हड्डियों जीवित ऊतक होता हैं जिनमें निरंतर पुन: स्थापन की प्रक्रिया चलती रहती है। रोज नई हड्डियों बनती हैं और पुरानी खत्म होती रहती हैं। उम्र बढ़ने के साथ हड्डियों के खत्म होने की प्रक्रिया, नई हड्डियां बनने की प्रक्रिया, के मुकाबले ज्यादा तेज हो जाती है और इस कारण हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं। गतिशील, और आत्मनिर्भर बने रहने के लिए, व्यक्ति को अपनी हड्डियों को स्वस्थ रखना चाहिए। शरीर के आँख, हृदय जैसे अन्य महत्वपूर्ण अंगो की तरह हड्डियों को भी बराबर की देखभाल की जरूरत होती है।
ओस्टियोपोरोसिस का शब्दिक अर्थ है “छिद्रिल हड्डियाँ”। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और उनमें आसानी से फ्रेक्चर हो जाता है। इसी कारण, इस रोग को “भुरभुरी हडिडयों का रोग” कहते है इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति की हड्डी जोरदार आलिंगन या कार के झटके तक से टूट सकती है। फ्रेक्चर पूद्थों, रीढ़ तथा कलाइयों में होते हैं। इनमें पुट्ठों में होने वाले फ्रेक्चर सबसे गंभीर होते हैं क्योंकि उनके कारण व्यक्ति स्थाई असमर्थता का शिकार हो अपनी आत्मनिर्भरता हमेशा के लिए खो सकता है।
ओस्टियोपोरोसिस के होने की चेतावनी देने वाली कोई प्रकट लक्षण नहीं होते। रोगी इस “खमोश सेंधमार” की मौजूदगी से तब तक अनजान रहता है, जब तक फ्रेक्चर या दर्द जैसी जटिलताएँ पैदा नहीं होती। अच्छी खबर यह है की अब शुरू में ही इसका पता लगाने वाली जांचे उपलब्ध हैं।
यह सबों को हो सकता है, जवानों से लेकर वृद्धों तक और पुरूषों से लेकर महिलाओं तक। एक गलतफहमी यह है की यह रोग केवल महिलाओं को होता है। हालाँकि, वे इस रोग की मार ज्यादा झेलती हैं, लेकिन यह भी हो सकता है। पुरूष भी इससे प्रभावित होते हैं, हालाँकि अपेक्षाकृत कम संख्या में। 50 की उम्र की चार में से एक महिला और 50 की उम्र के पुरूषों में आठ में से एक पुरूष इस रोग से ग्रस्त होते हैं। यहाँ तक कि दमे इत्यादि के लिए कोर्टिकोस्टीराइड जैसी दवाएँ लेने वाले बच्चे तक इस भयानक बीमारी का शिकार हो सकते हैं।
ओस्टियोपोरोसिस और उम्र का बढ़ना एक ही चीज नहीं हैं। यह एक निवार्य और उपचार्य रोग है। यानी इसकी रोकथाम और इलाज संभव है।
इस रोग में जिस मुख्य चुनौती से जूझना पड़ता है, वह है जागरूकता की कमी। मीनोपौज की आवस्था (वह अवस्था जब मासिक चक्र रूक जाता है) में पहुँच चुकी हर दूसरी महिला को ओस्टियोपोरोसिस होने की संभवना होती नही, लेकिन अस्सी प्रतिशत महिलाएँ इस जोखिम से बेखबर होती हैं। जोखिम के दायरे में आने वाली ज्यादातर महिलाओं का कोई निरोधक उपचार नहीं होता, क्योंकी ज्यादातर डॉक्टर इस रोग और इसके परिणामों से अनजान बने रहते हैं और वे पूरी शक्ति के साथ इसका उपचार नहीं करते।
देश में वृद्धों की संख्या में होने वाली बढ़ोतरी को देखते हुए, ओस्टियोपोरोसिस के कारण होने वाले फ्राक्चर पहले से ही काम के अतिरिक्त बोझ से दबी स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती और भार बन सकते हैं। भारत के अनेकों भागों की जनसंख्या में विटामिन डी की कमी है। वह शायद एक अतिरिक्त कारण है जो भारतियों को इस रोग का अधिक शिकार बनाता है।
ओस्टियोपोरोसिस से सभी हड्डियाँ प्रभावित होती हैं। लेकिन, पुट्ठों, रीढ़ व कलाई की हड्डियाँ सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं और उन्हीं में फ्रेक्चर की संभवना सबसे अधिक होती है।
शुरू में इस रोग के होने का बिल्कुल पता नहीं लगता। बाद में प्रकट होने वाले लक्षण हैं कमर दर्द, लम्बाई का घटना और रीढ़ का झुकना।
बहुत अधिक बढ़ जाने तक साधारण एक्स – रे से इसकी पहचान नहीं की जा सकती। अत: डॉक्टर इसका पता लगाने के लिए विशेष प्रकार के एक्स - रे का प्रयोग करते हैं जिसे “बोन डेन्सिटोमीट्रि” कहा जाता है। यह जाँच अब हर शहर में उपलब्ध है और इसमें 2000/- तक खर्च आ सकता है। साधारण एक्स-रे की भांति इसमें विकिरण के संपर्क में आने का जोखिम नहीं होता।
नीचे दी गई “ओस्टियोपोरोसिस के जोखिम की एक मिनट की जाँच आपको यह जानने में मदद कर सकती है की क्या आप एस रोग से प्रभावित होने के जोखिम से गुजर रहे हैं। अगर इन सवालों में से एक या ज्यादा का जवाब ‘हाँ’ में है, तो अंको इस रोग का जोखिम हो सकता है और डॉक्टर से परामर्श किए जाने की जरूरत है।
अंतराष्ट्रीय ओस्टियोपोरोसिस फाउन्डेशन – ओस्टियोपोरोसिस सोसायटी ऑफ इंडिया ( IOG – OSI ) “ जोखिम की एक मिनट की जाँच”
क्या आपके माता या पिता में से किसी को छोटे-मोटे गिरने या टक्कर से पुट्ठों में फ्रेक्चर हुआ था ?
अच्छी खबर यह है कि अब इस रोग का निदान और उपचार अपेक्षाकृत आसानी से किया जा सकता है। जीवन शैली में थोड़े से परिवर्तन ला कर ओस्टियोपोरोसिस का खतरा कम किया जा सकता है।
सभी लोगों, खासकर किशोर- किशोरियां, को ऐसा भोजन काफी मात्रा में लेना चाहिए जिसमें कैल्सियम अधिक मात्रा में हो, जैसे दूध व दूध से बनी चीजें – पनीर, दही, योगर्ट, लस्सी इत्यादि, बीन्स, पालक, गिरियाँ और सूखे फल। विटामिन डी और कैल्सियम की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, वृद्ध लोग कैल्सियम की गोलियां ले सकते हैं। वे बाजार में उपलब्ध हैं।नियमित व्यायाम काफी लाभकारी होता है। धूम्रपान आर अधिक मात्रा में कोला/कॉफ़ी चाय हड्ड्यों को नुकसान पहुंचाते हैं। तेज रफ्तार से घूमने और एयरोबिक्स से हड्डियाँ मजबूत बनी रहती हैं। हड्डियों की देखभाल स्वस्थ रूप में वृद्ध होने का एक अनिवार्य अंग होनी चाहिए।
काफी सारा दूध और रोजाना व्यायाम बहुत जरूरी हैं। व्यायाम हड्डियों के गिर्द की मांसपेशियों को मजबूती देता है। नियमित रूप से तेज रफ्तार से घूमना या वजन उठाने का कोई व्यायाम किया जा सकता है। व्यायाम संतूलन और, विभिन्न अंगों के बीच तालमेल को भी सुधारता है और गिरने की संभावनाओं को कम करता है। शराब, तम्बाकू, ज्यादा कॉफ़ी, चाय तथा कोला पीने से बचना चाहिए।
हड्डियों को और ज्यादा खत्म होने से रोकने, खत्म हुई हड्डियों को फिर से बनाने तथा फ्रेक्चर के खतरे को कम करने के लिए अब प्रभावी उपचार उपलब्ध है। मीनोपोज के बाद की अवस्था से गुजरती महिलाओं के लिए इस्ट्रोजन (हार्मोन प्रतिस्थापन चिकित्सा, एचआरटी) या कैल्सिटोनिन, बाईफोस्फोनेट, कैल्सियम व विटामिन डी के रूप में। अपने अनुकूल उपचार चुनने के लिए डॉक्टर से परामर्श किया जाना चाहिए
कुछ सरल उपाय हैं जिन्हें अपना कर बुजुर्ग लोग फ्रेक्चर से अपना बचाव कर सकते हैं। बूढ़े होने के साथ गिरने का खतरा बढ़ता चला जाता है। अत: व्यक्ति को अपने घर व नजदीक के वातावरण का ध्यान रखना चाहिए और उन्हें जिनता संभव हो, सुरक्षित बनाना चाहिए। नीचे कुछ सरल व व्यावहारिक उपाय दिए गए हैं :
परिवहन व्यवस्था तथा सार्वजनिक स्थलियाँ ऐसी होनी चाहिए की उनमें वृद्ध लोगों को आसानी हो।
ओस्टियोपोरोसिस के बारे में जानकारी के स्रोत :
ओस्टियोपोरोसिस पर अधिक जानकारी के लिए अंतराष्ट्रीय ओस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन के वेबसाइट www.osteofound.org पर जाइए या osteoporosis_society_india@hotmail.com पर ओस्टियोपोरोसिस सोसायटी ऑफ इंडिया से सम्पर्क कीजिए।
स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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