परिचय
यह स्नायूतंत्र का एक रोग है जिसमें मस्तिष्क के कुछ क्षेत्र तथा कोशिकाएं क्षयग्रस्त होने लगते हैं । 65 साल से ऊपर कीआबादी में 1 प्रतिशत लोग इस रोग का शिकार हैं । यह बीमारी किसी भी उम्र और किसी भी सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले व्यक्ति को हो सकती है । औसतन 50-60 की उम्र के बीच इसके पहले लक्षण प्रकट होने लगते हैं । आम तौर पर रोग इस धीमी गति से और इतने चुपचाप तरीके से शुरू होता है कि इसकी शूरूआत का ठीक समय बता पाना कठिन होता है ।
यह रोग धीरे- धीरे बढ़ता है । आम तौर पर यह एक ओर के बाजू या टांग से शुरू होता है और उसके बाद, दूसरी ओर की टांग व बाजू को प्रभावित करता है । अकड़न शुरू होने पर पूरा बदन ऐठ सकता है । अलग लोगों में रोग के बढ़ने की गति अलग-अलग होती है । कुछ व्यक्तियों में पूरे शरीर के अंगों तक रोग पहुँचने में 5-10 साल का समय लग जाता है । अन्यों में इससे भी ज्यादा वक्त लग सकता है ।
लक्षण
- अकड़न: अकड़न के कारण शरीर में दर्द हो सकते हैं यह अकड़न, ऊपर और नीचे के अंगों, धड़ तथा गर्दन को प्रभावित करती है ।
- कंपन : कंपन आम तौर पर हाथों से शुरू होता है और ऊपर के सारे अंगों में फ़ैल सकता है । और इस का फैलाव अलग – अलग लोगों में अलग –अलग होता है आम तौर पर अंगूठा तर्जनी की ओर बार बार हिलता है । लगता है जैसे रोगी गोलियां घूमा रहा हो । इसीलिए इसे “पिल – रोलिंग” कंपन भी कहा जाता है । यह पैरों में भी हो सकता है और पैर बार – बार फर्श पर थपकियां देते लगते हैं । यह जबड़ों, होठों और जीभ को भी प्रभावित करता है ।
- धीमापन (ब्रेडिकाइनेसिया): शारीरिक / मांसपेशियों की हरकतों में धीमापन आना, इसकी एक अन्य बुनियादी विशिष्टिता है । आँख झपकने, मुंह के हावभाव, निगलने, कपड़े पहनने, नहाने इत्यादि जैसे शरीर के सभी क्रियाकलापों की गति धीमी हो जाती है ।
- शरीर की मुद्रा और संतुलन में विचलन: अधिकांश रोगियों के शरीर की मुद्रा में विचलन पैदा हो जाता है । वे या तो आगे झुक जाते हैं या फिर उनका धड़ आगे की ओर झुक जाता है । रोगी अपना संतुलन बनाने में असमर्थ हो जाते हैं और बार – बार आगे या पीछे की ओर गिरते हैं ।
पर्किन्सन्स रोग की विशिष्टाएँ
- कंपन – यह इस रोग का सबसे आम लक्षण है । यह हाथों, टांगों, होठों, जबड़ों और जीभ को प्रभावित कर सकता है । जब रोगी इनमें से किसी अंग को सक्रियता पूर्वक इस्तेमाल कर रहा होता है, तब कंपन उतना भी दिखता । इसलिए, कई रोगी अपने शरीर की, मुद्रा बदलते रहते हैं और अपने हाथ - पैर चलाते रहते हैं ।
- कमजोरी का अहसास – शरीर के धीमेपन और अकड़न के कारण व्यक्ति कमजोरी महसूस करने लगता है । इसलिए, सभी चेतनाएं धीमी पड़ जाती हैं और उनके लिए सचेत प्रयास करना होता है कई रोगी अपने बाजू भी पूरी तरह नहीं चलाते और अपने रोजमर्रा के कामकाज तक में दूसरों की मदद लेते हैं । इसके कारण उनके कंधे जाम हो जाते हैं । इसके कारण उनके कंधे जाम जाते हैं और उनमें दर्द होता है ।
- शरीर की साफ- सफाई और कपड़े पहनना – शेविंग, नहाना, शौच, कपड़े, पहनना जैसी सभी गतिविधियाँ धीमी हो जाती हैं अनेकों रोगियों को यह सब करने में पूरा दिन भी लग सकता हैं और उन्हें दूसरों की मदद की जरूरत पड़ सकती है ।
- खाना और भोजन निगलना – कुछ रोगियों को खाना निगलते वक्त दम घुटने का अहसास हो सकता है । अवचेतन द्वारा चालित निगलने की क्रिया कमजोर हो जाती है और आधे खुले मुंह से लार बहती रहती है । दूसरी आम समस्या है, अतिरिक्त लार बनना जो मुंहसे रिसती रहती है ।
- आवाज – कुछ रोगी अपनी आवाज के कमजोर होने की शिकायत करते हैं और एक ही शब्द को कई बार दोहराते हैं । आवाज में बड़बड़ाहट पैदा हो सकती है और कई बार संभव है की वह लोगों को समझ न आए या सुने ही नहीं ।
- चेहरा – रोगी आम आदमी की तरह बारबार अपनी पलकें नहीं झपकाते । उन्हें देख लगता है जैसे वे घूर रहे हों । उनके चेहरे के भाव बिल्कुल नहीं बदलते । चेहरा भी बहुत तैलीय हो जाता है और लगता है जैसे व्यक्ति ने मास्क पहन रखा हो ।
- हस्तलेख – हस्तलेख बदल जाना भी एक और लक्षण है । बशर्ते रोग सीधे हाथ से शुरू हूआ हो । हस्तलेख धीमा और छोटा हो जाता है ।
- बिस्तर में करवट बदलना – यह अनेक रोगियों के लिए सच में बहुत मुश्किल काम है । कई बार इसके लिए उन्हें दुसरे की मदद की जरूरत होती है ।
- चलना – हर कदम छोटा हो जाता है । चलते वक्त पैर पर्याप्त ऊपर नहीं उठते और घिसटते हैं । कुछ दूर चलने के बाद चाल तेज हो जाती है । आगे झुके होने के कारण भी चाल तेज हो जाती है और रोगी कभी - कभी गिर सकता है । चलते वक्त बाजू हिलते नहीं और वे सीने की बगल में चिपके रहते हैं । आंशिक रूप से कोहनियों तक स्थिर रहते हैं । खड़ा हूआ रोगी कई बार पीछे की ओर (रेट्रो- पल्शन) या बगल की ओर (लेटरो – पल्शन) गिर सकता है । “फ्रीजिंग” इस रोग की एक और असमर्थ बनाने वाली विशिष्टता है । इसमें टांगे और पैर अचानक जैसे जमीन से चिपक से जाते हैं । लगता है जैसे व्यक्ति की बैटरी खत्म हो गई हो ।
पार्किन्सन्स के रोगी के साथ व्यवहार
अगर आपके घर में किसी को यह रोग हो गया है, तो याद रखिए कि रोगी का केवल शरीर ही धीमा पड़ा है । उसका दिमाग अभी भी तेज और सक्रिय है । परिवार का बुद्धिमान व्यक्ति उससे सहानूभूति जताने की जगह, उसे प्रोत्साहित करेगा व उसकी सहायता करेगा ।
रोगी को कपड़े पहनाने, नहाने जैसे अपने रोजाना के काम खुद करने दीजिए । देखभाल करने वाले का काम है कि वह रोगी को इन सब कामों को खुद करने का समय दे । वह एक बात का ध्यान रखे कि कहीं रोगी ने यह सब करते हुए अपने को जख्मी तो नहीं कर लिया है या वह गिर तो नहीं पड़ा है । आलस्य, हताशा, अवसाद या हालत में सुधार की कमी के कारण, अक्सर रोगी व्यायाम करने से बचने की प्रवृत्ति रखते हैं । देखभाल करने वाले का काम है की वह रोगी को इसके लिए प्रेरित करे, समझाए – बहलाए और व्यायाम न करने पर कभी – कभी हल्के से डाट भी दे ।
आहार
पार्किन्सन्स रोग में किसी खास आहार की आवश्यक नहीं होती । इस मामले में रोगी के लिए सबसे अच्छी सलाह यही है कि वह ताजे, फलों, सब्जियों और काफी पानी के साथ संतुलित और अच्छा भोजन लिया जा रहा है तो विटामिन जैसे संपुरक लेने की जरूरत नहीं होती । कुछ लोगों को रोजाना विटामिन की गोली लेना अच्छा लगता है । इसलिए, कम मात्रा में विटामिन सी और ई लेने में कोई नुकसान नहीं है ।
इस रोग में कब्ज एक आम समस्या होती है यह कई कारकों के मेल, खासकर निष्क्रियता के कारण होती है ।
सकारात्मक सोच
व्यक्ति को हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए । उसे निराश करने वाले विचारों को अपने दिमाग में नहीं आने देना चाहिए ।
व्यायाम
रोगी के लिए व्यायाम बहुत जरूरी है । इसके अभाव में उसके जोड़ जाम हो जाएंगे और उनमें दर्द होगा । व्यायाम ने करने से मांसपेशियां अपनी शक्ति खो देती हैं और अधिक पतली हो जाती हैं । लेकिन, व्यायाम संयमित मात्रा में करना चाहिए और अपने आपको थकाना नहीं चाहिए । सुनिश्चित करें की शरीर के तमाम जोड़, खासकर गर्दन, कंधे और कमर नियमित रूप से हरकत में आएं । घूमना सबसे संयमित व्यायाम है । रोजमर्रा के काम, जैसे पानी का गिलास लाना, बाल्कनी से अखबार उठाना, दूध, अंडे, मक्खन इत्यादि खरीदना रोगी को सक्रिय बनाए रखने में मदद देते हैं ।
कुछ सामान्य व्यायाम
अगर रोगी को इनमें से कोई व्यायाम अपने लिए मुश्किल या थका एने वाला लगता है, तो उसे वह नहीं करना चाहिए । इन व्यायामों को शुरू करने से पहले, डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए ।
- सख्त बिस्तर पर सीधे लेटिए । अपने पुट्ठो और घुटनों को मोड़ीए और ऐसे कीजिए जैसे आप साईकिल चला रहे हों आप अपनी सामर्थ्य के अनुसार साईकिल चलाने की गति को बदल सकते हैं ।
- पैरों को खोल कर खड़े हों और बाजुओं को सिर के ऊपर सीधे उठाएं । धड़ को आगे की ओर, पीछे और बगल में झूकाएँ । ऐसा शाम 5-10 मिनट तक किया जा सकता है ।
- एक भारी कुर्सी के पास खड़े हों उसकी पीठ थामें । बैठें और खड़े हों सुबह शाम 5-10 बार ऐसा किया जा सकता है ।
- बिस्तर पर पीठ के बल सीधे लेटे हुए, धीरे-धीरे एक टांग ऊपर उठाएँ, घुटने को मोड़ें । टांग को जितना ऊपर उठा सकते हैं, उठाएं जब तक आपके पंजे छत की ओर नहीं हो जाते । इस स्थिति को 30-60 सेकेंड बनाए रखें और फिर धीरे- धीरे टांग को बिस्तर की सतह पर ले आएं । इसे पहले एक, फिर दुसरे पैर के साथ 5-10 बार दोहराएँ ।
- बिस्तर पर पीठ के बल सीधे लेटे हुए अपने दोनों हाथों को सिर के पीछे ले जा कर पकड़ें और बैठने की कोशिश करें । पांच बार ऐसा करें । कुछ रोगियों के लिए यह बहुत मूश्किल हो सकता है ।
- पेट के बल लेट जाएँ । अपने हाथ पीठ के पीछे रखें, उसके बाद सिर उठाएँ और सीने को बिस्तर की सतह से ऊपर उठाने की कोशिश करते हुए ऊपर की ओर देखें । अब अपने सिर को दाएं – बाएँ घुमाएँ । दोनों दिशाओं में पांच- पांच बार ।
- पैर फर्श पर रखें हुए, बिस्तर के एक किनारे पर बैठें और दोनों हाथों को पुट्ठों पर रख लें । जितना संभव हो आगे की ओर झुकें और फिर पीछे की ओर, लेकिन बिस्तर पर गिर न पड़ें । सीधे बैठ जाएँ और फिर दाएं और बाएँ झुके जब तक कोहनियां बिस्तर की सतह को छूने न लगें । इसे 5-10 बार दोहराएँ ।
- सीधे खड़े हो जाएँ और बाजुओं को बाहर की ओर फैला लें । हाथों को कंधो की ऊंचाई तक लाएं । फिर हाथों को ऊपर उठा सिर के ऊपर उन्हें जोड़ लें । बाजुओं को धीरे – धीरे समानांतर स्थिति में लाएं और जितना संभव हो कंधों को पीछे की ओर खींचें । अंत में अपने हाथों को नीचे बगल में ले आएं । इसे पांच बार दोहराएँ ।
- सीधे खड़े हों और फिर आराम से पुट्ठों से नीचे झुकें । बाजुओं को नीचे गिरने दें ताकि आपके हाथ लटकती स्थिति में हों और उंगलियाँ फर्श की पर हों । अपनी उँगलियों से पैरों के पंजों को जबरजस्ती छूने की कोशिश न करें । कई बार यह व्यायाम कर चूकने के बाद, आप आसानी से ऐसा कर पाएँगे । सीधे खड़े हो जाएँ । इसे 10 बार दोहराएँ ।
- पीठ के बल सीधे लेते हूए, अपने सिर को धीरे- धीरे दाएं घुमाएँ और अपने कानों को कंधो के पास तक लेन की कोशिश करें । फिर ठीक इसी तरह बाई ओर करें । दोनों दिशाओं में इस क्रिया को 10-10 बार दोहराएँ ।
- पुट्ठों पर हाथ रख सीधे खड़े हो जाएँ । सिर को ऊपर करें, कंधो को पीछे, सीने को आगे निकाल 20 कदम मार्च करें । ध्यान रखें की आपके घुटने ऊपर उठने चाहिए । हर कदम को गिनें ।
झूकी हुई मुद्रा के लिए व्यायाम
- एक दीवार की पास, उसकी ओर पीठ कर खड़े होना । ध्यान रहे की आपका सिर, कंधे, पुट्ठे और एड़िया दीवार को छू रहे हों । एक मिनट तक इसी तरह खड़े रहें और फिर वापस आ दीवार के साथ खड़े हो जाएँ । देखें की आप कितने झुके हैं और फिर से अपनी मुद्रा में सुधार करें इसे पांच बार दोहराएँ ।
- दीवार की ओर मुहं करके खड़े हों जितना संभव हो अपना हाथ उठाएं, दीवार पर अपनी हथेलियाँ टिका आगे की ओर झुकें । धीरे- धीरे अपने हाथों के दीवार पर टिकाए- टिकाए जितना संभव है, ऊपर ले जाएँ । अपनी गर्दन और रीढ़ को थोड़ा सा पीछे की ओर मोड़ें और ऊपर की ओर खींचे । इसे दिन में दो बार पांच- पांच बार दोहराएँ ।
शाफ्लिंग के लिए व्यायाम
अपने पैरों को ऊपर उठाते हुए इस तरह मार्च कीजिए जैसे सेना में किया जाता है । साथ ही कहिए – “लेफ्ट, राइट, लेफ्ट, राइट,
फ्रीजिंग के लिए व्यायाम
जब फ्रीजिंग हो और आपके पैर जमीन से चिपके रह जाते हो, तो अपने आपको अगल-बगल झूलाइए ( या किसी से कहिए कि वह आपको ऐसा करने में मदद दें ) अपने हाथों को उसी मुद्रा में चलाइए जैसी मार्च करते वक्त होती है । उसके बाद अपनी टांगे उठाइए और चलने लगिए ।
बोलने के लिए व्यायाम
रोगियों के लिए बोल- बोल कर अख़बार पढ़ना और जोरों से गाना बहुत अच्छे वाचिक या शाब्दिक व्यायाम हैं । रोगी को एक आईने के सामने बैठ कर धीमी रफ़्तार में ऊंचे से बोलना चाहिए और अपने होठों व जीभ के हिलने को देखना चाहिए । अगर बोलने में आने वाली बाधा ज्यादा परेशान कर रही हैं, तो किसी योग्य स्पीच थेरेपिस्ट से परामर्श किया जा सकता है ।
स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया