काजू ऐसी जगहों में रोपा जा सकता है जहॉं पर तापमान शीत काल में 100से. से कम न हो और उष्णा काल में 320 -360 सें. के बीच हो।
काजू लगभग सभी प्रकार की मृदा में पनपती है चाहे बलुई हो या र्लटराइट(600-700 मीटर की ऊॅचाई तक)। यह बंजर भूमि और कम उर्वर भूमि में भी पनपता है। सबसे अनुकूल मृदा है बलुई दुम्मरट या तटीय रेती मिट्टी। तथापि भारी चिकनी मिट्टी और बहुत ठंडा मौसम इसके लिए बिलकुल उचित नहीं है।
काजू परपरागित फसल होने के नाते कायिक प्रवर्धन ही इसके लिए उचित है। सबसे उत्त म रोपण सामग्री कोमल शाख कलम है।
सफल काजू रोपण के लिए प्रत्येक स्थिति के लिए अनुकूल किस्म चुनना है।
निम्न कोटि की मृदा में 7.5मी. X 7.5मी. का अंतराल संस्तुात है और उच्चम कोटि की मृदा के लिए 10 मी X 10 मी. का अंतराल संतुष्ट है। उच्चक सघन रोपण पद्धति में प्रति एकड़ क्षेत्र ज्यादा कलमें रोपी जाती है जिनकी संख्या बाद में बड़े होने पर कम की जाती है। ऐसे में अंतराल 4मी X 4मी या 5मी X 5मी या 8मी X4मी होती है जिससे प्रति हेक्टमर 625 पौधे होते हैं।
वृष्टि प्राप्तक प्रदेशों में जून-जुलाई या सितंबर-अक्टूबर में रोपा जाता है।
निदेशालय की मान्येता प्राप्तज नर्सरियों से कलमें खरीदी जा सकती है।
कलम कम से कम छह महीने के हो और 5-7 पत्ते हो।
60 से.मी. के गड्ढों के दो तिहाई भाग ऊपर मृदा एवं जैव खाद से भरा जाता है और कलमों से पोलीथीन अलग करके रोपा जाता है।
बेसिन को जैव मात्रा से पलवारा जाए। पहले साल से ही निराई, खाद, सिंचाई, कीट एवं रोग प्रबंधन आदि अनिवार्य है।
विभिन्न राज्यों के लिए संस्तुत उर्वरक नीचे प्रस्तुत है(ग्राम/पेड)
राज्य |
नाइट्रजन |
पी2ओ5 |
के2ओ |
केरल |
750 |
325 |
750 |
कर्णाटक |
500 |
250 |
250 |
तमिलनाडु |
500 |
200 |
300 |
आन्ध्रप्रदेश |
500 |
125 |
125 |
ओडीषा |
500 |
250 |
250 |
महाराष्ट्र |
1000 |
250 |
250 |
पहले साल उपर्युक्त खुराक की एक तिहाई, दूसरे साल दो तिहाई और तीसरे साल से पूरी खुराक देनी चाहिए। हर साल दो खुराको में दी जाए, एक मानसून से पहले(मई-जून) और दूसरी मानसूनोत्तर (सितंबर-अक्तूबर)
पौधों के लिए वितान के अंदर 1-1.5 मीटर तक के थावले में 10 से.मी. तक की गहराई में उर्वरक लगाया जाए।
वयस्क पेड़ों के लिए वितान के अंदर 2-3 मीटर तक के थावले में और पेड से आधे मीटर की दूरी से 15 से.मी. तक की गहराई में उर्वरक लगाया जाए।
जनवरी से मई तक 15 दिवस के अंतराल में 200 लीटर प्रति पेड़ की दर पर सिंचाई दें।
द्रप्स सिंचाई बहुत ही असरदार है। छोटे पौधों के लिए मिट्टी के घड़ों या माईक्रो ट्यूब का प्रयोग किया जा सकता है।
चाय मच्छर, तना वेधक, काष्ठ कीट, पर्ण सुरंगक तथा पर्ण जालक मुख्य कीट हैं। इसमें चाय मच्छर सबसे खतरनाक है।
नीचे दिए अनुसार कीटनाशक दिया जाए :
पहली फुहार : अक्तूबर-नवंबर में फ्लशिंग पर।
दूसरी फुहार : दिसंबर जनवरी में और
तीसरी फुहार :जनवरी-फरवरी में।
निम्नलिखित में से एक का प्रयोग किया जाए :
मोनोक्रोटोफॉस 25% ईसी – 0.05%(1.5 मिली लीटर/लीटर पानी) कार्बरिल 50% डब्ल्यू पी – 0.1%(2ग्राम/लीटर पानी)।
अप्रैल-मई तथा अक्तूबर दिसंबर में खराब भाग को छेनी से निकाला जाए और वहाँ कार्बरिल घोल लगाए।
कलमों से तीसरे साल से ही उपज प्राप्त होते हैं और तीस साल तक उपज देता रहेगा। किस्म के आधार पर औसत उत्पाद 8-15 किलो प्रति पेड़ है।
फूलों के आने के दो महीने बाद फल फसलन के लिए तैयार होते हैं(मार्च-मई में)। परिपक्व नट जो नीचे गिरते हैं उन्हींय का फसलन करें। नट को आपिल से अलग करके 2-3 दिवस धूप में सुखाकर भण्डाटरित किया जा सकता है। अपरिपक्वो नटों का फसलन न किया जाए।
पूर्ण रूप से परिपक्वन नट में 25% आर्द्रता होगी और भूरे रंग का होगा। नट का औसत भार 6-8 ग्राम होगा और आपिल का भार 50-80 ग्राम होगा।
आपिल से अलग करने के बाद नटों को 3-7 दिवस धूप में सुखाया जाता है जिससे नमी की मात्रा कम होकर 7-8% हो जाता है। अच्छी तरह सुखाए नटों को गण्णीह बैगों में स्टोर किया जाता है।
तत्व |
प्रतिशत |
प्रोटीन |
21.00 |
वसा |
47.00 |
नमी |
5.90 |
कार्बोहाइड्रेटस |
22.00 |
कैल्शियम |
.05 |
लोहांश |
5.00/100ग्राम |
काजू के नए बागानों सबसे लाभदायक अंतराल फसल अन्नानास है। पहले 3-4 वर्षों में कसावा, मूँगफली, दलहन, सूरन जैसी सब्जियॉं, अदरक, हल्दीं जैसे मसाले आदि भी रोपा जा सकता है।
अनुत्पादी पेड़ों के पुनर्युवन के लिए उनका शीर्ष-कर्तन किया जाता है जिसे टॉप वर्किंग कहा जाता है। भूमि से 0.75-1 मीटर तना रखते हुए बाकी काट दिया जाता है और कटे भाग में ब्लाइटॉक्स और सेविन 50% डब्ल्यू पी (50ग्राम/लीटर पानी) लगाया जाता है। शीर्षकर्तन के 30-45 दिवस बाद अंकुर आते हैं। प्रत्येक पेड़ में 10-15 कलमन किया जाए ताकि 6-7 सफल कलम प्राप्त हो।
शीर्षकर्तन के लिए सर्वोत्तम समय मई-सितंबर है और कलमन का समय जुलाई नवंबर।
दूसरे साल से शीर्षकर्तित पेड़ यील्ड देने लगता है।
सी.एन.एस.एल या काजू नट कवचद्रव्य काजू का एक मुख्य उपोत्पाद है। कर्नल निकालने के बाद नट से लाल-भूरे रंग का यह द्रव निकाला जाता है।
वार्निश जैसे कई-कई उद्योगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है
काजू आपिल एक कूटफल है। इसमें कई ऐसे पोषण तत्व है जो मानव के लिए अच्छे हो। काजू आपिल से ज्यूस, सिरप, जैम, कैंडी तथा फेनी तैयार किया जा सकता है।
स्त्रोत: काजू और कोको विकास निदेशालय, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 3/14/2023
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