आपके स्कूल के लिए सही प्रौद्योगिकीय औजारों का चयन शिक्षा में आईसीटी के प्रभावी इस्तेमाल को सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह खंड शिक्षा में इस्तेमाल की जा सकने वाली प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी देता है और शिक्षा में आईसीटी के इस्तेमाल के दौरान आने वाली चुनौतियों के बारे में सूचना देता है।
सूचना व संचार प्रौद्योगिकी उन कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सूचना के पारेषण, संग्रहण, निर्माण, प्रदर्शन या आदान-प्रदान में काम आते हैं। सूचना व संचार प्रौद्योगिकी की इस व्यापक परिभाषा के तहत रेडियो, टीवी, वीडियो, डीवीडी, टेलीफोन (लैंडलाइन और मोबाइल फोन दोनों ही), सैटेलाइट प्रणाली, कम्प्यूटर और नेटवर्क हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर आदि सभी आते हैं; इसके अलावा इन प्रौद्योगिकी से जुड़ी हुई सेवाएं और उपकरण, जैसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-मेल और ब्लॉग्स आदि भी आईसीटी के दायरे में आते हैं।
'सूचना युग' के शैक्षिक उद्देश्यों को साकार करने के लिए शिक्षा में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के आधुनिक रूपों को शामिल करने की आवश्यकता है। इसे प्रभावी तौर पर करने के लिए शिक्षा योजनाकारों, प्रधानाध्यापकों, शिक्षकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण, वित्तीय, शैक्षणिक और बुनियादी ढांचागत आवश्यकताओं के क्षेत्र में बहुत से निर्णय लेने की आवश्यकता होगी। अधिकतर लोगों के लिए यह काम न सिर्फ एक नई भाषा सीखने के बराबर कठिन होगा, बल्कि उस भाषा में अध्यापन करने जैसा होगा।
यह खंड देशों को आपस में जोड़ने वाले उपग्रहों से लेकर कक्षा में विद्यार्थियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों तक संचार के औजारों की पड़ताल करता है। यह खंड शिक्षकों, नीति-निर्माताओं, योजनाकारों, पाठ्यक्रम बनाने वालों और अन्य को आईसीटी उपकरणों, शब्दावली और प्रणालियों के भ्रामक जाल में से रास्ता निकालने में मदद करेगा।
शिक्षक, योजनाकार, शोधकर्ता आदि सभी लोग व्यापक पैमाने पर इस बात से सहमत दिखाई देते हैं कि आईसीटी में शिक्षा पर सकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभाव डालने की क्षमताएं मौजूद हैं। जिस बात पर अब तक बहस चल रही है, वो यह है कि शिक्षा सुधार में आईसीटी की सटीक भूमिका क्या हो और इसकी क्षमताओं के बेहतरीन दोहन के लिए सबसे बेहतरीन तरीके क्या हो सकते हैं।
इस खंड में ऑनलाइन पत्रिकाओं और वेबसाइट के लेख, रिपोर्ट और लिंक मौजूद हैं जिनमें शिक्षा पर आईसीटी के प्रभावों की पड़ताल की गई है और बताया गया है कि स्कूलों में प्रौद्योगिकी की दिशा क्या होनी चाहिए।''
(यह खंड शिक्षा में आईसीटी के इस्तेमाल से निकले लाभों का विवरण देने वाले लेखों को भी उपलब्ध कराता है। साथ ही, इसमें लेख और केस-स्टडी भी उपलब्ध कराए गए हैं जो शैक्षणिक कार्यक्रमों में आईसीटी को शामिल करने संबंधी दिशा-निर्देश मुहैया कराते हैं, जिनमें विचार योग्य मसले, सीखने लायक सबक और आम गलतियों से बचने संबंधी सलाह को भी जोड़ा गया है)
प्रौद्योगिकी के प्रयोग से जुड़ी नीतियों, रणनीतियों और व्यावहारिक कदमों के प्रदर्शन के लिए दुनिया भर से ली गईं अन्वेषण, कामयाबी और विफलता की दास्तानें। इनके तहत निम्न विषय शामिल होंगे:
आज की प्रौद्योगिकी
कल की तकनीक
भविष्य की प्रौद्योगिकी के बारे में शिक्षा से जुड़े लोगों और नीति-निर्माताओं को जागरूक करना ताकि वे भविष्य के हिसाब से अपनी योजनाएं बना सकें, न सिर्फ उस आधार पर जो आज उपलब्ध है, बल्कि आने वाली कल की नई-नई चीज़ों को ध्यान में रखते हुए।
20वीं शताब्दी की शुरुआत से ही रेडियो और टीवी का शिक्षा में इस्तेमाल किया जा रहा है।
आईसीटी के ये रूप तीन मुख्य तरीकों से इस्तेमाल किये जाते हैं:
संवादात्मक रेडियो दिशा-निर्देश में रोजाना के आधार पर कक्षाओं के लिए प्रसारण पाठ शामिल हैं। विशेष मुद्दों और विशिष्ट स्तर पर रेडियो पाठ सीखने और पढ़ाने की गुणवत्ता सुधारने के लिए शिक्षकों को ढांचागत और दैनिक सहयोग मुहैया कराते हैं। संवादात्मक रेडियो दिशा-निर्देश दूर के स्कूलों और केन्द्रों के लिए तैयार पाठ लाकर शिक्षा के विस्तार में योगदान भी देता है जिनके पास संसाधनों और शिक्षकों की कमी है। अध्ययन बताते हैं कि आईआरआई परियोजनाओं से शिक्षा तक पहुंच और औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा की गुणवत्ता दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे बड़ी संख्या में लोगों तक शैक्षिक सामग्री पहुंचाने में कम-लागत भी आती है।
टीवी के पाठ अन्य कोर्स सामग्री के पूरक के तौर पर भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं या उन्हें अकेले भी पढ़ाया जा सकता है। लिखी हुई सामग्री और अन्य संसाधन शैक्षिक टीवी कार्यक्रमों के साथ अक्सर सीखने और निर्देश ग्रहण की क्षमता को बढ़ाते हैं।
एशिया- प्रशांत क्षेत्र में शैक्षिक प्रसारण काफी विस्तारित है। भारत में उदाहरण के लिए इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी टीवी और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कोर्स का प्रसारण करती है।
विशिष्ट पाठों के प्रसारण के लिए इस्तेमाल के अतिरिक्त रेडियो और टीवी का इस्तेमाल सामान्य शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए भी किया जा सकता है। वास्तव में, शैक्षिक मूल्य के साथ किसी भी रेडियो या टीवी के किसी भी कार्यक्रम को ''सामान्य शैक्षिक कार्यक्रम'' माना जा सकता है। अमेरिका से बच्चों के लिए प्रसारित किया जाना वाला एक शैक्षिक टीवी कार्यक्रम ''सीसेम स्ट्रीट'' इसका एक उदाहरण है। दूसरा उदाहरण, कनाडा का शैक्षिक रेडियो चर्चा कार्यक्रम ''फार्म रेडियो फोरम'' है।
रेडियो और टीवी का इस्तेमाल शिक्षा के एक माध्यम के तौर पर क्रमश: 1920 और 1950 के दशक से बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। शिक्षा में रेडियो और टीवी प्रसारण के इस्तेमाल के तीन सामान्य तरीके हैं-
सीधे कक्षा में पढ़ाने का सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोत्तम दस्तावेजी उदाहरण संवादात्मक रेडियो दिशा-निर्देश है। ''इसमें रोजाना के आधार पर कक्षा के लिए 20-30 मिनट प्रत्यक्ष शिक्षण (डायरेक्ट टीचिंग) और शैक्षिक प्रशिक्षण शामिल होता है। गणित, विज्ञान, स्वास्थ्य और भाषाओं के विशेष स्तर पर विशिष्ट शिक्षण के उद्देश्य से बनाए गए रेडियो के पाठ कक्षा में पढ़ाने की गुणवत्ता को सुधारने और सीमित संसाधनों वाले स्कूलों में खराब तरीके से प्रशिक्षित शिक्षकों को नियमित सहयोग के उद्देश्य को पूरा करते हैं।'' संवादात्मक रेडियो दिशा-निर्देश परियोजना को भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में लागू किया गया है। एशिया में संवादात्मक रेडियो दिशा-निर्देश सबसे पहले 1980 में थाईलैंड में क्रियान्वित हुआ था; 1990 में यह परियोजना इंडोनेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल में शुरू हुई। संवादात्मक रेडियो दिशा-निर्देश अन्य दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों से इस मामले में अलग है कि प्राथमिक तौर पर इसका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है- सिर्फ शिक्षा तक पहुंच को ही नहीं- और औपचारिक व अनौपचारिक दोनों ही व्यवस्थाओं में इसने खूब सफलता हासिल की है। दुनिया भर में हुए सघन शोध दिखाते है कि अधिकतर संवादात्मक रेडियो दिशा-निर्देश परियोजनाओं का परिणाम सीखने के परिणामों और शैक्षणिक समानता पर सकारात्मक रहा। अन्य कदमों के मुकाबले यह प्रणाली अपनी कम लागत वाली आर्थिकी के चलते काफी किफायती और कारगर साबित हुई है।
केन्द्र द्वारा चलाया जाने वाला टीवी कार्यक्रम सैटेलाइट के जरिए देश भर में एक निश्चित समय पर प्रसारित किया जाता है, उसमें वही सब कुछ पढ़ाया जाता है जो किसी सामान्य माध्यमिक स्कूल में पढ़ाया जाता है। हरेक घंटे किसी एक नये विषय पर प्रसारण शुरू किया जाता है। विद्यार्थियों को भी टीवी पर अलग-अलग शिक्षकों से पढ़ने का मौका मिलता है, लेकिन स्कूल में सभी स्तर के सभी विषयों के लिए केवल एक शिक्षक होता है।
इस कार्यक्रम के स्वरूप में पिछले कुछ सालों में कई बदलाव देखने को मिले हैं जिसमें शिक्षण की प्रणाली व्यक्ति केन्द्रित से हट कर ज्यादा संवादात्मक प्रक्रिया में परिवर्तित हो गई जो समुदाय को शिक्षण की प्रविधि के इर्द-गिर्द बुने गए एक कार्यक्रम से जोड़ती है। इस रणनीति का उद्देश्य सामुदायिक मुद्दों और कार्यक्रमों के बीच संबंध बनाना था जिससे बच्चों को समग्र शिक्षा दी जा सके, समुदाय को स्कूलों के प्रबंधन और संगठन में शामिल किया जा सके तथा सामुदायिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए छात्रों को उत्प्रेरित किया जा सके। टीवी कार्यक्रमों का आकलन काफी उत्साहजनक रहा है।
आम सेकंडरी स्कूलों के मुकाबले ड्रॉपआउट की संख्या में कमी रही और तकनीकी स्कूलों से भी यह मामूली रूप से बेहतर रहा है। एशिया में चीन की 44 रेडियो और टीवी युनिवर्सिटी (जिनमें चाइना सेंट्रल रेडियो और टेलीविजन युनिवर्सिटी भी शामिल है), इंडोनेशिया की युनिवर्सिटास टर्बुका और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय ने प्रत्यक्ष स्कूली शिक्षण और स्कूली प्रसारण में रेडियो और टीवी का पर्याप्त प्रयोग किया है ताकि वे अपनी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने में कामयाब हो सके। ये संस्थान अक्सर प्रसारण के साथ मुद्रित सामग्री और ऑडियो कैसेट भी मुहैया कराते हैं।
जापान युनिवर्सिटी वर्ष 2000 से 160 टीवी और 160 रेडियो कोर्स चला रही है। हरेक कोर्स 15-45 मिनट का होता है और 15 सप्ताह तक लगातार प्रति सप्ताह एक बार ऐसे व्याख्यान का प्रसारण होता है। सुबह छह बजे से लेकर दोपहर 12 बजे के बीच ये प्रसारण किये जाते हैं। इसके अलावा छात्रों को पूरक सामग्री के तौर पर मुद्रित शिक्षण सामग्री दी जाती है और आमने-सामने शिक्षण के अलावा ऑनलाइन सुविधा भी दी जाती है।
अक्सर मुद्रित सामग्री, कैसेट और सीडी-रॉम के माध्यम से चलाया जाने वाला स्कूली प्रसारण प्रत्यक्ष कक्षा शिक्षण की ही तरह राष्ट्रीय पाठ्यक्रम से जुड़ा होता है और तमाम किस्म के विषयों के लिए इसे विकसित किया जाता है। कक्षा शिक्षण के विपरीत, स्कूली प्रसारण का उद्देश्य शिक्षक का स्थान लेना नहीं होता बल्कि सिर्फ पारंपरिक कक्षा शिक्षण की प्रणाली में मूल्य संवर्धन करना होता है। स्कूल प्रसारण संवादात्मक रेडियो दिशा-निर्देश (आईआरआई) से कहीं ज्यादा लचीला होता है क्योंकि इसमें शिक्षकों को तय करना पड़ता है कि वे कैसे प्रसारण सामग्री का अपने कक्षाओं में एकीकरण कर सकें। जो बड़े प्रसारण संस्थान स्कूली प्रसारण का काम करते हैं, उनमें ब्रिटेन का ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन एजुकेशन रेडियो, टीवी और एनएचके जैपनीज ब्रॉडकास्टिंग स्टेशन शामिल हैं। विकासशील देशों में आमतौर पर इस किस्म के स्कूली प्रसारण वहां के शिक्षा मंत्रालय और सूचना व प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सहयोग से चलाए जाते हैं।
आमतौर पर शैक्षणिक प्रसारणों में कई किस्म के कार्यक्रम शामिल होते हैं- खबरों के कार्यक्रम, वृत्तचित्र, क्विज कार्यक्रम और शैक्षणिक कार्टून, जिनमें सभी किस्म के सीखने वालों के लिए अनौपचारिक शैक्षणिक अवसर मौजूद होते हैं। एक अर्थ में देखें तो इस किस्म के अंतर्गत सूचना और शिक्षा के मूल्यों के लिहाज से कोई भी रेडियो या टीवी कार्यक्रम इसका हिस्सा हो सकता है। कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनकी पहुंच दुनियाभर में है। ये हैं- अमेरिका का टीवी कार्यक्रम सीसेम स्ट्रीट, हर किस्म की सूचनाएं देने वाला चैनल नेशनल ज्यॉग्राफिक और डिस्कवरी और रेडियो कार्यक्रम वॉयस ऑफ अमेरिका। कनाडा में चालीस के दशक में शुरू किया गया फार्म रेडियो फोरम दुनिया भर में रेडियो परिचर्चाओं के लिए मॉडल बन चुका है। यह अनौपचारिक शैक्षणिक कार्यक्रमों का एक नायाब उदाहरण है।
शोध रिपोर्ट के अनुसार सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के सही इस्तेमाल से विषय-वस्तु और शैक्षणिक प्रविधि दोनों में बुनियादी बदलाव किए जा सकते हैं और यही 21वीं सदी में शैक्षणिक सुधारों के केंद्र में भी रहा है। यदि कायदे से इसे विकसित किया गया और लागू किया जाए, तो सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) समर्थित शिक्षण ज्ञान और दक्षता के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जो आजीवन अध्ययन के लिए छात्रों को उत्प्रेरित करता रहेगा।
यदि कायदे से इस्तेमाल किया जाए, तो सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) और इंटरनेट प्रौद्योगिकी से अध्ययन और अध्यापन के नए तरीके खोजे जा सकते हैं, बजाय इसके कि शिक्षक और विद्यार्थी वही करते रहें जो पहले करते रहे थे। शिक्षण और अध्ययन के ये नए तरीके दरअसल अध्ययन की उन रचनात्मक शैलियों से उपजते हैं जो शिक्षण प्रणाली में अध्यापक को केंद्र से हटा कर विद्यार्थी को केंद्र में लाता है।
सक्रिय अध्ययन
सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) समर्थित शिक्षण और अध्ययन परीक्षा, गणना और सूचनाओं के विश्लेषण के औजारों को प्रेरित करते हैं जिससे छात्रों के पास सवाल उठाने को मंच मिलता है और वे सूचना का विश्लेषण कर सकते हैं और नई सूचनाएं गढ़ सकते हैं। काम करते वक्त इस तरह छात्र सीख पाते हैं। जब बच्चे जीवन की वास्तविक समस्याओं से सीखते हैं जिससे शिक्षण की प्रक्रिया कम अमूर्त बन जाती है और जीवन स्थितियों के ज्यादा प्रासंगिक होती है। इस तरह से याद करने या रटने पर आधारित शिक्षण के विपरीत आईसीटी समर्थित अध्ययन बिल्कुल समय पर शिक्षण का रास्ता देता है जिसमें सीखने वाला जरूरत पड़ने पर उपस्थित विकल्प में से यह चुन सकता है कि उसे क्या सीखना है।
सह-अध्ययन
सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) समर्थित अध्ययन छात्रों, शिक्षकों और विशेषज्ञों के बीच संवाद ओर सहयोग को बढ़ावा देता है, इस बात से बिल्कुल जुदा रहते हुए कि वे कहां मौजूद हैं। वास्तविक दुनिया के संवादों की मॉडलिंग के अलावा आईसीटी समर्थित अध्ययन सीखने वालों को मौका देता है कि वे विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के साथ काम करना सीख सकें जिससे उसकी संचार और समूह की क्षमता में संवर्धन होता है तथा दुनिया के बारे में उनकी जागरूकता बढ़ती है। यह आजीवन सीखने का एक मॉडल है जो सीखने के दायरे को बढ़ाता है जिसमें न सिर्फ संगी-साथी, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों के संरक्षक और विशेषज्ञ भी सिमट आते हैं।
सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) की शैक्षणिक क्षमताएं उनके इस्तेमाल पर निर्भर करती है और इस बात पर कि उनका इस्तेमाल किस उद्देश्य के लिए किया जा रहा है। किसी अन्य शैक्षणिक उपकरण के विपरीत सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) सभी के लिए समान रूप से काम नहीं करता और हर जगह एक तरीके से लागू नहीं किया जा सकता है।
पहुंच को बढ़ाना
यह गणना करना मुश्किल है कि सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) ने किस हद तक बुनियादी शिक्षा को प्रसारित करने में मदद की है क्योंकि इस किस्म के अधिकतर प्रयोग या तो छोटे स्तरों पर किए गए हैं या फिर इनके बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। प्राथमिक स्तर पर इस बात के बहुत कम साक्ष्य मिलते हैं कि सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) ने कुछ भी किया है। उच्च शिक्षा और वयस्क प्रशिक्षण में कुछ साक्ष्य हैं कि उन व्यक्तियों और समूहों के लिए शिक्षा के नए अवसर खुल रहे हैं जो पारंपरिक विश्वविद्यालयों में नहीं जा पाते। दुनिया के सबसे बड़े 33 मेगा विश्वविद्यालयों में सालाना एक लाख से ज्यादा छात्र पंजीकरण करवाते हैं और एक साथ मिल कर ये विश्वविद्यालय करीब 28 लाख लोगों की सेवा कर रहे हैं। इसकी तुलना आप अमेरिका के 3500 कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पंजीकृत एक करोड़ 40 लाख छात्रों से कर सकते हैं।
गुणवत्ता में वृद्धि
