भू आकृति के कारण झारखंड में भू-क्षरण की समस्या विकराल है। प्रत्येक वर्ष उपजाऊ मिटटी वर्षा के पानी के साथ बहकर नदी-नालों में चली जाती है। अतएव भूमि एवं जल संरक्षण उपायों-अभियंत्रण एवं सस्य तकनीकों को अपनाए बिना कृषि उत्पादकता को बरकरार रखना असंभव प्रतीत होता है। अभियंत्रण उपायों में जमीन का समतलीकरण, मेड निर्माण, चेक बाँध, सीढ़ीनुमा खेती, तालाब निर्माण आदि अपनाये जा सकते हैं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा भूमि एवं जल संरक्षण के लिए प्रभावी तकनीकों को विकास कीया गया है। इसके अंतर्गत ऊपरी भूमि में 100 x 100 x 10 आकार के तालाब का निर्माण तथा ड्रेनेज लाइन पर की गड्ढों का निर्माण कीया जाता है जिससे भूमि एवं जल का संरक्षण होता है। मध्यम भूमि में तालाब की गहराई थोड़ी कम की जा सकती है। ये संरचनाएं निचली जमीन के लिए भी फायदेमंद है। तालाब तथा गड्ढों के निर्माण से जमीन के जल स्तर में भी वृद्धि होती है। उपर्युक्त आकार के तालाब १ एकड़ भूमि के लिए उपयुक्त है। इस तकनीक के अंगीकरण से खेत का पानी खेत में तथा खेत का माटी खेत में की संकल्पना कारगर सिद्ध होती है। खोदे गए तालाब में मछली एवं बत्तख पालन तथा तालाब के बाँध पर आधुनिक फसलों की खेती कर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। सस्य विधियों में उपयुक्तता के आधार पर कन्टूर खेती, मिश्रित खेती, जमीन ढँकने वाली फसलों की खेती आदि को अपनाया जा सकता है।
1. कृषि पद्धति प्रदत्त उपाय
कृषि पद्धति के माध्यम से भूमि एवं जल का संरक्षण दूसरी पंक्ति का सुरक्षा कहा जाता है जबकी अभियांत्रिकी उपायों को सुरक्षा की पहली पंक्ति कहा जाता है। भूमि की ऊपरी उपजाऊं मिटटी का क्षरण वर्षाजल के कारण होता है। उपयुक्त फसल चक्र को माध्यम से वर्षा जल के सतही बहाव को रोककर भूमि तथा जल दोनों का संरक्षना सुलभ हो पाता है।
प्रमुख क्रियाविधि
2. वानस्पतिक उपाय
6-8 प्रतिशत से अधिक ढाल वाली भूमि पर कृषि पद्धति प्रदत्त उपाय कारगर नहीं होते हैं। मुख्य रूप से बेंच टेरेस ही ऐसी भूमि पर संरक्षण का साधन है कीन्तु इन बेंच टेरेस को भी घास-फूस उगाकर इनकी सुरक्षा आवश्यक है अन्यथा बिना घास के कोई भी मिटटी की संरचना सुरक्षित नहीं रह सकेगी। भूमि एवं जल संरक्षण के अत्यधिक लोकप्रिय उपचार मेड बंदी (कन्टूर बंडिग) है। इसकी भी सुरक्षा तभी संभव है जब इस मेड पर घास उगा दी जाय अन्यथा मेड की लुज मिटटी तो और आसानी से बह जायेगी। अन्य विभिन्न उपाय हैं।
अभियांत्रिक संरचना
भूमि एवं जल संरक्षण के विभिन्न कारगर उपायों में अभियांत्रिकी संरचना पहली पंक्ति की सुरक्षा संरचना कही जाती है। फिर भी इसके स्थायित्व के लिए वानस्पतिक संरक्षण का होना अति आवश्यक है। साद अवरोधक बाँध, जल संचयन संरचना, डाइवर्सन ड्रेंस इत्यादि की सुरक्षा वानस्पतिक उपचार द्वारा ही सुनिश्चित की जा सकती है। ऐसी संरचना मुख्य रूप से जल बहाव स्रोत के आरपार (एक छोर से दूसरी छोर) बनाई जाती है, जिससे जल बहाव को रोका जाता है और मिटटी तथा जल का संरक्षण सुनिश्चित कीया जाता है। ऐसी संरचना से निम्नांकीत लाभ होते हैं।
मुख्य प्रकार
(1) कन्टूर बडिंग
भूमि का ढाल |
ढाल के अनुसार लम्बवत दूरी |
दूरी समतल दूरी |
% |
मीटर |
मीटर |
0 – 1 |
1 |
105 |
1 – 2 |
1.3 |
55 – 75 |
2 -3 |
1.5 |
60 |
3 – 4 |
1.6 |
50 – 55 |
भूमि का प्रकार: 600-800 मि.मी. (कम वर्षा) वर्षा वाला क्षेत्र हो। जल धारण क्षमता वाली कृषि योग्य भूमि 6 प्रतिशत तक जमीन का ढाल हो इत्यादि।
(2) बेंच टेरेस
6% तक जमीन का ढाल हो। जमीन को सीढ़ीनुमा बनाया जाता है ताकी ढालयुक्त जमीन समतल रूप में हो जाय। भू-क्षरण को रोकता है। भूमि की उत्पादकता को बढ़ाता है।
बेंच टेरेस के प्रकार:
(1) लेबेल (समतल) बेंच टेरेस: प्राय: सिंचित भूमि में इसे पैडी ट्रेंच भी कहते है।
(2) अंतरमुखी बेंच टेरेस: लम्बाई के समानांतर अंदर की ओर बहाव वाला। पानी जमाव से प्रभावित होने वाले फसल क्षेत्र में आलू इत्यादि।
(3) बाहयमुखी बेंच टेरेस: जल निकास रास्ता के साथ मजबूत बंड। ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्र में।
प्रति हेक्टेयर मिटटी की कटाई
E (मिटटी कटाव प्रति हेक्टेयर) (मीटर) = 100/8 W x S या 12.5 W x S
W = मेढ़ की चौड़ाई (मीटर)
S = भूमि का ढलान (स्लोप %)
3. जल संचयन संरचना
स्थल
भूमि उपयोग |
रंग |
कृषि |
पीला
|
वनक्षेत्र |
गहरा हरा
|
चारागाह |
हल्का हरा या सादा पीला
|
बागीचा |
ऑरेंज
|
बासगीत |
लाल
|
जलक्षेत्र |
नीला
|
सड़क |
काला |
क्षेत्र सीमा रेखा |
पतली काली रेखा
|
रीपरेप: बाँध, तालाब या अन्य मिटटी की बाँधनुमा संरचना के दोनों ढलान तरु वर्षा, जानवर, मनुष्य आदि से होने वाले मिटटी कटाव को रोकने की क्रिया।
बाँध के अगले ढलान 7 भाग में जमीन की सतह पर पानी रिसने के दबाव को कम करने हेतु बनाई गई कड़ी परत की संरचना है।
सैचुरेशन ग्रडिएंट: बाँध के अग्रभाग में एकत्र पानी अपनी अधिकतम ऊँचाई से रिसकर बाँध के अंदर-2 संतृप्त सतह तक पहुँचता है। पानी रिसने की यह क्रिया एक ढलाननुमा रेखा में होती है। एस रेखा को संचुरेशन रेखा तथा इसके ढलान को सैचुरेशन ग्रेडिएंट कहते है। यह रेखा बाँध के अंदर ही संतृप्त जमीन में मिल जाय यह आवश्यक है।
जल संग्रहण आकार की क्षमता = % उपलब्ध जल x वर्षापात (cm)/100% x जल छाजन क्षेत्र x 0.7
झारखण्ड में अनुमान्य उपलब्ध जल 15-20% होता है।
झारखण्ड राज्य की मिटटी प्राय: बाँध के अग्रभाग का ढलान पीछे की ढलान से कुछ ज्यादा रखा जाता है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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