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मनोरोग का उपचार

मनोरोग का उपचार

  1. परिचय
  2. दवाओं से उपचार
  3. दवाएं प्रयोग करने के चरण
  4. दवाओं का इस्तेमाल
  5. अवसादरोधी (एन्टीडिप्रेसेंट)
  6. चिंतारोधी दवाएं
  7. एन्टीसाइकोसिस दवाएं
  8. दवाओं के सह-प्रभाव की स्थिति
  9. इंजेक्शन की जरुरत
  10. मनोरोग में इंजेक्शन के जरिए उपचार
  11. दवाओं की लागत
  12. यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि मनोरोगी दवाएं लें ?
  13. बातचीत के जरिए उपचार व परामर्श
  14. मनोरोगी को आश्वासन दें
  15. उसके रोग के बारे में समझाएं
  16. रवि का उदहारण
  17. माइकल के मामले पर विचार
  18. विश्राम व श्वास संबंधी व्यायाम
  19. खास लक्षणों के बारे में सलाह
  20. समस्याओं का समाधान करना
  21. जिंदगी से जुड़ी समस्याएं
  22. रोगी को उपचार के बारे में समझाएं
  23. समस्याओं को परिभाषित करें
  24. समस्याओं का सार-संक्षेप पेश करें
  25. समाधानों को परिभाषित करें
  26. सुझाए गए समाधान
  27. समीक्षा
  28. परामर्श देना
  29. पीड़ित व्यक्ति का पुनर्वास
  30. फॉलो-अप का महत्व
  31. अन्य उपचार
  32. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की भूमिका
  33. रेफरल लेटर का उदहारण
  34. याद रखने योग्य बातें

परिचय

एक ऐसा भी वक्त था जब मानसिक अस्वस्थताओं से पीड़ित अनेकों लोगों को पागलखानों में तालों के भीतर बंद रखा जाता था और अपमानजनक तरीके से उनका उपचार किया जाता है। मनोरोग से पीड़ित व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले व्यवहार के लिए लोग उन्हें ही दोषी ठहराया करते थे और उन्हें गलियां देते थे। यहाँ तक कि आज भी, मनोरोग से पीड़ित अनेकों व्यक्तियों के मानवधिकारों का उनके घरों और कुछ मानसिक हस्पतालों में उल्लंघन होता है। ढ़ेरों लोग सोचते हैं कि मनोरोग का इलाज नहीं हो सकता। कुछ लोगों को यह स्पष्ट नहीं आती कि किसी से केवल ‘बातचीत करने’ को ‘चिकित्सीय’ उपचार कैसे माना जा सकता है।

पर सच्चाई बहुत अलग है। ज्यादातर मानसिक अवस्थताओं का प्रभावी तरीके से इलाज किया जा सकता है। असल समस्या यह है कि मानसिक अवस्थताओं से पीड़ित अनेकों लोग स्वास्थ्य कार्यकर्ता के पास पानी समस्या लेकर लगभग नहीं आते। जब आते भी है तो उन्हें जो उपचार मिलता है वह असरदार नहीं होता, बल्कि नुकसानदेह भी हो सकता है। शारीरिक बीमारियों के लिए ली जाने वाली दवाओं की तरह ही, मनोरोग के लिए ली जाने वाली दवाएं भी केवल तब तक असर करती हैं, जब वे सही मात्रा में सही अवधि के लिए ली जाएं। ‘बातचीत करना’ गोली लेने जितना ही असरदार हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि बातचीत के जरिए उपचार कैसे और किस कारण से किया गया है।

इसे पढ़ते हुए आपको दो महत्वपूर्ण बातें ध्यान रखनी चाहिए :

  • ज्यादातर मनोरोग का इलाज सामान्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा आत्मविश्वास के साथ किया जा सकता है, अगर उनके पास वह बुनियादी जानकारियां हों जिनका वर्णन इस मार्गदर्शिका में किया गया है। इसलिए, मनोरोग के निदान का यह अर्थ नहीं कि पीड़ित व्यक्ति को किसी विशेष की देखभाल की जरुरत है। इसका अर्थ केवल इतना है कि आपको मालूम होना चाहिए कि किस तरह के उपचार की जरुरत है।
  • मनोरोगों का उपचार करने के अनेकों प्रभावी तरीके हैं। मनोरोग का उपचार करने का आम तरीका है, केवल शारीरिक लक्षणों का उपचार करना। उदहारण के लिए, नींद की समस्या के लिए नींद की गोलियां, थकान के लिए टॉनिक और विटामिन तथा दर्द के लिए दर्द निवारक दे देना। यह तरीका अंतत: सबसे कम असरदार होता है। जिस तरह शारीरिक अस्वस्थता के लिए अस्वस्थता की किस्म का ठीक निदान और उसका सही और खास उपचार जरुरी है, वैसे ही मनोरोग के उपचार में भी ये दोनों ही बातें उतनी ही जरुरी है।

दवाओं से उपचार

दवाओं का इस्तेमाल कब किया जाना चाहिए ?

सबसे पहले तो आपको यही तय करना है कि दवाओं का इस्तेमाल किया जाए या नहीं। कभी-कभी, दवाएं तब भी लिख दी जाती हैं, जब स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता को लग रहा हो कि उनकी कोई जरुरत नहीं है। केवल इसलिए दवाओं का इस्तेमाल न करें कि परामर्श लेने आया व्यक्ति दवाओं की उम्मीद करता है। अगर कुछ लोग दवाओं की उम्मीद करते हैं तो इसलिए कि जब भी वे स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता से परामर्श करने आते हैं, उन्हें दवाएं मिलती रही हैं और उन्हें इस बात की आदत हो गई है। हो सकता है कि वे यह विश्वास करने लगे हों कि बीमारी का एकमात्र इलाज गोलियां और इंजेक्शन होते हैं। संभव है कि उन्हें ज्ञान, जीवन शैली में लाये गए बदलावों तथा भावनात्मक समर्थन द्वरा अदा की जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में मालूम ही न हो। अगर आप खुद को मिले इस मौके को उन्हें शिक्षित करने के लिए इस्तेमाल नहीं करते और इसके बजाय अनावश्यक दवाओं का प्रयोग करते हैं, तो हो सकता है कि उस व्यक्ति की समस्या में सुधार आने में अपेक्षाकृत ज्यादा वक्त लग जाए। हो सकता है कि अंततः वह व्यक्ति ज्यादा बार और ज्यादा देर के लिए आपके पास आने लगे और इस तरह आपका ज्यादा समय लेने लगे।

दूसरी ओर, ऐसी भी लोग हैं जो दवाएं बिल्कुल नहीं लेना चाहते। इसके लिए वे अनेक कारण और बहाने पेश करेंगे। पर दवा लेने से इंकार करने का सबसे आम कारण है इंकार करने वाले की अज्ञानता।

कुछ स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को लग सकता है कि मनोरोगों के लिए दी जाने वाली दवाएं बहुत खतरनाक होती हैं। विभिन्न मनोरोगों के लिए अलग-अलग तरह के दवा उपचार हैं। आपको कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। अगर आप ठीक से इनका पालन करेंगे, तो मनोरोगों के लिए दी जाने वाली दवाएं भी अन्य दवाओं की तरह ही सुरक्षित होंगी। जब इस बात के साफ-साफ सुबूत हों कि किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति को दवाओं से लाभ होगा, तब दवाओं से परहेज करने की गलती न करें।

जाना माना नियम है कि निम्न मनोरोगों में दवाएं फायदा करेंगी :

  • खंडित मानस (स्किजोफिन्या), मनोन्मादी-अवसादी अस्वस्थता (मोनिक-डिप्रेसिव डिसआर्डर) और गंभीर मनोवृक्रितियों (साइकोसिस) सहित गंभीर मानसिक अस्वस्थताएं ;
  • आम मानसिक अस्वस्थताएं, खासकर तब जब इन्हें एक महीने से ज्यादा हो गया हो और ये व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित कर रही हों ;
  • गंभीर तनावपूर्ण स्थित्तियां, जैसे किसी निकट संबंधी की मृत्यु के बात उत्तेजना व बेचैनी।

दवाएं प्रयोग करने के चरण

  • इस बात को जानते हुए कि निदान आपके उपचार के चुनाव को ज्यादा आसान बना देगा, मनोरोग की किस्म की पहचान करने की कोशिश करें।
  • मनोरोग की किस्म के आधार पर फैसला करें कि क्या दवा से इलाज जरुरी है। +
  • खास दवा का चुनाव करने के लिए खण्ड 3.1.2 में बताए गए दिशानिर्देशों का पालन करें।
  • रोगी को समझाएं कि दवाएं कैसे ली जानी हैं और कितने वक्त के लिए।
  • सह-प्रभावों को कम करने के लिए, कुछ दवाओं को कम मात्रा में शुरू करने की जरुरत होती है। फिर इन्हें धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से जरुरी औसत मात्रा तक बढ़ाया जाता है।
  • दवाओं के सह-प्रभावों पर हमेशा सावधानीपूर्वक निगाह रखें ( हालांकि ज्यादातर मनोचिकित्सीय दवाएं काफी सुरक्षित होती हैं )।
  • अधिकतम मात्रा में ज्यादा दवा कभी न दें।
  • कुछ दवाओं को बहुत कम समय (जैसे अवसादरोधी) और कुछ को बहुत ज्यादा समय (जैसे नींद की गोलियां) के लिए इस्तेमाल करने से बचें।
  • फॉलो-उप क्लीनिकों में दवाओं को ‘पहले की तरह’ जारी रखने के प्रलोभन से बचें। अगर आप किसी को बरसों तक एक ही दवा लेते देखें, तो उस व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति की फिर से समीक्षा करें।
  • अपने क्षेत्र में दवाओं के प्रचलित बाजार नामों और उनकी कीमतों की जानकारी रखें। भाग चार में इस जानकारी के लिए खाली जगह छोड़ी गई है।

दवाओं का इस्तेमाल

कौन सी दवाओं का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ?

अगला चरण है इस बात का फैसला करना कि कौन सी दवा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मनोरोगों के लिए दवाओं के चार मुख्य समूह है :

  • अवसाद का इलाज करने वाली दवाएं (एंटीडिप्रेसेंट या अवसादरोधी) ;
  • चिंताग्रस्तता का इलाज करने वाली दवाएं (बीटा–ब्लाकर्स सहितएंटी–एन्जाइटी या चितारोधी) ;
  • गंभीर मनोरोगों का इलाज करने वाली दवाएं (एंटीसाइकोटिक या मनोविकृतिरोधी) ;
  • मनोन्मादी-अवसादवादी रोग (मेनिक-डिप्रेसिव डिसऑर्डर) को नियंत्रित करने वाली दवाएं।

कभी-कभी इस्तेमाल की जानी वाली दवाएं निदान किये गए मनोरोग की किस्म पर निर्भर करेंगी। अवसादरोधी दवाओं का इस्तेमाल कनरे के लिए किया जाता है। इसलिए, निदान चाहे जो हो, किसी रोगी को सोने में मदद देने के लिए नींद की गोलियां इस्तमाल की जा सकती हैं। इसी तरह, गंभीर मानसिक अस्वस्थता या मंदबुद्धिता के कारण पैदा होने वाली व्यवहार संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए एन्टीसाइकोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। नीचे खास किस्म के मनोरोगों में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं के संबंध में कुछ सामान्य दिशानिर्देश दिए गए हैं। बाजार में प्रचलित नामों, मूल्य, खुराक की मात्रा, तथा सह-प्रभावों संबंधी विवरण भाग चार में देखे जा सकते हैं।

अवसादरोधी (एन्टीडिप्रेसेंट)

इन दवाओं का इस्तेमाल अवसाद और चिंताग्रस्तता के लिए किया जाता है। ये अस्वस्थताएं अक्सर थकान या नींद की समस्या जैसे ऐसी शारीरिक समस्याओं के रूप में सामने आती हैं जिनकी चिकित्सीय व्याख्या नहीं की जा सकती। इसके अलावा, ये संत्रास (पेनिक), मनोग्रसित – मनोबाध्यता (ओब्सेसिव- कम्पल्सिव ) रोग तथा विभिन्न प्रकार के फोबिया के इलाज में भी उपयोगी हैं। इन्हें शराब के दुरूपयोग या खंडित मानस ( स्किजोफिन्या ) जैसे अन्य मनोरोगों के साथ अवसाद के होने की स्थिति में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

अवसादरोधीयों की तीन प्रमुख किस्में हैं जिनका आप इस्तेमाल कर सकते हैं :

  • इमिप्रोमाइन, इमिट्रिप्तीलाइन, नोरिमिप्रोमाईन, नोरट्रिप्तीलाइन, डोथिपिन और डेसिप्रेमाइन जैसे ट्राईसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट्स या अवसादरोधी ;
  • फ्लूओक्सिटाइन, सरट्रेलाइन व फ्लूवाक्सेमाइन जैसे सिरोटोनिन ‘बूस्टर’ ;
  • वेन्लाफेक्साइन, पेरोक्सिटाईन, ब्यूप्रोपिआन व सिटालोप्राम जैसे नई दवाएं। अवसादरोधी दवाएं लेने का निर्देश देते वक्त आपको कुछ बातें याद रखनी चाहिए :
  • अवसादरोधी दवाएं अपना असर दिखाने में तीन से चार सप्ताह का समय लेती हैं।
  • रोज फिर न उभरे, इसके लिए आपको कमसे कम छह महीने तक इलाज जारी रखना चाहिए।
  • ये केवल तभी असर करती हैं जब सही मात्रा में दी जाएं।
  • ट्राइसाइक्लिक अवसादरोधी उनीदापन पैदा कर सकते हैं। रोगियों को शराब से परहेज करने के लिए कहें।
  • इनके सह-प्रभाव अक्सर बहुत कम समय के लिए होते हैं। सह-प्रभाव महसूस होने पर भी रोगियों को दवाएं जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • जिन लोगों को प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ी हुई है या ग्लूकोमा है, उन्हें ट्राइसाइक्लिक देने से बचें।
  • सिरोटोनिन ‘बूस्टर’ बहुत कम सह-प्रभाव दिखाते हैं, पर ये ज्यादा महंगे हो सकते हैं।

चिंतारोधी दवाएं

इन दवाओं को ‘स्लीपिंग पिल्स’ या नींद की गोलियां भी कहा जाता है। इनमें डायजेपाम, नाइट्राजेपाम, लोराजेपाम, क्लोनाजेपाम, एल्प्राजोलाम और कॉक्साजेपाम शामिल हैं। इन्हें नींद संबंधी समस्याओं तथा चिंताग्रस्तता का उपचार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

  • इन दवाओं को तजवीज करते वक्त, आपको कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए :
  • रोगी को शराब से परहेज करनी चाहिए ;
  • गर्भावस्था के अंतिम चरण में पहुंच चुकी महिलाओं को ये दवाएं नहीं देनी चाहिए ;
  • सामान्य नियम यह है कि उन्हें चार सप्ताह से ज्यादा समय तक नहीं दिए जाना चाहिए, क्योंकि रोगी इन पर निर्भर हो सकता है।

बीटा-ब्लाकर

ये दवाएं अक्सर उच्च रक्तचाप और ह्रदय संबंधी समस्याओं का इलाज करने के लिए दी जाती हैं। इनमें से प्रोप्रानोलोल गंभीर चिंताग्रस्तता के शारीरिक लक्षणों ( हांथ का कांपना और दिल का जोरों से धड़कना) को नियंत्रित करने में मददगार पाई गई है। इन्हें तजवीज करते हुए दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

  • जिन्हें सांस और ह्रदय के रुक जाने की समस्या हो, उन्हें ये दवाएं नहीं दी जानी चाहिए ;
  • गर्भावस्था के अंतिम चरण में पहुंच चुकी महिलाओं को ये दवाएं देने से बचना चाहिए।

एन्टीसाइकोसिस दवाएं

एन्टीसाइकोटिक दवाएं अनेकों प्रकार की होती हैं। इन्हें श्रेणियों में बांटने का एक सरल तरीका है:

  • क्लोरोप्रोमेजाइन, थिओरेडेजाइन, ट्रीफ्लूओपरेजाइन और हेलोपेरिडोल जैसी पुरानी एन्टीसाइकोटिक दवाएं;
  • ओलन्जेपाइन, क्लोजेपाइन और रिजपेरिडोन जैसी नई एन्टीसाइकोटिक दवाएं।

सामान्यतः पुरानी दवाएं ज्यादा सह-प्रभाव पैदा करती हैं, पर नई दवाओं के मुकाबले ये ज्यादा सस्ती हैं।

एन्टीसाइकोटिक दवाएं गंभीर मानसिक अस्वस्थताओं के उपचार तथा आक्रमक या संभ्रमित रोगियों को शांत करने में मददगार होती हैं। इसलिए, वे मंदबुद्धि या व्यवहार संबंधी समस्याओं वाले मतिभ्रंश के रोगियों को भी दी जा सकती हैं।

  • इन दवाओं को तजवीज करते समय, आपको निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए ;
  • इन्हें अपना पूरा असर दिखाने में कई सप्ताहों का समय लग सकता है।
  • संक्षिप्त साइकोसिस के मामलों में दो सप्ताह के बाद उपचार को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है। अगर लक्षण फिर से प्रकट हो जाते हैं, तो शुरू की मूल मात्रा फिर से दें, तीन महीने तक इसे जारी रखें और उसके बाद इन दवाओं का इस्तेमाल कम करने की कोशिश करें।
  • खंडित मानस का उपचार कम से कम एक साल तक करें ( अनेकों रोगियों को और लंबे उपचार की जरुरत होगी)।
  • मनोन्माद का इलाज लक्षणों के समाप्त होने और उनके तीन महीने बाद तक करें। इस दौरान आगे मनोन्माद की सम्भावना को रोकने के लिए किसी दूसरी दावा की शुरुआत करें ( नीचे देखें )।
  • इन दवाओं के सह-प्रभाव आम हैं, पर ज्यादातर लोगों में वे बहुत हल्के रूप में प्रकट होते हैं।
  • खुराक की मात्रा को थोड़ा सा कम करने से सह प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है|
  • कंपन तथा एंठन के सह-प्रभावों को कम करने के लिए प्रोसाइक्लिडाइन या बेंजहेकजोल का इस्तेमाल करें। कुछ मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कमसे कम सह-प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए अपने सभी रोगियों को ये दवाएं देते हैं। इससे नियमित दावा लेने को भी प्रोत्साहन मिलता है।
  • मांसपेशियों की गंभीर एंठन ( मसलन गर्दन की एंठन) के लिए प्रोसाइक्लिडाइन या बेंजहेकजोल के इंजेक्शन का इस्तेमाल करें।

मनोन्मादी-अवसादी (मेनिक-डिप्रेसिव) या द्वि-ध्रुवीय (बाईपोलर) मनोरोगों के लिए दवाएं

मनोन्मादी – अवसादी रोग ही एकमात्र ऐसा मनोरोग है जिसमें रोग को फिर से न होने देने के लिए विशेष दवाएं हैं। निम्न तीन में किसी एक दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है :

  • लिथियम कार्बोनेट ;
  • सोडियम वाल्प्रोएट ;
  • कार्बामेजेपाइन।

इनमें से हर दवा को लंबे समय तक (आम तौर पर कमसे कम दो साल) लिए जाने की जरुरत होती है। साथ ही उन्हें लेने वालों के रक्त में दवाओं के स्तर को मॉनीटर करने की भी जरुरत होती है। आदर्श स्थिति में इन्हें शुरू करने का फैसला किसी विशेषज्ञ द्वारा किया जाना चाहिए। अगर रक्त में दवा के स्तर की जांच करने के लिए सुविधाएँ नहीं हैं, तो लिथियम के इस्तेमाल से परहेज किया जाना चाहिए। अगर विशेषज्ञ की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, तो लिथियम के बजाय कार्बामेजेपाइन और वाल्प्रोएट का इस्तेमाल ज्यादा सुरक्षति है। इनमें से कोई भी दवा गर्भवती महिला को नहीं दी जानी चाहिए।

रोगी की हालत में सुधार न होने की स्थिति में क्या किया जाना चाहिए ?

  • अगर रोगी की हालत में सुधार न हो, तो इसके लिए निम्न संभावित कारणों पर विचार करें :
  • नियमित दवाएं न लेना। यह सुनिश्चित कर लें कि रोगी ने तजवीज की दावा की सही खुराक और उसकी वजह समझ ली है। लोग कई कारणों से नियमित दवा नहीं लेने। एक तो जब उन्हें अपनी हालत में सुधार दिखने लगता है तो वे सोचते हैं कि उन्हें अब दवाएं लेने की जरुरत नहीं। दूसरे , हो सकता है कि रोगी को चिंता होती हो कि वह दवाओं पर निर्भर हो जाएगा। दवाओं के सह-प्रभावों के कारण भी रोगी दवाएं लेना छोड़ सकता है।
  • दवाओं के पर्याप्त मात्रा में न होना। अवसादरोधी दवाओं के मामले में यह खासकर बहुत महत्वपूर्ण है। इन दवाओं की अक्सर बहुत कम खुराक दी जाती है।
  • पर्याप्त लंबे समय तक दवाएं न लेना। यह स्थिति फिर अवसादरोधीयों पर लागू होती है। ये दवाएं अपना असर तभी दिखाती हैं जब इनकी निर्धारित मात्रा कमसे कम दो सप्ताहों तक ली जाए।
  • गलत निदान होना। लोग उदास होने के कारण अलग-थलग और अपने में बंद या थके हो सकते हैं या कुछ मामलों में वे मनोविकृति से पीड़ित हो सकते हैं। दूसरे  मामले में अवसादरोधी दवा असर नहीं करेगी। अगर आप को भरोसा है कि रोगी ने निर्धारित मात्रा में पूरी खुराक कमसे कम एक महीने तक ली है, तो आप अपने निदान पर पुनर्विचार करें।

अगर उपरोक्त बातों पर विचार करने के बाद भी आपके रोगी की हालत में सुधार नहीं हो रहा, तो आपको उसे सबसे निकट के विशेषज्ञ केन्द्र को रेफर करने की जरुरत के बारे में सोचना चाहिए।

दवाओं के सह-प्रभाव की स्थिति

दवाओं के सह-प्रभाव होने की स्थिति के बारे में क्या किया जाना चाहिए ?

सबसे पहले यह सुनिश्चित करे ले कि शिकायतें वास्तव में ही दवाओं के सह-प्रभाव हैं। उदहारण के लिए, कोई रोगी कह सकता है कि दवा शुरू करने के बाद से उसे थकान महसूस हो रही है, लेकिन सुहानुभुतिपूर्ण तरीके से पूछे गए सवालों से यह बात भी सामने आ सकती है कि ये लक्षण उस रोगी में दवा शुरू करने से पहले भी मौजूद थे, इसलिए बहुत   संभव है कि वे बीमारी के परिणाम हों। ऐसे मामलों में रोगी को यह बात समझा कर उसे आश्वस्त करें। मनोचिकत्सीय दवाओं के सह-प्रभावों को याद रखें ; अगर कोई शिकायत इन सह-प्रभावों में से मेल नहीं खाती, तो इसके कारणों के बारे में सोचें।

एक बार यह सुनिश्चित कर लेने के बाद कि रोगी में वास्तव में सह-प्रभाव प्रकट हो रहे हैं, आपके पास निम्न विकल्प है :

  • क्या ये सह-प्रभाव बर्दाश्त के बाहर हैं ? ज्यादातर दवाओं के कुछ सह-प्रभाव होते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर प्रभाव मामूली और कुछ समय के लिए होते हैं। प्रभावित व्यक्ति के पूछिए कि सह-प्रभावों के कारण उसे कितनी परेशानी हो रही है। अक्सर वे कहेंगे कि वे इन्हें बर्दाश्त कर सकते हैं, बशर्ते दवाओं का लाभ जल्दी ही उनके सामने आ जाए।
  • क्या खुराक कम की जा सकती है ? कभी-कभी खुराक की मात्रा को कम कर दे देखा जा सकता है और ऐसा करने से रोग को ज्यादा बिगाड़े बिना सह-प्रभावों को कम किया जा सकता है।
  • क्या रोगी को बदल कर दूसरी दावा दी जा सकती है ? एक ही मनोरोग के उपचार के लिए कई दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर एक तरह की दवा के कारण ऐसे सह-प्रभाव पैदा होते हैं जो रोगी की बर्दाश्त के बाहर है, तो आप कोई दूसरी दवा शुरू कर सकते हैं।
  • क्या दवा जरुरी है ? फ़ॉलो-अप में हो सकता है कि कुछ रोगियों के लिए आपको दवा जरुरी न लगे। आप दवा बंद करने पर विचार कर सकते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए कि रोगी अभी भी बेहतर महसूस कर रहा है, उसे एक सप्ताह के बाद आने के लिए कह सकते हैं।

इंजेक्शन की जरुरत

मनोरोग के उपचार में इंजेक्शनों की जरुरत कब होती है ?

मनोरोगों के उपचार में इंजेक्शनों की बहुत सीमित भूमिका होती है। इन स्थितियों के अलावा, मनोरोगों के उपचार में इंजेक्शनों का प्रयोग न करना ही बेहतर होता है। थकान और कमजोरी जैसी शिकायतों के लिए विटामिन जैसे अनावश्यक इंजेक्शनों का इस्तेमाल करने से परहेज करें, क्योंकि ये अक्सर विटामिन की कमी की बजाय आम मानसिक अस्वास्थताओं का नतीजा होती हैं।

मनोरोग में इंजेक्शन के जरिए उपचार

हिंसक और उत्तेजित लोगों के मामले में जो मुहं से दवाएं लेने से इंकार करते हैं :

निम्न में से कोई भी इंजेक्शन:

  • डायेजेपाम, 5 – 10 मिलीग्राम मांसपेशी के भीतर या नस के भीतर धीरे-धीरे
  • हेलोपेरिडोल, 5 – 10 मिलीग्राम मांसपेशी के भीतर
  • क्लोरप्रोमेजाइन, 25-100 मिलीग्राम, मांसपेशी के भीतर

(सिर्फ डॉक्टर के निर्देश पे ही इन दवाईयों का उपयोग करें)

ऐसे लोगों के मामले में जो स्किजोफिन्या से पीड़ित हिया और मुहं से ली जाने वाली दवाएं नियमित नहीं लेते, इसलिए बार-बार बीमार होते हैं ( आदर्श स्थिति यह होगी कि आप ऐसे रोगी को विशेषज्ञ को रेफर कर दें )

निम्न में से कोई भी इंजेक्शन :

  • फ्लूफेनाजाइन डीकानोएट, 25 – 75 मि.ग्रा हर चौथे सप्ताह
  • फ्लूपेंथिग्जोल डीकानोएट, 25-200 मि.ग्राम हर चौथे सप्ताह
  • हेलोपेरिडोल डीकानोएट, 25-100 मिलीग्राम हर चौथे सप्ताह
  • ज्युक्लोपेंथिग्जोल डीकानोएट, 100-400 मिलीग्राम हर चौथे सप्ताह

दवाओं की लागत

कई नई मनोचिकित्सीय दवाएं पुरानी दवाओं से बेहतर हैं यानी उनके सह-प्रभाव कम हैं और चिकित्सीय असर बेहतर है। लेकिन, उनकी एक मुख्य सीमा ( उपचार की अन्य समस्याओं में नई दवाओं की तरह ही) उनका मूल्य या लागत है। कौन सी दवा देनी है, यह तय करने से पहले हमेशा लागत के इस पहलू पर विचार कर लेना चाहिए, क्योंकि जिस व्यक्ति को दवाओं की जरुरत है हो सकता है उसके लिए दोनों तरह की दवाओं के बीच कीमत का अंतर उनके सह-प्रभावों के अंतर के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अध्याय ग्यारह में आपके क्षेत्र में दोनों तरह की दवाओं की कीमत लिखने के लिए खाली जगह छोड़ी गई है ताकि आप अपने से परामर्श करने वाले लोगों के लिए सही दवा का चुनाव कर सकें।

यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि मनोरोगी दवाएं लें ?

आप जो सबसे महत्वपूर्ण काम कर सकते हैं, वह है लोगों को उनके रोगों तथा दवाओं के बारे में शिक्षित करना। कुछ महत्वपूर्ण बातें नीचे दी गई हैं :

  • समझाएं कि कोई रोगी कैसे लक्षणों को जन्म देता है। और जैसे शारीरिक बीमारी में दवाएं मददगार होती हैं, उसी तरह मनोरोगों में भी होती हैं।
  • रोगी को दवा लने के लिए प्रोत्साहित करने में परिवार को संलग्न करें ( रोगी की स्वीकृति के साथ)
  • काम मात्रा से दवा शुरू करें ताकि सह-प्रभाव कम हों। धीरे-धीरे दवा की मात्रा को निर्धारित स्तर तक ले जाएं।
  • समझाएं कि मनोरोगों की अनेकों दवाएं अपना असर दिखाने में कुछ समय लेती हैं (उद्धरण के लिए, अवसादरोधी आम तौर अपर अपना असर दिखाने में कमसे कम दो सप्ताह का वक्त लेते हैं )
  • जब तक रोगी में सुधार के चिन्ह न दिखाई देने लगें, उन्हें सप्ताह में कमसे कम एक बार देखें।
  • अगर सह-प्रभाव होते हैं, तो इससे पहले बताए गए कदमों का पालन करें।
  • सरल खुराकों की समय-सारणी अपनाएं। ऐसी अनेकों मनोचिकित्सीय दवाएं हैं ( उदहारण के लिए, ज्यादातर एन्टीसाइकोटिक और एन्टीडिप्रेसेंट) दो दिन में केवल एक बार दी जा सकती हैं।
  • अगर आप जानते हैं कि रोगी आपसे पिछली बार कितनी तारीख को मिला था, तो आप दवा की शीशी या स्ट्रिप पर बची हुई गोलियों को गिन कर अंदाजा लगा सकते हैं कि क्या रोगी ने उतनी गोलियां लीं जितनी आपने बताई थीं।

बातचीत के जरिए उपचार व परामर्श

कुछ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को लगता है कि ‘उपयुक्त’ स्वास्थ्य देखभाल ‘मात्र बातचीत’ से कुछ ज्यादा शामिल होना चाहिए। अनेकों लोग यह संदेह भी प्रकट करते हैं कि बातचीत को उपचार माना ही जा सकता। इसीलिए अनेकों स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता लगभग हर उस व्यक्ति को दवाएं देते हैं जो भी क्लीनिक में आता है और अनेकों लोग उम्मीद करते हैं कि क्लीनिक में जाने पर उन्हें दवाएं दी जाएंगी। बल्कि कुछ लोग तो आप से यह भी कह सकते हैं कि उन्हें इंजेक्शन की जरूरत है ! स्वास्थ्य क्षेत्र में बातचीत के जरिए उपचार को लेकर फैले कुछ संदेहों और मिथकों को स्पष्ट कर देना जरुरी है।

बातचीत के जरिए किये गए उपचार को काम तौर पर ‘काउंसिलिंग’ या परामर्श देना कहा जाता है। काउंसलिंग शब्द का प्रयोग अनेकों तरीकों से किया जाता है और भिन्न-भिन्न लोगों के लिए उसके अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं। इसलिए, औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त कोई व्यक्ति संकट या परेशानी से पीड़ित अपने मित्रों को परामर्श दे सकता है। इस तरह के परामर्श या काउंसलिंग में परामर्शदाता अक्सर मात्र अपनी भीतर की आवाज और ज्ञान का इस्तेमाल करते हैं। इस पद्धति के अपने मजबूत पहलू हैं, और इसमें हर व्यक्ति का अपना खास तरीका होता है इसलिए, यह अन्यों के सीखने और इस्तेमाल के लिए एक ‘उपचार’ के रूप में उपयोगी नहीं हो सकती। एक उपचार के रूप में ‘कांउसलिंग’ वास्तव में किसी मित्र से बातचीत करने भर से कुछ ज्यादा अर्थ रखती है।

  • परामर्श या काउंसलिंग में एक पद्धति होती है। सभी परामर्श पद्धतियों ऐसे सिधान्तों पर आधारित होती हैं जो इस बात की व्याख्या करते हैं कि किसी व्यक्ति को मनोरोग क्यों है और साथ ही समस्याओं का समाधान ढूंढते हैं।
  • परामर्श उन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा दिया जाता है जिनके पास लोग मदद के लिए आए हैं। इस स्थिति में जब सलाह और आश्वासन दिया जाता है, तो उसका अपने आपमें एक संभावित उपचारात्मक असर होता है। परामर्श देना एक कौशल है जिसे हर वह स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता सीख सकता है जिसकी इसमें दिलचस्पी है और जिसके पास एक खुला दिमाग है।

इस बात के सुबूत मौजूद हैं कि परामर्श मनोरोग से पीड़ित व्यक्तियों की वास्तव में सहायता करता है। लेकिन, परामर्श और दवा चिकित्सा के बीच कोई प्रतियोगिता का संबंध नहीं है। अगर आप शिक्षा देने और उचित आश्वासन पर्दान करने को परामर्श देने के मुख्य तत्वों के रूप में मानते हैं, तो आप हर उस व्यक्ति को परामर्श देते हैं जिसके साथ आप काम कर रहें हैं। अंततः हर व्यक्ति को अपनी बीमारी के बारे में समझना चाहिए। रोग के बारे में शिक्षित होने से बहुत फर्क पड़ता है। एक तरफ एक व्यक्ति आपकी मदद के बाद संतुष्ट है। दूसरी ओर, दूसरा व्यक्ति है जो परेशान है और किसी दूसरे  स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता की मदद लने की कोशिश कर रहा है।

समस्या समाधान ( नीचे देखें) जैसे कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक उपचार सरल और उपयोगी रणनीतियां हैं जिन्हें क्लीनिक में अनेकों तरह की स्थितियों में प्रयुक्त किया जा सकता है। इसलिए, एक सामान्य नियम के रूप में परामर्श के बुनियादी तत्वों का इस्तेमाल उन सभी लोगों के लिए किया जाना चाहिए, जो आपसे मिलने आते हैं, भले ही उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्या जो भी हो। कुछ के मामले में, आप परामर्श के साथ दवाओं के इस्तेमाल का फैसला भी कर सकते हैं।

कुछ मनोरोगों के मामले में ज्यादा खास किस्म के मनोवैज्ञानिक उपचारों का इस्तेमाल जयादा प्रभावशाली के साथ किया जा सकता है। खासकर आम मानसिक अस्वस्थताओं, शराब व नशीली दवाओं की लत के मामले में। परामर्श के जरिए उपचार के लिए उठाए जाने वाले विशेष कदम इस प्रकार है :

  • आश्वासन दें ;
  • रोग की व्याख्या करें ;
  • विश्राम (रिलेक्सेशन) और श्वास संबंधी व्यायाम बताएं ;
  • खास लक्षणों के बारे में सलाह दें ;
  • समस्या-समाधान कौशल सिखाएं।

हालांकि नीचे की गई चर्चा मुख्यतः आम मानसिक अस्वस्थताओं के बारे में है, लेकिन इसके अनेकों सिद्धांतों को अन्य रोगों के मामले में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

मनोरोगी को आश्वासन दें

आम तौर पर अवसाद व चिंताग्रस्तता से पीड़ित लोगों को स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वार मेंटल या न्यूरोटिक यानी पागल कह कर रफा दर किया जाता है। इस टिप्पणी से यह संकेत मिलता है जिसे उन लोगों को वास्तव में कोई चिकित्सीय समस्या नहीं है। आपके लिए यह कहने की गलती से बचना बहुत जरुरी है – “तुम्हें कुछ नहीं हुआ है”। ज्यादातर लोग आपकी यह टिप्पणी सुन कर परेशान हो जाएंगे। आखिरकार, उन्हें कुछ तो हुआ ही है ! बहुत लोग इस बात से चिंतित होंगे कि उन्हें कोई गंभीर शारीरिक बीमारी है। इस अहसास से वे और ज्यादा तनाव व परेशानी में आ जाते हैं। इसलिए, आपको उन्हें आश्वस्त करना चाहिए कि आप समझ रहे हैं कि वे काई तरह के परेशान करने वाले लक्षणों से पीड़ित हैं, पर ये लक्षण किसी जीवनघाती या खतरनाक बीमारी में नहीं बदलेंगे। आपको उन्हें आश्वस्त करना चाहिए कि उनकी बीमारी बहुत आम है और आप उन्हें उसका कारण समझाएंगे और समस्या का इलाज करेंगे।

उसके रोग के बारे में समझाएं

समस्या की प्रकृति के बारे में समझाने से वह व्यक्ति लक्षणों के कारणों को समझ जाता है और अपने संदेहों का समाधान पा लेता है। सबसे पहले, सामान्य अर्थों में समझाएं कि शारीरिक असुविधा के लक्षण जिंदगी में हर किसी को कभी-न-कभी महसूस होते हैं। उदहारण के लिए, दाई ओर दिखाई गई लूसी का मामला लें : उसके बाद आप उन खास लक्षणों पर केन्द्रित कर सकते हैं जो उस व्यक्ति ने आपको बताएं हैं। अगर आप को मालूम है कि लक्षण किस तरह शुरू हुए, तो आप उनका ज्यादा सही अर्थ समझा सकते हैं। उदहारण के लिए, आप केस 1.2 की रीता से कह सकते हैं :

“जब कोई व्यक्ति किसी चीज को लेकर तनाव में, परेशान या दुखी हो, तो उसे अक्सर नींद में दिक्कत आएगी। उसे दर्द और चिंताएं महसूस होंगी। आप पिछले महीने से थकान और परेशानी महसूस कर रही हैं। यह इस कारण है कि जब से आपके पति की मृत्यु हुई है और आपके बच्चे गांव से गए हैं आप तनाव में है। आप अवसाद का शिकार हो गई हैं। ऐसा नहीं है कि आप आलसी या फिर मेंटल केस। यह एक आम समस्या है जो हमारे समुदाय के बहुत सारे लोगों को प्रभावित करती है। आपने जो भी समस्याएं बताई, वे सब इसी भावनात्मक रोग के कारण हैं।”

रवि का उदहारण

“आपके सांस लेने की कठिनाई, सर घुमने, तेजी से दिल धड़कने और डर के लक्षण चिंताग्रस्तता के दौरों के कारण है। ये बहुत आम समस्याएं हैं, किसी खतरनाक बीमारी का संकेत नहीं। दरअसल, यह सब आपको इसलिए होता है कि आप किसी बात को लेकर तनाव या चिंता में है। जब आप तनाव में होते हैं, तो आप सामान्य से जायदा तेजी से सांस लेंते हैं। जब आप तेजी से सांस लेते हैं, तो इससे आपके शरीर में परिवर्तन होते हैं जिसके कारण आपका दिल तेजी से धड़कने लगता है और आप डरने लगते हैं कि कुछ भयानक होने वाला है। दरअसल, अगर आपने अपने सांस की गति पर नियंत्रण कर लिया होता, तो आप इस दौरे को तेजी से रोक सकते थे। आपको चिंता के ये दौरे शायद अपने मित्र के दुर्घटना में मर जाने से लगे सदमे की वजह से पड़ रहे हैं। ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है, यह इस बात का लक्षण नहीं कि आप पागल हो रहे हैं।”

माइकल के मामले पर विचार

“आपकी नींद की दिक्कत, सुबह तबियत ख़राब होने और पेट में जलन और दर्द सब आपके ज्यादा शराब पीने से जुड़ी समस्याएं हैं। शराब आदमी को बहुत जल्दी आपना आदी बनाती है। इसलिए अब आपको हर वक्त पीने का मन होता है। इसलिए, आप खुद को बीमार महसूस करते हुए जागते हैं। शराब न मिलना ही आपको ऐसा महसूस करता है। इसीलिए उदास और दुखी हो गए हैं की आपको लगता है आपका अपने पीने पर नियंत्रण नहीं रहा क्योंकि आप बीमार और अस्वस्थ महसूस कर रहे हैं। अगर आप शराब पीना छोड़ दें, तो ये समस्याएं गायब हो जाएंगी और आप काफी बेहतर महसूस करेंगे। ”

यह भी महत्वपूर्ण है कि आप उस व्यक्ति से भी पूछें कि उसके अनुसार उसकी बीमारी का कारण क्या है और किस इलाज से उसे फायदा हो सकता है। उसके नजरिए को समझने से आपको बेहतर उपचार योजना बनाने में मदद मिल सकती है। किसी ऐसे व्यक्ति को मामले पर विचार करते हैं जो सोचता है कि उसकी बीमारी की वजह बुरी आत्माएं हैं। आप उसे सलाह दे सकते हैं कि वह आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए अपने पादरी या आद्यात्मिक गुरु से मिले, पर उसके लक्षण तनाव के कारण भी हैं और इसके लिए उसे सीधे आपसे इलाज कराना चाहिए। पीड़ित व्यक्ति के विचार भले आपको अवैज्ञानिक लगते हों, पर उन्हें रफा-दफा न करें। उस व्यक्ति की बीमारी के मॉडल को सुन-समझ कर आपको ज्यादा बेहतर नतीजा मिलेगा। अपनी व्याख्या के बाद, उस व्यक्ति को अपने संदेहों या चिंताओं को सपष्टीकरण पानेका मौका हमेशा दें।

विश्राम व श्वास संबंधी व्यायाम

विश्राम मानवीय मस्तिष्क पर तनाव के प्रभावों को कम करने का एक अत्यंत उपयोगी तरीका है। इसका प्रयोग पारंपरिक तरह के ध्यान के साथ-साथ आधुनिक मनोविज्ञान में भी किया जाता है। विश्राम की ज्यादातर पद्धतियाँ स्वास संबंधी किसी न किसी व्यायाम का उपयोग जरुर करती हैं। स्वास संबंधी यही व्यायाम हैं जो भावनात्मक समस्यायों से पीड़ित लोगों की मदद में सबसे मूल्यवान भूमिका अदा करते हैं।

नीचे दिए गए स्वास संबंधी व्यायाम सिखने से पहले, आप इन्हें खुद पर आजमा कर देखिए। आप विश्राम की स्थिति में और शांत महसूस करेंगे। यह एक ऐसा उपचार है जिसे आप अपने आसपास बीमारी के होने के अहसास के बिना अपना सकते हैं।

यह व्यायाम दिन में किसी भी वक्त किया जा सकता है। दिन में कमसे कम दस मिनट का व्यायाम को दिए जाने चाहिए। इसके लिए, सबसे बेहतर जगह ऐसा कोई कमरा है जो शांत हो और जहां व्यायाम में कोई खलल न डाले। इसके निम्नलिखित चरण हैं :

  • लेट कर या किसी सुविधाजनक स्थिति में बैठ कर व्यायाम शुरू करें। इसके लिए कोई खास आसन नहीं है। कोई भी स्थिति जिसमें व्यक्ति स्वयं को सुविधाजनक महसूस करता है, वही सही स्थिति है।
  • व्यायाम करने वाले को अपनी आंखें बंद कर लेनी चाहिए।
  • करीब 10 सेकेंड के बाद, उसे अपने सांस की लय पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
  • उसके बाद उसे नाक से धीमी, नियमित और स्थिर सांसे लेने पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
  • अगर रोगी पूछता है कि उसके सांसों की लय कितनी धीमी होनी चाहिए, तो आप सूए बता सकते हैं कि धीरे-धीरे सांस इस तरह लेनी चाहिए कि वह तीन तक गिन सके और फिर सांस को बाहर भी तीन तक गिनते हुए निकलना चाहिए। उसके बाद उसे सांस को ठहरा कर तीन तक गिनना चाहिए और फिर से सांस लेना चाहिए।
  • आप उसे यह भी सलाह दें कि जब भी वह सांस को बाहर छोड़े, मन ही मन ‘विश्राम’ शब्द या स्थानीय भाग का इसी अर्थ वाला शब्द दोहराए। धार्मिक लोग किसी ऐसे शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसका उनके धर्म में कुछ महत्त्व है। उदहारण के लिए, एक हिन्दू ‘ॐ’ कह सकता है और एक इसाई ‘प्रेज द लॉर्ड’।
  • रोगी को कर के दिखाएं कि स्थिर और गहरे सांस कैसे लिए जाएं।
  • उसे समझाएं कि अगर वह रोजाना यह व्यायाम करेगा, तो उसे दो सप्ताह के भीतर इसके लाभ मिलने शुरू हो जाएंगे। पर्याप्त अनुभव हो जाने पर वह अनेकों तरह की स्थितियों में रिलेक्स कर पाने में समर्थ होगा। उदहारण के लिए बस बैठे हुए।

खास लक्षणों के बारे में सलाह

अगर काउंसलिंग या परामर्श व्यक्ति के लक्षणों के प्रति संवेदनशील है, तो ज्यादा प्रभावी रहेगा। नीचे कुछ उदहारण दिए गए हैं कि खास लक्षणों को कैसे नियंत्रित किया जाए। इस मार्गदर्शिका के बाद के हिस्सों  में इन लक्षणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

  • संत्रास के दौरे। संत्रास के दौरे तेज सांस लेने का नतीजा होते हैं। श्वास संबंधी व्यायाम इस दौरे को रोकने में मददगार होते हैं।
  • भय। फोबिया का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा किसी खास स्थिति में भय का अनुभव करना। इस स्थिति से उसे अक्सर संत्रास के दौरे भी पड़ सकते हैं। व्यक्ति इस स्थिति से बचना शुरू कर देता है। फोबिया से निपटने का सबसे अच्छा तरीका स्थिति से भागना नहीं, बल्कि उसका सामना करना है।
  • थकान और चूर-चूर होने का अहसास। उदासी में घर गए लोग अक्सर थका हुआ और कमजोर अनुभव करते हैं। इसके कारण वे रोजमर्रा की गतिविधियों से मुंह मोड़ लेते हैं। इससे थकान तथा उदासी का अहसास और बढ़ जाता है। इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिए उदासी में घिरे व्यक्ति को धीरे-धीरे अपनी शारीरिक गतिविधि बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • नींद संबंधी समस्याएं। ये बहुत आम बात है। नियमति समय पर नींद लेने की सलाह से ज्यादातर लोग अपनी सामान्य नींद लेने में समर्थ हो सकते हैं।
  • शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में चिंता। यह भी बहुत आम बात है, खासकर तब जब व्यक्ति को दर्द और पीड़ा जैसे कई शारीरिक लक्षण महसूस हो रहे हों।
  • चिडचिडापन। कुछ लोगों की शिकायात होती है कि वे अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पते। गुस्से को नियंत्रित करने के सूत्रों से इसमें मदद मिल सकती है।

समस्याओं का समाधान करना

समस्या-समाधान एक ऐसी पद्धति है जो लोगों को सिखाती है कि कैसे किसी व्यक्ति के जीवन की समस्याएं उसे चिंता या अवसादग्रस्त बना सकती हैं और किस तरह ये भावनाएं समस्यायों के समाधान को और कठिन। इसका उद्देश्य यह नहीं है कि आप किसी खास समस्या का समाधान करने की कोशिश करें। इसके बजाय, आपको लोगों को ये कौशल सिखाने चाहिए ताकि वे खुद कारगर तरीके से अपनी समस्याओं पर काबू पा सकें।

  • समस्या का समाधान करने के निम्न चरण होते हैं :
  • रोगी को उपचार के बारे में समझाएं ;
  • समस्याओं को परिभाषित करें (व्यक्ति किन विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहा है?) ;
  • समस्यायों का सार संक्षेप पेश करें (कैसे ये समस्याएं व्यक्ति के लक्षणों से सम्बंधित है?) ;
  • एक समस्या का चुनाव करें और एक लक्ष्य तय करें(उस व्यक्ति को उस समस्या पर क्यों काबू पाना चाहिए?)
  • समाधानों को परिभाषित करें (समस्या पर काबू पाने के लिए की जानी वाली कार्यवाही);
  • की गई कारवाई के परिणाम की समीक्षा करें (क्या इससे समस्या कम हुई या व्यक्ति की मन:स्थिति में कुछ सुधार हुआ?)।

जिंदगी से जुड़ी समस्याएं

वे समस्याएं जिनका लोग अपनी जिंदगी में सामना करते हैं :

  • जीवन साथी के साथ संबंध की समस्याएं, जैसे संवाद की कमी, बहसें, परिवार में हिंसा तथा असंतोषजनक यौन जीवन
  • अन्य के साथ संबंधों की समस्याएं, जैसे सास-ससुर इत्यादि; बच्चे, संबंधी और मित्रों के साथ
  • रोजगार संबंधी समस्याएं, जैसे रोजगार न होना या बहुत ज्यादा काम होने का अहसास
  • आर्थिक समस्याएं, जैसे किसी नई जगह में अकेले होना या मित्रों का न होना
  • शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, खासकर जब वे पीड़ादायक हों और लंबे समय से चली आ रही हों
  • किसी प्रियजन की मृत्यु
  • क़ानूनी समस्याएं

रोगी को उपचार के बारे में समझाएं

इस तकनीक में पहला कदम रोगी को उपचार के बारे में समझाना यानी उसे उसकी जीवन की समस्यायों और शारीरिक लक्षणों के बीच के संबंध के बारे में बताना है। उसे यह भी समझाया जाना चाहिए कि ये लक्षण समस्यायों का समाधान करने की उसकी क्षमताओं को प्रभावित कर रहे हैं। आप विस्तार से समझा सकते हैं कि कैसे तकनीक निम्न तरीके से काम करती है :

“जिन लोगों को आपके जैसी समस्यायों का सामना करना पड़ रहा है, यह तकनीक उन्हें बता कर मदद करती है कि किस तरह वे तनाव को नियंत्रित करते हैं और अपनी समस्या से निपटते हैं। मैं आपके साथ आपकी कुछ समस्यों के बारे में चर्चा करना चाहूँगा और उन तरीकों के बारे में सोचना चाहूँगा जिनके जरिए आप अपनी समस्याओं से निपटने की कोशिश कर सकते हैं।”

समस्याओं को परिभाषित करें

पीड़ित व्यक्ति से पूछिए कि वह अपने जीवन में किन समस्याओं का सामना कर रहा है। समस्याओं की और गहरी पड़ताल के लिए उससे उसके पारिवारिक जीवन के बारे में पूछिए। यह अपने आपमें एक अच्छा सामान्य सिद्धांत है कि अधिक निजी क्षेत्रों ( जैसे यौन जीवन) के बारे में सवाल पूछने से पहले आप अपेक्षाकृत ‘सुरक्षति’ क्षेत्र (जैसे काम) के बारे में प्रश्न पूछें। लेकिन याद रखें कि आपको निजी समस्याओं के बारे में भी सवाल पूछने हैं – हालांकि ये सवाल अक्सर सबसे ज्यादा परेशान करने वाले, पर महत्वपूर्ण होते हैं। निजी सवाल पूछने का एक उपयोगी तरीका इस तरह की कोई बात कहना हो सकता है :

“कभी-कभी जब लोग दुखी होते हैं, तो सेक्स में उनकी दिलचस्पी नहीं बचती : क्या ऐसा आपके साथ हुआ है ?”

या

“यह उन लोगों में एक आम बात है जो सामान्य से ज्यादा शराब पीने के लिए बैचैन रहते हैं : आप कितनी शराब पी रहे हैं ?”

एक निजी विषय को यूं प्रस्तुत करने से सामने वाले को लगता है कि अगर आपके सवाल के जवाब में ‘हाँ’ कहा, तो आपको कोई धक्का नहीं लगेगा। मानसिक समस्याओं को लेकर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पास आने वाले लोगों से सम्बंधित कुछ कठिन क्षेत्रों में सूचि बॉक्स 3.3 में दी गयी है।

समस्याओं का सार-संक्षेप पेश करें

समस्याओं के बारे में सूचनाएं जुटा चुकने के बाद, सामने वाले व्यक्ति के लिए मुख्य समस्याओं का सार-संक्षेप पेश करें। आप इस तरह शुरुआत कर सकते हैं :

“आपने मुझे बताया कि आपके बच्चे के आने ने आपकी जिंदगी में काफी बदल दिया। आब आप काम नहीं कर रही, आप आधी रात तक जागती हैं और अपने मित्रों से आपका मिलना कम हो गया है। इस सब के कारण आपका अपने पति से रिश्ता प्रभावित हुआ है।”

ऐसा करने से काई प्रयोजन सिद्ध होते हैं। इससे व्यक्ति को विश्वास हो जाता है कि आप उसकी बात सुनते रहे हैं। इससे यह बात भी सामने आती है कि उसकी समस्याओं के कारण हैं और उन में कोई आपसी संबंध है। यह और ज्यादा निजी सूचनाएं हासिल करने का एक उपयोगी तरीका ही है।

एक समस्या का चुनाव करें और एक लक्ष्य तय करें

अगला चरण है निपटने लायक किसी समस्या का चुनाव करना और वे लक्ष्य चुनना जिन्हें वह व्यक्ति तय करना चाहता है। नीचे कुछ सूत्र दिए गए हैं जिनके जरिए एक उपयुक्त समस्या का चुनाव किया जा सकता है :

  • उस व्यक्ति से अपनी सभी समस्याओं की एक सूचि तैयार करने के लिए कहें। उन समस्याओं की पहचान करें जो उसके लिए सबसे ज्यादा चिंता का विषय है।
  • ऐसी समस्या को लक्ष्य बनाएं जिसका समाधान कम समय में संभव हो। उदहारण के लिए, अगर समस्या जीवन साथी के साथ संबंधों को लेकर लंबे समय से चली आई है, तो इस तकनीक के तहत शुरू में निपटने के लिए यह उपयुक्त समस्या नहीं है। दूसरी ओर, शुरू करने के लिए हाल ही में काम के क्षेत्र में सामने आई समस्या या सामाजिक रूप से अलग-थलग महसूस करने की समस्या को चुने जाना ठीक रहेगा।
  • याद रखें कि उपचार का उद्देश्य समस्या-समाधान के कौशल सिखलाना है, उस व्यक्ति की सभी समस्यायों का समाधान करना नहीं।
  • एक बार समस्या का क्षेत्र चुनने के बाद, उस व्यक्ति से भी इस बात की पुष्टि करा लें कि वह उपचार के दौरान वास्तव में उसी समस्या का समाधान चाहता है।

समाधानों को परिभाषित करें

ऐसा करने के लिए निम्न चरणों से गुजरना होगा :

  • समाधान पैदा करें – उस व्यक्ति के साथ विभिन्न समाधानों के बारे में सोंचें ;
  • समाधानों की संख्या कम करें – अगर काई विकल्प मौजूद हैं, तो उन विकल्पों को चुने जो उस व्यक्ति की सामाजिक स्थिति के अनुसार सबसे अधिक व्यावहारिक लगते हैं ;
  • परिणामों की पहचान करें – सोचें कि समाधानों को पूरा करने का क्या परिणाम निकलेगा ;
  • सबसे बेहतर समाधान को चुनें ;
  • योजना बनाएं कि समाधान को कैसे सिरे चढ़ाया जाए ;
  • सोचें कि सबसे बुरी स्थिति में क्या हो सकता है, उदहारण के लिए, अगर समाधान पूरी तरह असफल रहा।

उस व्यक्ति को स्वयं अपने समाधान प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित करें। इस तरह आप उसके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी करने में मददगार होंगे। उदहारण के लिए, अगर उसके कहा है कि अकेला महसूस करना उसकी एक मुख्य समस्या है, तो यह न कहें, “ मेरे खयाल से इस समस्या के समाधान के लिए आपको कुछ मित्रों से मिलने जाना चाहिए।” – भले ही यह बात पूरी तरह तर्कसंगत हो और समस्या का आदर्श समाधान हो। इसके बजाय कहें, “अब हमनें एक ऐसा क्षेत्र चुन लिया है जिससे आप निपटना चाहते हैं। आप इससे कैसे निपटेंगे ?”

अक्सर समाधानों की पहचान कानर कठिन होता है और आपको या तो और अधिक सवालों या फिर सीधे सलाह देने के जरिए उस व्यक्ति की निम्न तरीके से मदद करनी पड़ सकती है :

  • उसे सामाजिक समर्थन दे सकने वाले स्रोत्रों की पहचान करने ताकि उसे अहसास कराया जा सके कि कौन लोग है जो उससे सरोकार रखते हैं।
  • उसके चरित्र की शक्तियों की पहचान करें, मसलन उन उदाहरणों की जो उसके अतीत में स्थितियों का सामना करने के उसके कौशलों को सामने लाते हों।
  • जरुरी है कि आप उस क्षेत्र की सभी सहायता एजेंसियों से परिचित हों ताकि खास समस्यायों के लिए व्यवहारिक सलाह दी जा सके। आप भाग चार में अपने क्षेत्र की सभी एजेंसियों के नाम व पत्ते इत्यादि शामिल कर सकते हैं।
  • संभव है कि कुछ लोगों क मामले में आपको ज्यादा प्रत्यक्ष भूमिका अदा करनी पड़े। उदहारण के लिए निरक्षर रोगियों की ओर से सहायता एजेंसियों को पत्र लिखने का काम।
  • आपको उस व्यक्ति की समस्यायों के समाधानों के लिए कुछ सुझाव देने की जरुरत हो सकती है. खासकर उपचार के शुरू में। लेकिन, कोशिश होनी चाहिए की समस्या समाधान के किसी चरण में वह व्यक्ति स्वयं मुख्य भूमिका अदा करे।

सुझाए गए समाधान

कुछ आम समस्या क्षेत्रों के बारे में समाधान इस मार्गदर्शिका के अन्य भागों सुझाए गए हैं :

  • परिवार में हिंसा ;
  • अकेलेपन और अलगाव
  • किसी प्रियजन की मृत्यु
  • संबंधों की समस्या
  • शराब व नशीली दवाओं पर निर्भरता
  • किसी बीमार संबंधी की देखभाल करना।

समीक्षा

उस व्यक्ति के साथ मुलाकात में जो कुछ भी घटित हुआ है, संक्षेप में उसकी समीक्षा करें। खासकर, लक्ष्य तथा समस्या-समाधान की योजना की समीक्षा करें।

इसके बाद के सत्र

  • इसके बाद के सत्रों के मुख्य लक्ष्य है :
  • मूल्यांकन करना कि उस व्यक्ति ने अपने हिस्से आए काम कितने अच्छे से पुरे किए ;
  • अगर समाधान की दिशा में प्रगति नहीं हुई, तो उसी समस्या पर नए समाधान आजमाएं या किसी नई समस्या के समाधान तलाश करें;
  • अगर समाधान की दिशा में प्रगति नहीं हुई है, तो इस बात को पहचानें कि कहां क्या गलत हुआ और नए लक्ष्य तय करें।
  • प्रगति का आकलन करते समय सटीक और स्पष्ट सवाल पूछें। यह पूछने कि “कैसा रहा ?” और बदले में उस व्यक्ति के द्वारा कंधे हिला देना या “ठीक ही रहा।” जैसा अस्पष्ट जवाब देने का कोई लाभ नहीं है। आपको विवरण पूछने चाहिए कि उस व्यक्ति ने ठीक-ठीक क्या किया। निचे सवालों के उदहारण दिए गए हैं :
  • उसने लक्ष्य हासिल करने के लिए क्या किया ?
  • क्या यह काम उसके लिय कठिन था या आसान ?
  • इससे उसकी भावनाओं व अहसासों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
  • क्या वह व्यक्ति और आप इस बात पर सहमत हैं कि संतोषजनक तरीके से हुआ और किसी दूसरे  लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहते हैं ?
  • अगर काम पूरा नहीं हुआ तो कहां गलती रह गई ?

परामर्श देना

संकट की स्थिति के समय परामर्श देना

संकट एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को लगता है कि वह अपने सामने की समस्याओं के सम्मुख पूरी तरह हार गया है। संभव है कि जिस वह व्यक्ति एक संकट के रूप में देख रहा है, दूसरा उसे इस रूप में न देखे। यानि उस स्थिति को संकट की स्थिति न मानें। इसलिए, संकट की परिभाषा व्यक्ति द्वारा अपनी स्थिति को देखने के नजरिए पर निर्भर करती है। और साथ ही इस बात पर भी कि उस स्थिति ने व्यक्ति की समस्याओं से सामना करने की क्षमताओं को किस तरह प्रभावित किया है।

संकटकालीन परामर्श का उद्देश्य है कि ऐसा व्यक्ति अपनी घोर परेशानी के समय में समस्या का बेहतर ढंग से सामना कर पाए। संकट के समय दिए जाने वाले परामर्श के मुख्य चार चरण इस प्रकार हैं :

  • अधिक सूचनाएं हासिल करें। क्या हुआ है ? वह क्लिनिक क्यों आई है ? वे कौन लोग हैं जो इस समय में उसकी मदद कर सकते हैं ? परिवार या उसके साथ आए अन्य व्यक्तियों से सूचनाएं जुटाएं।
  • संवाद स्थापित करें। उसे अपनी गति से अपनी कहानी सुनाने दें। जल्दी में न दिखें। उससे एकांत में मिलें।
  • व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य का आकलन करें। उससे बातें कर और उसके हाव-भाव व व्यवहार को देख कर जानें कि क्या वह अटपटा या असामान्य व्यवहार कर रही है। क्या वह ऐसी बातें कह रही है जिनकी कोई तुक नहीं ? क्या उसके शराब पिए होने के लक्षण नजर आते हैं ?
  • इस बात का आकलन करें कि किस मुख्य समस्या ने यह संकट पैदा किया है ? आम तौर पर कोई एक मुख्य समस्या होती है जिसके कारण संकट की स्थिति पैदा होती है। अक्सर यह स्थिति संबंध का टूटना, किसी प्रियजन की मृत्यु या हिंसा का नतीजा होती है।
  • समाधान सुझाने की कोशिश करें। इसमें अन्यों के साथ समस्या का साझा करना, उसे आश्वस्त करना कि वह पागल नहीं हो रही है, पुलिस या अन्य सहायता एजेंसियों से संपर्क करना, गंभीर स्थितियों में कुछ समय के लिए हस्पताल में भर्ती करने के लिए रेफर करना जैसी बातें शामिल हैं।
  • अगर उचित हो तो दवाएं दें। उदहारण के लिए, अगर वह बहुत उत्तेजित है और ठीक से सोई नहीं है , तो आप कुछ दिन के लिए नींद की गोलियां तजवीज कर सकते हैं।
  • एक-दो दिन बाद उस व्यक्ति को हमेशा फिर से जांच के लिए आने के लिए कहें। फिर से जांच के लिए आने के वक्त ज्यादातर लोग पहले के मुकाबले शांत होंगे और उनका स्थिति पर ज्यादा नियंत्रण होगा। उस समय उनके मानसिक स्वास्थ्य का अधिक विस्तृत आकलन किया जाना चाहिए।

पीड़ित व्यक्ति का पुनर्वास

मनोरोग व्यक्ति की घर में, काम की जगह पर और सामाजिक स्थितियों में सक्रीय होने की क्षमता को नकारात्मक रूप से परभावित कर सकता है। गंभीर मानसिक अस्वस्थताएं अनेकों कारणों से व्यक्ति को असमर्थ बना सकती है :

  • “भावनात्मक” लक्षणों के कारण व्यक्ति को लग सकता है किकाम करने या मित्रों से मिलने का कोई अर्थ नहीं ;
  • “सोच संबंधी” लक्षणों के कारण व्यक्ति के लिए अपना ध्यान केन्द्रीत करना, सही फैसले लेना या दसरों से बातचीत करना मुश्किल हो सकता है ;
  • असामान्य व्यवहार के कारण व्यक्ति दूसरों से अलग-थलग हो सकता है ;
  • सामाजिक लांछन व भेदभाव के कारण मनोरोग से पीड़ित व्यक्ति के लिए नौकरी मिल पाना या विवाह करना अपेक्षाकृत कठिन हो सकता है।
  • पुनर्वास का अर्थ उस प्रक्रिया से है जो मनोरोग से पीड़ित लोगो को उस सामान्य जीवन में फिर से लौटने के तरीके ढूंढने में मदद करती है जो वे बीमारी शुरू होने से पहले जी रहे थे। अनेकों तरीकों से आप लोगों को यह लक्ष्य हासिल करने में मदद दे सकते हैं :
  • सुनिश्चित करें कि रोग का सही उपचार हो रहा है ;
  • पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार के साथ मिल कर पुनर्वास की योजना बनाएं ;
  • ऐसी गतिविधियां सुझाएं जिन्हें वह व्यक्ति कर सकता है और जिनमें उसे आनंद आए ( वह जैसे जैसे इन गतिविधियों में कामयाब होता जाए, उसे नई और ज्यादा चुनौतीपूर्ण गतिविधियां सुझाएं ) ;
  • पुनर्वास की योजना बनाते समय उस व्यक्ति की बीमार होने से पहले की वास्तविक क्षमताओं को हमेशा याद रखें।
  • परिवार को परामर्श दें कि उस व्यक्ति से एक जिम्मेदार वयस्क जैसा व्यवहार किया जाए ( इसका मतलब है कि उसे अपने हिस्से के फैसले करने दिए जाए) ;
  • अन्यों, जैसे मित्रों, पड़ोसियों व सम्बन्धियों से सामाजिक संपर्क बनाने को प्रोत्साहन दें ;
  • अगर वह व्यक्ति धार्मिक है, तो उसे आध्यात्मिक गतिविधियों में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करें , लेकिन केवल इस हद तक कि उसके चिकित्सीय उपचार में वे बाधा न बनें ;
  • आप जिन ऐसे स्थानीय मालिकों को जानते हैं जो असमर्थ लोगों को नौकरी देने के प्रति संवेदनशील है, उनसे पीड़ित व्यक्ति की सिफारिश करें ;
  • उसे बढई या अन्य कौशल, जैसे किसी व्यवसायिक प्रशिक्षण के लिए भिजवाने की कोशिश करें;
  • उसकी प्रगति को नियमित रूप से मॉनिटर करें। बैठकों को उसे मानसिक स्वास्थ्य समस्यायों तथा उसे परेशान कर रही जीवन की कठिनाइयों के बारे में परामर्श देने के लिए इस्तेमाल करें।

फॉलो-अप का महत्व

मनोरोग के उपचार में फॉलो-अप का महत्व

उपर्युक्त निदान और उपचार कुछ स्वास्थ्य समस्यायों को ठीक कर सकते हैं। बैक्टीरिया संक्रमण उन समस्यायों का उदहारण है जिन्हें उपचार से ठीक किया जा सकता है। लेकिन, ज्यादातर मनोरोगों के मामले में ऐसा नहीं होता। मनोरोग से पीड़ित व्यक्ति को बहुत बार देखना अक्सर उसके ठीक होने में मूल मंत्र का काम करता है। ऐसे व्यक्ति को बहुत बार देखने से आपको निम्न अवसर मिलते हैं :

  • उसके साथ एक अच्छा संबंध बनाने का ;
  • उसके परिवार के उन सदस्यों के साथ संपर्क बनाने का जो उसे सहयोग-समर्थन दे सकते हैं ;
  • उसे यह अहसास कराने का कि उसकी समस्या को गंभीरता से लिया जा रहा है और आप उसकी खुशहाली को लेकर सरोकार का भाव रखते हैं ;
  • रोग की प्रगति को मॉनिटर करने का ;
  • इस बात को मॉनिटर करने का कि क्या उपचार लिया जा रहा है – कई उपचारों का असर होने में वक्त लगता है और एक बार असर होने पर उस उपचार को कुछ समय तक जारी रखने की जरुरत होती है। पहले ही दवाएं बंद कर देना एक आम समस्या है और रोगी के लगातार संपर्क में रहने से इसे रोका जा सकता है

अन्य उपचार

मनोरोग से पीड़ित व्यक्तियों की मदद के लिए अन्य उपचारों का भी इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, इस बात की संभावना लगभग नहीं है कि सामान्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता इन उपचारों का प्रयोग करेंगे, फिर भी इनके बारे में थोड़ा बहुत जानना मददगार ही साबित होगा।

  • इलेक्ट्रोकन्वाल्सिव थेरेपी। यह उसी ‘शॉक थेरेपी’ का तकनीकी नाम है जिससे लोग बहुत भय खाते है। इसमें कोई संदेह नहीं की इसीटी अक्सर उन लोगों को दे दी जाती है जिन्हें इसकी जरुरत नहीं होती। हो सकता है कि कभी-कभी एक एनिस्थिसिया के बिना भी दे दी जाए जो कि एक अस्वीकार्य तथा अनैतिक तरीका है। इस थेरेपी को गलत तरह से देने की ऐसी घटनाओं के बावजूद, ईसीटी औषधि शास्त्र के सर्वाधिक नाटकीय और प्रभावी उपचारों में से एक है, बशर्ते इस उन्हीं अस्वस्थताओं के लिए इस्तेमाल किया जाए जिनके लिए यह बनी है यानि गंभीर अवसादी रोग तथा गंभीर मनोन्माद के मामलों के लिए। यह उल्लेखनीय रूप से सुरक्षित भी है। अगर इसे अनिसिथिसिया के साथ उचित तरीके से दिया जाए, तो इसके लगभग कोई सह प्रभावी नहीं होते।
  • साईकोथेरेपी। अब खासकर विकसित देशों तथा विकासशील देशों के शहरी उच्च वर्गीय इलाकों में अनेकों विशेषज्ञता प्राप्त साईकोथेरेपी यानी मनोचिकित्सा क्लीनिक मौजूद हैं। साईकोथेरेपी अपेक्षाकृत अधिक जटिल किस्म की काउंसलिंग या परामर्श है। इस उपचार की एक वास्तविक कमी यह है कि अधिकांश लोगों की पहुंच के बाहर है क्योंकि बहुत   कम पेशेवर इसे अपनाते हैं। इस उपचार के लये पैसे अलावा समय भी काफी चाहिए।
  • अध्यात्मिक थेरेपी। अनेकों संस्कृतियों में मस्तिष्क और आत्मा को एक ही माना जाता है और भावनात्मक समस्याओं का उपचार पादरियों तथा पारंपरिक उपचारकों द्वारा किया जाता है। भले ही जैव- चिकित्सीय उपचार आसानी से उपलब्ध हों, फिर भी बहुत से लोग अक्सर अवसाद,चिंताग्रस्तता, पारिवारिक समस्याओं आदि के लिए आध्यात्मिक मदद का चुनाव करते हैं। आपको आध्यात्मिक उपचारकों के साथ संबंधों के पुल बनाने चाहिए। भले ही आप उनके रोग के निदान व उपचार के तरीके से सहमत न हों , लेकिन इसके बावजूद वे स्वास्थ्य देखभाल के मामले में आपके साथी हैं। पर कुछ अध्यात्मिक उपचारकों का आग्रह होता है कि चिकित्सीय उपचार बंद कर दिया जाता है। अपने से परामर्श लेने आने वाले हर व्यक्ति को ऐसे उपचारक के पास जाने से रोकिए।

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की भूमिका

मनोरोग से पीड़ित व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ को रेफर करना

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कई प्रकार के होते हैं :

  • मनोचिकित्सक मेडिकल डॉक्टर होते हैं जो अपनी बुनियादी मेडिकल ट्रेनिंग पुरे करने के बाद मनोरोगों के उपचार में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं। बहुत से देशों में ज्यादातर मनोचिकित्सक पूरी तरह हस्पतालों में काम करते हैं। ये मनोचिकित्सीय वार्ड वाले सामान्य हस्पताल हो सकते हैं या मानसिक स्वास्थ्य समस्यायों के उपचार में विशेषता रखने वाले हस्पताल। मनोचिकित्सक के मुख्य कौशलों में गंभीर मानसिक अस्वस्थताओं का निदान व उपचार शामिल होते हैं। वे मुख्यतः दवाओं व ईसीटी और भिन्न-भिन्न मात्रा में बातचीत की तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
  • मनोवैज्ञानिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में प्रशिक्षित होते हैं। इसके लिए वे सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हैं। ये सिद्धांत इस बातों पर आधारित होते हैं कि मनुष्य जीवन के बारे में कैसे शिखता है, कैसी भावनाएं महसूस करता है और दूसरों के प्रति कैसे व्यवहार करता है। मनोवैज्ञानिक ‘बातचीत’ की उपचार पद्धति का इस्तेमाल करते हैं।
  • मनोचिकित्सक नर्सें वे नर्सें होती हैं जिनकी मनोचिकित्सा में विशेषज्ञता होती है। वे समुदाय में भी काम कर सकती हैं और हस्पतालों में भी। उनकी मुख्य भूमिका ‘बातचीत’ की उपचार पद्धति से मनोरोगियों का इलाज करने तथा गंभीर मानसिक अस्वस्थताओं से पीड़ित लोगों का उपचार व पुनर्वास कराने की है।
  • मनोचिकित्सीय सामाजिक कार्यकर्ता या तो हस्पतालों या समुदायों में काम करते हैं और मनोरोग से पीड़ित लोगों के सामने आने वाली सामाजिक समस्यायों और जीवन की कठिनाइयों से निपटते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और नर्सें दोनों ही ‘बातचीत’ की उपचार पद्धति का इस्तेमाल कर सकते हैं।

ज्यादातर विकासशील देशों में बहुत कम संख्या में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर उपलब्ध हैं। इसलिए, मनोरोग से पीड़ित ज्यादातर लोगों का उपचार सामान्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को ही करना होगा। सही है कि ज्यादातर रोगियों को विशेषज्ञता रखने वाले मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से मिलने की कोई जरुरत नहीं होती। ज्यादातर मनोरोगों की पहचान और उपचार सामान्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता कर सकते हैं। लेकिन जब भी, कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं जब आपको रोगी को किसी मनोरोग विशेषज्ञ को रेफर करने की जरुरत होती है। ऐसी खास स्थितियों के बारे में इस पूरी मार्गदर्शिका में जगह जगह चर्चा की गई है। एक सामान्य नियम के रूप में निम्न हालात में रोगी को मानिसक स्वास्थ्य विशेषज्ञ को रेफर करें :

  • असामान्य व्यवहार वाले ऐसे मनोरोगी जिन्हें कोई शारीरिक रोग भी हो, जैसे सर पर जख्म या तेज बुखार ;
  • ऐसे लोग जो इस कदर विचलित हैं कि स्थिति को घर में नियंत्रित नहीं किया जा सकता ;
  • कोई भी बच्चा जिसके बारे में आपको संदेह है कि वह मंदबुद्धि या मस्तिष्क संबंधी किसी समस्या से पीड़ित है ;
  • ऐसे व्यक्ति जो भारी मात्रा में शराब या नशीली दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसलिए उन्हें अचानक रोकने से गंभीर विड्राअल रिएक्शन हो सकता है ;
  • ऐसे लोग जिनकी बीमारी आपके उपचार के बावजूद उनके निजी जीवन या काम पर गंभीर असर डाल रही है।

इसके अलावा जो लोग आत्महत्या की गंभीर कोशिश कर चुके हों, उन्हें किसी आपातकालीन चिकित्सा इकाई को रेफर कर देना चाहिए ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि उनका जीवन खतरे में हो। यह करने के बाद भी अगर उनमें आत्महत्या की भावना बची रहती है, तो उन्हें किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ को रेफर किया जाना चाहिए।

कन्वैल्शन या एंठन के दौरों से पीड़ित व्यक्ति के इए एंठनविरोधी दवाएं शुरू करने से पहले उसका आकलन आदर्श रूप में किसी विशेषज्ञता प्राप्त डॉक्टर के द्वारा किया जाना चाहिए।

याद रखें कि किसी रोगी को रेफर करते समय अगर आप उसकी समस्या की पृष्ठभूमि और आपके द्वारा उसे पहले ही दिया जा चुके उपचारों को संक्षेप में बताते हुए एक छोटा सा नोट लिखते हैं तो वह बहुत मददगार साबित हो सकता है।

रेफरल लेटर का उदहारण

रमन के लिए दिए जाने वाले रेफरल लेटर का उदहारण

प्रिय डॉक्टर,

70 वर्षीय रमन अपने बेटे और बहु के साथ रहते हैं। कृपया इन्हें परामर्श दें। पिछले कुछ वर्षों से ये यादाश्त संबंधी समस्याओं की शिकायत करते रहे हैं। हाल ही में इन्होनें अटपटे तरीके से व्यवहार करना शुरू कर दिया है। उदहारण के इए ये अपने घर से घुमने निकले और वापस अपने घर का रास्ता नहीं ढूंढ सके। फिलहाल, इनकी यादाश्त बहुत कमजोर है और ये बिना किसी कारण के गुस्से में आ जाते हैं। मैंने इन्हें नींद की गोलियां और विटामिन दिए, पर इनसे कोई फर्क नहीं पड़ा। रमन अपने परिवार के साथ रह रहे है जो इनके लिए बहुत चिंतित है, पर साथ ही इन्हें बहुत समर्थन भी देता है|

याद रखने योग्य बातें

मनोरोग के उपचार के बारे में याद रखने योग्य बातें
  • मनोरोग से पीड़ित ज्यादातर व्यक्तियों का उपचार जितना अच्छी तरह कोई मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कर सकता है, ठीक उतनी ही अच्छी तरह एक सामान्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी कर सकता है।
  • लोगों को अपने रोग की कमसे कम बुनियादी व्याख्या की जरुरत होती है। अन्य परामर्श पद्धतियाँ , जैसे श्वास संबंधी व्यायाम, बहुत आसानी से सामान्य स्वास्थ्य स्थिलियों में सिखलाई जा सकती है
  • अगर सही तरीके से इस्तेमाल की जाएँ तो मनोरोगों के उपचार की दवाएं प्रभावी और सुरक्षित होती है।
  • साइकोसिस, अवसाद व चिंताग्रस्तता का उपचार दवाओं को इस्तेमाल कनरे की सबसे आम वजहें हैं।

स्त्रोत: वीहाई, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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