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बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005

भूमिका

बालक अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग और राज्य आयोगों और बालकों के विरुद्ध अपराधों या बालक अधिकारों के अतिक्रमण के त्वरित विचारण के लिए बालक न्यायालयों के गठन तथा उससे संबंधित और उसके आनुषगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम है I भारत ने 1990 में हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा के शिखर सम्मेलन में भाग लिया था, जिसने बालकों के जीवित रहने, सरंक्षण और विकास के संबंध में एक घोषणा को अंगीकार किया, और, भारत ने 11 दिसम्बर, 1992 को हुए बालक अधिकार संबंधी अभिसमय (बा.अ.अ.) को भी स्वीकार कर लिया है; और बालक अधिकार संबंधी अभिसमय एक अन्तरराष्ट्रीय संधि है जो हस्ताक्षरकर्ता राज्यों के लिए यह अनिवार्य बनाती है कि वे अभिसमय में प्रगणित बालकों के अधिकारों की संरक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करें और बालकों के अधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने बालकों के लिए हाल ही में जो एक नई पहल आरंभ की है वह यह है कि उसने राष्ट्रीय बालक चार्टर, 2003 को अंगीकार किया है; और मई, 2002 में हुए बालकों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष सत्र में ‘बालकों के लिए उपयुक्त विश्व” नामक निष्कर्ष दस्तावेज को अंगीकृत किया गया था, जिसमें वर्तमान दशक के लिए सदस्य देशों द्वारा अपनाए जाने वाले लक्ष्य, उद्देश्य, युक्तियां और क्रियाकलाप अंतर्विष्ट हैं; और यह समीचीन है कि इस संबंध में सरकार द्वारा अंगीकृत नीतियों, बालक अधिकार संबंधी अभिसमय में विहित मानकों और अन्य सभी सुसंगत अन्तरराष्ट्रीय लिखतों को कार्यान्वित करने के लिए बालकों से संबंधित विधि अधिनियमित की जाए; भारत गणराज्य के छप्पनवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो I

अध्याय 1 - संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ

(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 है

(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर, संपूर्ण भारत पर है।

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।

परिभाषाएं

इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) ‘अध्यक्ष’ से, यथास्थिति, आयोग या राज्य आयोग का अध्यक्ष अभिप्रेत है

(ख) ‘बालक अधिकारों’ के अन्तर्गत 20 नवम्बर, 1989 को बालक अधिकार संबंधी संयुक्त राष्ट्र अभिसमय में अंगीकृत और 11 दिसम्बर, 1992 को भारत सरकार द्वारा अनुसमर्थित बालकों के अधिकार भी हैं;

(ग) ‘आयोग’ से धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग अभिप्रेत है;

(घ) ‘सदस्य’ से, यथास्थिति, आयोग या राज्य आयोग का सदस्य अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत अध्यक्ष भी है;

(ड) ‘अधिसूचना" से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;

(च) ‘विहित’ से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;

(छ) ‘राज्य आयोग’ से धारा 17 के अधीन गठित राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग अभिप्रेत है।

अध्याय 2 - राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग

  • राष्ट्रीय बालक अधिकार सरंक्षण आयोग का गठन

(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के अधीन एक निकाय का, जो राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग के नाम से ज्ञात होगा, उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने और उसे सौंपे गए कृत्यों का पालन करने के लिए, गठन करेगी।

(2) आयोग निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात् -

(क) एक अध्यक्ष, जो विख्यात व्यक्ति हो और जिसने बालकों के कल्याण के संवर्धन के लिए उत्कृष्ट कार्य किया हो ; और

(ख) केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने वाले छह सदस्य, जिनमें से कम से कम दो स्त्रियां होंगी और प्रत्येक निम्नलिखित क्षेत्रों में श्रेष्ठता, योग्यता, सत्यनिष्ठा, प्रतिष्ठा और अनुभव रखने वाला व्यक्ति होगा,—

(i) शिक्षा ;

(ii) बाल स्वास्थ्य, देख-रेख, कल्याण या बाल विकास ;

