रबी फसलों में गेंहूँ का प्रमुख स्थान है और देश में कुल खाद्यान उत्पादन का 3.5% भाग गेंहूँ से प्राप्त होता है। हमारे प्रदेश में गेंहू की खेती 1.08 लख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जिसमें 80,000 हेक्टेयर सिंचित तथा 28,000 हेक्टेयर असिंचित है। किन्तु इसकी उत्पादकता केवल 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो कि पंजाब की लगभग आधी और राष्ट्रीय औसत से 7 क्विंटल कम है। उत्पादकता के इस अंतर को यथाशीघ्र दूर करने की आवश्यकता है।
उत्पादन तकनीक का सबसे अहम पहलू उपयुक्त किस्म का चुनाव होता है जिसके प्रयोग से गेंहूँ उत्पादन में लगभग 10-12% कि वृद्धि हो जाती है। उपयुक्त किस्म का अर्थ है सिंचाई की स्थिति और बुआई के समय के अनुसार उपयुक्त। पठारी क्षेत्रों में सिंचित और असिंचित अवस्थाओं में समय से और देर से बुआई के लिए किस्में का चुनाव निम्न तालिका से करें-
एवं पी 1761 (जगदीश), एच पी 1731 (राजलक्ष्मी), के 8804, के 9107 (देव), एन डब्लू 1012, एच डी 2402, पी बी डब्लू 443, पी.बी डब्लू 343
एच डी (गंगा), एच यु डब्लू 234, एच पी 1744 (राजेश्वरी), एकं डब्लू 1014, एच पी 16३३ (सोनाली), एच डी 2402, पी बी डब्लू 373
सी 306, के 8027, एच पी 1493
एच डी आर 77, के 8962 (इंद्रा)
सस्य क्रियाओं में भूमि की तैयारी, बुआई का समय, बीज की मात्रा, बुआई की विधि, सिंचाई, उर्वरक एवं खाद का प्रयोग, रोग-कीट एवं खरपतवार नियंत्रण का ध्यान रखा जा है।
खेत की मिट्टी को भुरभुरी पीली बनाए के उद्देश्य से जुताई करने के बाद पाटा आवश्य लगाएं ध्यान रखें कि खेत में ढेले न बन पाएं और पूर्व फसल को ठूंठ इत्यादि निकाल दें धान फसल के बाद पिछात बुआई की स्थिति में गेंहूँ की खेती न्यूनतम जुताई के साथ करना लाभदायक पाया गया है।
समय से बुआई (सिंचित) |
नवम्बर माह का प्रथम पखवारा |
देर से बुआई )सिंचित) |
25 दिसम्बर तक |
समय से बुआई (असिंचित) |
अक्तूबर अंत से नवम्बर प्रारंभ |
देर से बुआई (असिंचित) |
नवम्बर माह का द्वितीय पखवारा |
सिंचित अवस्था में समय से बुआई करते वक्त 50 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज का उपयोग करें। किन्तु दिसम्बर के प्रथम और द्वितीय पखवारे में बीज दर क्रमशः 54 और 60 किलोग्राम प्रति एकड़ कर दें। उपचारित बीजों का ही प्रयोग करें। बीजोपचार हेतु बीटावेक्स या बेभिस्टीन की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से व्यवहार करें।
सिंचित अवस्था में समय पर बोई गई फसल में कतारों के बीच की दूरी 20 से 22 सेंटीमीटर रखें। किन्तु देर से बोयी गई फसल में कतारों की बीच की दूरी घटाकर 15 से 18 सेंटीमीटर कर दें। अच्छे अंकुरण और अच्छी फसल के लिए बीज 5-6 सेंटीमीटर गहराई पर ही बोना चाहिए। असिंचित अवस्था में बीज मृदा की नमी के अनुसार 7-10 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं।
उर्वरकों की मात्रा भूमि में पोषक तत्वों की उपस्थिति, बुआई का समय और सिंचाई की उपलब्धता पर भी निर्भर करती है। अ तह अधिक उत्पादन के लिए उर्वरकों का प्रयोग
कृषि स्थिति |
यूरिया कि./एकड़ |
एस.एस.पी.कि./एकड़ |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश कि./एकड़ |
यूरिया कि./एकड़ |
डी.ए.पी. कि./एकड़ |
म्यूरेट ऑफ़ पोटाश |
सिंचित समय से बोआई |
86.8 |
120 |
17 |
79 |
43.4 |
17 |
सिंचित देर से बुआई |
69.44 |
100 |
13.36 |
64 |
34.7 |
13.36 |
सिमित सिंचाई |
69.44 |
100 |
13.36 |
64 |
34.7 |
13.36 |
असिंचित फसल |
34 |
50 |
|
31 |
17 |
|
सिंचित फसलों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस तथा पोटैश की पूरी मात्रा बुआई के समय दें। नाइट्रोजन की शेष बची आधी मात्रा को प्रथम सिंचाई (बोआई के 20-25 दिनों के बीच) के बाद कड़ी फसल में उपरिवेशन करें। किन्तु नाइट्रोजन की मात्रा 50 किलो/हे. ही देनी हो तो उसकी पूर्ण मात्रा बुआई के समय ही देना लाभप्रद होता है।
आवश्यकतानुसार 1,2,3,4, 5 अथवा 6 सिंचाई निम्नलिखित अवस्थाओं पर करें-
क्राउन रूट निकलने और व्यांत पूर्ण होने के बीच। ऐसी स्थिति में असिंचित गेंहूँ की प्रजाति की खेती करना सर्वाधिक लाभप्रद होता है।
क्राउन रूट निकलने समय और बालियाँ निकलते समय
क्राउन रूट निकलने समय, बालियाँ निकलते समय और दोनों में दूध बने समय
क्राउन रूट निकलने समय, व्यांत पूर्ण होने पर, बालियाँ निकलते समय, दोनों में दूध बने समय
क्राउन रूट निकलने समय , व्यांत पूर्ण होने पर, तने में गाँठ बनते समय, बालियाँ निकलते समय, दोनों में दूध बनते समय
क्राउन रूट निकलने समय , व्यांत पूर्ण होने पर, तने में गाँठ बनते समय, बालियों में फूल आते समय, जब डेनी दुधिया हो जाएं तथा जब दाने कुछ सख्त होने लगें।
गेंहू बुआई के एक महीने बाद यदि खरपतवार दिखाई पड़े तो निराई-गुड़ाई करना लाभप्रद होता है। यदि फ्लैरिस माइनर तथा जंगली जई अधिक मात्रा में मौजूद है तब आईसोप्रोटरान के 300 ग्राम सक्रिय तत्व का 280 लीटर पानी में घोलबनाकर एक एकड़ भूमि में बुआई से 30-35 दिन बाद छिड़काव् करें। ध्यान रखें कि खरपतवार हेतु रसायन का छिड़काव् करते समय खेत में पर्याप्त नमी हो। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु 2-4 डी नामक रसायन का 160 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति एकड़ छिड़काव् करने हेतु प्रयोग में लाएं। 2-4 डी छिड़काव् भी बुआई के 30-35 दिन बाद ही करें। यदि संकरी और चौड़ी पत्ती वाले, अर्थात दोनों प्रकार के खरपतवार खेत में समान रूप से उग गए हों तो आईसोप्रोटरान तथा 2-4 डी दोनों दवाओं की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करें।
इस क्षेत्र में अधिक लगने वाली बीमारियों में रतुवा, कंडवा, करनाल बंट तथा झुलसा मुख्य हैं।
रतुवा रोग के फसल बचाव का सबसे सरल उपाय यह है कि गेंहूँ की नवीनतम संस्तुत किस्में प्रयोग में लाएं।
कंडव रोग लगने से बालियों में दाने नहीं बनते और एक प्रकार का काला चूर्ण भर जाता है। यह बीमारी एक ऐसे कवक से होती है जो कि दाने के अंदर रहता है। अतः फसल उत्पादन हेतु प्रयोग में लायें जाने वाले बीज शोधन करना अतिआवश्यक होता है। बीज शोधन हेतु बीटावेक्स या बेभिस्टीन नामक दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दार से प्रयोग में लाएं।
इन रोगों के अतिरिक्त इस फसल में झुलसा और पत्ती दाग का प्रकोप भी देखा जाता है। इन रोगों के लक्षण दिखाई पड़ते ही इंडोफिल एम्-45 अथवा डाईथेन जेड-78 के 0.25% घोल का छिड़काव् करें। इनका प्रयोग रोग नियंत्रण में प्रभावकारी पाया गया है।
गेंहूँ की फसल में दीमक का प्रकोप देखा जाता है। इसके नियंत्रण के लिए 700 मि.ली. इंडोसल्फान-35 ई.सी. नामक दवा 5 ली. पानी में घोल्कार 100 किलोग्राम बीज को उपचारित करने के लिए प्रयोग में लाएं। उपचारित बीज को एक रात सुखाने के उपरान्त बुआई करने के लिए उपयोग में लाएं। यदि बीजोपचार संभव न हो तो लिन्डेन की 10 किलोग्राम मात्रा प्रति एकड़ क्षेत्र में अंतिम जुताई के पूर्व डाल दें।
फसल पकने के तुरंत बाद कटाई कर लें अन्यथा दाना छिटककर गिरने से हानि की संभावना रहती है। परीक्षणों द्वारा मालूम हुआ है कि जब दानों में 20% नमी रह जाती है, उस माय फसल को कटाई हेतु तैयार माना जाता है। जहाँ तक संभव हो, कम्बाइन हारवेस्टर द्वारा फसल कटाई एवं मंडाई करें। आजकल ट्रैक्टर-चालित कटाई मशीन भी उपलब्ध होने लगी है, जिससे फसल की कटाई आसानीपूर्वक एवं शीघ्र की जा सकती है। ऐसे थ्रेसर का चुनाव करें जिसमें मुठ लगाने का कार्य मशीन द्वारा स्वतः ही कर लिया जाता है अथवा महीन के पतनाले (मशीन में फसल डालने का स्थान) की लम्बाई कम से कम 90 सेंटीमीटर हो और उसका आधा भाग ढका होना चाहिए। ऐसा होने से फसल के साथ हाथ आदि मशीन के अंदर जाने का खतरा नहीं रहता।
अनाज को तारपोलीन या रंगीन प्लास्टिक की चादरों पर फैलाकर तेज धूप में अच्छी प्रकार सुखाया जाएं ताकि दोनों में नमी की मात्रा 12% से कम हो जाएं। अच्छी तरह सूखे अनाज को यदि उचित प्रकार के कोठारों में न रखा जाए तो कुल मात्रा का लगभग 10% भाग कीड़ों एवं चूहों द्वारा नष्ट कर दिया जता है। आजकल बाजार में विशेष पराक्र की लोहे की बनी बिन्स(कोठार) उपलब्ध है, जिन्हें अनाज भंडारण हेतु सफलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सकता है। भण्डार में कीड़ों से रक्षा करने हेतु एल्युमिनियम फास्फाईड की एक टिकिया लगभग 10 किवंटल अनाज में रखने से प्रायः सभी प्रकार के कीड़ों से अनाज का बचाव होता है।
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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