औषधीय पादप हमारे देश की स्वास्थ्य परिचर्या परम्पराओं का मुख्य संसाधन आधार हैं। आयुष पद्धति की ओर बढ़ना और उसे स्वीकार करना, राष्ट्रीय स्तर पर और वैश्विक स्तर भी, इस बात पर निर्भर करता है कि औषधीय पादपों पर आधारित गुणवत्तायुक्त कच्ची सामग्री निरंतर उपलब्ध राहे। व्यापार में 90% से अधिक प्रजातियां आज भी वनों से प्राप्त होती हैं जिन्नके लगभग 2/3 भाग की प्राप्ति उन्मूलनात्मक साधनों से की जाती है।
इसलिए औषधीय पादपों की कृषि उच्चतर आय के अवसर प्रदान करने, खेती में विविधता लाने और निर्यात में वृद्धि करने के अतिरिक्त आयुष उद्योग की कच्ची सामग्री की मांग को पूरा करने की कुंजी है। औषधीय पादपों और जड़ी-बूटीयों का भारतीय निर्यात अधिकांशतः कच्ची जड़ी-बूटियों और अकों के रूप में होता है जो इस समय की जड़ी-बूटियों/आयुष उत्पादों के निर्यात का लगभग 60-70% है। मूल्य वर्धित मदों के निर्यात को उत्पाद विकास, प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना, गुणवत्ता आश्वासन और ब्रांड संवर्धन की आवश्यकता है। वनों से असंधारणीय संग्रहण की बढ़ती चिंता, एक ओर कुछ प्रजातियों का विलोप और दूसरी ओर गुणवत्ता एवं मानकीकरण की चिंताओं ने यह अनिवार्य बना दिया है कि उपयुक्त वित्तीय प्रोत्साहनों, नीति और सहक्रियात्मक ढंग से अवसंरचनात्मक एवं विपणन सहायता के माध्यम से आयुष चिकित्सा पद्धतियों के लिए अनिवार्य प्रजातियों की कृषि को बढ़ावा दिया जाए।
आयुष के 95% से अधिक उत्पाद पादप आधारित होने के कारण इसकी कच्ची सामग्री के स्रोत को वनों से परिवर्तित कर कृषि आधारित करने की जरूरत है ताकि यह लम्बे समय तक चलता रहे। 22 विश्व व्यापार को भारी धातुओं तथा अन्य विषैली अशुद्धियों से मुक्त, मानक फाइटोरसायनों से युक्त और प्रमाणित जैविक या बेहतर कृषि अभ्यास (जी.ए.पी.) की पूर्ति करने वाले उत्पादों की आवश्यकता है। यह केवल कृषि मार्ग के माध्यम से ही संभव है जहां उसकी अभिरक्षा व्यवस्था की श्रृंखला को बनाए रखना संभव है। 2.3 विश्व के हर्बल व्यापार में भारत का अंश लगभग 17% है। यहां भी हर्बल उत्पाठों का निर्यात प्राय- कच्ची जड़ी-बूटियों के रूप में ही है क्योंकि निर्यात टोकरी का 2/3 भाग कच्ची सामग्री और अकों से भरा है। 120 बिलियन अमरीकी डालर के हर्बल बाजार को देखते हुये इसे बदलने की आवश्यकता है। यही कारण है कि इस योजना में उन चयनित पौधों, जिनकी आयुष उदयोगों में तथा निर्यात के लिये मांग है, के मूल्य संवर्धन और संसाधन से जुड़ी समुदाय (क्लस्टर) कृषि के लिये सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की स्थापना केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में 24 नवम्बर 2000 को अधिसूचित राजकीय संकल्प के माध्यम से की गयी थी। इस बोर्ड की स्थापना का उद्देश्य किसी ऐसी एजेन्सी की स्थापना करना था जो औषधीय पादपों के समन्वय से संबंधित सभी मामलों के साथ इस क्षेत्र के प्रोत्साहन एवं विकास के उद्देश्य से नीतियों का निर्धारण एवं कच्चे माल के संरक्षण, उचित पैदावार, लागत प्रभावी कृषि, अनुसंधान एवं विकास, प्रसंस्करण, विपणन की रणनीति तैयार करने के दायित्वों का निर्वहन कर सके। इसे अनिवार्य इसलिए माना गया क्योंकि एक विषय के रूप में औषधीय पादपों का संबंध पर्यावरण एवं वन, कृषि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और वाणिज्य जैसे विभिन्न मंत्रालयों/विभागों से रहता है इसलिये यह बोर्ड सामान्यत- औषधीय पादपों और विशेषत- निम्नलिखित क्षेत्रों के विकास के लिए अन्य मंत्रालयों/विभागों/संगठनों/राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों के साथ समन्वय का कार्य करता है--
i) देश एवं विदेश दोनों में औषधीय पादपों से संबंधित मांग/आपूर्ति का आंकलन।
ii) औषधीय पादपों के विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं से संबंधित नीतिगत विषयों पर संबंधित मंत्रालयों/विभागों/संगठनों/राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों को सलाह देना ।
iii) कृषि हेतु भूमि एवं औषधीय पौधों के संग्रहण, भण्डारण, परिवहन के लिए अवसंरचना वाली एजेंसियों के दवारा प्रस्तावों, स्कीमों एवं कार्यक्रमों को तैयार करने के लिये मार्गदर्शन देना।
iv) औषधीय पौधों की पहचान, सूचीबद्ध करना तथा उनकी गणना करना।
v) औषधीय पौधों के बाहय स्थलीय एवं अंत-स्थलीय कृषि एवं संरक्षण को प्रोत्साहित करना।
vi) संग्राहकों एवं उत्पादकों के मध्य सहकारिता को प्रोत्साहित करना तथा उन्हें उनके उत्पादों के प्रभावी तौर पर भण्डारण,परिवहन एवं विपणन हेतु सहायता करना।
vii) औषधीय पौधों की सांख्यिकीय आधार सामग्री की स्थापना, सूचीकरण, सूचनाप्रसारण और सार्वजनिक क्षेत्र के पादपों के औषधीय प्रयोग हेतु प्राप्त किए जाने वाले पादपों के पेटेंट को रोकने में सहायता करना।
viii) कच्चे माल के साथ-साथ मूल्य वर्द्धित उत्पादों, चाहे वे औषधियों, खाद्य-पूरकों अथवा हर्बल सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री के रूप में हों, देश व विदेश में उनकी गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता संबंधी ख्याति में वृद्धि के लिए उत्पादों की बेहतर विपणन तकनीक को अपना लेने सहित उनके आयात/निर्यात संबंधी मामले।
ix) वैज्ञानिक, तकनीकी अनुसंधान एवं लागत-प्रभावी अध्ययन करना और सौंपना।
x) कृषि एवं गुणवत्ता नियंत्रण के लिए संलेखों का विकास।
xi)पेटेंट अधिकारों एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण को प्रोत्साहित करना।
मंत्रिमंडल सचिवालय के का.ज्ञा.सं.सीसीईए/23/2008 (I) के अंतर्गत सम्प्रेषित आर्थिक मामलों पर
मंत्रिमंडल समिति के अनुमोदन के अनुसार बोर्ड का गठन निम्नानुसार है--
क) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री – अध्यक्ष
ख) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री - उपाध्यक्ष
ग) आयुष, पर्यावरण एवं वन, वैज्ञानिक एवं औदयोगिक अनुसंधान, जैव-प्रादयोगिकी, विज्ञान एवं प्रौदयोगिकी, वाणिजय, औदयोगिक नीति एवं संवर्धन, व्यय, कृषि एवं सहकारिता, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा, जनजातीय मामले, पर्यटन, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालयों/विभागों के सचिव।
घ) चिकित्सा नृजातीय वनस्पति, भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के फार्मास्युटिकल उद्योग, विपणन एवं व्यापार और विधिक मामलों एवं पेटेंटों के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त चार नामित सदस्य। ड.) भारतीय चिकित्सा पद्धतियों एवं होम्योपैथी की औषधियों के निर्यातकों, औषधीय पादपों के संबंध में जागरुकता पैदा करने और उनकी उपलब्धता बढ़ाने के लिए उत्तरदायी गैर-सरकारी संगठनों, औषधीय पादपों को उगाने वालों, औषधीय पादपों के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास करने वाले वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले चार नामित सदस्य।
च) औषधीय पादपों से संबंधित परिसंघों/सहकारी समितियों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो नामित सदस्य।
छ) आयुष विभाग की अनुसंधान परिषदों का एक सदस्य, भारतीय चिकित्सा भेषजसंहिता प्रयोगशाला, गाजियाबाद का एक सदस्य और राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले दो सदस्य (हर दो वर्ष में बारी-बारी से)।
ज) संयुक्त सचिव, भारत सरकार स्तर का मुख्य कार्यपालक अधिकारी सदस्य-सचिव के रूप में।
