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गुलाब की वैज्ञानिक खेती

गुलाब प्रकृति

प्रदत्त एक अनमोल फूल है जिसकी आकर्षक बनावट, सुन्दर आकार, लुभावना रंग एवं अधिक समय तक फूल का सही दिशा मेंrose बने रहने के कारण इसे अधिक पसंद किया जाता है। यदि गुलाब की खेती वैज्ञानिक विधि से किया जाय तो इसके बगीचे से लगभग पूरे वर्ष फूल प्राप्त किये जा सकते हैं। जाड़े के मौसम में गुलाब के फूल की छटा तो देखते ही बनती है। इसके एक फूल में 5 पंखुड़ी से लेकर कई पंखुड़ियों तक की किस्में विभिन्न रंगों में उपलब्ध है। पौधे छोटे से लेकर बड़े आकार के झाड़ीनुमा होते हैं इसके फूलों का उपयोग पुष्प के रूप में, फूलदान सजाने, कमरे की भीतरी सज्जा, गुलदस्ता, गजरा, बटन होल बनाने के साथ-साथ गुलाब जल, इत्र एवं गुलकन्द आदि बनाने के लिए किये जाते हैं।

जलवायु

ठंढ़ एवं शुष्क जलवायु गुलाब के लिए उपयुक्त होती है। जाड़े में इसके फूल अति उत्तम कोटि के प्राप्त किये जाते हैं, क्योंकि जाड़े में वर्षा बहुत कम या नहीं होती है तथा रात्रि का तापक्रम भी कम हो जाता है। लेकिन अत्यधिक कम तापक्रम पर फूल को नुकसान पहुँचता है तथा कभी-कभी फूल खिलने से भी वंचित रह जाते हैं।

भूमि

गुलाब की खेती लगभग सभी प्रकार के मिट्टियों में की जा सकती है परन्तु दोमट, बलुआर दोमट या मटियार दोमट मिट्टी जिसमें ह्यूमस प्रचुर मात्रा हो, में उत्तम होती है। साथ ही पौधों के उचित विकास हैतु छायादार या जल जमाव वाली भूमि नहीं हो, ऐसी जगह जहाँ पर पूरे दिन धूप हो अतिआवश्यक है। छायादार जगह में उगाने से पौधों का एक तो विकास ठीक नहीं होगा, दूसरे पाउड्री मिल्ड्यु रस्ट आदि बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है।

गुलाब की प्रमुख किस्में

गुलाब के किस्मों में मुख्यतः सोनिया, स्वीट हर्ट, सुपर स्टार, सान्द्रा, हैपीनेस, गोल्डमेडल, मनीपौल, बेन्जामिन पौल, अमेरिकन होम, गलैडिएटर किस ऑफ फायर, क्रिमसन ग्लोरी आदि है।

भारत में विकसित प्रमुख किस्में

पूसा सोनिया प्रियदर्शनी, प्रेमा, मोहनी, बन्जारन, डेलही प्रिसेंज आदि। सुगंधित तेल हैतु किस्में - नूरजहाँ, डमस्क रोज।

प्रवर्धन

नयी किस्में बीज द्वारा विकसित की जाती है जबकि पुरानी किस्मों का प्रसारण कटिंग, बडिंग, गुटी एवं ग्रेफ्टिंग विधि द्वारा किया जाता है परन्तु व्यवसायिक विधि “टी” बडिंग ही है। टी-बडिंग द्वारा प्रसारण करने के लिए बीजू पौधे (रूट स्टॉक) को पहले तैयार करना पड़ता है। इसके लिए जुलाई-अगस्त माह में कटिंग लगाना चाहिए, जो कि दिसम्बर-जनवरी तक बडिंग करने योग्य तैयार हो जाती है ।

कटिंग (रूटस्टाक) तैयार करना

रूटस्टाक तैयार करने के लिए एडवर्ड (रोजा  बोर्बोनिअना) किस्म सबसे अधिक प्रचलित एवं हमारे क्षेत्र के लिए उत्तम है। इसके अलावा रोजा मल्टीफ्लोरा (रोजा  मल्टीफ्लोरा) या रोजा इण्डिका पाउड्री मिल्ड्यु रोधी किस्म का भी चुनाव किया जा सकता है। पौधों में से स्वस्थ टहनी जो लगभग पेंसिल की मोटाई की हो 15-20 सेमी. लम्बाई में सिकेटियर से काटकर निचले भाग की तरफ रूटिंग हारमोन्स जैसे केराडिक्स, रूटाडिक्स, रूटेक्स या सूरूटेक्स से उपचारित कर जड़ निकलने हैतु तैयार क्यारियों या बालू अथवा वर्मीकुलाइट भरे बर्तन में कटिंग को लगा दें तथा नमी बनाये रखें। जड़ निकलने पर बडिंग करने हैतु तैयार की गई क्यारियों में कटिंग को लगा दें।

कालिकाटान (बडिंग)

तैयार रूटस्टाक के पौधे में से नयी शाखा जो लगभग पेंसिल की मोटाई जितनी हो, का चुनाव करना चाहिए। अब इन चुनी हुई शाखाओं में जमीन से लगभग 15-20 सेमी. ऊपर अंग्रेजी के 'T' आकार का चीरा लगभग 2.5 सेमी. लम्बवत् तथा 125 सेमी. ऊपर (क्षितिज के समानान्तर) बडिंग करने वाले ही रोपाई करनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक

गुलाब के नये पौधों को रोपने के पहले प्रत्येक गड्ढे में आधा भाग मिट्टी में आधा भाग सड़ा हुआ कम्पोस्ट या गोबर की खाद मिलाकर गड्ढे को भरना चाहिए तथा पुराने पौधे की कटाई-छंटाई एवंचाकू से लगायें, अब मातृ पौधे से लगभग 2.5 सेमी. लम्बी ढाल आकार में छिलके सहित स्वस्थ कली को टी आकार वाले चीरे में सावधानी पूर्वक घुसाकर पोलीथिन पट्टी (200 गेज मोटी, 1 सेमी. चौड़ी एवं 45 सेमी. लम्बी) से या केले के तने के रेशे से बांध देते हैं। चूँकि कली को मातृ पौधे से निकालते हैं। इसलिए मातृ पौधे का चुनाव करते समय यह ध्यान दें कि पौधे स्वस्थ एवं बीमारी रहित हो तथा ऐसी टहनी जिसमें शाकीय कलियाँ गुलाबी रंग की हो का चुनाव करें। चश्मा लगाने के बाद क्यारी में नमी बनाये रखने की आवश्यकता होती है। 15-20 दिन बाद कली से शाखा निकलने लगती है। चूँकि यह शाखा नयी एवं कोमल होती है। अतः इसे मजबूती प्रदान करने के लिए नई कली निकलते ही उसे तोड़ दें, शाखा भी छोटी रखें। ये पौधे सितम्बर-अक्टूबर तक रोपने योग्य हो जाते हैं। यदि संभव हो तो जुलाई-अगस्त में एक बार इन पौधों को किसी ऊँचे स्थान पर स्थानान्तरित करें, इससे पौधा स्वस्थ तैयार होता है।

खेत को तैयारी

पौधा रोपने हैतु जगह का चुनाव करने के बाद उसे समतल कर लें तथा ककड़-पत्थर आदि को चुनकर बाहर निकाल दें। खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। खेत का विन्यास (ले-आउट) करने के बाद क्यारी बना लें तथा किस्म के अनुसार उचित दूरी पर 20-45 सेमी. आकार के गड्ढे खोद कर उसमें सड़ा हुआ कम्पोस्ट मिला कर गड्ढे को भर दें।

विंटरिंग जो कि अक्टूबर-नवम्बर में करते हैं, के बाद खाद एवं उर्वरक का व्यवहार करें। विंटरिंग के बाद गड्ढे में आधा भाग मिट्टी व आधा भाग सड़ा हुआ कम्पोस्ट या गोबर की खाद मिलाकर भर दें तथा क्यारियाँ बनाकर सिंचाई करें। इस क्रिया के लगभग 15-20 दिन बाद 90 ग्राम उर्वरक मिश्रण प्रति वर्ग मीटर की दर से जिसमें 2 भाग अमोनियम सल्फेट, 8 भाग सिंगल सुपर फास्फेट एवं 3 भाग म्युरेट ऑफ पोटाश की मात्रा हो, को मिलाकर देना चाहिए। अमोनियम सल्फेट एवं पोटैशियम सलफेट को पुनः पहला पुष्पन समाप्त होने के बाद व्यवहार करना उपयुक्त रहता है। चमकदार फूल प्राप्त करने को लिए सात भाग मैग्नीशियम सल्फेट + सात भाग फेरस सल्फेट + तीन भाग बोरेक्स का मिश्रण तैयार कर 15 ग्राम, 10 लीटर पानी में घोलकर एक-एक माह के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए ।

व्यावसायिक स्तर पर खेती करने के लिए 5-6 किग्रा. सड़ा हुआ कम्पोस्ट, 10 ग्राम नाइट्रोजन, 10 ग्राम फास्फोरस एवं 15 ग्राम पोटाश/वर्ग मीटर देना चाहिए। आधी मात्रा छंटाई के बाद तथा शेष 45 दिन बाद दें। भूमि की उर्वराशक्ति एवं पौधे के विकास को ध्यान में रखते हुए 50-100 ग्राम गुलाब मिश्रण (रोज मिक्सर) जो कि बाजार में उपलब्ध है, छंटाई के एक सप्ताह बाद दिया जा सकता है।

कटाई-छंटाई (प्रूनिंग)

यह क्रिया गुलाब के पौधे से अच्छे आकार के फूल प्राप्त करने के लिए अतिआवश्यक होती है। अक्टूबर-नवम्बर का महीना इसके लिए उपयुक्त है। छंटाई करते समय यह ध्यान रखने की आवश्यकता होती है कि हाइब्रीड टी पौधे की गहरी छंटाई तथा अन्य किस्मों में हल्की स्वस्थ शाखाओं को छोड़कर अन्य सभी कमजोर एवं बीमारीयुक्त शाखाओं को काटकर हटा दें तथा बची हुई शाखाओं को भी 3-6 ऑख के ऊपर से तेज चाकू या सिकैटियर द्वारा काट देना चाहिए। अन्य किस्मों में केवल पतली, अस्वस्थ एवं बीमारीयुक्त शाखाओं को ही काटकर हटायें तथा बची हुई शाखाओं की केवल ऊपर से हल्की छंटाई करें।

विंटरिंग

पौधों को छाँटने के तुरन्त बाद विंटरिंग की क्रिया करते हैं। इस क्रिया में 30–45 सेमी. व्यास एवं 15-20 सेमी. गहराई की मिट्टी को निकालकर 7-10 दिन तक जड़ों को खुला छोड़ देते हैं उसके बाद खाद एवं मिट्टी मिलाकर गड्ढे को भर कर तथा क्यारियाँ बनाकर सिंचाई करनी चाहिए।

रोपाई

पौधे की रोपाई के लिए उपयुक्त समय अन्तिम सितम्बर से अक्टूबर तक का महीना होता है। बड़े आकार वाले पौधे को 60–90 सेमी. तथा छोटे आकार वाले पौधे को 30–45 सेमी. की दूरी पर रोपाई करनी चाहिए। रोपाई के पहले पौधे की सभी पतली टहनियों को काटकर हटा दें, केवल 4-5 स्वस्थ टहनियों को ही रखें तथा इन टहनियों को भी करीब 4-5’ ऊपर से काटने के बाद

अन्य देख-रेख

निकाई-गुड़ाई एवं सिंचाई आवश्यकतानुसार समर-समय पर करनी चाहिए। मौसम के अनुसार खेत में नमी बनाये रखने के लिए गर्मी में 4-6 दिन पर तथा जाड़े में 15-20 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। खेत को हमेशा खर-पतवार से मुक्त रखने की भी कोशिश करें।

कीड़े एवं बीमारियाँ

गुलाब के पौधों में लगने वाले कीड़ों में दीमक, रेड स्केल, जैसिड, लाही (माहो) थिप्स आदि मुख्य हैं। इसकी रोकथाम समय पर करनी आवश्यक होती है। दीमक के लिए थीमेट (10%) दानेदार दवा 10 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस (20%) 25-5 मिली. प्रति 10 वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में मिलायें। रेड स्केल एवं जैसिड कीड़े की रोकथाम के लिए सेविन 0.3 प्रतिशत या मालाथियान 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें। गुलाब की मुख्य बीमारी ‘डाइबैक” है। यह प्राय: छंटाई के बद कटे भाग पर लगती है जिससे पौधो धीरे-धीरे ऊपर से नीचे की तरफ सुखते हुए जड़ तक सुख जाता है। तीव्र आक्रमण होने पर पूरा पौधा ही सुख जाता है। इसकी रोकथाम के लिए छंटाई के तुरन्त बाद कटे भाग पर चौबटिया पेस्ट (4 भाग कॉपर कार्बोनेट + 4 भाग रेड लेड + 5 भाग तीसी का तेल) लगायें एवं 0.1 प्रतिशत मालाथियान का छिड़काव करें। इसके साथ ही खेत की सफाई अर्थात् निकाई-गुड़ाई तथा खाद-उर्वरक उचित मात्रा में व्यवहार करें एवं पौधा को जल जमाव से बचायें, इससे बीमारी की रोकथाम में मदद मिलती है। इस बीमारी के अलावा ‘ब्लैक स्पाट” एवं पाउड्री मिल्डयू ’ जैसी बीमारियों का प्रकोप भी गुलाब के पौधे पर होता है। इसकी रोकथाम हैतु केराथेन 0.15 प्रतिशत या सल्फेक्स 0.25 प्रतिशत का छिड़काव करना उपयुक्त होता है।

डठल की कटाई एवं पैकिंग

जब पुष्प कली का रंग दिखाई दे ताकि कली कसी हुई हो तो सुबह या सायंकाल पुष्प डंठल को सिकेटियर या तेज चाकू से काटकर पानीयुक्त प्लास्टिक बकेट में रखें। इसके बाद 20-20 डंठल बनाकर एवं अखबार में लपेटकर रबर बैण्ड से बाँध दें। कोरोगेटेड कार्डबोर्ड के 100 × 30 सेमी. या 50 × 6-15 सेमी. के बक्से में पैक कर बाजार भेजना चाहिए ।

ऊपज

2.5 से 50 लाख पुष्प डंठल प्रति हेक्टर ऊपज प्राप्त होता है।

स्रोत: कृषि विभाग, बिहार सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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