(iii) किशोर न्याय या उपेक्षित या तिरस्कृत बालकों या नि;शक्त बालकों की देखरेख

(iv) बालक श्रम या बालकों के कष्टों का आहरण

(v) बालक मनोविज्ञान या समाजशास्त्र ; और

(vi) बालकों से संबंधित विधियां।

  • आयोग का कार्यालय दिल्ली में होगा।
  • अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति

केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा, अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को नियुक्त करेगी, परन्तु अध्यक्ष की नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा (महिला और बाल विकास मंत्रालय या विभाग के प्रभारी मंत्री) की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यों वाली चयन समिति की सफारिश पर की जाएगी।

  • अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि और सेवा की शर्तें

(1) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य उस रूप में उस तारीख से, जिसको वे अपना पदभार ग्रहण करते हैं, तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे ;

परन्तु कोई भी अध्यक्ष या सदस्य दो पदावधियों से अधिक के लिए पद धारण नहीं करेगा; परन्तु यह और कि कोई अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य

(क) अध्यक्ष की दशा में, पैंसठ वर्ष की आयु ; और

(ख) सदस्य की दशा में, साठ वर्ष की आयु, प्राप्त होने के पश्चात् उस हैसियत में अपना पद धारण नहीं करेगा।

(2) अध्यक्ष या सदस्य, केन्द्रीय सरकार को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा किसी भी समय अपना पद त्याग सकेगा।

  • अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन और भत्ते

अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं ; परन्तु, यथास्थिति, अध्यक्ष या किसी सदस्य के न तो वेतन और भक्तों में तथा न उसकी सेवा के अन्य निबंधनों और शतों में, उसकी नियुक्ति के पश्चात्, उसमें अलाभकारी परिवर्तन किए नहीं जाएंगे।

  • पद से हटाया जाना

(1) उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अध्यक्ष को उसके पद से साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर केन्द्रीय सरकार के आदेश द्वारा हटाया जा सकेगा।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को पद से हटा सकेगी यदि, यथास्थिति, अध्यक्ष या ऐसा अन्य सदस्य

(क) दिवालिया न्यायनिर्णीत किया जाता है; या

(ख) अपनी पदावधि के दौरान अपने पद के कर्तव्यों के बाहर किसी सवेतन नियोजन में लगता है; या

(ग) कार्य करने से इंकार करता है या कार्य करने में असमर्थ हो जाता है ; या (घ) विकृतचित्त का है और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया है; या

(ड) अपने पद का ऐसा दुरुपयोग करता है जिससे उसका पद पर बने रहना लोकहित के लिए हानिकारक हो जाता है; या

(च) किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है और कारावास से दंडादिष्ट किया जाता है, जिसमें केंद्रीय सरकार की राय में, नैतिक अधमता अन्तर्वलित है; या

(छ) आयोग से अनुपस्थित रहने की अनुमति लिए बिना उसकी तीन क्रमवर्ती बैठकों में अनुपस्थित रहता है।

(3) इस धारा के अधीन किसी व्यक्ति को तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति को उस मामले में सुनवाई का अवसर न दे दिया गया हो।

  • अध्यक्ष या सदस्य द्वारा पद रिक्त किया जाना

(1) यदि, यथास्थिति, अध्यक्ष या कोई सदस्य,

(क) धारा 7 में वर्णित निरर्हताओं में से किसी के अधीन हो जाता है; या

(ख) धारा 5 की उपधारा (2) के अधीन अपना त्यागपत्र निविदत्त कर देता है, तो उस पर उसका पद रिक्त हो जाएगा।

(2) यदि अध्यक्ष या सदस्य के पद में, उसकी मृत्यु, त्यागपत्र या अन्यथा कारण से आकस्मिक रिक्ति हो जाती है तो ऐसी रिक्ति को धारा 4 के उपबंधों के अनुसार नब्बे दिन के भीतर नई नियुक्ति करके भरा जाएगा और इस प्रकार नियुक्त व्यक्ति वह पद उस पदावधि की उस शेष अवधि के लिए धारण करेगा जिसके लिए, यथास्थिति, वह अध्यक्ष या सदस्य, जिसके स्थान पर वह इस प्रकार नियुक्त किया जाता है, उस पद को धारण करता है।

  • रिक्तियों, आदि से आयोग की कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होना

आयोग का कोई कार्य या कार्यवाही, केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगी कि

(क) आयोग में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है; या

(ख) किसी व्यक्ति की अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नियुक्ति में कोई त्रुटि है; या

(ग) आयोग की प्रक्रिया में कोई ऐसी अनियमितता है, जो मामले के गुणागुण पर प्रभाव नहीं डालती है।

  • कारबार के संव्यवहार के लिए प्रक्रिया

(1) आयोग अपने कार्यालय में, ऐसे समय पर जो अध्यक्ष ठीक समझे, नियमित रूप से अधिवेशन करेगा किन्तु अंतिम और अगले अधिवेशन के बीच तीन मास का अंतर नहीं होगा।

(2) अधिवेशन में सभी विनिश्चय बहुमत द्वारा लिए जाएंगे ।

परंतु बराबर मतों की दशा में, अध्यक्ष, या उसकी अनुपस्थिति में पीठासीन व्यक्ति का द्वितीय या निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा ।

(3) यदि अध्यक्ष किसी कारण से आयोग के अधिवेशन में उपस्थित रहने में असमर्थ है तो उस अधिवेशन में उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से चुना गया कोई सदस्य पीठासीन होगा।

(4) आयोग किसी अधिवेशन में अपने कारबार के संव्यवहार के लिए प्रक्रिया के, ऐसे अधिवेशन में गणपूर्ति सहित, ऐसे नियमों का पालन करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं।

(5) आयोग के सभी आदेश और विनिश्चय सदस्य-सचिव द्वारा या इस निमित्त सदस्य-सचिव द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत आयोग के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किए जाएंगे।

  • आयोग के सदस्य-सचिव, अधिकारी और अन्य कर्मचारी

(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, भारत सरकार के संयुक्त सचिव या अतिरिक्त सचिव की पंक्ति से नीचे के अधिकारी को आयोग के सदस्य-सचिव के रूप में नियुक्त नहीं करेगी और आयोग को ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी जो उसके कृत्यों के दक्षतापूर्ण पालन के लिए आवश्यक हों।

(2) सदस्य-सचिव, आयोग के क्रियाकलापों के उचित प्रशासन और उसके दिन-प्रतिदिन के प्रबंध के लिए उत्तरदायी होगा तथा वह ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग तथा ऐसे अन्य कर्तव्यों का निर्वहन करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं।

(3) आयोग के प्रयोजन के लिए नियुक्त सदस्य-सचिव, अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएं।

  • वेतन और भक्तों का अनुदानों में से संदाय किया जाना

अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भक्तों का तथा प्रशासनिक व्ययों का, जिनके अन्तर्गत धारा 11 में निर्दिष्ट सदस्य-सचिव, अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, धारा 27 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदाय किया जाएगा।

अध्याय 3 आयोग के कृत्य और शक्तियां

  • आयोग के कृत्य

(1) आयोग, निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का निर्वहन करेगा,

(क) बालक अधिकारों के संरक्षण के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंधित रक्षोपायों की परीक्षा और पुनर्विलोकन करना तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना ;

(ख) केन्द्रीय सरकार को वार्षिक रूप से और ऐसे अन्य अंतरालों पर, जिन्हें आयोग उचित समझे, उन रक्षोपायों के कार्यकरण पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना ;

(ग) बालक अधिकारों के अतिक्रमण की जांच करना और ऐसे मामलों में कार्यवाहियां आरंभ करने की सिफारिश करना ;

(घ) उन सभी पहलुओं की परीक्षा करना जो आतंकवाद, सांप्रदायिक हिंसा, दंगे, प्राकृतिक आपदा, घरेलू हिंसा, एचआईवी/एड्स, अवैध व्यापार, दुव्यवहार, उत्पीड़न और शोषण, अश्लील साहित्य और वेश्यावृत्ति से प्रभावित बालक अधिकारों के उपयोग को रोकते हैं और समुचित उपचारी उपायों की सिफारिश करना ;

(ड) उन बालकों से, जिन्हें विशेष देख-रेख और संरक्षण की आवश्कता है, जिनके अंतर्गत कष्टों से पीड़ित बालक, तिरस्कृत और असुविधाग्रस्त बालक, विधि का उल्लंघन करने वाले बालक, किशोर, कुटुम्ब रहित बालक और कैदियों के बालक भी हैं, संबंधित मामलों की जांच पड़ताल करना और उपयुक्त उपचारी उपायों की सिफारिश करना ;

(च) बालक अधिकारों से संबंधित संधियों और अन्य अन्तरराष्ट्रीय लिखतों का अध्ययन करना और विद्यमान नीतियों, कार्यक्रमों और अन्य क्रियाकलापों का कालिक पुनर्विलोकन करना तथा बालकों के सर्वोत्तम हित में उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सिफारिशें करना ;

(छ) बालक अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसे अग्रसर करना ;

(ज) समाज के विभिन्न वर्गों के बीच बालक अधिकार संबंधी जानकारी का प्रसार करना और प्रकाशनों, मीडिया, विचार गोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षोपायों के प्रति जागरुकता का संवर्धन करना ;

(झ) केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी किशोर अभिरक्षागृह या किसी अन्य निवास स्थान या बालकों के लिए बनाई गई संस्था, जिसके अंतर्गत किसी सामाजिक संगठन द्वारा चलाए जाने वाली संस्था भी है, का निरीक्षण करना या करवाना ; जहां बालकों को उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनों के लिए निरुद्ध किया जाता है या रखा जाता है, निरीक्षण करना या करवाना और किसी उपचारी कार्रवाई के लिए, यदि आवश्यक हो, संबंधित प्राधिकारियों से बातचीत करना ;

(ज) निम्नलिखित से संबंधित मामलों के परिवादों की जांच करना और इन मामलों पर स्वप्रेरणा से विचार करना

(i) बालक अधिकारों से वंचन और उनका अतिक्रमण ;

(ii) बालकों के संरक्षण और विकास के लिए उपबंध करने वाली विधियों का अक्रियान्वयन;

(iii) बालकों की कठिनाइयों को दूर करने और बालकों के कल्याण को सुनिश्चित करने तथा ऐसे बालकों को अनुतोष प्रदान करने के उद्देश्य के लिए नीतिगत विनिश्चयों, मार्गदर्शनों या अनुदेशों का अननुपालन ; या ऐसे विषयों से उद्भूत मुद्दों पर समुचित पदाधिकारियों के साथ बातचीत करना ; और

(ट) ऐसे अन्य कृत्य करना, जो बालकों के अधिकारों के संवर्धन और उपर्युक्त कृत्यों से आनुषंगिक किसी अन्य मामले के लिए आवश्यक समझे जाएं।

(2) आयोग ऐसे किसी मामले की जांच नहीं करेगा जो किसी राज्य आयोग या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन सम्यक् रूप से गठित किसी अन्य आयोग के समक्ष लंबित है।

  • जांच से संबंधित शक्तियां

(1) आयोग को धारा 13 की उपधारा (1) के खण्ड (ब) में निर्दिष्ट किसी विषय की जांच करते समय और विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के संबंध में वे सभी शक्तियां होंगी, जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय को होती हैं, अर्थात् :-

(क) किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना ;

(ख) किसी दस्तावेज का प्रकटीकरण और पेश किया जाना ;

(ग) शपथ पत्रों पर साक्ष्य लेना ;

(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की  अध्यपेक्षा करना ; और

(ड.) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना।

(2) आयोग को किसी मामले को ऐसे मजिस्ट्रेट को भेजने की शक्ति होगी जिसे उसका विचारण करने की अधिकारिता है और वह मजिस्ट्रेट जिसे कोई ऐसा मामला भेजा जाता है, अभियुक्त के विरुद्ध परिवाद सुनने के लिए इस प्रकार अग्रसर होगा मानो वह मामला दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 346 के अधीन उसको भेजा गया है।

  • जांच के पश्चात् कार्रवाई

आयोग, इस अधिनियम के अधीन की गई किसी जांच के पूरा होने पर, निम्नलिखित कार्रवाई कर सकेगा, अर्थात् ;—

(i) जहां जांच से बालक अधिकारों के किसी गंभीर प्रकृति के अतिक्रमण का या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के उपबंधों का उल्लंघन होना प्रकट होता है वहां, वह संबद्ध सरकार या प्राधिकारी को संबंधित व्यक्ति या व्यक्तियों के विरुद्ध अभियोजन के लिए कार्यवाहियां या ऐसी अन्य कार्रवाई जो आयोग ठीक समझे, आरंभ करने के लिए सिफारिश कर सकेगा ;

(ii) उच्चतम न्यायालय या संबंधित उच्च न्यायालय से ऐसे निदेशों, आदेशों या रिटों के लिए जो वह न्यायालय उचित समझे, अनुरोध कर सकेगा ;

(iii) पीड़ित व्यक्ति या उसके कुटुम्ब के सदस्यों को ऐसी तत्काल अंतरिम सहायता मंजूर करने की, जो आयोग उचित समझे, सम्बद्ध सरकार या प्राधिकारी की सिफारिश कर सकेगा।

  • आयोग की वार्षिक और विशेष रिपोर्ट

(1) आयोग, केन्द्रीय सरकार को और सम्बद्ध राज्य सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा और किसी भी समय ऐसे विषय पर जो उसकी राय में इतना अतिआवश्यक या महत्वपूर्ण है कि उसको वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने तक आस्थगित नहीं किया जाना चाहिए, विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकेगा।

(2) यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या संबद्ध राज्य सरकार आयोग की वार्षिक और विशेष रिपोर्टों को आयोग की सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई के ज्ञापन सहित और सिफारिशों की अस्वीकृति के कारणों सहित, यदि कोई हों, यथास्थिति, संसद् या राज्य विधान-मंडल के प्रत्येक सदन के समक्ष ऐसी रिपोर्टों की प्राप्ति की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर रखवाएगी।

(3) वार्षिक रिपोर्ट ऐसे प्ररूप और रीति में तैयार की जाएगी और उसमें ऐसे ब्यौरे अंतर्विष्ट होंगे जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किए जाएं।

अध्याय 4 राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग

  • राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग का गठन

(1) राज्य सरकार, इस अध्याय के अधीन एक निकाय का, राज्य आयोग को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने और उसे सौंपे गए कृत्यों का पालन करने के लिए जो (राज्य का नाम)बालक अधिकार संरक्षण आयोग के नाम से ज्ञात होगा, गठन कर सकेगी।

(2) राज्य आयोग निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात् -

(क) एक अध्यक्ष, जो विख्यात व्यक्ति हो और जिसने बालकों के कल्याण के संवर्धन के लिए उत्कृष्ट कार्य किया हो ; और

(ख) राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाने वाले छह सदस्य, जिनमें से कम से कम दो स्त्रियां होंगी और प्रत्येक निम्नलिखित क्षेत्रों में श्रेष्ठता, योग्यता, सत्यनिष्ठा, प्रतिष्ठा और अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से—

(i) शिक्षा ;

(ii) बाल स्वास्थ्य, देख-रेख, कल्याण या बाल विकास ;

(iii) किशोर न्याय या उपेक्षित या तिरस्कृत बालकों या नि;शक्त बालकों की देखरेख ;

(iv) बालक श्रम या बालकों के कष्टों का आहरण ;

(v) बालक मनोविज्ञान या समाजशास्त्र ; और

(vi) बालकों से संबंधित विधियां ।

(3) राज्य आयोग का मुख्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा,  विनिर्दिष्ट करे।

  • अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति-राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति करेगी ; परंतु अध्यक्ष को नियुक्ति, राज्य सरकार द्वारा बालकों से संबंधित विभाग के प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यों वाली समिति की सिफारिश पर की जाएगी।
  • अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि और सेवा की शतें

(1) अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य उस रूप में उस तारीख से, जिसको वे अपना पदभार ग्रहण करते हैं, तीन वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करेंगे ;परंतु कोई भी अध्यक्ष या सदस्य दो पदावधियों से अधिक के लिए पद धारण नहीं करेगा ;परंतु यह और कि कोई अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य

(क) अध्यक्ष की दशा में, पैंसठ वर्ष की आयु ; और

(ख) सदस्य के की दशा में, साठ वर्ष की आयु,

प्राप्त होने के पश्चात् उस हैसियत में अपना पद धारण नहीं करेगा।

(2) अध्यक्ष या कोई सदस्य राज्य सरकार को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा किसी भी समय अपना पद त्याग सकेगा।

  • अध्यक्ष और सदस्यों के वेतन और भत्ते-अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते वे होंगी जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं ;परंतु, यथास्थिति, अध्यक्ष या किसी सदस्य के न तो वेतन और भक्तों में तथा न उनकी सेवा के अन्य निबंधनों और शतों में, उसकी नियुक्ति के पश्चात्, उसके अलाभकारी परिवर्तन किया जाएगा।
  • राज्य आयोग के सचिव, अधिकारी और अन्य कर्मचारी

(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, राज्य सरकार के सचिव की पंक्ति से नीचे के अधिकारी को राज्य आयोग के सचिव के रूप में नियुक्त नहीं करेगी और राज्य आयोग को ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी जो उसके कृत्यों के दक्षतापपूर्ण पालन के लिए आवश्यक हों।

(2) सचिव, राज्य आयोग के क्रियाकलापों के उचित प्रशासन और उसके दिन-प्रतिदिन के प्रबंध के लिए उत्तरदायी होगा तथा वह ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो राज्य सरकार द्वारा विहित किए जाएं।

(3) राज्य आयोग के प्रयोजन के लिए नियुक्त सचिव, अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते, तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते वे होंगी जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाएं।

  • वेतन और भक्तों का अनुदानों में से संदाय किया जाना

अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भक्तों का तथा प्रशासनिक व्ययों का, जिनके अन्तर्गत धारा 21 में निर्दिष्ट सचिव, अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन भी हैं, धारा 28 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदाय किया जाएगा।

  • राज्य आयोग की वार्षिक और विशेष रिपोर्टे

1) राज्य आयोग, राज्य सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा और किसी भी समय ऐसे विषय पर, जो उसकी राय में इतना अति आवश्यक या महत्वपूर्ण है कि उसको वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने तक आस्थगित नहीं किया जाना चाहिए, विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकेगा।

(2) राज्य सरकार, उपधारा (1) में निर्दिष्ट सभी रिपोर्टों को राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रस्तावित कार्रवाई के स्पष्टीकारक ज्ञापन सहित और ऐसी सिफारिशों में से किसी की अस्वीकृति के कारणों सहित, यदि कोई हो, जहां राज्य विधान-मंडल दो सदनों से मिलकर बनता है वहां प्रत्येक सदन के समक्ष या जहां ऐसा विधान-मंडल एक सदन से मिलकर बनता है वहां उस सदन के समक्ष रखवाएगी।

(3) वार्षिक रिपोर्ट ऐसे प्ररूप और रीति में तैयार की जाएगी तथा उसमें ऐसे ब्यौरे अंतिर्विष्ट होंगे जो राज्य सरकार द्वारा विहित किए जाएं।

  • राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग से संबंधित कतिपय उपबंधों का राज्य आयोगों को लागू होना

धारा 7, धारा 8, धारा 9, धारा 10, धारा 13 की उपधारा (1) और धारा 14 तथा धारा 15 के उपबंध राज्य आयोग को निम्नलिखित उपांतरणों के अधीन रहते हुए लागू होंगे, और प्रभावी होंगे, अर्थात् –

(क) 'आयोग’ के प्रति-निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ‘राज्य आयोग’ के प्रति निर्देश हैं;

(ख) ‘केन्द्र सरकार’ के प्रति-निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ‘राज्य सरकार’ के प्रति निर्देश हैं; और

(ग) ‘सदस्य-सचिव" के प्रति-निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ‘सचिव" के प्रति निर्देश हैं।

अध्याय 5-बालक न्यायालय

  • बालक न्यायालय

राज्य सरकार, बालकों के विरुद्ध अपराधों या बालक अधिकारों के अतिक्रमण के अपराधों का त्वरित विचारण करने का उपबंध करने के प्रयोजन के लिए, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से, अधिसूचना द्वारा, उक्त अपराधों का विचारण करने के लिए राज्य में कम-से-कम एक न्यायालय को या प्रत्येक जिले में किसी सेशन न्यायालय को बालक न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगी; परंतु इस धारा की कोई बात तब लागू नहीं होगी, जब तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसे अपराधों के लिए

(क) कोई सेशन न्यायालय पहले से ही विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट है; या

(ख) कोई विशेष न्यायालय पहले से ही गठित है।

  • विशेष लोक अभियोजक

राज्य सरकार, प्रत्येक बालक न्यायालय के लिए, अधिसूचना द्वारा, एक लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता को, जिसने कम-से-कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय किया हो, उस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए, विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी।

अध्याय 6 - वित्त, लेखा और संपरीक्षा

  • केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान

(1) केन्द्रीय सरकार, संसद् द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किए गए सम्यक् विनियोग के पश्चात्, आयोग को अनुदानों के रूप में ऐसी धनराशियों का संदाय करेगी, जो केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाने के लिए, ठीक समझे।

(2) आयोग, इस अधिनियम के अधीन कृत्यों का पालन करने के लिए ऐसी धनराशियां खर्च कर सकेगा जो वह ठीक समझे और ऐसी राशियां उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदेय व्यय मानी जाएंगी।

  • राज्य सरकारों द्वारा अनुदान

(1) राज्य सरकार, विधान-मंडल द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किए गए सम्यक् विनियोग के पश्चात् राज्य आयोग को अनुदानों के रूप में ऐसी धनराशियों का संदाय करेगी जो राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाने के लिए ठीक समझे।

(2) राज्य आयोग, इस अधिनियम के अध्याय 3 के अधीन कृत्यों का पालन करने के लिए ऐसी धनराशियां खर्च कर सकेगा जो वह ठीक समझे और ऐसी राशियां उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदेय व्यय मानी जाएंगी।

  • आयोग के लेखा और संपरीक्षा

(1) आयोग उचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और लेखाओं का वार्षिक विवरण ऐसे प्ररूप में तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करके विहित करे।

(2) आयोग के लेखाओं की संपरीक्षा, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ऐसे अंतरालों पर की जाएगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं और ऐसी संपरीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय आयोग द्वारा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा।

(3) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और इस अधिनियम के अधीन आयोग के लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को उस संपरीक्षा के संबंध में वे ही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार प्राप्त होंगे जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को साधारणतया सरकारी लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में होते हैं और विशिष्टतया उसे बहियां, लेखे, संबंधित वाउचर तथा अन्य दस्तावेज और कागज-पत्र पेश किए जाने की मांग करने तथा आयोग के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।

(4) आयोग द्वारा केन्द्रीय सरकार को नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रमाणित, आयोग के लेखे, उन पर संपरीक्षा रिपोर्ट सहित, प्रति वर्ष भेजे जाएंगे और केन्द्रीय सरकार ऐसी संपरीक्षा रिपोर्ट को उसके प्राप्त होने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।

  • राज्य आयोग के लेखा और संपरीक्षा

(1) राज्य आयोग, उचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और लेखाओं का वार्षिक विवरण, ऐसे प्ररूप में तैयार करेगा जो राज्य सरकार भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करके विहित करे।

(2) राज्य आयोग के लेखाओं की संपरीक्षा, नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ऐसे अंतरालों पर की जाएगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएं और ऐसी संपरीक्षा के संबंध में उपगत कोई व्यय, राज्य आयोग द्वारा नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को संदेय होगा।

(3) नियंत्रक-महालेखापरीक्षक और इस अधिनियम के अधीन राज्य आयोग के लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति को उस संपरीक्षा के संबंध में वे ही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार प्राप्त होंगे जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को साधारणतया सरकारी लेखाओं की संपरीक्षा के संबंध में होते हैं और विशिष्टतया उसे बहियां, लेखे, संबंधित वाउचर तथा अन्य दस्तावेज और कागज-पत्र पेश किए जाने की मांग करने तथा राज्य आयोग के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।

(4) राज्य आयोग द्वारा राज्य सरकार को नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रमाणित राज्य आयोग के लेखे, उन पर संपरीक्षा रिपोर्ट सहित प्रति वर्ष भेजे जाएंगे और राज्य सरकार ऐसी संपरीक्षा रिपोर्ट को उसके प्राप्त होने के पश्चात् यथाशीघ्र राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगी।

अध्याय 7 -प्रकीर्ण

  • सद्धावपूर्वक कार्रवाई के लिए संरक्षण

इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों के अनुसरण में सद्धावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के संबंध में अथवा किसी रिपोर्ट या कागज-पत्र केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, आयोग या राज्य आयोग के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन किसी प्रकाशन के संबंध में कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, आयोग, राज्य आयोग या उसके किसी सदस्य अथवा केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, आयोग या राज्य आयोग के निदेशाधीन कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी।

  • अध्यक्ष, सदस्यों और अन्य अधिकारियों का लोक सेवक होना

आयोग, राज्य आयोग का प्रत्येक सदस्य और इस अधिनियम के अधीन कृत्यों का निर्वहन करने के लिए आयोग या राज्य आयोग में नियुक्त प्रत्येक अधिकारी, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझा जाएगा।

  • केन्द्रीय सरकार द्वारा निदेश

(1) आयोग, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने में राष्ट्रीय प्रयोजनों से

(2) यदि केन्द्रीय सरकार और आयोग के बीच इस बारे में कोई विवाद उत्पन्न होता है कि कोई प्रश्न राष्ट्रीय प्रयोजन से संबंधित नीति विषयक प्रश्न है या नहीं, तो उस पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा।

  • विवरणियां या जानकारी-आयोग, केन्द्रीय सरकार को अपने उन क्रियाकलापों के संबंध में ऐसी विवरणियां या अन्य जानकारी प्रस्तुत करेगा जिनकी केन्द्रीय सरकार समय-समय पर अपेक्षा करे।
  • केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति

(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियमों में, निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात् -

(क) आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबन्धन और शर्ते तथा धारा 6 के अधीन उनके वेतन और भत्ते ;

(ख) आयोग द्वारा धारा 10 की उपधारा (4) के अधीन अधिवेशन में उसके कारबार के संव्यवहार के संबंध में उसके द्वारा अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया;

(ग) वे शक्तियां और कर्तव्य जिनका प्रयोग और पालन धारा 11 की उपधारा (2) के अधीन आयोग के सदस्य-सचिव द्वारा किया जाएगा ;

(घ) धारा 11 की उपधारा (3) के अधीन आयोग के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते तथा सेवा अन्य निबन्धन और शर्ते ; और

(ड) धारा 29 की उपधारा (1) के अधीन आयोग द्वारा तैयार किए जाने वाले लेखा विवरण और अन्य अभिलेख का प्ररूप ।

(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्र के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा । किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से पहले उसके अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

  • राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति-

(1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा बना सकेगी।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियमों में, निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए, उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् -

(क) राज्य आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा के निबंधन और शर्ते, तथा धारा 20 के अधीन उनके वेतन और भत्ते ;

(ख) राज्य आयोग द्वारा धारा 24 के साथ पठित धारा 10 की उपधारा (4) के अधीन बैठक में उसके कारबार के संव्यवहार के संबंध में अनुसरित की जाने वाली प्रक्रिया ;

(ग) वे शक्तियां और कर्तव्य जिनका प्रयोग और पालन धारा 21 की उपधारा (2) के अधीन राज्य आयोग के सचिव द्वारा किया जाएगा ;

(घ) धारा 21 की उपधारा (3) के अधीन राज्य आयोग के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते तथा सेवा के अन्य निबंधन और शर्त ; और

(ड) धारा 30 की उपधारा (1) के अधीन राज्य आयोग द्वारा तैयार की जाने वाली लेखा विवरणी और अन्य अभिलेख का प्ररूप ।

(3) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र राज्य विधान-मंडल के जहां उसके दो सदन हैं, प्रत्येक सदन के समक्ष, या जहां, ऐसे राज्य विधान-मंडल में एक सदन है तो उस सदन के समक्ष रखा जाएगा।

  • कठिनाइयां दूर करने की शक्ति

(1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबंध कर सकेगी, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों और जो कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक प्रतीत होते हों; परन्तु ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।

स्रोत: विधि और न्याय मंत्रालय, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 4/17/2023



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