झारखण्ड में फूलों का उपयोग दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। हर तरह के पर्व त्योहार, शादी विवाह, पूजा पाठ तथा अन्य अवसरों पर घर फूलों से सजाया जाता है जिसके कारण राज्य के बड़े शहरों में फूलों की मांग बढ़ती जा रही है। गेंदे की उपयोगिता गाड़ी, घर,मंडप, शादी एवं गमले में लगाने, त्योहारों, पूजा के लिए है। इसके फूल लम्बे अरसे तक खिलते रहते हैं और ज्यादा समय तक ताजे बने रहते हैं।
गेंदे की तीन मुख्य फसलें- ग्रीष्मकालीन. वर्षाकालीन तथा शीतकालीन ली जाती है। अफ्रीकन एवं फ्रेंच गेंदा क्रमशः बीज बोने के 75-90 दिन बाद और 60-75 दिन बाद फूलने लगता है। बीज को बाजार में फूलों की मांग एवं जरूरत को ध्यान में रखकर बोना चाहिए। ग्रीष्मकालीन फसल हेतु बीज जनवरी-फरवरी में, वर्षाकालीन हेतु मई-जून तथा शीतकालीन फसल की बुआई के लिए सितम्बर-अक्तूबर का समय उपयुक्त है।
गेंदे की कई किस्में है, इनमें अफ्रीकन एंव फ्रेंच गेंदे प्रमुख है। अफ्रीकन गेंदे की ऊंचाई 90-100 सेंटीमीटर होती है। इसकी पत्तियां चौड़ी तथा फूलों को नारंगी रंग की किस्में व्यापारिक दृष्टि से अधिक लाभप्रद होती मुख्य किस्में पूसा नारंगी होता है। पूसा बंसती गेंदा है। पूसा नारंगी गेंदा की ऊंचाई 70-75 सेंटीमीटर और फूलों का रंग नारंगी होता है। पूसा बंसती गेंदा की ऊंचाई 55-60 सेंटीमीटर होती है। फूल पीले रंग के बहुपंखुड़ी युक्त होते हैं। एक पौधे पर करीब 60 पुष्प आते हैं। इसके अलावे कुछ अन्य किस्म जैसे अफ्रीकन येलो, अफ्रीकन ओरेंज व क्राउन ऑफ़ गोल्ड प्रमुख हैं।
फ्रेंच गेंदा के पौधे 35-40 सें.मी. तक ऊँचे होते हैं। इनके फूल पीले नारंगी, चित्तीदार या मिश्रित रंग के 3-4 सेंटीमीटर आकार के होते हैं। पिटाईट ओरेंज, पिटाईट येलो. रस्टीरेड, टैंन्जेरिन येलो, लेमन ड्राप एवं डबल हार्मोनी मुख्य किस्में है।
गेंदे की उत्तम खेती के लिए बलुई दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 7-7.5 हो और जल निकास की उचित व्यवस्था हो उपयुक्त होती है। गेंदे की बढ़वार के लिए औसतन तापमान अच्छा रहता है। ज्यादा तापमान पर पौधों की बढ़वार रुक जाती है, फूल छोटे होते हैं।
भूमि को २-3 बार गहरी जुताई कर सड़ी हुई गोबर की खाद 250-300 किवंटल प्रति हेक्टेयर देकर मिला दें। साथ ही लगाते समय प्रति हेक्टेयर डेढ़ किवंटल यूरिया, 4 विंटी एस.एस.पी. तथा 1 किवंटल म्यूरेट ऑफ़ पोटाश दें।
पौधे के प्रवर्धन की दो तरीके है- बीज द्वारा एवं कल्म द्वारा। बीज द्वारा पौधे तैयार करने के 15 सें. मी. ऊँची. 1 मीटर चौड़ी तथा 5-6 मीटर लम्बी क्यारियाँ बनाते हैं। एक हेक्टेयर के लिए 700-800 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज बोने के पूर्व नर्सरी मन 0.3% की दर कैप्टान का छिड़काव करने से पौधे कम नष्ट होते हैं। क्यारियां तैयार करके बीज को 6-8 से.मी. की दुरी पर २ से.मी. गहराई तक बोते हैं। इसके बाद बीजों को हल्की मिट्टी एवं पत्ती या गोबर की छनी हुई खाद से ढँक देते हैं। नर्सरी में आवश्यकतानुसार हजारे से पानी का छिड़काव करें।
पौधों की रोपाई बीज बोने के 30 दिन बाद जब पौधे में 3-4 पत्तियाँ आने लगे तब शाम को करें। अफ्रीकन गेंदें की रोपाई 40 सें.मी. 30 सें. मी. तथा फ्रेंच गेंदे को 20 गेंदे को 20 सें. मी. 20 सें. मी. की दुरी पर करें।
गेंदे के पौधे लगाने के बाद सिंचाई, खरपतवार नियन्त्रण तथा पिचिंग जरूरी है। गेंदे को लगाने के बाद फव्वारों से सिंचाई करें। वर्षा ऋतु में आवश्यकतानुसार, जाड़े में 7-10 दिन पर तथा गर्मी में 4-5 दिन सिंचाई करना चाहिए। पौधे के थोड़ा बड़े होने पर उनके ऊपरी भाग को तोड़ देना चाहिए इससे पौधों में अधिक शाखाएं निकलती हैं जिससे फूलों की पैदावार भी ज्यादा होती है।
जाड़े में जनवरी, बरसात में सितम्बर तथा गर्मी में अप्रैल-मई में फूलों का आना शुरू हो जाता है। फूलों के पूरा खिलने पर सबेरे तोड़ लिया जाता है और बांस की टोकरी में कपड़े से ढंककर बाजार भेजा जाता है। अफ्रीकन गेंदे की ताजे फूलों की उपज 200 किवंटल एवं फ्रेंच गेंदे की 100 किवंटल प्रति हेक्टेयर है। तिल भव से 5 रूपये [राइट किलो बेचने से अफ्रीकन गेंदे से 1 लाख तथा फ्रेंच गेंदे से 50 हजार प्रति हेक्टेयर कुल आमदनी होगी प्रति हेक्टेयर 20-25 हजार खर्च होने पर 30-80 हजार प्रति हेक्टेयर शुद्ध आमदनी होगी।
रोगों में आद्रे गलन, पुष्प कली सड़न हेतु 0.२% इंडो एम् 45 प्रति लिटर तथा पाउडरी मिल्ड्यू हेतु 0.२% घुलनशील सल्फर का छिड़काव करें।
कीड़ों में रेड सपाईडर माईट एवं लीफ हापर है। इससे बचाव हेतु कीटनाशक दवा तथा रोगर, मेतासिसाटाक्स 0.२% व्यवहार करें।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/2/2023
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