वनस्पतियों के हरित पदार्थ (क्लोरोफिल) द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पानी और कार्बन डाईऑक्साइड से मिलकर खाद्य पदार्थ का निर्माण ‘प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा होता है। यदि जैविक और अजैविक कारकों द्वारा फसलों को क्षति न पहुंचे, तो मनुष्य और पशुओं की खाद्य पदार्थों की आवश्यकता पूरी तो हो ही जाएगी, इसके साथ ही खाद्य पदार्थ प्रचुर मात्रा में शेष भी बच जाएगा। परंतु ऐसा नहीं हो पाता है और इन जैविक और अजैविक कारकों से आंशिक या पूर्ण रूप से क्षति हो ही जाती है।
कीट, रोग, खरपतवार, सूत्रकृमि, विषाणु, फफूंदी, लघु जीवाणु (बैक्टीरिया), सूक्ष्मजीवाणु, ( माइक्रो ऑर्गनिज्म), माइकोप्लाज्मा, इत्यादि जैविक कारकों में आते हैं।
इसमें ऐसे निर्जीव कारक शामिल हैं; जिनसे फसलों को हानि पहुंचती हैं; जैसे तापमान (गर्म व ठंडा), आर्द्रता, बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि, और अनावृष्टि, ओला, पाला और अनुपयुक्त भूमि (अम्लीय, क्षारीय, लवणीय) इत्यादि।
फसलों को सबसे अधिक हानि कीटों से पहुंचती है। इनसे फसल उत्पादन में कमी तो आती ही है, बल्कि गुणों में भी ह्रास होता है।
वे कीट जो हानिकारक कीटों को खाकर फसल सुरक्षा करते हैं, उनको मित्र कीट कहते हैं। इसके अतिरिक्त वे कीट जो विशेष पदार्थ प्रदान करते हैं, उनको भी मित्र कीट कहते हैं। मधुमक्खी जो कि रात-दिन श्रम करके फूलों से मीठा द्रव्य या मकरन्द (नैक्टर) एकत्रित करके मधु एवं मोम पैदा करती है। इसी तरह से रेशम का कीट विशेष प्रकार की पत्तियों को खाकर रेशम का धागा पैदा करता है। लाख का कीट विशेष वृक्षों से लाख बनाता है। इन कीटों में निम्नांकित गुण पाये जाते हैं:
इस प्रबंधन में निम्नलिखित विधियां प्रयोग में लाई जाती हैं:
अजैविक कीट प्रबंधन
इस विधि में बिना जीव के प्रयोग के कीट प्रबंधन किया जाता है जैसे -
समय से सस्य क्रियाओं को अपनाकर
कीट प्रबंधन
नाइट्रोजन की अधिक मात्रा का प्रयोग करने से पौधों की पत्तियां अधिक रसीली हो जाती हैं, जिसके कारण रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसके विपरीत फॉस्फोरस का अधिक प्रयोग करने से पौधों में कठोरपन बढ़ जाता है और कीटों का आक्रमण भी कम हो जाता है।
अत:/अंतसस्य फसलों को उगाने से भी कीटों का आक्रमण कम हो जाता है। चने की फसल में खेत के चारों तरफ यदि अलसी और धनिया उगाया जाए तो यह ट्रैप फसलों का काम करेगी। फलीबेधक कीट की मादा इन फसलों के फूलों पर अंडा देती है, जिससे फसल कुछ सीमा तक सुरक्षित रहती है। जिन फसलों में, विशेषतौर से सब्जियों के सूत्रकृमि की समस्या हो तो खेत के चारों तरफ गेंदा लगा दें। इससे इस जीव का प्रकोप कम हो जाता है।
कीट प्रबंधन के लिए कीट रसायनों का प्रयोग न केवल अधिक खर्चीला होता है, बल्कि नाना प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव जल, भूमि और जीवजंतुओं पर पड़ता है। अतः परजीवी और परभक्षी कीटों का प्रयोग कम खर्च वाला और प्रदूषणरहित होता है। ऐसे जन्तुओं और जीवों का वर्णन नीचे किया जा रहा है।
पृष्ठ दंडधारी शिकारी जीव
इसमें रीढ़दार और स्तनधारी जीव आते हैं, जो कीटों और अन्य जीवों को खाते हैं। इनसे फसलों को क्षति पहुंचती है। इनमें निम्न चार तरह के जीव आते हैं:
अरीढ़धारी जीव
इनमें रीढ़ की हड्डी नहीं होती है। ये फसलों को हानि पहुंचाने वाले जीवों को ये पकड़कर खा जाते हैं। इनमें निम्न प्रकार के जीव आते हैं:
पृष्ठधारी शिकारी
बगुला: यह पक्षी नाली और रुके हुये पानी में कीटों और उनके शिशुओं को खा जाता है। यही नहीं यह पानी में विचरण करने वाले जीवों जैसे मेंढक और मछलियों को भी खा जाता है। इसमें विशेष गुण यह है कि मिट्टी में छिपे कीट और उनके शिशुओं को अपनी नुकीली चोंच द्वारा निकालकर आहार बना लेता है। जब खेत में जुताई हो रही हो या सिंचाई की जा रही हो तो मिट्टी में छिपे कीट बाहर निकल आते हैं और बगुला उनको दौड़कर पकड़कर खा जाता है।
चील
यह बहुत तीव्र गति से उड़ने वाली और दूर से देखने वाली चिड़िया है। यह फसल में छिपे जीवों विशेषतौर से चूहे और खरगोश के बच्चों को तेजी से झपटा मारकर अपने पंजों में दबाकर किसी पेड़ पर बैठकर खा जाती है।
उल्लू
यह पक्षी रात में सक्रिय रहता है और रात में उड़ने वाले कीटों को खा जाता है।
मोर
यह हमारा राष्ट्रीय पक्षी है, यह रेंगने वाले जीव जैसे नेवला और गिरगिट इत्यादि को खा जाता है।
गिद्ध
यह सम्पूर्ण मांसाहारी पक्षी है। इसकी दृष्टि दूरगामी होती है। जहां भी शिकार दिखाई देता है वहां यह तीव्रता से उड़कर पहुंचकर उसको खा जाता है। इस पक्षी की भी संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
बटेर व तीतर
इनका दीमक प्रिय भोजन होता है। यह मिट्टी में चोंच के द्वारा दीमक को खोजकर खा जाते हैं। इनसे दीमक को न केवल नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि इन पक्षियों द्वारा दीमक की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है। इसके लिये खेत की अंतिम जुताई करने के बाद खेत में कई स्थानों पर कच्चा गोबर रख दें। यदि भूमि में दीमक हैं तो वह रात में गीली मिट्टी का चोल गोबर के ऊपर बना लेती हैं और चोल के अंदर छिपकर बैठ जाती हैं। यदि ऐसा होता है तो समझना चाहिये कि भूमि में दीमक है। इसलिए दीमक को मारने के लिये उपयुक्त दवा का प्रयोग करना चाहिये। अन्यथा दवा का प्रयोग व्यर्थ होता है और वायुमण्डल प्रदूषित हो सकता है। दीमक नियंत्रण के लिये यह बहुउपयोगी पक्षी है।
स्तनधारी जीव
इनमें चूहा, नेवला और छछंदर जैसे स्तनधारी जीव हैं, जो फसलों को हानि पहुंचाने वाले जीवों व कीटों को खाकर उनकी सुरक्षा करते है। इनमें चूहा और छुछुंदर, बिल्ली के प्रिय शिकार हैं, जब कि नेवला, सांप का शत्रु होता है। चूहे से अनाज को भंडार में भारी क्षति पहुंचती है। बिल्ली चूहों को खाकर भंडार में अनाजों की होने वाली क्षति को परोक्ष रूप से बचाती है।
रेंगने वाले जीव
इनमें सांप और छिपकली आते हैं, जो फसलों की सुरक्षा में सहयोग करते हैं। सांप चूहों को खाकर परोक्ष रूप से अनाज को क्षति से बचाते हैं। इसके साथ ही साथ वह कीटों के वयस्क, अंडों और बच्चों को भी खाते हैं। छिपकली खेतों की मेड़ों पर बैठकर गंधी कीट को खा जाती है व वयस्क दीमक (परदार) को चाव से खा जाती है। अतः कीट नियंत्रण में इसकी अहम भूमिका होती है। विषखापड़ भी कीटों को खाकर इनके नियंत्रण में अत्यंत भागीदारी है।
उभयचर जन्तु
मेंढक एक ऐसा जन्तु है, जो जल और थल दोनों में वास करता है। यह अपनी चिपकनी जीभ द्वारा कीटों को अंदर ले जाकर खा जाता है।
अपृष्ठधारी शिकारी
इनमें रीढ़ की हड्डी नहीं होती है, दूसरे कीटों को खा जाते हैं। इनमें निम्न जीव आते है:
कीट प्रबंधन में कीट रसायनों का प्रयोग
लेखन: शंकर लाल' और अरुण कुमार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...
इस पृष्ठ में मधुमक्खी पालन से संबंधित केस अध्ययन क...
इस भाग में झारखण्ड में समेकित कीट प्रबंधन पैकेज के...
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...