गुलाब, बेला, चमेली की फूलों से उत्पादित तेल कई व्यवसाय जैसे इत्र, पेय पदार्थ, मिष्ठान, तम्बाकू से जुड़े व्यवसाय, साबुन व् दुसरे सौन्दर्य प्रसाधनों के व्यवसाय इत्यादि का अभिन्न अंग है। खासतौर पर इत्र तेल की महक बड़ा महत्व रखती है।
नहीं, हर गुलाब तेल उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं होता है। डामास्क गुलाब, बौरबोन गुलाब व चेती गुलाब ऐसे वर्ग हैं जो कि भारत में व्यवसायिक स्तर पर तेल उत्पादन के लिए उगाये जाते हैं।
हमारे देश में तेल उत्पादन के लिए गुलाब में नूरजहान व ज्वाला (मैदानी इलाकों के लिया) व हिमरोज पहाड़ी इलाके के लिए, बेला में मोतिया, मदनबान, रामबानम, सूजी मिल्लिगे, कस्तुरी मल्लि इत्यादी व् चमेली में CO1 पिची, CO2 पिची, सुरभि इत्यादि प्रमुख किस्में मानी जाती हैं।
गुलाब, बेला, चमेली की फूलों से उत्पादन का व्यवसाय मुख्य तौर पर तमिलनाडु में स्थापित है पर इसके अलावा औरंगाबाद (राजस्थान) और पंजाब व् हिमाचल हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों में केन्द्रित हैं।
गुलाब से तेल उत्पादन के लिए नर्सरी में कलमें लगाकर पौधे तैयार किए जाते हैं। एक हेक्टेयर में 1मी.X1मी, की दुरी पर पौधे लगाने के लिए तकरीबन 100 मी. की नर्सरी पर्याप्त होती है। पौधों को ३० सें.मी. गहराई व व्यास के गड्ढों में लगाया जाता है। खेत की तैयारी करते समय 2.5-3.0 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद, 20 किलो स्फुर, 20 किलो पोटाश एवं 200 किलो नेत्रजन दिया जाता है। N को दो हिस्सों में देते हैं एक अक्तूबर व दूसरा जनवरी में । पौधों के दो वर्ष होने पर हर साल सर्दियों में उनकी कटाई-छंटाई की जाती है। कटाई-छंटाई के 2.5-3 महीने बाद फूल आने शुरू हो जाते हैं। इन पौधों से हम १२-15 साल तक फूल ले सकते है। एक हेक्टेयर से हमें 3-4 टन फूल मिलता है जो कि तकरीबन 1 किलों तेल के लिए पर्याप्त है।
इसी तरह बेला, चमेली के पौधे भी कलमों द्वारा ही तैयार किये जाते हैं। तैयार पौधों को 30 सें. मी. व्यास व इतनी ही गहराई वाले गड्ढों में लगाया जाता है। गड्ढों की दुरी 1.5-२ मी. की रखी जाती है। हर वर्ष 100:150:100= एन: पी: के प्रति झाड़ के लिए हिसाब से दिए जाने पर अधिकतम फूलों का उत्पादन लिया जा सकता है। तीसरे वर्ष से लेकर अगले 10-12 वर्षों तक हम प्रति हेक्टेयर तकरीबन 7-10 टन फूल प्रतिवर्ष ले सकते हैं। जिससे कि हमें औसतन १५ किलो की प्राप्ति होती हैं और इस कनक्रीट से 45-45% शुद्ध तेल मिलता है।
गुलाब का तेल बाजार में 1.5-2 लाख रुपया प्रति किलोग्राम व बेला, चमेली से उत्पादित कनक्रीट 15-20 हजार रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदा व बेचा जा सकता है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/3/2023
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