सिद्ध प्रणाली भारत में दवा की सबसे पुरानी प्रणालियों में से एक है। 'सिद्ध' शब्द का अर्थ है उपलब्धियां और सिद्ध, संत पुरुष होते थे जो दवा में परिणाम हासिल करते थे। ऐसा कहा जाता है कि अठारह सिद्धों ने इस चिकित्सा प्रणाली के विकास की दिशा में योगदान दिया। सिद्ध साहित्य तमिल भाषा में लिखा गया है और यह भारत के तमिल भारत भाषी हिस्से में तथा विदेश में बड़े पैमाने पर प्रचलित है। सिद्ध प्रणाली काफी हद तक प्राकृतिक में चिकित्सा में विश्वास रखती है।
सृष्टि के निर्माता द्वारा मानव जाति को किया गया आवंटित मूल घर पूर्व दिशा में और सही तौर पर भारत के ऊष्ण और उपजाऊ क्षेत्र में था। यहीं से मानव जाति ने अपनी संस्कृति और करियर शुरु किए। इसलिए, भारत को बिना किसी सन्देह के ऐसा देश कहा जा सकता है जहां से मानव संस्कृति और सभ्यता का उद्भव और प्रसार हुआ। भारतीय इतिहास के अनुसार आर्यों के आने से पहले, द्रविड़ भारत के पहले निवासी थे जिनमें से तमिल सबसे प्रमुख थे। तमिल न केवल सबसे पहले सभ्य हुए बल्कि ये वो लोग भी थे जिन्होंने किन्हीं भी अन्य आदिम लोगों की तुलना में सभ्यता में काफी तेज़ी से प्रगति की। भारत की भाषाएं दो महान वर्गों में विभाजित थीं, उत्तर में मुख्य रूप से संस्कृत और दक्षिण में स्वतंत्र आधार के साथ द्रविड़ भाषा। चिकित्सा विज्ञान मनुष्य के स्वास्थ्य व अस्तित्व बचाए रहने के लिए मौलिक महत्व का है और इसलिए इसका मनुष्य के साथ उद्भव होकर सभ्यता के रूप में विकास हुआ होगा। अतः उस समय के सटीक बिंदु को निर्धारित करने की कोशिश करना जब इन पद्धतियों की शुरुआत हुई, एक तरह से व्यर्थ है। वे चिरंतन हैं, वे मनुष्य के साथ शुरु हुईं और उसके साथ ही खत्म हो सकती हैं। सिद्ध दक्षिण में फला-फूला और उत्तर में आयुर्वेद प्रचलित था। इन प्रणालियों के संस्थापक के रूप में किसी व्यक्ति का नाम देने के बजाय हमारे पूर्वजों ने सृष्टि के निर्माता को इसका मूल जनक बताया। परंपरा के अनुसार वे शिव थे जिन्होंने सिद्ध चिकित्सा प्रणाली का ज्ञान अपनी पत्नी पार्वती को बताया जिन्होंने उसे आगे नन्दी देव को और उन्होंने सिद्धर को हस्तांतरित किया। सिद्धर प्राचीन काल में महान वैज्ञानिक थे।
परंपरा के अनुसार, सिद्ध चिकित्सा प्रणाली के मूल का श्रेय महान सिद्ध ‘अगस्तियार’ को दिया जाता है। उनका कुछ काम अभी भी दवा व शल्यक्रिया की मानक पुस्तकों का हिस्सा है और सिद्ध चिकित्सकों द्वारा दैनिक उपयोग में लाया जाता है।
इस प्रणाली के सिद्धांत और नियम, बुनियादी और व्यावहारिक दोनों में रसायन विज्ञान में विशेषज्ञता के साथ आयुर्वेद से एक करीबी समानता है। इस प्रणाली के अनुसार मानव शरीर ब्रह्मांड की प्रतिकृति है और उसी तहर से भोजन व दवाएं भी जो अपने मूल से परे होते हैं । आयुर्वेद की तरह इस प्रणाली का भी मानना है कि मानव शरीर सहित ब्रह्मांड में सभी वस्तुएं पाँच मूल तत्वों अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बने हैं। जो भोजन मानव शरीर लेता है और जिन दवाओं का उपयोग करता है वे सभी इन पांच तत्वों से बने हैं। दवाओं में मौजूद तत्वों का अनुपात बदलता है और उनकी प्रमुखता या अन्यथा कुछ क्रियाओं व चिकित्सकीय परिणाम के लिए जिम्मेदार हैं।
आयुर्वेद की तरह सिद्ध प्रणाली भी मानव शरीर को तीन देहद्रवों, सात बुनियादी ऊतकों तथा मल, मूत्र और पसीने जैसे अपशिष्ट उत्पादों के रूप मानता है। भोजन मानव शरीर की बुनियादी निर्माण सामग्री माना जाता है जो देहद्रवों, शरीर के ऊतकों और अपशिष्ट उत्पादों में प्रसंस्कृत किया जाता है। देहद्रवों का संतुलन स्वास्थ्य के रूप में माना जाता है और इसमें गड़्बड़ या असंतुलन रोग या बीमारी पैदा करता है। यह प्रणाली जीवन में मोक्ष की अवधारणा से भी संबंधित है। इस प्रणाली पर विश्वास रखने वाले मानते हैं कि इस अवस्था की प्राप्ति दवाओं और ध्यान के द्वारा संभव है।
इस प्रणाली ने दवा के ज्ञान का एक समृद्ध और विरल खजाना विकसित किया है जिसमें धातुओं और खनिजों के उपयोग की प्रबल वकालत की गई है। खनिज, औषध विवरणिका के क्षेत्र में ज्ञान की प्रणाली की गहराई के बारे में कुछ अनुमान दवा के विस्तृत वर्गीकरण से किया जा सकता है, जो संक्षेप में नीचे वर्णित है:
सिद्ध प्रणाली में रसायन शास्त्र दवा और रसायन विद्या के एक सहायक विज्ञान के रूप में अच्छी तरह से विकसित पाया गया है। उसे दवा तैयार करने और मूल धातुओं का सोने में रूपांतर करने में उपयोगी पाया गया था। पौधों और खनिज का ज्ञान कई स्तरों का था और वे विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं से पूरी तरह से परिचित थे। सिद्धर कई प्रक्रियाओं में विभाजित आपरेशन के बारे में भी जानकार थे जैसे कि कैल्सिनेशन, सब्लिमेशन, डिस्टिलेशन, फ्यूज़न, सेपरेशन कंजंक्शन ऑर कॉम्बिनेशन, कंजीलेशन, साइबेशन, फर्मंटेशन, एक्ज़ॉल्टेशन अर्थात सोने के निर्धारण या परिष्कृत करने की प्रक्रिया अर्थात उसे नॉन-वोलेटाइल अवस्था में लाना अर्थात आग, शुद्धि, धातुओं को जलाए जाने, द्रवीकृत करने, निकासी आदि का प्रतिरोध करने की अवस्था में लाना।
यहां तक कि सोने और चांदी का क्यूपेलेशन जो रसायन विद्या में एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसका अरबों द्वारा खोजने का दावा किया गया है, बहुत समय से सिद्धरों को ज्ञात थी।
वे पॉली-फार्मासिस्ट भी थे और रासायनिक पदार्थों की बॉइलिंग, डिज़ॉल्विंग, प्रेसिपिटेटिंग तथा कोऐगुलेटिंग में संलिप्त थे। उनके कुछ गुप्त तरीके, विशेष रूप से आग का प्रतिरोध न कर पाने वाले सल्फर, हरताल, सिंदूर, आर्सेनिक जैसे कुछ अस्थिर पदार्थों की फिक्सिंग और मजबूत बनाना आदि अभी भी रहस्य बने हुए हैं।
सिद्ध प्रणाली आपातकालीन मामलों के अलावा रोग के अन्य सभी प्रकारों के उपचार में सक्षम है। सामान्य रूप से यह प्रणाली गठिया और एलर्जी विकार के अलावा त्वचा की समस्याओं के सभी प्रकार, विशेष रूप से सोरियासिस, यौन संचरित रोग, मूत्र पथ के संक्रमण, यकृत और गैस्ट्रो आंत्र पथ के रोगों, सामान्य दुर्बलता, प्रसवोत्तर अरक्तता, दस्त और सामान्य बुखार के इलाज में प्रभावी है।
रोगों के निदान में उसके कारण की पहचान शामिल है। कारक की पहचान नाड़ी, मूत्र, आँखों, आवाज के अध्ययन, शरीर के रंग, जीभ और पाचन तंत्र की स्थिति की परीक्षा के माध्यम से की जाती है। इस प्रणाली ने मूत्र परीक्षा की विस्तृत प्रक्रिया तैयार की है जिसमें उसके रंग, गंध, घनत्व, मात्रा और तेल ड्रॉप प्रसार पैटर्न का अध्ययन शामिल हैं। यह दृष्टिकोण एक समग्र रूप में है और निदान में व्यक्ति का पूर्ण रूप से तथा साथ ही उसके रोग का अध्ययन शामिल है।
चिकित्सा की सिद्ध प्रणाली इस बात पर जोर देती है कि चिकित्सा उपचार न केवल रोग के लिए उन्मुख है, बल्कि वह रोगी, पर्यावरण, मौसम की स्थिति, उम्र, लिंग, जाति, आदतों, मानसिक फ्रेम, निवास स्थान, आहार, भूख, शारीरिक स्थिति, शारीरिक गठन आदि को भी ध्यान में रखती है। इसका अर्थ यह है कि उपचार व्यक्तिपरक हो, जो यह सुनिश्चित करता है कि निदान या उपचार में गलतियां न्यूनतम हों।
सिद्ध प्रणाली महिलाओं की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को भी देखती है और सिद्ध क्लासिक्स में कई नुस्खे उपलब्ध हैं जो एक बेहतर जीवन के लिए समस्याओं का मुकाबला कर सकते हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए देखभाल लड़की के पैदा होने के पहले दिन से ही शुरू हो जाती है। सिद्ध प्रणाली जीवन के पहले तीन महीनों तक स्तनपान की प्रबल वकालत करती है। सिद्ध प्रणाली इस सिद्धांत में विश्वास रखती है कि भोजन स्वयं दवा है और नर्सिंग अवधि के दौरान, स्तनपान कराने वाली माताओं को लोहा, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर भोजन लेने की सलाह दी जाती है ताकि बच्चे और माता दोनों को किसी भी पोषक तत्वों विकारों से बचाया जा सके। 15 दिनों में एक बार, माताओं को कृमिनाशन के लिए सरल उपचार लेने की सलाह दी जाती है ताकि वे रक्तहीनता से पीड़ित न हों।
किसी भी संक्रमण के कारण रोगों या अन्य के लिए उपचार, विशेष रूप से रोगी की परीक्षा के आधार पर व्यक्तिपरक है। एक बार कोई बालिका रजोदर्शन प्राप्त कर ले, तो सिद्ध प्रणाली में ऐसे नुस्खे तैयार हैं जो उसे भविष्य में एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए उसकी प्रजनन प्रणाली को मजबूत कर सकते हैं। साथ ही रजोनिवृत्ति समाप्त होने के उपरांत की समस्याओं, विशेष रूप से हार्मोनल असंतुलन से संबंधित समस्याओं के लिए प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं।
सिद्ध प्रणाली यकृत, त्वचा रोग विशेष रूप से सोरायसिस, आमवाती समस्याओं, अरक्तता, प्रोस्टेट बढ़ने, खूनी बवासीर और पेप्टिक अल्सर के जीर्ण मामलों के उपचार में कारगर है। सिद्ध दवाएँ जिनमें पारा, चांदी, आर्सेनिक, सीसा, और सल्फर शामिल हैं, रतिज रोगों सहित कुछ संक्रामक रोगों के इलाज में प्रभावी पाई गई हैं। चिकित्सकों का दावा किया है कि सिद्ध दवाएं एचआईवी/एड्स के मरीजों के बीच प्रकट अत्यधिक दुर्बल करने वाली समस्याओं को कम करने में प्रभावी रही हैं। वर्तमान में इन दवाओं की प्रभावकारिता के बारे में अधिक अनुसंधान प्रगति पर है।
राष्ट्रीय सिद्ध संस्थान (एनआईएस), चेन्नई आयुष विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन एक स्वायत्त संगठन है। इसका 14.78 एकड़ जमीन में निर्माण किया गया है। यह संस्थान सोसाइटी अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था। यह संस्थान सिद्ध छात्रों के लिए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम आयोजित करता है, इस प्रणाली के माध्यम से चिकित्सा देखभाल प्रदान किया जाता है, इसके विभिन्न पहलुओं में अनुसंधान आयोजित करता है और इस विज्ञान के विकास व प्रचार को बढ़ावा देता है। यह न केवल सिद्ध चिकित्सा लेने में एक प्रमुख संस्थान है, अर्थात् आम जनता तथा सभी क्षेत्रों के लोगों को तमिल दवा उपलब्ध कराने के लिए, बल्कि अनुसंधान गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए भी। यह संस्थान तमिलनाडु सरकार के साथ एक संयुक्त उद्यम के रूप में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया है। पूंजीगत व्यय के लिए भारत सरकार और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में है और आवर्ती व्यय के लिए 75:25 के अनुपात में। यह संस्थान हमारे राष्ट्र को भारत के माननीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा 3-9-05 को समर्पित किया गया।
हर साल, इस संस्थान में, 46 छात्र भर्ती किए जाते हैं और उन्हें स्नातकोत्तर की छ: शाखाओं – मरुथुवम (जनरल मेडिसिन), गुणपदम (फार्माकोलॉजी़), सिरप्पु मरुथुवम (विशेष चिकित्सा), कुज़ंडाइ मरुथुवम (शिशु रोग), नोइ नाडाल (सिद्ध पैथोलॉजी) तथा नंजु नूलम मरुथुवा नीथि नूलम (विष विज्ञान और चिकित्सा न्यायशास्त्र) में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है। इस संस्थान को तमिलनाडु के डॉ. एमजीआर मेडिकल विश्वविद्यालय, चेन्नई द्वारा सिद्ध में पीएचडी की डिग्री देने के लिए एक केन्द्र के रूप में अनुमोदित किया गया है।
स्त्रोत:
आयुष विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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