नीली क्रांति, नीली क्रांति का मिशन, जैव सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, मात्स्यिकी के विकास का एक धारणीय तरीके से जल-संसाधनों की पूरी संभावना का उपयोग करने के माध्यम से देश, मछुआरों और मत्स्य-कृषकों को आर्थिक समृद्धि प्राप्त कराने तथा खाद्य और पोषण संबंधी सुरक्षा की ओर अंशदान करने की एक दृष्टि है। नीली क्रांति का मिशन 2016 (एन.के.एम.16), भारतवर्ष में विश्व-स्तर के आधुनिक उद्योग के रुप में मात्स्यिकी के क्षेत्र के विकास के उन सभी संबंधित क्रिया-कलापों के साथ बहु-आयामी पहुँच बनायेगा। यह उत्पादन की पूर्ण संभावना का दोहन करने पर केंद्रित होगा और यह मूल रुप से दोनों-अंतर्देशीय और समुद्री जल-कृषि और मात्स्यिकी के संसाधनों की उत्पादकता बढ़ायेगा। इसका मुख्य उद्देश्य निर्यात के बाजार में भारतीय मात्स्यिकी के भाग को मूलत: बढ़ाने का होगा। यह सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की सहभागिता को शामिल करते हुए मछुआरों और मत्स्य-कृषकों की आय दोगुना कराने तथा पर्यावरण और जैव-सुरक्षा के साथ धारणीयता सुनिश्चित करायेगा।
नीली क्रांति - नील क्रांति मिशन का उद्देश्य देश तथा मछुआरों एवं मछली किसानों की आर्थिक समृद्धि प्राप्त करना तथा जैव सुरक्षा एवं पर्यावरणीय सरोकारों को ध्यान में रखते हुए संपोषणीय ढंग से मछली पालन विकास के लिए जल संसाधनों की पूर्णक्षमता के उपयोग के माध्यम से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में योगदान देना है। इसमें मछली पालन क्षेत्र के बदलाव, अधिक निवेश, बेहतर प्रशिक्षण और अवसंरचना के विकास की परिकल्पना है।
कनीली क्रांति मछली पकड़ने के नए बंदरगाहों के निर्माण, मछली पकड़ने की नौकाओं के आधुनिकीकरण, मछुआरों को प्रशिक्षण देने तथा स्व-रोजगार की गतिविधि के रूप में मछली पकड़ने को बढ़ावा देने पर बल देगी । महिलाओं और उनके समूहों को प्रशिक्षण तथा क्षमता-निर्माण और परियोजनाओं के आबंटन में प्राथमिकता दी जाएगी।
धारणीयता, जैव-सुरक्षा और पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, मछुआरों तथा मत्स्य-कृषकों की आय के स्तर में मूल सुधार के साथ-साथ, देश की मात्स्यिकी की पूर्ण संभावना के एकीकृत विकास के लिये समर्थ बनाने वाले एक पर्यावरण का सृजन करना।
(1) देश की अंतर्देशीय तथा समुद्री कृषि की मात्स्यिकी की पूर्ण संभावना का दोहन करने के लिये, इसे एक पेशेवर, आधुनिक और विश्व स्तर का उद्योग बनाने के लिये एक नीली क्रांति मिशन की योजना (नीली क्रांति के मिशन की योजना) का निर्माण करना।
(2) देश के मछुआरों तथा मत्स्य-कृषकों की आय दोगुना कराना सुनिश्चित कराना।
(3) मत्स्य उद्योग की धारणीयता को समर्थ बनाने के लिये धारणीयता, जैव-सुरक्षा सुनिश्चित कराना और पर्यावरणीय चिंताओं को सम्बोधित करना।
(1) अंतर्देशीय तथा समुद्री क्षेत्रों-दोनों में देश की कुल मत्स्य उत्पादन की संभावना का पूर्ण रुप से दोहन करना।
(2) नई प्रौद्योगिकियों तथा प्रक्रियाओं पर विशेष ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ मात्स्यिकी के क्षेत्र को एक आधुनिक उद्योग के रुप में परिवर्तन करना।
(3) ई-कामर्स तथा अन्य प्रौद्योगिकियों और वैश्विक सर्वश्रेष्ठ नवोन्मेषों को शामिल करते हुए उत्पादकता बढ़ाने और फसलोत्तर बुनियादी सुविधाओं के बेहतर विपणन पर एक विशेष ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ मछुआरों और मत्स्य-कृषकों की आय को दोगुना करना।
(4) आय की वृद्धि करने में मछुआरों और मत्स्य कृषकों की एकमात्र सहभागिता सुनिश्चित करना।
(5) सहकारी समितियों, उत्पादक कम्पनियों और अन्य ढाँचों में संस्थागत क्रिया-विधियों के माध्यमों को शामिल करते हुए मछुआरों और मत्स्य-कृषकों को लाभों के प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करने के साथ सन् 2020 तक निर्यात की आय को तीन गुना करना।
(6) देश की खाद्य और पोषण - संबंधी सुरक्षा में वृद्धि करना।
केज कल्चर तकनीक को एक नई पहचान दी। अब इस तकनीक के जरिए भारत में मछली पालन को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि भारत सरकार की चलाई जा रही नीली क्रांति योजना के तहत पूरे भारत में इस तकनीक को जल्दी शुरू किया जाएगा। केज कल्चर यानि पिंजरे में मछली पालन। डैम और जलाशयों में निर्धारित जगह पर फ्लोटिंग ब्लॉक बनाए जाते हैं। सभी ब्लॉक इंटरलॉकिंग रहते हैं। ब्लॉकों में 6 गुना 4 के जाल लगते हैं। जालों में 100-100 ग्राम वजन की पंगेशियस मछलियां पालने के लिए छोड़ी जाती हैं। मछलियों को प्रतिदिन आहार दिया जाता है। फ्लोटिंग ब्लॉक का लगभग तीन मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता है और एक मीटर ऊपर तैरते हुए दिखाई देता है।
देश में चल रही नीली क्रांति योजना के तहत वर्ष 2022 तक मछली उत्पादन 15 मिलियन टन तक पहुंचाना है। ऐसे में केज कल्चर तकनीक काफी सहायक हो सकती है।
देश के डेढ़ करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। सभी प्रकार के मछली पालन (कैप्चर एवं कल्चर) के उत्पादन को साथ मिलाकर 2016-17 में देश में कुल मछली उत्पादन 11.41 मिलियन तक पहुंच गया है। इस तकनीक को पूरे देश में लागू करने से वर्ष 2022 तक मछली उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
वित्तीय सहायता की पद्धति
(I) डी.ए.डी.एफ., भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित लाभार्थी - उन्मुख परियोजनाएं।
(क) परियोजना की अनुमोदित लागत का अंशदान |
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श्रेणी
|
सरकारी सहायता |
लाभार्थी का अंशदान |
योग |
सामान्य श्रेणी |
40% |
60% |
100% |
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन-जाति/ महिलाएं और उनकी सहकारी समितियाँ |
60%
|
40%
|
100%
|
(ख) सरकारी सहायता का केंद्रीय और राज्य का अंशदान |
|||
क्षेत्र |
केंद्रीय अंशदान |
राज्य का अंशदान |
योग |
अन्य राज्य |
60% |
40% |
100% |
उत्तर-पूर्व के और पहाड़ी राज्य
|
90% |
10% |
100% |
संघ-शासित क्षेत्र |
100% |
0% |
100% |
(ग) परियोजना की लागत में साझा करने का प्रतिशत
क्षेत्र और लाभार्थियों की श्रेणी |
भारत सरकार का अंशदान |
राज्य सरकार का अंशदान |
लाभार्थी का अंशदान |
योग |
अन्य राज्य |
||||
सामान्य श्रेणी
|
24% |
16%
|
60% |
100% |
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन-जाति/ महिलाएं और उनकी सहकारी समितियाँ |
36% |
24%
|
40%
|
100% |
उत्तर-पूर्व के और पहाड़ी राज्य |
||||
सामान्य श्रेणी |
36% |
4% |
60% |
100% |
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन-जाति/ महिलाएं और उनकी सहकारी समितियाँ |
54%
|
6% |
40% |
100% |
संघ-शासित क्षेत्र |
||||
सामान्य श्रेणी |
40% |
0% |
60% |
100% |
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन-जाति/ महिलाएं और उनकी सहकारी समितियाँ |
60% |
0% |
40% |
100% |
(II) राज्यों/संघ-शासित क्षेत्रों और उनके अभिकरणों / संगठनों / परिसंघों / सहकारिता समितियों / संस्थानों द्वारा एन.एफ.डी.बी. के माध्यम से कार्यान्वित की जाने वाली परियोजनाएं
केंद्रीय और राज्य का अंशदान |
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श्रेणी |
केंद्रीय/एन.एफ. डी.बी. की सहायता |
राज्य/संघ-शासित क्षेत्र का अंशदान |
योग |
अन्य राज्य |
50% |
50% |
100% |
उत्तर-पूर्व के और पहाड़ी राज्य |
80% |
20% |
100% |
संघ-शासित क्षेत्र/भारत सरकार के संगठन/संस्थान |
100% |
0% |
100% |
नोट: निजी उद्यमियों और व्यक्तिगत लाभार्थियों के लिए धन का समान पैटर्न सुनिश्चित करने के लिए, तालिका (I) क, ख और ग में दी गई शर्ते लाग होंगीं। |
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योजना की संख्या
|
क्रिया-कलाप/योजनाएं तथा घटक
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इकाई की लागत की (वास्तविक लागत संख्या या.....तक) |
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I. समुद्री मात्स्यिकी, बुनियादी ढाँचा तथा फसलोत्तर परिचालनों का विकास |
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1. समुद्री मात्स्यिकी का विकास |
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1.1 |
परम्परागत नाव का मोटरीकरण (मछली मारनेवाले गीयर और नोदक को शामिल करते हुए) |
रु.1.20 लाख/नाव
|
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1.2 |
समुद्र में मछुआरों की सुरक्षा |
रु.2.00 लाख/किट |
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1.3 |
.... के लिये परम्परागत / कारीगर मछुआरों के लिये सहायता: (1) 10 एम.ओ.ए.एल. तक एफ.आर.पी. की नावें (2) मछली एवं वर्फ रखने की कुसंवाहक पेटियाँ |
रु.4.00 लाख/नाव रु.25,000/नाव |
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1.4 |
मछुआरों के लिये एच.एस.डी. पर छूट (बिक्री-कर) |
रु.3/ली. की सीमा |
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1.5 |
जलयान के अनुश्रवण करने की प्रणाली की स्थापना एवं परिचालन (वी.एम.एस.) |
वास्तविक लागत: डी.ए.डी.एफ. द्वारा लागू की गई परियोजना |
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1.6 |
मछली मारने के लिये गैर-परम्परागत ऊर्जा |
रु.25,000/मछली मारने वाला जलयान |
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1.7 |
.... के रूप में मारीकल्चर को प्रोत्साहन |
|||||
1.7.1 |
खुले समुद्र में पिंजड़े की कृषि (वृत्ताकार: 6 मी. व्या. और 4 मी. गहराईः चतुर्भुरजाकार: 6 x 4 x 4 मी. या 96 घन मी. का आयतन) |
रु.5.00 लाख/पिंजड़ा
|
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1.7.2 |
समुद्री शैवाल की कृषि (बाँस के तरापे का आकार 3 x 3 मी.) |
रु.1,000/तरापा |
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1.7.3 |
बिबाल्व की कृषि (बाँस के रैक का आकार 5 X 5 मी.)
|
रु.15,000/रैक
|
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1.7.4 |
मोती की कृषि (समुद्री एवं मीठे पानी की) |
रु.25.00 लाख/परियोजना |
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1.8 |
समुद्री मात्स्यिकी का प्रबंध (परियोजना) |
रु.5.00 लाख की सीमा |
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1.9 |
परम्परागत मछुआरों तथा उनके समाजों के लिये गहरे समुद्र में मछली मारने वाले मध्यम आकार (18-22 एम.ओ.ए.एल.) के मध्यम आकार के जलयान के लिये सहायता |
वास्तविक लागत, वशर्ते मछली मारने वाले प्रति जलयान के लिये अधिकतम रु.40.00 लाख |
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2. बुनियादी ढाँचे का विकास तथा फसलोत्तर परिचालन |
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2.1 |
मछली मारने वाले बंदरगाहों एवं मछली के उतराई वाले केंद्रों की स्थापना |
परियोजना की अनुमोदित वास्तविक लागत |
||||
2.2 |
मछली मारने वाले बंदरगाहों एवं उतराई के केंद्रों की सफाई
|
परियोजना की अनुमोदित वास्तविक लागत |
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3. फसलोत्तर बुनियादी ढाँचे को मजबूत किया जाना |
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3.1 |
(i) वर्फ का संयंत्र, (ii) कोल्ड स्टोरेज, (iii) दोनों-वर्फ का संयंत्र-सह- कोल्ड स्टोरेज का विकास |
रु.2.50 लाख/टन
|
||||
3.2 |
(i) वर्फ का संयंत्र, (ii) कोल्ड स्टोरेज, (iii) दोनों-वर्फ का संयंत्र-सह- कोल्ड स्टोरेज का पुनरुद्धार/आधुनिकी करण |
रु.1.50 लाख/टन
|
||||
3.3 |
मछली के फुटकर बाजारों एवं संबद्ध बुनियादी ढाँचों का विकास: (क) फुटकर की 10 दुकानें (ख) फुटकर की 20 दुकानें (ग) फुटकर की 50 दुकानें |
वास्तविक के अनुसार, इस सीमा तक (क) रु.100 लाख (ख) रु.200 लाख (ग) 500 लाख |
||||
3.4 |
सचल/मछली की फुटकर दुकानों की स्थापना किया जाना (चबूतरा) |
वास्तविक लागत रु.10 लाख / इकाई की सीमा के अनुसार |
||||
3.5 मछलियों के परिवहन के लिये बुनियादी ढाँचे के लिये सहायता (एक सीमा सहित वास्तविक के अनुसार)
|
||||||
3.5.1 |
10 टन की क्षमता के प्रशीतित ट्रक/कंटेनर |
रु.25.00 लाख/ट्रक |
||||
3.5.2 |
न्यूनतम 10 टन क्षमता का कुसंवाहक ट्रक |
रु.20.00 लाख/ट्रक |
||||
3.5.3 |
न्यूनतम 6 टन क्षमता का कुसंवाहक ट्रक |
रु.15 लाख/ट्रक |
||||
3.5.4 |
वर्फ की पेटी के साथ ऑटोरिक्शा (इकाई) |
रु.2.00 लाख/इकाई |
||||
3.5.5 |
वर्फ की पेटी के साथ मोटर साईकिल (इकाई) |
रु.60,000/इकाई |
||||
3.5.6 |
वर्फ की पेटी के साथ साईकिल (इकाई) |
रु.3.000/इकाई |
||||
4. नव-प्रवर्तन के क्रिया-कलाप (एक सीमा सहित वास्तविकता के अनुसार) |
||||||
4.1 |
नव-प्रवर्तन के क्रिया-कलाप (मात्स्यिकी की परियोजनाएं: नई प्रौद्योगिकी का प्रारंभ, प्रजातियों का विविधीकरण इत्यादि) |
रु.100 लाख प्रति परियोजना |
||||
II. मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना |
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1. |
बचत-सह-राहत (अंतर्देशीय एवं समुद्री मछुआरे)
|
रु.3,000/-प्रति मछुआरा/वर्ष |
||||
2. |
मछुआरों के लिये घर
|
रु.1.20 लाख/मैदानों एवं रु.1.30 लाख/एन.ई. एवं उ.पू. के पहाड़ी राज्यों के लिये) |
||||
3. |
मछुआरों के लिये मूलभूत सुविधाएं: |
|
||||
3.1 |
पीने के पानी की सुविधा (ट्यूब-वेल) |
रु.0.50 लाख/मैदानों एवं रु.0.60 लाख/ एन.ई. एवं उ.पू. के पहाड़ी राज्यों के लिये) |
||||
3.2 |
सामुदायिक हॉल का निर्माण, सफाई, विद्युतीकरण |
रु.4.00 लाख/इकाई |
||||
4. |
क्रियाशील मछुआरों के लिये सामूहिक दुर्घटना बीमा (प्रीमियम वार्षानुवर्ष के आधार पर परिवर्तन के अधीन) |
रु.20.34 प्रति मछुआरा/वर्ष |
||||
5. |
फिस्कोफेड को अनुदान – सहायता |
रु.50.00 लाख/वर्ष |
||||
III. अंतर्देशीय मात्स्यिकी तथा जल-कृषि का विकास |
||||||
1. |
मीठे पानी/खारे पानी की जल-कृषि का विकास |
|||||
1.1
|
नये तालाबों/टैंकों का निर्माण |
रु.7.00 लाख/हे. |
||||
1.2 |
विद्यमान तालाबों/टैंकों का पुनरुद्धार |
रु.3.50 लाख/हे. |
||||
1.3 |
मनरेगा के तालाबों तथा टैंकों का पुनरुद्धार |
रु.3.50 लाख/हे. |
||||
1.4 |
मत्स्य-कृषि के लिये शहरी/अर्द्ध-शहरी/ग्रामीण झीलों/टैंकों का कायाकल्प |
रु.3.50 लाख/हे. |
||||
1.5 मीठे पानी की मत्स्य-कृषि तथा खारे पानी की मत्स्य/श्रिंप की कृषि के लिये इनपुट की लागत* |
||||||
1.5.1 |
(क) मीठे पानी की मत्स्य-कृषि |
रु.1.50 लाख/हे. |
||||
|
(ख)मीठे पानी की झींगा मछली/ट्राउट की कृषि |
रु.2.50 लाख/हे. |
||||
1.5.2 |
(क) खारे पानी की पंखवाली मछली की कृषि |
रु.2.00 लाख/हे. |
||||
|
(ख) श्रिंप की कृषि-एल.वेन्नामई / पी.मोनोडॉन |
रु.3.00 लाख/हे. |
||||
1.6 |
भारतीय मेजर कार्पो तथा अन्य कृषि योग्य पंख वाली मछली के लिये मत्स्य- बीज की हैचरियों की स्थापना- 10 मिलियन मछली के बच्चे/प्रति वर्ष |
रु.25.00 लाख/इकाई
|
||||
1.7 |
मीठे पानी/खारी पानी की झींगा मछलियों की हैचरियों की स्थापना-5 मिलियन लार्वोत्तर/वर्ष |
रु.50.00 लाख/इकाई
|
||||
1.8 |
जल-कृषि के लिये सौर-ऊर्जा से समर्थित प्रणाली |
रु.15.00 लाख/इकाई |
||||
2. शीतल जल की मात्स्यिकी तथा जल-कृषि |
||||||
2.1 |
स्थायी कृषि करने की इकाईयों तथा धावनपथों का निर्माण-न्यूनतम आयतन- 50 एम |
रु.2.00 लाख/इकाई
|
||||
2.2 |
मिट्टी की इकाईयों में बहते हुए शीतल जल की मछली की कृषि-न्यूनतम आयतन- 100 एम |
रु.1.00 लाख/इकाई
|
||||
3. रुके हुए पानी के क्षेत्रों का विकास |
||||||
3.1 |
रुके हुए पानी के क्षेत्रों का विकास |
रु.5.00 लाख/हे. |
||||
3.2 |
इनपुट की लागत' (क) पंखवाली मछली की कृषि |
रु.1.50 लाख/हे. |
||||
|
(ख) मीठे पानी की झींगा मछली/ट्राउट की कृषि |
रु.2.50 लाख/हे |
||||
4. जल-कृषि के लिये अंतर्देशीय/खारे/नमकीन पानी का उत्पादक उपयोग |
||||||
4.1 |
नये तालाबों/टैंकों का निर्माण |
रु.7.00 लाख/हे. |
||||
4.2 |
इनपुट की लागत* (क) पंखवाली मछली की कृषि |
रु.1.50 लाख/हे. |
||||
|
(ख) मीठे पानी की झींगा मछली/ट्राउट की कृषि |
रु.2.50 लाख/हे. |
||||
5. अंतर्देशीय आखेट की मात्स्यिकी (गाँवों के तालाब, टैंक, इत्यादि) |
||||||
|
||||||
5.1 |
मछलियों के बीज के पालन की इकाईयाँ |
रु.6.00 लाख/हे. |
||||
5.2 |
इनपुट की लागत* (क) पंखवाली मछली की कृषि |
रु.1.50 लाख/हे. |
||||
|
(ख) मीठे पानी की झींगा मछली/ट्राउट की कृषि |
रु.2.50 लाख/हे. |
||||
5.3 |
नाव एवं गीयर इकाई (मछलियों के मारने के जाल, मछली एवं वर्फ रखने वाली पेटियों को शामिल करते हुए समुचित आकारों की नावें) |
रु.1.00 लाख/इकाई
|
||||
5.4 |
मछलियों की उतराई के केंद्रों का निर्माण (जमीन पर उतारना एवं मछलियों के फैलाने के चबूतरे, नीलामी करने के चबूतरे/हॉल, जाल मरम्मत करने वाले शेड इत्यादि) |
रु.4.00 लाख/उतराई का केंद्र |
||||
5.5 |
नदी-तट की मात्स्यिकी का संरक्षण तथा जागरुकता कार्यक्रम |
रु.4.00 लाख/वर्ष
|
||||
6. जलाशयों का एकीकृत विकास |
||||||
6.1 |
जलाशयों का एकीकृत विकास |
रु.2 करोड़/परियोजना |
||||
7. मत्स्य-भोजन के मिलों/संयंत्रों की स्थापना |
||||||
7.1 |
भोजन के छोटे मिल (1-5 किंटल/दिन का क्षमता) |
रु.10.00 लाख/इकाई |
||||
7.2 |
बनाई गई भोजन की टिकियों के बड़े संयंत्र (न्यूनतम 10 टन/घंटा या अधिक की क्षमता) |
रु.2 करोड़/इकाई की सीमा के साथ वास्तविकता के अनुसार |
||||
8. जलाशयों तथा खुले जल के अन्य निकायों में पिंजडों/पेनों की स्थापना |
||||||
8.1 |
जलाशयों तथा खुले जल के अन्य निकायों में इनपुट के साथ पिंजड़े/पेन |
रु.3.00 लाख/केज |
||||
9. पुन:-परिसंचरणीय जल-कृषि की प्रणालियाँ (आर.ए.एस.) |
||||||
9.1 |
कम लागतवाली पुन:-परिसंचरणीय जल-कृषि की प्रणालियाँ (आर.ए.एस.): सीमेंट के 5 x 5 x 4 मी. के टैंक (100 मी प्रत्येक), प्रति टैंक 2 टन मछली की न्यूनतम उत्पादन की क्षमता |
रु.15.00 लाख/इकाई
|
||||
9.2 |
मध्यम आकार की पुन:-परिसंचरणीय जल-कृषि की प्रणाली (आर.ए.एस.): 7.65 x 7.65 x 1.5 मी. (प्रत्येक 90 मी) के सीमेंट के न्यूनतम 8 टैंक, प्रति टैंक 5 टन मछली की न्यूनतम उत्पादन की क्षमता |
रु.50.00 लाख/8 टैंकों की इकाई
|
||||
10. बीलों/दलदलों में मत्स्य-अंगुलिकाओं का भंडारण किया जाना |
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10.1 |
दलदलों में आई.एम.सी. की अंगुलिकाओं का भंडारण किया जाना 2000 संख्या प्रति हेक्टेयर की दर से |
रु.2.50/अंगुलिकाएं |
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11. मोबाईल तथा इंटरनेट पर किसानों के लिये परामर्श सेवाओं के लिये पोर्टल का सृजन |
||||||
11.1 |
ई-एप्लीकेशन के माध्यम से मत्स्य-पालकों के लिये परामर्शी सेवाओं का विस्तार करने के लिये पोर्टल का सृजन (एन.आई.सी., एन.आई.सी.एस.आई., केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (सी.पी.एस.यू.) इत्यादि जैसे केंद्रीय सरकार के संस्थानों/अभिकरणों/ निगमों के द्वारा) |
लागत की वास्तविकता लागत के अनुसार
|
||||
12. |
दोनों-समुद्रों तथा अंतर्देशीय मात्स्यिकी से संबंधित क्रिया-कलापों में मत्स्य-पालकों तथा अन्य शेयर-होल्डरों को प्रशिक्षण, कौशल विकास तथा क्षमता का निर्माण (एक सीमा के साथ वास्तविक लागत का 100%) |
|
||||
12.1 |
महंगाई भत्ता (डी.ए.) |
रु.500/- प्रति प्रशिक्षणार्थी/दिन |
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12.2 |
यात्रा भत्ता (टी.ए.)
|
वास्तविक आने जाने का किराया दूसरे दर्जे के रेल किराये की सीमा तक प्रतिबंधित |
||||
12.3 |
आवास
|
वास्तविक रु.600/- प्रति प्रशिक्षणार्थी /दिन की सीमा के साथ |
||||
12.4 |
प्रशिक्षण सामग्रियों का विवरण (रु.200/- प्रति प्रशिक्षणार्थी/कार्यक्रम)
|
वास्तविक न्यूनतम 50 प्रशिक्षणार्थियों के एक दल के लिये रु.10,000/- की सीमा तक |
||||
12.5 |
सहभागियों/ प्रशिक्षणार्थियों के लिये भोजन, चाय, हल्की फुल्की चीजें तथा नाश्ता (रु.300/- प्रति प्रशिक्षणार्थी/दिन)
|
वास्तविक न्यूनतम 50 प्रशिक्षणार्थियों के एक दल के लिये रु.15,000/- की सीमा तक |
||||
12.6
|
प्रदर्शन/स्थानीय क्षेत्र का दौरा (रु.200/-प्रति प्रशिक्षणार्थी प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम) |
वास्तविक न्यूनतम 50 प्रशिक्षणार्थियों के एक दल के लिये रु.10,000/- की सीमा तक |
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12.7 |
स्टेशनरी तथा अन्य अप्रत्याशित मदें (रु.100/- प्रति प्रशिक्षणार्थी प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम) |
वास्तविक, न्यूनतम 50 प्रशिक्षणार्थियों के एक दल के लिये रु.5,000/- प्रति प्रशिक्षण कार्यक्रम की सीमा तक |
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IV. |
राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड तथा उसके क्रिया-कलाप |
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||||
1. ब्रूड बैंक के विकास को शामिल करते हुए मत्स्य-बीज का उत्पादन (राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय) |
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1.1 |
हैचरियाँ |
मछलियों की हैचरियों की स्थापनाएं अंतर्देशीय घटक में शामिल हैं। क्षेत्र की आवश्यकताओं तथा विस्तृत रूप से निधि प्रदान करने की पद्धतियों को ध्यान में रखकर, एन.एफ.डी.बी., डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से अपेक्षित किन्हीं अतिरिक्त हैचरियों को जोड़ेगा। |
||||
1.2 |
मीठे पानी / खारे पानी की मछली/ श्रिंप/ ट्राउट के ब्रूड बैंकों की स्थापना (5 हे. क्षेत्रफल) |
रु.500.00 लाख/प्रति बूड बैंक की सीमा तक, वास्तविक लागत के अनुसार |
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2. |
भोजन के मिलों की स्थापना को शामिल करते हुए मत्स्य-भोजन
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यह अंतर्देशीय घटक में शामिल है। क्षेत्र की आवश्यकताओं तथा विस्तृत रूप से निधि प्रदान करने की पद्धतियों को ध्यान में रखकर, एन.एफ. डी.बी., डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से अपेक्षित किन्हीं अतिरिक्त मदों को जोड़ेगा। |
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3. |
फसलोत्तर, मूल्यवर्धन, बुनियादी ढाँचा तथा विपणन का विकास
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यह समुद्री घटक में शामिल है। क्षेत्र की आवश्यकताओं तथा विस्तृत रूप से निधि प्रदान करने की पद्धतियों को ध्यान में रखकर, एन.एफ. डी.बी., डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से अपेक्षित किन्हीं अतिरिक्त मदों को जोड़ेगा। |
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4. शीत-श्रृंखला का विकास |
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4.1 |
मात्स्यिकी के शीत-श्रृंखला के कुछ मद जैसे वर्फ के संयंत्र शीत भंडारण, मत्स्य-विपणन की सुविधाएं, समुद्री घटक के अंतर्गत शामिल की गई हैं। क्षेत्र की आवश्यकताओं तथा विस्तृत रूप से निधि प्रदान करने की पद्धतियों को ध्यान में रखकर, एन.एफ. डी.बी., डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से अपेक्षित किन्हीं अन्य मदों को जोड़ेगा। |
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4.2 |
मछलियों के बच्चों से लेकर फ्राई पेन तक जैसे- पूर्व में प्रक्रिया अपनाना, प्रक्रिया अपनाना, परिवहन (कुसंवाहक तथा प्रशीतित वाहन) फुटकर की दुकानें, मछलियों के सचल बाजार चबूतरे, इत्यादि क्रिया-कलापों को शामिल करते हुए एकीकृत शीत-श्रृंखला का विकास |
रु.500 लाख प्रति परियोजना की इकाई की सीमा तक वास्तविक लागत के अनुसार |
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5 |
अंतर्देशीय मात्स्यिकी का विकास |
यह अंतर्देशीय घटक में शामिल है। क्षेत्र की आवश्यकताओं तथा विस्तृत रूप से निधि प्रदान करने की पद्धतियों को ध्यान में रखकर, एन.एफ. डी.बी., डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से अपेक्षित किन्हीं अन्य अतिरिक्त मदों को जोड़ेगा। |
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6 |
लघु पैमाने की मात्स्यिकी का प्रोत्साहन |
यह समुद्री घटक में शामिल है। क्षेत्र की आवश्यकताओं तथा विस्तृत रूप से निधि प्रदान करने की पद्धतियों को ध्यान में रखकर, एन.एफ.डी.बी.,डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से अपेक्षित किन्हीं अन्य मदों को जोड़ेगा। |
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7 |
वैकल्पिक आजीविका का प्राविधान
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यह समुद्री घटक में शामिल है। क्षेत्र की आवश्यकताओं तथा विस्तृत रूप से निधि प्रदान करने की पद्धतियों को ध्यान में रखकर, एन.एफ.डी.बी., डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से अपेक्षित किन्हीं अन्य मदों को जोड़ेगा। |
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8 |
मात्स्यिकी के क्षेत्र में शेयर होल्डरों के कौशल का स्तरोन्नयन |
यह अंतर्देशीय घटक में शामिल है। क्षेत्र की आवश्यकताओं तथा विस्तृत रूप से निधि प्रदान करने की पद्धतियों को ध्यान में रखकर, एन.एफ.डी.बी., डी.ए.डी.एफ. के अनुमोदन से अपेक्षित किन्हीं अन्य मदों को जोड़ेगा। |
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आर्थिक समीक्षा 2014-15 के अनुसार वर्ष 2013-14 में 95.8 लाख टन मछली का उत्पादन कर आज भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक राष्ट्र बन गया है। केंद्र सरकार ने मछली और मछली उत्पादों से निर्यात आय को 2014-15 के Rs 33,441 करोड़ से बढाकर अगले 5 सालों में Rs. 1,00,000 करोड़ करने का लक्ष्य रखा है।
भारत में नीली क्रांति के दौरान एक्वाकल्चर का विकास हुआ जिसके कारण मछली पालन, मछली प्रजनन, मछली विपणन और मछली निर्यात में बहुत अधिक सुधार हुआ है। नीली क्रांति के कारण भारत में झींगा मछली के उत्पादन में बहुत बृद्धि हुई है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में झींगा का उत्पादन बहुत ही व्यापक स्तर पर होता है इसी कारण आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले को भारत की झींगा मछली की राजधानी कहा जाता है।
मछली उत्पादन से सम्बन्षित कुछ रोचक आंकड़े इस प्रकार हैं:
1. चीन दुनिया का सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है इसके बाद भारत का नंबर आता है। चीन से 50 विभिन्न प्रकार की मछलियों का उत्पादन किया जाता है ।
2. ताजे जल की मछली के उत्पादन में भी चीन का स्थान प्रथम और भारत का दूसरा है ।
3. भारत से समुद्री उत्पादों का सबसे अधिक निर्यात अमेरिका (26%) को किया जाता है इसके बाद आसियान देशों (25%) और तीसरे स्थान पर यूरोपियन यूनियन (20%) का नंबर आता है।
4. देश में कुल मछली उत्पादन में अग्रणी राज्य इस प्रकार हैं: पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, केरल एवं तमिलनाडु।
5. देश में सागरीय मछली उत्पादन में अग्रणी राज्य इस प्रकार हैं: केरल, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश।
6. आन्तरिक क्षेत्र में मछली उत्पादक बड़े उत्पादक राज्य इस प्रकार हैं:पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, केरल एवं तमिलनाडु।
7. भारत का कुल मछली उत्पादन इस प्रकार है
I. अंतर्देशीय मछली उत्पादन : 6.23 मिलियन टन
II. समुद्री मछली उत्पादन : 3.35 मिलियन टन
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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