हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि भूमि में पाये जाने वाले केंचुए मनुष्य के लिए बहुउपयोगी होते हैं। मनुष्य के लिए इनका महत्व सर्वप्रथम सन् 1881 में विश्व विख्यात जीव वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने अपने 40 वर्षों के अध्ययन के बाद बताया। इसके बाद हुए अध्ययनों से केंचुओं की उपयोगिता उससे भी अधिक साबित हो। चुकी है जितनी कि डार्विन ने कभी कल्पना की थी। भूमि में पाये जाने वाले केंचुए खेत में पड़े हुए पेड़ पौधों के अवशेष एवं कार्बनिक पदार्थों को खा कर छोटीछोटी गोलियों के रूप में परिवर्तित कर देते हैं जो पौधों के लिए देषी खाद का काम करती हैं। इसके अलावा केंचुए खेत में ट्रेक्टर से भी अच्छी जुताई कर देते हैं जो पौधों को बिना नुकसान पहुँचाए अन्य विधियों से सम्भव नहीं हो पाती। केंचुओं द्वारा भूमि की उर्वरता, उत्पादकता और भूमि के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों को लम्बे समय तक अनुकूल बनाये रखने में मदद मिलती है।
केंचुओं की कुछ प्रजातियां भोजन के रूप में प्रायः अपघटनषील व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों का ही उपयोग करती हैं। भोजन के रूप में ग्रहण की गई इन कार्बनिक पदार्थों की कुल मात्रा का 5 से 10 प्रतिशत भाग शरीर की कोषिकाओं द्वारा अवषोषित कर लिया जाता है और शेष मल के रूप में विसर्जित हो जाता है जिसे वर्मीकास्ट कहते हैं। नियन्त्रित परिस्थिति में केंचुओं को व्यर्थ कार्बनिक पदार्थ खिला कर पैदा किये गये वर्मीकास्ट और केंचुओं के मृत अवशेष, अण्डे, कोकून, सूक्ष्मजीव आदि के मिश्रण को केंचुआ खाद कहते हैं। नियन्त्रित दषा में केंचुओं द्वारा केंचुआ खाद उत्पादन की विधि को वर्मीकम्पोस्टिंग और केंचुआ पालन की विधि को वर्मीकल्चर कहते हैं।
वर्मीकम्पोस्ट की रासायनिक संरचना
वर्मीकम्पोस्ट का रासायनिक संगठन मुख्य रूप से उपयोग में लाये गये अपशिष्ट पदार्थों के प्रकार, उनके स्रोत व निर्माण के तरीकों पर निर्भर करता है। सामान्यतौर पर इसमें पौधों के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्व सन्तुलित मात्रा तथा सुलभ अवस्था में मौजूद होते हैं।
वर्मीकम्पोस्ट में गोबर के खाद की अपेक्षा 5 गुना नाइट्रोजन, 8 गुना फास्फोरस, 11 गुना पोटाष और 3 गुना मैग्नीषियम तथा अनेक सूक्ष्मतत्व सन्तुलित मात्रा में पाये जाते हैं।
तालिका 1: वर्मीकम्पोस्ट का रासायनिक संगठन
क्रमांक |
मानक |
मात्रा |
1. |
पी एच |
6.8 |
2. |
ईसी |
11.70 |
3. |
कुल नाइट्रोजन |
0.50-1.0 प्रतिशत |
4. |
फास्फोरस |
0.15- 0.56 प्रतिशत |
5. |
पोटेषियम |
0.06- 0.30 प्रतिशत |
6. |
कैल्शियम |
2.0-4.0 प्रतिशत |
7. |
सोडियम |
0.02 प्रतिशत |
8. |
मैग्नीषियम |
0.46 प्रतिशत |
9. |
आयरन |
7563 पीपीएम |
10. |
जिंक |
278 पीपीएम |
11. |
मैगनीज |
475 पीपीएम |
12. |
कॉपर |
27 पीपीएम |
13. |
बोरोन |
34 पीपीएम |
14. |
एल्यूमिनियम |
7012 पीपीएम |
यद्यपि केंचुआ लंबे समय से किसान का अभिन्न मित्र हलवाहा के रूप में जाना जाता रहा है। सामान्यतः केंचुए की महत्ता भूमि को खाकर उलट-पुलट कर देने के रूप में जानी जाती है जिससे कृषि भूमि की उर्वरता बनी रहती है। यह छोटे एवं मझोले किसानों तथा भारतीय कृषि के योगदान में अहम् भूमिका अदा करता है। केचुआ कृषि योग्य भूमि में प्रतिवर्ष 1 से 5 मि.मी. मोटी सतह का निर्माण करते हैं। इसके अतिरिक्त केंचुआ भूमि में निम्न ढंग से उपयोगी एवं लाभकारी है।
1. भूमि की भौतिक गुणवत्ता में सुधार केंचुए भूमि में उपलब्ध फसल अवषेषों को भूमि के अंदर तक ले जाते हैं ओर सुरंग में इन अवषेषों को खाकर खाद के रूप में परिवर्तित कर देते हैं तथा अपनी विष्ठा रात के समय में भू सतह पर छोड़ देते हैं। जिससे मिट्टी की वायु संचार क्षमता बढ़ जाती है। एक विशेषज्ञ के अनुसार केंचुए 2 से 250 टन मिट्टी प्रतिवर्ष उलट-पलट कर देते हैं जिसके फलस्वरूप भूमि की 1 से 5 मि.मी. सतह प्रतिवर्ष बढ़ जाती है।
2. भूमि की रासायनिक गुणवत्ता एवं उर्वरता में सुधार पौधों को अपनी बढ़वार के लिए पोषक तत्व भूमि से प्राप्त होते हैं तथा पोषक तत्व उपलब्ध कराने की भूमि की क्षमता को भूमि उर्वरता कहते हैं। इन पोषक तत्वों का मूल स्त्रोत मृदा पैतृक पदार्थ फसल अवशेष एवं सूक्ष्म जीव आदि होते हैं। जिनकी सम्मिलित प्रक्रिया के फलस्वरूप पोषक तत्व पौधों को प्राप्त होते हैं। सभी जैविक अवशेष पहले सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित किये जाते हैं। अर्द्धअपघटित अवशेष केंचुओं द्वारा वर्मीकास्ट में परिवर्तित होते हैं। सूक्ष्म जीवों तथा केंचुओं सम्मिलित अपघटन से जैविक पदार्थ उत्तम खाद में बदल जाते हैं और भूमि की उर्वरा षक्ति बढ़ाते हैं।
3. भूमि की जैविक गुणवत्ता में सुधार । भूमि में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ, भूमि में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीव तथा केंचुओं की संख्या एवं मात्रा भूमि की उर्वरता के सूचक हैं। इनकी संख्या, विविधता एवं सक्रियता के आधार पर भूमि के जैविक गुण को मापा जा सकता है। भूमि में मौजूद सूक्ष्म जीवों की जटिल श्रृंखला एवं फसल अवषेषों के विच्छेदन के साथ केंचुआ की क्रियाषीलता भूमि उर्वरता का प्रमुख अंग है। भूमि में उपलब्ध फसल अवशेष इन दोनो की सहायता से विच्छेदित होकर कार्बन को उर्जा स्त्रोत के रूप में प्रदान कर निरंतर पोषक तत्वों की आपूर्ति बनाये रखने के साथ-साथ भूमि में एन्जाइम, विटामिन्स, एमीनो एसिड एवं ह्यूमस का निर्माण कर भूमि की उर्वरा क्षमता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
1. केंचुए द्विलिंगी (Bi-sexual or hermaphodite) होते हैं अर्थात एक ही शरीर में नर तथा मादा जननांग पाये जाते हैं।
2. द्विलिंगी होने के बावजूद केंचुओं में निषेचन दो केंचुओं के मिलन से ही सम्भव हो पाता है क्योंकि इनके शरीर में नर तथा मादा जननांग दूर-दूर स्थित होते हैं, और नर शुक्राणु व मादा शुक्राणुओं के परिपक्व होने का समय भी अलगअलग होता है। सम्भोग प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद केंचुए कोकून बनाते हैं। कोकून का निर्माण लगभग 6 घण्टों में पूर्ण हो जाता है।
3. केंचुए लगभग 30 से 45 दिन में वयस्क हो जाते हैं और प्रजनन करने लगते हैं।
4. एक केंचुआ 17 से 25 कोकून बनाता है और एक कोकून से औसतन 3 केंचुओं का जन्म होता है।
5. केंचुओं में कोकून बनाने की क्षमता अधिकांषतः 6 माह तक ही होती है। इसके बाद इनमें कोकून बनाने की क्षमता घट जाती है।
6. केंचुओं में देखने तथा सुनने के लिए कोई भी अंग नहीं होते किन्तु ये ध्वनि एवं प्रकाष के प्रति संवेदनषील होते हैं और इनका शीघ्रता से एहसास कर लेते हैं।
7. शरीर पर ष्लेष्मा की अत्यन्त पतली व लचीली परत मौजूद होती है जो इनके शरीर के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करती है।
8. शरीर के दोनों सिरे नुकीले होते हैं जो भूमि में सुरंग बनाने में सहायक होते हैं।
9. केंचुओं में शरीर के दोनों सिरों आगे तथा पीछेद्ध की ओर चलने की क्षमता होती है।
10. मिट्टी या कचरे में रहकर दिन में औसतन 20 बार ऊपर से नीचे एवं नीचे से ऊपर आते हैं।
11. केंचुओं में मैथुन प्रक्रिया लगभग एक घण्टे तक चलती हैं।
12. केंचुआ प्रतिदिन अपने वजन का लगभग 5 गुना कचरा खाता है। लगभग एक किलो केंचुऐ ;1000 संख्याद्ध 4 से 5 किग्रा0 कचरा प्रतिदिन खा जाते हैं।
13. रहन-सहन के समय संख्या अधिक हो जाने एवं जगह की कमी होने पर इनमें प्रजनन दर घट जाती है। इस विशेषता के कारण केंचुआ खाद निर्माण के दौरान अतिरिक्त केंचुओं को दूसरी जगह स्थानान्तरित कर देना अत्यन्त आवश्यक है।
14. केंचुए सूखी मिट्टी या सूखे व ताजे कचरे को खाना पसन्द नहीं करते अतः केंचुआ खाद निर्माण के दौरान कचरे में नमी की मात्रा 30 से 40 प्रतिशत और कचरे का अर्द्ध-सड़ा होना अत्यन्त आवश्यक है।
15. केंचुए के शरीर में 85 प्रतिशत पानी होता है तथा यह शरीर के द्वारा ही श्वसन एवं उत्सर्जन का पूरा कार्य करता है।
16. कार्बनिक पदार्थ खाने वाले केंचुओं का रंग मांसल होता है जबकि मिट्टी खाने वाले केंचुए रंगहीन होते हैं।
17. केंचुओं में वायवीय श्वसन होता है जिसके लिए इनके शरीर में कोई विशेष अंग नहीं होते। श्वसन क्रिया गैसों का आदान प्रदानद्ध देह भित्ति की पतली त्वचा से होती है।
18. एक केंचुए से एक वर्ष में अनुकूल परिस्थितियों में 5000 से 7000 तक केंचुए प्रजनित होते हैं।
19. केंचुए का भूरा रंग एक विशेष पिगमेंट पोरफाइरिन के कारण होता है।
20. शरीर की त्वचा सूखने पर केंचुआ घुटन महसूस करता है और श्वसन गैसों का आदान प्रदानद्ध न होने से मर जाता है।
21. शरीर की ऊतकों में 50 से 75 प्रतिशत प्रोटीन, 6 से 10 प्रतिशत वसा,कैल्शियम, फास्फोरस व अन्य खनिज लवण पाये जाते हैं अतः इन्हें प्रोटीन एवं ऊर्जा का अच्छा स्रोत माना गया है।
22. केंचुओं को सुखा कर बनाये गये प्रतिग्राम चूर्ण से 4100 कैलोरी ऊर्जा मिलती है।
भोजन की प्रकृति के आधार पर केंचुए दो प्रकार के होते हैं :
1. कार्बनिक पदार्थ खाने वाले - इस वर्ग के केंचुए केवल सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों को खाना पसन्द करते हैं। इन्हें खाद बनाने वाले केंचुए कहते हैं। इसी वर्ग के केंचुए वर्मीकम्पोस्ट बनाने के काम में लाये जाते हैं। इस वर्ग में मुख्य रूप से आइसीनिया फोटिडा एवं यूड़िलस यूजैनी प्रजातियां मुख्य हैं।
2. मिट्टी खाने वाले - इस वर्ग के केंचुए मुख्यतः मिट्टी खाते हैं। इन्हें हलवाहे कहते हैं। इस वर्ग के केंचुए अधिकांषतः मिट्टी में गहरी सुरंग बनाकर रहते हैं। ये वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए उपयुक्त नहीं होते किन्तु खेत की जुताई करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
परिस्थितिकीय व्यूहरचना ;मिट्टी में रहने की प्रवृत्ति के अनुसार केंचुए निम्न तीन वर्गों में बांटे जा सकते हैं:
1. एपीजेइक - इस वर्ग में आने वाले केंचुए प्रायः भूमि की ऊपरी सतह पर रहते हैं। ये भूमि सतह पर पड़े कूड़ेश्करकट आदि के सड़ते हुए ढेर में रहकर कार्बनिक पदार्थ खाते हैं। इन्हें वर्मीकम्पोस्ट वनाने के लिए उपयुक्त माना गया है। इस वर्ग के केंचुओं को सतही केंचुए भी कहा जाता है। इस वर्ग में मुख्यतः आइसीनिया फोटिडा एवं यूलिस यूजैनी प्रजातियां आती हैं।
2. एण्डोजैइक इस वर्ग के केंचुए भूमि की निचली परतों में रहना और भोजन के रूप में मिट्टी खाना पसन्द करते हैं। ये प्रकाष के सम्पर्क में नही आते। इस वर्ग के केंचुए आकार में मोटे एवं रंगहीन होते हैं। ये वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए उपयुक्त नहीं होते किन्तु भूमि में वायुसंचार, कार्बनिक पदार्थों के वितरण एवं जुताई का कार्य करने में सक्षम होते हैं। इन्हें खेती का केंचुआ, कृषक मित्र एवं हलवाहे के रूप में जाना जाता है। इस वर्ग के केंचुओं का जीवनकाल एवं प्रजनन दर बहुत कम होती है। इस वर्ग में मेटाफायर पोस्थमा व ऑक्टोकीटोना थर्सटोनी प्रजातियां मुख्य हैं।
3. ऐनेसिक - इस वर्ग के केंचुए भूमि में ऊपर से नीचे की ओर सुरंग बनाकर रहते हैं। इन्हें किसान मित्र कहा जाता है। भोजन के लिए ये भूमि सतह पर आते हैं और भोजन को अपने साथ सुरंग में लेजाकर भक्षण करते हैं। ये सुरंग में अपशिष्ट पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं। इस वर्ग में लेम्पीटो मारूति नामक प्रजाति मुख्य है।
भारतीय उपमहाद्वीप में केंचुआ खाद बनाने हेतु केचुए की कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियाँ निम्नवत् हैं:
1. आइसीनिया फोटिडा
2. आइसीनिया एन्ड्रई
यह केंचुआ समान रुप से लाल रंग का होता है जो इसे आइसीनिया फोटिडा से अलग पहचान करने में मददगार है। शेष गुण आइसीनिया फोटिडा की तरह ही होते हैं।
3. पेरियोनिक्स एक्सकॅवेटस
4. यूड्रिलस यूजिनी
इसे रात्रि में रेंगने वाले केंचुए के नाम से भी जाना जाता है। यह केंचुआ खाद बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाले केंचुओं में सबसे शीघ्र वृद्धि करने वाला है तथा केंचुआ खाद बनाने में आइसीनिया फोटिडा के बाद सबसे अधिक प्रयोग में लाया जाता है। इसका प्रयोग मुख्यतः दक्षिण भारत के इलाकों में केंचुआ खाद बनाने के लिए सर्वाधिक किया जा रहा है।
5. लैम्पिटो मोरिटि
इस केंचुए का शरीर गहरे पीले रंग का तथा शरीर का अग्रभाग बैंगनी रंग युक्त होता है। इसकी लम्बाई 8.0-21.0 सेमी तथा व्यास 3.5-5.0 मि0मी0 तक होता है।
6. लुम्ब्रिकस रुबेल्लस
केंचुआ खाद बनाने में कच्चे माल के रुप में जैविक रुप से अपघटित हो सकने वाले तथा अपघटनषील कार्बनिक कचरे का ही प्रयोग किया जाता है। केंचुआ खाद बनाने में सामान्यतः निम्न पदार्थों का प्रयोग कच्चे माल के रुप में किया जाता है।
अ. जानवरों का गोबर
i. गाय का गोबर
ii. भैंस का गोबर
iii. भेड़ की मेंगनी
iv. बकरी की मेंगनी
v. घोडे की लीद
ब. कृषि अवषिष्ट
i. फसलों के तने, पत्तियों तथा भूसे के अवशेष
ii. खरपतवारों की पत्तियॉ तथा तने।
iii. सड़ी गली सब्जियों एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थ
iv. बगीचे की पत्तियों का कूड़ा करकट
v. गन्ने की पत्तियाँ एवं खोयी
स. पादप उत्पाद
i. लकड़ी की छाल एवं छिलके
ii. लकड़ी का बुरादा एवं गूदा
iii. विभिन्न प्रकार की पत्तियों का कचरा
iv. घास
v. सड़क तथा रिहायषी इलाकों के आसपास के पौधों की पत्तियों का कूड़ा
द. षहरी अवषिष्ट एवं कचरा
i. सूती कपडो का अवषिष्ट
ii. कागज इत्यादि का अवषिष्ट
iii. मण्डियों में सड़े गले फल तथा सब्जियों का कचरा
iv. फलों, सब्जियों इत्यादि की पैकिंग का अवषिष्ट जैसे केले की पत्तियाँ इत्यादि
v. रसोईघर का कूडा जैसे फल एवं सब्जियों के छिलके इत्यादि।
ध. बायोगैस की स्लरी - बायोगैस संयत्र से निकलने वाली स्लरी को सुखाकर प्रयोग किया जाता है।
न. औद्योगिक अवषिष्ट
i. खाद्य प्रसंस्करण ईकाईओं का अवषिष्ट
ii. आसवन ईकाई का अवषिष्ट
iii. प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का अवषिष्ट
iv. गन्ने का बगास तथा परिष्करण अवषिष्ट
मशीनरी
1. कार्बनिक अवषिष्ट को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने हेतु यांत्रिक मशीन/कटर।
2. कार्बनिक अवषिष्ट का मिश्रण बनाने हेतु मिश्रण मशीन।
3. खुप, फावडा, काँटा इत्यादि।
4. यॉत्रिक छलनी।
5. तौलने की मशीन।
6. पैकिंग सीलिंग मशीन।
7. पानी छिड़काव हेतु हजारा।
केंचुआ खाद बनाने हेतु आवशयकताएँ
औद्योगिक स्तर पर केंचुआ खाद बनाने की इकाई स्थापित करने के लिए निम्नलिखित की आवशयकता होती है।
संरचना
1. 12 फीट * 10 फीट * 40 फीट (4800 sq.ft.) आकार के छप्पर लगभग 150 – 175 टन प्रतिवर्ष केंचुआ खाद बनाने हेतु पर्याप्त होते है।
2. केंचुआ खाद बनाने की बेड में पानी के छिड़काव हेतु फव्वारे का प्रबंध।
3. छप्पर के अंदर हवा के उचित प्रवाह का प्रबंध होना चाहिए।
4. केंचुआ खाद को सुखाने हेतु 12 फीट * 6 फीट * 1 फीट आकार का सीमेंट का पक्का फर्श।
5. प्रसंस्कृत केंचुआ खाद हेतु भंडारण की व्यवस्था।
6. पनि की व्यवस्था ।
(d) सामान्य विधि - वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए इस विधि में क्षेत्र का आकार आवशयकतानुसार रखा जाता है किन्तु मध्यम वर्ग के किसानों के लिए 100 वर्गमीटर क्षेत्र पर्याप्त रहता है। अच्छी गुणवत्ता की केंचुआ खाद बनाने के लिए सीमेन्ट तथा ईटों से पक्की क्यारियां बनाई जाती हैं। प्रत्येक क्यारी की लम्बाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 30 से 50 सेमी0 रखते हैं। 100 वर्गमीटर क्षेत्र में इस प्रकार की लगभग 90 क्यारियां बनाई जा सकती है। क्यारियों को तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के लिए अंधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर टट्टियों से हरे नेट से ढकना अत्यन्त आवश्यक है।
क्यारियों को भरने के लिए पेड़पौधों की पत्तियाँ, घास, सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनषील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढ़ेर बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाना आवश्यक है। सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण में पानी छिड़क कर ढेर को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप में आ जाता है। ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना गया है। अधगले कचरे को क्यारियों में 50 सेमी ऊँचाई तक भर दिया जाता है। कचरा भरने के 3-4 दिन बाद प्रत्येक क्यारी में केंचुएं छोड़ दिए जाते हैं और पानी छिड़क कर प्रत्येक क्यारी को गीली बोरियो से ढक देते है। एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त हो जाती है।
(k) चक्रीय चार हौद विधि - इस विधि में चुने गये स्थान पर 12x12x2.5' लम्बाई x चौड़ाई X ऊँचाईद्ध का गड्ढा बनाया जाता है। इस गड्ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। इस प्रकार कुल 4 क्यारियां बन जाती हैं। प्रत्येक क्यारी का आकार लगभग 5.5' x 5.5' x 2.5' होता है। बीच की विभाजक दीवार मजबूती के लिए दो ईंटों ;9 इंचद्ध की बनाई जाती है। विभाजक दीवारो में समान दूरी पर हवा व केंचुओं के आने जाने के लिए छिद्र छोड़े जाते हैं। इस प्रकार की क्यारियों की संख्या आवशयकतानुसार रखी जा सकती है। इस विधि में प्रत्येक क्यारी को एक के बाद एक भरते हैं अर्थात पहले एक महीने तक पहला गड्ढा भरते हैं पूरा गड्ढा भर जाने के बाद पानी छिड़क कर काले पॉलीथिन से ढक देते हैं ताकि कचरे के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाये। इसके बाद दूसरे गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। दूसरे माह जब दूसरा गड्ढा भर जाता है तब ढक देते हैं और कचरा तीसरे गड्ढे में भरना आरम्भ कर देते है। इस समय तक पहले गड्ढे का कचरा अधगले रूप में आ जाता है। एक दो दिन बाद जब पहले गड्ढे में गर्मी ;heatद्ध कम हो जाती है तब उसमें लगभग 5 किग्रा0 ;5000द्ध केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद गड्ढे को सूखी घास अथवा बोरियों से ढक देते हैं। कचरे में गीलापन बनाये रखने के लिए आवशयकतानुसार पानी छिड़कते रहते है। इस प्रकार 3 माह बाद जब तीसरा गड्ढा कचरे से भर जाता है तब इसे भी पानी से भिगो कर ढक देते हैं और चौथे गड्ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। धीरे-धीरे जब दूसरे गड्ढे की गर्मी कम हो जाती है तब उसमें पहले गड्ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों से अपने आप प्रवेष कर जाते हैं और उसमें भी केचुआखाद बनना आरम्भ हो जाता है। इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्ढे भर जाते हैं। इस समय तक पहले गड्ढे में जिसे भरे हुए तीन माह हो चुके है, केंचुआ खाद वर्मीकम्पोस्टद्ध बनकर तैयार हो जाता है। इस गड्ढे के सारे केंचुए दूसरे एवं तीसरे गड्ढे में धीरेधीरे बीच की दीवारों में बने छिद्रों द्वारा प्रवेष कर जाते हैं। अब पहले गड्ढे से खाद निकालने की प्रक्रिया आरम्भ की जा सकती है। खाद निकालने के बाद उसमें पुनः कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। इस विधि में एक वर्ष में प्रत्येक गड्ढे में एक बार में लगभग 10 क्विंटल कचरा भरा जाता है जिससे एक बार में 7 क्विंटल खाद ;70 प्रतिशतद्ध बनकर तैयार होता है। इस प्रकार एक बर्ष में चार गड्ढों से तीन चक्रों में कुल 84 क्विंटल खाद ;4x3X7द्ध प्राप्त होता है। इसके अलावा एक वर्ष में एक गड्ढे से 25 किग्रा0 और 4 गड्ढों से कुल 100 किग्रा0 केंचुए भी प्राप्त होते हैं।
(x) केंचुआ खाद बनाने की चरणबद्ध विधि
केंचुआ खाद बनाने हेतु चरणबद्ध निम्न प्रक्रिया अपनाते हैं -
चरण - 1 |
कार्बनिक अवषिष्ट / कचरे में से पत्थर, काँच, प्लास्टिक, सिरेमिक तथा धातुओं को अलग करके कार्बनिक कचरे के बड़े ढेलों को तोड़कर ढेर बनाया जाता है। |
चरण - 2 |
मोटे कार्बनिक अवषिष्टों जैसे पत्तियों का कूडा, पौधों के तने, गन्ने की भूसी/खोयी को 2 - 4 इन्च आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। इससे खाद बनने में कम समय लगता है। |
चरण - 3 |
कचरे में से दुर्गन्ध हटाने तथा अवॉछित जीवों को खत्म करने के लिए कचरे को एक फुट मोटी सतह के रुप में फैलाकर धूप में सुखाया जाता है। |
चरण - 4
|
अवषिष्ट को गाय के गोबर में मिलाकर एक माह तक सडाने हेतु गड्ढे में डाल दिया जाता है। उचित नमी बनाने हेतु रोज पानी का छिड़काव किया जाता है। |
चरण - 5
|
केंचुआ खाद बनाने के लिए सर्वप्रथम फर्श पर बालू की 1 इन्च मोटी पर्त बिछाकर उसके ऊपर 3-4 इन्च मोटाई में फसल का अपशिष्ट / मोटे पदार्थों की पर्त बिछाते हैं। पुनः इसके ऊपर चरण - 4 से प्राप्त पदार्थों की 18 इन्च मोटी पर्त इस प्रकार बिछाते हैं कि इसकी चौडाई 40-45 इन्च बन जाती है। बेड की लम्बाई को छप्पर में उपलब्ध जगह के आधार पर रखते हैं। इस प्रकार 10 फिट लम्बाई की बेड में लगभग 500 कि ग्रा कार्बनिक अपशिष्ट समाहित हो जाता है। बेड को अर्धवृत्ताकार का रखते हैं जिससे केंचुए को घूमने के लिए पर्याप्त स्थान तथा बेड में हवा का प्रबंधन संभव हो सके। इस प्रकार बेड बनाने के बाद उचित नमी बनाये रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहते है तत्पष्चात इसे 2-3 दिनों के लिए छोड़ देते हैं। |
चरण - 6
|
जब बेड के सभी भागों में तापमान सामान्य हो जाये तब इसमें लगभग 5000 केंचुए / 500 कि0ग्रा0 अवषिष्ट की दर से केंचुआ तथा कोकून का मिश्रण बेड की एक तरफ से इस प्रकार डालते हैं कि यह लम्बाई में एक तरफ से पूरे बेड तक पहुँच जाये। |
चरण - 7
|
सम्पूर्ण बेड को बारीक / कटे हुए अवषिष्ट की 3-4 इन्च मोटी पर्त से ढकते हैं, अनुकूल परिस्थितियों में केंचुए पूरे बेड पर अपने आप फैल जाते हैं। ज्यादातर केंचुए बेड में 2-3 इन्च गहराई पर रहकर कार्बनिक पदार्थों का भक्षण कर उत्सर्जन करते रहते हैं। |
चरण - 8
|
अनुकूल आर्द्रता, तापक्रम तथा हवामय परिस्थितियों में 25-30 दिनों । के उपरान्त बैड की ऊपरी सतह पर 3-4 इन्च मोटी केंचुआ खाद एकत्र हो जाती हैं। इसे अलग करने के लिए बेड की बाहरी आवरण सतह को एक तरफ से हटाते हैं। ऐसा करने पर जब केंचुए बेड में गहराई में चले जाते हैं तब केंचुआ खाद को बेड से आसानी से अलग कर तत्पष्चात बेड को पुनः पूर्व की भॉति महीन कचरे से ढक | कर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव कर देते हैं। |
चरण - 9
|
लगभग 5-7 दिनों में केंचुआ खाद की 4-6 इन्च मोटी एक और पर्त | तैयार हो जाती है। इसे भी पूर्व में चरण-8 की भाँति अलग कर लेते हैं तथा बेड में फिर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव किया जाता है। |
चरण - 10 |
तदोपरान्त हर 5-7 दिनों के अन्तराल में, अनुकूल परिस्थतियों में पुनः केंचुआ खाद की 4-6 इन्च मोटी पर्त बनती है जिसे पूर्व में चरण-9 की भाँति अलग कर लिया जाता है। इस प्रकार 40-45 दिनों में लगभग 80-85 प्रतिशत केंचुआ खाद एकत्र कर ली जाती है। |
चरण - 11
|
अन्त में कुछ केचुआ खाद, केंचुओं तथा केचुए के अण्डों ;कोकूनद्ध सहित एक छोटे से ढेर के रुप में बच जाती है। इसे दूसरे चक में केचुए के संरोप के रुप में प्रयुक्त कर लेते हैं। इस प्रकार लगातार केंचुआ खाद उत्पादन के लिए इस प्रक्रिया को दोहराते रहते हैं। |
चरण - 12 |
एकत्र की गयी केंचुआ खाद से केंचुए के अण्डों, अव्यस्क केंचुओं तथा केंचुए द्वारा नहीं खाये गये पदार्थों को 3-4 मैस आकार की छलनी से छान कर अलग कर लेते हैं। |
चरण - 13 |
अतिरिक्त नमी हटाने के लिए छनी हुई केचुआ खाद को पक्के फर्श पर फैला देते हैं। तथा जब नमी लगभग 30-40 प्रतिशत तक रह जाती है तो इसे एकत्र कर लेते हैं। |
चरण - 14
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केंचुआ खाद को प्लास्टिक/एच0 डी0 पी0 ई0 थैलों में सील करके | पैक किया जाता है ताकि इसमें नमी कम न हो। |
कम समय में अच्छी गुणवत्ता वाली वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक है ।
1. वर्मीबेडों में केंचुआ छोड़ने से पूर्व कच्चे माल :गोबर व आवश्यक कचराद्ध का आंषिक विच्छेदन जिसमें 15 से 20 दिन का समय लगता है करना अति आवश्यक है।
2. आंषिक विच्छेदन की पहचान के लिए ढेर में गहराई तक हाथ डालने पर गर्मी महसूस नहीं होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में कचरे की नमीं की अवस्था में पलटाई करने से आंषिक विच्छेदन हो जाता है।
3. वर्मीबेडों में भरे गये कचरे में कम्पोस्ट तैयार होने तक 30 से 40 प्रतिशत नमी बनाये रखें। कचरे में नमीं कम या अधिक होने पर केंचुए ठीक तरह से कार्य नहीं करते।
4. वर्मीबेडों में कचरे का तापमान 20 से 27 डिग्री सेल्सियस रहना अत्यन्त आवश्यक है। वर्मीबेडों पर तेज धूप न पड़ने दें। तेज धूप पड़ने से कचरे का तापमान अधिक हो जाता है परिणामस्वरूप केंचुए तली में चले जाते हैं अथवा अक्रियाशील रह कर अन्ततः मर जाते हैं।
5. वर्मीबेड में ताजे गोबर का उपयोग कदापि न करें। ताजे गोबर में गर्मी अधिक होने के कारण केंचुए मर जाते हैं अतः उपयोग से पहले ताजे गोबर को 45 दिन तक ठण्डा अवश्य होने दें।
6. केंचुआ खाद तैयार करने हेतु कार्बनिक कचरे में गोबर की मात्रा कम से कम 20 प्रतिशत अवश्य होनी चाहिए।
7. कांग्रेस घास को फूल आने से पूर्व गाय के गोबर में मिला कर कार्बनिक पदार्थ के रूप में आंषिक विच्छेदन कर प्रयोग करने से अच्छी केंचुआ खाद प्राप्त होती है।
8. कचरे का पी. एच. उदासीन ;7.0 के आसपासद्ध रहने पर केंचुए तेजी से कार्य करते हैं अतः वर्मीकम्पोस्टिंग के दौरान कचरे का पी. एच. उदासीन बनाये रखे। इसके लिए कचरा भरते समय उसमें राख ;ashद्ध अवश्य मिलायें।
9. केंचुआ खाद बनाने के दौरान किसी भी तरह के कीटनाषकों का उपयोग न करें।
10. खाद की पलटाई या तैयार कम्पोस्ट को एकत्र करते समय खुरपी या फावड़े का प्रयोग कदापि न करें। इन यंत्रों के प्रयोग से केंचुओं के कट कर मर जाने की सम्भावना बनी रहती है।
11. कचरे में से काँच के टुकड़े, कील, पत्थर, प्लास्टिक, पोलीथीन आदि को छाँट कर अलग कर दें।
12. केंचुओं को चिड़ियों, दीमक, चींटियों आदि के सीधे प्रकोप से बचाने के लिए क्यारियों के कचरे को बोरियों से अवश्य ढकें।
13. केंचुए को अंधेरा अति पसंद है अतः वर्मी बैड को हमेशा टाट बोरा/सूखी घास-फूस इत्यादि से ढ़क कर रखना चाहिए।
14. केंचुओं के अधिक उत्पादन हेतु बेड़ में नमीं 30 से 35 प्रतिशत तथा केंचुआ खाद के अधिक उत्पादन के लिए नमीं 20 से 30 प्रतिशत के बीच रखनी चाहिए।
15. वर्मीबेड में नमी की मात्रा 35 प्रतिशत से अधिक होने से वायु संचार में कमीं हो जाती है जिसके कारण केंचुए बेड की उपरी सतह पर आ जाते हैं।
16. अच्छी वायु संचार के लिए वर्मीबेड में प्रत्येक सप्ताह कम से कम एक बार | पंजा चलाना चाहिए जिससे केंचुओं को वर्मी कम्पोस्ट बनाने हेतु उपयुक्त वातावरण मिल सके।
17. केंचुओं के अधिक उत्पादन हेतु बेड पर केंचुआ छोंड़ने के समय 500 मि.ली. मट्ठा/500 मि.ली. षीरे को 5 से 10 लीटर पानी में घोलकर प्रति बैड पर छिड़काव करने से केंचुओं का प्रजनन तथा कम्पोस्टिंग तेजी के साथ होता है।
18. बोकाषी का मिश्रण जिसमें गेहूं की भूसी, चने का छिलका/पाउडर एवं नीम/सरसों की खली के समान मिश्रण की 500 ग्राम मात्रा 5 से 10 लीटर पानी में घोलकर प्रति बैड पर छिड़कने से केंचुओं की प्रजनन बढ़ाई जा सकती है।
19. केंचुओं की अच्छी बढ़वार एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए वर्मी पैडों में अंधेरा, नमी, वायु संचार आंषिक रूप से विच्छेदित कचरा, नियमित देखभाल तथा अच्छा प्रबंधन होना अति आवश्यक है।
20. केंचुआ खाद में प्रयुक्त कृषि अवषेषों के तीव्र विच्छेदन ;डिकम्पोजीषनद्ध के लिए गाय के गोबर की स्लरी या ट्राईकोडर्मा पाउडर 50 से 100 ग्राम मात्रा प्रति बैड में मिला सकते हैं।
21. यदि पौधों व जानवरों के अवशेष के अतिरिक्त कोई प्रोसेस किए हुए कार्बनिक अवशेष का प्रयोग करना है तो केचुओं को धीरे-धीरे नयी माध्यम सामग्री पर अपने को ढालने एवं स्वीकार करने के लिए गाय के गोबर के साथ भिन्न-भिन्न अनुपातों में मिला कर देना चाहिए।
22. सब्जी आदि के अवषेषों में यदि कीट आदि के प्रकोप होने व उसके अंडे-लारवा होने का अंदेषा है तो नीम आधारित कीटनाषक का 100 मि.ली. घोल 5 से 10 किलो व्यर्थ पदार्थ की दर से डिकम्पोजीषन से पूर्व छिड़काव कर सकते हैं।
23. एजोटोबेक्टर तथा पी.एस.बी. पाउडर जो कि विच्छेदन के कार्य में सहायक है। 50 से 100 ग्राम मात्रा प्रति बैड में पुरूआत में ही छिड़क कर मिलाने से खाद जल्दी परिपक्व होती है।
24. अच्छे प्रजनन हेतु बैड का तापक्रम 25 से 32 डिग्री के बीच होना चाहिए।
25. वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए हमेशा ऊँचे स्थान का चुनाव करें।
26. केंचुए को लाल चींटियों से बचाने के लिए चारकोल पाउडर का बुरकाव किया जा सकता है।
क्यारियों से केंचुआ खाद एकत्र करने से पहले यह अच्छी तरह सुनिष्चित कर लें कि खाद पूरी तरह तैयार हो गयी है। केंचुए अपनी प्रवृत्ति के अनुसार ऊपर से नीचे की ओर कचरे को खाना आरम्भ करते हैं अतः खाद पहले ऊपरी भाग में तैयार होती है। अपशिष्ट पदार्थों के वर्मीकम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाने पर खाद दुर्गंध रहित हो जाती है तथा दानेदार व गहरे रंग की दिखाई देने लगती है। छूने पर तैयार खाद चाय के दानों के समान लगती है। वर्मीकम्पोस्ट तैयार होने में लगभग 3 महीने का समय लग जाता है। वर्मीकम्पोस्ट तैयार होने में लगा समय केंचुओं की नस्ल, परिस्थितियों, प्रबन्धन तथा कचरे के प्रकार पर निर्भर करता है। वर्मीकम्पोस्ट जैसे-जैसे तैयार होती जाय उसे धीरेधीरे एकत्र करते रहना चाहिए। तैयार खाद हटा लेने से उस क्षेत्र में वायुसंचार बढ़ जाता है जिससे केंचुआ खाद । निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है। तैयार केंचुआखाद हटाने में बिलम्ब होने से केंचुए मरने लगते हैं और उस क्षेत्र में चीटियों के आक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है। केंचुआखाद हटाने के लिए 5 से 7 दिन पहले पानी का छिड़काव बन्द कर देना चाहिए ताकि केंचुए खाद में से निकल कर नीचे की ओर चले जायें। खाद को हाथ से या लकड़ी की फट्टी से क्यारी के एक कोने में एकत्र करें और ढेर में इकट्ठा करने के 4-5 घण्टे बाद खाद को वहाँ से हटा लें। जब 3/4 भाग तक खाद अलग हो जाये तब क्यारी में पुनः अधगला अपशिष्ट ;कचराद्ध डालकर पानी का छिड़काव कर दें। ऐसा करने से खाद बनने की प्रक्रिया पुनः आरम्भ हो जाती है।
केंचुआ खाद की छनाई व पैकिंग
क्यारियों से खाद अलग करने के पष्चात 3-4 दिन तक उसे छाया में सुखाया जाता है। इसके बाद 3 मिली मीटर छिद्र की छलनी से खाद को छान लिया जाता है। छनाई करते समय छोटे केंचुए, कोकून तथा अन्य अनुपयोगी सामग्री खाद से अलग हो जाती है। छनाई के बाद खाद को छोटेछोटे थैलों में भर लिया जाता है। थैलियों में भराई के समय केंचुआ खाद में नमी की मात्रा 15 से 25 प्रतिषत के आसपास होनी चाहिए।
केंचुआ खाद का भण्डारण
केंचुआ खाद बनाने के बाद अधिकांष लोग इसके रखरखाव व भण्डारण पर प्रर्याप्त ध्यान नहीं देते, नतीजन इस खाद के भौतिक व जैविक गुण प्रायः नष्ट हो जाते हैं और यह पौधों के लिए अधिक प्रभावषाली एवं लाभदायक नहीं रहती। केंचुआ खाद के उचित रखरखाव व खुले भण्डारण के दौरान निम्न बातों पर विषेष ध्यान देना चाहिए :
वर्मीकम्पोस्ट में पाये जाने वाले असंख्य सूक्ष्म जीवों, कोकून तथा अण्डों को जीवित व सक्रिय रखने के लिए इसमें 25 से 30 प्रतिषत के आसपास नमी बनाये रखने हेतु कम्पोस्ट में आवशयक्तानुसार पानी का छिड़काव करते रहें।
1. वर्मीकम्पोस्ट को कभी भी खुले स्थान पर ढेर के रूप में भण्डारित न करें। खुला रखने से इसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणू, कोकून्स एवं अण्डे तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं अतः भण्डारण सदैव छायादार व अंधेरे वाले स्थान पर ही करें ।
2. यदि कम्पोस्ट का अधिक समय तक भण्डारण करना हो तो नम व छायादार स्थान पर उचित आकार के गड्ढे बनाकर करें। गड्ढों में वर्मीकम्पोस्ट भर कर सूखी घास एवं बोरियों से ढक दें। आवशयकता होने पर सूखी घास एवं बोरियों पर पानी छिड़क कर नमी बनाये रखें। इस तरह कम्पोस्ट का भण्डारण करने से उसके पोषक तत्व एवं सूक्ष्म जीवों की क्रियाषीलता सुरक्षित बनी रहती है।
3. वर्मीकम्पोस्ट को यदि कमरों में भण्डारित करना हो तो पहले कमरों तथा खिड़कियों की अच्छी तरह सफाई करें और खाद भरने के बाद दरवाजे तथा खिड़कियों को अच्छी तरह बन्द कर दें। यदि कमरे में रखी कम्पोस्ट को बोरियों से ढक दिया जाय और खाद की तह की ऊँचाई सिर्फ दो फुट ही रखी जाय तो कम्पोस्ट अधिक दिनों तक सुरक्षित रहती है।
1. केंचुआ खाद में पौधों के लिए आवश्यक लगभग सभी पोषक तत्व पर्याप्त एवं सन्तुलित मात्रा में मौजूद होते हैं जो पौधों को सुगमता से प्राप्त हो जाते हैं अतः वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से पौधों का विकास अच्छा होता है।
2. वर्मीकम्पोस्ट में ऑक्जिन्स, जिब्रेलिन्स, साइटोकाइनिन्स, विटामिन्स, अमीनोअम्ल आदि अनेक तरह के जैव-सक्रिय पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। जिनसे पौधों में सन्तुलित बढ़वार तथा अधिक उपज देने की क्षमता का विकास होता है।
3. वर्मीकम्पोस्ट जलग्राही होती है जो वातावरण से नमी व सिंचाई के रूप में पौधों को दिए गये पानी को सोख कर भूमि से वाष्पीकरण तथा निक्षालन द्वारा पानी के नष्ट होने को रोकती है अतः वर्मीकम्पोस्ट का खेत में उपयोग करने पर पौधों में बार-बार या अधिक मात्रा में पानी देने की आवशयकता नहीं होती।
4. वर्मीकम्पोस्ट में अनेक तरह के सूक्ष्मजीवश्नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु, फॉस्फोरस घोलक जीवाणु पौधों की बढ़वार में वृद्धि करने वाले जीवाणु, एक्टीनोमाइसिटीज, फफूद और सैलूलोज व लिगनिन को विघटित करने वाले पॉलीमर्स भारी संख्या में मौजूद रहते हैं। ये सूक्ष्म-जीव भूमि में मौजूद पेड़पौधों के अवषेष तथा अन्य जैविक कचरे को सड़ाने व पौधों की बढ़वार में सहायक होते हैं।
5. वर्मीकम्पोस्ट में उपस्थित एक्टीनोमाइसिटीज एन्टीबायोटिक पदार्थों का सृजन करते हैं जिनसे पौधों में कीट व्याधियों के आक्रमण से बचाव की क्षमता बढ़ जाती है।
6. केंचुए के शरीर से कई प्रकार के एन्जाइम जैसे पैप्टेज प्रोटीन पाचन के लिए, एमाइलेज–स्टार्च व ग्लाईकोजन पाचन के लिए, लाइपेज-वसा पाचन के लिए, सेलुलेज सेलूलोज पाचन के लिए, इनवर्टेज—षर्करा पाचन के लिए तथा केटाइनेज–काइटिन पाचन के लिए कार्य करता है अतः स्राव के रूप में उत्पादित एंजाइमों से केंचुआ खाद की गुणवत्ता के साथ-साथ फसलों की पैदावार पर गुणकारी प्रभाव होता है।
7. वर्मीकम्पोस्ट के कणों पर पेराट्रोपिक झिल्ली मौजूद होती है जिससे कम्पोस्ट में मौजूद नमी का शीघ्रता से वाष्पीकरण द्वारा ह्रास नहीं होता और भूमि में दिए गये पानी को अधिक समय तक रोकने में मदद मिलती है।
8. वर्मीकम्पोस्ट में खरपतवारों के बीज नहीं होते अतः खेत में इसका उपयोग करने पर किसी भी तरह के खरपतवार की समस्या नहीं होती। इसके विपरीत गोबर के खाद एवं अन्य कम्पोस्टों के उपयोग से खेत में खरपतवार अधिक उगते हैं।
9. वर्मीकम्पोस्ट में मनुष्य तथा पौधों को नुकसान पहुँचाने वाले किसी भी तरह के जीवाणु उपस्थित नहीं होते।
10. वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के भौतिक गुणों जैसे रन्ध्रावकाष जलधारण क्षमता, मृदा संरचना, सूक्ष्म-जलवायु, तत्वों को रोकने व पोषण क्षमता एवं रासायनिक गुणों जैसे कार्बनश्नाइट्रोजन के अनुपात में कमी, कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में सुधार और जैविक गुणों जैसे-नाइट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु, पॉलीमर्स, एक्टीनोमाइसिटीज आदि की संख्या में पर्याप्त सुधार होता है। परिणामस्वरूप भूमि की उर्वरता लम्बे समय तक कायम रहती है।
11. वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से भूमि के तापमान, नमी, स्वास्थ्य तथा पी एच नियंत्रित रहते हैं जिससे मृदा में ताप संचरण व माइक्रोक्लाइमेट की एकरूपता के लिए अनुकूलता पैदा होती है।
12. वर्मीकम्पोस्ट के उपयोग से कृषि उत्पादों की गुणवत्ता आदि में सुधार आता है, नतीजन उच्चगुणवत्ता वाले उत्पादों की भण्डारण क्षमता एवं ऊँचे मूल्य पर बिक्री होने से आय में भारी वृद्धि होती है।
13. मूल्य कम होने के कारण खेती में वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने से फसलों की उत्पादन लागत में कमी आती है।
प्रयोग की मात्रा
फसल के अनुसार केंचुआ खाद की प्रयोग की मात्रा 2-5 टन / एकड़ निर्धारित की जा सकती है। सामान्यतः विभिन्न फसलों में इसे निम्न मात्रा में प्रयोग किया जाता हैं।
क.सं.
|
फसल |
केंचुआ खाद की मात्रा/एकड़ |
1. |
धान्य फसलें |
2 टन/एकड़ |
2. |
दालें |
2 टन/एकड़ |
3. |
तिलहनी फसलें |
3-5 टन/एकड़ |
4. |
मसाले की फसलें |
4 टन/एकड़ ;2-10 किग्रा/पौधद्ध |
5. |
षाकीय फसलें |
4-6 टन/एकड़ |
6. |
फलदार वृक्ष |
2-3 किग्रा/वृक्ष |
7. |
नकदी फसलें |
5 टन/एकड़ |
8. |
षोभकारी पौधे |
4 टन/एकड़ |
9. |
प्लांटेषन फसलें |
5 किग्रा/पौध |
प्रयोग विधि
केंचुआ खाद की खेत स्तर पर प्रयोग की विधि अत्यन्त आसान है। इसको खेत में बुआई के समय एकसार रुप से बुरक कर प्रयोग किया जाता है। कुछ फसलों जैसे गन्ना इत्यादि में केंचुआ खाद को बुआई के समय नाली के साथ-साथ प्रयुक्त किया जाता है। खड़ी फसल में इसका प्रयोग सिंचाई से पूर्व खेत में जडों के पास समान रुप से बुरकाव करके किया जाता है। कुछ प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि यदि केंचुआ खाद के साथ अजोटोबैक्टर एवं पी0एस0बी0, 1 किग्रा प्रति 40 किग्रा केंचुआ खाद की दर से मिलाकर प्रयोग किया जाये तो इसकी क्षमता बढ़ जाती है। फलदार वृक्षों एवं प्लांटेषन फसलों में मुख्य तने से 3-4 फीट की दूरी पर तने के चारों तरफ गोलाकार नाली बनाकर केंचुआ खाद कर प्रयोग करते हैं तथा इसे मिटटी से ढक देते हैं।
केंचुआ ग्रामीण कचरे को निष्पादित कर अच्छी गुणवत्ता युक्त खाद में बदलने का महत्वपूर्ण तथा लाभदायक साधन है। आर्थिक रुप से सक्षम केंचुआ खाद बनाने की इकाई में अनुमानतः लागत एवं आमदनी का ऑकलन निम्न प्रकार है।
वर्मीकम्पोस्टिग इकाई का क्षेत्र - 100 वर्गमीटर वर्मी
कम्पोस्ट का उत्पादन 50 टन प्रतिवर्ष एवं केंचुओं का उत्पादन 45 क्विंटल 4.5 टनद्ध कद्ध अनावर्ती खर्च
क्रम. स. |
मद |
खर्च (रुपया में) |
1. |
वर्मीबैड बनाने का खर्च
|
49500 |
2. |
शेड बनाने का खर्च
|
25000 |
3. |
केंचुए खरीदने का खर्च
|
18000 |
4. |
केंचुओं के परिवहन का खर्च |
500 |
5. |
मशीन एवं यंत्रों की खरीद करने का खर्च
|
350 5000 300 1000 25000
6000 |
|
कुल अनावर्ती खर्च ;कद्ध |
130650 |
खद्ध आवर्ती खर्च
क्रम. संख्या. |
मद |
खर्च (रुपयों में) |
1. |
व्यर्थ कार्बनिक पदार्थ की कीमत जिसका प्रतिवर्ष खाद बनाना है।
|
21600 |
2. |
वर्मीबेडों में कचरा भरने का खर्च
|
800 |
3. |
बैगों में खाद भरने का खर्च
|
2500 |
4. |
बैगों की सिलाई का खर्च 50 पैसे प्रति बैग के हिसाब से (1250 x 0.50) |
625 |
5. |
मजदूरों की मजदूरी का खर्च
|
24000 |
6. |
वर्मीबैड ढकने के लिए बोरियों का खर्च
|
1800 |
7. |
खाद भरने के लिए आवश्यक बैगों का खर्च
|
12500 |
|
कुल आवर्ती खर्च |
63825 |
प्रथम वर्ष का कुल खर्च ;क+खद्ध = 130650 + 63825 = 194475 रु0
आय का विवरण मद
क्रम. संख्या
|
मद |
प्रति वर्ग आमदनी रु0द्ध |
1. |
वर्मीकम्पोस्ट की बिक्री से आय
|
150000 |
2. |
केंचुओं की बिक्री से आय
|
250000 |
|
प्रति वर्ष कुल आय
|
400000 |
प्रथम वर्ष में शुद्ध आयः 400000 - 194475 = 205525 रु0
एक वर्ष के बाद अन्य वर्षों में शुद्ध आयः 400000 - 63825 = 3,36,175 रु0
नोटः
1. प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र में 2 क्विंटल कचरा भरा जाता है।
2. प्रतिवर्ग मीटर क्षेत्र में एक किग्रा0 केंचुए छोड़े जाते हैं।
3. केंचुओं के 1 किग्रा0 वजन में केंचुओं की संख्या औसतन 1000 होती है।
4. प्रति वर्गमीटर क्षेत्र में भरे गये कुल कचरे से 70 प्रतिषत खाद तैयार होती है।
5. प्रतिवर्ष चार बार ;चार चक्रों मेंद्ध खाद तैयार होती है यानी खाद बनने में 3 माह का समय लग जाता है।
6. प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र से वर्ष के अन्त में कुल 50 किग्रा0 जीवित केंचुए प्राप्त होते हैं।
7. वर्मीबैड के प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र को ढकने के लिए कुल दो बोरियों की आवशयकता होती है।
8. अच्छी व शीघ्र कम्पोस्ट तैयार करने के लिए वर्मीबैडों का आकार 3 मीटर X 1 मीटर X 0.75 मीटर रखा जाता है यानी एक बैड का कुल क्षेत्र 3 वर्ग मीटर होना चाहिए।
9. 100 वर्ग मीटर क्षेत्र के डैड के नीचे 3 वर्ग मीटर आकार की कुल 30 क्यारियां बनाई जाती हैं जिनका कुल बुद्ध क्षेत्र फल 90 वर्ग मीटर होता है।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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