অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

बिहार में मसूर की खेती

परिचय

मसूर रबी में उगायी जाने वाली बिहार की बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है। इसकी खेती बिहार के सभी भूभागों में की जाती है। भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने में यह सहायक होती है। मसूर की फसल असिंचिंत क्षेत्रों के लिए अन्य रबी दलहनी फसलों की अपेक्षा अधिक उपयुक्त है।इसकी खेती हल्की, उपरी भूमि से लेकर धनहर क्षेत्रों के खेतों में की जा सकती है । टाल क्षेत्रों हेतु यह एक प्रमुख फसल है।

खेत की तैयारी

अगात खरीफ फसल एवं धान की कटनी के बाद खेत की अविलम्ब तैयारी जरूरी है । पहली जुताई मिट्‌टी पलटने वाली हल से व दूसरी जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा लगा देते है जिससे खेत समतल हो जायेगा।

बीज दर

छोटे दाने की प्रजाति के लिये 30-35 एवं बडे दाने के लिये 40-45 कि0ग्रा0/हे0 । पैरा फसल के रूप मे बुआई हेतु 50-60 कि0ग्रा0/हे0 ।

बीजोपचार

1.  बुआई के 24 घंटे पूर्व 2.5 ग्राम फफूँदनाशी दवा (जैसे डाईफोल्टान अथवा थीरम अथवा  कैप्टान) से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें ।

2.  कजरा पिल्लू से बचाव हेतु क्लोरपाइरीफॉस 20 र्इ्र.सी. कीटनाशी दवा का 8 मि.ली./कि0ग्रा0 बीज की दर से उपचार करना चाहिए।

3.  फफूँदनाशक एवं कीटनाशक दवा से उपचारित बीज को बुआई के ठीक पहले अनुशंसित राइजोबियम कल्चर एवं पी.एस.बी. से उपचारित कर बुआई करें ।

बोने की दूरी

पंक्ति से पंक्ति 25 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंमी. ।

अनुशंसित प्रभेद

उन्नत प्रभेद

बुआई का समय

परिपक्वता     अवधि

(दिन)

औसत उपज

(क्वि0/हे0)

अभ्युक्ति

बी. आर. 25

15 अक्टूबर-15 नवम्बर

110-120

14-15

पूरे   बिहार  के  लिये उपयुक्त

पी.एल. 406

25 अक्टूबर-25 नवम्बर

130-140

18-20

पूरे   बिहार  एवं  पैरा

फसल के लिये उपयुक्त

मल्लिका (के. 75)

15 अक्टूबर-15 नवम्बर

130-135

20-22

पूरा बिहार,      दाना मध्यम बड़ा

अरूण (पी.एल.

77-12)

15 अक्टूबर-15 नवम्बर

110-120

22-25

दाना मध्यम बड़ा

पी. एल. 639

25 अक्टूबर-15 नवम्बर

120-125

18-20

पूरा बिहार

एच. यू. एल. 57

25 अक्टूबर-15 नवम्बर

120-125

20-25

उकटा सहिष्णु

के. एल. एस. 218

25 अक्टूबर-15 नवम्बर

120-125

20-25

हरदा (रस्ट) एवं उकटा सहिष्णु

नरेन्द्र मसूर- 1

25 अक्टूबर-15 नवम्बर

120-125

20-25

हरदा (रस्ट) एवं उकटा सहिष्णु

उर्वरक प्रबंधन

20 कि0ग्रा0 नेत्रजन, 40-50 कि0ग्रा0 स्फूर (100 कि0ग्रा0 डी.ए.पी.)/हे0 । उर्वरकों की पूरी मात्रा बुआई के पूर्व अंतिम जुताई के समय एक समान रूप से खेत में मिला दें ।

निकाई गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबंधन

दो बार निकाई गुड़ाई करना आवश्यक है। प्रथम निकाई गुड़ाई बुआई के 25-30 दिनों बाद एवं दूसरी 45-50 दिनों बाद करें । रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिये फ्लूक्लोरोलिन

(वासालीन) 45 ई.सी. 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की अंतिम तैयारी के समय प्रयोग करें ।

सिंचाई

साधारणतयः दलहनी फसलों को कम जल की आवश्यकता होती है । नमी की कमी स्थिति में पहली सिंचाई बुआई के 45- दिनों के बाद तथा दूसरी सिंचाई फली बनने की अवस्था में करें ।

मिश्रित खेती

सरसों एवं तीसी के साथ मिश्रित खेती की जा सकती है ।

कटनी दौनी एवं भंडारण

फसल तैयार होने पर फलियाँ पीली पड़ जाती है तथा पौधा सूख जाता है । पौधों को काटकर धूप में सूखा लें एवं दौनी कर दाना अलग कर लें । दानों को सूखाकर ही भंडारित करें।

मसूर के प्रमुख कीट एवं रोग तथा प्रबंधन

कजरा कीट(एग्रोटीस)

कट वर्म (कजरा कीट) कभी-कभी मसूर उत्पादक क्षेत्रों में कटवर्म समूह (एग्रोटीस स्पी0) के कीटों का आक्रमण हो जाता है। इनके साथ या अलग स्पोडोप्टेरा कीट का भी आक्रमण पाया जाता है। मादा कीट मिट्टी या पौधे के निचली पत्तियों पर समूह में अण्डा देती है। अण्डे से निकलने के बाद पिल्लू अंकुरण कर रहे बीज को क्षतिग्रस्त करते हैं एवं नवांकुरित पौधों को जमीन की सतह से काट कर गिरा देते है। दिन में पिल्लू मिट्टी में छिपे रहते हैं और शाम होते ही बाहर निकल कर पौधों को काटते हैं।

प्रबंधन

  1. इस कीट से बीज की सुरक्षा हेतु अनुशंसित कीटनाशी से बीजोपचार करना चाहिए। क्लोरपायरीफॉस 20 ई0सी0 का 6 मिलीलीटर प्रति किग्राo बीज की दर से बीजोपचार करें।
  2. खड़ी फसल में क्षति नजर आने पर खेत में कुछ-कुछ दूरी पर खर-पत्‌वार का ढेर लगा देना चाहिए। सवेरा होते ही कीट इन ढेरों में छिपता है। इसे चुनकर नष्ट कर देना चाहिए।
  3. खड़ी फसल में क्लोरपाईरीफॉस 20 ई0सी0 का 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर शाम के समय छिडकाव करें या क्लोरपायरीफ़ॉस 2 प्रतिशत धूल या फेनभेलरेट 0.4 प्रतिशत धूल या मिथाइल पाराथियान 2 प्रतिशत धूल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से शाम के समय भुरकाव करें।

थ्रिप्स कीट

यह सूक्षम आकृति वाला काला एवं भूरे रंग का बेलनाकार कीट होता है। रैस्पींग एण्ड सकिंग टाईप का मुख भाग होने के कारण यह पत्तियों को खुरचता है तथा उससे निकले द्रव्य को पीता है।

कीट का प्रबंधन

  1. इनके प्रबंधन के लिए फसल में उपस्थित मित्र कीटों का संरक्षण करना चाहिए।
  2. नीम आधारित कीटनाशी का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए या ऑक्सीडेमेटॉन मिथाइल 25 ई0सी0 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

फली छेदक कीट (हेलीकोभरपा आर्मिजेरा)

इस कीट का व्यस्क पतंगा-पीले, भूरे रंग का होता है एवं सफेद पंख के किनारे काले रंग की पट्‌टी बनी होती है। मादा कीट पत्तियों पर एक-एक अण्डे देती है, 4-5 दिनों में अण्डे से कत्थई रंग का पिल्लू निकलता है जो बाद में हरे रंग का हो जाता है।

प्रबंधन

  1. दस फेरोमौन फंदा जिसमें हेलिकोभरपा आर्मीजेरा का ल्योर लगा हो प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में लगावें।
  2. प्रकाश फंदा का उपयोग करें ।
  3. 15-20 T आकार का पंछी बैठका (बर्ड पर्चर) प्रति हेक्टेयर लगावें।
  4. खड़ी फसल में इनमें से किसी एक का छिड़काव करें। जैविक दवा एन0पी0भी0 250 एल0ई0 या क्यूनालफॉस 25 ई0सी0 का 1 मिलीलीटर या नोवाल्युरॉन 10 ई0सी0 का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

लूसर्न कैटरपीलर

इस कीट का पिल्लू पीले-हरे रंग का पतला लगभग 2 सेंटीमीटर लम्बा होता है, जो पौधे की फुनगी को जाल बनाकर बाँध देता है और पत्तियों को खाता है। किसी चीज से संपर्क होने पर कीट काफी सक्रियता दिखाते हैं। फसल की प्रारंभिक अवस्था में प्रकोप ज्यादा होता है।

प्रबंधन

  1. खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई करें।
  2. खेत को खर-पत्‌वार से मुक्त रखें।
  3. वैसलिस थुरिनजिएनसिस जैविक कीटनाशी का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
  4. मोनोक्रोटाफॉस 36 ई0सी0 का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।

लाही कीट(एफिड)

कभी कभी मसूर फसल पर लाही कीट का आक्रमण हो जाता है। यह पत्तियों, डंठलों एवं फलियों पर रहकर पौधे का रस चूसती है।

