অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण पीड़ितो के लिए विधिक सेवाऐं

पृष्ठभूमि

विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा (ख) के अंतर्गत केंद्रीय प्राधिकरण, अर्थात राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण  को, अधिनियम  के प्रावधानों  के अंतर्गत विधिक सेवा को उपलब्ध  बनाने के उद्देश्य हेतु सर्वाधिक  प्रभावी एवं मितव्ययी योजनायें बनाने हेतु वचनबद्ध किया गया है। विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की प्रस्तावना बल देती है कि विधिक सेवा प्राधिकरण  समाज के कमजोर वर्गों से संबंधित है एवं उन पर यह सुनिश्चित करने का कर्तव्य अधिरोपित करती है कि कोई नागरिक आर्थिक अथवा अन्य विकलांगताओं/असमर्थताओं के कारण न्याय पाने के अवसरो से वंचित न रहे।

इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि वाणिज्यिक यौन शोषण के पीड़ित चाहे वो अवैध व्यापार द्वारा लाए गये हों अथवा स्वैच्छिक यौनकर्मी हों, एक अत्यधिक  पिछड़ा समूह है। उनके या तो अधिकार  भुला दिये गये हैं या उनके जीवन एवं रहने की दशा से किसी का कोई सम्बन्ध  नहीं है या इसमें किसी को कोई रूचि नहीं है कि उनके एवं उनके बच्चों के साथ क्या घटित होता है। उनकी यही दशा उन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ पाने हेतु अधिकारवान बनाती हैं। उनके अत्यधिक  पिछड़े अस्तित्व के कारण वे उन समस्त लाभों हेतु अधिकृत  हैं जो समाज के अन्य पिछड़े वर्गों को उपलब्ध  है।

वाणिज्यिक यौन शोषण हेतु अवैध  व्यापार के पीड़ित ऐसे अवैध  व्यापार के ठीक पश्चात सिर्फ  अत्यधिक  मानसिक आघात का सामना करते हैं बल्कि उनके बचाव के पश्चात भी अवैध  व्यापार करने वाले जो यह चाहते हैं कि वो वापस आएँ अथवा उनके केस का अनुसरण नहीं करें, के विरुद्ध  उनके संरक्षण की आवश्यकता है। उनके जीविका से संबंधित मुद्दे भी हैं एवं यदि कोई व्यवहार्य-विकल्प नहीं दिया जाता है तो उनके पुनः अवैध  व्यापार किये जाने की संभावनाएं बहुत ज्यादा हो जाती हैं।

प्रज्जवला द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका WP(c) क्रः 56/2004 में नालसा ने एक रिपोर्ट वाणिज्यिक यौन शोषण और यौन कर्मी के लिए व तस्करी के शिकार लोगों के संबंध में निम्नलिखित कार्यवाही करने के लिए रिपोर्ट दी हैं।

प्रारम्भिक रिपोर्ट में विधिक सेवा प्राधिकरण  की भूमिका को जैसा व्यवस्थित किया है उसे निम्नलिखित दोहराया है।

  1. तस्करी और यौन शोषण के पीड़ितों को बचाव के समय तथा उसके बाद केस की सुनवाई में कानूनी सहायता उपलब्ध  कराना।
  2. धारा 357 A Cr.PC के तहत पीड़ितों को मुआवजा दिलवाने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण  तक पहुँचाने की सहायता देना।
  3. यौन शोषण और तस्करी के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए उपलब्ध  मौजूदा सुविधाओं की सामाजिक लेखा परीक्षकों के रूप में निगरानी और कार्रवाई करने के लिए।
  4. जि. वि. से. प्रा. (DLSA)पैनल वकीलों और पैरा-लीगल स्वयंसेवकों के माध्यम से तस्करी के मुद्‌दों के बारे में विशेष रूप से कमजोर वर्ग के बीच और संवेदनशील क्षेत्रों  में जागरूकता का प्रचार कर सकते हैं।
  5. DLSAs वास्तव में एक समिल्लन ग्रंथि के रूप में कार्य करे जिससे वास्तव में उन तक पहुँचने  जो उनके अधिकार  रखते हैं और तस्करी को रोकने और तस्करी का शिकार जन व बच्चे हो उन पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़े।
  6. सी. एस. आर. के तहत कौशल निर्माण और रोजगार सहित तस्करी के शिकार लोगों के पुनर्वास के लिए उपायों का समर्थन करने के लिए कॉर्पोरेट जगत को जागरूक करने के लिए कदम उठाने में।
  7. SLSAs  भी कानूनी सेवाओं वकील, अभियोजन पक्ष, सरकारी कर्मचारियों और न्यायपालिका सहित पुलिस, वकीलों की तरह हितधारकों के प्रशिक्षण और संवेदीकरण में सहायता कर सकते हैं।
  8. रा. वि. से. प्रा. SLSAs इस क्षेत्र में कार्य करने वाले स्थानीय शैक्षणिक संस्थानों एवं सिविल सोसाइटी संगठनों एवं एन. जी. ओ. के साथ मिलकर काम भी कर सकते हैं।

नालसा की उच्चतम न्यायालय के प्रति जो वचनबद्धता है उसे क्रियान्वयित करने हेतु विभिन्न स्तरों पर, विधिक सेवा प्राधिकरणों  को रुप रेखा उपलब्ध  कराने के उद्येश्य से योजनायें बनाना आवश्यक है। यही वर्तमान योजना का उद्देश्य है। यह आशा की जाती है कि विधिक सेवा प्राधिकरण  सभी स्तरों पर वर्तमान योजना का अनुसरण करके इस कमजोर वर्ग को प्रभावी रूप से विधिक सेवा प्रदान करने में समर्थ होगा।

योजना का नाम

यह योजना नालसा (तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण पीड़ितों के लिए विधिक सेवाऐं)

योजना, 2015 कही जाएगी।

योजना का उद्देश्य

योजना का उद्देश्य समस्त आयु समूह की महिलाओं को सम्मिलित करते हुए अवैध व्यापार के पीड़ितों एवं प्रत्येक स्तर पर अर्थात रोकथाम, बचाव एवं पुनर्वास के सम्बन्धें का समाधन करने हेतु विधिक  सहायता प्रदान करना है। योजना का मुख्य विषय इन पिछड़े समूहों हेतु आर्थिक एवं सामाजिक मार्ग प्रदान करना है ताकि वे सामाजिक रूप से जुड़ जाएं एवं इस प्रकार उन्हें वे समस्त सामाजिक संरक्षण प्राप्त हो जो एक साधारण नागरिक को उपलब्ध  है। विधिक सेवा प्राधिकरण  का हस्तक्षेप पीड़ितों की मर्यादा का संरक्षण सुनिश्चित करना होना चाहिए जो उनका उतना ही जीवन का मूल अधिकार  है जितना किसी अन्य नागरिक के जीवन का।

बच्चों एवं वयस्कों, जो इस उद्‌देश्य हेतु अवैध  व्यापार में लाए गये हैं के अलावा, पहले से ही पिछड़े स्वैच्छिक यौन-कर्मी विधिक सेवा प्राधिकरण  की सहायता से वंचित न रह जाएं इसी कारण उन्हें भी वाणिज्यिक यौन शोषण का पीड़ित माना गया है।

अर्द्धविधिक  स्वयंसेवी, विधिक सेवा क्लीनिक, फ्रंट  ऑफिस, पैनल अधिवक्ता और प्रतिधारक  अधिवक्ता जैसे शब्दों का अर्थ वही रहेगा जैसा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण  निःशुल्क और सक्षम विधि  विनिमयन, 2010 और राष्ट्रीय विधिक  प्राधिकरण  विधिक  सहायता क्लिनिकद्ध विनिमयन, 2011 के तहत परिभाषित है।

पीड़ितों को विधिक सेवा हेतु योजना

विधिक सेवा की योजना सर्वव्याप्त दृष्टिकोण के द्वारा मार्गदर्शित होनी चाहिए। इसलिए, बच्चे, किसी भी लिंग के नवयुवक, नवयुवतियाँ, तरुण महिलाएँ एवं वृद्ध महिलाएं सभी को कार्ययोजना में सम्मिलित किया जाना होगा। विधिक सेवा प्राधिकरण  रोकथाम, बचाव एवं पुनर्वास हेतु एक समग्र कार्ययोजना का विकास करेगा ना कि केवल इनमें से किसी एक पहलू हेतु इसके अतिरिक्त विधिक सेवा प्राधिकरण  प्रत्येक केस के दस्तावेज तैयार करेगा एवं कम से कम तीन वर्ष तक आगे की कार्यवाही जारी रखेगा ताकि पीड़ित का समाज में पुनः एकीकरण पूर्ण हो जाए।

समस्त सम्यक्‌ तत्परता पूर्वक प्रक्रियाओं को पूर्ण करते हुए, अवैध  व्यापार द्वारा लायी गई महिलाओं को उनके अधिकार  दिलाने हेतु योग्य बनाना-

कार्ययोजना पीड़ितों के अवैध  व्यापार की रोक-थाम एवं पुनर्वास के उद्देश्य हेतु सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक विकास एवं कल्याण को मजबूत बनाने के उद्देश्य हेतु जीवन-वृत्त दृष्टिकोण के साथ केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों की विद्यमान कल्याणकारी योजनाओं का प्रयोग करना होगा। जि वि से प्रा, एन जी ओ/ सी बी ओ से योजनाओ हेतु  माँग को सुनिश्चित करने के लिए उपकरणों जैसे कि सूक्ष्म नियोजन एवं सर्वेक्षणों के प्रयोग हेतु अनुरोधकर सकेगा एवं उसके पश्चात

योजनाओं हेतु पंजीकरण को सुगम बनाने हेतु पूरे जिले में सहायता डेस्क स्थापित करेगा। साथ-साथ पीड़ित/समुदाय के सदस्य प्रोत्साहित एवं शिक्षित किये जा सकेंगे कि वे किस तरह योजनाओं हेतु आवेदन करें जिनमें वे नामांकन अथवा पंजीकरण करना चाहते हैं।

जि वि से प्रा संबंधित विभाग के समर्थन से प्रत्येक योजना के अंतर्गत निर्धारित  प्रक्रियाओं को पूर्ण करने एवं समस्त सम्यक तत्परता पूर्वक प्रक्रियाओं का अनुपालन करने को सुगम बनाएगा।

यह आवेदक को उन समस्त प्रकार के दस्तावेजों को अभिप्राप्त करने मे समर्थ बनायेगा जिनका किसी योजना के अंतर्गत लाभों हेतु पात्रता  स्थापित करने के उद्‌देश्य से प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है। जैसे निवास प्रमाण, आयु प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, इत्यादि को प्राप्त करना। एक बार समस्त सम्यक तत्परतापूर्ण हो जाने पर एवं योजना स्वीकृत हो जाने पर, जि वि से प्रा,योजना का लाभ लाभार्थियों तक पहुँचने तक समुदाय को समर्थन प्रदान करता रहेगा।

उपलब्ध  योजनाएँ-

  • आई सी डी एस अथवा शिशु देखरेख विकास - 0 - 6 वर्ष, गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताएँ (देखरेख प्रदान करने वाले के रूप में)
  • खाद्य सुरक्षा अथवा राशन कार्ड
  • वृद्ध महिलाओं हेतु सामाजिक सुरक्षा अथवा पेंशन
  • दोपहर के भोजन को सम्मिलित करते हुए शैक्षणिक योजनायें, सेतु के विद्यालय, सर्व शिक्षा अभियान के आवासीय विद्यालय, सबाला, नवयुवतियों एवं विनिर्दिष्ट कन्याओं हेतु सामाजिक कल्याण विभाग से प्राथमिक, माघ्यमिक एवं उच्चतर शिक्षा हेतु छात्रावृतियाँ
  • जीविका-कौशल उन्नयन, वित्तीय समावेश, सूक्ष्म उद्यम-अ.ज./अ.जन./पि.व./अल्पसंखयक एवं महिला विकास निगम से एवं सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र  के उपक्रमों से सी एस आरनिधि
  • निर्माण हेतु आवासीय अथवा छूट एवं शहरी विकास से भूमि पट्टा, आवासीय निगम
  • सार्वभौम हकदारियाँ-जनधन, आधार कार्ड, वोटरकार्ड, एस. एच. जी. सदस्यता
  • विधिक  सहायता योजनाएँ-विधिक  साक्षरता, अर्धविधिक स्वयंसेवी, निःशुल्क विधिक  सहायता एवं संरक्षण सुनिश्चित करने हेतु विधिक  सहायता क्लीनिक

वि. से. प्रा. की भूमिका

SLSAs/DLSAsकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अभिसरण बनाए रखने के लिए है। इसमें कोई शक नहीं है की सभी योजनाओं के लिए प्रशासनिक अभिसरण जिला कलेक्टर के तहत किया जाएगा, वहीं बचाव के अभिसरण SLSAsऔर DLSAs की देख-रेख में करना होगा।

SLSAsऔर DLSAs को भी योजना के उद्‌देश्यों को प्राप्त करने के क्रम में, क्षेत्र  में काम कर रहे सरकारी मशीनरी और समुदाय आधरित संगठनों/गैर सरकारी संगठनों को एक साथ लाना होगा। इस तरह के सीबीओ/गैर सरकारी संगठनों को नालसा द्वारा मान्यता प्राप्त होना चाहिए।

पीड़ितों के कानूनी, वैधानिक, संवैधानिक और मानव अधिकारों को लागू करने के लिए जहाँ  भी आवश्यकता हो कानूनी सहायता, परामर्श, संवेदीकरण या प्रशिक्षण प्रदान करना SLSAsऔर DLSAs की भूमिका होगी।

इस पृष्ठभूमि में, रा. वि. से. प्रा. / जि. वि. से. प्रा. की भूमिका निम्नलिखित में होगी -

  • दूरिया मिटाना - समस्त विभागों एवं/पीड़ितों, जैसे कि अवैध  व्यापार में लायी गयी महिलाओं, यौन कार्यों में संलग्न महिलाओं एवं जो अवैध  व्यापार एवं अत्यधिक  हिंसा के आघात के पीड़ित हों, के मध्य।
  • सहभागिता बढ़ाना-जि. वि. से. प्रा. द्वारा सामुदायिक संगठनों, इसके सदस्यों एवं सरकारी-विभाग-जिला एवं उप-जिला प्रशासन को साथ लाने के लिए योजना योजना शिक्षा अभियान आयोजित करना।
  • सहभागिता एवं स्वामित्व को सुगम बनाना-
  • सामुदायिक बैठकों एवं शिविरों के माध्यम से सामुदायिक संगठनों के साथ सहयोग कायम करते हुए जि. वि. से. प्रा. द्वारा आगे कार्यवाही करना।

संवेदीकरण-

  • समस्त विभागों एवं संस्थाओं को समुदाय की गतिशीलता के बारे में सीखने हेतु योग्य
  • बनाना, गलत अवधरणाओं को दूर करना।

उत्तरदायित्व को मजबूत बनाना-

अधिकार  धारण करने वाले की पहचान से लेकर योजना का लाभ दिलाये जाने तक समस्त प्रक्रियाओं को अभिग्रहण करने वाली प्रबंधन  सूचना प्रणाली (एम. आई. एस.) के माघ्यम से।

साझेदारी विकसित करना -

  • पहले स्तर पर सामुदायिक संगठनों एवं यौन कर्मियों के साथ काम करने वाले गैर सरकारी संगठन एवं अवैध  व्यापार एवं यौन शोषण के पीड़ितों के साथ सहभागिता सुनिश्चित करना। समुदाय के बहुत से छिपे हुए सदस्यों तक पहुँचने वाली प्रक्रिया को सुगम बनाना एवं सामुदायिक जुटाव की प्रक्रिया को आकार देना।
  • मध्य स्तर पर जिला प्रशासन तंत्र, यथा महिला एवं बाल विकास विभाग विशेष रूप से बाल संरक्षण/ कल्याण समितियाँ एवं मानव अवैध  व्यापार निरोधक  इकाईयां एवं जि. वि. से. प्रा. के मघ्य साझेदारी होनी चाहिए। यह समुदाय एवं लाभार्थियों के साथ मूल/जमीनी स्तर पर होने वाले प्रयासों पर विशेष ध्यान देंगे।
  • साझेदारी का तीसरा स्तर बाल विभाग, जो अवैध  व्यापार के पीड़ितों हेतु कई योजनाएँ कार्यान्वित करता है एवं पुनर्वास/स्वधर/उज्जवला घर चलाता है गृहमंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय एवं ग्रामीण जीविका अभियान जो मानव अवैध  व्यापार की रोक-थाम हेतु जनादेश भी रखता है एवं लाभार्थियों को संरक्षण एवं सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए महत्वपूर्ण साझेदार होगा, के साथ होगा।

कार्ययोजना

प्रथम कदम जो कि जि. वि. से. प्रा. को उठाना चाहिए वह क्षेत्र  में कार्य करने वाले गैर सरकारी संगठनों, एवं समुदाय आधरित संगठनों (सीबीओ) तक पहुँचना है। यह करने के लिए, रा. वि. से. प्रा. को यूनिसेपफ अथवा यू. एन. ओ. डी. सी. से संपर्क स्थापित करना होगा। उन्हें राज्य अभिकरण जैसे कि महिला एवं बाल विभाग, ग्रामीण जीविका अभियान, व उन्हें राष्ट्रीय एड्‌स नियंत्रण  संगठन (एन. ए. सी. ओ.)एवं राज्य तथा जिला एड्‌स नियंत्रण  समितियों (एस.ए. सी. एस. एवं डी. ए. सी. एस.) की सहायता भी लेनी चाहिए। इस प्रकार रा. वि. से. प्रा. /जि.वि. से. प्रा. अवैध  व्यापार के साथ-साथ यौन कर्मियों के बारे में सूचना प्राप्त करने मे समर्थ होंगे। दूसरा कदम अन्तर्विभागीय समाभिरूपता स्थापित करना होगा। अर्थात्‌ राज्य एवं जिला स्तर पर प्रेरित करना होगा ताकि समस्त संबंधित विभागों की एक सम्मिलित एवं व्यापक प्रतिक्रिया तथा हिस्सेदारी प्रकट हो एवं आवश्यक अन्तर्क्षेत्रीय संयोजन, विधि एवं प्रक्रिया स्थापित हो।

अवैध  व्यापार

अवैध  व्यापार के संबंध में, राज्य में मानव दुर्व्यापार निरोधक इकाईयों एवं एनजीओ /सीबीओ की सहायता से जि. वि. से. प्रा. को उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर आघात युक्त क्षेत्रों  आघात युक्त जनसंख्या को ध्यान मे रखकर योजनाबद्ध तरीके से कार्य करना होगा। तभी रोकथाम की योजनाओं को गति प्रदान किया जाना सम्भव हो सकेगा। ये योजनाओं के बारे में सूचना का प्रसार करेंगी एवं आघात योग्य लोगों को ऐसी योजनाओं से सम्बन्ध करेंगी ताकि वे उनसे लाभान्वित हो सकें। यह विधि के बारे में एवं संभावित अवैध  व्यापार करने वालों के द्वारा खड़े किये गये खतरों के बारे में जागरूकता फैलाने  को भी समाविष्ट करेगा। इस तरह बालकों एवं किशोर बालकों को, उन्हें अपरिचितों के द्वारा मित्र  बनाए जाने के खतरों के बारे में जागरूक किया जा सकेगा एवं माता-पिता को शहरों में उनके बच्चों हेतु अच्छी शिक्षा दिये जाने के वादों की असत्यता के बारे में सावधान  किया जा सकेगा। समान रूप से, नवयुवकों को नौकरियों एवं बेहतर जीवन के झूठे वादों के बारे में चेतावनी दी जा सकेगी।

रा. वि. से. प्रा. / जि. वि. से. प्रा. को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाने  हेतु पैनल अधिवक्ताओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक टीम बनानी होगी। पी. एल. वी. का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाना चाहिए कि आघात योग्य समुदायों/पीड़ित वर्ग को विभिन्न योजनाओं तक पहुँचाए व योग्य बनाने के लिए पात्रता  युक्त दस्तावेजों एवं प्रमाणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के अनुक्रम मे समस्त प्रक्रियाएं सम्यक तत्परतापूर्वक पूर्ण कर ली गयी हैं। जि. वि. से. प्रा. को अपने पीएलवी एवं अपने कार्यालयों, जहाँ आवश्यक हो, का उपयोग प्रशासनिक प्रमुखों जैसे कि जिला कलक्टर अथवा मुख्य  सचिव से योजना का अंतिम कार्यान्वयन सुनिश्चित करने हेतु सम्पर्क करने के लिए किया जाना चाहिए।

भारतीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में पुलिस थानों में सम्बन्ध अथवा खोए हुए बच्चों के मामलों का संचालन करने हेतु नियुक्त पीएलवी को, बच्चों के मामलों के साथ-साथ अवैध  व्यापार पर रा. वि. से. प्रा. / जि. वि. से. प्रा. द्वारा विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे उत्तरदायी बनें। ये पीएलवी, रा. वि. से. प्रा. / जि. वि. से. प्रा. को जहाँ भी किसी पुलिस थाने में अवैध  व्यापार का ऐसा मामला रिपोर्ट किया जाता है अथवा यौन कर्मी की गिरफ्रतारी होती है, सूचित करेंगें।

यौनकर्मी

सामुदायिक आवश्यकताओं को समझने की एक विधि है कि रा. वि. से. प्रा. के सदस्य सचिव अथवा जि. वि. से. प्रा. के पूर्णकालिक सचिव एवं समुदाय के नेताओं अर्थात्‌ ऐसे नेता जो सामाजिक हकदारियों, विशेष रूप से सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे कि विध्वा एवं वृद्धावस्था पेंशन योजना, वृद्धावस्था पेंशन योजना के लाभार्थी तक पहुँचने में आने वाली कठिनाईयों की व्याखया कर सकते हों, के मघ्य बैठकें आयोजित करना है।

अन्य विधिजन  से सुनवाई का आयोजन करना है जहाँ समुदाय के सदस्य बयान देंगे, अथवा दूसरे शब्दों में समस्त स्तरों पर शासन प्रणाली के साथ अपने अनुभव को बतलायेंगे। जूरी निम्नलिखित से मिल कर गठित होनी चाहिए: जि. वि. से. प्रा. के अध्यक्ष एवं/अथवा पूर्णकालिक सचिव, अन्य न्यायिक अधिकारी  जहाँ संभव हो, उच्च शासकीय अधिकारी  जैसे डीसी, प्रमुख सचिवगण अथवा मुख्य  सचिव, पुलिस अधिकारी गण एवं संरक्षण अधिकारी गण / रा. वि. से. प्रा. / जि. वि. से. प्रा. द्वारा ऐसे कार्यक्रमों में वरिष्ठ अधिवक्तागण  एवं पैनल अधिवक्तागण  को भी समाविष्ट किया जाना चाहिए।

बयान के पश्चात सदस्य सचिव/सचिव, जैसी भी स्थिति हो, अथवा पैनल अधिवक्ता को समुदाय को विधिक सेवा प्राधिकरण  में उपलब्ध  विधिक  सेवाओं के बारे में बताना चाहिए एवं उनकी शिकायतें फाइल करने हेतु एवं जहाँ भी उनके अधिकारों का अतिलंघन हो अथवा उनकी कोई विधिक  समस्या जैसे उत्तराध्किार इत्त्यादि की हो, में निःशुल्क विधिक  सहायता प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए। विधिक सेवा प्राधिकरण  लक्ष्य समूहों को उनके दैनिक जीवन में सामना करने वाली हिंसा एवं उत्पीड़न के निवारण हेतु समर्थ बना सकते हैं। संगी अथवा पति से हिंसा की दशा में जि. वि. से. प्रा. संरक्षण अधिकारी गण के साथ विधिक सहायता एवं सलाहकारी सेवाएं प्रदान कर सकते हैं।

जि. वि. से. प्रा. समुदाय से लिए गये अर्धविधिक स्वयंसेवीगण को रा. वि. से. प्रा. के मापदंड के अनुसार अधिकृत  एवं प्रशिक्षित कर सकता है। ये पी एल वी जहाँ तक समुदाय का संबंध है प्राधिकरण  के मुख्य  कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर सकते हैं। जिले के समस्त खण्डों एवं अंतिम रूप से पूरे राज्य से प्रतिवेदनों को लेने के द्वारा संतृप्ति कवरेज सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

पुनः, जि. वि. से. प्रा. के समुदाय में योजनाओं हेतु आवश्यकता का मूल्यांकन करना चाहिए एवं जैसा कि यहॉं इसके ऊपर वर्णित है उस तरीके से सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं तक समुदाय की पहुँच  को सुगम बनाना चाहिए।

रोकथाम

सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करते समय, रा. वि. से. प्रा./ जि.वि. से. प्रा. को एकीकृत बाल संरक्षण योजना, विशेष रूप से ग्रामीण स्तर बाल संरक्षण समितियों वीएलसीपीसी की स्थापना, के अन्तर्गत पहले से उपलब्ध  ढाँचे पर ध्यान देना चाहिए।

ये समितियाँ समुदाय के पंचायत सदस्यों, विद्यालयों के अध्यापकों, विद्यार्थियों एवं माता-पिता से मिल कर बनायी जाती हैं। गाँवों में बच्चों पर नजर रखने हेतु वीएलसीपीसी हेतु विशेष जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिए। अध्यापकों को विद्यालय से गायब हुए बच्चों पर निगरानी रखने हेतु संवेदनशील बनाना चाहिए ताकि ऐसे बच्चों के विषय में शीघ्र ही अधिकारी गण को रिपोर्ट करें, ताकि उनकी भलाई हेतु आगे की जाँच शीघ्रतापूर्वक की जा सके।

छोटे बच्चों एवं किशोर बालिकाओं हेतु, आँगनबाड़ी एवं स्वास्थ्य कर्मियों हेतु समान रूप से जागरूकता एवं संवेदनशीलता के कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिए। पुनः, रा. वि. से. प्रा./ जि. वि. से. प्रा. यह सुनिश्चित करे कि अनुपस्थित रहे बालकों की जाँच की जाए एवं तुरंत रिपोर्ट किया जाए।

वी. एल. सी. पी. सी. एवं आँगनबाड़ी से लिए गये पीएलवी एवं साथ-साथ अघ्यापकों को अवैध  व्यापार एवं यौन शोषण के मुद्दों पर विशेष बल के साथ प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। इन पीएलवी के कार्यों की निगरानी सूक्ष्मतापूर्वक करनी चाहिए। वहीं इन पीएलवी को प्रभावी सलाहकार एवं समर्थक दिए जाएँगे ताकि रिपोर्ट हुई किसी घटना पर संबंधित रा. वि. से. प्रा. / जि. वि. से. प्रा. द्वारा सम्पूर्ण ध्यान दिया जा सके। विद्यार्थी विधिक साक्षरता क्लबों को अवैध  व्यापार के मुद्दों के बारे में लिखने, बात-चीत करने एवं विचार-विमर्श करने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ये क्लब यौवन के खतरों से बचने व सावधान  रहने के बारे में मित्र वत शिक्षक की भूमिका भी निभा सकते हैं।

प्रबंधन  सूचना प्रणाली

रा. वि. से. प्रा. एवं जि. वि. से. प्रा. को एक मजबूत एम आई एस विकसित करना होगा ताकि इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक गतिविधि रिकार्ड की जा सके, आगे की कार्यवाही की जा सके एवं मूल्यांकन किया जा सके। साथ ही पी. एल. वी. एवं पैनल अधिवक्ता द्वारा पीड़ितों को दी गयी सहायता जि. वि. से. प्रा. के पूर्णकालिक सचिव/सचिव द्वारा अभिलिखित की जा सके व उसकी गहनतापूर्वक निगरानी की जा सके। जहाँ जि वि से प्रा ने पुनर्वास को सुगम बनाना हो तो कम से कम तीन वर्षों तक पीड़ित की ट्रेकिंग होनी चाहिए ताकि उसका पुनर्वास पूर्ण हो एवं उसके पुनः अवैध  व्यापार में आने का खतरा न हो।

किन्नर (ट्रांसजेन्डर)

इस योजना के प्रावधान  समस्त किन्नरों (ट्रांसजेन्डरस्‌) पर लागू होंगे।

स्रोत: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नालसा, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 1/18/2024



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate