दुग्ध उत्पादन, चावल के बाद सकल घरेलू उत्पाद में योगदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा कृषि उत्पाद है। भारतीय कृषि में डेरी उत्पादन किसानों के लिए साल भर नियमित आय के प्रवाह का एक मुख्य साधन या गतिविधि है। डेरी नियमित आय के साथ साथ छेटे व सीमांत किसानों और विशेष रूप से भूमिहीन खेतिहर मजदूरों को नियमित रोजगार भी प्रदान करती है। वर्ष 2013-14 के दौरान दुग्ध उत्पादन करीब 137.6 लाख तक पहुँच गया जिसमें करीब 70 लाख ग्रामीण किसानों का मुख्य सहभाग था। देश में प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता 2011-12 के दौरान 290 प्रति व्यक्ति ग्राम थी। देश में औसतन दुग्ध उत्पादन दर 4.18 प्रतिशत है जबकि यह दुनिया में 2.2 प्रतिशत ही है। जो कि बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए दुग्ध और दुग्ध उत्पादों में निरंतर वृद्धि को दर्शाता है(आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15) । दुग्ध क्रांति में सहकारी डेरी रीढ़ की हड्डी या आधार है जो भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनाने में मुख्य सार्थक सिद्ध हुई है। भारत में उत्तर पूर्वी हिस्से में पाई जाने वाली डेरी का परिदृश्य देश के अन्य डेयरी परिदृश्य की तुलना में एक अलग तस्वीर प्रस्तुत करती है। भारत के उत्तर पूर्व में आसाम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा राज्य शामिल हैं। इस क्षेत्र में देश की कुल भूमि का सात प्रतिशत तथा देश की कुल आबादी का चार प्रतिशत हिस्सा शामिल है।
तालिका 1. भारत के उत्तर पूर्व राज्यों में 2003-04 से 2012-13 के दौरान दुग्ध उत्पादन('000 टन
राज्य
|
2003 3-04 |
2004 4-05 |
2005 5-06 |
2006 6-07 |
2007 7-08 |
2008 8-09 |
2009 9-10 |
2010 0-11 |
2011 1-12 |
2012 2-13 |
अरूणाचल |
48 |
48 |
48 |
49 |
32 |
24 |
26 |
28 |
22 |
23 |
असम |
727 |
739 |
747 |
750 |
752 |
753 |
756 |
790 |
796 |
800 |
मणिपुर |
71 |
75 |
77 |
77 |
78 |
79 |
78 |
78 |
79 |
80 |
मेघालय |
69 |
71 |
73 |
74 |
77 |
78 |
78 |
79 |
80 |
81 |
मिजोरम |
15 |
16 |
15 |
16 |
17 |
17 |
11 |
11 |
14 |
14 |
नागालैंड |
63 |
69 |
74 |
67 |
45 |
53 |
78 |
76 |
78 |
79 |
सिक्किम |
48 |
46 |
48 |
49 |
42 |
42 |
44 |
43 |
45 |
42 |
त्रिपुरा |
84 |
86 |
87 |
89 |
91 |
96 |
100 |
104 |
111 |
118 |
उत्तरपूर्वी |
112 |
115 |
116 |
117 |
113 |
114 |
117 |
120 |
122 |
123 |
राज्य |
3 |
0 |
9 |
1 |
4 |
2 |
1 |
9 |
5 |
7 |
भारत |
880 |
924 |
970 |
102 |
107 |
112 |
116 |
121 |
127 |
132 |
|
82 |
84 |
66 |
580 |
934 |
183 |
425 |
848 |
904 |
431 |
तालिका 2 : उत्तर पूर्वी राज्यों में दुग्ध की प्रति व्यक्ति (ग्रा.प्रतिदिन) उपलब्धता
राज्य
|
2002 2-03 |
2003 3-04 |
2004 4-05 |
2005 5-06 |
2006 6-07 |
2007 7-08 |
2008 8-09 |
2009 9-10 |
2010 0-11 |
2011 1-12 |
अरूणाचल |
112 |
109 |
114 |
113 |
114 |
73 |
55 |
59 |
63 |
44 |
असम |
71 |
71 |
72 |
72 |
71 |
70 |
70 |
69 |
71 |
70 |
मणिपुर |
85 |
85 |
90 |
92 |
91 |
91 |
90 |
88 |
88 |
80 |
मेघालय |
78 |
78 |
81 |
82 |
81 |
83 |
83 |
83 |
83 |
74 |
मिजोरम |
45 |
44 |
46 |
43 |
46 |
47 |
47 |
29 |
31 |
35 |
नागालैंड |
78 |
83 |
90 |
96 |
86 |
58 |
67 |
96 |
93 |
108 |
सिक्किम |
66 |
68 |
70 |
70 |
71 |
72 |
74 |
77 |
80 |
83 |
त्रिपुरा |
222 |
231 |
221 |
232 |
231 |
195 |
194 |
200 |
194 |
202 |
भारत |
230 |
231 |
233 |
241 |
251 |
260 |
266 |
273 |
281 |
290 |
इस क्षेत्र में ग्रामीण आबादी के लिए कृषि, आजीविका चलाने का मुख्य स्रोत है। यह कम निवेश, कम उत्पादन की तकनीक, मिश्रित खेती और छोटे भूमि धारर्को के कारण पिछड़ा हुआ है। फसल पद्धति में अनाज का सबसे अधिक श्रेय है लेकिन पशुधन, मिश्रित खेती प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है और इस प्रकार आय के वैकल्पिक स्रोत के रूप में पशुओं पर निर्भरता है। खाद्य पद्धति तथा दुग्ध कम उपलब्धता के कारण यहाँ दुग्ध और दुग्ध उत्पार्दो की खपत, कम है।
तालिका 1 और 2 के अनुसार, उत्तर पूर्व राज्यों में दुग्ध उत्पादन और दुग्ध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता देश के औसत आँकड़े तुलना में काफी कम दिखाई देते हैं। वर्ष 1993-94 से 2003-04 के दौरान प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति उपलब्धता में समग्र स्तर से गिरावट दर्ज की गई है यह सिफारिश स्तर 220 ग्राम प्रति व्यक्ति से काफी कम पाई गई (कुमार एवं सहयोगी, 2007) । हालंकि वर्ष 2006-04 से इस क्षेत्र के राज्य में प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता में सत्त वृद्धि पाई गयी (तालिका 2) इसके अलावा यह क्षेत्र प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि और जीवन शैली में परिवर्तन के परिणाम स्वरूप दुग्ध और दुग्ध उत्पाद की मांग की वृद्धि अग्रणी रही है। (फिरोज एवं सहयोगी, 2010) बैरी सहकारिता का महत्व उत्तरपूर्व क्षेत्र के किसान भारत के अधिकतर भागों में पाये जाने वाले छोटे और सीमांत किसानों के सामान है। यहां के किसान असंघटित क्षेञ को दुग्ध बेचा करते हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि यहाँ के किसानों को इस कारण कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे कीमतों को प्रभावित करने वाले बिचौलिया, सौदे बाजी, भण्डारण व परिवहन के लिए बुनियादी
सुविधाओं की कमी और प्रसंस्करण की कमी इत्यादि। लेकिन यदि किसानों को सहकारी डेरी उपलब्ध की जाये तो इन समस्याओं को कम किया जा सकता है। सहकारी डेरी संस्थाएं अपने सदस्यों को इनपुट, पशु स्वास्थ्य देखभाग और विस्तार सेवा प्रदान करती हैं तथा जिला स्तर और गांव स्तर के डेरी सहकारी समितियों के सभी कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी देती है। सहकारी डेरी उत्तरपूर्वी क्षेत्रो में छोटे और सीमांत किसानों के लिए ग्रामीण दुग्ध उत्पादन और विपणन की सुविधाओं के द्वारा आय और रोजगार को बढ़ाकर ग्रामीण गरीबी को कम करने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। भारत के विभिन्न भागों में सहकारी डेरी का सकारात्मक प्रभाव कई अध्यन्नों के आधार से स्थापित किया गया है। मेघालय राज्य में ग्रामीण परिवारों में एकीकृत डेरी विकास परियोजना के प्रभाव का अध्यन्न किया। जिसमें यह पाया गया कि दुधारू संकर गाय की प्रतिदिन औसल रखरखाओं लागत सहकारी डेरी संस्थाओं के सदस्यों और गैर सदस्यों में क्रमशः17. 51 रूपये और 20.20 रूपये पाई गई । दूध की कुल औसल आय और प्रति लिटर दुग्ध उत्पादन आय क्रमशः 121.11 रूपये और 1. 00 रूपये पाई गई है। देश के उत्तरपूर्वी क्षेत्र में सहकारी डेरी देश के अन्य भागों की तुलना में कम विकसित है। लेकिन सहकारी डेयरी की संख्या में बढ़ेतरी देखी गई है। इससे यह पता चलता हैं। कि दुग्ध की खरीद तथा बिक्री में सहकारी डेरी के माध्यम से वृद्धि हुई जोकि नीचे दी गई तालिका से सिद्ध होता है।
अन्ततः भारत ने डेरी में एक लंबा सफर तय किया है और भारत को एक प्रमुख उत्पादक के रूप में स्थापित किया है। सहकारी डेयरी ने इसमें एक प्रमुख भूमिका निभाई है। लेकिन सहकारी डेरी संस्थाएं देश भर में समान रूप से नहीं फैली हुई। विशेष रूप से देश के उत्तर पूर्वी भाग में डेरी क्षेत्र अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाया है। इस क्षेत्र में दुग्ध विपणन मुख्य रूप से असंघठित रूप से किया जाता है। दुग्ध उत्पाद, सहकारी डेयरी संस्थाएं बनाकर, परिवहन सुविधा, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, मूल्य निधिकरण और विपणन में बुनियादी चढ़ाने को मजबूत करके अपने उत्पाद के लिए उपयुक्त मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि दुग्ध विपणन में बिचौलिये की अनुपस्थिति में ग्राहकों के भाग में उत्पादक अपना भाग बढ़ा सकते हैं। उत्तर पूर्वी क्षेत्र में सहकारी डेरी समितियों की संख्या में बढ़ेतरी देखी गई है। डेरी किसानों के लिए उचित सहायता और जागरूकता को बढ़ाकर इस प्रवृति को कायम रखा जा सकता है और डेयरी किसान डेरी क्षेत्र से संभावित लाभ उठा कर अपना जीवन स्तर ऊँचा कर सकते हैं।
तालिका 3: भारत के उत्तरपूर्व क्षेत्र मे डेरी विकास के घटकों की उपलब्धियां:
डेरी |
संस्था |
ग्रामीण दुग्ध |
तरल दुग्ध |
||
उत्तरपूर्व राज्य |
वर्ष |
दुग्ध संस्था |
सदस्य (000) |
विपणन (000 किलो/प्रतिदिन) |
बेचना (000 लीटर/प्रतिदिन) |
भारत |
2005 |
420 |
17 |
17 |
27 |
2007 |
423 |
17 |
21 |
29 |
|
2010 |
484 |
21 |
28 |
42 |
|
2010-2011 |
565 |
22 |
27 |
56 |
|
2000 |
84289 |
10608 |
15780 |
9534 |
|
2004 |
109729 |
12194 |
17420 |
14902 |
|
2005 |
113152 |
12326 |
20070 |
15628 |
|
2007 |
122534 |
12964 |
21691 |
18123 |
|
2010 |
140227 |
14071 |
25865 |
18614 |
|
2010-2011 |
144246 |
14461 |
26188 |
21989 |
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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