मीडिया एक दोधारी अस्त्र है। जहाँ एक तरफ यह लोगों के विचार को एक रूप देता है वही दूसरी तरफ पाठकों को आकर्षित करने के लिए सनसनीखेज मुद्दे बनाना इसका चरित्र है।
किसी बच्चे को सजा न देने के अपने मकसद पर आगे बढ़ते हुए किशोर न्याय अधिनियम के धारा 19 को शामिल किया गया। यह धारा सुनिश्चित करती है कि “एक किशोर जिसने कोई अपराध किया है तथा उसे इस कानून के प्रावधानों के अंतर्गत लिया गया है तो फिर वह इस कानून के अंतर्गत किए जाने वाले किसी अपराध से बरी नहीं किया जाएगा।”
एक समान प्रावधान 1986 के किशोर न्याय अधिनियम (जेजेए) में शामिल किया गया था। इसको अतिरिक्त, सेक्शन 19 के उप-ऐक्शन (2) कहता है बोर्ड यह निर्देशित करते हुए कि ऐसे आरोपों के प्रासंगिक रिकोर्ड को अपील की अवधि के गुजर जाने के बाद हटाया जाएगा या एक उचित अवधि के बाद जो मामले के लिहाज से कानून के अंतर्गत सुझाया गया है। के बाद हटा दिया जाएगा। एक आदेश पारित करेगा। मॉडल कानून 7 वर्ष तक रखे गए रिकार्ड या दस्तावेज जो किशोर से संबंध है का प्रावधान रखता है और उसके बाद बोर्ड के द्वारा उसे नष्ट कर दिया जाना है। इस प्रकार कानून यह स्पष्ट संदेश है की एक बच्चा अपने बीते हुए व्यवहार के कारण विपरीत रूप से प्रभावित नहीं होगा।
सेक्शन 19 के विधान में शामिल होने के बावजूद कानून के साथ विरोध में आए किशोरों को मुख्यधारा समाज में पुन: जुड़ने में कठिनाई प्राप्त होती है। विद्यालय, किशोर जो कानून के साथ विरोध में है उनको विद्यालय से निकाल दिए जाते रहने के तौर पर जाने जाते रहे हैं। यह मानते हुए कि ऐसे किशोरों का अन्य बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा। उनके लिए रोजगार के अवसर कम होते रहते हैं क्योंकि उनका कलंक नौकरी जगत में भी उनका पीछा करता रहता है। और इस तरह वे एक अनुचित तनख्वाह वाले असंगठित सेक्टर में रोजी-रोटी कमाने के लिए बाध्य कर के जाते है। इस तरह पीड़ित करने को कम करने के लिए किशोर कानून मीडिया रिपोर्टों को प्रतिबंधित कर किशोर की निजता के अधिकार की रक्षा करता है। अधिनियम की किसी भी सुनवाई में शामिल कानून के साथ विरोध में किशोर या देख रेख की जरूरत वाले बच्चे के नाम के प्रकाशक पर प्रतिबंध, इत्यादि.
(1) किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका समाचार पृष्ठ या दृश्य माध्यम में कानून के साथ विरोध में किशोर या देख रेख की जरूरत वाले बच्चे से जुड़ी जाँच-पड़ताल जो इस अधिनियम के तहत चल्र रहा है में उनका नाम, पता या विद्यालय या कोई भी खास सामग्री जो किशोर या बच्चे को पहचान के लिए तैयार किए गए है प्रकाशित नहीं होंगे और न ही ऐसे किसी किशोर या बच्चे की तस्वीर ही प्रकाशित किए जा सकेंगे;
(2) कोई भी व्यक्ति जो उप सेक्शन (1) के इन प्रावधानों का विरोध करता है, वह दंड का भागी होगा जो पच्चीस हजार रूपए तक का हो सकता है। ऐसे प्रावधान बी.सी.ए. 1945 और 1986 अधिनियम में भी शामिल किए गए थे। लेकिन 2006 संशोधन में जुर्माना 1,000/- रू. से 25,000/- रू. तक बह गया और इस संशोधन ने बच्चे जो देखरेख व सुरक्षा के जरूरत मंद है, को भी अपने भीतर समाहित कर लिया बीजिंग नियमों में भी एक समान प्रावधान मीडिया पर रोक लगाने के लिए शामिल किए गए।
8.1 किशोर को निजता के अधिकार का उसके नाजायज प्रचार या स्तरी करण की प्रक्रिया के द्वारा पहुँचनेवाले नुकसान से बचने के लिए हरेक स्तर पर सम्मान किया जाना चाहिए।
8.2 सिद्धांत में, कोई भी ऐसी सूचना जो किशोर अपराधी की पहचान को समाने लाता हो, प्रकाशित नहीं होगा।
इसके अतिरिक्त किशोर अपराधियों के रिकोर्ड को सख्ती से गोपनीय तीसरी पार्टियों के लिए बंद रखा जायेगा और उसका उपयोग बाद के मामलों में उसे शामिल करते हुए वयस्क सुनवाई में नहीं किया जाएगा। इन प्रावधानों को कलंक से बचाने के लिए डाला गया और एक किशोर अपराधी को अपनी उम्र के दुसरे बच्चों के लिए हासिल अवसरों का लाभ उठाने के लिए सशक्त बनाने के लिए शामिल किया गया है। न ही, फैसले में अपरिपक्वता के कारण किया गया गैर कानूनी कार्य, उसके विरोध में लिया जाना चाहिए।
फिर भी बार-बार समाचार पत्रों में किशोर अपराधी और वह अपराध जिसके लिए वह अभियुक्त है कि विस्तारपूर्वक वर्णन व तस्वीरों प्रमुखता से छपती हैं।
किशोर व उसकी समर्थन प्रणाली, यदि कोई होती है, किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लंबित मामले से ज्यादा गंभीरता से जुड़ा होता है उर वह गलत कर रही मीडिया के विरूद्ध कोई करवाई नहीं करता। इसलिए मीडिया इस स्थिति का दुरूपयोग किशोर के नुकसान हो जाने की हद तय करता रहता है। मीडिया की बददिमागी रिपोर्टिंग को रोकने के लिए, किशोर न्याय बोर्ड व उच्च न्यायालय को किशोर न्याय अधिनियम 2000 के सेक्शन 21 (2) के तहत सुओ – मोटो करवाई करनी चाहिए नियम 2002 कहता है बोर्ड को किसी भी मीडिया के खिलाफ जो कानून के साथ विरोध में आए बच्चे से जुड़ी किसी भी सामग्री को प्रकाशित करता है। जो बच्चे की पहचान का कारण बन सकता है, करवाई करना होगा। इसके अतिरिक्त वे जो बाल अधिकार के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं उन्हें इन प्रकाशनों को न्याय प्रणाली के समक्ष लाना चाहिए, मीडिया के साथ संवाद भी करना चाहिए और उन्हें कानून और उनकी रिपोर्टिंग का एक बाल जीवन पर क्या असर पड़ सकता है, से भी अवगत कराना चाहिए।
सेक्शन 21, रिपोर्टरों और पत्रकारों को बाल देखरेख संस्थानों में चल रही परिस्थिति बच्चों के प्रति सरकार की उदसीनता, जेलों में किशोरों की गैर कानूनी कैद, किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लंबित पड़े मामलों के प्रति पाठकों का ध्यानाकर्षण करने के लिए उन्हें किसी भी तरह से नहीं बांधता है। बल्कि ऐसे रिपोर्टों और लेखों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि मीडिया कवरेज बच्चों के लिए स्थितियों को बेहतर बना सकती है। अच्छे तौर पर सक्रिय पत्रकारिता ने बच्चों को बदतर स्थितियों को बदलने में सकारात्मक भूमिका निभाई है। सभी शिला बरसे नामक एक पत्रकार ने 1980 और 1990 में जेलों में बच्चों की भर्ती, किशोर मामलों की लंबे तौर पर रुके रहने आदि को जनहित में प्रकाश में लेन हेतु सर्वोच्च न्यायालय और मुम्बई उच्च न्ययालय याचिका दायर की और वह पूरे देश में एक एकसमान किशोर न्याय प्रणाली को स्थापित करने का औजार भी थी।
इसका मतलब यह भी नहीं है कि मीडिया को किशोरों द्वारा किए गए अपराधों को ही प्रकाश में रखा जाता है। जिससे जनतायह विश्वास कर लेती है कि किशोरों द्वारा किए गए सारे अपराध हिंसक अपराध की सच्ची तस्वीर पेश करे। 2001 में 33,628 किशोर संज्ञान में लिए गए पूरे देश भर से 539 किशोर पर हत्या का अभियोग थे 36 हत्या के प्रयास थे जिनमें हत्या नहीं हुई, 506 पर बलात्कार के आरोप थे। बहुसंख्या को चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था।
स्रोत: चाइल्ड लाइन इंडिया, फाउन्डेशन
अंतिम बार संशोधित : 1/31/2023
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