सहायता निर्मुक्त करने की सिफारिश करेगी। इस उद्देश्य के लिए राज्य  कार्यान्वयन एजेंसी को एनएएम हेतु सासायदी पंजीकरण अधिनियम के अधीन सोसायदी के रूप में पंजीकृत किया जाएगा ताकि निधियां जिला एवं उप जिला स्तर या स्व-सहायता दलों, सहकारिता सोसायटियों या उत्पादक कंपनियों को, जैसा भी मामला हो, सीधे निर्मुक्त करने हेतु इसके माध्यम से भेजी जा सकें।
  • अनुमोदित कार्यकलापों और अलग-अलग किसानों/कृषकों/दलों के लिए निधियां विभिन्न समूहों में अलगअलग कार्यकलापों के लिए छोटे लाभ भोगियों, दलों और उदमियों के आधार पर राज्य  कार्यान्यवन एजेंसियों दवारा निर्मुक्त की जाएंगी। ऋण से संबद्ध सहायिकी उस क्षेत्र में किए गए कार्य का सत्यापन होने के बाद एक ही किस्त में निर्मुक्त की जाएं परंतु इसके पूर्व क्षेत्र में की गई प्रगति के बारे में बैंक दवारा प्रमाणन किया जाना चाहिए। लंबी अवधि की फसलों और अन्य परियोजना कार्य कलापों के लिए तकनीकी छानबीन समिति किस्तों की उपयुक्त संख्या निश्चित करे जो कार्य योजना को सुचारू रूप से लागू करने के लिए आवशयक हों।
  • राज्य कार्यान्वयन एजेंसी दिशा-निर्देशों के अनुसार राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत विपणन हेतु योजना का निष्पादन करे और तकनीकी छानबीन समिति (दीएससी) तथा एनएएम के विचारार्थ मेजे।

अनुवीक्षण व मूल्यांकन

  • XIIवीं योजना के अंत में पूरी अवधि का मूल्यांकन किया जाएगा। इस स्कीम के अधीन कार्यकलापों की प्रभावशाली आयोजना और कार्यान्वयन के लिए उस स्कीम की अवधि के लिए केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर कार्यक्रम प्रबंधन परामर्शदाताओं की नियुक्ति की अनुमति दी जाएगी। परियोजना प्रबंध एकांश में कितने परामर्शदाता और डाटा इंट्रो ऑपरेटरों का सहायक स्टाफ होगा जो उस स्कीम के प्रभावशाली कार्यान्वयन और अनुवीक्षण के लिए आवश्यक समझा जाएगा। इस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त व्यावसायिक एजेंसियों का नियोजन करके स्वतंत्र समवर्तीअनुवीक्षण और मूल्यांकन भी किया जाएगा। यह स्कीम अपने कार्यान्वयन के तीन वर्षों के उपरांत मध्यावधि मूल्यांकन के अध्यधीन भी होगी।
  • राज्य -वार भौतिक लक्षय और परिवयय राज्य  सरकारों से प्राप्त इस आशय के लिए प्रस्तावों और निधियों की उपलब्धता पर आश्रित होंगे। तकनीकी छानबीन समिति को इस स्कीम के अधीन उपलब्ध समग्र परिवयय के अंतर्गत विभिन्न कार्यकलापों में लक्षयों और परिवयय को संशोधित करने का अधिकार होगा। 1,50,000 हेक्टेयर में फैली कृषि हेतु वित्तीय सहायता देने के लिए समग्र लक्षय औषधीय पादपों के उत्पादन को 3 लाख टनों तक बढ़ाना, लगभग 50% वन संग्रहण पर आश्रितता को घटाना और निर्यात में मूल्यवर्धित मदों के अंश को बढ़ाना है।

राज्य मिशनों द्वारा परामर्श और अनुवीक्षण

चूंकि कार्य योजना/परियोजना का वास्तविक कार्यान्यवन राज्य मिशनों दवारा किया जा रहा है इसलिए यह सलाह देना उचित है कि राज्य मिशनों को अपने विशेषज्ञों के माध्यम से जमीनी सतह पर अपने कार्यकलापों में परामर्श दें और तदनुसार उन्हें ठीक करने के उपाय करें। इसलिए अलग-अलग किसानों दवारा कृषि सहित उनके सभी कार्यकलापों का परामर्श और अनुवीक्षण उनकी अपनी कार्यान्यवन एजेंसियों दवारा किया जाए और उनकी सहायिकियां इस प्रकार की परामर्श पद्धतियों के साथ जोड़ी जाएं। इस आशय के लिए राज्य मिशनों दवारा वन/उदयानिकी/कृषिविभागों के सेवानिवृत्त अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों की सेवाएं किराए पर ली जानी चाहिए। राज्य मिशनों को औषधीय पादपों के बारे में कार्यक्रमों के अनुवीक्षण तथा परामर्श हेतु राज्य जिला/ब्लॉक स्तर पर समितियां स्थापित करनी चाहिएं। राज्य सरकार इस स्कीम संघटक के संयुक्त परामर्श में राज्य औषधीय पादप  बोडों को शामिल करने का निर्णय भी ले सकती है। ऐसा करने पर राज्य औषधीय पादप बोर्डों को सुदृढ़ बनाने के लिए कार्य योजना का एक प्रतिशत संबंधित राज्य को मंजूर किया जा सकता है ताकि संयुक्त परामर्श तंत्र स्थापित किया जा सके।

तृतीय पक्ष अनुवीक्षण

राष्ट्रीय स्तर पर लागू की जाने वाली स्कीम की सफलता के लिए व्यापक तृतीय पक्ष अनुवीक्षण महत्वपूर्ण होता है। दो प्रकार की व्यवस्थाएं हो सकती हैं - या तो विशेषज्ञों की प्रणाली के माध्यम से या किसी एजेंसी को किराए पर लेकर। किसी एजेंसी को किराए पर लेना एक बेहतर विकल्प है क्योंकि सभी राज्यों में अनुवीक्षण में समानता रहेगी। एनएमपीबी ने केन्द्रीय क्षेत्रक स्कीम के अनुवीक्षण के लिए कृषि वित्त निगम को किराए पर लेने का अनुभव पहले ही कर लिया है। अनुवीक्षण में और उन्नयन करने की आवश्यकता है और अब तो अनुवीक्षण राष्ट्रीय स्तर की ऐसी एजेंसी दवारा किया जाना चाहिए जिसके पास पर्याप्त जनशक्ति और अवसंरचना हो। इस स्कीम के अधीन अलग-अलग किसानों दवारा कृषि सहित स्थान और क्षेत्रों के बारे में आंकड़े भी जीपीएस प्रणाली के माध्यम से उठाए जाने चाहिएं ताकि उन्हें आईएस पर आधारित प्रणालियों में प्रयुक्त किया जा सके। जीआईएस पर आधारित प्रणाली में दिए गए आंकड़ों का प्रयोग संबंधित कंपनी (निविदा प्रक्रिया के माध्यम से चुनी गई) दवारा किया जाएगा और अस्थाई तथा स्थानिक विश्लेषण के लिए एनएमपीबी को दिए जाने हेतु किया जाएगा।

केन्द्रिक अनुवीक्षण और परामर्श देने हेतु अन्य उपाय

एनएमपीबी औषधीय पादपों के विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों की एक सूची विकसित करे और उन्हें विषय-वार/प्रजाति-वार विशेषज्ञों को मुख्य तकनीकी सलाहकार के रूप में नामित करे और संस्थानों की पहचान उत्कृष्टता केंद्रों के रूप में करे। राज्य मिशनों की सलाह से छः महीने में एक बार संकेंद्रित अनुवीक्षण और परामर्शी दौरों का आयोजन किया जाए। संबंधित राजयों के लिए आवश्यक विशेषज्ञों के दौरे से उनके महत्वपूर्ण कार्यकलापों के बारे में परामर्श के माध्यम से राज्य मिशनों को सहायता मिलेगी। यह भी प्रस्ताव दिया जाता है कि विशेषज्ञों का वही दल राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की दोनों स्कीमों का अनुवीक्षण करे। एनएमपीबी और सुविधा केंद्रों की स्थापना करके राज्य में क्षमता निर्माण करके राज्य में क्षमता निर्माण के माध्यम से संकेंद्रित अनुवीक्षण और हस्त संचालन हेतु वर्तमान सुविधा केंद्रों को मजबूत बनाएं।

स्रोत: आयुष मंत्रालय, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate