१. किशोरावस्था का शाब्दिक अर्थ है उभर का आना अथवा पहचान प्राप्त करना है। इसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द ऐडेलेसेरे से हुई है, जिसका अर्थ विकसित होना, या परिपक्व होना है। यह बाल्यावस्था से युवावस्था के बीच संक्रमण का महत्वपूर्ण चरण है । किशोर शब्द की सार्वजनिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं दी गई है । किन्तु, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 10-19 वर्ष के बीच की आयु के संदर्भ में इसे परिभाषित किया है । भारत में विवाह हेतु कानून सम्मत आयु लड़कियों के लिए 18 वर्ष तथा लड़कों के लिए 21 वर्ष है । विवाह के समय आयु, गर्भधारण एवं शिक्षा के साथ स्वास्थ्य देखभाल में घनिष्ठ संबंध है । इस बात को तथा अन्य बातों को ध्यान में रखते हुए, इस स्कीम के प्रयोजनार्थ 11-18 वर्ष की आयु-वर्ग की लड़कियां को किशोरियों की श्रेणी में माना जाएगा।
2. भारत में, किशोरियों (11-18 वर्ष) 49.6514 करोड़ महिलाओं की कुल जनसंख्या (महापंजीयक तथा जनगणना आयुक्त, भारत ,2001) का 16.75% है,जो लगभग 8.3 करोड़ हैं। महिला साक्षरता दर मात्र 53.87% है तथा लगभग 2.74 करोड़ बालिकाएं (8.३ करोड़ की 33%) अल्पपोषित हैं । जैसा की राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -3 में प्रतिबिम्बित है, लगभग 56.2% महिलाएं (15-49 वर्ष) रक्ताल्पता से ग्रस्त हैं । इस प्रकार, शिक्षा, स्वास्थय (मुख्यरूप से प्रजनन स्वास्थ्य) एवं पोषण के मामलों में उनकी अनेक जरूरतें अधूरी हैं । ऐसा मुख्य रूप से किशोरियों हेतु लक्षित स्वास्थ्य सेवाओं की कमी एवं व्यापक रूप से फैले हुए महिला-पुरुष भेदभाव तथा स्वास्थ्य सेवाओं तक महिलओं की सीमित पहुँच के अलावा कम उम्र में विवाह एवं शिशुओं को जन्म देने की मौजूदा प्रवृति के कारण होता है तथा इनसे किशोरियों एवं उनके बच्चों को दुष्परिणामों का अत्यधिक जोखिम होता है । भारतीय संविधान में बालिकाओं, किशोरियों एवं महिलाओं के प्रति भेदभाव समाप्त करने हेतु सकारात्मक उपाय अंगीकृत करने के लिए राज्यों को सक्षम बनाने हेतु महिला-पुरुष समानता का सिद्धांत निहित है ।
3.किशोरावस्था मानसिक, भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक विकास हेतु महत्वपूर्ण अवधि होती है । किशोरावस्था बच्चों को स्वस्थ युवा जीवन के लिए तैयार करने का एक अवसर है । इस अवधि के दौरान मौजूदा समस्याओं के समाधान के अलावा जीवन के प्ररंभिक काल में शुरू हुई पोषाहारीय समस्याओं का आंशिक रूप से समाधान किया जा सकता है । यह वह अवस्था भी है जिसमें स्वस्थ्य आहार एवं जीवनशैली व्यवहारों को रूप दिया जा सकता है एवं समेकित किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं में पोषण से संबन्धित चिरकालीन बीमारियों तथा पीढ़ी में कुपोषण की व्याप्ति को रोका जा सकता है । लौह तत्व की कमी के कारण रक्ताल्पता किशोरियों सहित महिलाओं को प्रभावित करने वाली सूक्ष्म पोषक तत्वों की सर्वाधिक व्याप्त कमी है, जो सीखने एवं कार्य करने की क्षमता तथा उत्पादकता को कम करती है और आर्थिक एवं सामाजिक विकास को सीमित करती है । गर्भवस्था के दौरान रक्ताल्पता के परिणामस्वरूप माताओं एवं नवजात शिशुओं की काफी संख्या में मृत्यु हो जाती है तथा अल्पवजनी बच्चे पैदा होते हैं । किशोरियों की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने से एक स्वस्थ्य एवं अधिक उपयोगी महिला बल ही तैयार नहीं होगा, अपितु कुपोषण के पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाले कुचक्र को तोड़ने में भी सहायता मिलेगी ।
4. विश्व समुदाय द्वारा स्थापित एवं स्वीकृत मानवाधिकार अवसंरचना के तहत अधिकारों, विशेषकर किशोरियों से संबन्धित अधिकारों में महिला-पुरुष समानता, शिक्षा एवं स्वास्थ्य (प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य सहित) तथा सूचना और उनकी आयु के उपयुक्त सेवाओं, क्षमताओं एवं परिस्थितियों के अधिकार शामिल हैं । इन अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए ठोस उपाय किए जाने चाहिए । किशोरियों को मात्र उनकी जरूरतों के संदर्भ में ही नहीं, बल्कि ऐसे व्यक्तियों के रोप में भी देखना चाहिए, जो समाज की उपयोगी सदस्य बन सकती हैं ।
5. महिला एवं बल विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने वर्ष 2000 में आई.सी.डी.एस. अवसंरचना का उपयोग करते हुए “किशोरी शक्ति योजना” स्कीम शुरू की । इस स्कीम के उद्देश्य 11-18 वर्ष की आयु वर्ग की लड़कियाँ के पोषण एवं स्वास्थ्य स्तर में सुधार करने के साथ-साथ उनके घरेलू एवं व्यावसायिक कौशलों में सुधार एवं अन्नयन करना, उनके स्वास्थ्य, व्यतिगत स्वच्छता, पोषण, परिवार कल्याण एवं प्रबंधन के विषय में जागरूकता सहित उनके समग्र विकास को बढ़ावा देना था। इस स्कीम में प्रति परियोजना प्रति वर्ष 1.1 लाख रुपये की राशि प्रदान की जाती थी । इस स्कीम के अंतर्गत प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र में 2-3 किशोरियों को लक्ष्य बनाया जाता था, जिन्हें राज्य सरकारों द्वारा पोषण भी प्रदान किया जाता है । इसके बाद किशोरियों में अल्प पोषण की समस्या के समाधान के लिए वर्ष 2002-03 में पूरे देश में 51 अभिनिर्धारित जिलों में प्रोयोगिक परियोजना के रूप में किशोरियों हेतु पोषण कार्यक्रम शुरू किया गया । इस कार्यक्रम के अंतर्गत अल्पवजनी किशोरियों को 6 किलोग्राम प्रति लाभार्थी प्रति माह मुफ्त खाद्यान दिये जाते थे ।
उपरोक्त दोनों स्कीमों ने किशोरियों के जीवन को कुछ हद तक प्रभावित किया, किन्तु अपेक्षित प्रभाव नहीं दिखा पाई । इसके अतिरिक्त, उक्त दोनों स्कीमों में एक जैसे अंतक्षेपों तथा लगभग एक जैसे लक्षियत समूहों को लाभान्वित करने के अलावा वित्तीय सहायता एवं प्रसार सीमित थे । इन दोनों स्कीमों का विलय कर एक नई व्यापक स्कीम, जो किशोरियों की बहू-आयामी समस्याओं का निवारण कर सके, निरूपित करने की जरूरत उभरकर आई । इस नई स्कीम का नाम राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण स्कीम – सबला होगा । यह स्कीम 200 चुनिन्दा जिलों में “किशोरी शक्ति योजना” (के.एस.वाई) तथा “किशोरियों हेतु पोषण कार्यक्रम” (एन.पी.ए.जी.) की जगह लेगी और शेष जिलों में “किशोरी शक्ति योजना” का कार्यान्वयन (जहां पहले से प्रचालित हो) जारी रहेगा।
6. इस स्कीम राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण स्कीम – सबला का क्रियान्वयन आगंनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से समेकित बल विकास सेवा स्कीम के मंच का उपयोग करते हुए किया जाएगा ।
7. उद्देश्य
इस स्कीम के उद्देश्य इस प्रकार हैं :
(i) आत्म-विकास एवं सशक्तिकरण हेतु किशोरियों को सक्षम बनाना ।
(ii) उनके पोषण एवं स्वास्थ्य स्तर में सुधार करना ।
(iii) स्वास्थ्य, सफाई, पोषण, किशोरी प्रजनन एवं योंन स्वास्थ्य (ए.आर.एस.एच.) और परिवार एवं बाल देख-रेख के विषय में जागरूकता को बढ़ावा देना ।
(iv) उनके घरेलू कौशलों, जीवन कौशलों का उन्नयन करना एवं व्यावसायिक कौशलों हेतु उन्हे राष्ट्रीय कौशलों विकास कार्यक्रम के साथ जोड़ना ।
(v) पढ़ाई छोड़ चुकी किशोरियों को ओपचारिक/अनौपचारिक शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ना ।
(vi) प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र,सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डाक घर बैंक, पुलिस स्टेशन आदि जैसी मौजूदा सार्वजनिक सेवाओं के बारे में सूचना/मार्गदर्शन प्रदान करना ।
8. लक्षित समूह
इस स्कीम में देश के सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के चुनिन्दा 200 जिलों में सभी आई.सी.डी.एस. परियोजनयों के अंतर्गत 11-18 वर्ष की किशोरियाँ शामिल हैं । लाभार्थियों पर सही ध्यान केन्द्रित करने के लिए लक्षित समूह को दो श्रेणियों अर्थात 11-15 वर्ष तथा 15-18 वर्ष की श्रेणियों में बांटा गया है । तदनुसार उपायों की आयोजना की गई है ।
इस स्कीम को पढ़ाई छोड़ चुकी सभी किशोरियों पर केन्द्रित किया गया है, जो राज्यों /संघ राज्य संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा निर्धारित समय-सारिणी के अनुसार एवं अंतराल पर आंगनवाड़ी केंद्र पर एकत्रित होंगी । स्कूल जा रही लड़कियां महीने में कम से कम दो बार तथा स्कूल की छुट्टियों के दौरान अधिक बार आंगनवाड़ी केंद्र पर मिलेंगी, जहां वे जीवन कौशल शिक्षा, पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा, उनके सामाजिक-कानूनी मुद्दों से संबन्धित जागरूकता आदि हासिल करेंगी । इससे स्कूल जा रही किशोरियों एवं पढ़ाई छोड़ चुकी किशोरियों को समूहिक वार्तालाप करने का अवसर मिलेगा और पढ़ाई छोड़ चुकी लड़कियां स्कूल जाने के लिए प्रेरित होंगी ।
9. सेवाएँ
इस स्कीम के अंतर्गत किशोरियों का समेकित सेवाओं का पैकेज प्रदान किया जाएगा । प्रदान की जाने वाली सेवाएँ इस प्रकार हैं :
(i) पोषण प्रावधान ।
(ii) आयरन फॉलिक एसिड अनुपूरण ।
(iii) स्वास्थ्य जांच एवं रेफेरल सेवाएँ ।
(vi) पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा ।
(v) परिवार कल्याण,किशोरी प्रजनन एवं यौन स्वास्थय, बाल देखरेख पद्धतियाँ एवं गृह प्रबंधन पर परामर्श/मार्गदर्शन ।
(vi) जीवन कौशल शिक्षा तथा सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच ।
(vii) राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत 16 वर्ष एवं उससे अधिक आयु की लड़कियों हेतु व्यावसायिक प्रशिक्षण ।
10. सेवाओं का संक्षिप्त विवरण
1. पोषण : प्रत्येक किशोरी को वर्ष में 300 दिन कम से कम 600 कैलोरी एवं 18-20 ग्राम प्रोटीन एवं सुश्म पोषक तत्व प्रति दिन दिये जाएंगे । आंगनवाड़ी केंद्र आ रही पढ़ाई छोड़ चुकी किशोरियों (11-14 वर्ष) तथा सभी लड़कियों (15-18 वर्ष) को घर ले जाने वाले राशन के रूप में पूरक पोषाहार प्रदान किया जाएगा । तथापि, यदि उन्हे पकाया हुआ गर्म भोजन प्रदान किया जाता है, तो सख्त गुणवत्ता मानक स्थापित करना जरूरी होगा । गर्भवती महिलओं एवं शिशुओं को अपना दूध पिलाने वाली माताओं को दिया जा रहा घर ले जाने वाला राशन किशोरियों को भी प्रदान किया जाएगा क्यूंकी इन दोनों के लिए वित्तीय और कैलोरी संबंधी मानक एक समान हैं ।
पोषण प्रावधान हेतु लागत : लागत 300 दिनों के लिए 5/-रुपये प्रति लाभार्थी प्रतिदिन होगी । इस लागत में सुश्म पोषक तत्वो के संपुष्टिकरण की लागत भी शामिल है । भारत सरकार किशोरियों हेतु पोषण की लागत के वित्तीय मानकों अथवा वास्तविक व्य्य, जो भी कम से कम हो, के 50% की भागीदारी करेगी ।
(ii) आयरन एवं फॉलिक एसिड अनुपूरण : राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के प्रजनन बाल स्वास्थ्य -2 के अंतर्गत स्कूल जा रहे बच्चों (6-10 वर्ष) एवं किशोरों (11-18 वर्ष) को राष्ट्रीय पोषण रक्ताल्पता नियंत्रण कार्यक्रम में शामिल किया गया है । राज्य, पर्यवेशित साप्ताहिक उपयोग के माध्यम से प्रत्येक लाभार्थी को आयरन एवं फॉलिक एसिड की गोलियों की खुराक प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित किए जा रहें, कार्यक्रम का संकेन्द्रण स्थापित करेंगे । किशोरियों को आयरन एवं फॉलिक एसिड की गोलियां किशोरी दिवस पर वितरित की जाएंगी (ब्यौरा आगे दिया गया है) यदि स्वास्थ्य विभाग अपनी स्कीमों के अंतर्गत ऐसा करने में सक्षम नहीं है, तो राज्य/संघ राज्य क्षेत्र भारत सरकार को सूचित करके इन अनुपूरकों का प्रापण कर सकते हैं । आई.एफ़.ए.के संबंध में स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों की प्रति परिशिष्ट क में दी गई है ।
किशोरियों को खाद्द संपुष्टीकरण, अहारीय विविधिता तथा आयरन एवं फॉलिक एसिड की कमी पूरी करने के लिए इन गोलियों द्वारा अनुपूरण के लाभों के बारे में जानकारी ए.एन.एम/आंगनवाड़ी कार्यकत्री द्वारा दी जाएगी ।
(iii) स्वास्थ्य जांच एवं रेफेरल सेवाएँ : सभी किशोरियों की तीन माह में कम से कम एक बार विशिष्ट दिवस पर जिसे “किशोरी दिवस” कहा जाएगा, सामान्य स्वास्थ्य जांच की जाएगी । चिकित्सा अधिकारी/ए.एन.एम. उन लड़कियों को, जिन्हें कृमि निवारण गोलियों की आवशयकता है, ये गोलियां प्रदान करेंगे (राज्य विशिष्ट दिशानिर्देशों के अनुसार) । इस दिन किशोरियों की लंबाई एवं वजन का माप किया जाएगा । प्रत्येक बालिका हेतु किशोरी कार्ड तैयार किया जाएगा तथा प्रमुख मानकों को चिन्हित कर रखा जाएगा । आई.सी.डी.एस. स्कीम के अंतर्गत प्रदान मापने के लिए उपयोग में लाई जाएंगी ।
प्रदान की जाने वाली सेवाओं का ब्यौरा परिशिष्ठ –ख पर देखा जा सकता है ।
(iv) पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा : पोषण और स्वास्थ्य से संबन्धित मुद्दों पर सत्तत जानकारी से बालिकाओं का स्वास्थ्य स्तर बेहतर होगा,जिससे पारिवारिक स्वास्थ्य में व्यापक सुधार होगा तथा कुपोषण के पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाले कुचक्र को तोड़ने में सहायता भी मिलेगी । सभी किशोरियों को पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा आंगनवाड़ी केंद्र में, आई.सी.डी.एस. एवं स्वास्थ्य कर्मियों तथा संसाधन व्यक्तियों/गैर-सरकारी संगठनों/सामुदायिक संगठनों के क्षेत्र प्रशिक्षुओं द्वारा संयुक्त रूप से दी जाएगी । इसमें स्वास्थ्य की पारंपरिक पद्धतियों को बढ़ावा भी मिलेगा एवं अहितकारी मिथकों का दमन, अच्छी तरह से खाना पकाना एवं खाने की अच्छी आदतें, सुरक्षित पेयजल का उपयोग एवं स्वच्छता, व्यक्तिगत सफाई,एवं मासिक धर्म के दौरान देखरेख शामिल है । किशोरियों को संतुलित आहार एवं संस्तुत आहार, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से होने वाली बीमारियाँ एवं उनके निवारण, स्थानीय रूप से उपलब्ध पोषक आहारों का अभिनिर्धारण, गर्भावस्था के दौरान पोषण एवं शिशुओं के लिए पोषण की जानकारी दी जाएगी । इसमें सामान्य बीमारियों, व्यतिगत सफाई,व्यायाम/योग तथा समग्र स्वास्थ्य पद्धतियों के बारे में जानकारी भी शामिल है । पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों/सामुदायिक संगठनों की पहचान की जाएगी ।
स्वास्थ्य एवं पोषण शिक्षा प्रदान करने के लिए कुछ निदर्शी उपाय परिशिष्ट-ग में दिये गए है ।
(v) परिवार कल्याण, किशोरी प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य, बाल देखरेख पद्धतियाँ एवं गृह प्रबन्धन पर मार्ग दर्शन : आगनवाड़ी कार्यकत्री, आशा. ए.एन.एम. एवं पर्यवेक्षक की सहायता से गैर-सरकारी संगठनों/समुदाय आधारित संगठनों के जानकार व्यति यह मार्गदर्शन आगनवाड़ी केन्द्रों में प्रदान करेंगे । पर्यवेक्षक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, कानूनी अधिकारों, गृह प्रबन्धन तथा बाल देखरेख पद्धतियों के क्षेत्र में मौजूदा सुविधाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए उत्तरदायी होगी । प्रजनन चक्र. एच.आई.वी./एड्स. गर्भ-निरोध, मासिक धर्म के दौरान सफाई, सही समय पर विवाह एवं गर्भ धरण, बाल देखरेख एवं बाल आहार पद्धतियाँ, छह माह से कम आयु के बच्चे को केवल स्तनपान आदि के संबंध में 11-15 वर्ष एवं 15- 18 वर्ष दोनों आयु वर्गों की किशोरियों को आयु के अनुकूल उपयुक्त जानकारी भी दी जाएगी ।
इन मुद्दों पर जानकारी प्रदान करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों/सामुदायिक संगठनों और अन्य संस्थानो की पहचान की जाएगी ।
विवरण परिशिष्ठ –घ पर दिया गया है ।
(vi) जीवन कौशल शिक्षा एवं सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच : जीवन कौशल का तात्पर्य व्यतिगत क्षमता से है जो किसी व्यक्ति को रोज़मर्रा की जिंदगी की जरूरतों एवं चुनौतियों का कारगर रूप से सामना करने में सक्षम बनाती है । किशोरियों ऐसी जानकारी प्राप्त करेंगी तथा ऐसा दृष्टिकोण एवं कौशल विकसित करेंगी, जो उनमें स्वस्थ एवं सकारात्मक व्यवहार के अंगीकरण को समर्थन एवं बढ़ावा देते हों । इसका उद्धेश्य किशोरियों में अपने विकास की क्षमता पैदा करना है। जीवन कौशलों के विकास हेतु प्रशिक्षण में शामिल किए गए प्रमुख विषयों में आत्म- विश्वास, आत्म-ज्ञान एवं आत्म-सम्मान, निर्णय-निर्माण की क्षमता, विवेचनात्म्क सोच, संचार कौशल, अधिकारों एवं पात्रता की जागरूकता, विपत्तियों तथा साथियों से प्रतिस्पर्धा के दबावों का सम्मान करने की क्षमता, कार्य साधक साक्षरता (जहां कहीं जरूरत हो) का विकास आदि शामिल किए जाएंगे । राज्य/संघ राज्य क्षेत्र राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण स्कीम के जीवन कौशल घटक को युवा मामले विभाग की इसी प्रकार की स्कीमों/कार्यक्रमों के साथ सकेंद्रण से जोड़े तथा किशोरियों हेतु उनकी अपनी स्कीमों/निधियों के उपयोग की संभावना तलाश करें ।
आत्म-विश्वासी होने के महत्वपूर्ण घटकों में एक मौजूदा सार्वजनिक सेवाओं के बारे में जानकारी और उन तक पहुँचने की विधि से संबन्धित है । पंचयती राज संस्थाओं के सदस्यों, गैर-सरकारी संगठनों/सामुदायिक संगठनों, पुलिस कर्मियों, बैंक/डाकघर के अधिकारियों/स्वास्थ्य कर्मियों आदि के सहयोग से जागरूकता परिचर्चाए व दौरों की व्यवस्था की जानी चाहिए । औपचारिक स्कूलों में प्रवेश/पुनः प्रवेश तथा इस कार्य हेतु किशोरियों को प्ररित करने के लिए जानकारी/मार्गदर्शन भी प्राथमिक शिक्षा विभाग के सहयोग से दिया जाएगा ।
जीवन कौशल शिक्षा प्रदान करने तथा अल्पावधि मॉड्यूल आयोजित करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों तथा अन्य संस्थाओं को अभिनिर्धारित किया जाएगा ।
विवरण परिशिष्ठ –ड. पर दिया गया है ।
(vii) व्यावसायिक प्रशिक्षण : व्यावसायिक प्रशिक्षण किसी भी व्यक्ति के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान करता है । 16 वर्ष से अधिक आयु की पढ़ाई छोड़ चुकी किशोरियों को 18 वर्ष की आयु के बाद स्व-रोजगार के प्रति अभिमुख करने के लिए उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के साथ संकेन्द्रण स्थापित किया जाएगा । यह प्रशिक्षण गैर-जोखिमपूर्ण आयोत्पादक कौशलों पर केन्द्रित होगा, जो क्षेत्र विशिष्ट हो सकते हैं । विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदाता राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के विभिन्न मॉड्यूलों के अंतर्गत व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं । ब्यौरा परिशिष्ट च पर दिया गया है ।
राज्य सरकारें/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन स्थानीय व्यवस्यों, रुचियों, रोजगार की संभावनाओं इत्यादि को ध्यान में रखते हुए उपलब्ध विकल्पों में से व्यवसायों का चुनाव कर सकते हैं । राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत किशोरियों को जिस शुल्क का भुगतान करना होता है, उस शुल्क के आंशिक भुगतान के लिए इन निधियों का उपयोग क्या जा सकता है । इस प्रकार इस स्कीम का व्यावसायिक प्रशिक्षण घटक राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के मौजूदा मॉड्यूलों के कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करेगा । समग्र रूप से, उपयुक्त जीविका विकल्पों को हासिल करने के लिए ज्ञान प्राप्त एवं कौशल युक्त किशोरियों के लिए उचित वातावरण तैयार किया जाना चाहिए ।
11. क्रियावयन की कार्यविधियाँ
(i) किशोरी समूह : आंगनवाड़ी केंद्र पर 15-25 किशोरियों का समूह बनाया जाएगा । किशोरियों की संख्या 25 से अधिक होने के मामले में, तदनुसार अतिरिक्त समूह बनाए जाएंगे । किशोरी समूह का नेतृव्त तीन बालिकाएँ करेंगी, जिन्हें सखी और सहेलियाँ कहा जाएगा । इन सखी और सहेलियों का चुनाव समूह में से ही किया जाएगा । समूह की प्रमुख सखी होगी, जिसकी सहायता दो सहेलियाँ करेंगी । अन्य किशोरियों हेतु आभिजात शिक्षक के रूप में कार्य करने के लिए अभिनिर्धारित बालिकाओं, सखी एवं सहेलियाँ को परियोजना/सैक्टर स्तर पर निर्धारित मॉड्यूल के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाएगा । सखी और सहेलियाँ एक वर्ष तक समूह की सेवा करेंगी (प्रत्येक सखी का क्रमवार चार माह का कार्यकाल होगा)। किशोरियों आंगनवाड़ी केंद्र की दैनिक क्रियाओं जैसे कि स्कूल-पूर्व शिक्षा, विकास मानीटरन एवं पूरक पोषण कार्यक्रम में भागीदारी कर सकती है तथा आंगनवाड़ी कार्यक्रम की अन्य कार्यकलापों में सहायता कर सकती हैं । वे घरों के दौरों के समय आंगनवाड़ी कार्यक्रम के साथ भी जाएंगी (एक बार में 2-3 बालिकाएँ), जो उनके भविष्य के लिए प्रशिक्षण का आधार बनेगा ।
(ii) प्रशिक्षण किट : रुचिकर एवं विचारों के आपसी आदान-प्रदान के माध्यम से स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक, कानूनी मुद्धों को समझाने के लिए किशोरियों की सहायता हेतु प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र पर एक प्रशिक्षण किट होगी । किट में कई खेल एवं कार्यकलापों के लिए सामाग्री होगी, ताकि सीखने के समय बालिकायों को आनंद आए । आभिजात शिक्षा प्रदान करने के लिए अभिनिर्धारित सखी एवं सहेलियों को किट का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा ।
(iii) किशोरी दिवस : तीन माह में एक बार किसी विशेष दिन को किशोरी दिवस के रूप में मनाया जाएगा, और तब सभी किशोरियों की चिकित्सा अधिकारी/ए.एन.एम. द्वारा सामान्य स्वास्थ्य जांच की जाएगी । इस दिन चिकित्सा अधिकारी/ए.एन.एम. आयरन फॉलिक एसिड की गोलियां एवं कृमि निवारण गोलियां उन किशोरियों को देंगे, जिन्हें इनकी जरूरत है । प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र को आयरन फॉलिक एसिड की गोलियों की आपूर्ति बाल विकास परियोजना अधिकारियों/पर्यवेक्षकों द्वारा सुनिश्चित की जाएंगी । इन गोलियों का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य कार्ड में आयरन फॉलिक एसिड की गोलियों के उपयोग से संबन्धित प्रविष्टियाँ की जाएंगी । यदि आवश्यक हो,मामलों को विशेषज्ञों के पास भेजा जाएगा । इस दिन किशोरियों की लंबाई एवं वजन का माप किया जाएगा । प्रत्येक किशोरी हेतु किशोरी कार्ड तैयार किए जाएंगे तथा ये कार्ड प्रमुख उपलब्धियों को चिन्हित कर रखें जाएंगे । इस दिन विशेष कार्यकलापों/कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए । इस दिन का उपयोग समुदाय/माता/पिता/भाई-बहनों आदि को सूचना,शिक्षा एवं संचार प्रदान करने के लिए किया जा सकता है ।
(iv) स्वास्थ्य कार्ड : सभी किशोरियों के किशोरी स्वास्थ्य कार्ड आंगनवाड़ी केंद्र पर रखे जाएंगे । इस कार्ड में लंबाई, वजन, बॉडी मास संसूचक, आयरन फॉलिक एसिड अनुपूरण, कृमि निवारण, रेफेरल सेवाओं एवं प्रतिरक्षण आदि का रेकॉर्ड रखा जाएगा। यह कार्ड सखी (चयनित किशोरी) द्वारा भरा जाएगा तथा आंगनवाड़ी कार्यकत्री द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित किया जाएगा । इस कार्ड में किशोरियों हेतु महत्वपूर्ण लक्ष्य भी दर्शाए जाएंगे तथा जब भी इन्हें प्राप्त कर लिया जाएगा, इन्हें चिन्हित किया जाएगा ।
(v) कार्मिक : जिला स्तर पर जिला कार्यक्रम अधिकारी इस स्कीम के क्रियान्वयन के प्रभारी होंगे । परियोजना स्तर पर बाल विकास परियोजना अधिकारी स्कीम के क्रियान्वयन के प्रभारी होंगे । ग्राम-स्तर पर आंगनवाड़ी कार्यकत्री सुसाधक होगी तथा उसकी सहायता आंगनवाड़ी सहायिका, सखी-सहेली एवं भागीदारी गैर-सरकारी संगठन/समुदाय आधारित संगठन और स्वास्थ्य कार्यकर्ता करेंगे । आई.सी.डी.एस. पर्यवेक्षक इस स्कीम के अंतर्गत कार्यकलापों के आयोजन हेतु नियमित रूप से आंगनवाड़ी कार्यकत्री/आंगनवाड़ी सहायिका का मार्गदर्शन करेंगे । आंगनवाड़ी कार्यकत्री/सहायिका,पर्यवेक्षक, बाल विकास परियोजना अधिकारी, सखी-सहेली की भूमिका एवं उत्तरदायित्वों का विवरण परिशिष्ट –झ पर दिया गया है ।
(vi) गैर-सरकारी संगठनों/समुदाय आधारित संगठनों की भूमिका : राज्य सरकारें/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन इस स्कीम के सफल क्रियान्वयन हेतु पंचायती राज्य संस्थाओं,गैर-सरकारी संगठनो/समुदाय आधारित संगठनो/अन्य संस्थाओं को भागीदार बना सकते हैं । पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा,जीवन कौशल शिक्षा,परिवार कल्याण, किशोरी प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य एवं बाल देखरेख और गृह प्रबंधन की पद्धतियों के विषय में मार्गदर्शन प्रदान करने, सखी/सहेली को प्रशिक्षण, प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए गैर-सरकारी संगठनो/समुदाय आधारित संगठनो तथा अन्य संस्थाओं को अभिनिर्धारित किया जाएगा । इन संगठनो का चुनाव क्षेत्रीय स्तर पर ऐसे संगठनो की पहुँच और उपलब्धता के आधार पर परियोजना अधिकारियों के परमर्श से किया जाएगा । स्वास्थ्य, नैको,युवा मामले, ग्रामीण विकास जैसे अन्य विभागों के ऐसे ही कार्यक्रमों के अंतर्गत पहले से कार्यरत गैर- सरकारी संगठनो और अन्य संगठनो का उपयोग राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण स्कीम के लिए किया जा सकता है । यह सुनिश्चित करने की छूट होगी कि स्थानीय स्तर पर निर्णय लिए जाएँ ।
12. पद्धति एवं कार्यात्मक उतरदायित्व :
राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण स्कीम केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम होगी । इसका क्रियान्वयन राज्य सरकारो/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों के माध्यम से किया जाएगा । स्कीम के अंतर्गत पोषण प्रावधान के अलावा अन्य सभी निवेशों के लिए केंद्र सरकार द्वारा शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी । पुरुष पोषण हेतु भारत सरकार वित्तीय मानकों अथवा वास्तविक व्यय, जो भी कम हो,का 50% वहन करेगी ।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय केन्द्रीय स्तर पर स्कीम पर स्कीम के बजट नियंत्रण तथा प्रशासन के लिए उत्तरदायी होगा । राज्य स्तर पर महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव/आई.सी.डी.एस. देख रहे समाज कल्याण विभाग के सचिव इस स्कीम के समग्र निर्देशन तथा क्रियान्वयन हेतु उत्तरदायी होंगे । राज्य स्तर पर आई.सी.डी.एस. प्रभारी निदेशक और अन्य अधिकारी सबला स्कीम का कार्यान्वयन भी करेंगे ।
इस स्कीम का क्रियान्वयन आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से किया जाएगा, जो सेवा प्रदायगी के केंद्र बिन्दु होंगे । इसके क्रियान्वयन हेतु आई.सी.डी.एस. अवसंरचना को उपयोग में लाया जाएगा । जहां कहीं आंगनवाड़ी केन्द्रों में अवसंरचना और सुविधायों की कमी हो, वहन स्कूल/पंचायत/समुदाय के भवनो में इस प्रयोजनार्थ निर्धारित स्थान जैसी वैकल्पित व्यवस्था का उपयोग करके यह स्कीम चलाई जाएगी ।
आगनवादी कार्यकर्ता अपने केंद्र के क्षेत्र में सभी किशोरियों का सर्वेक्षण एवं पंजीकरण करेगी तथा आंगनवाड़ी केंद्र में आने की सलाह देगी । पर्यवेक्षक के साथ बाल विकास परियोजना अधिकारी अपनी आई.सी.डी.एस. परियोजना क्षेत्र स्तर पर जिले में क्षेत्रीय स्तर पर जिला कार्यक्रम अधिकारी स्कीम के क्रियान्वयन हेतु उत्तरदायी होंगे ।
13. परियोजना लागत :
भारत सरकार द्वारा राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को 3.8 लाख रुपये प्रति परियोजना प्रति वर्ष दिए जाएंगे । इस राशि में प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र हेतु प्रशिक्षण किट,पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा, जीवन कौशल शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण (राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के साथ संकेन्द्रण), सूचना शिक्षा एवं संचार, परिवहन हेतु लोचनीय राशि, रेजिस्टरों,स्वास्थ्य कार्डों एवं रेफेरल पर्चियों के मुद्रण की लागत शामिल है । प्रति परियोजना वास्तविक व्यय जनसंख्या, भौगोलिक परिस्थितियों एवं गांवो की संख्या के कारण अलग-अलग परियोजनाओं में भिन्न हो सकता है । राशि की निर्मुक्ति वास्तविक व्यय के आधार पर की जाएगी । प्रति आई.सी.डी.एस. परियोजना इकाई लागत का विवरण परिशिष्ठ – ज पर दिया गया है ।
इसके अलावा, 300 दिनों के लिए 5/- रुपये प्रति लाभार्थी प्रति दिन की दर से पोषण प्रदान किया जाएगा । किशोरियों हेतु पूरक पोषण की लागत के लिए भारत सरकार वित्तीय मानकों अथवा वास्तविक व्यय, जो भी कम हो का 50% वहन करेगी ।
14. मानीटरन, पर्यवेक्षक, रिकॉर्ड का रखरखाव एवं मूल्यांकन :
(i) मानीटरन एवं पर्यवेक्षक : किसी भी कार्यक्रम की सफलता में मानीटरन एवं पर्यवेक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । राष्ट्रीय स्तर, राज्य स्तर एवं समुदाय स्तर पर आई.सी.डी.एस. के अंतर्गत स्थापित मानीटरन एवं पर्यवेक्षक तंत्र का उपयोग इस स्कीम के लिए भी किया जाएगा । सभी स्तरों पर मानीटरन समितियों का गठन किया जाएगा ।
(ii) रिकॉर्ड का रखरखाव : आंगनवाड़ी केंद्र पर सखी/सहेली की सहायता से आंगनवाड़ी कार्यकत्री द्वारा रेजिस्टर (प्रत्येक वर्ष खोले जाने वाला) रखा जाएगा । निर्धारित प्रपत्र में बाल विकास परियोजना अधिकारी द्वारा तिमाही/वार्षिक आधार पर परियोजना – वार वास्तविक एवं वित्तीय प्रगति रिपोर्ट समेकित कर राज्य सरकार/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन को भेजी जाएगी, जो बाद में इस रिपोर्ट को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को भेजेंगे । पर्यवेक्षक यह सुनिश्चित करेगा कि आंगनवाड़ी केंद्र पर लड़कियों का सही रिकॉर्ड रखा जाए तथा इसे समेकित कर निर्धारित प्रपत्र में भरकर भेजा जाए ।
(iii) मूल्यांकन : इस स्कीम के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए स्कीम का समय- समय पर मूलयांकन किया जाएगा तथा उपचारात्म्क उपाय किए जाएंगे । राज्य/संघ राज्य क्षेत्र भी समय-समय पर इस स्कीम का मूलयांकन करें । लाभार्थियों की पहचान करने के लिए राज्य/संघ राज्य क्षेत्र प्रारम्भिक सर्वेक्षण और स्थितियों का विश्लेषण करेंगे, ताकि आगे चलकर प्रभाव के मूल्यांकन मेन निष्कर्ष दर्शाए जासकें ।
(iv) प्रशिक्षण : किशोरियों के समग्र विकास हेतु इस स्कीम के घटकों के विषय में आई.सी.डी.एस. कर्मियों (बाल विकास परियोजना अधिकारियों, पर्यवेक्षकों एवं आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों) का क्षमता-विकास किया जाएगा । प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण, आई.सी.डी.एस. कर्मियों एवं अभिनिर्धारित किशोरियों (सखी एवं सहेली) हेतु अलगसे प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किया जाएगा । स्वास्थ्य कर्मियों को अभिविन्यास/प्रशिक्षण देने की जरूरत है । अभिविन्यास/प्रशिक्षण पर एक प्रमुखमॉड्यूल विकसित किए जाने की जरूरत है तथा आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों, ए.एन.एम.आशा आदि जैसी क्षेत्र स्तरीय कर्मियों को राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा संयुक्त प्रशिक्षण दिया जाए ।
सखी/सहेलियों के प्रशिक्षण हेतु गैर-सरकारी संगठनो को भागीदार बनाया जाए । राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के मौजूदा प्रासंगिक मॉड्यूलों को किशोरियों एवं प्रशिक्षकों हेतु अंगीकृत किया जाए । यदि आवश्यकता हो तो राज्य विशिष्ट किए जाए तथा इनकी जानकारी भारत सरकार को दी जाए । भारत सरकार जो प्रशिक्षण मॉड्यूल तैयार कर रही है,राज्य/संघ राज्य क्षेत्र वे मॉड्यूल उपयोग में लाएँ ।
16. संकेन्द्रण :
स्वास्थ्य, शिक्षा, युवा मामले, श्रम,पंचायती राज आदि की विभिन्न स्कीमों/कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रदान की जा रही सेवाओं के संकेन्द्रण पर बल दिया जाएगा,ताकि वांछित परिणाम प्रपट हो सके । विभिन्न संबन्धित मंत्रालयों/विभागों के सभी स्तरों पर समन्वित प्रयास इस स्कीम की सफलता के लिए अनिवार्य हैं । विशेषकर इस स्कीम के अंतर्गत प्रस्तावित कुल सात सेवाओं में से चार सेवाए अर्थात
(i) आयरन, फौलिक एसिड की गोलियां की आपूर्ति सहित आयरन फौलिक एसिड अनुपूरण
(ii) स्वास्थ्य जांच एवं रैफरल सेवाएँ
(iii) पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा तथा
(iv) परिवार कल्याण, किशोरी प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य (आर्श) सेवाएँ
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और नैको विभाग के साथ संकेन्द्रण स्थापित करके प्रदान की जाएंगी । औपचारिक स्कूलों में प्रवेश/पुनः प्रवेश तथा इस कार्य हेतु किशोरियों को प्ररित करने के लिए शूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के साथ नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम तथा साक्षरता अभियान के अंतर्गत समनव्य स्थापित किया जाएगा । जीवन कौशल शिक्षा एवं अन्य उपायों के लिए युवा मामले एवं खेलकुद मंत्रालय के राष्ट्रीय युवा एवं किशोर विकास कार्यक्रम, मौजूदा युवा क्लबों के साथ संकेन्द्रण अपेक्षित है । श्रम मंत्रालय राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के अंतर्गत व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करता है, जिसके लिए श्रम मंत्रालय के साथ अधिकतम संकेन्द्रण किया जाए । सामुदायिक मानीटरन तथा सूचना,शिक्षा एवं संचार कार्यकलापों हेतु पंचायती राज संस्थाओं को भागीदार बनाया जाए ।
17. सामुदायिक भागीदारी एवं जागरूकता विकास
यह इस स्कीम का प्रमुख घटक होगा । बालिकायों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली रूढ़ियाँ गलत अवधारणाएँ एवं परंपराए जब तक बादल नहीं जाती, तब तक बालिकायों के पोषण,स्वास्थ्य, आर्थिक एवं सामाजिक स्तर में सुधार लाना कठिन होगा । इस उद्धेश्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय के जागरूकता स्तर में सुधार लाने के लिए पंचायतों की भागीदारी अपेक्षित है । माता-पिता, किशोरों (बालक एवं बालिकाएँ), समुदाय हेतु संचेतना कार्यक्रम गैर-सरकारी संगठनो/सिविल समाज संगठनों को भागीदार बनाकर सूचना,शिक्षा एवं संचार के अंतर्गत आयोजित किए जाएँ । ये किशोरी दिवस पर भी संकेंद्रित रूप स आयोजित किए जा सकते है ।
18. राज्य सरकारों द्वारा की जाने वाली कार्यवाही :
(i) राज्य/संघ राज्य क्षेत्र आई.सी.डी.एस. अवसंरचना के माध्यम से इस स्कीम के क्रियान्वयन हेतु उत्तरदायी होंगे ।
(ii) आई.सी.डी.एस. कर्मियों तथा संबन्धित मंत्रालय एवं विभागों के कर्मचारियों को स्कीम के बारे में जानकारी देने के लिए राज्य/जिला परियोजना स्तर पर कार्यशालयों का आयोजन ।
(iii) लाभार्थियों की पहचान करने के लिए प्रारम्भिक सर्वेक्षण करना ।
(iv) सूचना,शिक्षा एवं संचार सामग्री का विकास करके स्कीम के बारे में जागरूकता बढ़ाना/प्रचार करना ।
(v) सभी घटकों के लिए राज्य/जिला/परियोजना/ग्राम स्तरों पर कारगर संकेन्द्रण तंत्र स्थापित करना ।
(vi) बाल विकास परियोजना अधिकारी एवं जिला कार्यक्रम अधिकारियों के परामर्श से विभिन्न सेवाओं के लिए मातृ गैर-सरकारी संगठनो/गैर-सरकारी संगठनों/सामुदायिक संगठनों का चयन करना ।
(vii) स्कीम की करगरता का मूल्यांकन करने के लिए उपयुक्त स्तरों पर विश्लेषण करने के लिए,समझाने के लिए तथा उपचारत्म्क कार्यवाही करने के लिए व्यवस्थित मानीटरन प्रणाली की स्थापना करना ।
(viii) सभी स्तरों पर मानीटरन समितियों की स्थापना करना ।
परिशिष्ठ –ख
स्वास्थ्य जांच तथा रेफरल सेवाएँ
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों सहित प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना निम्मलिखित स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करेगी :-
(i) स्वास्थ्य जांच तथा रेफरल सेवाएँ
(ii) आयरन एवं फॉलिक एसिड की गलियाँ की आपूर्ति तथा वितरण
(iii) कृमि निवारण दवाएं
आयोजित किए जाने वाले क्रियाकलापों में निम्मलिखित को शामिल किया जाए :-
प्रत्येक 3 माह में कम से कम एक बार किशोरी दिवस पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा किशोरियों की सामान्य स्वास्थ्य जांच की जाएगी ।
किशोरियों में वितरण हेतु स्वास्थ्य विभाग से आइरन एवं फॉलिक एसिड की गोलियां प्राप्त की जाएँ । यदि इनकी आपूर्ति स्वास्थ्य विभाग द्वारा नहीं की जाती है तो भारत सरकार से अनुमोदन प्राप्त करने के पश्चात ये गोलियां इस स्कीम के बजट से खरीदी जा सकती है ।
किशोरियों के विकास की स्थिति पर निगरानी रखने के उद्धेश्य से किशोरियों की लंबाई तथा वजन रिकॉर्ड किया जाए तथा स्वास्थ्य कार्ड में बी.एम.आई. दर्ज किया जाए ।
जिन किशोरियों को समस्या के निराकरन के लिए विशिष्ट उपचार की अवशयकता है, उन्हें हस्पतालों/प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों/सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों/जिला हस्पतालों में उपचार हेतु रैफर किया जाएगा । चिकित्सा अधिकारों ऐसे मामलों को उक्त प्रयोजनार्थ निर्धारित रेफरल पर्ची के साथ भेजेगा ।
चिकित्सा अधिकारी उन लड़कियों को, जिन्हें कृमि निवारण गोलियों की आवश्यकता है, राज्य विशिष्ट दिशा-निर्देशों के आधार पर ये गोलियां प्रदान का सकता है ।
किशोरियों के स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी सामान्य प्रशनों के उत्तर दिए जा सकते हैं ।
परिशिष्ठ –ग
पोषण तथा स्वास्थ्य किशोरियों की समग्र शारीरिक स्थिति को दर्शाते हैं क्यूंकी ये उनकी विकास पद्धतियाँ निर्धारित करते हैं । किशोरियों के लिए स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी सही तथा प्रासंगिक जानकारी के साथ-साथ उचित पोषक आहार सुनिश्चित किए जाने की जरूरत होती है,क्यूंकी किशोरावस्था तीव्र विकास की अवस्था होती है, इस समय किशोरी का शरीर भविष्य में माँ बनने के लिए तैयार होता है ।
निम्मलिखित मुद्धों के संबंध में मार्गदर्शन प्रदान किया जाए :
स्वास्थ्य : व्यक्तिगत स्वच्छता, सफाई, मासिक धर्म के प्रारम्भ तथा इससे संबन्धित परिवर्तनों, व्यायाम, योग, प्राथमिक उपचार हानिकर मिथकों तथा पारंपरिक प्रथाओं, घरेलू उपचारों,सामान्य बीमारियों, नशीली दवाओं एवं शराब से दूर रहने, तनाव मैं कमी आदि ।
पोषण : स्वास्थ्यकर खाना बनाने एवं खाना खाने कि आदतें, सुरक्षित पेय जल,संतुलित आहार,स्थानीय रूप से उपलब्ध पोषक खाद्द, पोषण कि कमी से होने वाले विकार एवं उनकी रोकथाम, गर्भावस्था तथा शैशव काल में पोषण, शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार इत्यादि ।
इन्हें विभिन्न तरीकों के माध्यम से किया जा सकता है, जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं :
विशिष्ट रूप से आयोजित अल्प पाठ्यक्रम
आंगनवाड़ी केंद्र में आई.सी.डी.एस. तथा स्वास्थ्य विभाग द्वारा संयुक्त रूप से स्वास्थ्य मेला सामूहिक विचार-विमर्श, प्रश्नोत्तर सत्रों, पहेलियों आदि जैसे पोषण स्वास्थ्य शिक्षा मॉड्यूलों का आयोजन ।
स्थानीय रूप से उपलब्ध पोषक आहार के सर्वोतम उपयोग हेतु प्रशिक्षण प्रदर्शन तथा शिक्षा के लिए खाद्द एवं पोषण बोर्ड कि चल खाद्द तथा विस्तार इकाइयों कि सुविधाओं का उपयोग करना ।
स्वास्थ्य, पोषण,बाल देखभाल संबंधी मुद्धों आदि के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए आंगनवाड़ी केंद्र के दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों में किशोरियों कि भागीदारी ।
किशोरियों के प्रशनों एवं चिंताओं का निराकरण करना ।
परिशिष्ठ – घ
निम्मलिखित से संबन्धित मुद्धों पर 11-15 और 15-18 वासर्ह के दो आयु वर्गों की किशोरियों को आयु के अनुसार उपयुक्त मार्गदर्शन प्रदान किया जाए :
(i) परिवार कल्याण : परिवार नियोजन,प्रजनन चक्र, सही आयु होने पर विवाह करने तथा बच्चों के जन्म के लाभ, सुरक्षित मातृत्व, प्रशिक्षण आदि ।
(ii) किशोरी प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य : किशोरी प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य, मासिक धर्म के प्रारम्भ, मासिक धर्म के दौरान साफ-सफाई, बच्चों के जन्म की योजना, एड्स/एच.आई.वी./एस.टी.डी., गर्भ निरोध इत्यादि के विषय में आयु विशिष्ट मोड्युल्स । प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य – 2 और नैको के अंतर्गत मॉड्यूल उपलब्ध हैं,जिनसे संकेन्द्रण स्थापित किए जाने की जरूरत है ।
(iii) बाल देखभाल पद्धतियाँ : स्वस्थ बाल।पोषण पद्धतियाँ, केवल स्तनपान के लाभ, बच्चों को संभालना, सामान्य बीमारियाँ आदि ।
(iv) गृह प्रबंधन : घर का रखरखाव, घर के बजट की योजना बनाना, बचत, गृह चलना, महिलोन्मुख संचेतना, बच्चों की शिक्षा का महत्व आदि ।
यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (क्यूंकी किशोरियों से संबन्धित कई मुद्धे प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य -2 जैसे ही है) तथा गैर-सरकारी संगठनो/सामुदायिक संगठनो के जानकार व्यक्तियों के समन्वय से किया जाएगा । उपयोग में लाई जाने वाली कुछ विधियाँ परिशिष्ठ – ग में दी गई हैं ।
परिशिष्ठ – ड
(क) किशोरियों की जीवन कौशल शिक्षा में निम्मलिखित शामिल किए जाएंगे –
(i) समस्या समाधान
(ii) विवेचनात्म्क सोच विचार
(iii) वार्तालाप कौशल
(iv) स्व-जागरूकता कौशल
(v) तनाव का सामना करना
(vi) नेतृत्व
जीवन कौशल संरचना हेतु कुछ क्रियाकलापों का उद्धेश्यविभिन्न मोड्यूलों के माध्यम से निम्मलिखित पर व्यावहारिक सूचना एवं ज्ञान प्रदान करना है :
(i) वैयक्तिक स्वच्छता
(ii) स्वस्थता
(iii) योग
(iv) खेलकुद
(v) कारगर वार्तालाप
(vi) केरियर संबंधी लक्ष्यों सहित निर्णय-निर्माण
(vii) सकारात्मक स्व-अवधारणा
(viii) घरेलू हिंसा अधिनियम, अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, बाल विवाह (प्रतिषेध) अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम, सूचना का अधिकार अधिनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे विधिक अधिकारों तथा कानूनों के संबंध में जागरूकता
(ix) मूलभूत उपयोगिता सेवाएँ
(x) कार्य साधक साक्षरता (जहां कहीं अपेक्षित हो)
(xi) मत देने तथा जंतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार
जीवन कौशल अंतक्षेपों के प्रत्याशित परिणाम इस प्रकार हैं :
(i) आत्म-सम्मान में वृद्धि
(ii) निश्चायात्मकता
(iii) वार्तालाप कौशल
(iv) योजना बनाने तथा लक्ष्य निर्धारण की क्षमता
(v) स्वास्थ्य,पोषण, कानूनी अधिकार आदि के संबंध में विशिष्ट मुद्दों से संबन्धित ज्ञान प्राप्त करना
(vi) समस्याओं को हल करने की क्षमता
जीवन कौशल शिक्षा प्रदान करने के लिए युवा मामले विभाग, युवा क्लबों के साथ संकेन्द्रण स्थापित करने की जरूरत है ।
(ख) सार्वजनिक सेवाएँ प्राप्त करने संबंधी मार्गदर्शन
क्षेत्र में मौजूदा सार्वजनिक सुविधाओं संबंधी सूचना तथा उन तक पहुँच के बारे में जानकारी देना जैसे कि :
(i) स्वास्थ्य केन्द्रों,बैंको,डाकघरों इत्यादि में जाना
(ii) बैंक/डाकघर में खाता खोलना/उसका संचालन करना
(iii) पुलिस थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराना तथा पुलिस सेवाएँ प्राप्त करना
(iv) शिक्षा विभाग के साथ समनव्य से शिक्षा में खोये हुए अवसरों तक पहुँच संबंधी सूचना प्रदान करना
(v) पंचायती राज संस्था तथा इसमें कैसे भागीदारी की जाए, के बारे में जानकारी
(vi) सरकारी कार्यालय और उनका कामकाज
(vii) सर्वाधिक परिवहन, आरक्षण जैसी सुविधाओं के उपयोग द्वारा सुरक्षित यात्रा
परशिष्ट – च
व्यावसायिक प्रशिक्षण का किसी व्यक्ति की तथा व्यापक रूप से समाज की सामाजिक-आर्थिक प्रगति में काफी बड़ा योगदान है । यह सुविदित है कि व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण से मिलने वाले सामाजिक तथा आर्थिक लाभ अधिक होते हैं, क्यूंकी ये प्रशिक्षण कम लागत वाले तथा रोजगार के अवसरों से जुड़े होते हैं । व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण शिष्ट जीवनयापन एवं सशक्तिकरण करने वाले आयोत्पादक कौशलों पर केन्द्रित होने चाहिए । 16 वर्ष से अधिक आयु की प्रत्येक किशोरी को कम से कम एक व्यवसाय संबंधी कौशल प्रदान किया जाए ताकि परिणामस्वरूप वह स्व-रोजगार/वैतनिक रोजगार प्राप्त कर सके अथवा अन्य सहभागियों के साथ लघु उद्यम लगा सके ।
राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम श्रम एवं रोजगार मंत्रालय का ऐसा कार्यक्रम है, जिसका उद्धेश्य अच्छा रोजगार प्राप्त करने के लिए कौशलों में सुधार और ज्ञान के माध्यम से सभी व्यक्तियों का सशक्तिकरण करना है । इस कार्यक्रम के अंतर्गत कौशल विकास के अवसरों के साथ-साथ स्थानीय श्रम बाजार/रोजगार, व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसरों और सहायता स्कीम के विषय में जानकारियाँ प्रदान करने वाले केन्द्रों के रूप में कौशल विकास केन्द्रों को गावों और ब्लॉकों के स्तर पर प्रोत्साहित किया जाएगा । स्व-सहायता दलों, सहकारी समितियों और गैर-सरकारी संगठनो के सहयोग से स्थानीय स्तर पर कौशल विकास और रोजगार के अवसरों के सृजन के कार्य में पंचायतों,नगर-पालिकाओं और अन्य स्थानीय निकायों का सहयोग लिया जाएगा।
लक्षित वर्गों की विशेषताओं और परिस्थितियों के अनुरूप ऑनसाइट या ऑफसाइट प्रशिक्षण के अवसरों वाले लचीले प्रशिक्षण तंत्र प्रदान करने वाले अल्पकालिक, बजारोन्मुख, मांग प्ररित कार्यक्रमों के लिए किशोरियों के पंजीकरण हेतु श्रम मंत्रालय के साथ तालमेल स्थापित किया जाएगा ।
प्रशिक्षण ट्रेड का चयन
निम्मलिखित मानदंडों के आधार पर प्रशिक्षण के ट्रेड का चयन किया जाना चाहिए :
(i) क्षेत्र में विशेष ट्रेड की मांग
(ii) उपलब्ध प्रशिक्षण सुविधाएं
(iii) उत्पादों का स्थानीय मांग
(iv) प्रशिक्षुओं की रुचि तथा इच्छाएं
(v) प्रशक्षण के बाद रोजगार के अवसर
व्यावसायिक प्रशिक्षण घटक से जुडने तथा राष्ट्रीय कौशल वियक्स कार्यक्रम के अंतर्गत लिए जाने वाले शुल्क की आंशिक प्रतिपूर्ति करने के लिए परियोजना प्रति वर्ष 30,000/- रुपये की निधियों का उपयोग करने के लिए राज्य/संघ राज्य क्षेत्र ग्राम स्तरों पर कौशल विकास केन्द्रों के साथ संकेन्द्रण स्थापित करेंगे ।
परिशिष्ठ – छ
स्कूली शिक्षा छोड़ चुकी लड़कियां
यह स्कीम स्कूली शिक्षा छोड़ चुकी सभी किशोरियों (11-18 वर्ष) पर केन्द्रित है । ये किशोरियां सप्ताह में 1 या 2 दिन (परिछेद सं. 12 के अनुसार) आंगनवाड़ी केंद्र अथवा वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में निर्धारित भवनों में एकत्र होंगी ।
इन किशोरियों के लिए इन दिनों हेतु प्रति दिन 2-3 घंटे के कार्यकलापों की आयोजना तैयार की जाए । (समय और दिनों के बारे में निर्णय राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों को लेना है)
विभिन्न मुद्धों पर सत्रों का आयोजन किया जाएगा । इन सत्रों के लिए आंगनवाड़ी केन्द्रों हेतु दिन-वार समय सारिणी परियोजना स्तर पर तैयार की जाए । आयु के अनुरूप कुछ विशेष कार्यक्रमों के लिए इन सत्रों को 11-15 वर्ष की आयु और 15-18 वर्ष की आयु की किशोरियों के लिए दो श्रेणियों में बांटा जाए । इन सत्रों का संचालन संसाधन व्यक्ति करेंगे, जो गैर-सरकारी संगठनो/सामुदायिक संगठनो/स्व-सहायता दलों/क्षेत्रीय प्रशिक्षकों/स्थानीय दस्तकारों इत्यादि में से आ सकते हैं । इन सत्रों का आयोजन बाल विकास परियोजना अधिकारी और पर्यवेक्षक करेंगे तथा आंगनवाड़ी कार्यकत्री/आशा कार्यकत्री/ए.एन.एम. उनकी सहायता करेंगी । खाध एवं पोषण बोर्ड की क्षेत्रीय इकाइयों को भी शामिल किया जा सकता है । लड़कियों की नेता सखी और सहेली इन सत्रों के लिए लड़कियों का एकत्र करने में सहायता करेंगी ।
इन सत्रों के विषय इस प्रकार हो सकते हैं :
(i) पोषण
(ii) सामान्य स्वास्थ्य/किशोरी प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य
(iii) अधिकार एवं पात्रता, कानूनी उपबंधों के बारे में जानकारी
(iv) जीवन कौशल तथा गृह कौशल
(v) सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच
(vi) प्रशिक्षण हेतु स्थानीय दस्तकार की पहचान की जाए/प्रशिक्षण का कार्य सौंपा जाए
स्कूल जाने वाली और स्कूल न जाने वाली, दोनों प्रकार की किशोरियों के लिए मिश्रित सामूहिक कार्यकलाप
जब स्कूलों में पढ़ाई चल रही हो,तब इस कार्यकलाप का आयोजन महीने में दो बार और जब स्कूलों में छुट्टी हो, तब महीने में दो से अधिक बार किया जाएगा । उपयुर्क्त विषयों पर सत्रों,कहानी सत्रों,खेलों,सामूहिक परिचर्चा जैसे मिश्रित सामूहिक कार्यकलाप का आयोजन इन अवसरों पर किया जा सकता है । प्रशिक्षण सत्रों का संचालन जानकार व्यक्ति करेंगे, जो गैर-सरकारी संगठनो/सामुदायिक संगठनो/स्व-सहायता दलों/क्षेत्रीय प्रशिक्षकों/स्थानीय सस्तकारों इत्यादि में से आ सकते हैं । इन सत्रों का आयोजन बाल विकास परियोजना अधिकारी और पर्यवेक्षक करेंगे तथा आंगनवाड़ी कार्यकत्री/आशा कार्यकत्री/ए.एन.एम. उनकी सहायता करेंगी । खाध एवं पोषण बोर्ड की क्षेत्रीय इकाइयों को भी शामिल किया जा सकता है । स्कूल के अध्यापक इन दिनों बालिकायों से बातचीत कर सकते हैं और स्कूल न जा रही किशोरियों को उपयुक्त कक्षाओं में दाखिल कर सकते हैं ।
स्कूल न जा रही बालिकायों को इन कार्यकलाप और सत्रों के आयोजन से स्कूल जाने वाली अपनी साथियों की तरह ही शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर और प्रेरणा प्राप्त होंगी तथा स्कूल जाने वाली बालिकायों को सार्वजनिक सेवाओं, जीवन कौशलों इत्यादि को समझने में मदद मिलेगी ।
परिशिष्ठ – ज
1. इकाई लागत/आई.सी.डी.एस. परियोजना
सं. |
मद |
प्रति आई.सी.डी.एस.परियोजना लागत |
1 |
प्रति आंगनवाड़ी केंद्र 1000 रुपये की दर से प्रशिक्षण किट |
1,50,000 रुपये |
2 |
सूचना,शिक्षा एवं संचार सहित जीवन कौशल शिक्षा |
50,000 रुपये |
3 |
सखी/सहेली का प्रशिक्षण |
40,000 रुपये |
4 |
सूचना,शिक्षा,एवं संचार सहित पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा घटक तथा सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच संबंधी मार्गदर्शन |
30,000 रुपये |
5 |
व्यावसायिक प्रशिक्षण |
30,000 रुपये |
6 |
विविध व्यय(किशोरी दिवस के आयोजन आदि पर व्यय |
30,000 रुपये |
7 |
अन्य(स्वास्थ्य कार्डों/रेजीस्टेरो की छपाई/बर्तन आदि) |
30,000 रुपये |
8 |
आयरन एवं फॉलिक एसिड की गोलियां प्रदान करने की लागत(जहां पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा आयरन एवं फॉलिक एसिड प्रदान नहीं की जाती है) |
20,000 रुपये |
|
जोड़ |
3,80,000 रुपये |
वर्ष 2010-11 के सात महीनो के लिए निधियों को आवश्यकता ।
स्कीम के अंतर्गत विभिन्न सेवाओं के लिए राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के साथ भागीदारी गैर-सरकारी संगठनो एवं समुदाय आधारित संगठनो को उपयुर्क्त के अनुसार संबन्धित क्रियाकलापों/सेवाओं के लिए निर्धारित राशि में से राज्यों/सान राज्य क्षेत्रों द्वारा प्रतिपूर्ति की जाएगी ।
वर्ष में 300 दिनों के लिए प्रति लाभार्थी प्रति दिन 5/-रुपये की दर से पूरक पोषण कार्यक्रम हेतु आंकलन । पूरक पोषण कार्यक्रम के लाभार्थियों की संख्या (वर्ष में 300 दिनों के लिए प्रति दिन प्रति लाभार्थी 5/-रुपये की दर से) अनुमानित लाभार्थियों की कुल संख्या में से वर्ष 2010-11 के लिए 40% तथा 2011-12 के लिए 50% के रूप में आंकी गई है।
शेष परियोजनाओं में किशोरी शक्ति योजना (जहां चलाई जा रही है) का कार्यान्वयन जारी रखा जाएगा । किशोरी शक्ति योजना के लिए निधियों की आवश्यकता वर्ष 2010-11 में 55 करोड़ रुपये और 2011-12 में 42 करोड़ रुपये है।
परिशिष्ठ – झ
1. आंगनवाड़ी कार्यकत्री/सहायिका
(i) वे अपने आंगनवाड़ी केंद्र के कार्यक्षेत्र में सर्वेक्षण करेगी तथा समस्त किशोरियों का पंजीकरण करेगी
(ii) वे सखी तथा सहेली की सहायता से किशोरी दिवस पर आयोजित समस्त क्रियाकलापों का निरीक्षण करेंगी ।
(iii) सखी की सहायता से आंगनवाड़ी केंद्र में रेजिस्टर तथा किशोरी स्वास्थ्य कार्डों का रख-रखाव करेंगी ।
(iv) वे किशोरियों को संगठित कर उनके लिए पोषाहार का वितरण करेंगी । इस कार्यकलाप के लिए वे सखी तथा सहेली की सहायता ले सकती हैं ।
(v) वे आई.सी.डी.एस. के अंतर्गत किए जाने वाले घरों के दौरों के दौरान किशोरियों से संबन्धित मुद्धों का भी निराकरन करेंगी । घरों के दौरों के दौरान आंगनवाड़ी कार्यकत्री के साथ एक समय पर दो या तीन किशोरियाँ जा सकती है ।
(vi) वे किशोरियों के लिए आयरन एवं फॉलिक एसिड अनुपूरण, कृमि निवारण गोलियों के वितरण आदि जैसे स्वास्थ्य संबंधी क्रियाकलापों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के क्रमचरियों की सहायता करेगी ।
(vii) वे सभी किशोरियों को सबला स्कीम के लाभ प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी ।
(viii) वे सखी और सहेली के चुनाव में किशोरियों की सहायता करेंगी ।
(ix) आंगनवाड़ी सहायिका उपयुर्क्त सभी कार्यकलाप में आंगनवाड़ी कार्यकत्री की सहायता करेंगी ।
2. पार्यवेक्षक
(i) आंगनवाड़ी कार्यकत्री के साथ-साथ पार्यवेक्षक किशोरियों के नामांकन को सुकर बनाएँगे ।
(ii) सर्व शिक्षा अभियान,साक्षरता अभियान, प्राथमिक स्कूलों एवं ग्रामीण शिक्षा समितियों के साथ संपर्क स्थापित करके किशोरियों को अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करने के कार्य को सुसाध्य बनाएँगे ।
(iii) किशोरियों को दी जाने वाली पोषण तथा स्वास्थ्य शिक्षा, जीवन कौशल शिक्षा तथा अन्य कार्यक्रमों के लिए अनुदेशकों का अभिनिर्धारण करना/प्रबंध करना ।
(iv) नियमित अंतरालों पर ग्रामीण या क्षेत्रीय स्तर पर आयोजित साथियों को प्रशिक्षित करने के कार्यकलापों का पार्यवेक्षक तथा सखी/सहेली का प्रशिक्षण सुकर बनाना ।
(v) किशोरी दिवस तथा अन्य क्रियाकलापों की देखरेख करना एवं योजना बनाना ।
(vi) पोषण को छोडकर अन्य घटकों के लिए आंगनवाड़ी केंद्र व समय-सारिणी तैयार करना ।
(vii) आंगनवाड़ी केन्द्रों के दौरों के समय किन्हीं भी 10% किशोरियों की जांच करना ।
3. बाल विकास परियोजना अधिकारी
(i) बाल विकास परियोजना अधिकारी सबला स्कीम के बारे में समुदाय के बीच जागरूकता पैदा करने की योजना तैयार करेंगे ।
(ii) वे संबन्धित मंत्रालयों/विभागों के साथ क्षेत्रीय स्तर पर संकेन्द्रण की योजना बनाएँगे ।
(iii) विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु ब्लॉक स्तर पर गैर-सरकारी संगठनो/समुदाय आधारित संगठनो/संसाधन व्यतियों/संस्थाओं को अभिनिर्धारित करेंगे ।
(iv) पर्यवेक्षकों के साथ-साथ वे स्थानीय रूप से व्यवहार्य व्यावसायिक ट्रेंडो, जिनमे किशोरियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है,का अभिनिर्धारण करेंगे ।
(v) परियोजना क्षेत्र मेन किशोरी स्कीम के कार्यान्वयन हेतु पर्यवेक्षकों तथा आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को हर प्रकार का मार्गदर्शन प्रदान करना ।
(vi) परियोजना में स्कीम के कार्यान्वयन से संबन्धित व्यय के साथ-साथ समस्त क्रियाकलापों का प्रबोधन तथा पर्यवेक्षण करना ।
4. सखियाँ तथा सहेलियाँ
(i) सखी किशोरी समूह के प्रमुख के रूप में कार्य करेगी । प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र में दो सहेलियाँ द्वारा उसकी सहायता की जाएगी ।
(ii) वे निर्धारित मॉड्यूल के अनुसार अपेक्षित प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात किशोरी समूह के लिए शिक्षक साथियों के रूप में कार्य करेंगी ।
(iii) आंगनवाड़ी कार्यकत्री किशोरियों को स्कीम में शामिल होने के लिए प्ररित करने के कार्य में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए सखियों तथा सहेलियों को प्रोत्साहित करेगी ।
(iv) सखियाँ एवं सहेलियाँ दैनिक आधार पर तथा किशोरी दिवस पर आंगनवाड़ी केंद्र में आयोजित किए जाने वाले क्रियाकलापों में सहायता करेंगी ।
(v) सखियाँ तथा सहेलियाँ समस्त किशोरियों को अपने किशोरी स्वास्थ्य कार्डों को भरने तथा आंगनवाड़ी केन्द्रों में उनका रखरखाव करने के लिए प्ररित करेंगी ।
(vi) वे रेजिस्टरों के रखरखाव में आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों की सहायता करेंगी ।
(vii) वे घर ले जाने वाले राशन के वितरण में सहायता करेंगी ।
क्र.सं. |
राज्यों के नाम |
जिलों के नाम |
1 |
अंडमान व निकोबार द्वीप समौह |
अंडमान |
|
|
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2 |
आंध्र प्रदेश |
महबूब नगर |
3 |
अदिलाबाद |
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4 |
अनंतपुर |
|
5 |
विशाखापटटनम |
|
6 |
चितौड |
|
7 |
पशिम गोदावरी |
|
8 |
हैदराबाद |
|
|
|
|
9 |
|
पापुमपारे |
10 |
लोहित |
|
11 |
पशिम कमेंग |
|
12 |
पशिम सियांग |
|
|
|
|
13 |
असम |
धुबरी |
14 |
दरंग |
|
15 |
हैलाकांडी |
|
16 |
कोकराझार |
|
17 |
काबरी अंगलांग |
|
18 |
दिबरूगड |
|
19 |
कमरु |
|
20 |
जोरहाट |
|
|
|
|
21 |
बिहार |
कटिहार |
22 |
वैशाली |
|
23 |
पशिम चंपारण |
|
24 |
बंकर |
|
25 |
गया |
|
26 |
सहरसा |
|
27 |
किशनगंज |
|
28 |
पटना |
|
29 |
बक्सर |
|
30 |
सीतामढ़ी |
|
31 |
मुंगेर |
|
32 |
औरंगाबाद |
|
|
|
|
33 |
चंडीगढ़ |
चंडीगढ़ |
|
|
|
34 |
छतीसगढ़ |
सरगुजा |
35 |
बस्तर |
|
36 |
रायपुर |
|
37 |
रायगढ़ |
|
38 |
राजनंद गाँव |
|
|
|
|
39 |
दादर एवं नगर हवेली |
दादर एवं नगर हवेली |
40 |
दमन व दीव |
दीव |
41 |
दमन व दीव |
दमन |
|
|
|
42 |
दिल्ली |
उतरी पशिम |
43 |
उतरी पूर्व |
|
44 |
पूर्व |
|
|
|
|
45 |
गोवा |
उतरी गोवा |
46 |
दक्षिणी गोवा |
|
|
|
|
47 |
गुजरात |
बनस कंथा |
48 |
दोहाट |
|
49 |
कच्छ |
|
50 |
पंचमहल |
|
51 |
नर्मदा |
|
52 |
अहमदाबाद |
|
53 |
जामनगर |
|
54 |
जूनागढ़ |
|
55 |
नौसारी |
|
|
|
|
56 |
हरियाणा |
कैथल |
57 |
हिसार |
|
58 |
यमना नगर |
|
59 |
अंबाला |
|
60 |
रेवाड़ी |
|
61 |
रोहतक |
|
|
|
|
62 |
हिमाचल प्रदेश |
चंबा |
63 |
कुल्लू |
|
64 |
सोलन |
|
65 |
कांगड़ा |
|
|
|
|
66 |
जम्मू व कश्मीर |
अनंतनाग |
67 |
कुपवाड़ा |
|
68 |
कठुआ |
|
69 |
जम्मू |
|
70 |
लेह (लद्दाख) |
|
|
|
|
71 |
झारखंड |
गिरिडीह |
72 |
साहिबगंज |
|
73 |
गहुआ |
|
74 |
हजारीबाग |
|
75 |
गुमला |
|
76 |
पशिम सिंघभूम |
|
77 |
रांची |
|
|
|
|
78 |
कर्नाटक |
गुलबर्ग |
79 |
कोलर |
|
80 |
बेंगलुर |
|
81 |
बाजीपुर |
|
82 |
बिलेरी |
|
83 |
धारवाड़ |
|
84 |
चिकमंगलूर |
|
85 |
उतार कांगड़ा |
|
86 |
कोडागु |
|
|
|
|
87 |
केरल |
मालापुरम |
88 |
पलक्कड |
|
89 |
कोलम |
|
90 |
इडुक्की |
|
|
|
|
91 |
लक्षद्वीप |
लक्षद्वीप |
|
|
|
92 |
मध्य परदेश |
शिवपुर |
93 |
राजगढ़ |
|
94 |
सिद्धि |
|
95 |
नीमच |
|
96 |
झाबुआ |
|
97 |
टिकमगढ़ |
|
98 |
रीवा |
|
99 |
भिण्ड |
|
100 |
दमोह |
|
101 |
इंदौर |
|
102 |
सागर |
|
103 |
जबलपुर |
|
104 |
भोपाल |
|
105 |
बैतूल |
|
106 |
बालाघाट |
|
|
|
|
107 |
महाराष्ट्र |
बीड |
108 |
|
नांदेड |
109 |
मुंबई |
|
110 |
नासिक |
|
111 |
गढ़चिरौली |
|
112 |
बुलढाना |
|
113 |
कोल्हापुर |
|
114 |
सातारा |
|
115 |
अमरावती |
|
116 |
नागपुर |
|
117 |
गोंदिया |
|
|
|
|
118 |
मणिपुर |
चंडेल |
119 |
सेनापति |
|
120 |
पशिम इम्फ़ाल |
|
|
|
|
121 |
मेघालय |
पशिम गारो हिल्स |
122 |
दक्षिण गारो हिल्स |
|
123 |
पूर्वी ख़ासी हिल्स |
|
|
|
|
124 |
मिज़ोरम |
लुंगलेई |
125 |
सईहा |
|
126 |
ऐज्वाल |
|
|
|
|
127 |
नागालैंड |
मौन |
128 |
|
.......................... |
129 |
कोहिमा |
|
|
|
|
130 |
उड़ीसा |
कोरापुत |
131 |
गजापति |
|
132 |
मयूरभंज |
|
133 |
सुंदरगढ़ |
|
134 |
कालाहांडी |
|
135 |
भद्रक |
|
136 |
पूरी |
|
137 |
कटक |
|
138 |
बारगढ़ |
|
|
|
|
139 |
पांडिचेरी |
करईकल |
|
|
|
140 |
पंजाब |
पटियाला |
141 |
फ़रीदकोट |
|
142 |
गुरदासपुर |
|
143 |
मनसा |
|
144 |
जालंधर |
|
145 |
होशियारपुर |
|
|
|
|
146 |
राजस्थान |
भीलवाड़ा |
147 |
जोधपुर |
|
148 |
बांसवाड़ा |
|
149 |
उदयपुर |
|
150 |
झालावाड़ |
|
151 |
डुंगरपुर |
|
152 |
बीकानेर |
|
153 |
जयपुर |
|
154 |
बाड़मेर |
|
155 |
गंगानगर |
|
|
|
|
156 |
सिक्किम |
उत्तरी |
157 |
पूर्वी |
|
|
|
|
158 |
तमिलनाडु |
सलेम |
159 |
तिरुवन्नामलाई |
|
160 |
…………………… |
|
161 |
रामनाथपुरम |
|
162 |
मदुरै |
|
163 |
त्रिचरापल्ली |
|
164 |
कोयम्बटूर |
|
|
|
|
165 |
|
चेन्नई |
166 |
|
कन्याकुमारी |
|
|
|
167 |
त्रिपुरा |
पशिम त्रिपुरा |
168 |
ढलाई |
|
|
|
|
169 |
उत्तर प्रदेश |
श्रावस्ति |
170 |
बहराइच |
|
171 |
महाराजगंज |
|
172 |
ललितपुर |
|
173 |
आगरा |
|
174 |
सोनभद्र |
|
175 |
सीतापुर |
|
176 |
मिर्ज़ापुर |
|
177 |
चंदौली |
|
178 |
देवराय |
|
179 |
छत्रपती साहूजी महाराज नगर |
|
180 |
महोबा |
|
181 |
पीलीभीत |
|
182 |
राय बरेली |
|
183 |
बांदा |
|
184 |
फर्रुखाबाद |
|
185 |
बुलन्दशहर |
|
186 |
सहारनपुर |
|
187 |
जालौन |
|
188 |
बिजनौर |
|
189 |
लखनऊ |
|
190 |
चित्रकूट |
|
|
|
|
191 |
उत्तरांचल |
हरिद्वार |
192 |
उत्तरकाशी |
|
193 |
चमौली |
|
194 |
नैनीताल |
|
|
|
|
195 |
पशिम बंगाल |
मालदा |
196 |
पुरुलिया |
|
197 |
नादिया |
|
198 |
कच्छ बिहार |
|
199 |
जलपाईगुड़ी |
|
200 |
कोलकाता |
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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