विभिन्न पालतू पशुओं में गर्भ वाली मादा की पहचान प्रारंभिक अवस्था में किया जाना, एक महत्वपूर्ण कदम है। गर्भ निदान, पशु में विकसित होने वाले लक्षणों, मलाशय व योनि मार्ग आधारित तथा प्रयोगशाला जांच के द्वारा किया जाता है।
यह जांच गोपशु, भैंस व घोड़ी में ही संभव होती हैं तथा विश्वसनीयता, सरलता व कम खर्च के आधार पर यह सबसे अच्छी विधि मानी जाती हैं। इस विधि में एक माह के गर्भ से लेकर अंत तक की जांच (अनुभव के आधार पर) के साथ-साथ अंडाशय व गर्भाशय आदि में किसी असामान्य स्थिति का पता भी किया जा सकता है। गोपशुओं में गर्भाशय विकास निम्नानुसार होता है। दो माह की गर्भावस्था में भ्रूण का आकार 4-5 से.मी होता है तथा गर्भाश्य सँग या हार्न में फिसलन का आभास मिलता है।
तीन से चाह माह की गर्भवती में गर्भ धारण करने वाले हार्न का आकार बढ़ जाने का आभास मिलता है जिसकी तुलना खाली हार्न से की जा सकती है। गर्भ के 90 दिन पश्चात् गर्भाशय के आकार में काफी वृद्धि हो जाती है जिसमें अंगुलियों से थपथपाने पर तैरते हुए भ्रूण का आभास किया जा सकता है। चौथे है:माह के प्रारंभिक दिनों में विकसित हो रहे भ्रूण पत्रों का अनुभव होने लगता है जोकि माह के अंत में काफी बड़े हो जाते है। इस अवधि में गर्भाशय रक्तवाहिनी का विकास भी हो जाता है जिसको अंगूठे व अंगुली से स्पर्श करने पर नाड़ी चलने का आभास होता है। पांच माह से अधिक के गर्भ की जांच में यह ध्यान रखें कि पांचवें माह के दौरान गर्भाशय नीचे बैठ जाता है जिसका आभास थोड़ा कठिनाई व अनुभव आधारित है। साढ़े छह माह के गर्भ का निदान गर्भाश्य के आकार, श्रुणपत्रों के स्पर्श, रक्तवाहिनी की नाड़ी गति तथा गर्भाशय मुख तक हुए खिंचाव के साथ-साथ भ्रूण के अंगों के स्पर्श से किया जा सकता है।
इस जांच के दौरान गर्भाशय में रूग्णताजन्य परिवर्तनों के साथ विभेदात्मक बिंदुओं को ध्यान में रखकर गर्भ निदान किया जाना चाहिए। पक्युक्त गर्भाश्य होने पर गर्भाशय के दौन हार्न |सहित गर्भाशय के आकार में समान वृद्धि होती है, उसमें भ्रूणपत्र नहीं होते जबकि गर्भ में एक ही हार्न का विकास होता है तथा भ्रूणपत्र पाए जाते है। पीवयुक्त गर्भाशय में पीव की उपस्थिति योनि मुख पर भी देखी जा सकती है।
गर्भ के दौरान उपयुक्त आकार के स्मैकुलम को योनि में. डालकर देखने से योनि भित्ति का रूखापन व सिकुड़न देखी जासकती है। गर्भ के 50 दिन होते-होते गर्भाशय मुख पर भूरों व है।मजबूत सी दिखने वाली सील भी देखी जा सकती है।
इन विधियों में अल्ट्रासोनिक उपकरण, प्रिगनेंट मेयर सौरम टेस्ट, ओवीस्कैन से परीक्षण, आदि प्रमुख प्रयोगशाला विधियां हैं। इनमें से कुछ उपयोगी विधियों का वर्णन निम्नानुसार है।
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 3/3/2020
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