हमारे देश में सदियों से दोहरी फसलोत्पादन की अनेकों कृषि पद्धतियाँ प्रचलन में हैं। इनमें से बहुत ही प्रचलित तथा महात्वपूर्ण कृषि पद्धति है – पैरा कृषि वेगबवद्ध खेती। आधार फसल के कटनी से पूर्व अन्य फसल की बुआई आधरित फसल के खड़ी खेत में करना ही पैरा कृषि पद्धति या “वेगबद्ध” कहलाता है तथा अनुवर्ती फसल “पैरा फसल कहलाता है। इस कृषि प्रणाली का मुख्य उद्देश्य खेत में मौजूद नमी का उपयोग अनुवर्ती पैरा फसल के अंकुरण तथा वृद्धि के लिए करना है।
झारखंड जैसे क्षेत्रों में जहां की कृषि वर्षा पर आधारित हैं तथा सिंचाई के सीमित साधन के कारण रबी मौसम में खेत परती पड़ी रहती है वैसे क्षेत्रों के लिए “पैरा कृषि” एक उपयोगी विकल्प हो सकता है।
पैरा कृषि पद्धति से प्राय: सभी किसान परिचित होंगे, लेकिन इनसे जुड़े वैज्ञानिक पहलुओं तथा आधुनिक जानकारियों के अभाव के कारण उनका पैदावार काफी कम है। अत: पैदावार बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों तथा जानकारियों का व्यापक उपयोग अति आवश्यक हैं।
पैरा खेती के लिए केवल या मटियार दोमट जैसी भारी मिटटी उपयुक्त होती है। अत: मध्यम तथा निचला जमीन (दोन) का चुनाव करना चाहिए। भारी मिटटी में जलसाधारण क्षमता होती है साथ ही काफी लम्बे समय तक मिटटी में नमी बरकरार रहती है। टांड या उपरी जमीन पैरा खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है क्योंकि यह जल्दी सूख जाता है।
आधार फसल तथा अनुवर्ती पैरा फसल के बीच समय का सामंजस्य अति आवश्यक है। दोनों फसलों के बीच समय का तालमेल इस तरह से हों कि हथिया नक्षत्र में पड़ने वाली वर्षा का लाभ दोनों फसलों को मिले साथ ही पैरा फसल की वृद्धि के लिए पर्याप्त समय भी मिले। अत: आधार फसल के लिए मध्यम अवधि वाली अर्थात 120 से 125 दिन में पकने वाली उन्नत प्रभेद का चुनाव करना चाहिए।
लम्बे अवधि वाले आधार फसल का चुनाव करने से पैरा फसल को वृद्धि के लिए कम समय मिला है तथा नमी के अभाव के कारण उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इस पठारी क्षेत्र में धान ही मुख्य फसल है इसलिए धान को आधार फसल के रूप में लिया जा सकता है। धान की उन्नत तथा मध्यम अवधि वाली किस्में जैसे – आई.आर.-36, आई.आर.-64, बिरसा धान-202, पूसा बासमती इत्यादि की खेती खरीफ में आधार फसल के रूप में की जानी चाहिए। पैरा फसल के रूप में तीसी, मसूर, चना, मटर एवं खेसारी इत्यादि का चुनाव किया जा सकता है।
पैरा फसल के लिए बीज दर उस फसल के सामान्य अनशंसित मात्र से डेढ़ गुणा अधिक होता है। उदाहरण के लिए तीसी का अनुशंसित बीज दर 8 किलो प्रति एकड़ है। पैरा खेती हेतु 8 किलो का डेढ़ गुणा (1.5) अर्थात 12 किलो तीसी प्रति एकड़ चाहिए। प्रति क्षेत्रफल पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव अत्यंत जरूरी है।
आधार फसल धान की किस्में |
पैरा फसल |
पैरा फसल की किस्में |
बीज दर (किलो/एकड़) |
आई.आर.-36 |
तीसी |
टी.-397 शुभ्रा |
12 |
आई.आर.-64 |
मसूर |
बी.आर.-25, पी.एल.-406 |
18 |
बिरसा धान-202 |
चना |
पन्त जी.-114, सी.-235 |
45 |
पूसा बासमती |
छोटा मटर (केरव) |
रचना, स्वर्णरेखा |
48 |
एम.टी.यु.-7029 |
खेसारी |
रतन, पूसा-24 |
36 |
धान में पचास प्रतिशत फूल आने के दो सप्ताह बाद अर्थात अक्टूबर के मध्य माह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह के बीच पैरा फसल का बुआई छींट कर करना चाहिए।
बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए। नमी इतनी होनी चाहिए की बीज गीली मिटटी में चिपक जाये।
जहाँ ध्यान दें कि खेत में पानी अधिक न हो अन्यथा बीज सड़ जाएगी। आवश्यकता से अधिक पानी को निकाल दें। जल निकासी का उचित व्यवस्था रखें।
दलहनी फसलों में नेत्रजन (नाइट्रोजन) की आवश्यकता पौधे के प्रारम्भिक अवस्था में होती है। अत: यूरिया 2 किलो, डी.ए.पी.20 किलो तथा पोटाश 6 किलो प्रति एकड़ बुआई के समय देना चाहिए। 4 क्विंटल गोबर खाद भी अच्छी तरह से भूरकाव कर देना चाहिए।
तीसी या अन्य तिलहनी फसलों के लिए नेत्रजन की अतिरिक्त मात्रा देने की आवश्यकता होती है। अतिरिक्त 10 किलो यूरिया का व्यवहार बुआई के 20 दिन बाद करना चाहिए।
धान कटनी के 40-45 दिन बाद पैरा फसल में एक निकौनी करना चाहिए। तीसी में खरपतवार नियंत्रण के लिए आइसोप्रोटोरान धूल (25 प्रतिशत) का छिड़काव बुआई के 15 दिनों बाद किया जा सकता है। दलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण हेतु एलाक्लोर 50 ई.सी. का प्रयोग बुआई के 2 दिन बाद किया जा सकता है।
दलहनी फसलों जैसे चना, मटर, मसूर, खेसारी तथा तिलहनी फसल तीसी में उकठा रोग होने पर उक्त खेत में 2 से 3 साल तक इन फसलों की खेती रोक देनी चाहिए अथवा रोग रोधी किस्मों का व्यवहार करना चाहिए।
मटर के फफूदी रोग नियंत्रण हेतु कैराथेन (0.1 प्रतिशत) या सल्फेक्स (0.3 प्रतिशत), इंडोफिल एम-450 0.2 प्रतिशत के मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए।
तीसी में गोल मीज का प्रकोप होने पर मिथाइल डियेटोन (10 मिली./10 ली.पानी) या मोनोक्रोढ़ोफास (10 मिली/10 ली. पानी) का छिड़काव करना चाहिए।
दलहनी फसलों में फली छेदक नियंत्रण हेतु डेल्फिन या डिपेल (1 ग्राम/ली.पानी) या इंडोसल्फान तरल (1.2 मिली./ली.पानी) का छिड़काव करना चाहिए।
किसान भाई अगर आधार फसल धान जैसा ही पैरा फसल के खेती पर ध्यान दें तो निश्चित रूप से प्रति क्षेत्रफल पैदावर बढ़ेगी। पैरा कृषि अपनाकर काफी कम लागत में निम्नलिखित उपज प्रति एकड़ प्राप्त किया जा सकता है।
उपज |
क्विंटल/एकड़ |
तीसी |
2.5 |
मसूर |
1-1.5 |
चना |
1-1.5 |
छोटी मटर (केख) |
3-4 |
खेसारी |
3-4 |
पैरा कृषि के अंतर्गत कुछ सावधानियाँ बरतने की आवश्यकता होती है, जैसे –
पैरा खेती के निम्नलिखित लाभ है-
स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखंड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 10/29/2020
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