जनसंख्या की अत्याधिकता के कारण आज प्रति व्यक्ति किसान की खेती योग्य भूमि काफी कम हो चुकी है। ऐसी स्थिति में पशुपालन किसानों की आर्थिक दशा सुधारने का अच्छा एवं उत्तम साधन हो सकता है। आज किसान या गरीब व्यक्ति गाय या भैंस खरीदने में असमर्थ है अतः गरीब व्यक्ति किसान मजदूर बकरी को सस्ते दामों में खरीद कर, कम खर्च में पालन पोषण का अपनी जीविका सुचारू रूप से चला सकते हैं। हमारे देश में 15-20% ग्रामीण जनता बकरी पालन पर निर्भर है एवं इस प्रकार बकरी पालन देश की अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहे हैं। बकरी की दूध के कण छोटे होते हैं जल्दी पच जाते हैं। बकरी के दूध में खनिज तत्व गाय के दूध से ज्यादा होते हैं। यदि साफ एवं स्वस्थ थन से एवं बकरी को नर बकरा से अलग करके निकाला जाए तो दूध में गंध भी नहीं आती है। इसके उपयोगिता के कारण ही बकरी को गरीबों की गाय भी कहते हैं।
बकरी किसी भी अन्य दूसरे जानवर (गाय) की अपेक्षा प्रति किलो शरीर भार पर कम दाना खाकर अधिक दूध देती है। पोषक पदार्थ को दूध में बदलने की दर 45.71% होती है, जबकि गाय में 38% होती है। बकरी, भेड़ की अपेक्षा 4.04%, भैंस की अपेक्षा 7.09 और गाय की अपेक्षा 8.60% अधिक रेशेदार फसल को उपयोग कर सकती है। गाय की अपेक्षा बकरी बेकार पदार्थ को आसानी से खा लेती हैं।
बकरी का राशन वहां पाए जाने वाले लोकल खाद्य पदार्थ, दाम, पाचकता पर निर्भर करता है। साफ एवं स्वच्छ पानी पर्याप्त मात्रा में सुबह शाम पीने को दें। गन्ध पानी पीने न दे। पानी के बर्तन को महीनें में दो बार धोएं। दूध देने वाली बकरी को ज्यादा मात्रा में एवं कम से कम दिन में दो बार पीने का पानी दें।
खाने की आदत: बकरी अपने लचीले उपर ओठों तथा घुमावदार जीभ के अकारण बहुत छोटे घास को भी खा सकती है। खाने के बर्तन को सप्ताह में एक बार जरुर धो लें। बकरी दूसरे पशु की अपेक्षा बहुत तेजी से खाती है। बकरी गंदा, भींगा एवं बचा हुए खाना खा लेती है। बकरी को भोजन या पत्ती बंडल बनाकर लटका कर दें। खाना को थोड़ा-थोड़ा कर खाने को दें।
बकरी एक जुगाली करने वाल पशु हैं परन्तु अन्य पशुओं की तुलना में इसकी खान-पान भिन्न हैं। बकरी घूम-घूमकर झाड़ियाँ एंव छोटे वृक्षों की पत्तियों को पिछलों पैरों पर खड़े होकर आनंदपूर्वक खाती हैं। बकरी अपने शरीर के 2-8% तक सूखा पदार्थ खा सकती हैं। अपने ऊपरी होठों की मदद से बकरियों उन छोटी पत्तियों को भी खा सकती है जिसे दूसरे पशु नहीं खा सकते, परन्तु यह उन चारों को नहीं खाती तो दूसरे जानवर द्वारा छोड़ा या गंदा किया हो। बकरी चारागाह में 70% समय पट्टे एवं झाड़ियों को खाने में व्यतीत करती है। बकरियों को सूखा पदार्थ 50% से अधिक दाने के रूप में नहीं देना चाहिए।
मांस उत्पादन के लिए बकरियों को शारीरक वजन का 3: व दुग्ध उत्पादन हेतु शारीरिक वजन का 5-7% सूखे चारे के रूप में देना चाहिए। इसके बाद बाकी चारा घास के रूप में देना चाहिए। अच्छी किस्म के चारे के लिए बरसीम या रिजका दुधारू पशु को देना चाहिए।बकरी के चारे को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है।
1. मोटा चारा
2. दाना
पौधों की पत्तियों व ठंडल, मोटे चारे के रूप में कच्चे रेशे से भरपूर होते हैं, जबकि दाने और अन्य पदार्थ में बहुत कम मात्रा में कच्चा रेशा पाया जाता है।
मोटा चारा
बकरियां प्रायः फली फसलों को चारे के रूप में अधिक पसंद करती है जबकि ज्वार, मक्का एवं भूसे को कम पसंद करती है जो दूध देने वाले पशुओं को दिया जाता है। सभी प्रकार के चारों को बकरियों को देने से पहले बंडल बनाकर लटका कर रखना चाहिए जिससे उन्हें गन्दा होने से बचाया जा सके। प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा चारा क 3 से4 बार देना चाहिए। बकरियों को गीला घास देने से बचना चाहिए एवं जहाँ तक संभव हो उन्हें धूप में सूखी हुई पत्तियां दी जाए। पुराने हरे चारे न दिए जाए क्योंकि उनमें फफूंदी और कीड़े पैदा हो जाते हैं।
धूप में सूखी हुई पत्तियां दी जाएं पुराने हरे चारे न दिय जाए क्योंकि उमें फफूंदी और कीड़े पैदा हो जाते है।
रिजका - या अक्तूबर में बोया जाता है एवं दिसंबर से मई तक कटाई के लिए तैयार रहता है। यह वयस्क बकरी को प्रतिदिन 4 से 6 किलो रिजका की आवश्यकता होती है।
बरसीम - बरसीम में 3-5% तक पाचक प्रोटीन पाया जाता है। यह अक्टूबर में बोया जाता है एवं दिसम्बर में तैयार हो जाता है। एक वयस्क बकरी को 4-6 किलो बरसीम की आवश्यकता होती है।
अरहर - अरहर की फलियाँ के साथ लगभग 5 किलो सूखी पतियाँ प्रतिदिन दुधारू बकरी के लिए काफी है।
नेपियर व गिनी घास - यह दोनों बहुवर्षीय घास है एवं 5 किलो प्रतिदिन दिया जा सकता है।
जई – यह वयस्क दुधारू बकरी के लिए 4-6 किलो जई की आवश्यकता होती है।
पेड़ों की पत्तियां - बकरियों को पेड़ों की पत्तियां बहुत अधिक पसंद है। इन्हें चारे में 2 से 3 किलो पेड़ों के पत्तियां प्रतिदिन देनी चाहिए। शहतूत, नीम, बेर, झरबेरी, मकोई, आम, जामुन, इमली, पीपल, गुलर, कटहल, बबूल, महुआ आदि पेड़ों की पत्तियां बकरियों बहुत पसंद करती है। बंधागोभी एवं फूलगोभी की पत्तियों को भी बकरी बहुत पसंद एवं चाव से खाती है।
विषम परिस्थितियों में उगाये जाने वाले वृक्ष -उसर भूमि - इस दशा में ये वृक्ष पनपते हैं जिनकी अम्लरोधी क्षमता अधिक होती है। इन वृक्षों से भी बकरियों को उचित मात्रा में पत्ते व् कोमल टहनियां चारे के रूप में मिल सकती है। इन वृक्षों में बबूल, सीरस, नीम शीशम, करंज व अर्जुन आदि प्रमुख है।
जल भराव वाले क्षेत्र - देश के कुछ हिस्सों में भूमि की सतह नीचे रहने के कारण, जलभराव की प्रमुख समस्या है। इन क्षेत्रों में केवल चारा वृक्ष ही पनप सकते हैं जिनकों बकरियां आहार के रूप में उपयोग कर सकती हैं। इनमें शीशम, करंज व ज्रुल प्रमुख है।
कटाव वाली बीहड़ जमीन - कटाव वाली बीहड़ जमीन में फसल उत्पादन प्रमुख हिं अतः इनमें चारा उत्पादन करने वाली वृक्षों को लगाकर बकरी पालन में प्रोत्साहित किया जा सकता है। इन वृक्षों में बेर, बबूल, नीम, झरबेरी, सीरस, अमलतास शहतूत, झरबेरी आदि प्रमुख है।
1. कम उम्र की बकरी - इनमें 1 से 2 महीना की आयु वाली बकरियां आती है। वृद्धिकाल होने के कारण इस वर्ग की बकरियों के लिए दाना मिश्रण की विभिन्न मात्राओं की आवश्यकता होती है।
आयु वर्ग |
बड़ी नस्ल ग्राम/दिन/बकरी |
छोटी नस्ल ग्राम.दिन.बकरी |
0-1 माह |
स्वेच्छानुसार |
स्वेच्छानुसार |
2-3 माह |
200 |
250 |
3-6 माह |
250 |
300 |
6-9 माह |
300 |
400 |
9-12 माह |
350 |
400 |
सूखी बकरी व वयस्क बकरे |
200 |
250 |
ग्याभिन बकरियां |
6000 |
700 |
प्रजनक बकरे |
600 |
700 |
दुधारू बकरियां |
200-400/किलो दूध |
200-450/किलो दूध |
जवान बकरी के लिए दाना
शरीर बहार (किलो) |
दूध |
सान्ध्र दाना मिश्रण.दिन.(ग्राम) |
हरा चारा (लुर्सन.बरसीम) किलो |
|
|
सुबह (ml) |
शाम (ml) |
- |
- |
2.5 |
200 |
200 |
- |
- |
3.0 |
250 |
250 |
- |
- |
3.5 |
300 |
300 |
- |
- |
4.0 |
300 |
30 |
- |
- |
5.0 |
300 |
300 |
50 |
इच्छा के अनुसार |
6.0 |
350 |
350 |
100 |
इच्छा के अनुसार |
7.0 |
350 |
350 |
150 |
इच्छा के अनुसार |
8.0 |
300 |
300 |
200 |
इच्छा के अनुसार |
9.0 |
250 |
240 |
250 |
इच्छा के अनुसार |
1.0 |
150 |
150 |
350 |
इच्छा के अनुसार |
15.0 |
100 |
100 |
350 |
इच्छा के अनुसार |
20.0 |
- |
- |
350 |
इच्छा के अनुसार |
25.0 |
- |
- |
350 |
1.5 |
30.0 |
- |
- |
350 |
2.0 |
40.0 |
- |
- |
350 |
2.5 |
50.0 |
- |
- |
350 |
4.0 |
60.0 |
- |
- |
350 |
5.0 |
70.0 |
- |
- |
350 |
5.5 |
2. सूखी बकरियां व् वयस्क बकरे - सूखी बकरियां एवं प्रजनन हेतु उपयोग में न लाये वाले बकरों को दाने की लगभग सामान मात्रा दी जाती है। इसमें छोटी नस्लों को 200 ग्राम तथा बड़ी नस्लों को 250 ग्राम दाना मिश्रण प्रति पशु प्रति दिन राशन के रूप में देना चाहिए। इसमें बकरियों का स्वास्थ्य एवं प्रजनन क्षमता बनी रहती है।
3. दूध देने वाली बकरियाँ - इनका निर्वाह राशन के अतिरिक्त 400 ग्राम दाना प्रति किलो दूध के हिसाब से देना चाहिए। इसके साथ दलहनी एवं गैर दलहनी हरा चारा भी देना चाहिए।
4. ग्याभिन बकरियाँ - गर्भकाल के अंतिम डेढ़ माह में छोटे नस्ल की बकरियों को 400 ग्राम तथा बड़ी नस्ल के बकरियों को 500 ग्राम मिश्रण देना चाहिए। इसके साथ उन्हें निर्वाह राशन एवं चारा भी देना चाहिए जिससे गर्भाशय के बच्चे की बढ़ोत्तरी के साथ –साथ बकरी के स्वस्थ्य भी अच्छी तरह हो सकें एवं उनमें दूध देने की क्षमता बनी रहें।
5. प्रजनक बकरें - प्रजनन व्यवहार एवं शुक्राणुओं की संख्या को नियमित रखने हेतु प्रजनन काल के समय निर्वाह राशन के अतिरिक्त 400 एवं 500 ग्राम दाना क्रमशः छोटे एवं बड़े बकरे को प्रतिदिन देना चाहिए।
बढ़ोत्तरी करने वाले पशुओं के लिए
अधिक उत्पादकता हेतु निम्न बिंदु पर ध्यान देना
जन्म के समय
माँ से विलगाव
बढ़ते बच्चे का प्रबन्धन
प्रजनन से पहले
गर्भकाल के पहले तथा अंतिम भाग में
शुरूआती दूध देने के समय
दो महीने से ऊपर की भेड़ के लिए राशन
खाद्य पदार्थ की मात्र (%) |
विलगाव से पहले-3 महीना तक |
बढ़ते मेमना (3-6 किलो) |
फिनिसर राशन |
मकई का चुरा |
65 |
27 |
25 |
मूंगफली का केक |
10 |
35 |
20 |
गेंहूँ का चोकर |
12 |
35 |
52 |
मछली का चुरा |
10 |
|
|
नमक |
1 |
1 |
1 |
खनिज लवण |
2 |
2 |
2 |
संभावित शरीर वृदि दर (ग्राम) |
110-125 |
100-120 |
100-120 |
खिलाने की दर
वजन(किलो) |
सान्द्र दाना (ग्राम) |
सूखा चारा |
|
|
जब दलहनी फसल उपबल्ध |
जब दलहनी फसल न उपबल्ध |
|
12-15 |
50 |
300 |
इच्छा के अनुसार |
15-25 |
100 |
400 |
इच्छा के अनुसार |
25-35 |
150 |
600 |
इच्छा के अनुसार |
दूध पिलाने वाली भेड़ के लिये राशन
पोषक तत्व |
राशन-1 |
राशन 2 |
दाना मिश्रण |
400 ग्राम |
400 ग्राम |
लुग्यम |
700 ग्राम |
1400 ग्राम |
हरा चारा/साइलेज |
1400 ग्राम |
|
बकरियों की आवास व्यवस्था
पारम्परिक रूप से बकरियां प्रायः घरों में या उसके आसपास रखकर पाली जाती है जों कि स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के दृष्टि से उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इसमें बकरियों से मनुष्यों में फैलने वाले (जोनोटिक) रोगों की संभावना बनी रहती है एवं साथ ही बकरियों को समुचित सुरक्षा एवं आराम नहीं मिल पाता है।
पशु |
आवश्यक भूमि वर्ग मीटर/पशु |
वयस्क बकरी |
1.0 |
वयस्क बकरा |
2.0 |
बकरी का बच्चा |
0.4 |
आवास की स्थिति
जगह सूखी एवं ऊँची हो, जल निकास की उचित व्यवस्था हो एवं तेज हवा और अत्यधिक सर्दी या गर्मी का प्रकोप न हो। मनुष्य के आवास के नजदीक न हो।
विभिन्न प्रकार के आवास
1. खुला बाड़ा
2. अर्द्ध खुला बड़ा
3. भूमि से सम्युन्न्त एवं ढका हुआ बाड़ा
आवास गृह में निम्न साधन होने चाहिए
1. चारा एवं दाना खिलाने हेतु फीडर या नाद
2. मेंजर
3. पानी की चरही
4. पर्याप्त प्रकाश
5. भंडार घर
बाड़ा बनाने समय निम्न बातों का ध्यान दें
1. फर्श- भूमि से 1-1.5 फीट ऊपर एवं प्रति फीट 1 इंच का ढलान हो।
2. दीवारें – 1-15 मीटर तक सीमेंट एवं उसके ऊपर तार की जाली हो।
गर्म क्षेत्रों में बकरियों की आवास व्यवस्था
बकरियों की प्रबंध व्यवस्था
बकरी में गर्मी के आने के लक्षण
1. गर्भित बकरी की लक्षण
2. गर्भावस्था के समय देखरेख : गावों में बकरियां एक बार बच्चा देती हैं एवं इसका गर्भकाल लगभग 5 महीने का होता है। गर्भावस्था में बकरी का पोषण, आवास एवं बीमारियों बचाव एवं रोकथाम पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
दैनिक कार्य-क्यों?
सुबह 7 बजे |
दाना पानी में देना बीमार पशु का पहचान |
सुबह 8 बजे |
चराई |
सुबह 8.30 बजे |
पशुशाला की सफाई पहले का बचा हुआ खाना को हटाना |
सुबह 9 बजे से 11 बजे तक |
बीमार पशु का पहचान रिकार्ड जैसे कि वजन ज्ञात करना, बच्चे की स्थिति, टीकाकरण, चिकित्सा, सींग दागना, छांटना,बेचना इत्यादि |
शाम 4 बजे |
पशु को घर के अंदर लाना |
|
दाना पानी चारागाह में देना |
|
हरा कता चारा देना |
|
सहूलियत के हिसाब से दिन में दो बार दूध दुहना चाहिए। |
महीना के हिसाब कार्य
लक्षण |
स्वस्थ बकरी |
सामान्य प्रकृति |
चौकन्ना |
तापमान |
102+5 फारनहाईट |
व्यवहार |
सामान्य, खाना पीना पूरा खाना |
श्वास |
10-12 बार/मिनट |
पैखाना, पेशाब |
सामान्य |
आँख श्लेष्मा |
समान्य लाल |
नाड़ी |
70-80 धड़कन |
नोट: रोगी बकरी - ऊपर दिए गए लक्षणों में अगर बदलाव हो तो बकरी बीमार है।
संभावित महीना |
रोग |
प्राथमिक टीकाकरण |
नियमित टीकाकरण |
मात्रा एवं विधि |
जनवरी |
काँटाजियस कैपराइन प्लूरो न्यूमोनिया |
3 महीना |
सलाना |
0.2 मि.ली. चमड़े के सतह पर |
फरवरी |
एनोरोटोक्सिमिया |
4 महीना एवं उसके बाद |
सलाना |
2.5 मि.ली. चमड़े में |
फरवरी |
पी.पी. आर. |
3 महीना एवं उसके ऊपर |
|
1 मि.ली. चमड़े में |
जुलाई |
गलाघोंटू |
6 महीना एवं उसके ऊपर |
सलाना |
2 .ली. चमड़े में |
मार्च/सितम्बर |
खुरपका मुंहपका |
4 महीना एवं उसके ऊपर |
सलाना में दो बार मार्च-सितम्बर |
2-3 .ली. चमड़े में |
दिसम्बर |
पॉक्स |
3 महीना एवं उसके ऊपर |
सलाना |
0.5 .ली. चमड़े में |
|
एंथ्रेक्स |
6 महीना एवं उसके ऊपर |
प्रभावित स्थान में सलाना |
1 .ली. चमड़े में |
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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