यह फली छेदक कीट शीघ्र पकने वाली प्रजातियों का प्रमुख हानिकारक कीट है। फसल में पुष्पिकरण के दौरान लगातार वारिश वाले क्षेत्रों में उच्च आर्द्रता के वजह से ये कीट चिंता का विषय बनता जा रहा है। ये कीट मध्य एवं दक्षिण भारत में अरहर की जल्दी पकने वाली (130 – 140 अवधि), चौड़ी पत्तियां और संक्षिप्त पुष्पक्रम किस्मों के लिए अतिसंवेदनशील होते है। इनकी सूंडियाँ पुष्प कलिकाओं तथा पुष्पों को एक साथ लपेटकर उनके अंदर बैठकर फली के दोनों व पुष्पों को खाते है। ग्रसित फूल रंगहीन होकर गिर जाते है। सुंडी हल्के पीले या पीले – सफेद रंग के साथ गहरे रंग के साथ गहरे भूरे रंग या काले सिर और 18 मि. ली. लंबे होते है और पूरे शरीर के ऊपर गहरा धब्बे होते है। इनकी कोषक के रूप में परिवतर्न मिट्टी के अंदर सुरंग में होते हैं।
वयस्क कीटों का अगला पंख उजले रंग के तथा भूरे रंग गहरे धब्बे होते है। पिछला पंख भी उजले रंग के साथ भूरे रंग के चिन्ह होते है। वयस्क कीट अंडे सेने के दौरान तीन सप्ताह तक कोमल पत्रों, फूल, कलियाँ को खाते रहते है। रात के दौरान फली से निकल कर मिट्टी में प्रवेश कर जाते है। अपनी कोषक बनाने की प्रक्रिया फसली के सीलकन कोकून या कभी – कभी मिट्टी में होती है। सूंडी और कोषक के छिपने की आदत के वजह से इनका प्रबंधन रासायनिक या अन्य पारंपरिक तरीकों से मुश्किल होता है।
ये कीट देश के विभिन्न कृषि प्रथाओं वाले सभी अरहर उत्पादक क्षेत्रों में देखा गया है। इन कीटों का प्रकोप अधिकांशत: सितंबर से अधिकतम मध्य अक्टूबर तक होता है। दिसंबर के दौरान इनकी विस्तृत फलीदार पोषक रेंज होने की वजह दूसरी अधिकतम प्रकोप दिसंबर तक होती है और ये अरहर की विनाशकारी कीट होता जा रहा है। ये कीट पहले लोबिया, मूंग, उड़द, सोयाबीन, मूंगफली, मटर, जलकूंभी सेम, राजमा और लीमाबीन में देखा गया है। इनकी सुंडी के पालन के लिए लोबिया अरहर और जलकुम्भी सेम को प्रमुख प्राकृतिक पोषक के रूप में पाया गया है। मादा कीट अंडे देने के लिए अरहर और लोबिया फसल को पसंद करते है।
सूंडियां पौधों को 12.4 से 71.2 प्रतिशत क्षति पहुंचाते है परंतु इनकी क्षति प्रति पौधे सूंडियाँ की संख्या कितनी है इन बातों पर निर्भर करती है। एक अनुमान के अनुसार ये कीट 20 से 60 प्रतिशत तक उपज में क्षति पहुँचाती है। पौधों की पुष्प कलिकाओं के विकास की अवस्था में युवा सूंडियाँ अधिक मात्रा में क्षति पहुँचाते है क्योंकि अंडे देने के लिए ये पौधों की सबसे सही अवस्था है। इसके फलस्वरूप फूलों और फलों की विकसित होने की संभावना कम हो जाती है। युवा सुंडी पत्तियों, कलियों तथा पुष्पों को एक साथ लपेट कर उनके अंदर बैठकर फली के दानों व पुष्पों को खाते है जिसके फलस्वरूप दाने एवं पुष्प सूख जाते है। इनकी इस आदत के कारण सामान्यत: सूंडियाँ प्राकृतिक दुश्मनों के प्रकोप एवं पारंपारिक कीटनाशकों के छिड़काव से बच जाते है। ये फूलों के प्रजनन अंगों को खाकर नष्ट कर देते है। इसके द्वारा ग्रसित फली पर छोटे – छोटे प्रवेश छिद्र हो जाते है और सूंडियाँ के पूर्ण विकास से पहले ये एक फूल से दुसरे फूल पर जाकर 4-6 फूलों का उपभोग करते है कीट के 3 – 5 इंस्टर फलियों के अंदर विकासशील दानों का उपभोग करने में सक्षम होते है।
भूमि में छुपे कोषकों को नष्ट करने के लिए गर्मी के महीनों में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए। फसलों को समय पर बुआई करनी चाहिए। इससे फली छेदक से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। लाभदायक कीटों के संरक्षण के लिए अंत: फसल लगानी चाहिए एवं संतुलित व संस्तुत मात्रा में खाद व पानी का उपयोग करना चाहिए। कुछ अंत: फसल के उदाहरण है – ज्वार, मूंग, उड़द, सोयाबीन, बाजरा और सूरजमुखी इत्यादि। अरहर का ज्वार और बाजरा के साथ अंत: फसल ज्यादा लाभदायक सिद्ध हुआ है। यह देखा गया है कि अरहर की एकल फसल के बजाय अंत: फसल के साथ लगाने से क्षति तीन गुना कम होती है।
अरहर + मूंग/उड़द (1:2) |
अरहर + कपास (2:1) |
अरहर + ज्वार (2:1) |
अरहर + बाजरा (4:1) |
अरहर + सोयाबीन (2:4) |
अरहर + सूरजमुखी (2:4) |
प्रदेशीय संस्तुत टी एस 3 – आर, डब्ल्यू आर पी – 1, आई सी पी एल - 33688 और मारूति इन कीटों की प्रतिरोधी जातियां है। कुछ नई अरहर की किस्में जैसे बी. डी. एन. – 708 और 711, टी एस 3 – आर, बी एस एम आर – 853, जे के एम – 7 और 189, टी जे टी – 501, सी ओ – 6, डब्ल्यू आर पी – 1, डब्ल्यू आर जी – 65 और 27, राजीव लोचन, बनास, जी टी – 101 और पी ए – 291 चित्तीदार फले छेदक की समस्या को रोकने में बढ़ावा दे रहें है।
इन नाशीजीवों के संख्या की सही – सही जानकारी तथा उपयुक्त रोकथाम के लिए समय – समय पर फसल का निरीक्षण करना चाहिए। फेरोमोन जाल न होने से उनकी संख्या का निरीक्षण बुआई 60 दिनों से करना चाहिए। अरहर की पूरे खेतों में पांच स्थानों का चयन कर उन जगहों के पत्तियों या टहनियों का झुकाकर झिल्लीदार संरचनाओं से लेकर इन कीटों के कारण पुष्प कलिकाओं के जाले की संख्या के अनुसार क्षति का आकलन कर आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिए।
ज्वार और बाजरा के साथ अरहर की खेती करनी चाहिए इससे फली भेदक के कुछ प्राकृतिक शत्रु (मकड़ी) की जनसंख्या में वृद्धि होती है। कुछ परभक्षी और परजीवियों का विवरण दिया गया है। उदाहरण के लिए कुछ परजीवी और परभक्षी टेक्निड्स, ब्रेकोंनिड्स ईलोफिड्स, स्केलिओनिडस डरमैटेरंस मैन्टिड्स, काराबिड्सा, कॉसिनेलिड्स और एनिथेकॉरिड्स.
नीम 0.03 प्रतिशत नीम के तेल पर आधारित डब्ल्यू. एस. पी. नीम के बीज पाउडर, नीम के बीज कर्नेल (एन एस के ई) 5 प्रतिशत फली छेदक के खिलाफ प्रभावकारी पाए गये है तथा मित्र कीटों को बढ़ावा देता है। जैविक सूक्ष्मजीवों द्वारा प्राकृतिक शत्रुओं के साथ – साथ कृमि रोगजनकों के संरक्षण और जैविक नियंत्रण के उपायों को बढ़ावा मिल सकता है एवं कीटनाशी का उपयोग कम किया जा सकता है।
यदि इन कीटों के संख्या आर्थिक क्षति स्तर से उपर पहुँचने लगे तो रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग करनी चाहिए। कुछ कीटनाशक उदाहरण के लिए प्रोफिनोफास 50 इ. सी . या मिथोमैइल 40 एस. पी. या मोनोक्रोटोफास 36 एस. एल. का उपयोग सूंडियों को मारने में करनी चाहिए। डी.डी.वी.वी./0.5 मिली/ली. मिश्रण कर धूम्रण करनी चाहिए इससे जाल में छुपे सुंडी बाहर आ जाते और मर जाते है।
भारत सरकार के द्वारा निर्धारित कुछ स्वीकृत कीटनाशक और उनकी खुराक नीचे दिए गये है जिनका इस्तेमाल चित्तीदार फली छेदक के द्वारा होने वाली क्षति को रोकने में करनी चाहिए।
प्रोफ़ेनोफौस 50 ई. सी. + डी.डी.वी.पी. 76 ई. सी. |
20 मि. ली. + 0.51 मि. ली./ली. |
मिथोमाइल 40 एस. पी. + डी.डी.वी.पी. 76 ई. सी. |
0.6 मि. ली. + 0.5 मि. ली./ली. |
थायोंडिकार्ब 70 डब्ल्यू. पी + डी.डी.वी.पी. 76 ई. सी. |
0.6 मि. ली. + 0.5 मि. ली./ली. |
नीम के बीज कर्नेल (एन.एस.के. ई.)+ डी.डी.वी.पी. 76 ई. सी. |
50 ग्रा. + 0.5 मि. ली./ली. |
स्त्रोत: राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...
इस पृष्ठ में 20वीं पशुधन गणना जिसमें देश के सभी रा...
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...
इस पृष्ठ में अगस्त माह के कृषि कार्य की जानकारी दी...