वर्तमान युग की कृषि सम्बन्धी चुनौतियों का सामना करने के लिए दक्ष खेती एक उत्तम तकनीक है। यह खेती की एक एकीकृत प्रणाली है और प्रबन्धन छोटे से खेत में फसल की वास्तविक आवश्यकताओं पर आधारित है। इस खेती की आदर्श परिस्थितियाँ यह है कि खेत काफी विस्तृत और विभिन्नताओं से युक्त होना चाहिए।
दक्ष खेती की प्रमुख भाग निम्नलिखित है
यह एक उपग्रह आधारित दिशा सूचक प्रणाली है। इसका रिसीवर मोबाइल हैण्डसेट जैसा दिखता है जो कि लगभग पांच मीटर तक की यथार्थता देने में सक्षम है।
यह तकनीक दूर स्थान के आंकड़े अर्जित करती है। इस कार्य में इलेक्ट्रोनिक कैमरा, वायुयानों द्वारा सर्वेक्षण और उपग्रह की विशेष भूमिका होती है। इस प्रणाली का प्रयोग आंकड़े बनाने में किया जाता है जिसका विश्लेष्ण भौगोलिक सूचना प्रणाली द्वारा होता है। कच्चे आंकड़े संसाधित किए जाने के बाद प्रसंस्कृत चित्र क्षेत्र मानचित्र के निर्देशांक अनुरूप बनाए जाते हैं तत्पश्चात उसकी व्याख्या की जाती है।
यह दक्ष खेती का प्रमुख भाग है व प्रबन्धन की एक तकनीक है जिसकी सहायता से हम एक ही बार में खेती की स्थिति का जायजा ले सकते है। यह प्रणाली सही निर्णय देने में सहायक होती है।
इस प्रणाली में कृषि संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वचालिताम यंत्रों द्वारा होती है। दक्ष खेती को कार्यान्वित करने के लिए 50 से 60 एकड़ या उससे भी बड़े खेत को 2-3 एकड़ के छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित किया जाता है उसके पश्चात भूमंडलीय स्थिति प्रणाली द्वारा खेत का सर्वेक्षण करते हैं। प्रत्येक छोटे-छोटे खेतों के टुकड़ों का अवलोकन करने के बाद नमूने एकत्रित किए जाते हैं व उनका विश्लेष्ण होता है।
अम्लता मापक ऊपरी सतह की मिट्टी की गहराई, कठोर सतह, एन.पी.के और सूक्ष्म पोषक तत्व, फसल तत्व, रोग और कीट प्रतिरोधक क्षमता इत्यादि। इस प्रकार के अध्ययनों से खेत की अच्छी फसल हेतु आवश्यकताओं की सही जानकारी हो जाती है।
विविधदर आधारित यह तकनीक स्थान सम्बन्धी पदार्थो के प्रयोग से अभिप्रेरित हैं जैसे की बीज, पादपनाशक, कीटनाशक, खाद और संशोधन। इसमें एक चलायमान को क्षेत्रीय कंप्यूटर, जी.पी.एस. रिसीवर, संबंधित प्रायोगिक मानचित्र उत्पाद चित्रण नियंत्रक द्वारा खेत की आवश्यकता के अनुरूप पदार्थ की मात्रा अथवा प्रकार में परिवर्तन किए जाते हैं। परिवर्तनीय गति तकनीक का अग्रिम रूप है – ओन-द-गो सैनसिंग। यह मानचित्र प्रयोग के माध्यम से भूमंडलीय स्थिति प्रणाली को निर्देशांकित करता है जो नियंत्रण विभाग पर कार्य करता है और सामग्री पर नियंत्रण रखता है।
उच्च उत्पादन, कम लागत में अधिक लाभ, प्राकृतिक संसाधनों का प्रभावशाली इस्तेमाल, सीमित श्रम शक्ति, पर्यावरण सुरक्षा, उत्पादकता और अनुकूलतम लाभ।
अमेरिका, इंगलैंड, कनाडा, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में यह तकनीक 1980 से चलन में है। भारत में इस तकनीक को अपनाने के प्रमुख बाधक हैं – छोटे कृषि क्षेत्र और सीमित निवेश, परन्तु उन्नतिशील किसान, भू-भाग और उद्यान विज्ञान, अनुबंधित खेती, कृषि अर्थशास्त्रीय और नियति क्षेत्र में दक्ष खेती की स्वीकृति की आशा है।
अंतिम बार संशोधित : 6/19/2023
इस पृष्ठ में अगस्त माह के कृषि कार्य की जानकारी दी...
इस पृष्ठ में 20वीं पशुधन गणना जिसमें देश के सभी रा...
इस भाग में अंतर्वर्ती फसलोत्पादन से दोगुना फायदा क...
इस पृष्ठ में केंद्रीय सरकार की उस योजना का उल्लेख ...