शैक्षणिक रेडियो और टीवी प्रसारण का मूलभूत शिक्षा की गुणवत्ता पर असर अब भी बहुत खोज का विषय नहीं है, लेकिन इस मामले में जो भी शोध हुए हैं, वे बताते हैं कि यह क्लासरूम शिक्षण के ही समान प्रभावकारी है। कई शैक्षणिक प्रसारण परियोजनाओं में संवादात्मक रेडियो परियोजना का सबसे ज्यादा विश्लेषण हुआ है। इसके निष्कर्ष बताते हैं कि शिक्षा का स्तर ऊपर उठाने में यह काफी प्रभावशाली साबित हुआ है। इसके सबूत बढ़े हुए अंक और उपस्थिति की दर है।
इसके उलट कंप्यूटर, इंटरनेट और संबंधित प्रौद्योगिकी के प्रयोग का आकलन एक ही कहानी कहता है। अपनी शोध समीक्षा में रसेल कहते हैं कि आमने-सामने शिक्षा ग्रहण करने वालों और सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के माध्यम से पढ़ने वालों के अंकों के बीच कोई अंतर नहीं रहा है। हालांकि, दूसरों का दावा है कि ऐसा सामान्यीकरण निष्कर्षात्मक है। वे कहते हैं कि सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) समर्थित दूरस्थ शिक्षा पर लिखे गए तमाम आलेख प्रयोगिक शोध और केस स्टडी को ध्यान में नहीं रखते। कुछ अन्य आलोचकों का कहना है कि सूचना व संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) समर्थित दूरस्थ शिक्षा में स्कूल छोड़ने की दर काफी ज्यादा होती है।
कई ऐसे भी अध्ययन हुए हैं जो इस दावे का समर्थन करते नजर आते हैं कि कंप्यूटर का इस्तेमाल मौजूदा पाठ्यक्रम को संवर्धित करता है। शोध दिखाता है कि पाठन, ड्रिल और निर्देशों के लिए कंप्यूटर के इस्तेमाल के साथ पारंपरिक शैक्षणिक विधियों का इस्तेमाल पारंपरिक ज्ञान समेत पेशेवर दक्षता में वृद्धि करता है और कुछ विषयों में अधिक अंक लाने में मदद रकता है जो पारंपरिक प्रणाली नहीं करवा पाती। छात्र जल्दी सीख भी जाते हैं, ज्यादा आकर्षित होते हैं और कंप्यूटर के साथ काम करते वक्त वे कहीं ज्यादा उत्साही होते हैं। दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है कि ये सब मामूली लाभ हैं और जिन तमाम शोधों पर ये दावे आधारित हैं, उनकी प्रणाली में ही बुनियादी दिक्कत है।
ऐसे ही शोध बताते हैं कि पर्याप्त शिक्षण सहयोग के साथ कंप्यूटर, इंटरनेट और संबद्ध प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल वास्तव में सीखने के वातावरण को सीखने वाले पर केंद्रित कर देता है। इन अध्ययनों की यह कह कर आलोचना की जाती है कि ये विवरणात्मक ज्यादा हैं और इनमें व्यावहारिकता कम है। उनका कहना है कि अब तक कोई साक्ष्य नहीं हैं कि बेहतर वातावरण बेहतर अध्ययन और नतीजों को जन्म दे सकता है। अगर कुछ है, तो वह गुणात्मक आंकड़े हैं जो छात्रों और अध्यापकों के सकारात्मक नजरिये को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं जो कुल मिला कर सीखने की प्रक्रिया पर सकारात्मक असर को रेखांकित करते हैं।
एक बड़ी दिक्कत इस सवाल के मूल्यांकन में यह आती है कि मानक परीक्षाएं उन लाभों को छोड़ देती हैं जो सीखने वाले पर केंद्रित वातावरण से अपेक्षित हैं। इतना ही नहीं, चूंकि प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल पूरी तरह सीखने के एक व्यापक तंत्र में समाहित है, इसलिए यह काफी मुश्किल है कि प्रौद्योगिकी को स्वतंत्र रख कर यह तय किया जा सके कि क्या उसके कारण कोई फायदा हुआ है या इसमें किसी एक कारक या कारकों के मिश्रण का हाथ है।
अंतिम बार संशोधित : 2/13/2023
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