अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चा माना जाता है। इस परिभाषा को दुनिया भर में मंजूरी मिल चुकी है। यह परिभाषा संयूक्त राष्ट्र बाल अधिकार कनवेंशन में पायी जाती है। यह कनवेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय कानून है जिसे पर ज्यादातर देश अपनी रजामंदी दे चुके हैं।
भारत में 18 साल से कम उम्र के व्यक्तियों को एक अलग कानूनी इकाई के रूप में देखा जाता है। यही वजह है कि हम 18 साल की उम्र से पहले न तो वोट डाल सकते हैं और न ही कोई कानूनी अनुबंध कर सकते हैं। बाल विवाह रोकथाम कानून, 2006 के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी गैरकानूनी बताई गई है। ऐसे कानूनों में भी यूएनसीआरसी की परिभाषा का समावेश किया जाना चाहिए। 1992 में यूएनसीआरसी का अनुसमर्थन करने के बाद भारत सरकार ने अपने बाल न्याय कानूनों में बदलाव किया है ताकि 18 साल से कम उम्र के ऐसे हर बच्चे को सरकार की तरफ से देखभाल और सुरक्षा प्रदान की जा सके जिसे इस तरह की मदद की जरूरत है।
इसका मतलब यह है कि हमें अपनी ग्राम पंचायत के 18 साल से कम उम्र के सभी सदस्यों के साथ बच्चों सा वर्ताव करना चाहिए। वे सभी हमारी – आपकी मदद और देख – रेख के हकदार हैं।
मुख्य बातें
18 साल से कम उम्र के सभी बच्चों को हमारे देश के कानूनों और हमारी सरकार द्वारा स्वीकृत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में दी गई सुविधाएँ और अधिकार मिलने चाहिए।
भारतीय संविधान सभी बच्चों को कुछ खास अधिकार प्रदान करता है। ये अधिकार खासतौर से उनको ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं। इन अधिकारों में निम्नलिखित शामिल हैं
इनके अलावा बच्चों को वे सारे अधिकार भी मिलते हैं जो भारत का नागरिक होने के नाते किसी भी बालिग़ औरत – मर्द को दिए गए हैं
यह कानून 18 साल की उम्र तक के लड़के और लड़कियों, दोनों पर बराबर लागू होता है। अगर 18 साल से कम उम्र में ही किसी की शादी हो चुकी और उसके बच्चे भी हैं, तो भी इस कानून के तहत उसे बच्चा ही माना जाएगा।
संविधान के अलावा भी कई ऐसे कानून हैं जो खासतौर से बच्चों को ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं। पंचायत का जिम्मेदार सदस्य होने के नाते यह जरूरी है कि आपको इन कानूनों और उनकी अहमियत का पता हो। इनके बारे में इस पुस्तिका के अलग – अलग हिस्सों में चर्चा की गई है। साथ ही ये भी बताया गया है कि कौन किस तरह के मुद्दों के बारे में है।
बच्चों के बारे में बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में संयूक्त राष्ट्र बाल अधिकार कनवेंशन सबसे महत्वपूर्ण कानून के साथ – साथ यह कानून भी बच्चों के अधिकारों के तय करता है।
संयूक्त राष्ट्र बाल अधिकार कनवेंशन (सीआरसी) क्या है?
जो अधिकार हर उम्र, हर किस्म, हर नस्ल के लोगों को मिलते हैं उन्हें मानवाधिकार कहा जाता है। बच्चों को भी ये अधिकार मिलते हैं। लेकिन बच्चों को कुछ खास तरह के अधिकार भी दिए गए हैं। ये अधिकार उन्हें इसलिए मिले हैं क्योंकि बच्चों को हमेशा ज्यादा हिफाजत और देख रेख की जरूरत होती है। इन अधिकारों को बाल अधिकार या बच्चों के अधिकार कहा जाता है। इन्हें संयूक्त राष्ट्र बाल अधिकार कनवेंशन (सीआरसी) में लिखा गया है।
नोट: जैसे- जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है वे नई काबीलियत और परिपक्वता हासिल करते जाते हैं। 15-16 साल तक आते – आते वे काफी परिपक्व दिखने लगते हैं। लेकिन इसका मलतब ये नहीं है कि ऐसे बच्चों की हिफाजत की जरूरत नहीं रहती। हमारे देश में तो 18 साल से कम उम्र में ही न जाने कितने बच्चों के शादी – ब्याह हो जाते हैं या उन्हें नौकरी पर लगा दिया जाता है। अगर समुदाय ये मानता है कि ऐसे बच्चों को हिफाजत की जरूरत नहीं है तो यह गलत है। उन्हें भी उतनी ही सुरक्षा, अवसर और मदद मिलनी चाहिए जितनी और बच्चों को मिलती है ताकि बालिग़ जिन्दगी की ओर वे भी आत्मविश्वास के साथ और सही ढंग से बढ़ सकें।
ये सभी अधिकार एक दुसरे पर आश्रित हैं। उन्हें एक दुसरे से अलग नहीं किया जा सकता। इन अधिकारों को दो हिस्सों में बांट कर देखा जाता है
सुरक्षा संबंधी ज्यादातर अधिकार फौरी अधिकारों की श्रेणी में आते हैं। इन अधिकारों पर फ़ौरन ध्यान दिया जाना चाहिए और फौरन कार्रवाई की जानी चाहिए।
उन्हें सीआरसी की धारा 4 में मान्यता दी गई है। इस धारा में कहा गया है कि आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के सिलसिले में सरकारों को अपने संसाधनों और जरूरत के हिसाब से तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के समझ को ध्यान में रखते हुए ऐसे सभी आवश्यक उपाय करने होंगे।
पंच होने के नाते इस बात का ख्याल रख सकते हैं कि आपके चुनाव क्षेत्र के सभी बच्चे सभी तरह के
सुरक्षा के जरूरत सभी बच्चों को होती है। फिर भी, अपनी सामाजिक, आर्थिक या भौगोलिक स्थिति के कारण कुछ बच्चों की हालत औरों से ज्यादा नाजुक होती है। लिहाजा, इस प्रकार के बच्चों पर हमें खासतौर से ध्यान देना चाहिए –
जी हाँ, हम अपने बच्चों को प्यार करते हैं लेकिन इसमें कुछ खामियां भी हैं। दुनिया भर में सबसे ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं। यौन शोषण के शिकार बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा भारत में हैं। 0-6 साल तक उम्र के बच्चों में लड़का – लड़की अनुपात सबसे ख़राब हमारे देश में है। इसे पता चलता है कि लड़कियों की जिन्दगी अकसर दांव पर लगी रहती है। काई बार तो लड़की होने के कारण नवजात शिशु को ही गोद देने के नाम पर बेच दिया जाता है या मार डाला जाता है।
बच्चों के साथ होने वाले जिन अपराधों को पुलिस के पास दर्ज कराया जाता है उन्हें देखने पर रोंगटे खड़े होते हैं। इन रिकार्डों के हिसाब से 2005 और 2006 के बीच बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में 26.7 प्रतिशत का इजाफा हो चुका था और ऐसे मामलों की तो कोई गिनती ही नहीं है जिनको कभी कहीं दर्ज नहीं किया जाता।
बच्चे अपने घरों में जिस हद तक दुराचार झेलते हैं उससे यह मान्यता साबित हो जाती है। बच्चों को उनके माँ – बाप की निजी संपत्ति माना जाता है जिनका वे किसी भी तरह उपयोग (या दुरूपयोग) कर सकते हैं।
हर दूसरे दिन यह खबर आ जाती है कि फलां बाप ने पैसे के लिए अपनी बेटी को अपने दोस्तों या अजनबियों को बेच दी। यौन शोषण से संबंधित अध्ययनों को देखने पर पता चलता है कि बच्चों के साथ सबसे ज्यादा दुराचार या जोर – जबर्दस्ती परिवार के भीतर ही होती है। और तो और, पिता के हाथों बेटियाँ के बलात्कार के भी न जाने कितने मामले आ चुके है। पैदा होते ही लड़कियों को मार देना, या पैदा न होने देना, अंधविश्वास के कारण बच्चों की बलि चढ़ाना, जोगिनी या देवदासी जैसे रीति- रिवाजों और परंपराओं के नाम पर लड़कियों को देवताओं को अर्पित कर देना – ये सारी प्रथाएँ घर में होने वाली हिंसा के ही कुछ रूप हैं। कम उम्र में ही बच्चों को ब्याह देना उनके प्रति प्रेम की निशानी हो ही नहीं सकती। यह तो अपने बच्चे के पालन – पोषण और देखभाल की जिम्मेदारी किसी और के सिर मढ़ देने का बहाना है भले ही इससे बच्चे की सेहत और दिमाग पर जो असर पड़े। इन दर्दनाक स्थितियों के अलावा छोटे पैमाने पर भी बच्चे तरह तरह से हिंसा के शिकार बनते हैं। क्या इस बात को झुठलाया जा सकता है कि लगभग हर घर में बच्चों के साथ मारपीट एक सामान्य बात बनी हुई है।
ध्यान रखे कि कम उम्र लड़के भी शारीरिक एवं मानसिक शोषण के उतने ही खतरे में रहते हैं जितने खतरे में लड़कियाँ रहती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं की समाज में अपनी कमजोर हैसियत के कारण लड़कियों की स्थिति ज्यादा नाजुक होती है लेकिन लड़कों को भी सुरक्षा जरूर मिलनी चाहिए। स्कूल और घर पर लड़कों को पीटा जाता है, बहुत सारे लड़कों को मजदूरी के लिए भेजा और यहाँ तक कि बेच दिया जाता है। बहुत सारे लड़के यौन शोषण का शिकार बनते है।
सब यही मानते है कि ऐसी बातें हमारे यहाँ नहीं होती और नहीं होती होंगी। हमारे घर, हमारे गाँव या हमारे समुदाय में ऐसा नहीं होता। ये बातें हमारे बच्चों पर नहीं, औरों के बच्चों पर असर डालती है। हकीकत यह है कि उत्पीड़न का शिकार बच्चा इनमें से कहीं भी हो सकता है और उसे हमेशा मदद और सहारे की जरूरत होती है। आइए उत्पीड़न के कुछ सामान्य स्वरूपों को देखें और समझे कि बच्चों की सुरक्षा के लिए पंचायत सदस्य के रूप में आप क्या कर सकते हैं।
बच्चों के लिए एक सुरक्षात्मक वातावरण की रचना या सुदृढ़ीकरण के आठ मुख्य तत्व ये हैं :
नोट-
बच्चों के लिए एक सुरक्षात्मक वातावरण की रचना करने के लिए कई स्तर पर प्रयास करना पड़ता है। इसके लिए एक साझा विश्लेषण पर आधारित संवाद, साझेदारी और समन्वय के जरूरत होती हैं इस तरह के वातावरण के बहुत सारे तत्व बुनियादी सुविधाओं में सुधार, नतीजों की निगरानी और ब्यक्तियों के अपने विकास का वाहक मानने जैसी पद्धितियों और परंपरागत विकास गतिविधियों से मिलते - जुलते हैं।
स्रोत : चाइल्डलाइनअंतिम बार संशोधित : 2/13/2023
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