भारतीय किसान, उन्नत किस्म के बीज उपयुक्त उर्वरक, नियमित सिंचाई तथा पादप सुरक्षा के विभिन्न उपाय जैसे उत्पादन साधनों को वैज्ञानिक विधि से अपनाकर कृषि से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के अपने लक्ष्य में अब भी पूर्णतया सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसका एकमात्र कारण है कि वे उन्नतशील साधनों को अपनाने के साथ-साथ खरपतवारों के नियंत्रण पर पूर्ण ध्यान नहीं देते। यदि किसान को अपनी फसल से भरपूर उपज प्राप्त करनी है तो अपनी फसल के शत्रु खरपतवारों पर नियंत्रण पाने के महत्व को समझकर उनको नष्ट करना होगा। खरपतवारों की उपस्थिति फसल की उपज को 37 प्रतिशत तक कम करते हैं।
खरपतवारों की समस्या को ध्यान में रखते हुए समन्वित खरपतवार नियंत्रण की योजना गेहूं, धान एवं गन्ना में 1952 में शुरू की गई थी। यह योजना 11 राज्यों में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा शुरू की गई है। सन 1978 में स्थापित यह खरपतवार अनुसंधान कार्यक्रम अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार नियंत्रण के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा 22 स्थानों में पूरे देश में सफलता पूर्वक चलाया जा रहा है।
यह सत्य है कि खरपतवारों की उपस्थिति फसल की उपज को कम करने में सहायक है। किसान जो अपनी पूर्ण शक्ति व साधन फसल की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए लगाता है। ये अनैच्छिक पौधे इस उद्देश्य को पूरा नहीं होने देते। खरपतवार फसल के पोषक, तत्व, नमी, प्रकाश, स्थान आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करके फसल की वृद्धि, उपज एवं गुणों में कमी कर देते है। खरपतवारों से हुई हानि किसी अन्य कारणों से जैसे कीड़े, मकोड़े, रोग, व्याधि आदि से हुई हानि की अपेक्षा अधिक होती है। एक अनुमान के आधार पर हमारे देश में विभिन्न व्याधियों से प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख 40 हजार करोड़ रूपये की हानि होती है जिसका लगभग एक तिहाई से ज्यादा खरपतवारों द्वारा होता है। सारणी 1 में विभिन्न व्याधियों द्वारा कृषि में प्रतिवर्ष होने वाले नुकसान का ब्यौरा दिया गया है।
आमतौर पर विभिन्न फसलों की पैदावार में खरपतवारों द्वारा 10 से 85 प्रतिशत तक की कमी आंकी गई है। लेकिन कभी-कभी यह कमी शत-प्रतिशत तक हो जाती है। खरपतवार फसलों के लिए भूमि में निहित पोषक तत्व एवं जमी का एक बड़ा हिस्सा शोषित कर लेते हैं तथा साथ ही साथ फसल को आवश्यक प्रकाश एवं स्थान से भी वंचित रखते है। फलस्वरूप पौधे की विकास गति धीमी पड़ जाती है एवं उत्पादन स्तर गिर जाता है। खरपतवारों द्वारा पोषक तत्वों का पलायन एवं पैदावार में कमी का विवरण क्रमश: (सारणी 2 एवं 3) में दिया गया है।
व्याधियाँ |
प्रतिवर्ष हानि |
|
करोड़ (रूपये) |
प्रतिशत |
|
खरपतवार |
51,800 |
37 |
कीट |
40,600 |
29 |
रोग एवं बीमारी |
30,500 |
22 |
अन्य व्याधि |
16,800 |
12 |
योग |
1,40,000 |
100 |
फसल |
नाइट्रोजन (किग्रा./हें.) |
फास्फोरस (किग्रा./हे.) |
पोटाश (किग्रा./हें.) |
धान |
20-37 |
5-14 |
17-48 |
गेहूँ |
20-90 |
2-13 |
28-54 |
मक्का |
23-59 |
6-10 |
16-32 |
ज्वार |
36-46 |
11-18 |
31-47 |
चना |
29-55 |
3-8 |
15-72 |
मटर |
61-72 |
7-14 |
21-105 |
मसूर |
39.0 |
5.0 |
21.0 |
मूंग |
80-132 |
17-20 |
80-130 |
अरहर |
28.0 |
24.0 |
14.0 |
मूंगफली |
15-39 |
5-9 |
21-24 |
सोयाबीन |
26-55 |
3-11 |
43-102 |
सरसों |
22.0 |
3.0 |
12.0 |
अलसी |
32.0 |
3.0 |
13.0 |
गन्ना |
35-162 |
24-44 |
135-242 |
किसी स्थान पर खरपतवारों की उपस्थिति वहां की जलवायु, भूमि, संरचना, भूमि में नमी की मात्रा, खेतों में बोई गई पिछली फसल आदि पर निर्भर करती है। इसलिए एक ही फसल में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार के खरपतवार पाये जाते हैं। विभिन्न फसलों में उगने वाले प्रमुख खरपतवारों का विवरण सारणी 4 में दिया गया है।
|
फसल |
खरपतवार प्रतिस्पर्धा का क्रांतिक समय (बुवाई के बाद दिन) |
उपज में कमी (प्रतिशत) |
(क) |
खाद्यान्न फसलें |
|
|
|
धान (सीधी बुवाई) |
15-15 |
47-86 |
|
धान (रोपाई) |
20-40 |
15-38 |
|
मक्का |
30-45 |
40-60 |
|
ज्वार |
30-45 |
06-40 |
|
बाजरा |
30-45 |
15-56 |
|
गेहूँ |
30-45 |
26-38 |
(ख) |
दलहनी फसलें |
|
|
|
अरहर |
15-60 |
20-40 |
|
मूंग |
15-30 |
30-50 |
|
उरद |
15-30 |
30-50 |
|
लोबिया |
15-30 |
30-50 |
|
चना |
30-60 |
15-26 |
|
मटर |
30-45 |
20-30 |
|
मसूर |
30-60 |
20-30 |
(ग) |
तिलहनी फसलें |
|
|
|
सोयाबीन |
15-45 |
40-60 |
|
मूंगफली |
40-60 |
40-50 |
|
सूरजमुखी |
30-45 |
33-50 |
|
अरण्डी |
30-60 |
30-50 |
|
कुसुम |
15-45 |
35-60 |
|
तिल |
15-45 |
17-41 |
|
सरसों |
15-40 |
15-30 |
(घ) |
अन्य फसलें |
|
|
|
गन्ना |
15-60 |
20-30 |
|
आलू |
20-40 |
|
|
कपास |
15-60 |
40-50 |
खरपतवार की रोकथाम में ध्यान देने योग्य बात यह है कि खरपतवारों का नियंत्रण सही समय पर करें। खरपतवारों की रोकथाम निम्नलिखित तरीकों से की जाती है।
इस विधि में वे सभी क्रियाएँ शामिल है जिनके द्वारा खेतों में खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है, जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर एवं कम्पोस्ट खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तयारी एवं बुवाई के प्रयोग में किये जाने वाले यंत्रों का प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से साफ़-सफाई इत्यादि।
खरपतवारों पर काबू पाने की यह एक सरल एवं प्रभावी विधि है। फसल की प्रारंभिक अवस्था में बुवाई के 15 से 45 दिन के मध्य फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखना जरूरी है। सामान्यत: दो निराई-गुड़ाई, पहली 20-25 व दूसरी 45 दिन बाद करने से खरपतवारों का नियंत्रण प्रभावी ढंग से होता है।
फसल |
प्रमुख खरपतवार |
गेहूँ |
बथुआ (चिनोपोडियम एलबम), हिरनखुरी (कानवोलवुलस अरवेन्सिस), कृष्णनील (एनागेलिस अरवेन्सिस), अकरी (विसिआ सटाइवा), गेहूँ का मामा (फेलेरिस माइनर) । |
रबी की दलहनी एवं तिलहनी फसलें |
प्याजी (एस्फोडिलस टेन्यूफोलियस), पोहली (कार्थेमस आकसीकेन्था), जंगली मटर (लेथाइरस सैटाइवा), बनसोया (फ्यूमेरिया पखीफ्लौरा), अकरी, बथुआ, हिरनखुरी आदि। |
धान |
सवां (इकाइनोक्लोआ कोलोना), कोदों (एल्युसिन इंडिका), कनकौआ (कोमेलिना बेन्धालेन्सिस), जंगली जूट (कारकोरस एक्यूटेंगुलस), मोथा (साइप्रस) । |
मक्का, ज्वार, बाजरा |
दूबघास (साइनोडॉन डेक्टीलान), गुम्मा (ल्यूकस अस्पेरा), मकोय (सोलोनम नाइग्रम), कनकौआ, जंगली जूट, सफेद मुर्ग, सवां, मोथा आदि। |
खरीफ की दलहनी एवं तिलहनी फसलें |
महकुआ (एजीरेटम कोनीज्वाइडस), हजारदाना (फाइलेन्थस निरुरी), दुद्धी (यूफोरबिया हिरटा) कनकौआ, सफेद मुर्ग, सवां, मोथा आदि। |
खरपतवारनाशी रसायन द्वारा भी खरपतवारों को सफलता पूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है। इससे प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भी बचत होती है। लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय सावधानी बरतनी पड़ती है। खरपतवार नियंत्रण में खरपतवारनाशी रसायनों के उपयोग में एक और विशेष लाभ है। हाथ निंदाई या डोरा चलाकर निंदाई, फसल की कुछ बाढ़ हो जाने पर की जाती है, और इन शस्य क्रियाओं में नीदा जड़ मूल से समाप्त होने के बजाय, उपर से टूट जाते हैं, जो बाद में फिर बाढ़ पकड़ लेते हैं। खरपतवारनाशी रसायनों में यह स्थिति नहीं बनती क्योंकि यह फसल बोने के पूर्व या बुवाई के बाद उपयोग किये जाते हैं। जिससे खरपतवार अंकुरण अवस्था में ही समाप्त हो जाते हैं अथवा बाद में नीदा रसायन के प्रभाव से पूर्णतया नष्ट हो जाते हैं। खरपतवारनाशी रसायनों का विस्तृत विवरण (सारणी 5) में दिया गया है।
फसल |
खरपतवारनाशी |
मात्रा (ग्राम/हें.) |
व्यापारिक मात्रा (ग्राम/हें.) |
प्रयोग का समय |
प्रयोग की विधि |
|
|
रसायनिक नाम |
व्यवसायिक नाम |
|
|
|
|
धान |
ब्यूटाकलोर |
मौचिटी, बीडकिल, टीअर, धानुक्लोर, विलक्लोर, ट्रेप इत्यादि |
1000-1500 |
2000-3000 20-25 किग्रा. (5% दानेदार) |
बोने के बाद अंकुरण के पूर्व |
दवा की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। |
|
पेंडीमेथिलिन |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटांप, पेनिडा, पेंडीहबे |
1000-1250 |
3000-4500 |
तदैव |
|
|
एनिलोफ़ॉस |
एरोजिन, एनिलोगार्ड, एनिलोधान, एनिलोस्फार, सूमो , |
300-400 |
1200 |
तदैव |
|
|
प्रेटिलाक्लोर |
सोफिट, रिफिट |
750-1000 |
1500 |
तदैव |
|
|
2, 4-डी |
2,4-डी, एग्रोडान-48, काम्बी, इर्विटाक्स, टेफासाइड, वीडमार |
750-1000 |
2000-3000 20-25 किग्रा. (4% दानेदार) |
रोपाई के 20-25 दिन बाद |
|
|
क्लोरीम्यूरॉन +मेट्सल्फूरॉन |
आलमिक्स |
4 |
20 (कंपनी मिश्रण) |
रोपाई के 20-25 दिन बाद |
|
|
फिनाक्साप्राप इथाईल |
व्हिप सुपर |
70 |
700-750 |
रोपाई के 25-30 दिन बाद |
|
|
पाइराजोसल्फयूरॉन |
साथी |
25 |
200 |
रोपाई के 15 दिन बाद |
|
मक्का, ज्वार, बाजरा |
एट्राजीन |
एट्राटाफ, धानुजीन, सोलारो |
1000 |
2000 |
बुवाई के तुरंत बाद |
|
|
2,4-डी |
2, 4-डी, एग्रोडान-48, काम्बी, इर्विटाक्स, टेफासाइड, वीडमार |
750 |
|
बुवाई के 25-30 दिन बाद |
|
|
मेट्रीब्यूजिन |
सेन्कार 70 डब्लू.पी. |
175-210 |
250-300 |
बुवाई के 30-35 दिन बाद |
आइसोप्रोट्यूरान/ प्रतिरोधी फेलेरिस माइनर के नियंत्रण के लिए प्रभावशाली साथ ही साथ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए भी उपयुक्त। प्रयोग के समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए अन्यथा फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। |
|
मेट्सल्फ्युरान मिथाइल |
अलग्रिप 20 डब्लू.पी. |
4-6 |
20-30 |
बुवाई के 25-30 दिन बाद |
चौड़ी पत्ती एवं मोथा कुल के खरपतवारों की रोकथाम के लिए प्रयोग करें। घास कुल पर प्रभावी नियंत्रण नहीं होता है। |
|
सल्फोसल्फ्युरान |
लीडर 75 डब्लू.पी. |
25 |
33 |
|
आइसोप्रोटयूरान प्रतिरोधी फेलेरिस माइनर के लिए कारगर। घास कुल के विशेष रूप से जंगली जई के लिए अत्यधिक प्रभावशाली। कुछ हद तक चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को भी नियंत्रित करता है, अंतरवर्ती या मिलवा फसलों के लिए उपयुक्त नहीं। |
दलहनी एवं तिलहनी फसलें |
पेंडीमेथालीन |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटाप, पेनिडा, पेंडीहर्ब |
1000 |
3300 |
बुवाई के तुरंत बाद |
|
|
एलाक्लोर |
लासो |
1500-2000 |
3000-4000 |
तदैव |
|
|
फ्लूक्लोरेलिन |
बासलिन |
1000-1500 |
2000-3000 |
बुवाई के पूर्व भूमि में छिड़काव अच्छी तरह मिला दें |
|
|
ट्राइफ्लूरेलिन |
टिपटाप, ट्रेफलान, ट्राईनेत्र, ट्राईलेक्स, ट्रोफन |
1000-1500 |
2000-3000 |
तदैव |
|
कपास |
डायूरान |
एग्रोमेक्स, कारमेक्स, क्लास, टू |
750-1000 |
900-1150 |
तदैव |
|
आलू |
मेट्रीब्यूजिन |
सेन्कार, वैरियर, लेक्सोन, टाटा मेट्री |
500 |
750 |
तदैव |
|
सोयाबीन |
एलाक्लोर |
लासो |
1500-2000 |
3000-4000 |
बुवाई के 3 दिन के अंदर |
|
|
क्लोरीम्यूरॉन |
क्लोबेन |
8-12 |
40-60 |
बुवाई के 15-20 दिन बाद |
|
|
फिनाक्साप्राप |
व्हिप सुपर |
80-100 |
800-1000 |
बुवाई से 20-25 दिन बाद |
|
|
इमेजेथापायर |
परस्यूट |
100 |
1000 |
बुवाई के 15-20 दिन बाद |
|
|
मेटलाक्लोर |
डुअल |
1000-1500 |
2000-3000 |
बुवाई के 3 दिन के अंदर |
|
|
पेंडीमेथिलीन |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटाप, पेनिडा, पेंडीहर्ब |
1000-1250 |
3330-4160 |
बुवाई से पहले या बुवाई के 3 दिन के अंदर |
|
|
क्यूजालोफॉप इथाईल |
टरगा सुपर |
40-50 |
800-1000 |
बुवाई के 15-20 दिन बाद |
|
गेहूँ |
2, 4-डी |
2,4-डी, एग्रोडान-48, काम्बी, इर्विटाक्स, टेफासाइड, वीडमार |
500-1000 |
- |
बुवाई के 30-35 दिन बाद |
|
|
आइसोप्रोटयुरॉन |
एरीलान, धानुलान, आइसोगार्ड, आइसोलान, टाऊरस, टोल्कान |
750-1000 |
1000-1250 (75 WP) 1500-2000 (50 WP) |
तदैव |
|
|
पेंडीमेथालीन |
स्टाम्प, पेंडीगोल्ड, पेंडीलीन, धानुटाप, पेनिडा, पेंडीहर्ब |
1000 |
3300 |
बुवाई के तुरंत बाद |
|
|
क्लोडिनाफ़ॉप प्रोपार्जिल |
टापिक 15 डब्लू पी. |
60 |
400 |
बुवाई के 30-35 दिन बाद |
आइसोप्रोटयुरान प्रतिरोधी फेलेरिस माइनर के लिए कारगर |
|
फेनाक्साप्रॉप(पूमा सुपर 10 ई.सी.) |
प्यूमा सुपर |
100-120 |
1000-1200 |
बुवाई के 30-35 दिन बाद |
घास कुल विशेष रूप से जंगली जई के लिए अत्यधिक प्रभावशाली। गेहूँ के साथ मिलवा फसल में भी उपयुक्त। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रकोप होने पर 2, 4-डी, नामक रसायन का प्रयोग एक सप्ताह बाद करें। सुबह जब पत्तियों पर ओस की बूंदें हो तो छिड़काव न करें। |
स्त्रोत: कृषि विभाग, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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