অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

कृत्रिम गर्भाधान वरदान

कृत्रिम गर्भाधान क्या है?

नर पशु का वीर्य कृत्रिम ढंग से एकत्रित कर मादा के जननेन्द्रियों (गर्भाशय ग्रीवा) में यन्त्र की सहायता से कृत्रिम रूप से पहुंचाना ही कृत्रिम गर्भाधान कहलाता है।

कृत्रिम गर्भाधान से लाभ

  1. उन्नत गुणवत्ता के सांड़ों का वीर्य दूरस्थ स्थानों पर प्रयोग करके पशु गर्भित करना।
  2. एक गरीब पशुपालक सांड को पाल नहीं सकता, कृत्रिम गर्भाधान से अपने मादा पशु को गर्भित करा कर मनोवांछित फल पा सकता है।
  3. इस ढंग से बड़े से बड़े व भारी से भारी सांड के वीर्य से उसी नस्ल की छोटे कद की मादा को भी गर्भित कराया जा सकता है।
  4. विदेश या दूसरे स्थानों पर स्थित उन्नत नस्ल के सांड़ों के वीर्य को परिवहन द्वारा दूसरे स्थानों पर भेजकर, पशु गर्भित कराये जा सकते हैं।
  5. कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से वीर्य संग्रह किया जा सकता है। इस प्रकार एक सांड से वर्ष में कई हजार पशु गर्भित होंगे और इससे उन्नत सांडों की कमी का समाधान भी होगा।
  6. रोग रहित परीक्षित सांडों के वीर्य प्रयोग से मादा को नर द्वारा यौन रोग नहीं फैलते।
  7. यदि गर्भाधान कृत्रिम रूप से कराया जाए तो मादा यौन रोग से नर प्रभावित नहीं होगा क्योंकि सहवास नैसर्गिक नहीं होता।
  8. कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले जननेन्द्रियों का परीक्षण किया जाता है। जिससे नर या मादा में बांझपन समस्या का पता लगाया जा सकता है।
  9. उन्नत सांड को चोट खाने या लंगड़ेपन के कारण मादा को गाभिन नहीं कर सकता, कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा इसके वीर्य का उपयोग किया जा सकता है
  10. कृत्रिम गर्भाधान द्वारा मादा की गर्भधारण क्षमता में वृद्धि होती है क्योंकि कृत्रिम गर्भाधान अत्तिहिंमीकृत प्रणाली से 24 घन्टे उपलब्ध रहता है।
  11. इस विधि के द्वारा प्रजनन व संतति परीक्षण का अभिलेख रखकर शोधकार्य किये जा सकते है।
  12. गर्मी में आई मादा के लिए गर्भाधान हेतु सांड को तलाश नहीं करना पडूता। हिमकृति वीर्यं हर समय उपलब्ध होता है।
  13. चोट खाई लूली-लंगड़ी मादा जो नैसर्गिता अभिजनन से गर्भित नहीं किये जा सकता परन्तु कृत्रिम गर्भाधान गर्भधारण कराया जा सकता है।
  14. इच्छित प्रजाति, गुणों वाले सांड़ जैसे कि अधिक दूध उत्पादक अथवा कृषि हेतु शक्तिशाली अथवा दोहरे उद्देश्य प्रजाति से गर्भित करा कर इच्छित संतति प्राप्त कर सकते है।
  15. यह नैसर्गिक अभिजनन से अधिक सस्ता है, क्योंकि उन्नत सांड़ों से नैसर्गिक अभिजनन हेतु आज जहां 100 से 150 रूपया प्रति सेवा व्यय करना पड़ता है, तथा स्वंय का श्रम व्यय अलग होता है, वही कृत्रिम गर्भाधान पद्धत्ति से प्रति 30 से 50 रूपये धनराशि व्यय करके द्वार पर ही सेवा उपलब्ध हो जाती है।
  16. इस विधि से संकर प्रजाति या नयी प्रजाति तैयार की जा सकती है।
  17. यह दुग्ध उत्पादन वृद्धि हेतु सर्वोत्तम साधन है क्योंकि संकर प्रजनन में प्राप्त बछिया जल्दी गर्मी पर आकर ढ़ाई वर्ष में ब्या जाती है तथा मौ से अधिक दूध देती है।

कृत्रिम गर्भाधान की सफलता का आधार

  1. पूर्ण प्रशिक्षित व योग्य कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता ।
  2. कृत्रिम गर्भाधान उपकरण हिमकृत वीर्य आदि की उपलब्धता।
  3. मादा के ऋतुकाल का पूर्ण ज्ञान व जानकारी जो इन्सेमिनेटर को दी जानी है वह समय से दी गई है या नहीं।
  4. पशुपालक को पशु का पूर्ण ध्यान देना व स्वाथ्य के प्रति समझ रखना।
  5. पशु का प्रजनन रोगों से मुक्त तथा उसका स्वास्थ्य उन्नत होना, अर्थात पशु में यौन रोग न हो तथा उसका भार (प्रौढावस्था का 60 से 70 प्रतिशत भार) एवं आहार व्यवस्था हों।

मुख्य सुझाव

  1. गर्मी के मध्य या अंतिम काल में कृत्रिम गर्भाधान करना से चाहिए।
  2. पशुओं में अक्सर गर्मी सांयकाल 6 बजे से प्रातः 6 बजे 14, के मध्य आती है।
  3. भैंस अधिकतर अगस्त से जनवरी तथा गाय अधिकतर जनवरी से अगस्त माह के मध्य गर्मी पर आती है वैसे उत्तम वैज्ञानिक ढंग से पालन पोषण से वर्ष भर में गर्मी में आ सकती है।
  4. कृत्रिम गर्भाधान के तुरन्त उपरान्त पशुको मत दौड़ायें।
  5. बच्चा देने के बाद से तीन माह के अन्दर पुनः गर्भित करायें।
  6. कृत्रिम गर्भाधान के समय शांत वातावरण हो तथा पशु को तनाव मुक्त रखें।
  7. कृत्रिम गर्भाधान करने के पहले व बाद में पशु को छाया में रखें।
  8. पशु को सुबह व सायंकाल के वक्त ही गर्भधारण करवाएं।

प्रदेश की उन्नत गौ नस्लें

साहीवालः- इसका जन्म स्थान पश्चिमी पाकिस्तान के मांगी हैं। परन्तु उत्तरप्रदेश के चक्रगजरिया पशुधन प्रक्षेत्र लखनऊ में सरंक्षण दिया जा रहा है। इसका लंबा सिर, औसत आकार का | माथा, सग छोटे तथा मौटे, टांगें छोटी, अन पूर्ण विकसित व बड़े, रंग लाल या हल्का लाल तथा कभी-कभी सफेद धब्बे। उन्नत पोषण से 2700 से 3200 कि.ग्रा.एक ब्यांत में दुग्ध की मात्रा तथा अधिकतम 16 से 20 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है।

तालिका : प्रादेशिक नस्लों के गुण

नस्ल

प्रथम ब्याने की आयु(माह)

दो ब्यांत का मध्यकाल(माह)

दुग्ध मात्रा एक ब्यांत काल(कि.ग्रा.)

औसत दुग्ध उत्पादन प्रतिदिन(कि.आ.)

अधिकतम उत्पादन प्रतिदिन(कि.ग्रा.)

हरियाणा

58.8+-0.4

19.5+-0.5

1136+-34

4.0 ली

6.4 ली

साहीवाल

40.2+-0.2

15.0+-0.6

15.0+-0.6

5.8 ली

8.2 ली

अवर्णित

59+-2.5

18.7+-1

18.7+-2

1.6 ली

3.5 ली

 

 

 

हरियाणाः- इसका जन्म स्थान रोहतक, हिसार, दिल्ली तथा क्यान करें पश्चिमी उत्तर प्रदेश हैं इसका चेहरा लंबा व संकरा, माथा चपटा, गलकंलब छोटा, रंग सफेद या हल्का भूरा, पूंछ लंबी, पैर मजबूत व लंबे। यह नस्ल कृषि कार्य हेतु अत्यंत उपयुक्त है व दूध भी देती है। भली प्रकार पोषण से 10 से 15 लीटर प्रतिदिन दूध देने की क्षमता रखती है।

क्या करें

1.  आवास हवादार, कायादार व भूमि समतल हो

  1. हरा चारा के साथ संतुलित आहार दें
  2. समय-समय पर संक्रमण रोग से बचाव हेतु टीका लगवाये।
  3. ज्यादा दूध देने वाले पशु को दिन में तीन बार दुहा जाए।

क्या न करें

  1. गर्भावस्था के अन्तिम तीन महीने आहार एक बार ना | देकर विभाजित करके दें।
    1. गंदा पानी प्रयोग न करें स्वच्छ व साफ पानी ही उपयोग किया जाए।

3.  दुधारू पशु को दौड़ाये या भगाए नहीं, इससे अयन में चोट लग सकती है।

  1. बच्चा देने के तुरन्त बाद ठंडे पानी से नहलाना व पानी पिलाना हानिकारक है।

तालिका: ऋतुकाल/गर्मी के लक्षण

क्र0

लक्षण

प्रारम्भिक

मध्यकाल

अन्तिम

1

बर्ताव

अन्य पशुओं से अलग रहेगी

पुनः झुण्ड में मिल जायेगी परन्तु

बर्ताव अलग दिखेगा

सामान्य हो जायेगी

2

उद्भिग्नता

उद्भिग्न दिखेगी

उद्भिग्न हो जायेगी कभी-कभी दूसरे पशुओं पर चढ़ेगी

धीरे-धीरे सामान्य हो जायेगी

3

भूख

कम खायेगी

बहुत कम

सामान्य

4

रम्भाना

कभी-कभी

अधिकतर

न के बराबर

5

दुग्ध उत्पादन

कम

बहुत कम

सामान्य होने लगता है

6

चाटना (दूसरे पशुओं को)

चाटेगी

चाटेगी

कभी-कभी

7

सांड के चढ़ने या दूसरे पशु के चढ़ने

पर शांत खड़े रहना

कभी-कभी दिखेगा

अक्सर सामान्य प्रक्रिया

 

न के बराबर

8

मूत्र त्याग

रह-रहकर मूत्रत्याग

रह-रहकर मूत्रत्याग

सामान्य मूत्रत्याग

9

योनि मार्ग

हृल्का सूजन

सूजन

सामान्य होने लगता है।

10

योनि मार्ग की श्लेष्मा

गीली व गुलाबी

चमकीली गुलाबी लाल

सामान्य होना

11

शरीर का तापक्रम

सामान्य

सामान्य से 1-2 डि.से अधिक सामान्य होना

 

सामान्य होना

स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate