भारत के हिमाचल प्रदेश में ट्राउट की अधिकता को देखते हुए ज़ोन दो और तीन में अत्यधिक बहुमूल्य मछली "रेनबो ट्राउट" की पैदावार के लिए विशाल क्षमता का निर्माण हुआ है। इन दो क्षेत्रों के तहत कृषि के लिए मौसमी परिस्थितियां शीतजलीय कृषि के लिए बेहद अनुकूल हैं। हाल ही में मिले संकेत इंगित करते हैं कि ट्राउट कम ऊंचाई पर 1000 एमएसएल तक पैदा की जा सकती है, बशर्ते जल की अधिकतम गुणवत्ता और मात्रा सुनिश्चित की जाए।
ट्राउट की पैदावार के लिए इस तरह का स्थान चुनना चाहिए जहां नदी, झरने जैसे बारहमासी स्रोत के माध्यम से उचित गुणवत्ता और मात्रा में पानी उपलब्ध हो।
ट्राउट मछली की पैदावार के लिए सीमेंट के पुख्ता तालाब/ रेस वे की आवश्यकता होती है। आयताकार तालाब गोल कुंड से बेहतर होते हैं। एक ट्राउट रेस वे का किफायती आकार 12-15 एम x 2-3 एमएस x1.2 -0.5 एम होना चाहिए जिसमें पानी की आवक और अतिप्रवाह एक तारजाल स्क्रू से कसा होना चाहिए ताकि पैदा की गई प्रजाति के निकास को रोका जा सके। पैदावार की उचित सुविधा तथा समय-समय पर टैंक की सफाई की सुविधा के लिए तालाब के पेंदे में एक ड्रेन पाइप होनी चाहिए|
ट्राउट के तालाब में पानी की आपूर्ति एक फिल्टर/ अवसादन टैंक के ज़रिए होनी चाहिए। इस क्षेत्र में विशेष रूप से मानसून के मौसम में गाद की बहुत समस्या होती है जब पानी मटमैला होता है, जो ट्राउट की पैदावार के लिए अच्छा नहीं है। एक ट्राउट फार्म के लिए पानी की मात्रा भंडारण के घनत्व, मछली के आकार के साथ ही पानी के तापमान से संबंधित है। इसलिए, यह आवश्यक है कि पानी का प्रवाह बहुत ध्यान से नियामित किया जाए। उदाहरण के लिए, 30,000 फ्राइज़ के लिए 15 लीटर/ मिनट पानी चाहिए, 250 ग्राम से कम की मछली के लिए 10-12 डिग्री सेंटीग्रेड पर 0,5 लीटर/किग्रा/मिनट प्रवाह की आवश्यकता है। उपर्युक्त किफायती आकार के पानी के टैंक में पानी का 15 डिग्री सेंटीग्रेड पर 5-50 ग्राम फिंगरलिंग्स के भंडारण के लिए 52 घन मीटर प्रति घंटा होना चाहिए। इस प्रकार, पानी का प्रवाह ऐसे नियंत्रित किया जाता है कि मछलियां एक जगह पर इकट्ठा नहीं हों और तेजी से चलें भी नहीं। पानी के तापमान में वृद्धि के साथ पानी का प्रवाह भी बढ़ाया जाना चाहिए।
ट्राउट की सफल पैदावार के लिए जिम्मेदार भौतिक-रासायनिक मानक हैं तापमान, घुलनशील ऑक्सीजन, पीएच और पारदर्शिता।
तापमान : मछली 5 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सीमा के भीतर अच्छी तरह से पनपती है, लेकिन ऐसा पाया गया है कि यह 25 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान बर्दाश्त कर सकती है और इसमें मछलियों की मौत नहीं होती। हालांकि, मछलियों की अधिकतम वृद्धि 10 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सीमा के भीतर पाई जाती है।
घुलनशील ऑक्सीजन : ऑक्सीजन सांद्रता की सीमा 5.8-9.5 मिलीग्राम/लीटर है। यदि ऑक्सीजन सांद्रता 5 मिलीग्राम/लीटर हो तो पानी का प्रवाह बढ़ाना उचित होगा।
पीएच : ट्राउट के लिए न्यूट्रल या थोड़ा क्षारीय पीएच सबसे अच्छा है। सहन करने योग्य पीएच के न्यूनतम और अधिकतम मान क्रमशः 4.5 और 9.2 हैं, हालांकि, यही पीएच रेंज इस मछली के विकास के लिए आदर्श है।
पारदर्शिता : एकदम पारदर्शी पानी की जरूरत होती है और उसमें ज़रा भी गन्दगी नहीं होनी चाहिए। गंदगी का जमाव 25 सेमी से अधिक नहीं होना चाहिए।
भंडारण का घनत्व : यह जल आपूर्ति, पानी के तापमान, गुणवत्ता/पानी और चारे के प्रकार के साथ संबंधित है। यदि पानी का तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर है, तो भंडारण का घनत्व सुझाए गए घनत्व से कम रखा जाना चाहिए। फ्राई फिंगरलिंग्स (5 से 50 ग्राम) का भंडार पानी की प्रति घन मीटर सतह पर 20 किलो मछली की दर से किया जाता है।
चारे की आपूर्ति : चारे की मात्रा मुख्य रूप से पानी के तापमान और मछली के आकार पर निर्भर करती है। यदि पानी का तापमान 18 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर है, तो सुझाए गए चारे को आवश्यकता का ठीक आधा कर देना चाहिए और 20 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर चारा देना बंद करना ही बेहतर होगा। आसमान में बादल छाने पर या मटमैला पानी होने पर भी चारा नहीं देना चाहिए।
चारा उपलब्ध कराने का एक व्यावहारिक फॉर्मूला नीचे दिया गया है:
घटक |
घटक की दर |
10 किलो चारा तैयार करने के लिए मात्रा ( किलो) |
मछली का भोजन |
50 |
5 |
सोयाफ्लेक |
10 |
1 |
मूंगफली का केक |
20 |
2 |
गेहूं का आटा |
10 |
1 |
अलसी का तेल |
9 |
0.9 |
सप्लेविट - एम् |
1 |
0.1 |
कॉलिन क्लोराइड |
0.1 |
0.01 |
फिंगरलिंग्स की बेहतर वृद्धि के लिए 4-6% की दर से चारा दिया जाना आवश्यक है, लेकिन चारे के नियम का पालन करने के लिए पानी के तापमान पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। 10-12 डिग्री सेंटीग्रेड पानी के तापमान की रेंज में 6% चारा देना आदर्श है, लेकिन जब यह 15 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ जाता है, तो चारे को 4% तक कम करना चाहिए और 19 डिग्री से अधिक पर आदर्श मात्रा सिर्फ 50% होनी चाहिए। प्रति माह आदर्श वृद्धि दर 80 ग्राम है।
250 ग्राम वजन पाने के बाद मछली निकाल लेने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस आकार के बाद विकास की गति धीमी हो जाती है और उसे पाल कर बढ़ाना फायदेमंद नहीं होता है।
ट्राउट की पैदावार में सफाई एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। समय-समय पर ट्राउट को या तो 10% फॉर्मेलिन या 4 पीपीएम पोटैशियम नाइट्रेट के घोल से साफ़ और कीटाणुरहित करना चाहिए। संक्रमित मछली को तुरंत टैंक से हटा दिया जाना चाहिए और यदि कोई रोग हो तो किसी मछली विशेषज्ञ से परामर्श लिया जाना चाहिए।
स्त्रोत
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में मिश्रत मछली पालन संस्कृति और उससे होने ...
इस लेख में किस प्रकार एक तालाब से एक गाँव ने अपनी ...
इस भाग में नालंदा जिले में मछली पालन से लाभ कमा रह...
इस भाग में एकीकृत चावल-चिंगट-पख मछली द्वारा परंपरा...