पौधों के समुचित विकास के लिए नाइट्रोजन एक आवश्यक पोषक तत्व है। रासायनिक उर्वरकों के अलावा शैवाल तथा जीवाणु की कुछ प्रजातियां वायुमंडलीय नाइट्रोजन (80 प्रतिशत) का स्थिरीकरण कर मूदा तथा पौधों को देती है और फसल के उत्पादकता में वृद्वि करती है। इस क्रिया को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं। इन सूक्ष्म जीवाणुओं को ही जैव उर्वरक कहते हैं। नील-हरित शैवाल एक विशेष प्रकार की काई होती है। नील हरति शैवाल उत्पादन की विधि इस प्रकार है
जलाक्रान्त दशा, जिसमें धान उगाया जाता है, नील-हरित शैवाल की औलोसिरा, ऐनाबिना, ऐनाबिनाप्सिम, कैलोथ्रिक्स, कैम्पाइलोनिया, सिलिन्ड्रो स्पमर्म फिश्येरला, हैप्लोसीफान, साइक्रोकीटे, नास्टोक, वेस्टिलोप्सिम और टोलीपोथ्रिक्स नामक प्रजातियों के लिए सर्वथा उपयुक्त रहती हैं। धान के खेत का वातावरण नील-हरित शैवाल की वृद्वि के लिए सर्वथा उपयुक्त होता है। इसकी वृद्वि के लिए आवश्यक ताप, प्रकाश, नमी और पोषक तत्वों की मात्रा धान के खेत में विद्यमान रहती है।
5 मीटर लम्बा, 1 मीटर चैड़ा तथा 10 से 15 सेमी गहरा पक्का टैंक बना लें। टैंक की लम्बाई, आवश्यकतानुसार घटाई बढ़ायी जा सकती है। टैंक उंचे व खुले स्थान पर होना चाहिए। टेंक के स्थान पर लगभग 12 से 15 सेमी गहरा, 1 मीटर चौड़ा और आवश्यकतानुसार लम्बा कच्चा गड्ढा बना सकते हैं। कच्चे गड्ढे में 400-500 गेज मोटी पालीथीन बिछा लें।
टैंक व गड्ढे में 5 से 6 इंच तक पानी भर लें तथा प्रति मीटर लम्बाई के हिसाब से एक से डेढ़ किलोग्राम खेत की साफ-सुथरी भुरभुरी मिट्टी, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 10 ग्राम कार्बोफयुरान डाल कर अच्छी तरह मिला लें तथा दो7तीन घण्टे के लिए छोड़ दें।
मिट्टी बैठ जाने पर 100 ग्राम प्रति मीटर लम्बाई के हिसाब से, शैवाल स्टार्टर कल्चर पानी के उपर समान रूप से बिखेर दें।
लगभग 1 सप्ताह में शैवाल की मोटी परत बन जाती है। साथ ही साथ पानी भी सूख जाता है। यदि तेज धूप के कारण परत बनने से पहले ही पानी सूख जाये तब टैंक में और पानी डाल दें, पानी सावधानीपूर्वक किनारें से धीरे-धीरे डालें ।
टैंक को धूप में सूखने के लिए छोड दें। पूर्णतयः सूख जाने पर शैवाल को इकट्ठा करके पालीथीन बैग में भरकर खेतों में प्रयोग करने हेतु रख लें। शैवाल की मोटी परत बनने के एक हफ्ते बाद भी यदि गड्डे व टैंक में पानी भरा हो, तो उसे डिब्बे इत्यादि से सावधानीपूर्वक बाहर निकाल दें।
पुनः उपरोक्त विधि से उत्पादन शुरू करें तथा स्टार्टर कल्चर के स्थान पर उत्पादित कल्चर का प्रयोग करें। एक बार में 5 मीटर टैंक या गड्ढे से लगभग 6.50-7.00 किलोग्राम शैवाल का जैव उर्वरक प्राप्त होता है।
नील-हरित का जैव उर्वरक के उत्पादन के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। अप्रैल, मई, जून माह इसके उत्पादन के लिए उपयुक्त होते हैं।
पोषक तत्त्वों की अनुशंसित मात्रा से खाद या उर्वरक की मात्रा का ज्ञान (किलोग्राम में) जैविक खाद या रासायनिक उर्वरकों में पोषक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा
वांछित मात्रा कि./हे. प्रतिशत |
0.3 प्रतिशत |
0.4 प्रतिशत |
0.5 प्रतिशत |
1 प्रतिशत |
4 प्रतिशत |
9 प्रतिशत |
15 प्रतिशत |
16 प्रतिशत |
5 |
1667 |
1250 |
1000 |
500 |
125 |
56 |
33 |
31 |
10 |
3332 |
2500 |
2000 |
1000 |
250 |
111 |
67 |
66 |
15 |
5000 |
3750 |
3000 |
1500 |
375 |
167 |
100 |
94 |
20 |
9667 |
5000 |
4000 |
2000 |
500 |
222 |
133 |
125 |
30 |
10,000 |
7500 |
6000 |
3000 |
750 |
333 |
200 |
188 |
50 |
16,667 |
12,500 |
10,000 |
5000 |
1250 |
556 |
333 |
313 |
60 |
20,000 |
15,000 |
12,000 |
6000 |
1500 |
667 |
400 |
375 |
75 |
25,000 |
18,750 |
15,000 |
7500 |
1875 |
883 |
500 |
469 |
100 |
33,333 |
25,000 |
20,000 |
10,000 |
2500 |
1111 |
667 |
625 |
जैविक खाद या रासायनिक उर्वरकों में पोषक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा
वांछित मात्रा कि./हे. प्रतिशत |
18 प्रतिशत |
20 प्रतिशत |
21 प्रतिशत |
25 प्रतिशत |
26 प्रतिशत |
28 प्रतिशत |
46 प्रतिशत |
48 प्रतिशत |
53 प्रतिशत |
67 प्रतिशत |
5 |
28 |
25 |
24 |
20 |
19 |
18 |
11 |
10 |
9 |
8 |
10 |
56 |
50 |
44 |
40 |
38 |
36 |
22 |
21 |
19 |
17 |
15 |
83 |
75 |
72 |
60 |
58 |
54 |
33 |
31 |
28 |
25 |
20 |
111 |
100 |
95 |
80 |
77 |
71 |
43 |
42 |
38 |
33 |
30 |
167 |
150 |
143 |
120 |
115 |
107 |
65 |
63 |
57 |
50 |
50 |
278 |
250 |
238 |
200 |
192 |
179 |
109 |
104 |
94 |
83 |
60 |
333 |
300 |
286 |
240 |
231 |
214 |
130 |
125 |
113 |
100 |
75 |
417 |
375 |
358 |
300 |
288 |
268 |
163 |
156 |
141 |
125 |
100 |
556 |
500 |
476 |
400 |
385 |
357 |
217 |
208 |
189 |
167 |
मान लीजिए नाइट्रोजन 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर यूरिया के रूप में खेत में डालना है। यूरिया का ऊपर की सारणी के अनुसार नाइट्रोजन 46 प्रतिशत है। तालिका में 46 प्रतिशत और 50 किलो की पंक्तियों में देखने पर 109 अंक मिलेगा। अत: 109 किलोग्राम यूरिया खेत में डालना है। इसी प्रकार अन्य खाद एवं उर्वरकों का मान निकाला जा सकता है।
राइजोबियम कल्चर क्या है?
सभी दलहनी फसलों की जड़ों में छोटी-छोटी गाँठें होती है। इनमें राइजोबियम जीवाणु रहते हैं। ये जीवाणु हवा में नाइट्रोजन लेकर पौधों को खाद के रूप में प्रदान करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकी द्वारा राइजोबियम की संख्या प्रयोगशाला में बढ़ाकर कल्चर के रूप में देना सम्भव हो गया है। राइजोबियम कल्चर एक जीवाणु खाद है, जिसमें हवा से नाइट्रोजन लेने वाले जीवाणु काफी संख्या में रहते हैं। इसे दलहन की उपज में वृद्धि के लिए बीज को उपचारित करने में प्रयोग करते हैं।
कल्चर का प्रयोग क्यों करें?
1. पौधों को नाइट्रोजन हवा से प्राप्त होता है। 2. रासायनिक नाइट्रोजन से खाद की बचत होती है। 3. उपज में 15 से 20 प्रतिशत वृद्धि होती है। 4. भूमि की उर्वरता में विकास होता है। 5. दलहनी फसल के बाद अन्य दूसरी फसलों को भी नाइट्रोजन प्राप्त होता है। 6. इसमें 90 से 110 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष मिलता है, जो 200-250 किलो यूरिया के बराबर है।
बीज उपचारित करने की विधि
1. बोने के पहले 200 ग्राम गुड़ एक लिटर पानी में डालकर पन्द्रह मिनट तक उबाले। 2. अच्छी तरह ठंडा होने पर इस घोल में दो पैकेट राइजोबियम कल्चर मिला दें। 3. एक एकड़ के लिए पर्याप्त बीज को कल्चर के घोल में डालकर साफ़ हाथों से अच्छी तरह मिला दें। 4. इसे अखबार या साफ़ कपड़े पर छाया में आधे घंटे तक सूखने दें। उसके बाद उपचारित बीजों की बोआई शीघ्र कर डालें। 5. आम्लिक मिट्टी में कल्चर युक्त बीज का चूना प्रतिकरण (1 किलो बारीक चूना प्रति 10 किलो बीज के लिए) करना लाभदायक है।
सावधानी
1. कल्चर को धूप से बचायें। 2. कल्चर जिस फसल का हो, उसका प्रयोग उसी फसल के बीज के लिए करें। 3. कल्चर का प्रयोग पैकेट पर अंकित अवधि तक अवश्य कर लें। इस अवधि तक इसे ठंडे एवं सूखे स्थान पर रखें। 4. उपचारित बीज की बोआई शीघ्र कर दें। 5. कल्चर की क्षमता बढ़ाने के लिए फ़ॉस्फेट खाद की पूरी मात्रा मिट्टी में अवश्य मिलायें।
इस कल्चर का प्रयोग अनाज वाली फसलों, जैसे – धान, गेहूँ, जौ, ज्वार, मक्का, सब्जी फसलें जैसे – टमाटर, आलू, बैगन तथा नकदी फसलों, जैसे – गन्ना आदि के लिए करते हैं।
कल्चर से लाभ
1. एजोटोबैक्टर कल्चर के प्रयोग से 10 से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर रासायनिक उर्वरक की बचत की जा सकती है। 2. इसके प्रयोग से बीजों का अंकुरण अच्छा होता है और जड़ें जमीन के अंदर काफी फ़ैल जाती हैं, जिससे ज्यादा मात्रा में पौधों द्वारा नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है। 3. एजोटोबैक्टर पौधों की जड़ों में होने वाली फफूंदी जनित बीमारियों से बचाने में भी सहायक होता है। 4. इस कल्चर के प्रयोग से अनाज वाली फसलों में 10 से 20 प्रतिशत एवं सब्जी फसलों में 10 से 15 प्रतिशत तक पैदावार में वृद्धि होती है।
प्रयोग विधि
इसके उपचार करने का तरीका राइजोबियम कल्चर की तरह ही है। बिचड़ों के उपचार के लिए कल्चर के घोल में बिचड़ों की जड़ों को डुबोकर रोपाई करें।
सावधानी
राइजोबियम कल्चर की तरह करें।
वाम कल्चर (माइकोराइजा)
इस कल्चर का प्रयोग सभी प्रकार अनाज, दलहन, तेलहन एवं सब्जी फसलों में करते हैं। यह पौधों में फ़ॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ाता है। इसके प्रयोग से भूमि में घुलनशील फ़ॉस्फोरस अवशोषित होकर पौधों की जड़ों में सीधा पहुँचता है। यह फ़ॉस्फोरस प्रदान करने के अतिरिक्त पौधों को जल एवं अन्य पोषक तत्व उपलब्ध करने में सहायक है।
उत्पादन एवं प्रयोग विधि
1.भूमि को तैयार करने के पश्चात उसकी सतह पर पुआल बिछा कर जला दें। तत्पश्चात पंक्तियों में कल्चर का छिड़काव कर बुआई कर दें। 2. 10 वर्ग मीटर टांड भूमि में 2 किलोग्राम कल्चर पंक्तियों में छिड़काव करें। 3. इन पंक्तियों में ज्वार, मकई, गिन्नी घास में से कोई एक फसल लगायें। 4. 45 दिनों के पश्चात पौधों का उपरी भाग काट कर हटा दें। 5. पौधें की जड़ को मिट्टी सहित 15 सें.मी. गहराई तक उठाकर प्लास्टिक की थैली में रखें। 6. अपनी आवश्यकतानुसार कल्चर का उत्पादन कर 1.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय पंक्ति में छिड़काव कर बीज को लगायें।
सावधानियाँ
1.इसे धूप एवं पानी से बचायें, 2. उर्वरक एवं दवाओं के सीधे सम्पर्क से बचायें। 3. सम्भव हो सके तो गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग फसल में करें। 4. पौधों की जड़ से लगी पूरी मिट्टी का प्रयोग करें। 5. कल्चर उत्पादन भूमि को तैयार करने के पश्चात सतह पर पुआल बिखेर कर जला दें। तत्पश्चात पंक्ति में कल्चर को छिड़कर बुआई करें।
फ़ॉस्फो जीवाणु टीका (फ़ॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ाने हेतु)
इस टीके के प्रयोग से भूमि में फ़ॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ती है। इस टीके के जीवाणु मिट्टी में पाये जाने वाले अघुलनशील फ़ॉस्फोरस को शीघ्र ही घोल के रूप में परिवर्तित कर देते है। जिससे पौधों की जड़े इस घोल का शीघ्र ही आसानी से अवशोषित कर लेती है। अनुसंधान के बाद यह पाया गया है कि अन्य फसल की अपेक्षा गेहूँ, धान, लोबिया, मसूर, चना और आलू में इस टीके के प्रयोग से उपज में 10-15 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।
प्रयोग विधि
1.एक एकड़ में बोए जाने वाले बीज को टीका लगाने के लिए दो थैली पर्याप्त है। 2. 5 प्रतिशत गुड़ या चीनी के आधा लीटर पानी के घोल को उबाल लें। 3. ठंडा होने पर कल्चर के घोल में अच्छी तरह मिलायें। 4. इस घोल को बीज पर डालकर अच्छी तरह मिला दें।
सावधानियाँ
1.कल्चर का प्रयोग समाप्ति तिथि से पहले शीघ्रातिशीघ्र करें। 2. आम्लिक मिट्टी में आवश्यक मात्रा में खाद एवं चूने का प्रयोग करें। 3. कल्चर युक्त बीजों एवं कल्चर को उर्वरक एवं दवाओं के सीधे सम्पर्क में न आने दें।
कम्पोस्ट बनाने की विधि
गड्डे का आकार: 3 मीटर लम्बा, 1.5 मीटर चौड़ा, 1 मीटर गहरा। गढ्ढे की संख्या: प्रति मवेशी एक गढ़ा। सामग्री: खरपतवार, कूड़ा-कचरा, फसलों के डंठल, पशुओं के मल-मूत्र एवं इनसे सने पुआल, जलकुम्भी इत्यादी।
गड्ढा भरने की विधि
1.प्रत्येक गढ़े को तीन भागों में बाँट कर कूड़े-कचरे, पुआल, पत्तियाँ आदि को एक पतली परत के रूप में (15 से.मी.) बिछाये। 2. गोबर का पतला घोल (5 प्रतिशत) बनाकर इस सतह पर डालें तथा लगभग 200 ग्राम लकड़ी की राख बिछायें। 3. प्रत्येक सतह पर लगभग 25 ग्राम यूरिया डाल दें। 4. गड्ढे को इसी प्रकार तब तक भरते रहें, जब तक उसकी ऊँचाई जमीन की सतह से ३० सें.मी. ऊँची न हो जायें। 5. बारीक मिट्टी की पतली परत (5 सें.मी.) से गढ़े को बंद कर दें तथा मिट्टी से ढंक दें। 6. लगभग 5 से 6 महीने में कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाएगी।
इनरिच्ड कम्पोस्ट बनाने की विधि
1.उपरोक्त विधि के अनुसार गड्ढा खोदकर पूरे गड्ढे को उपलब्ध सामग्री से एक साथ ही भरे दें तथा 100 प्रतिशत नमी बनायें रखें। 2. ढाई किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति टन अपशिष्ट में यूरिया के रूप में तथा 1 प्रतिशत फ़ॉस्फोरस मसूरी रॉक फ़ॉस्फोरस के रूप में डालें। 3. पन्द्रह दिनों के बाद फफूंद पेनेसिलयम, एसपरजीलस या ट्रायकूरस 500 ग्राम प्रति टन जैविक पदार्थ की दर से डालें। 4. अपशिष्ट की पलटाई 15, 30 तथा 45 दिनों के अंतर पर करें। 5. तीन-चार महीनों में खाद तैयार हो जायेगी। इसके लिए फफूंद का कल्चर मृदा विज्ञान विभाग, राँची कृषि महाविद्यालय, कांके में उपलब्ध है।
कम्पोस्ट बनाते समय ध्यान देने योग्य बातें
1.गढ़े ऐसे स्थान पर बनाये, जहां पानी लगने की संम्भावना नहीं हो। 2. गड्ढे छायादार स्थान में तथा पानी के स्त्रोत जैसे, तालाब या कुआ के पास बनाये जायें। 3. गड्ढे भरते समय अनुशंसित मात्रा में पानी का प्रयोग करना चाहिए, ताकि नमी के अभाव में सड़ने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव नहीं पड़े। 4. विभिन्न प्रकार की सामग्री को, संभव हो तो, छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर डालना चाहिए। 5. पशुओं के मल-मूत्र का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, जिससे उत्तम कोटि का खाद तैयार हो। 6. तैयार खाद बदबू रहित, भुरभुरी एवं काला या गढ़ा रंग लिये होती है।
किलोग्राम |
1000 ग्राम
|
टन |
1000 कि.ग्रा. – 10 क्विंटल
|
पी.पी.एम |
1 दस लाखवाँ भाग
|
मीटर |
100 सें.मी. |
हेक्टेयर |
2.5 एकड़ (करीब)
|
पी2 ओ5 |
पी X 2.29 पी. = पी2ओ5 X 0.436
|
के2ओ |
के. X 1.20, के = के2ओ X 0.83
|
कि.ग्रा. कैलिशयम |
2.5 कि.ग्रा. लाइमास्टोन = 5 कि. ग्रा. डोलोमाइट
|
1 कि.ग्रा. मैग्नीशियम |
10.4 कि.ग्रा. मैग्नीशियम सल्फेट 6.2 कि.ग्रा. मोनोहाइड्रेट 8 कि.ग्रा. डोलोमाइट
|
1 कि.ग्रा. सल्फर |
4.2 कि.ग्रा. अमोनियम सल्फेट 8.3 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट |
1 कि.ग्रा. बोरॉन |
10.0 कि.ग्रा. बोरेक्स
|
1 कि.ग्रा. कॉपर |
4.2 कि.ग्रा. कॉपर सल्फेट
|
1 कि.ग्रा. मैंगनीज |
3.3 कि.ग्रा. मैंगनीज सल्फेट
|
1 कि.ग्रा. आयरन |
5.3 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट
|
1 कि.ग्रा. मालिब्डेनम |
2.92 कि.ग्रा. आमेनियम मालिब्डेट |
1 कि.ग्रा. जस्ता |
4.8 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट 3.1 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट 3.1 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट 3.1 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट 8.3 कि.ग्रा. जिंक ईडीटीए |
एक किलोग्राम तत्व के लिए विभिन्न उर्वरक की मात्रा (कि.ग्रा. में)
खाद |
|
नाइट्रोजन |
|
फ़ॉस्फोरस |
|
पोटाश |
यूरिया |
|
2.17 |
|
- |
|
- |
डी.ए.पी. |
|
5.55 |
|
2.17 |
|
- |
एस.एस.पी |
|
- |
|
6.25 |
|
- |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश |
|
- |
|
- |
|
1.67 |
नोट: डी.ए.पी. की किसी भी एक मात्रा से नाइट्रोजन तथा फ़ॉस्फोरस की गणना साथ-साथ करें। इसमें दोनों तत्व अलग-अलग प्रतिशत में मौजूद होते है।
यह प्राय: देखा गया है कि केवल सरकार की व्यवस्था से उचित मात्रा में फसलों के उन्नत बीज समय पर उपलब्ध नहीं हो सकते है। इस कार्य में किसानों को खुद भी आगे आना पड़ेगा तथा कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग की देख-रेख में गाँवों में ही उन्नत बीज का उत्पादन करना होगा। पंचायत स्तर पर इस कार्य के लिए योजना बनानी होगी और नरेगा एवं अन्य योजना के अंतर्गत यह अति आवश्यक और महत्वपूर्ण कार्य करना होगा।
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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