हमारे देश की जनसंख्या वर्ष 2020 तक लगभग 125 करोड़ हो जाने की सम्भावना है, जिसके भरण-पोषण के लिए हमें लगभग 109 मिलियन टन गेहूं की आवश्यकता होगी। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए हमें वर्ष 2020 तक गेहूं का उत्पादन 35 मिलियन टन और बढ़ाना होगा जो वर्तमान पैदावार (2.7 टन प्रति हेक्टेयर) को 4.0 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाकर ही सम्भव है। चूँकि देश में दिनों-दिन कृषि योग्य भूमि में कमी होती जा रही है, इसलिए प्रति इकाई क्षेत्रफल में पैदावार बढ़ाकर ही उपरोक्त लक्ष्यों की पूर्ति सम्भव है। इसी प्रकार वर्तमान भूमंडलीकरण के युग में विश्व व्यापार संगठन समझौते के अंतर्गत गेहूं के उत्पादन में लागत मूल्य को कम से कम करना तथा उसकी गुणवत्ता को अन्तराष्ट्रीय बाजार योग्य बनाना अति आवश्यक है। उत्पादन कारकों जैसे खाद एवं पानी की उपयोग क्षमता में भी वृद्धि करके उत्पादन लागत को कम किया जा सकता है।
वर्तमान में हमारे देश में गेहूं की खेती लगभग 27 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है जिससे लगभग 75 मिलियन टन गेहूं पैदा होता है। गेहूं की खेती के कुल क्षेत्रफल में से लगभग 10 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुवाई ‘धान-गेहूं’ फसल प्रणाली के अंतर्गत रोपाई वाले धान के बाद की जाती है। यह क्षेत्र मुख्य रूप से “गंगा के मैदानी भाग” के अंतर्गत आता है जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल राज्य शामिल है। धान-गेहूं फसल प्रणाली में अधिक पैदावार देने वाली धान की किस्में लेने से (जो पकने में ज्यादा समय लेती है) गेहूं की बुवाई समय पर नहीं हो पाती है जिससे गेहूं की पैदावार में कमी आती है। एक अनुमान के अनुसार गेहूं की बुवाई 25-30 नवम्बर के बाद करने से प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन लगभग 30 किग्रा. गेहूं की पैदावार में कमी आती है। साथ ही साथ उत्पादन कारकों की उपभोग क्षमता में भी कमी आ जाती है। जिसे अधिक नाइट्रोजन देकर भी पूरा नहीं किया जा सकता है। गेहूं की बुवाई में विलम्ब मुख्यत: निम्न कारणों से होता है।
उपरोक्त कारणों में प्रमुख रोपाई वाले धान के बाद गेहूं के लिए खेत तैयार करने में लगने वाला समय है। रोपाई वाले धान में मचाई (पडलिंग) करने से जमीन काफी सख्त हो जाती है तथा गेहूं के लिए उस खेत को तैयार करने में समय एवं लागत लगता है सामान्यत: फसल उत्पादन में लगने वाले कुल खर्च का लगभग एक तिहाई भाग खेत की तैयारी में लग जाता है। भारी भूमियों में धान के बाद गेहूं के लिए खेत तैयार करना और भी मुश्किल हो जाता है। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के परिणामस्वरूप यह माना जाता है, कि अधिक जुताई करने से भूमि की उर्वरा शक्ति में गिरावट आती है तथा मृदा का वायु एवं जल द्वारा कटाव बढ़ जाता है। भारी भूमियों में जुताई करने से बड़े-बड़े ढेले निकलते है जिससे उसमें बोई गई फसल का अंकुरण भी प्रभावित होता है। ट्रेक्टर से लगातार जुताई एवं पाटा करने से खेत की मिट्टी दब जाती है तथा एक निश्चित गहराई पर कड़ी परत बन जाती है जिसके कारण जल निकास भी ठीक से नहीं हो पता है तथा मृदा संरचना भी खराब हो जाती है। उपरोक्त समस्याओं के निराकरण के लिए पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा ‘जीरोटिलेज मशीन’ का विकास किया गया, जिसके द्वारा रोपाई वाले धान की कटाई के तुरंत बाद बची हुई नमी का उपयोग करके बिना खेत की तैयारी के ही गेहूं की समय पर बुवाई की जा सकती है। यह विधि इस समय उत्तर भारत में मुख्यत: पंजाब एवं हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी लोकप्रिय हो रही है।
जीरो टिलेज मशीन आमतौर पर प्रयोग में लाई जाने वाली सीड ड्रिल की तरह ही होती है। इस मशीन में मिट्टी चीरने वाले उल्टे “टी” प्रकार के 9 फाल लगे होते है जो टैक्टर के पीछे खेत में 18-22 सेमी. की दूरी पर पतली लाइन चीरते हैं जिनमें बीज एवं दानेदार उर्वरक (डी.ए.पी. एवं यूरिया) साथ-साथ अगल-बगल में गिरते हैं तथा बुवाई के बाद बीज को ढकने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस समय यह मशीन पन्तनगर, लुधियाना एवं अमृतसर में बड़े पैमाने पर बनाई जा रही है तथा मशीन की कीमत लगभग 16000 रूपये है।
यह तकनीक मुख्यत: गेहूं उत्पादक राज्यों जैसे पंजाब एवं हरियाणा राज्य में वर्ष 2000-2001 में लगभग 1 लाख हेक्टेयर गेहूं की बुवाई जीरो टिलेज तकनीक से की गई। अन्य राज्यों जैसे उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार में भी इस तकनीक का प्रचार-प्रसार काफी तेजी से हो रहा है। जीरो टिलेज तकनीक के मुख्य लाभ निम्नलिखित है।
ध्यान देने योग्य मुख्य बातें: जीरो टिलेज तकनीक से अधिक लाभ लेने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है।
बुवाई की विधि |
फेलारिस माइनर की संख्या |
गेहूं की पैदावार (किग्रा./हें.) |
बुवाई का समय (घंटा/हें.) |
ईधन की खपत (लीटर/हें.) |
जीरो टिलेज मशीन से बुवाई |
148 |
4578 |
2.38 |
9.72 |
परम्परागत विधि से बुवाई |
251 |
4281 |
13.95 |
57.76 |
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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