वर्तमान विधि द्वारा उपलब्ध सिंचाई योग्य पानी से संपूर्ण कृषि योग्य भूमि का केवल 50 प्रतिशत क्षेत्रफल ही सिंचाई किया जा सकता हैं जबकि माइक्रो सिंचाई पद्धति (ड्रिप सिंचाई) करने पर 30-50 प्रतिशत तक पानी की बचत के साथ-साथ उपज में भी वृद्धि लाई जा सकती है।
यद्यपि प्रकृति द्वारा हमें पानी का बहुतायत वरदान मिला हैं, लेकिन भूमि की दशा, पानी की गुणवत्ता एवं अन्य कारकों के कारण उपलब्ध पानी का बहुत छोटा हिस्सा ही मानव समाज के उपयोग में लाया जा रहा है। वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया है कि देश का सम्पूर्ण सतही एवं भूमिगत जल जिसका दोहन संभव है, इस शताब्दी के अंत तक कृषि उपयोग में लाया जा सकता है और इस पानी से लगभग 1130 -1500 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई वर्तमान सिंचाई विधियों से की जा सकती है।
सिंचाई की इस नवीन पद्धति द्वारा पौधें की किस्म, उसकी आय के नापी, क्षेत्रफल, स्थान विशेष की भूमि एवं जलवायु संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पौधों की वास्तविक जल मांग के अनुरूप, उपर्युक्त डिलाईन के द्वारा जल की सही मात्रा, सही स्थान, यानि पौधों के प्रभावी जड़ क्षेत्र में देते हैं। जरूरत पड़ने पर घुलनशील पोषक तत्वों और रासायनिक खाद भी पानी में घोलकर पौधों की जड़ों तक पहुंचाई जा सकती हैं इस पद्धति में पानी की मात्रा नालियों के द्वारा जलस्त्रोत से पौधों की जड़ों तक विशेष प्रकार की उत्सर्जक युक्ति (ड्रिपर्स, माइक्रोस्प्रिंकलर, माइक्रोस्प्रेयर आदि) द्वारा नियंत्रित की जाती है। भूमि, स्थान विशेष एवं फसल की आवश्यक्ताओं के अनुरूप प्राय: ड्रिपर्स (टबों की बटन, दाब कम्पनसेटिंग, निश्चित डिस्चार्ज), माइक्रो स्प्रिंकलर, माइक्रोस्प्रेयर, बबलर, बाई- वाल तथा अन्य प्रकार की उत्सर्जक युक्ति (इमिशन डिवाइस) का प्रयोग किया जाता है। यह पद्धति मुख्यत: फलों, बागानों, कतार में बोई जानेवाली सब्जियों एवं गन्ने की सिंचाई में उपयोगी पाई गई है। इस विधि द्वारा विभिन्न फसलों की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ-साथ पानी में भी सार्थक बचत हुई है। जो तालिका 1 में दी गई है।
क्रम |
फसल |
पानी की बचत (%) |
उपज वृद्धि (%) |
1 |
अंगूर |
65-70 |
30 |
2 |
अनार |
50-55 |
30 |
3 |
अमरुद |
55-60 |
25 |
4 |
सेब |
50-55 |
20 |
5 |
नारियल |
65 |
12 |
6 |
नींबू |
81 |
35 |
7 |
केला |
77 |
- |
8 |
गन्ना |
30-60 |
20-29 |
9 |
पपीता |
- |
77 |
10 |
टमाटर |
30-79 |
5-43 |
11 |
बैंगन |
55-80 |
17-5 |
12 |
आलू |
- |
46 |
13 |
गोभी (पत्ता) |
39-60 |
23-4 |
14 |
भिण्डी |
49-84 |
7-13 |
ड्रिप सिंचाई पद्धति में जल स्रोत से जुड़ी हुई प्रारंभिक छन्नी, द्वितीयक छन्नी तथा इसे निकली हुई पी.वी.सी. अथवा एच.डी.पी.ई. की मुख्य तथा सहायक नालियां (पाईप) खेत में भूमिगत बिछाई जाती है। सहायक नालियों से पतली लैटरल नालियां 12 मिलीमीटर से 20 मिलीमीटर व्यास सीधी लाईनों में (कतार के वृक्षों से होती हुई) जमीन के ऊपर यह नीचे (भूमिगत) फैलाई जाती है। इन लैटरल नालियों ड्रिपर्स (उत्सर्जक) सीधे पतली नालिकाओं द्वारा या लगाये जाते हैं जिससे पौधों के जड़ क्षेत्र में पानी बूंद-बूंद के रूप में सिंचाई होती है। कुछ ड्रिपर्स नालियों में सीधी इन लाइन लगे होते हैं।
ड्रिप पद्धति का हमें अधिकतम लाभ मिलें, इसके लिए जरूरी या है कि हम अव्यवस्थित रूप से उसकी नियमित देखभाल करते रहें इस तरह की जरूरत देखभाल दो प्रकार से हो सकती है:
1. हर रोज की देखभाल
2. प्रति सप्ताह की देखभाल
ड्रिप सिंचाई पद्धति पर लगनेवाला खर्च मुख्यत: फसल की कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी पर निर्भर करता है। फलदार वृक्षों में लागत कम और सब्जियों में ज्यादा आती है। विभिन्न फसलों में ड्रिप पद्धति लगाने की लागत का विवरण तालिका 2 में दर्शाया गया है।
ड्रिप सिंचाई विधि से विभिन्न फसलों में आर्थिक अध्ययन करने पर लाभ-खर्च का अनुपात (पानी की बचत को शामिल न करने) पर 1.35 से 11.52 और पानी की बचत को शामिल करने पर 2.78-27.08 के बीच पाया गया तालिका 3 में दर्शाया गया है।
फसल |
कतार से कतार एवं पौधे की दूरी (मी.) |
लागत (रु. प्रति हेक्टेयर) |
आम, लीची, चीकू |
10 x10 |
16,000.00 |
नींबू वर्गीय फल |
6 x 6 |
25,000.00 |
अमरुद, अनार |
5 x 5 |
26,000.00 |
अंगूर |
3 x 2 |
36,000.00 |
केला |
2 x 2 |
38,000.00 |
सब्जियां |
1 x 1 |
50,000.00 |
फसल |
पानी की बचत छोड़कर |
लागत (रु. प्रति हेक्टेयर) |
अंगूर |
11.52 |
27.08 |
केला |
1.52 |
3.02 |
नींबू वर्गीय फल |
1.76 |
6.01 |
संतरा |
2.60 |
11.05 |
अनार |
1.31 |
40.4 |
गन्ना |
1.31 |
2.78 |
सब्जियां |
1.35 |
3.09 |
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखंड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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