खरगोश मुख्यत: मांस, चमड़ा, ऊन तथा प्रयोगशाला में शोध एवं मनोरजंन हेतु पाला जाता है।
जाति: दुनिया में पालतू खरगोश की बहुत सारी जातियाँ है। यह आपस में आकार, वजन, रंग एवं रोयाँ में एक दूसरे से भिन्न होती है।
(क) हवाना (ख) फ्लोरिडा (ग) इंगलिश स्पॉट इत्यादि।
नस्ल के अनुरूप स्वास्थ्य, ताकत, प्रजनन क्षमता आदि के मद्देनजर अति उत्तम प्रकार का खरगोश प्रजनन हेतु चुनना चाहिए। इन्हें सरकारी प्रक्षेत्र या अनुभवी तथा निबंधित फ़ार्म से खरीदना चाहिए। पाँच मादा के लिए एक नर होना चाहिए। यह ख्याल रखना चाहिए कि नर भिन्न-भिन्न स्त्रोत का होना चाहिए ताकि दूसरी पीढ़ी में आपस सम्बन्धी प्रजनन न हो जायें।
छोटे नस्ल के जानवर 5 से 6 माह, मध्यम नस्ल के 6-7 एवं बड़े नस्ल के जानवर 8-10 माह में पाल खाने योग्य हो जाते हैं। मादा नर के पास पहुंचने पर ही गर्म होती है, अन्यथा नहीं। मादा को नर के पिंजड़ा में ले जाना चाहिए क्योंकि मादा अपने पिंजड़े में दूसरे खरगोश को पसंद नहीं करती। साथ ही, मार-काट करने लगती है।
गर्भावस्था 30 से 32 दिन का होता है। बच्चा पैदा होने के 3-4 दिन पूर्व “बच्चा बक्सा” मादा के पिंजड़े में डाल देना चाहिए। बच्चा देने के 1-2 दिन पूर्व मादा अपने देह का रोयाँ नोचकर घोंसला बनाती है। मादा दिन में एक ही बार बच्चों को दूध पिलाती है। साधारणत: मादा में 8 छेमी होती है। पर्याप्त दूध मिलने पर बच्चा 3-3.5 सप्ताह के अंदर बक्सा से बाहर आ जाता हैं और अपने से खान-पान शुरू करने लगता हैं।
बच्चे 6 से 7 सप्ताह में ही माँ से अलग किये जा सकते हैं और मादा से साल में 5 बार बच्चा लिया जा सकता है।
खरगोश मुख्यत: शाकाहारी है। यह साधारणत: दाना, घास एवं रसोईघर का बचा हुआ सामान खाता है। एक वयस्क खरोगश दिन में 100 से 120 ग्राम दाना खाता है। इसे हरी घास, खराब फल, बचा हुआ दूध, खाने योग्य खरपतवार आदि दिया जाता है।
मुख्यत: इन्हें पिंजड़े में रखा जाता है। पिंजड़ा 18” x 24” x 12” का होता है। इन्हें 2 तल में रखा जाता है। इनका पिंजड़ा स्थानीय उपलब्ध सामानों से भी बनाया जा सकता है तथा बाहर दीवार पर जमीन से 2-2.5 फीट ऊँचाई पर कांटी से या पेड़ के नीचे लटका दिया जा सकता है। इन्हें घने पेड़ की छाया में आसानी से पाला जा सकता है।
इनमें रोगों का प्रकोप बहुत ही कम होता है। यदि कुछ सही कदम या नियम का पालन किया जाये तो रोग नहीं के बराबर होता है।
आँख आना, छींकना, गर्दन टेढ़ी होना, पिछले पैर में घाव होना, गर्म और ठंडा लगना। इन रोगों का इलाज साधारण दवा से आसानी से किया जा सकता है।
दाना मिश्रण |
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तापमान एवं आर्द्रता |
अवयव |
भाग |
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मकई चूर्ण |
30.00 |
तापमान- 18-22C |
चोकर |
53.00 |
आर्द्रता – 15 – 70% सर्वोत्तम है। |
खली (चिनियाबादाम) |
10.00 |
यदि तापमान – 30C ऊपर होता है तो |
मछली |
5.00 |
प्रजनन पर इसका खराब असर पड़ता है। |
मिनरल मिश्रण |
1.50 |
यदि 40C से ऊपर होता है तो नर में |
नमक |
0.50 |
प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है। |
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100.00 |
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स्त्रोत: कृषि विभाग, झारखंड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 3/2/2020
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