बकरी पालन व्यवसाय सबसे प्राचीनतम व्यवसायों में से एक है। इसमें थोड़ी सी पूंजी लगाकर व्यवसाय किया जा सकता है। तथा अधिक आय प्राप्त की जा सकती है। इस व्यवसाय को करने में अधिक संसाधनों तथा जमीन की आवश्यकता नही होती है। क्योकि बकरी छोटे शारीरिक आकार, अधिक प्रजनन क्षमता तथा चरने में कुशल पशु होने के कारण इसे पालना सरल है। इसे लाभप्रद व्यवसाय बनाने के लिए जलवायु के अनुरूप अच्छी नस्लें विकसित की गई हैं। इस व्यवसाय को सुचारू रूप से करने के लिए निम्न बातों को ध्यान रखना अनिवार्य है:
इसमें जलवायु तथा आकार के अनुरूप बकरा/बकरियों का चयन आवश्यक है।
बड़े आकार की नस्लें :- जमुनापारी, बील, झकराना
मध्यम आकार की नस्लें :- सिरोही, मारवाडी, मैहसाना
छोटे आकार की नस्लें :- बरबरी, ब्लैक बंगाल
जमुनापारी, सिरोही तथा बरबरी नस्ल की बकरियॉ मैदानी क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त हैं। अतः पशुपालकों द्वारा इन नस्लों का संवर्धन, वृद्धि एवं व्यवसाय हेतु अधिकाधिक उपयोग किया जा सकता है। व्यवसाय को प्रारम्भ करते समय उच्च प्रजनन क्षमता युक्त वयस्क स्वस्थ्य बकरियों को ही कृय करना चाहिए।
बकरी चरने वाला पशु है। स्थानीय स्तर पर विकसित चारागाह/पेड पौधा/ कृषि फसलों की उपलब्धता अच्छे हरे चारे के रूप में आवश्यक हैं। बकरी को यदि 8 घण्टे चराने पर पाला जाता है तो उसके शारीरिक भार का 1 प्रतिशत पौष्टिक आहार के रूप में खाने हेतु दिया जाये। बकरी पालते समय यह ध्यान रखना चाहिए की बकरी का खान पान अच्छे से हो रहा है। उदाहरणार्थ 25 किग्रा. शारीरिक भार पर 250 ग्राम पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है।
बकरियों के आहार के मुख्य स्रोत निम्न हैं –
अनाज वाली फसलों से प्राप्त चारे।
दलहनी फसलों से प्राप्त चारे।
पेड पौधों की फलियॉ व पत्तियाँ।
विभिन्न प्रकार की घास व झाडियाँ।
दाने व पशु आहार।
संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार आहार व चुगान बकरियों को बांध कर भी उपलब्ध कराया जा सकता है। चारागाह की कमी हो जाने की वजह से आवास में रखकर पालने वाली पद्धति अधिक लाभप्रद होती जा रही है। अच्छे आवास हेतु 12 से 15 वर्ग फीट स्थान प्रति पशु आवश्यक है।
आवास में हवा व प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। आवास स्थानीय उपलब्ध संसाधनों में सस्ता निर्मित होना चाहिए।
बांध कर पालने वाली पद्धति में प्रति पशु 1 - 2 किग्रा. भूसा या 2.5 किग्रा. हरा चारा/पत्तियाँ/हे/ साईलेज तथा 500 ग्राम से 1 किग्रा. संकेन्द्रित आहार शारीरिक आकार के अनुसार दिया जाना चाहिए।
मादा 10 - 15 माह की आयु में प्रजनन योग्य हो जाती है। गर्मी के लक्षण में बकरी पूँछ को बार - बार हिलाती है तथा योनि से सफेद स्राव आता है। उस समय इसे नर बकरा के सम्पर्क में लाकर संसर्ग कराना चाहिए। बकरी 150 - 155 दिन में बच्चा देती है तथा 60 - 90 दिन में गर्मी में आने पर पुनः गर्भित कराना उचित होता है। नव उत्पन्न शिशु की उचित देखभाल करनी चाहिए, जिससे कि वह स्वस्थ्य रहे। बच्चों को खीस (चीका) व दुग्ध पान दिन में चार बार कराना उचित होता है। दुग्ध का सेवन 6 - 8 सप्ताह तक कराना चाहिए। 3 - 9 माह की आयु तक वयस्कता प्राप्त करने हेतु अच्छी आहार व्यवस्था तथा रोग प्रबन्धन करना चाहिए।
बकरी के बच्चों में डायरिया, न्यूमोनिया, इंटेराइटिस से बचाव हेतु उचित देखभाल करनी चाहिए। वयस्कों में परजीवी रोगों के विरुद्ध नियमित कृमिनाशक (पटार) की दवा पिलानी चाहिए। संक्रामक रोग गलघोटू, इंटरोटाक्सीमिया, मुंहपका खुरपका तथा पी. पी. आर. रोगों के विरुद्ध समय-समय पर टीकाकरण कराना आवश्यक होता है।
बकरी पालन इकाई :- 02 नर तथा 20 मादा पशु |
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(अ) व्यय विवरण : |
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विवरण |
इकाई |
इकाई दर रू. |
कुल व्यय रू. |
रिमार्क
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नर (बकरा) |
02 |
5000 |
10000 |
- |
मादा (बकरी) |
20 |
3000 |
60000 |
- |
आहार 500 ग्राम दाना प्रति व्यसक 100-300 ग्राम दाना प्रति बच्चा |
वार्षिक |
20000 |
20000 |
शारीरिक भार के अनुसार 8 घंटे चराई के साथ |
आवास |
वार्षिक |
7500 |
7500 |
- |
बीमा, परिवहन एवं आँय व्यय |
वार्षिक |
7500 |
7500 |
- |
योग |
- |
- |
105000 |
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(ब) आय विवरण :- बकरी दो वर्ष में तीन बार बच्चे देती है, तथा एक बार में औसतन दो बच्चे देती है, इसलिए एक वर्ष में औसत तीन बच्चे प्राप्त होते हैं। |
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आय विवरण |
संख्या |
इकाई दर रू. |
कुल आय रू. |
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बकरी विकृय |
60 |
3000 |
180000 |
|
बकरी की खाद विक्रय |
- |
20000 |
20000 |
|
योग |
- |
- |
200000 |
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शुद्ध लाभ : कुल आय–कुल व्यय = शुद्ध लाभ 200000-105000 = 95000.00 रूपये पन्चानवे हजार प्रति वर्ष शुद्ध लाभ प्राप्त होता है। |
स्त्रोत: पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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