10वीं योजना के दौरान राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) ने “औषधीय पादप बोर्ड की स्थापना' की एक केंद्रीय क्षेत्रक स्कीम का कार्यान्वयन किया। तथापि, 11वीं योजना के दौरान इस केंद्रीय क्षेत्रक स्कीम में संशोधन किया गया ताकि संसाधनों की वृद्धि, आंतरिक संरक्षण, अनुसंधान एवं विकास, दुर्लभ एवं संकटापन्न प्रजातियों के बाहयसंरक्षण, मूल्य वर्धन, माल गोदाम बनाने के लिए संयुक्त वन प्रबंधन समिति को सहायता, क्षमता निर्माण तथा अच्छे संग्रहण एवं संधारणीय फसल अभ्यासों जैसे संवर्धनात्मक कार्यकलापों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सके। इस स्कीम का नाम तथा उसे 32130 करोड़ रुपये की 11वीं योजना के परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया। वाणिज्यिक कृषि संबंधी संघटक को संशोधन पूर्व की केंद्रीय क्षेत्रक स्कीम में से निकाल लिया गया और उससे एक नई स्कीम बनाई गई जिसमें कृषि को फसल से पूर्व और पश्चात के कार्यकलापों के साथ मिलाने का प्रयास किया गया अर्थात गुणवत्तायुक्त पादप रोपण सामग्री के लिए पौधशालाओं का विकास, एएसयू उदयोग जरूरत की प्रजातियों की कृषि, फसलोपरांत प्रबंधन हेतु सहायता, विपणन, विपणन अवसंरचना का सुधार, जैव/जीएपी प्रमाणन, गुणवत्ता आश्वासन एवं फसल बीमा। इन संघटकों को राष्ट्रीय औषध पादप मिशन की नई केंद्रीय प्रायोजित स्कीम में शामिल किया गया जो 11वीं योजना के लिए 630.00 करोड़ रुपये के परिव्यय सहित वर्ष 2008-09 के दौरान मंजूर की गई।
स्कीम के कार्यान्वयन के दौरान हुए अनुभवों और तृतीय पक्ष के स्वतंत्र मूल्यांकन से प्राप्त अनुभवों के आधार पर इस स्कीम को 12वीं योजना में भी चालू रखा गया है।
इस संघटक को राष्ट्रीय आयुष मिशन के अधीन, 12वीं योजना के दौरान कार्यान्वयन हेतु 822 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ अनुमोदित किया गया है। पूर्वोत्तर और पहाड़ी राजयों में केंद्र सरकार का अंशदान 100% होगा जबकि अन्य राज्यों में केंद्र सरकार का अंशदान 90:10 होगा।
उद्देश्य
कार्यनीति
कार्यान्वयन ढांचा
कार्यान्वयन ढांचे में यथावर्णित। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय स्तर के सांस्थानिक ढांचे में निम्नलिखित भी शामिल होंगे-
तकनीकी छानबीन समिति (टीएससी)
सचिव (आयुष) को तकनीकी छानबीन समिति का गठन करने और इस संघटक के अंतर्गत विभिन्न कार्यकलापों के अधीन प्राप्त कार्य योजना/परियोजना प्रस्तावों की संवीक्षा के लिए अध्यक्ष नामित करने का अधिकार होगा। इस समिति में संगत क्षेत्रों के विशेषज्ञ तथा निम्नलिखित संगठनों/मंत्रालयों में से एक या अधिक प्रतिनिधि शामिल होंगे -
क) राष्ट्रीय उदयानिकी बोर्ड के प्रतिनिधि
ख) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रतिनिधि
ग)वैज्ञानिक एवं औदयोगिक अनुसंधान परिषद के प्रतिनिधि
घ) आयुष विभाग के प्रतिनिधि
ड.) सचिव, पूर्वोत्तर परिषद, शिलांग के प्रतिनिधि
च) सचिव, आयुष दवारा नामांकित राष्ट्रीय विशेषज्ञों के 2 प्रतिनिधि
छ) राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के प्रतिनिधि - सदस्य सचिव
राज्य उदयानिकी मिशन के निदेशक को राज्य सरकार राज्य कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नामित कर सकती है। जो राज्य राष्ट्रीय उदयानिकी मिशन के तहत नहीं आते उनकी राज्य सरकारें राज्य कृषि विभाग को नोडल विभाग के रूप में कार्यान्वयन हेतु नामित कर सकती हैं। निधियां आयुष सोसायटियों के माध्यम से निर्मुक्त की जाएंगी ताकि परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु निधियां समय से मिलती रहें। एक विकल्प यह भी है कि राज्य सरकारें राज्य औषधीय पादप बोर्ड (एसएमपीबी) को कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में चुन सकती हैं। ऐसी स्थिति में निधियां राज्य आयुष सोसायटी के माध्यम से राज्य औषधीय पादप बोर्डों को दी जाएंगी। राज्य इस संघटक को लागू करने के लिए राज्य में उपलब्ध सबसे दक्ष और प्रभावशाली एजेंसी का चयन करेगा।
