हर तरह के फलों के रस को बोतलों में सुरक्षित कर सालों भर प्रयोग में लाया जा सकता है। रस निकालना: अच्छे पके हुए फलों से ही रस लेना चाहिए। फलों को भली-भांति धोकर रस निकाल लें एवं कपड़े या चलनी के द्वारा छान लें।
रस को गर्म करना: रस को 850 सेंटीग्रेड तक गर्म करें। यह तापमान उबलने से थोड़ा पहले पहुंच जाता है। स्वाद के संतुलन हेतु चीनी या नमक अनुकूल फल के रस में डालें। नींबू जाति के फलों के रस को गर्म करना या उबालना नहीं चाहिए, क्योंकि ये रस कड़वे हो जाते है।
रस में परिरक्षक मिलाना: रस को सुरक्षित रखने के लिए रासायनिक सोडियम बेन्जोएट 0.6 ग्राम से 1 ग्राम प्रति लीटर रंगीन रसों के लिए और दूसरे रसों के लिए 0.7 ग्राम पोटाशियम मेटाबाईसल्फाइट प्रति लीटर के हिसाब से मिलाना चाहिए।
बोतलों में रस भरना एवं सील करना: रस को जीवाणुरहित (स्टरलाइज्ड) बोतलों में भरकर कार्क एवं मोम से सील कर रखें।
सामग्री:
फलों का रस 1 किलो
चीनी 1 ½ किलो
पानी ¾ लीटर
साइ ट्रिक एसिड 2-4 ग्राम प्रति किलो स्क्वैश के लिए
परिरक्षक पदार्थ 0.5 से 1 ग्राम प्रति किलो स्क्वैश के लिए
गंध एवं रंग आवश्यकतानुसार
सामान्य विधि: अच्छे पके हुए फल दें। इन्हें धोकर व छीलकर रस निकालकर छान लें। चीनी, पानी व साइट्रिक एसिड मिलायें। एक या दो बार उबाल लेने के पश्चात इस पर से मैल इत्यादि हटाकर किसी कपड़े से छानकर ठंडा कर लें। रस और चीनी के घोल को मिला दें। इसमें परिरक्षक पदार्थ, खाने वाला रंग और खुशबू इत्यादि मिला दें। परिरक्षक पदार्थ और रंग को पहले थोड़े से पानी में घोल लें। फिर इसे बाकी की सारी सामग्री में मिला दें। शुष्क कीटाणुरहित बोतलों में 2.5 से 3.0 सें.मी. खाली स्थान छोड़कर तैयार स्क्वैश को भर दें। भरने के पश्चात बोतलों में कॉर्क लगा दें।
विधि: ताजे पके हुए फल को धो लें। फल को छीलकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें या कद्दूकस कर लें। तौल से ¾ भाग के बराबर चीनी डालकर तेज आग पर पकावें। पकाने में हमेशा अल्युमिनियम बर्त्तन का प्रयोग करें। पकाते समय इसे हमेशा चलाते रहे और जब तापमान 105.50 सेंटीग्रेड पर पहुंच जाय तब उताकर स्टरलाइन्ड की हुई चौड़े मुहँ वाली बोतलों में रखें। ऊपर से मोम की पिघली तह डालें। यदि फल अधिक मीठा हो तो जैम तैयार होने के पूर्व प्रति किलोग्राम फल के टुकड़ों के लिए 1-2 ग्राम साइट्रिक एसिड डालें।
पेकटींन का निस्सारण: ताजे पूरे पके हुए व आधे पके हुए फलों का मिश्रण लें। इन्हें पानी में धोने के पश्चात पतले-पतले टुकड़ों में काट लें। फलों के टुकड़ों के वजन के बराबर या डेढ़ गुणा पानी मिलाकर अल्युमिनियम के बर्त्तन में आधे घंटे तक उसे हल्की आँच पर पकायें। पकाते समय प्रति किलो 2 ग्राम साइट्रिक एसिड डाल दें। जब टुकड़े भली-भांति गल जाय तो पतले कपड़े से छानकर निचोड़ लें, फिर एक चम्मच निचोड़ में दो चम्मच मिथिलेटेड स्प्रिड मिलावें, यदि एक बड़ा अवक्षेप बने तो समझे कि रस में पेकटीन की मात्रा अधिक है। कुछ छोटे अवक्षेप मध्यम मात्रा के द्योतक है। पहली अवस्था में रस के बराबर और दूसरे में तीन-चौथाई चीनी दें।
चीनी मिलाना: रस एवं चीनी के मिश्रण को तेज आंच पर पकावें। उबलते समय झाग हटाते रहें। जब तापक्रम 105.50 सेंटीग्रेड पहुंच जाय तो जेली तैयार हो जाती है। इसके अतिरिक्त जेली का अंतिम बिंदु जांचने के लिए ‘बिंदु परीक्षण’ करते हैं। तैयार पदार्थ को चम्मच में भरकर थोड़ा ठंडा करें तथा इसके पश्चात जेली की एक बूंद पानी से भरे कांच के गिलास में डालें। यदि बूंद पानी में नहीं घुलती व जम जाती है तो समझिये जेली तैयार है।
बोतलों में भरना: आग से उतारने के बाद इसे चौड़े मुहँ वाले जार में भरकर रखें तथा ठंडा होने पर मोम से सील कर दें।
केचप टमाटर के रस को गाढ़ा करने से तैयार होता है। इसके लिए टमाटर का रसयुक्त गुदा (बीज एवं छिलका रहित) तथा निम्नलिखित सामानों की आवश्यकता होती है।
सामग्री मात्रा
टमाटर का गूदा 5 किलोग्राम
प्याज (कटे हुए) 60 ग्राम
लहसुन (कटा हुआ) 5 ग्राम
लौंग 5 ग्राम
बड़ी इलायची, काली मिर्च और जीरा 3 ग्राम
(बराबर मात्रा में मिलाकर कूट लें)
दालचीनी 3 ग्राम
जावित्री 1 ग्राम
लाल मिर्च 3 ग्राम
नमक 40 ग्राम
चीनी 300 ग्राम
सिरका ¼ लीटर या 10-12 मि.ली.
ग्लोशियल एसिटिक एसिड
सभी मसालों को कुचल एवं बारीक कर कपड़े की पोटली में बाँधकर रस में डुबा दें आधी चीनी एवं पूरा नमक रस में डाल दें। मिश्रण को तेज आंच पर गर्म करें। अंत में बची हुई चीनी और सिरका डालें। जब रस गाढ़ा होकर 1/3 हिस्सा बचे तो केचप तैयार समझे। इसे साफ़ बोतलों में भरकर रखें। काग एवं मोम से सील कर दें।
फल एवं सब्जियाँ धूप में सुखाई जा सकती हैं अथवा यांत्रिक विधि द्वारा भी सुखाई जा सकती है। इसके लिए गैलवनाइज्ड लोहे की चादरों का उपयोग करें। गर्मी पहुँचाने के लिए साधारणत: अंगीठी की व्यवहार किया जा सकता है। सुखाये गये पदार्थो का भंडारण बिस्कुट के डब्बे या टिन अथवा पॉलीथीन के छोटे-छोटे थैलों में सील बंद कर सूखे स्थानों में करें।
किसानों को अनुसंशिसत पोषक तत्वों की मात्रा को उर्वरकों के रूप में परिवर्तन करने में कठिनाई होती है। अत: निम्न तालिका में अनुशंसित मात्राओं को नाइट्रोजन, फ़ॉस्फोरस एवं पोटाश धारी उर्वरकों में परिवर्तित करके अलग-अलग समूह में दिखाया गया है। उर्वरकों की उपलब्धता के आधार पर निम्न 3 समूहों में से किसी समूह को चुनकर उर्वरक दें।
फसल |
पोषक तत्व की मात्रा/हें. |
फसल की अवस्था |
उर्वरक की मात्रा किग्रा./हें. |
||||||||
(क) |
या (ख) |
या (ग) |
|||||||||
डी. ए. पी. |
यूरिया |
म्यू. पोटाश |
12:32:16 एन. पी. के. |
यूरिया |
मयू. पोटाश |
यूरिया |
सिं. सु. फा. |
म्यू. पोटाश |
|||
धान रोपनी के लिए |
|||||||||||
1 अधिक उपजशील प्रभेद |
120:60:40 |
बीज स्थलों में प्रति 100 वर्ग मीटर |
2 |
15 |
- |
3 |
1.5 |
- |
2 |
6 |
- |
|
बीज गिराने के बाद 15 दिन बाद |
- |
1.5 |
- |
- |
1.5 |
- |
1.5 |
- |
- |
|
|
रोपनी के पूर्व |
130 |
105 |
67 |
188 |
106 |
17 |
130 |
375 |
66 |
|
|
कल्ले निकलने के समय |
- |
53 |
- |
- |
53 |
- |
65 |
- |
|
|
|
बाली निकलने के समय |
- |
53 |
- |
- |
53 |
- |
65 |
- |
- |
|
2 उन्नत प्रभेद |
80:40:20 |
बीज स्थली में प्रति 100 वर्ग मीटर |
- |
- |
- |
1 |
0.5 |
- |
1 |
7 |
- |
|
रोपनी के पूर्व |
88 |
55 |
36 |
125 |
55 |
- |
88 |
125 |
36 |
|
|
कल्ले निकलने के समय |
- |
45 |
- |
- |
45 |
- |
45 |
- |
- |
|
|
बाली निकलने के समय |
- |
45 |
- |
- |
45 |
- |
45 |
- |
- |
फसल |
पोषक तत्व की मात्रा प्रति हें. |
फसल की अवस्था |
उर्वरक की मात्रा किग्रा./हें. |
||||||||
(क) |
या (ख) |
या (ग) |
|||||||||
डी.ए.पी. |
यूरिया |
म्यू. पोटाश |
12:32:16 एन.पी.के. |
यूरिया |
म्यू. पोटाश |
यूरिया |
सिं.सु.फा. |
म्यू. पोटाश |
|||
1 अधिक उपजशील प्रभेद |
60:30:20 |
बुआई के समय |
65 |
55 |
36 |
95 |
55 |
10 |
65 |
188 |
36 |
|
बुआई के 20 दिन बाद |
- |
27 |
- |
- |
27 |
- |
33 |
- |
- |
|
|
बुआई के 40 दिन बाद |
- |
27 |
- |
- |
27 |
- |
33 |
- |
- |
|
2 गोड़ा या स्थानीया प्रभेद |
40:30:20 |
बुआई के समय |
65 |
17 |
36 |
95 |
20 |
10 |
45 |
188 |
36 |
|
बुआई के 20 दिन बाद |
- |
42 |
- |
- |
42 |
- |
42 |
- |
- |
|
गेहूँ सिंचित |
|||||||||||
1 अधिक |
120:60:40 |
बुआई के समय |
130 |
105 |
68 |
188 |
106 |
17 |
130 |
375 |
66 |
उत्पादनशील |
|
बुआई के 20-25 |
- |
53 |
- |
- |
53 |
- |
55 |
- |
- |
प्रभेद समय से |
|
बुआई के 40-45 दिन बाद |
- |
53 |
- |
- |
53 |
- |
55 |
- |
- |
विलम्ब से |
80:40:20 |
बुआई के समय |
88 |
55 |
36 |
125 |
55 |
- |
88 |
250 |
36 |
|
|
बुआई के 20-25 दिन बाद |
- |
45 |
- |
- |
45 |
- |
45 |
- |
- |
असिंचित |
60:30:20 |
बुआई के समय |
65 |
110 |
36 |
95 |
110 |
10 |
130 |
188 |
36 |
मक्का |
120:60:40 |
बुआई के समय |
130 |
105 |
68 |
188 |
106 |
17 |
130 |
375 |
66 |
|
|
बुआई के 30 दिन बाद |
- |
53 |
- |
- |
53 |
- |
65 |
- |
- |
|
|
धनबाल के समय |
- |
53 |
- |
- |
53 |
- 65 |
65 |
- |
- |
मडुआ |
40:30:20 |
बोने के समय |
65 |
17 |
35 |
20 |
20 |
10 |
45 |
188 |
35 |
|
|
रोपनी के समय |
- |
22 |
- |
- |
22 |
- |
22 |
- |
- |
|
|
रोपनी के 25-30 |
- |
22 |
- |
- |
22 |
- |
22 |
- |
- |
अरहर, उरद, मूंग, चना, मसूर एवं मटर |
25:50:25:20 |
बुआई के समय |
112 |
12 |
40 |
158 |
15 |
- |
55 |
312 |
40 |
मूंगफली |
25:50:20 |
बुआई के समय |
112 |
12 |
36 |
158 |
15 |
- |
55 |
312 |
36 |
सोयाबीन |
20:80:40 |
बुआई के समय |
175 |
- |
72 |
250 |
- |
17 |
45 |
500 |
72 |
तिल |
40:40:20 |
बुआई के समय |
88 |
10 |
36 |
125 |
10 |
- |
45 |
250 |
36 |
|
|
बुआई के 25-30 दिन बाद |
- |
45 |
- |
- |
45 |
- |
45 |
- |
- |
तीसी |
|||||||||||
असिंचित |
20:20:20 |
बुआई के समय |
45 |
25 |
36 |
62 |
27 |
17 |
45 |
125 |
36 |
सिंचित |
40;30:20 |
बुआई के समय |
45 |
25 |
36 |
62 |
27 |
17 |
45 |
125 |
36 |
|
|
बुआई के 20 दिन बाद |
45 |
25 |
- |
- |
45 |
- |
45 |
- |
- |
तोरिया |
60:40:20 |
बुआई के समय |
86 |
50 |
36 |
125 |
50 |
12 |
65 |
155 |
36 |
|
|
बुआई के 20-25 दिन बाद |
- |
50 |
- |
- |
50 |
- |
65 |
- |
- |
सरसों |
80:40:20 |
बुआई के समय |
88 |
55 |
36 |
125 |
55 |
- |
88 |
250 |
36 |
|
|
बुआई के 20-25 दिन बाद |
- |
88 |
- |
- |
88 |
- |
88 |
- |
- |
आलू |
120:100: 90 |
बुआई के समय |
220 |
45 |
152 |
312 |
50 |
68 |
133 |
625 |
152 |
|
|
मिट्टी चढ़ाते समय |
- |
133 |
- |
- |
133 |
- |
133 |
- |
- |
फसल |
बुआई/ रोपनी का समय |
प्रभेद |
बीज दर (प्रति हें.) |
बुआई/ विधि एवं संख्या |
कटनी की विधि एवं संख्या |
उर्वरक की मात्रा ना.फा.पो. |
उपज क्षमता (क्विं./हे.) |
प्रोटीन की मात्रा |
(क)खरीफ |
|
|
|
|
|
|
|
|
दीनानाथ घास |
जून-जुलाई |
बुन्देल-1 टी-15 |
15 किलो |
20 सें.मी. |
पहली कटनी 50 दिनों पर एवं दूसरी कटनी फूल लगते समय |
60:40:20 |
600 |
6.0 |
मकचरी |
” |
स्थानीय |
40 किलो |
30 सें.मी. |
” |
80:40:20 |
300 |
7.0 |
ज्वार |
” |
रिओ 988 पुसाचरी -23 |
40 किलो |
25 सें.मी. |
तदैव |
80:40:20 |
400 |
400 |
मक्का |
” |
अफ्रीकन टॉल |
40 किलो |
30 सें.मी. |
भुट्टे लगने से पहले |
100:50:25 |
450 |
8.0 |
बोदी |
” |
यूपीसी – 5286 |
40 किलो |
30 सें.मी. |
फूल लगते ही |
20:40:20 |
350 |
16.0 |
मक्का + बोदी |
” |
उपर्युक्त |
20 किलो |
दो पंक्ति मक्का एवं एक पंक्ति बोदी |
तदैव |
60:40:20 |
500 |
12.0 |
मोठ बीन |
” |
विधान-1 |
30 किलो |
30 सें.मी. |
तदैव |
20:40:20 |
300 |
16.0 |
(ख) रबी |
|
|
|
|
|
|
|
|
जइ |
अक्टूबर मध्य |
केंट यूपीओ -812 ओ.एस.-6 |
100 किलो |
25 सें.मी. |
पहली और दूसरी कटनी क्रमश: 45 और 30 दिन के बाद एवं बाद की कटनी फूल लगते ही |
80:40:20 |
500 |
8.0 |
बरसीम |
” |
वरदान |
25 किलो |
25 सें.मी. |
पहली कटनी 50 दिन बाद एवं बाद की कटनी प्रति 25 दिन बाद |
25:80:20 |
700 |
16.0 |
रिजका (लूर्सन) |
|
आनंद-2 |
20 किलो |
” |
तदैव |
25:80:20 के अतिरिक्त मिट्टी में 3 क्विंटल चूना 4 किलो बोरन एवं 1 किलो मोलि ब्डेनम |
600 |
18.0 |
सरसों + बरसीम |
सितम्बर से अक्टूबर |
जापानी सरसों उपर्युक्त |
12 किलो बरसीम + 2 किलो सरसों |
” जई 25 सें.मी. |
फल लगने के समय पहली कटनी 30 दिन के बाद एवं बाद की कटनी प्रति 25 दिन बाद |
60:40:30 40:60:30 |
250 800 |
9.0 |
सरसों + जई |
मध्य |
मिश्रण |
6 किलो जई+ 2 किलो सरसों |
पर एवं अन्य छिटकर |
|
|
|
|
(ग) बहुवार्षिक |
||||||||
संकर नेपियर |
जून-जुलाई |
कामधेनु आई. जी. एफ. आर. आई-6 |
40,000 कतरन (दो गाँई युक्त) |
60 सें.मी. 40 सें.मी. |
पहले वर्ष सितम्बर एवं नवम्बर में दूसरे वर्ष से सिंचाई की पूर्ण व्यवस्था रहने पर प्रति माह एक कटनी |
20:40:20 रोपने के समय एवं प्रत्येक कटनी के बाद 25 की नाइट्रोजन/ हें. |
1500 |
8.0 |
सदाबहार |
जून-जुलाई |
स्थानीय |
36,000 जड़युक्त भाग |
50 x 40 सें.मी. |
पहले वर्ष हल्की कटनी सितम्बर- अक्टूबर में बाद में वृद्धि के अनुसार 4-5 कटनी। इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। |
रोपने के समय एवं वर्षा होने पर 40 किग्रा./हें. |
400 |
6.0 |
गिन्नी घास |
जून-जुलाई |
मकुनी |
8 कि. |
50 x 40 सें.मी. |
चारागाह में दूसरे वर्ष से प्रतिवर्ष |
तदैव |
400-600 |
7.0 |
नन्दी घास |
” |
स्थानीय |
|
|
5-6 कटनी या हल्की चराई। |
|
|
|
पारा घास |
” |
” |
40,000 एक गाँठ वाली तरन |
50 x 40 सें.मी. |
नमीवाली भूमि में प्रतिमाह एक कटनी या हल्की चराई |
गोशाला का पानी या 40 कि.ना. हें./कटनी |
1000 |
8.0 |
सआइलो |
” |
स्कोफिल्ड ग्राहम |
10 कि. |
छिटा |
पहले वर्ष हल्की कटनी सितम्बर माह में एवं दूसरे वर्ष से पौधे की वृद्धि होने पर 5-6 बार। असिंचित एवं चारागाह के लिए अति लाभदायक |
20:40:20 बुआई के समय एवं प्रति वर्ष बरसात में 30 कि. फ़ॉस्फोरस प्रति हें. |
400 |
18.0 |
गिन्नी घास + स्टाइलो |
जून-जुलाई |
उपर्युक्त किस्मों का मिश्रण |
5.5 कि. |
पतली नेपियर 60 सें.मी. पर पंक्तियों में एवं स्टाइलो छिटकर |
तदैव |
तदैव |
500 |
12.0 |
रिजका + गेहूँ |
अक्टूबर – नवम्बर |
आनंद-2 यू.पी.262 |
15:25 कि. |
3:1 पंक्ति |
रिजका की कटनी 30 दिन के अंतराल पर। |
100:60:40 |
रिजका 800, गेहूँ-15 |
18 रिजका |
(घ) सुबबूल |
||||||||
|
|
चारा वृक्ष के-8 (हवाइयन जायंट) कर्नीगघम |
20 कि. बीज को गर्म पानी में 800 सें.ग्रे. पर 2 मिनट तक उपचार कर बुआई करना होता है 10-12 कि. बीज प्रति हें. |
1.5 मी.x 10 सें.मी.
75 सें.मी.x 10 सें.मी. |
दूसरे साल से पौधों को एक मी. की ऊँचाई पर छोड़कर ऊपर का मुलायम भाग (करीब 25 सें.मी.) समय-समय पर काटना उचित है। |
आम्लिक मिट्टी के लिए चूना का व्यवहार करके मिट्टी का पी.एच.6 के करीब कर लेने के बाद 20:60:20 के अनुपात में उर्वरक |
700 |
10.0 |
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/27/2020
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