प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक शक्कर मनुष्य के भोजन का एक अभिन्न हिस्सा रही है गन्ना और चुकंदर लम्बे समय सेशक्कर प्राप्ति का एक प्रमुख स्त्रोत हैं। हालाँकि इन दोनों ही स्त्रोतों से प्राप्त शक्कर में मिठास का गुण तो होता है लेकिन मधुमेह से पीड़ितों को इनका उपयोग न करने की सलाह दी जाती है। ऐसे लोगों के लिये स्टीविया से प्राप्त शक्कर एक बेहतर विकल्प हो सकती है। स्टीविया के पत्तों में मिठास उत्पन्न करने वाले तत्व होते हैं जिन्हें स्टीवियोसाइड, एवं इल्कोसाइड के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इनमें 6 और तत्व होते है जिनमें इन्सुलिन को संतुलित करने का गुण होता है। इसकी मिठास टेवल सुगर से ढाई सौ गुना एवं सुक्रोस से तीन सौ गुना अधिक होती है। इसमें कृत्रिम मिठास उत्पन्न करने वाले अन्य कई पदार्थों का विकल्प बनने की अच्छी संभावनाएं हैं। अभी तक स्टीविया उत्पादों के उपयोग से मनुष्य पर किसी भी प्रकार का विपरीत प्रभाव पड़ने की शिकायत नहीं पाई है। यह कैलोरी और झागहीन होता है तथा पकाने पर डार्क भी नहीं पड़ता। स्टीवियोसाइड पत्ती में उनके वजन के अनुसार 3 से 10 प्रतिशत तक होता है स्टीवियोसाइड में से ग्लूकोसाइड समूह को पृथक कर स्टीविऑल उत्पादित किया जाता है। इसके अलावा गिबरेला फ्यूजीकरोइ नामक फफंद से गिवरैलिक एसिड के उत्पादन में भी इसका उपयोग होता है।
स्टीविया (स्टीविया रिवौडिआना) मूलतः दक्षिण पश्चिम पैरागवे का है और इसका विस्तार संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, जापान, कोरिया, ताइवान एवं दक्षिण पश्चिम एशिया तक है। जापान एवं कोरिया में सामन्यतः इसे का-हे-ए (मीठी झाड़ी) के नाम से जाना जाता है।
स्टीविया रिबौडिआना (यूपेटोरियम रिबौडिआना) एस्टरासिएइ (Asterscese) का सदस्य है। इसका पौधा पतला झाड़ीनुमा होता है और इसमें डंठल नहीं होते। इसके पुष्प छोटे और सफेद तथा अनियिमित क्रम में होते हैं।
यह एक मध्यम आर्द्रता का सबट्रॉपिकल पौधा होता है जो 11-41 डिग्री से. तापमान पर उगया जा सकता है। इसकी अच्छी वृद्धि के लिये 31 डिग्री से. वार्षिक तापमान एवं 140 से.मी. वार्षिक वर्षा उपयुक्त पाई गई है। उचित प्रकाश एवं उष्ण दशाओं में इसका अंकुरण अच्छा होता है। इस प्रकार लांग ग्रोइंग सीजन, न्यूनतम पाला, उच्च प्रकाश और उष्ण ताप की अवस्था स्टीविया के पत्तों के उच्च उत्पादन में सहयक होती हैं।
पानी की विपुलता के साथ दलदली रेतीली भूमि इसके लिये सर्वाधिक उपयुक्त होती है इसकी अच्छी बढ़त के लिए 6.5-7.5 पी.एच. की अम्लीय से उदासीन भूमि उपयुक्त होती है। इसकी कृषि के लिये क्षारीय भूमि का उपयोग नहीं करना चाहिये, क्योंकि यह पौधा लवण की उपस्थिति सहन नहीं करता।
इस पौधे की खेती के लिये यद्यपि बीजों के अंकुरण और तनों के रोपण, दोनों तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन चूंकि बीजों का अंकुरण बहुत कम होता है इसलिए सामान्यतः रोपण की विधि अधिक उपयुक्त कही जा सकती है। रोपण के लिये पत्तों के अक्ष से 15 से.मी. लम्बाई का तना काटना होता है। इस कार्य के लिये चालू वर्ष के पौधों से बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं। पैकोब्यूट्राजोल (Pacvobutrazol) के साथ 100 पीपीएम की दर से उपचारित करने पर जड़ों के शीघ्र ही जमने में सहायता मिलती है। इस उपचारण का अधिक प्रभाव उस समय देखने को मिलता है जब कटिंग्स का रोपण फरवरी-मार्च माह में किया जाता है।
अभी तक इस फसल की किसी अन्य नाम से प्रजाति उपलब्ध नहीं है।
स्टीविया को सामान्यतः मेड़ों में रोपा जाता है जिसमें कतार की दूरी 22 से.मी. के मध्य होती है। पौधों के अच्छी तरह जमने के लिये कटिंग्स के रोपण के तत्काल बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिये।
रोपण के पश्चात् खेतों को कार्बनिक खाद जैसे एफ वाय एम 50 क्विं. की दर से देना चाहिये और अच्छी तरह जुताई करनी चाहिये। अच्छी वृद्धि और ज्यादा पत्तों की प्राप्ति के लिये उर्वरक की खुराक 60:30:45 किग्रा. एनपीके प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। सूक्ष्म तत्वों जैसे बोरान और मैग्नीज के बुरकाव से भी पत्ते के उत्पाद में बढ़त देखी गई है।
इसकी खेती के लिये पानी की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है और ग्रीष्म ऋतु में नियमित सिंचाई जरूरी होती है। ग्रीष्म ऋतु में फसल की हर 8 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी होती है।
यह फसल पर्याप्त रूप से सक्षम होती है। इस कारण इसमें विभिन्न प्रकार के कीटों और बीमारियों का आक्रमण नहीं हो पाता। लेकिन कभी-कभी इसमे बोरान की कमी का प्रभाव देखने को मिलता है। जिससे पत्तों में धब्बे आ जाते हैं। छ: प्रतिशत की दर से बोरेक्स देकर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।
स्टेविओसाइड चूंकि पत्तों में होता है इसलिये पौधों की अच्छी बढ़त और प्रकाश संश्लेषकों के अधिक संग्रहण की सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से इसके पुष्पों की छंटाई की जाती है। पुष्पों की छंटाई पौधों के रोपण के 30, 45, 60, 75 एवं 85 दिनों के पश्चात् की जाती है। रटून फसल होने की स्थिति में सामान्यतः पहली कटाई के 40 दिनों के पश्चात् पुष्प आते हैं अतः ऐसी स्थिति में छंटाई 40 और 55 वें दिन की जाती है।
इसकी फसल रोपण के तीन माह पश्चात् पहली कटाई की अवस्था में आ जाती है। पुनरोत्पादन को सहूलियत प्रदान करने के लिये पौधों को जमीन से 5-8 से.मी. ऊँचाई पर काटना चाहिये। नब्बे दिन के अंतराल पर इसे पुनः काटा जा सकता है। एक वर्ष में इसकी चार बार कटाई की जा सकती है। इसकमें प्रति हेक्टेयर प्रति फसल लगभग 3 से 3.5 टन पत्ते प्राप्त किये जा सकते हैं। इस प्रकार एक हेक्टेयर क्षेत्र से प्रति वर्ष लगभग 10 से 12 टन पत्ते प्राप्त किये जा सकते है।
इस प्रक्रिया के अंतर्गत कच्चे माल का जल निस्सारण किया जाता है। प्रक्रियाकरण के पूर्व पत्तों के 0.3-0.9 मिमी. के टुकड़े किये जाते है और इन्हें एसीटोन के साथ 58° से. ताप पर 5 घंटा तक शोधित किया जाता है। इसके पश्चात् 25-30° से. ताप पर निर्वात के द्वारा मिश्रण से एसीटोन को पृथक कर दिया जाता है निस्सारण 40-50 डिग्री ताप तक 2 से 4 घंटों तक जारी रखा जाता है। इसके पश्चात् प्राप्त सामग्री को निथारकर और सारकृत कर कृत्रिम मिठास प्रदान करने वाला तत्व प्राप्त किया जाता है जिसका औषधि और अन्य कार्यों में उपयोग किया जाता है। गत वर्षों में स्टीविया चीनी (स्टीवियोसाईड एवं ग्लूकोसाईड) निष्कर्षण हेतु कलकत्ता, दिल्ली, मुम्बई एवं हिमाचल प्रदेश में फैक्ट्री हैं जिसमें स्टीविया के सुखे पत्तों का क्रय दर लगभग 100/किलोग्राम। राज्य में उँची जमीन के लिए उपयुक्त गैर पारस्परिक फसल है। इसकी खेती से लगभग एक लाख रूपये एकड़ प्रथा पपीता की अन्तवर्ती खेती स्टीविया के साथ करने पर लगभग 50,000/- रूपये/ एकड़ अतिरिक्त आय संभव है।
(क) कुल लागत |
प्रथम वर्ष |
द्वितीय वर्ष |
तृतीय वर्ष |
चतुर्थ वर्ष |
पंचम वर्ष |
1 भूमि की तैयारी तथा बेड्स निर्माण |
5000.00 |
- |
- |
- |
- |
2 ड्रिप इरीगेशन पर व्यय |
60000.00 |
- |
- |
- |
- |
3 पौध सामग्री की लागत (बीज/कलम से तैयार पौधों हेतु@4.00 पौधा) |
120000.00 |
- |
- |
- |
- |
4 पौधों की रोपाई पर व्यय |
2000.00 |
- |
- |
- |
- |
5 खाद तथा टॉनिक आदि |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
6 निंदाई-गुड़ाई की लागत |
3500.00 |
3500.00 |
3500.00 |
3500.00 |
3500.00 |
7 पानी तथा फसल की देखभाल |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
8 शेड व्यवस्था, पपीता अथवा अन्य पौधों के रोपण एवं रख-रखाव पर व्यय) |
5000.00 |
4000.00 |
4000.00 |
4000.00 |
4000.00 |
9 फसल कटाई तथा सुखाना |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
10 पैकिंग तथा ट्रांसपोर्टेशन आदि |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
11 अन्य तथा आकस्मिक व्यय |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
5000.00 |
कुल योग - |
220500 |
27500 |
27500 |
27500 |
27500 |
ख. प्राप्तियां |
|||||
फसल की बिक्री से प्राप्तियां (100 रू. प्रति कि.ग्रा. की दर से)उत्पादन |
1.2 टन सूखे पत्ते |
1.5 टन सूखे पत्ते |
1.5 टन सूखे पत्ते |
1.5 टन सूखे पत्ते |
1.5 टन सूखे पत्ते |
कुल प्राप्तियाँ |
120000 |
180000 |
180000 |
180000 |
180000 |
ग. लाभ |
100500 |
152500 |
152500 |
152500 |
152500 |
स्टीविया की खेती पर प्रथम वर्ष में व्यय की अधिकता के कारण आय नहीं है। पपीता की अन्तर्वर्ती खेती से प्राप्त वर्ष लगभग 80,000/-रूपये की आय संभावित है।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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