यदि राज्य सरकार दवारा राज्य उदयानिकी मिशन को राज्य कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नामित कर दिया जाता है तो वह इस संघटक का कार्यान्वयन कृषि, आयुष, उद्योग विभाग और एसएमपीबी के समन्वय से करेगा और उसे एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत करना होगा। इसे निधियां प्राप्त करने और संघटक को लागू करने के लिए कार्यात्मक स्वायतता भी होनी चाहिए।
जिला स्तर पर एजेंसियों की पहचान करने और समूहों की पहचान करने तथा पादप उगाने वालों को एसएचजी/सहकारिताओं/ एसोसिएशनों तथा उत्पादक कंपनियों को संगठित करने के लिए पंचायती राज संस्थाओं को भी पूर्णतया शामिल किया जाएगा। कार्यान्वयन एजेंसी राज्य आयुष सोसायटी अथवा राज्य दवारा निश्चित किए गए किसी अन्य उपयुक्त तंत्र के माध्यम से कार्य करेंगी।
राज्य स्तर पर एक तकनीकी छानबीन समिति भी होगी जिसमें प्रस्तावों का मूल्यांकन करने के लिए क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञ भी होंगे। प्रसंस्करण, भंडारण, विपणन इत्यादि के लिए राज्यों के पास उपयुक्त मॉडल अर्थात सहकारिताएं, परिसंघ, वन विकास निगम, संयुक्त क्षेत्र कंपनियां को अपनाने का विकल्प होगा। जहां भी संभव हो, कृषि हेतु समूहों की पहचान के लिए राज्य उदयानिकी मिशन के साथ अनुबंध विकसित किया जाएगा और फसलोपरांत प्रबंध सुविधाओं यथा मालगोदाम, विपणन यार्ड, सुखाने के शेड, परीक्षण प्रयोगशाला और प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना हेतू अवसंरचना का विकास किया जाएगा।
राज्य स्तर की कार्यान्वयन एजेंसी के कार्य निम्नलिखित होंगे-
जिन राज्यों में कार्यान्वयन उदयानिकी विभाग के माध्यम से किया जाता है, उनमें जिले स्तर पर इस संघटक का समन्वय राष्ट्रीय उदयानिकी मिशन की जिला मिशन समिति (डीएमसी) दवारा किया जाएगा। यदि कृषि विभाग के माध्यम से कार्यान्वयन किया जाता हो तो जिला मिशन निदेशालय को एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया जाएगा जिसमें उप निदेशक (कृषि)/जिला कृषि अधिकारी उसका अध्यक्ष होगा। जिला मिशन समिति (डीएमसी) परियोजना के निरूपण और अनुवीक्षण हेतु उत्तरदायी होगी। डीएमसी में संबंधित विभागों, पादप उगाने वालों की एसोसिएशनों, विपणन बोर्डों, उदयोगों, विभागों, स्व-सहायता दलों (एसएचबी) और अन्य गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि इसके सदस्यों के रूप में होंगे। जिला योजना समिति और पंचायती राज संस्थाओं को राज्य सरकारों की पसंद और विवेकानुसार इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन में एकीकृत/सम्मिलित किया जाएगा।
राज्य कार्यान्वयन एजेंसी प्रस्तावों को जिला स्तरीय कार्यान्वयन एजेंसी के माध्यम से भेजने की आवश्यकता को पूरा किए बिना भी ख्याति प्राप्त गैर सरकारी संगठनों, सहकारिताओं, राज्य सरकार उपक्रमों, पादप उगाने वालों की एसोसिएशनों, उत्पादक कंपनियों, स्व-सहायता दलों को सीधे शामिल करके चुनिंदा समूहों में इस स्कीम को लागू करने पर भी विचार कर सकती है। ऐसे मामले में विभिन्न संगठनों/समूहों की रिपोर्ट राज्य कार्य योजना में समेकित की जाएगी और एनएमपीबी के विचारार्थ प्रस्तुत की जाएगी। कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसियों (एटीएमए) जैसे संगठनों को चुनिंदा समूहों में जिला और निम्नतर स्तर पर योजना, कार्यान्वयन और अनुवीक्षण में शामिल किया जा सकता है। ऐसे मामलों में निधियां भी जिला स्तर एजेंसी के माध्यम से भेजे बिना सीधे समूह स्तर की कार्यान्वयन एजेंसियों को निर्मुक्त की जा सकती हैं।
इस संघटक के अधीन समूह/अंचल स्तर पर मुख्य कार्यकलापों को लागू करने के लिए सांस्थानिक और विपणन इस कार्यक्रम के अधीन आने वाले राज्य में विद्यमान संगठनों/संस्थानों के अनुसार भिन्न-भिन्न होंगे। विभिन्न समूहों में कृषि, प्रसंस्करण, विपणन, गुणवत्ता आश्वासन और प्रमाणन संबंधी सभी कार्यकलापों को राज्य स्तर पर समेकित किया जाएगा ताकि मिशन कार्यकलापों के बीच बेहतर सहक्रिया रहे। राज्य सरकारें मिशन के उद्देश्यों को समग्र रूप में आगे ले जाने के लिए अपने मॉडल चुनने, वर्तमान संस्थाओं का सृजन करने अथवा उन्हें दिशा देने के लिए स्वतंत्र हैं।
यदयपि इस स्कीम में वे सभी कार्यकलाप आते हैं जिनकी सहायता औषधीय पादप पर आधारित कृषि व्यापार को पूर्णत- सफल बनाने के लिए आवश्यक होती है, फिर भी कुछ संघटक ऐसे हो सकते हैं जिनका सामंजस्य अनन्य मंत्रालयों/विभागों तथा राज्य सरकारों की अन्य स्कीमों के साथ स्थापित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, सूक्ष्म सिंचाई, उर्वरकों का प्रयोग, सिंचाई तालाबों का निर्माण, संदर्शी प्लॉटों की स्थापना जैसे कुछ संघटक जो इस स्कीम का हिस्सा नहीं हैं, उन्हें संबंधित मंत्रालयों/विभागों की स्कीमों के अनुरूप बनाया जा सकता है। इससे फसल के पूर्व औरपश्चात के प्रबंधन कार्यकलापों के साथ कृषि का संपूर्ण अभिसरण सुनिश्चित होगा।
उपचार
गुणवत्तायुक्त पादप रोपण सामग्री की आपूर्ति हेतु बीज/जर्मपलाज्म केन्द्रों तथा पौधशालाओं की स्थापना
पौधशालाएं जो प्रारंभ में प्रायोगिक आधार पर होंगी, को स्व-प्रत्यायन की ओर बढ़ने हेतु भी प्रोत्साहित किया जाएगा। ये पौधशालाएं विविध फसलों अथवा किसी विशेष फसल के लिए हो सकती हैं जो उस क्षेत्र/परियोजना क्षेत्र में पौध सामग्री की मांग पर आश्रित है। इसलिए कार्य योजना में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए कि किस प्रकार की पौधशाला की स्थापना का प्रस्ताव है। इस कार्य योजना में वर्तमान पौधशालाओं का मूल्यांकन, उपजाई जाने वाली पौधों की फसलवार संख्या और पौधशालाओं की अतिरिक्त मांग भी दी जानी चाहिए।
अनुमान लगाया गया है कि निर्माताओं के पास पहुंचने वाली 30% कच्ची सामग्री घटिया किस्म की होती है इसलिए इसे अस्वीकार कर दिया जाता है। अतः औषधीय पादपों की कृषि के लिए मालगोदाम बनाने, सुखाने, ग्रेडिंग करने, भंडारण करने और यातायात करने हेतु अवसंरचना की सहायता दिए जाने की जरूरत है। ये सुविधाएं औषधीय पादपों की विपणन क्षमता बढ़ाने, उत्पादों का मूल्य बढ़ाने, लाभ बढ़ाने और हानियों को कम करने के लिए अनिवार्य हैं। एपीईडीए ने केरल और उत्तराखण्ड राज्यों में औषधीय और सुगंधित पादपों के लिए कृषि निर्यात आंचल (एईजैड) स्थापित किए हैं। इन राज्यों में औषधीय पादपों पर एईजेड के कार्यान्वयन से हुए अनुभव के आधार पर यह स्कीम देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित उन चिन्हित समूहों/आंचलों में प्रसंस्करण तथा फसलोपरांत प्रबंधन हेतु अवसंरचना को सहायता देने का प्रयास करती है जो विपणन की अवसंरचना/व्यापर के केंद्रों से सुसंपन्न हैं तथा औषधीय पादपों की कृषि परंपरा को कृषि विकल्प के रूप में रखते हैं और प्रौदयोगिकी प्रसारण एवं क्षमता निर्माण के लिए जिनके पास अनुसंधान एवं विकास संस्थाएं/एएसयू हैं। जबकि एपीईडीए दवारा कार्यान्वित की जाने वाली एईजैड स्कीमों का मुख्य केंद्रबिंदु निर्यात पर है किंतु वर्तमान स्कीम का प्रयास है कि कृषि किए गए/एकत्रित किए गए औषधीय पादपों का मूल्यवर्धन किया जाए और आयुष उद्योग की बृहद घरेलू मांग को पूरा किया जाए। इसके अतिरिक्त, जड़ी-बूदीय/आयुष उत्पादों के निर्यात में मूल्यवर्धित मदों के हिस्से में वृद्धि करने की दृष्टि से निर्यात विपणन वाली प्रजातियों को भी शामिल किया जाएगा। निर्यात के लिए लक्षित की गई प्रजातियों को अंतिम रूप उनके निर्यात विपणन का मूल्यांकन करने के बाद ही दिया जाए। समूहों में स्थित एकांश भौगोलिक रूप में एक दूसरे के निकटस्थ होने चाहिए ताकि समूह के सभी सदस्य साझी सुविधाओं का उपयोग सुगमता से कर सकें। सृजित की जाने वाली सुविधाओं का हिस्सा सभी पणधारियों दवारा प्राप्त किया जाएगा और अन्य भुगतान के आधार पर प्राप्त करने के लिए मुक्त हैं। फसलोपरांत अवसंरचना में सृजित की जाने वाली सुविधाओं की संदर्शी सूची निम्नलिखित है-
क. सुखाने के यार्ड
उत्पादों को स्वास्थ्यकर दशाओं में सुखाने के प्रारंभिक कार्य को पूरा करने के लिए सुखाने के यार्ड होते हैं। इसके अतिरिक्त, सुखाने और श्रेणीबद्ध करने की अवसंरचना जड़ी-बूटियों की उपयोगिता अवधि और बाजार मूल्य में वृद्धि करने के लिए एक ऐसा अनिवार्य कार्यकलाप है जिसे सुखाने से जोड़ा जाता है। चूंकि जड़ी-बूटियों को छाया में सुखाना पड़ता है, इसलिए सुखाने के ऐसे यार्ड बनाने की जरूरत है जिनमें छाया व जाली का प्रावधान हो या न्यून तापमान पर सुखाने की सुविधाएं हों।
ख. भंडारण गोदाम
भंडारण गोदामों में उत्पाद आस-पास के सुखाने के यार्डों से प्राप्त होने अपेक्षित होते हैं। ये भंडारण गोदाम सुखाने के यार्डों और प्रसंस्करण एकांशों के बीच कड़ी का काम करते हैं। भंडारण गोदाम पर्याप्त रूप से हवादार और अनुकूल जगहों पर होने चाहिएं। भंडार गोदाम और सुखाने के यार्ड इस तरह से बनाए जाने चाहिएं कि वे कृषि फार्मों से बहुत दूर न हों और कृषि के चिन्हित समूहों के अनुकूल हों।
ग. प्रसंस्करण एकांश
समूहों में उगाये जाने वाले औषधीय पादपों पर आधारित प्रसंस्करण एकांश स्थापित करने होंने जिनमें से कुछ तो पादप विशेष के लिए होंगे। ये प्रसंस्करण एकांश अधिमानत- विद्यमान औदयोगिक संपदाओं के अंदर ही स्थापित होने चाहिएं जिनमें बिजली, सड़क जाल और रेलवे स्टेशनों/समुद्री बंदरगाहों से संबंधित आवश्यक अवसंरचना होती है।
घ. कच्ची सामग्री का गुणवत्ता परीक्षण
कच्ची सामग्री और मूल्यवर्धित मर्दी का परीक्षण तथा घरेलू खपत एवं निर्यात हेतु उनका प्रमाणन वर्तमान प्रत्यायित प्रयोगशालाओं के माध्यम से किया जाएगा। यदि आंचल/समूहों में इस प्रकार की प्रयोगशालाएं नहीं हों तो नई प्रयोगशालाएं अधिमानत- पीपीपी मोड में स्थापित की जाएंगी।
ड. विपणन
इस संघटक के अंतर्गत सहायता प्रदान करने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
सहायता के लिए देय संघटक निम्नलिखित हैं-
1 विपणन संवर्धन
मीडिया संवर्धन, प्रदर्शनियों में भागीदारी, व्यापार मेले, प्रदर्शन सुविधाओं को किराये पर लेने जैसे विपणन संवर्धन के कार्यक्रम परियोजना पर आधारित होते हैं किंतु प्रत्येक समूह के लिए 10 लाख रुपए तक सीमित होते हैं परंतु समूहों दवारा उत्पादित जड़ी-बूटियों/कच्ची सामग्री हेतु विपणन संवर्धन के अधीन 50% सहायता के पात्र होंगे।
2 विपणन आसूचना
कार्य योजना में उगाने वालों के लिए विपणन आसूचना के संग्रहण, समेकन और प्रसारण को भी शामिल किया जाना चाहिए। विपणन आसूचना से संबंधित कोई अन्य नवप्रवर्तनकारी कार्यकलाप भी इस संघटक केअधीन संगठित किया जाए। इस संघटक के लिए सहायता परियोजना पर आधारित होगी।
3 वापस खरीद हस्तक्षेप
स्कीम के इस संघटक के अधीन क्रेता-विक्रेता बैठकों के रूप में पुनः खरीद हस्तक्षेप, लचीले तथा नवप्रवर्तनकारी, विपणन व्यवस्थाओं, औषधीय पादपों के विपणन हेतु समूह स्तर पर परिक्रामी निधी का सूजन और स्व-सहायता दलों, सहकारिताओं, उत्पादक कंपनियों को प्रेरक सहायता दी जा सकती है। क्रेता और विक्रेता के बीच विपणन और सांस्थानिक अनुबंध को सुदृढ़ बनाने के लिए अन्य कोई कार्यकलाप भी इस संघटक में शामिल किया जा सकता है। यह सहायता परियोजना पर आधारित होगी। उपर्युक्त हस्तक्षेप एनएएम के अधीन लचीले कार्यकलापों के अंतर्गत प्रस्तावित किए जाएं।
4 विपणन अवसंरचना
इस संघटक के अधीन जिन जड़ी-बूदी संग्रहण एवं खुदरा बाजारों को ग्राम स्तर पर स्थापित किए जाने का प्रस्ताव है, उन्हें 20 लाख रुपए तक की सहायता दी जा सकती है। यह सहायता औषधीय पादपों के व्यापार हेतु गांवों में स्थित कृषि मंडियों में अवसंरचना के उन्नयन/सूजन हेतु भी उपलब्ध है। इसी प्रकार की सहायता औषधीय पादपों के व्यापार अवसंरचना उन्नयन एवं सृजन के लिए जिला/राज्य कृषि मंडियों को भी दी जाएगी। राज्य/जिला स्तर पर जड़ी-बूदी मंडियों की स्थापना हेतु भी सहायता उपलब्ध होगी। गांव निकायों/स्व-सहायता दलों/सहकारिताओं के माध्यम से संग्रहण और खुदरा बाजार हेतु वित्तीय सहायता का स्तर 20 लाख रुपए होगा और राज्य/जिला स्तर के संग्रहण एवं खुदरा बाजार हेतु अधिकतम 2 करोड़ रुपए तक होगा।
1) गुणवत्ता परीक्षण
पादप उगाने वालों दवारा उत्पादित जड़ी-बूदी/औषधीय पादपों की गुणवत्ता का परीक्षण पारिश्रमिक मूल्य वसूलने की कुंजी होती है। यदि जड़ी-बूदीयां/औषधीय पादप आयुष/एनएबीएल प्रत्यायित प्रयोगशालाओं (लचीले कार्यकलापों के अधीन प्रस्तावित किए जाएं) में परीक्षित किए जाते हैं तो ये पादप उगाने वाले परीक्षण खचों के 50% के हकदार होंगे जिसकी अधिकतम सीमा 5 हजार रुपए होगी।
2) प्रमाणन
जैव और जीएपी प्रमाणन औषधीय पादप/जड़ी-बूटियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की कुंजी है और वे कृषकों को उनके उत्पादों हेतु अच्छे मूल्यों के माध्यम से लाभ दिला सकते हैं और ग्राहकों को जड़ी-बूदी/आयुष उत्पादों की बेहतर गुणवत्ता के माध्यम से लाभ पहुंचा सकते हैं। प्रमाणन प्रभार दलों/समूहों में कृषि के 50 हेक्टेयर के लिए दल आधार पर 5 लाख रुपए की सीमा तक देय होंगे।
3) फसलों का बीमा
कृषि के अंतर्गत औषधीय पादप एक नया कार्यकलाप हैं इसलिए कृषकों को सकल बीमा में शामिल करने की आवश्यकता है। यह संघटक किसी विशेष फसल के लिए लाभ के 50% भुगतान हेतु सहायता देने का प्रयास करता है। यह लाभ और स्कीम का विवरण कृषि बीमा निगम (लचीले कार्यकलापों के अंतर्गत प्रस्तावित किया जाए) की सलाह से तय किया जाएगा।
प्रत्येक समूह के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट/व्यापार योजना ऐसी परामर्शी फर्मों के माध्यम से कृषि हेतु तैयार की जाएगी जो इस क्षेत्र में मौलिक योग्यता रखती हों ताकि आयुष विभाग की अन्य स्कीमों और इस स्कीम के कार्यान्वयन से पूर्व अन्य मंत्रालयों की स्कीमों के बीच सहक्रिया स्थापित की जा सके। राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों को इस स्कीम के अधीन समर्थन हेतु चुने गए समूहों के लिए व्यापार योजनाएं/विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए परियोजना प्रबंध परामर्शदाताओं की नियुक्ति करने की अनुमति होगा अर्थात- आंचलों/समूहों से बाहर के क्षेत्रों में पैकिंग, शैडों, प्रसंस्करण एकांशों, परीक्षण प्रयोगशालाओं जैसी अवसंरचना सृजित करने हेतु समर्थन भी दिया जाएगा बशर्ते वे कृषि समूहों से संबंधित हों। नामित समूहों से बाहर के केवल उन्हीं एकांशों के लिए सहायता दी जाएगी जो सार्वजनिक क्षेत्र/कृषक समूहों/पंचायत/कृषक सहकारिताओं/उत्पादकों की कंपनी के होंगे। सभी परियोजनाएं उपयुक्त व्यापार योजना और विपणन सर्वेक्षणों के आधार पर उदयमियों दवारा संचालित होंगी। विभिन्न समूहों के लिए विस्तृत परियोजना/व्यापार योजना एनएमपीबी को प्रस्तुत की जाने वाली राज्य कार्य योजना में समेकित की जाएगी। राज्य कार्यान्वयन एजेंसी को भी परियोजना परामर्शदाता नियुक्त करने की अनुमति होगी।
सरकारी संगठन (राज्य कृषि/वन/उदयानिकी विभाग) सरकारी अनुसंधान एवं विकास संस्था/एसएचजीआईसीएमआर, सीएसआईआर, आईसीएफआरई, डीबीदी, डीएसदी संस्थाएं,गैर सरकारी संगठन, निजी उद्यमी, कृषक (प्रारंभ में उन्हें केवल 50% अनुदान प्रायोगिक आधार पर मिलेगा।)
पादप उगाने वालों की एसोसिएशनें, परिसंघ, स्व-सहायता दल, कारपोरेशन,पादप उगाने वालों की सहकारिताएं केवल समूहों के मामले में कृषि को सहायता दी जाएगी। प्रत्येक कृषि समूह के पास कम से कम 2 हैक्टेयर भूमि होगी। प्रत्येक कृषि समूह ऐसे कृषकों में से लिया जाना चाहिए जिनके पास भूमि 15 कि.मी. के दायरे में हों। सहायता उन इच्छुक कृषकों को उपलब्ध होगी जो आगामी वर्षों में उसी भूमि पर औषधीय पादपों की कृषि करने के इच्छुक होंगे।
फसलोपरांत प्रबंधन एवं प्रसंस्करण तथा मूल्यवर्धन (विपणन सहित)
प्रसंस्करण सुविधाओं और अवसंरचनात्मक सहायता के लिए
चूंकि कार्य योजना/परियोजना का वास्तविक कार्यान्यवन राज्य मिशनों दवारा किया जा रहा है इसलिए यह सलाह देना उचित है कि राज्य मिशनों को अपने विशेषज्ञों के माध्यम से जमीनी सतह पर अपने कार्यकलापों में परामर्श दें और तदनुसार उन्हें ठीक करने के उपाय करें। इसलिए अलग-अलग किसानों दवारा कृषि सहित उनके सभी कार्यकलापों का परामर्श और अनुवीक्षण उनकी अपनी कार्यान्यवन एजेंसियों दवारा किया जाए और उनकी सहायिकियां इस प्रकार की परामर्श पद्धतियों के साथ जोड़ी जाएं। इस आशय के लिए राज्य मिशनों दवारा वन/उदयानिकी/कृषिविभागों के सेवानिवृत्त अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों की सेवाएं किराए पर ली जानी चाहिए। राज्य मिशनों को औषधीय पादपों के बारे में कार्यक्रमों के अनुवीक्षण तथा परामर्श हेतु राज्य जिला/ब्लॉक स्तर पर समितियां स्थापित करनी चाहिएं। राज्य सरकार इस स्कीम संघटक के संयुक्त परामर्श में राज्य औषधीय पादप बोडों को शामिल करने का निर्णय भी ले सकती है। ऐसा करने पर राज्य औषधीय पादप बोर्डों को सुदृढ़ बनाने के लिए कार्य योजना का एक प्रतिशत संबंधित राज्य को मंजूर किया जा सकता है ताकि संयुक्त परामर्श तंत्र स्थापित किया जा सके।
राष्ट्रीय स्तर पर लागू की जाने वाली स्कीम की सफलता के लिए व्यापक तृतीय पक्ष अनुवीक्षण महत्वपूर्ण होता है। दो प्रकार की व्यवस्थाएं हो सकती हैं - या तो विशेषज्ञों की प्रणाली के माध्यम से या किसी एजेंसी को किराए पर लेकर। किसी एजेंसी को किराए पर लेना एक बेहतर विकल्प है क्योंकि सभी राज्यों में अनुवीक्षण में समानता रहेगी। एनएमपीबी ने केन्द्रीय क्षेत्रक स्कीम के अनुवीक्षण के लिए कृषि वित्त निगम को किराए पर लेने का अनुभव पहले ही कर लिया है। अनुवीक्षण में और उन्नयन करने की आवश्यकता है और अब तो अनुवीक्षण राष्ट्रीय स्तर की ऐसी एजेंसी दवारा किया जाना चाहिए जिसके पास पर्याप्त जनशक्ति और अवसंरचना हो। इस स्कीम के अधीन अलग-अलग किसानों दवारा कृषि सहित स्थान और क्षेत्रों के बारे में आंकड़े भी जीपीएस प्रणाली के माध्यम से उठाए जाने चाहिएं ताकि उन्हें आईएस पर आधारित प्रणालियों में प्रयुक्त किया जा सके। जीआईएस पर आधारित प्रणाली में दिए गए आंकड़ों का प्रयोग संबंधित कंपनी (निविदा प्रक्रिया के माध्यम से चुनी गई) दवारा किया जाएगा और अस्थाई तथा स्थानिक विश्लेषण के लिए एनएमपीबी को दिए जाने हेतु किया जाएगा।
एनएमपीबी औषधीय पादपों के विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों की एक सूची विकसित करे और उन्हें विषय-वार/प्रजाति-वार विशेषज्ञों को मुख्य तकनीकी सलाहकार के रूप में नामित करे और संस्थानों की पहचान उत्कृष्टता केंद्रों के रूप में करे। राज्य मिशनों की सलाह से छः महीने में एक बार संकेंद्रित अनुवीक्षण और परामर्शी दौरों का आयोजन किया जाए। संबंधित राजयों के लिए आवश्यक विशेषज्ञों के दौरे से उनके महत्वपूर्ण कार्यकलापों के बारे में परामर्श के माध्यम से राज्य मिशनों को सहायता मिलेगी। यह भी प्रस्ताव दिया जाता है कि विशेषज्ञों का वही दल राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की दोनों स्कीमों का अनुवीक्षण करे। एनएमपीबी और सुविधा केंद्रों की स्थापना करके राज्य में क्षमता निर्माण करके राज्य में क्षमता निर्माण के माध्यम से संकेंद्रित अनुवीक्षण और हस्त संचालन हेतु वर्तमान सुविधा केंद्रों को मजबूत बनाएं।
स्रोत: आयुष मंत्रालय, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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