तिलहनी फसलों में तोरी एवं सरसों का महत्व यहाँ के किसानों के जीवन में इसकी विविध उपयोग के कारण और भी बढ़ जाता है। अतः यह यहाँ की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य तेल फसल मनाई जाती है। इसके अनुशंसित उन्नत प्रभेदों की वैज्ञानिक खेती की तकनीकों को अपनाकर किसानों को आर्थिक लाभ की ओर ले जाया जा सकता है।
तोरी एवं सरसों की फसल की खेती के लिए हल्की मीट्टी से भारी दोमट मिट्टी वाले खेत सर्वोत्तम माने गये हैं। खेत में दो-तीन बार हल चलाने के बाद पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी का लेना चाहिए, ताकि नमी को संरक्षित किया जा सके।
तोरी तथा सरसों की उन्नत किस्मों की कुछ प्रचलित एवं अनुशंसित प्रभेद निम्न है, जिन्हें उपलब्धता एवं अपनी आवश्यकता के अनुसार चयन करना चाहिए।
उन्नत प्रभेद |
बुआई का समय |
परिपक्वता अवधि (दिन) |
औसत उपज (किंव./हे.) |
तेल की मात्रा |
आर.ए.यु.टी.एस. 17 |
25 सित.-10 अक्तू. |
90-95 |
12-15 |
43% |
पाचाली |
25 सित. -10 अक्तू. |
90-105 |
10-12 |
43% |
पी.टी. 303 |
25 सित.- 10 अक्तू. |
90-100 |
12-14 |
40$% |
भवानी |
25 सित.-10 अक्तू. |
90-95 |
10-12 |
41% |
तोरी एवं सरसों के 6 कि.ग्रा. (पतले दानों वाले) से 8 कि.ग्रा. (पुष्ट दोनों वाली किस्म) बीज प्रति हेक्टेयर, जिससे 3.3 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर खेत में स्थापित हो जाएँ, बुआई के लिए व्यवहार में पानी चाहिए।
अगात फसल |
10 से 15 अक्तूबर (हथिया नक्षत्र की वर्षा के बाद) |
समयकालीन फसल |
15 से 25 अक्तूबर |
पिछात फसल |
25 अक्तूबर से 15 नवम्बर तक |
बहुत पिछात फसल |
15 नवम्बर से 7 दिसम्बर तक |
बीजोपचार
तोरी एवं सरसों के बीज को खेत में बोने से पहले २-3 ग्राम थीरम/कैप्टान/बेवस्टीन नामक दवा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए।
वछनी (थिनिंग)
छिड़काव विधि से बुवाई किये गये खेत में बुआई के 14-15 दिन बाद वछनी कर पौधे से पौधे के बीच की दुरी 10 सें.मी. स्थापित कर लेना चाहिए। अगर संभव् हो तो 30-14 सें.मी. की दुरी पर कतारों में 10 से 15 सें.मी. दुरी पर बीज की बुआई करें जिसके बाद वछनी की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
- मिट्टी जाँच के आधार पर संतुलित मात्रा एवं उपयुक्त अवस्था में पोषको तत्वों का व्यवहार अच्छी उपक्ज का गूढ़ मन्त्र माना जाता है।
- इसके लिए खेत में बुआई से 20-30 दिन पहले 8 टन प्रति हेक्टेयर कम्पोस्ट बिखेर का खेत तैयार करें। कम्पोस्ट की अनुपलब्धता की स्थिति में वर्मी कम्पोस्ट के इस्तेमाल की भी अनुशंसा की जाती है।
- गंधकयुक्त उर्वरक जसी एस.एस.पी. (सिंगल सुपर फास्फेट) यह अमोनियम सल्फेट का प्रयोग अथवा जाँच के आधार पर 20-30 किलोग्राम गंधक तथा आवश्यकतानुसार जिंक और बोरान का प्रयोग करें ।
खेत की स्थिति |
बुआई के पहले या खेत की अंतिम के समय (कि.ग्रा./हे.) |
खेत की स्थिति |
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|
नेत्रजन |
स्फुर |
पोटाश |
नेत्रजन |
सिंचित अवस्था |
40 |
40 |
40 |
40 |
असिंचित अवस्था |
40 |
20 |
20 |
- |
- सामन्यतः तोरी या सरसों में खेत की मिट्टी की संरचना के आधार पर एक से दो सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है, जिसे सिंचाई की उपलब्धता के आधार पर सुविधानुसार दिया जाना चाहिए।
- अगर एक ही सिंचाई उपलब्ध हो तो फसल लगाने के 25 से 30 दिन बाद सिंचाई करें।
- दो सिंचाई की उपलब्धता एवं फसल की मांग होने पहली सिंचाई फसल लगाने के 25 से 30 दिन तथा दूसरी 55-60 दिन बाद दें।
- अगर आवश्यक हो तो बुआई के 30 से 45 दिनों के बाद कतारों के बीच पतला हल या बख्खर चलाकर यह पहले सिंचाई के बाद जमीन के रूखे हो जाने खुरपी द्वारा खरपतवार का नियन्त्रण किया जा सकता है।
वेसलिन (फ्लूक्लोरीन) नामक रसायन के 1.5 किलोग्राम 600-800 लीटर पानी में घोलकर खेत की तैयारी के अंतिम जुताई और पाटा के बीच छिड़काव कर भी तोड़ी एवं सरसों के खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है।
तिलहनी फसलों में मुख्यतः जिन रोगों या कीटों का प्रकोप होता है, उनके नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायनों का प्रयोग किया जा सकता है-
प्रबन्धन
- नीम आधारित कीटनाशी का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
- पीला चिपकने वाला फंदा का व्यवहार फूल आने के पहले करना चाहिए। 8-10 फंदा प्रति हेक्टेयर लगावें।
- रासायनिक कीटनाशी के रूप में ऑक्सीडेमेटान मिथाएल 25 ई.सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर अथवा मालाथियान 50 ई.सी. 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
यह अलबिगो नामक फुफुन्द से होने वाला रोग हैं। इस रोग में सफेद या सफेद या हल्के पीले रंग के अनियमिताकार फफोले बनते हैं। पत्तियों के निचले सतह पर छोटे-छोटे उजले या हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं। इसका आक्रमण पुष्पक्रमों पर होने से पुष्पक्रम मोटे और विकृत हो जाते है।
प्रबन्धन
- खड़ी फसल में इस रोग का आक्रमण होने पर मौन्कोजेब 75 घुलनशील चूर्ण का २ ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
प्रबन्धन
- कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण २ ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार कर बुआई करें।
- फसल को खरपतवार से मुक्त रखें।
- खड़ी फसल में इस रोग का आक्रमण होने पर मैंकोजेब 75% घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
प्रबन्धन
- फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करना चाहिए, ताकि मिट्टी में उपस्थित इस कीट प्यूपा मिट्टी से बाहर आ जाए तथा नष्ट हो जाए।
- नीम आधारित कीटनाशी 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
- रासायनिक कीटनाशियों में मिथाएल पाराथियान २% धूल अथवा मालाथियान में 5% धुल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए अथवा मिथाएल पाराथियान 50 ई.सी. का एक मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
कटाई
जब फसल की 75% फलियाँ पीली/भूरी हो जाएँ तब पौधों की कटाई कर बोझा बनाकर या खेत में पसार कर एक दो-दिन छोड़ने के बाद दानों को अलग करना चाहिए।
उपज
स्त्रोत: कृषि विभाग, बिहार सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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