किशोर न्याय अधिनियम का क्रियान्वयन
किशोर न्याय अधिनियम का क्रियान्वयन के सूचक
- राज्य के नियमों का सूचनाकरण
- राज्य के सभी जिलों में बाल कल्याण समितियों व किशोर न्याय बोर्ड का गठन नियुक्ति और प्रभावी कार्यशीलता
- हर जिले में एक बालगृह व एक सुधारगृह का गठन किया जाना
- बालगृह और निरीक्षण गृह को अलग-अलग करना
- प्रत्येक बालगृह और सुधारगृह में एक स्वागत विभाग का गठन किया जाना
- हर जिले या जिलों के समूह में एक विशेषगृह का गठन किया जाना ।
- राज्य सलाहकार बोर्ड और जिला सलाहकार बोर्ड की नियुक्ति
- निरीक्षण समितियों को नियुक्ति
- बालगृहों को सामाजिक जांच
- शरण गृहों और अल्पावधि शरण केन्द्रों की पहचान
- घरनुमा देखभाल प्रयोजन एवं परिवर्ति देखभाल से जुड़े कार्यक्रमों के लिए नियमों का निर्माण
- परवर्ती देखभाल संगठनों का गठन और पहचान
- सरकारी, गैर सरकारी संगठनों, कार्पोर्रेट और नागरिक समाजों के बीच प्रभावी जुड़ावों के लिए व्यवस्थाओं और का निर्माण
- विशेष किशोर पुलिस विभागों का गठन
- सभी पुलिस थानों में एक पदासीन “बाल कल्याण अधिकारी” की नियुक्ति
- बच्चों/किशोरों के कल्याण एवं पुनर्वास के लिए “कोष” का निर्माण ।
किशोर न्याय तंत्र के अधिकारियों की प्रशिक्षण उपकरण
बाल कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड के सदस्यों व अन्य किशोर न्याय कार्याधिकारियों क्र प्रसिक्षण के लिए बिंदु सुझाव के रूप में निम्नलिखित हैं
किशोर न्याय पर
भारत में बाल सुरक्षा एक दृष्टि
|
देखभाल एवं सुरक्षा के जरूरतमंद बच्चे: असुरक्षित समूह
|
दिशा/बाल सम्बन्धित नीतियों एवं कार्यक्रमों में परिवर्तन
|
बाल उत्पीड़न/यौन उत्पीड़न.अवैध बाल व्यापार
|
कल्याण, एक अधिकार आधारित नजरिये का विकास
|
बाल मजदूरी
|
संस्थागत व गैर संस्थागत नजरिये
|
सड़क और रहने वाले बच्चे
|
संस्थागत देखभाल-संस्थाओं के प्रकार एवं गैर सरकारी संस्थाएं
|
लापता/खोये प्राप्त बच्चे
|
|
विशेष रूप से असक्त-अपंग मानसिक, शारीरिक भावनात्मक रूप से
|
गैर संस्थागत सेवाएं
|
एच.आई.वी/एड्स से प्रभावित बच्चे
|
दत्तक ग्रहण
|
अनाथ, परित्यक्त व बेसहारा बच्चे
|
प्रायोजन
|
विवादों एवं आपदाओं से प्रभावित बच्चे
|
सामाजिक सेवाएं
|
“समस्या ग्रस्त” परिवारों के बच्चे
|
बच्चे एवं कानून
- संवैधानिक प्रावधान
- संयुक्त राष्ट्र अधिकार कन्वेंशन/बीजिग नियम
- बच्चों पर प्रभाव डालने वाले अन्य कानून
- किशोर न्याय अधिनियम 2000/2006
किशोर न्याय अधिनियम 2000/2006 : एक दृष्टि
- प्रमुख बिंदु पुराने एवं नए संशोधित नियमों की तुलना
- विभिन्न भाग
- किशोर न्याय बोर्ड बाल कल्याण समिति की भूमिका, उसके अधिकार व कार्य कदम प्रक्रियाएं
- किशोर न्याय अधिनियम 2006 को विस्तृत समक्षित
- किशोर न्याय अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए आवश्यक कागजात
राज्य सरकार की भूमिका
- सरकारी विभागों की वरीयता एवं ढांचा
- सम्बन्धित विभाग-कार्य एवं भूमिकाएं
सरकारी संस्थाओं में बच्चों के देखरेख से जुड़े विभिन्न कार्याधिकारियों की भूमिकाएं व जिम्मेदारियां
- सुपरीटेंडेंट
- गृह अभिभावक
- देखरेख करनेवाले
- सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं काउंसलर
पुलिस की भूमिका
- विभिन्न पुलिस विभाग इलाके ढांचे एवं कार्य
- विशेष किशोर पुलिस विभाग की भूमिका
- एफ.आय.आर. डायरी प्रति, एन.सी
गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका, गैर सरकारी संस्था, बाल कल्याण समिति, सरकार का साथ में काम करना।
- भागीदारी के विषय
- गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा दी जा सकने वाली सेवाओं/सहायताओं के प्रकार
- विभिन्न कार्यक्रमों और सहभागिताओं (QICAC, चाईल्डलाईन की जानकारी CCVO, FACSE, CACL, NACSET) की जानकारी
बाल कल्याण समिति-भूमिका निर्वाहन
- एक केस जिसमें प्रत्यावर्तन-शामिल होकर संपूर्ण भूमिका निर्वाहन
- विभिन्न केसों की चर्चा, मूल्यांकन करना
विधियाँ/सहभागितापूर्ण तरीका
- केस अध्ययन भूमिका करने का उपयोग
- फिल्में एवं विभिन्न माध्यम
- जानकारी बाँटना समझन या मुद्राओं का विकास काउंसलिंग का हुनर अनुभव
- शब्दों की सूचि सही शब्दों का भण्डार
बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए बाल अधिकार कन्वेंशन के सम्बन्धित अनुच्छेद
जनजातीय बच्चे
|
ग्रामीण बच्चे
|
सड़क के बच्चे
|
परिवार
|
लड़कियाँ
|
बाल मजदूर
|
ड्रग उत्पीड़न
|
पर्यावरण
|
बाल उत्पीड़न
|
शिक्षा
|
स्वास्थ्य
|
शहरी बच्चे
|
बच्चों के सम्बन्ध में लिए जाने वाले फैसलों के वक्त याद रखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण पहलू
- बच्चों से सम्बन्धित सभी कार्यों को निर्देशित करने वाला सिद्धांत है “बच्चे का परमहित”
- बच्चों से सम्बन्धित सभी फैसलों और पुनर्वास कार्यक्रमों में अधिकारोन्मुखी समझ होनी चाहिए।
- बच्चे के भागीदारी के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए और उसके जीवन को प्रभावित करनेवाले सभी मामलों में लिए जाने वाले फैसलों को लेते हुए उनका विचार करना जाना चाहिए।
- बच्चे परिवार और एक समृद्ध करनेवाले माहौल में पल बढ़ सके यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास किये जाने चाहिए।
- परिवारों के बिखरावों और बाल दरिद्रता को रोकना और इसके लिए मुसीबत करना पहली प्राथमिकता और हस्तक्षेप का प्रकार होना चाहिए।
- अगर बच्चे का अपना परिवार उसकी देखभाल नहीं कर सकता है तो फिर अन्य परिवार और समुदाय आधारित विकल्पों पर सोचना चाहिए।
- लंबे समय तक संस्थागत देखभाल (जैसे 18 वर्ष आयु तक संस्था में रहना को) पुनर्वास के सबसे अंतिम विकल्प के रूप में माना जाना चाहिए।
- देखभाल और सुरक्षा के जरूरतमंद बच्चों और कानून का उल्लंघन करनेवाले किशोरों से जुड़े मसलों को उठाते समय हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पूरी कार्यवाही एक संवेदनशील और बच्चों में एक “बाल केन्द्रित” समझ के साथ सुलभ वातावरण में होनी चाहिए।
स्त्रोत: चाईल्डलाईन इंडिया फाउंडेशन
अंतिम बार संशोधित : 8/13/2019
0 रेटिंग्स और 0 कमैंट्स
रोल ओवर स्टार्स, इसके बाद रेट को क्लिक करें।
© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.