प्रबंधन

  1. खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई करें।
  2. खेत को खर-पत्‌वार से मुक्त रखें।
  3. खेत में प्रति हेक्टेयर 10 पीला फन्दा का प्रयोग करना चाहिए।
  4. इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस0एल0 का 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।

उकठा रोग

मिट्टी में प्रयाप्त नमी रहने के बावजूद भी पौधों का सूखना उकठा रोग कहलाता है। इस रोग के रोगाणु मिट्टी में ही पलते हैं। दोपहर में पौधो का मुरझाना एवं सुबह हरा हो जाना इसका लक्षण है।

प्रबंधन

  1. खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कर बिना पाटा दिए छोड़ देना चाहिए।
  2. लगातार तीन वर्ष तक फसल चक्र अपनायें।
  3. रोगरोधी किस्मों का चुनाव करें।
  4. ट्राईकोडरमा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा कार्वेन्डाजीम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार कर बीज की बोआई करें।
  5. रोग की प्रारंभिक अवस्था परिलक्षित होने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 ई0सी0 घुलनशील चूर्ण का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौधे के जड़ क्षेत्र में पटवन करें।

जड़ एवं कालर सड़न रोग

पौधों में वानस्पतिक वृद्धि ज्यादा होने, मिट्टी में नमी बहुत बढ़ जाने और वायुमंडलीय तापमान बहुत गिर जाने पर इस रोग का आक्रमण होता है। पौधे के पत्तियों, तना टहनियों एवं फलियों पर गोलाकार प्यालीनुमा सफेद भूरे रंग के फफोले बनते हैं। बाद में तना पर के फफोले काले हो जाते हैं और पौधे सूख जाते हैं।

प्रबंधन

  1. रोगरोधी प्रभेद का चुनाव करना चाहिए।
  2. कार्वेन्डाजीम 2 ग्राम प्रति किग्राo बीज की दर से उपचार कर बीज की बोआई करें। बोआई करने के पूर्व राइजोबियम कल्चर का 200 ग्राम प्रति किग्राo की दर से उपचार करें।
  3. वातावरण का तापमान 15-20 डिग्री सेंटीग्रेड एवं 80 प्रतिशत से अधिक आर्दता होते ही मैन्कोजेब 75 प्रतिशत का 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें ।
  4. कार्वेन्डाजीम तथा मैन्कोजेव संयुक्त उत्पाद का 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

स्टेमफिलियम ब्लाईट

पत्तियों पर बहुत छोटे भूरे काले रंग के धब्बे बनते हैं। पहले पौधे के निचली भाग की पत्तियाँ आक्रान्त होकर झड़ती हैं और रोग उपरी भाग पर बढ़ते जाता हैं। खेत में यह रोग एक स्थान से शुरू होकर धीरे-धीरे चारो ओर फैलता है।

प्रबंधन

  1. खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें।
  2. रोगरोधी किस्मों का व्यवहार करें।
  3. फसल चक्र अपनाएं।
  4. अंतिम जुताई के समय 2 क्विंटल नीम की खल्ली का प्रयोग करें।
  5. कार्वेन्डाजीम 2 ग्राम प्रति किग्राo बीज की दर से उपचार कर बीज की बोआई करें। बोआई करने के पूर्व राइजोबियम कल्चर का 200 ग्राम प्रति किग्राo की दर से उपचार करें।
  6. वातावरण का तापमान 15-20डिग्री सेo एवं 80 प्रतिशत से अधिक आर्दता होते ही मैन्कोजेब 75 प्रतिशत का 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें ।
  7. कार्वेन्डाजीम तथा मैन्कोजेव संयुक्त उत्पाद का 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

मृदरोमिल रोग(पावडरी मिल्ड्यू)

मसूर में यह रोग इरीसाइफी पोलिगोनाई नामक फफूंद से होता है। पहले पत्तियों पर छोटे सफेद फफोले बनते हैं जो बाद में तना एवं फलियों पर भी छा जाते है।

प्रबंधन

  1. खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई करें।
  2. खेत को खर-पत्‌वार से मुक्त रखें।
  3. फसल चक्र अपनाएं।
  4. कार्वेन्डाजीम 2 ग्राम प्रति किग्राo बीज की दर से उपचार कर बीज की बोआई करें। बोआई करने के पूर्व राइजोबियम कल्चर का 200 ग्राम प्रति किग्राo की दर से उपचार करें।
  5. वातावरण का तापमान 15-20डिग्री सेo एवं 80 प्रतिशत से अधिक आर्दता होते ही मैन्कोजेब 75 प्रतिशत का 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें ।

 

स्रोत व सामग्रीदाता: कृषि विभाग, बिहार सरकार

मसूर बोने के लिए खेत की तैयारी

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate