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मटर के लिए समेकित कीट प्रबन्धन पैकेज

मटर के लिए समेकित कीट प्रबन्धन पैकेज

मुख्य क्षतिकारक

राष्ट्रीय महत्व के  क्षतिकारक

  1. मटरफली छेदक
  2. धड़ मक्खी

बीमारियाँ

  1. पाउडरी मिल्ड्यू
  2. रस्ट

खरपतवार

  1. बथुआ
  2. मत्री
  3. चतरी
  4. सेंजी

सूत्रकृमि  (नेमाटोड)

  1. रूट नॉट  नेमाटोड

रोडेन्ट्स

  1. छोटा बैंडीकुट

क्षेत्रीय महत्व के क्षतिकारक

क्षतिकारक कीट

  1. मटर काली लाही
  2. पत्ती माइनर

रोग-व्याधि

  1. डाउनी मिल्ड्यू – इंडोगैंजेटिक समतल क्षेत्र
  2. एस्कोचिटा ब्लाईट- हिमालय क्षेत्र
  3. श्वेवत सड़न –जे एवं के, हिमाचल प्रदेश
  4. जड़ सड़न- पूर्व में बोये गए पौधे, उत्तरप्रदेश, बिहार एवं पशिचम बंगाल के सिंचित फसल

सूत्रकृमि  (नेमाटोड)

  1. वृक्काकार सूत्रकृमि

कीट अनुश्रवण

कीट अनुश्रवण  का मुख्य  उद्देश्य क्षति कारक कीट एवं बीमारियों का क्षेत्रीय परिस्थिति इमं आरंभिक विकास एवं जैविक नियंत्रण के प्रभाव को पह्चानित करना है।

शीघ्र भ्रमण सर्वेक्षण

क. सर्वेक्षण दल द्वारा फसल मौसम के प्रारंभ में सर्वप्रथम कीट एवं व्याधि से प्रभावित सर्वेक्षण पथ का चयन शीघ्र भ्रमण सर्वेक्षण द्वारा करना चाहिए। इस चयनित पथ पर 7-10 दिनों के अतंराल में 5-10 किमी० पर कीट एवं व्याधि के प्रकोप का पठन लेना चाहिए। कीट, व्याधि तथा इसके प्रतिरक्षक की संख्या अनियमित ढंग से 5 पौधों पर लेनी चाहिए (प्रति हेक्टेयर 12 जगहों पर)

ख. रूट-नॉट के प्रमुख लक्षण जड़-पद्धति निर्मित करना, पौधे का वृद्धि ह्रास तथा पूर्व  पुष्पन काल है। क्षेत्र में रूट नॉट, नेमाटोड के वृहद प्रकोप का मुख्य लक्षण पौधों पर चित्तियाँ तथा पौधों को बेढंगी कतार है।

ग. 25 जीवित मांद प्रति हेक्टेयर क्षतिकारक रोडेन्ट्स (मांद में रहने वाले जीव) के विनाश कार्य को प्रदर्शित करता है।

कृषि पारिस्थितिक विशलेषण (आयेसा)

आयेसा एक ऐसा उपगमन मार्ग है जिससे प्रसार कार्यकर्त्ता एवं कृषक विशेष क्षेत्रीय पारिस्थिति में स्वस्थ फसलोत्पादन हेतु कीट, प्रतिरक्षक, मृदा? अवस्था फसल स्वास्थ्य, मौसमी कारकों का प्रभाव आदि का उपयोग कर सकते हैं। क्षेत्रीय पारिस्थिति में इस प्रकार के विश्लेषण से कीट-प्रबन्धन में निर्णय लेने हेतु काफी सहायता मिल सकती है आयेसा के आधारभूत अवयव निम्न प्रकार है;

  1. विभिन्न अवस्था में पौधा का स्वास्थ्य
  2. कीट एवं प्रतिरक्षा संख्या का वृद्धि विश्लेषण
  3. मृदा अवस्था
  4. मौसमी कारक
  5. कृषक के पूर्व का अनुभव्

आर्थिक रूप से प्रभावित स्तर

क्षतिकारक कीट

मटर पहली छेदक

5% पहली बर्बादी

धड़ मक्खी

5% पौधा बर्बादी

रोडन्ट्स

25 जीवित मांद/हेक्टेयर

सूत्रकृमि

1-2 लार्वा प्रतिग्राम मिट्टी या एक गाँठ/फफोला प्रति जड़ीय-पद्धति

बीमारियाँ

  1. पाउडरी मिल्ड्यू -5-10% प्रभावित
  2. रस्ट-5% प्रभावित (दाना बनने के पूर्व)
  3. डाउनी mild-10-15% प्रभावि/ दाना भरने के स्तर पर
  4. जड़ सड़न -5%-10%

 

मटर के लिए समेकित  क्षतिकारक कीट प्रबन्धन रणनीति

कृषीय प्रक्रिया

  1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई
  2. प्रतिरोधी प्रभेद का प्रयोग
  3. दलहन रहित फसल के साथ फसल-चक्र का प्रयोग
  4. चयनित प्रभेदों का समय पर या पूर्व बुआई
  5. तीसी/सरसों/जौ के साथ अंर्तफसल बुआई
  6. बुआई  के 30-35 दिनों के पश्चात खरपतवार  की सफाई
  7. फसल अवशेष को जमा करके जला देना
  8. जहाँ पर 10% से ज्यादा सड़न हुआ गो, उस खेत में खरीफ मौसम में हरी खाद का प्रयोग
  9. लम्बे प्रभेद के फसल में रस्ट, पाउडरी मिल्ड्यू श्वेत-सड़न, ऐसकोचिता ब्लाईट से बचने हेतु ज्यादा दुरी पर बोआई

10.  बीज-सड़न से बचाव हेतु उपयुक्त गहराई (5-7 सेमी०) पर बुआई

11.  भिसिया सटाईभा, चेनोपोडियम एल्बम, मेलीलोटस अल्बा एवं वी० हिरसुटा  आदि खरपतवार को निकालने के लिए समयानुसार निकाई करना।

12.  पाउडरी मिल्ड्यू तथा रस्ट के प्रकोप को कम करने हेतु सरसों या फायाबिन  के साथ मिश्रित खेती करना।

13.  एन०पी० के० एस० की संतुलित मात्रा (20  किलोग्राम ४० किलोग्राम, २० किलोग्राम: २० किलोग्राम) का प्रयोग करें नाइट्रोजन  की अधिक मात्रा का उपयोग न करें।

14.  आवश्यकतानुसार हल्के सिंचाई का प्रयोग करें। खेत में ज्यादा नमी रहने पर जड़-सड़न, श्वेत सड़न था पाउडरी मिल्ड्यू के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है।

यांत्रिक  प्रक्रिया

  1. बीज को अच्छी प्रकार साफ कर लें। किसी भी प्रकार के फसल का अवशेष बीज में मिश्रित नहीं होना चाहिए।
  2. वायरस लक्षण जैसे- मोजैक, टॉप येलो, स्ट्रीक्स, ब्राउन रिंग स्पॉट से प्रभावित पौधों को निकाल देना चाहिए।
  3. कौवा को उड़ाने हेतु/ भगाने हेतु बिजुका का प्रयोग करें।
  4. साही ( पोरक्युपाइन) से बचाव हेतु अवरोध का प्रयोग करे

 

जैविक नियंत्रण

  1. पर्ल-मिलेट अवशेष, सरसों खल्ली, सरसों फली का छिलका का प्रयोग मिट्टी सुधारक के रूप में जड़-सड़न को कम करने के लिए करना चाहिए।
  2. जड़-सड़न एवं डैम्पिंग ऑफ़ बीमारियों के प्रबन्धन हेतु बैसिलस सबटिलीस, स्यूडोमोनस फ्लोरेसेंस या ग्लैयोक्लाडीयम वीरेंस से मिट्टी उपचार करें।
  3. श्वेत सड़न बिमारी से बचाव के लिए ट्राईकोडर्मा –हर्जियानम यस बी० सबटीलिस का मिट्टी में प्रयोग करें।
  4. सूत्रकृमि  ले बचाव के लिए पीसिलोमाइसिस, लीलासिनस 10 * स्पोर/प्रति कि० ग्राम द्वारा बीजोपचार करें।
  5. सूत्रकृमि  ले बचाव के लिए एसपजीलस नाइजर 108 * स्पोर/प्रति कि० ग्राम द्वारा बीजोपचार करना आवश्यक है।

 

रासायनिक नियंत्रण

क्षतिकारक कीट

कीटनाशक

कीट

दर

फोरेट (सीड ड्रेसिंग)

धड़ मक्खी

1.5 किग्रा ए०  आई०/हेक्टेयर

कार्बोफ्युरान  (मिट्टी के साथ)

धड़ मक्खी

2.0 किग्रा ए०  आई०/हेक्टेयर

फोरेट (दानेदार)

मटरफली  छेदक

1.2 किग्रा ए०  आई०/हेक्टेयर

कार्बोफ्युरान ग्रौन्युल्स

मटरपत्ती छेदक

1.0 किग्रा ए०  आई०/हेक्टेयर

साइपरमेथिन ईसी

मटरफली  छेदक

0.002%

इंडोसल्फान ईसी

मटरफली  छेदक

0.03%

मेथोमाइल ईसी

मटरफली  छेदक

0.04%

मोनोक्रोटोफॉस ईसी

मटरफली  छेदक

0.04%

साइपरमेथिन ईसी

काली लाही

0.002%

फेंभालिरेट ईसी

काली लाही

0.004%

 

बीमारियाँ

रसायन

बीमारी

दर

कार्बेन्डाजीम

बीज सड़न डैम्पिंग  ऑफ़ जड़सड़न कालर रॉट

2-3 ग्रा०/1 कि० ग्राम बीज

कार्बेन्डाजीम

बीज सड़न डैम्पिंग  ऑफ़ जड़सड़न कालर रॉट

1+2  ग्रा०/1 प्रति कि० ग्राम बीज

थिरम

बीज सड़न डैम्पिंग  ऑफ़ जड़सड़न कालर रॉट

3 ग्रा०/1 प्रति कि० ग्राम बीज

कैप्ताफोल

बीज सड़न डैम्पिंग  ऑफ़ जड़सड़न कालर रॉट

3 ग्रा०/1 प्रति कि० ग्राम बीज

वेटेवुल सल्फर

पाउडरी मिल्ड्यू एवं रस्ट

3 ग्रा०/1 प्रति कि० ग्राम बीज

कार्बेन्डाजीम

पाउडरी मिल्ड्यू श्वेत सड़न ऐस्कोचिता ब्लाईट

0.5-1.0 ग्रा०/ प्रति लीटर पानी

ट्राया  डाइमे फोन

श्वेत सड़न पाउडरी मिल्ड्यू

0.5-1.0 ग्रा०/ प्रति लीटर

डिनोकैप

पाउडरी मिल्ड्यू

0.25-0.5 ग्रा०/ प्रति लीटर

ट्राईमार्क

पाउडरी मिल्ड्यू

1-2 ग्रा०/ प्रति लीटर

मैनकोजेब

रस्ट, डाउनि मिल्ड्यू  ऐस्कोचिता ब्लाईट

0.5 ग्रा०/ प्रति लीटर

कॉपर ऑक्सीक्लोराईट

ऐस्कोचिता ब्लाईट

2.5-3 ग्रा०/ प्रति लीटर

जिनेब

ऐस्कोचिता ब्लाईट

२.5-3 ग्रा०/ प्रति लीटर

 

रोड़ेन्ट्स

चूहों से बचाव के लिए ब्रोमोडायोलोन (प्रलोभन खाद्य) 0.005%  का घोल प्रति मांद 10-15 ग्राम का प्रयोग करें।

 

सूत्रकृमि  (नेमाटोड)

निम्न दवाओं द्वारा सूत्रक्रिमी  से बचाव के लिए बीजोपचार करें।

कलोरपाइरी फॉस

20ईसी  @ 0.2%

ट्राईजो फॉस

40ईसी  @ 1%

डायमेथोयट

3 0ईसी  @ 0.2%

कार्बोसल्फान

@3%

 

मिट्टी का उपचार

  1. कार्बोफ्युरान ३ ग्राम @ 1.00 किग्रा/हेक्टेयर बुआई के समय
  2. फ्युरेट 10 ग्राम @ 1 किग्रा०/हेक्टेयर

प्रतिरोधी प्रभेद :

प्रभेद

उपज क्वीं०?हेक्टेयर

अनुकूलन

विशेष लक्षण

डीएमआर 11

18-22

एनएचजेड, एनडब्ल्यूपिजेड  एनइपीजेड, सी जेड

पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

एचयूपी-2 (मालविया मटर)

18-22

एनएचजेड, एनडब्ल्यूपिजेड  एनइपीजेड, सी जेड

पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

पंतपी-5

18-22

एनडब्ल्यूपिजेड

पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

जेपी 885

18-22

सी जेड

पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

एचएफपी 4 (अपर्ण)

20-25

एनडब्ल्यूपिजेड

बौना एवं पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

केएफबी 103 फबी

18-22

एनडब्ल्यूपिजेड

पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

डीएमआर (अंलकार)

20-24

एन डब्ल्यू   पी जेड

पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

डीडीआर 13

18-22

एन इ  पी जेड  एवं सी जेड

बौना एवं पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

एचएफपी 8909

20-25

एन इ  पी जेड  एवं सी जेड

बौना एवं पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

केपीएमआर 114-1

20-25

एन इ  पी जेड

बौना एवं पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी

मालविया मटर 15

20-30

एन इ  पी जेड

बौना पाउडरी मिल्ड्यू एवं रस्ट प्रतिरोधी

रचना (केपीएमआर 10)

20-25

एन इ  पी जेड  एवं सी जेड

बौना  पाउडरी मिल्ड्यू एवं लम्बा टाईप

 

एन  एच  जेड

नॉर्थ  हिल जोन

एन डब्ल्यू   पी जेड

नार्थ वेस्ट प्लेन जोन

एन इ  पी जेड

नार्थ ईस्ट प्लेन जोन

सी जेड

सेन्ट्रल जोन

सूत्रकृमि  (नेमाटोड)

प्रतिरोधी  प्रभेद

डीडीआर-16,  एच एफ पी 4 , एभी टी -2  (डी), एच एफ पी 9510, एल एफ पी -227

 

मटर का अवस्थावार समेकित कीट प्रबन्धन प्रक्रिया

फसल अवस्था

क्षति कारक

समेकित कीट प्रबन्धन अवयव

समेकित कीट प्रबन्धन क्रियाएं

बुआई  के पूर्व

जड़ सड़न सूत्रकृमि  धड़मक्खी खरपतवार

कृषीय

  1. ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई
  2. जिस क्षेत्र में 10% ज्यादा जड़ सड़न का प्रकोप हो उसमें खरीफ मौसम में हरी खाद का व्यवहार करें।
  3. प्रतिरोधी प्रभेदों का उपयोग
  4. दलहन एवं तेलहन रहित रहित फसलों द्वारा फसल-चक्र अपनाना
  5. बुआई से पूर्व एफ. वाई  एम./नीम खल्ली/महुआ खल्ली का 500 कि०ग्राम/हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं।
  6. बुआई की उचित गहराई (5-7 सेमी०) अनुसरण करें।
  7. सरसों, तीसी, जौ. गेंहू के साथ मिश्रित खेती करें।
  8. एन०पी० के० एस० का प्रति हेक्टेयर क्रमशः 20  कि० ग्राम एवं 20  कि ० ग्राम का प्रयोग करें।
  9. उच्च प्रभेदों के लिए ज्यादा पौधों की दुरी रखें।

10.  अधिक  पूर्व बुआई  न करें समयानुसार बुआई करें।

 

 

जैविक

  1. पर्ल मिलेट एवं सरसों के अवशेष के साथ मिट्टी संशोधक का प्रयोग
  2. अगर जड़ सड़न की समस्या है  तो वेसिलस सबटीलिस, स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस या गिलोयोक्लैंडियम वेरेन्स से उपचार करें।
  3. श्वेत सड़न प्रबन्धन हेतु ट्राईकोडरमा हर्जियानम से मिट्टी उपचार करें।
  4. सूत्रकृमि  के प्रबन्धन हेतु  कैलिट्रोपिस  के लैटेक्स  द्वारा 1 ग्राम/कि० ग्राम बीजोपचार करें। पैसिलोमाइसिस लीलासिनस या एसपरजिल्स नाइजर 10 स्पोर/किग्रा० से बीजोपचार करें।

 

 

रासायनिक

  1. धड़,मक्खी के प्रबन्धन हेतु फोरेंट द्वारा बीजोपचार करें।
  2. जड़ सड़न के प्रबन्धन हेतु थीरम+ कार्बेडाजिम काप्टन  द्वारा बीजोपचार करें।
  3. श्वेत सड़न प्रबन्धन हेतु ट्राईकोडरमा हर्जियानम से मिट्टी उपचार करें।
  4. सूत्रकृमि  के प्रबन्धन हेतु  कैलिट्रोपिस  के लैटेक्स  द्वारा 1.0  ग्राम प्रति /कि० ग्राम बीजोपचार करें। पैसिलोमाइसिस लीलासिनस या एसपरजिल्स नाइजर 10  स्पोर/प्रति किग्रा० से बीजोपचार करें।

बीज एवं बिचड़ा

जड़ सड़न सूत्रकृमि  धड़मक्खी, खरपतवार

कृषीय

 

 

 

 

यांत्रिक

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

रासायनिक

  1. अगर अत्यंत आवश्यक हो तभी सिंचाई करें।
  2. वायरस लक्षण जैसे मोजेक टॉप वेलो, स्ट्रीक्स  से ग्रसित पौधों का खेत से निकालकर बर्बाद कर दें।
  3. पौधे के उदगमन के पूर्व

वानस्पतिक

जड़ सड़न सूत्रकृमि, खरपतवार डाउनी  मिल्ड्यू

यांत्रिक

  1. आवश्यकतानुसार खरपतवार  की सफाई कर दें।
  2. डाउनी मिल्ड्यू के लिए मैनको जेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।

 

पुष्पन एवं फली अवस्था

जड़ सड़न

 

 

सूत्रकृमि

फली छेदक

रस्ट,पाउडरी मिल्ड्यू, पत्ती छेदक

लाही, रोडेन्ट्स  एवं पक्षी

कृषीय

 

 

 

 

 

 

यांत्रिक

 

 

 

 

 

 

जैविक

  1. आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई करें।

 

  1. वायरस से प्रभावित पौधों को बर्बाद कर दें।

 

पक्षियों से बचाव हेतु बिजुका का प्रयोग करें।

 

 

  1. श्वेत सड़न से प्रभावित क्षेत्र, में बैसिलस सबटीलीस का छिड़काव करें।
  2. लाही के नियंत्रण हेतु कोसीनेला-सेप्टेम पुन्कटाटा परभक्षी के प्रयोग का प्रयास करें।

 

 

रासायनिक

  1. कीट प्रबन्धन हेतु इंडोसल्फान या मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव करें।
  2. व्याधि प्रबन्धन के लिए नम सल्फर, जिनेब, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, मैकोजेब या कार्बेन्डाजिम इत्यादि ला छिड़काव करें।
  3. जानवरों के मांद में 0.005% ब्रोमोडायोलोन ( प्रभोलन खाद्य_ (बेट) का प्रयोग करें।

कटनी के पश्चात

(बीज फंगाई बुचिडस

यांत्रिक

  1. बीज के दानों को अच्छी प्रकार साफ करें। फसल अवशेष एवं झुर्रीदार दानों को बाहर निकल दें।
  2. अनाज दोनों को अच्छी प्रकार सुखा लें।
  3. कटनी किये गये क्षेत्र से फसल अवशेषों को एकत्रित कर जला दें।
  4. साफ बीज बीन में अनाजों दानों को दाल में परिवर्तित कर दें क्योंकि दाल पर बुचिड द्वारा कम आक्रमण होता है।

 

निर्णय लेने हेतु रणनीति (उदाहरण)

  1. अगर विकास अवस्था में 5% से ज्यादा पौधे धड़, मक्खी द्वारा बर्बाद किये जाते हैं, ऐसी परिस्थिति में मटर/राजमा उस क्षेत्र में नहीं लगाना चाहिए।
  2. अगर पहली बनने की अवस्था में 5% फली-फली छेदक द्वारा बर्बाद किये जाते हैं, तो 0.07% इंडोसल्फान या 0.0४% मोनोक्रोटाफॉस का प्रयोग करें।
  3. क. अगर दाना-भरने के पूर्व अवस्था प् पत्तियों के सतह पर 5-10% पाउडरी मिल्ड्यू  या रस्ट प्रकोप हो तो नम सल्फर का 3.0 ग्राम/लीटर की दर से  प्रयोग करें

ख.    अगर केवल रस्ट का प्रकोप है तो मैनेकोजेब 2-3  ग्राम/लीटर का प्रयोग करें।

ग.     0.5-1.0 ग्राम/प्रति लीटर कार्बेन्डाजिम का प्रयोग करें।

कृषि पारिस्थितिक तंत्र विशलेषण (आयेसा)

आयेसा एक क्रिया पद्धति है जिससे पौधों के स्वास्थ्य, पौधों की क्षति-पूर्ति क्षमता, मौसमी कारक, कीट एवं प्रतिरक्षक की संख्या में बदलाव एवं अंतरसंबंध का अवलोकन अध्ययन किया जाता है। यह कार्य ग्राम स्तर पर एक या अधिक प्रशिक्षित कृषकों के दल द्वारा किया जा सकता है। प्रत्येक फसल विकास अवस्था के अध्ययन हेतु आयेसा द्वारा लिए गये अवलोकनों से सहायता मिल सकती है। आयेसा का तकनीक समेकित कीट प्रबन्धन में कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

क्षेत्रीय अवलोकन

1. खेत के मेढ़ से 5’ की दुरी पर खेत में प्रवेश करें अनियमित ढंग से एक वर्गमीटर के क्षेत्र को चयनित करें।

2. निम्नक्रम में अवलोकनों को नोट कर रखें

  • उड़ने वाले कीड़े (कीट एवं प्रतिरक्षक)
  • जो कीट और प्रतिरक्षक पौधों की पत्तियों पर हैं उसका नजदीक से अवलोकन करें।
  • कीट जैसे एस लिचुरा एवं प्रतिरक्षक जैसे ग्राउड बीटिल.रोभ बीटिल/ईयरविग्स का पौधे के चारों तरफ की मिट्टी की सतह को खुरच का नजदीक से अध्ययन करें।
  • व्याधि एवं इसकी तीव्रता को दर्ज करें।
  • प्रतिशत एक रूप में कीट से बर्बादी लो लिपिबद्ध करें।
  • प्रति वर्गमीटर प्रभेदवार खरपतवार की संख्या को दर्ज करें।
  1. एक चयनित पौधे के विभिन्न पारामीटर जैसे-पत्तियां, डालियाँ, पौधे की लंबाई, जनन भाग को दर्ज करें। विशेष में पताका बांधकर रखना चाहिए। जिस्स्से अगले सप्ताहों में उसी पौधा का पुनः अध्ययन किया जा सके।
  2. खरपतवार के प्रकार, उनके नाप एवं फसल पौधा के क्रम में जनसंख्या घनत्व को दर्ज करें।
  3. कंडिया (1) से (4) तक की प्रक्रियाओं को अनियमित ढंग से चयनित किये गये चार जगहों पर दोबारा करें।
  4. मौसमी कारकों जैसे-धुप, बादल, आंशिक बादल, वर्षा आदि का साप्ताहिक आंकड़ा दर्ज करें।

 

आलेखन

एक कागज पर पहले एक पौधा का चित्राकंन करें, पुनः उसके वास्तविक डालियों की संख्या पत्तियों की संख्या इत्यादि को रेखांकित करें तब कीट को पौधे के बाएं किनारे तथा प्रतिरक्षक को दाहिने किनारे दर्शायें। फिर मिट्टी अवस्था, खरपतवार की संख्या, रोडेन्ट्स बर्बादी आदि को संकेतिक करें। फिर सभी आलेखनों पर प्राकृतिक रंग जैसे स्वस्थ पौधों को हरा रंग, व्याधि से प्रभावित पौधे को पीला रंग से भरें। कीट एवं प्रतिरक्षक को आलेखन करते समय ध्यान देना चाहिए कि अवलोकन करते समय  जहाँ  वे पाए गये थे वहीं पर चित्रांकित करें। रेखाकृति के साठ कीट एवं प्रतिरक्षक का नाम उनकी संख्या आदि देना चाहिए। अगर धुप का दिन है तो पौधों के ऊपर सूर्य को रेखांकित करते हुए मौसमी कारकों को भी कागज पर दर्शाना चाहिए। अगर आकाश में बादल है तो सूर्य के जगह बादल को रेखांकित  किया जा सकता है। अगर आशिंक धुप है तो चित्रांकन में सूर्य का आधा भाग बादल से ढंका रहना चाहिए। समूह, आयेसा, ईटीएल कीट प्रतिरक्षक अनुपात पर बदलाव के लिए अपनी रणनीति को विकसित कर सकता है।

समूह-विर्मश एवं निर्णय का निर्माण

पूर्व के चार्ट एवं वर्तमान चार्ट के अवलोकनों के आधार पर समूह के सदस्यों द्वारा कीट एवं प्रतिरक्षक की संख्या, फसल अवस्था आदि के बदलाव पर प्रश्न उठाकर विमर्श करना चाहिए। समूह, आयेसा, ईटीएल कीट प्रतिरक्षक अनुपात पर बदलाव के लिए अपनी रणनीति को विकसित कर सकता है।

निर्णय निर्माण के लिए रणनीति

कीट-प्रतिरक्षक अनुपात पर पहुँचने के लिए कुछ प्रतिरक्षा जैसे- लेडी बीटल क्राईजोपरला, सिरफीड्स आदि उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

कृषकों  द्वारा

बाह्य भ्रमण के दौरान समेकित कीट प्रबन्धन कीट प्रबन्धन के प्रत्यक्षण, कृषकों का क्षेत्रीय प्रसिक्षण के आधार पर कृषक कृष्य क्षेत्र में आयेसा का प्रयोग कर सकते हैं। जहाँ पर प्रशिक्षित कृषक उपलब्ध है, उनके अनुभव का पूरा लाभ अतिरिक्त कृषकों को दिया जा सकता है इस प्रकार कृषकों का एक समूह किसी विशेष कीट के संबंध में साप्ताहिक आयेसा का उपर्युक्त निर्णय ले सकता है। कृषक से कृषक प्रशिक्षण की प्रक्रिया निश्चित तौर पर स्थायी हो सकती है और ज्यादा से ज्यादा कृषक समेकित कीट प्रबन्धन में पारंगत हो सकते हैं।

प्रसार-कर्मियों द्वारा

राज्य के प्रसार कर्मी ग्राम स्तर के भ्रमण के दौरान कृषकों को संगठित का सकते हैं, तथा आयेसा को कार्यान्वित कर सकते हैं एवं विभिन्न कारकों  जैसे- कीट संखया, प्रतिरक्षक संख्या एवं कीट संख्या में ह्रास करने में भूमिका को समीक्षात्मक ढंग से विश्लेषित कर सकते हैं, साथ ही कीट/प्रतिरक्षक की संख्या पर मौसम एवं मृदा अवस्था का क्या प्रभाव पड़ता है? इसे भी विश्लेषित कर सकते है। इस प्रकार की प्रकिया प्रसार कर्मियों द्वारा अपने ग्राम स्तर के प्रत्येक भ्रमण के क्रम में  अपनाया जा सकता है तथा कृषकों को आयेसा को अपने क्षेत्र में अपनाते हेतु संगठित कर सकते हैं।

कीटनाशक उपयोग के लिए मौलिक सावधानियाँ

कीटनाशक क्रय

  1. एक बार प्रयोग के लिए जितनी मात्रा की आवश्यकता है उतनी ही मात्रा में कीटनाशक का क्रय करें, जैसे-100,250, 500 या 1000 ग्राम/ मिली०
  2. रिसते हुए डिब्बों, खुला, बिना मोहर, फटे बैग में कीटनाशक का क्रय न करें।
  3. बिना अनुमोदित लेबल वाले कीटनाशक का चयन न करें।

भण्डारण

  1. घर के अंदर कीटनाशक का भण्डारण न करें।
  2. मौलिक मोहरबंद डब्बे का ही प्रयोग करें।
  3. कीटनाशक को किसी दुसरे पात्र में स्थानांतरित न करें।
  4. खाद्य सामग्री या चारा के साथ कीटनाशक को न रखें।
  5. कीटनाशक को बच्चों या पशुओं के पहुँच के बाहर रखे।
  6. वर्षा या धुप में कीटनाशक के साथ न रखें।

हस्तलन

  1. खाद्य पदार्थों के साथ कीटनाशक को न लावें तथा परिवहन न करें।
  2. अधिक कीटनाशक की मात्रा को सर पर, कंधों पर , पीठ पर रखकर स्थानांतरित न करें।

 

छिड़काव हेतु घोल निर्माण में सावधानियाँ

  1. केवल शुद्ध जल का प्रयोग करें।
  2. निर्माण अवधि में अपना नाक, आँख, मुंह, कान तथा हाथ का बचाव करें।
  3. घोल निर्माण करते समय हाथ का दस्ताना, चेहरे का मुखौटा, नकाब तथा सर को ढकते हुए टोपी का प्रयोग करें। इस अवधि में कीटनाशक हेतु उपयोग किये गये पॉलिथीन  का उपर्युक्त कार्य हेतु इस्तेमाल न करें।
  4. घोल निर्माण करते समय डिब्बे पर अंकित सावधानियाँ को पढ़कर अच्छी प्रकार समझ लें, तदनुसार कार्रवाई करें।
  5. छिड़काव किये जाने वाली मात्रा में ही घोल का निर्माण करें।
  6. दानेदार कीटनाशक को जल के साथ मिश्रण न बनावें।
  7. मोहरबंद पात्र के सान्द्र कीटनाशक को हाथ के सम्पर्क में न आने दें। छिड़काव मशीन के टैंक को न सूंघें।
  8. छिड़काव मशीन के टैंक में कीटनाशक ढालते समय बाहर न गिरने दें।
  9. छिड़काव मिश्रण तैयार करते समय खाना, पीना, चबाना, या धूम्रपान करना मना है।

उपकरण

  1. सही प्रकार के उपकरण का ही चयन करें।
  2. रिसनेवाले या दोषपूर्ण उपकरण का प्रयोग न करें।
  3. उचित प्रकार को नोजल का ही प्रयोग न करें।
  4. रुकावट पैदा होने और नोजल को मुंह से न फूंकें तथा साफ करें। इस कार्य टूथ-ब्रश एवं स्वच्छजल का ही प्रयोग करें।
  5. अपतृण/खरपतवार नाशक तथा कीट प्रयोग हेतु एक ही छिड़काव मशीन का उपयोग न करें।

 

कीटनाशक छिड़काव हेतु सावधानियाँ

  1. केवल सिफारिश की गयी मात्रा तथा सांद्रता के घोल का ही प्रयोग करें।
  2. कीटनाशक का छिड़काव गर्म टिन की अवधि  एवं तेज वायु गति के समय न करें।
  3. वर्षोपरांत या वर्षा के पूर्व (अनुमानित) कीटनाशक का छिड़काव न करें।
  4. वायुगति दिशा के विरुद्ध कीटनाशक का छिड़काव न करें।
  5. इमलसीफियवुल कासंट्रेट फार्मुलेशन का प्रयोग बैटरी चालित यू एल भी स्प्रेयर से न करें।
  6. छिड़काव के पश्चात स्प्रेयर, बाल्टी आदि को साबुन पानी से साफ कर लें।
  7. बाल्टी या अन्य पात्र जिसका उपयोग  छिड़काव में किया गया है, उसका घरेलू कार्य हेतु पुनः उपयोग न करें।
  8. छिड़काव के तुरंत बाद उपचारित क्षेत्र में जानवर या मजदूर का प्रवेश वर्जित कर दें।

 

निपटान

  1. बचे हुए छिड़काव घोल को तालाब, जलाशय या पानी के पाइप के सम्पर्क में न आने दें।
  2. उपयोग किये गये बर्तन, डब्बे को पत्थर से पिचकाकर जल स्रोत से दूर मिट्टी में काफी गहराई में गाड़ दें।
  3. खाली डब्बे का उपयोग खाद्य भंडारण हेतु न करें।

 

स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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