सूकर बहुत तेजी से बढ्ने वाले पशु होते हैं। अच्छे रखरखाव की परिस्थिति में वयस्क मादा सूकर वीआरएसएच में दो बार बच्चे दे सकती है और एक बार में लगभग 65 से 80% वजन के बराबर मांस प्राप्त हो सकता है। सूकर के पेट में चारा खाने वाले पशुओं के पेट की तरह आमाशय में चार खाने न होकर के ही सम्पूर्ण आमाशय होता है। अतः यह उन पशुओं की त्राह भोथरा चारा आदि का उपयोग नहीं कर पाता है, इसलिए सूकर को अधिकतम मात्रा में सांद्र आहार एंव कम से कम मात्रा में रेशे वाले भोजन (चारा, भूसा आदि) की आवश्यकता होती है।
छत्तीसगढ़ में सभी आदिवासी जातियों के लोग सूकर पालन करते हैं। सड़क से दूर पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी लोग अफेन परम्पपरिक तरीकों से देशी सूकर ही पालते हैं जबकि पहुँच वाले गांवों मे जहां सरकारी योजनाओं का लाभ मिल चूका है, सूकर पालन में कुछ परिवर्तन आया है।
वहाँ अब वे ऋण योजनाओं के अंतर्गत मिलने वाले “लार्ज वाईट यार्क शायर” और “मिडिल वाईट शायर” नस्ल के सूकर भी पालते हैं।
दो से तीन माह की उम्र तक बच्चों को अपनी माँ का दूध पिलाया जाता है, इस दौरान न तो पिल्लों की बिक्री होती है, न ही माई सूकर की।
पहले पैदा होने वाले पिल्ले को पहले दूध छुड़ाने और अंत में पैदा होने वाले को क्रम से दूध छुड़ाने की प्रक्रिया अपनाना चाहिए, जो कहीं अपनाई जाती है जबकि अन्य अज्ञानतावश तथा अभावों के कार्न इस प्रक्रिया को नहीं अपना पाते हैं।
दूध पिलाने की प्रक्रिया में मादा सूकर बहुत कमजोर हो जाती है जिससे इनकी पसलियाँ भी दिखने लगती है।
सूकर पालक इन सूकर पिल्लों को जवान होने टीके पालने में असर्मथ होते हैं जिसके चार कारण समझ में आते हैं:
देशी सूअर की मुख्य नस्ल जो यहाँ पाई जाती है, उसके मुख्य लक्षण इस प्रकार है-
आज की स्थिति में बिना विदेशी नस्ल के रक्त के कोई सूकर नहीं रह गया है। हालांकि छत्तीसगढ़ के आदिवासी पहले भी और अब भी देशी काले सूकर को ही पसंद करते हैं।
संकर नस्ल के सूकरों की बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ग्रामीण परिस्थितियों में इनकी मृत्यु दर भी अधिक है। विदेशी नस्ल के सूकरों में जूएँ, पेट के कृमि होने तथा घाव होने पर समय पर ईलाज नहीं होने पर सूकर के ठीक होने की संभावनाएं कम होती है।
स्वाइन फीवर (सूकर ज्वर) नाम की बीमारी का भय रहता है। संकर नस्ल के नर सूकर आहार की अधिक आवश्यकता एंव कम उपल्ब्ध्ता के कारण धान के खेतों को नुकसान पहुंचाते हैं। ग्रामीण परिस्थितियों में सूकर पालन के लिए यह भी एक नकारात्मक बिन्दु हैं। अधिक शारीरिक भार, अधिक वृद्धि दर एंव आहार को मांस में बदलने की तेज क्षमता- विदेशी नस्ल के सूकरों के पालन के लाभ हैं जबकि छत्तीसगढ़ में परंपरिक सूकर पालन में यह संभव नहीं हो पाता जहां आहार के नाम पीआर कोंढ़ा एंव जूठन के साथ मिलाकर थोड़ी मात्रा में खिलाने का प्रचलन है।
आदिवासी परिवारों में नर सूकर को खिलाना लाभदायक नहीं माना जाता। विदेशी नस्ल के नर सूकर भारी और बड़े होते हैं जो देशी नस्ल की छोटी-छोटी मादाओं से समागम के लिए उपयुक्त नहीं होते। देशी मादा भागने में तेज होती है जबकि विदेशी नर बहुत धीमा होता है। अतः वह गर्मी में होने के बाद भी मादा को पकड़ नहीं पाता।
चूंकि नर को आहार कम दिया जाता है। अतः धीरे-धीरे कमजोर हो जाता है तथा प्रजनन योग्य नही रहता।
विदेशी सूकर अपने शरीर भार का एक किलो मांस बनाने के लिए 1.8 से 2.0 किलो तक सांद्र आहार खाता है, जबकि देशी सूकर 3.5 किलो तक सांद्र आहार खाता है।
चूंकि ग्रामीण परिवेश में साफ सफाई व देखरेख बहुत अच्छे तरीके से संभव नहीं है ऐसी परिस्थितियों में भी देशी सूकरों में प्रजनन क्षमता व बीमारियों से लड़ने की क्षमता अधिक होती है। इसलिए तुलनात्मक रूप से अधिक उत्पादन देना भी उनके संभव होता है।
स्त्रोत: छत्तीसगढ़ सरकार की आधिकारिक वेबसाइट
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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