प्राचीन युग से ही “खाद” का पौधों, फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। खाद” का पौधों फसल उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान है। खाद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के खाद्य शब्द से हुई है।
जल के अतिरिक्त वे सब पदार्थ जो मिट्टी में मिलाए जाने पर उसकी उर्वरता में सुधार करते हैं खाद कहलाते हैं।
अतः धीरे-धीरे गमलों व भूमि में अधिक उपज देने वाली फसलों की जातियाँ उगाने से मुख्य तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश गमलों व मिट्टी में मिलाएं जाते हैं।
पशुओं के ताजे गोबर की रासायनिक रचना जानने के लिए, गोबर को ठोस व द्रव को दो भागो में बांटते हैं। बहार के दृष्टिकोण से ठोस भाग 75% तक पाया जाता है। सारा फास्फोरस ठोस भाग में ही होता है तथा नत्रजन व् पोटाश, ठोस द्रव भाग में आधे-आधे पाए जाते हैं।
गोबर खाद की रचना अस्थिर होती है। किन्तु इसमें आवश्यक तत्वों का मिश्रण निम्न प्रकार है।
नाइट्रोजन |
0.5 से 0.6 % |
फास्फोरस |
0.25 से 0.३% |
पोटाश |
0.5 से 1.0% |
गोबर की खाद में उपस्थित 50% नाइट्रोजन, 20% फास्फोरस व पोटेशियम पौधों को शीघ्र प्राप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त गोबर की खाद में सभी तत्व जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, मैंगनीज, तांबा व जस्ता आदि तत्व सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं।
मिट्टी में भौतिक सुधार
गोबर की खाद को गमलों व खेत में किस विधि से डालें, यह काई बातों जैसे खाद की मात्रा, खाद की प्रकृति, मिट्टी की किस्म व फसल के प्रकार पर निर्भर करता है।
गोबर की सड़ी हुई खाद को ही सदैव फसल बोने अथवा गमलों एवं पौधों को लगाने के लिए ही प्रयोग करें। फसलों में बुआई से पूर्व खेत की तैयारी के समय व गमलों को मिट्टी भरते समय अच्छी तरह मिट्टी में मिलाकर पौधे रोपने से एक सप्ताह पूर्व भरें।
भारी चिकनी मिट्टी में ताजा गोबर की खाद बुआई से काफी समय पूर्व प्रयोग करना अच्छा होता है क्योंकि विच्छेदित खाद से मिट्टी में वायु संचार बढ़ जाता है। जलधारण क्षमता भी सुधरती है। हल्की रेतीली मिट्टी एवं पर्वतीय मिट्टी में वर्षाकाल के समय में छोड़कर करें।
गोबर की खाद खेत में मोटी परत की अपेक्षा पतली डालना सदैव अच्छा रहता है। लंबे समय की फसल में समय-समय पर खाद की थोड़ी मात्रा देना, एक बार अधिक खाद देने की अपेक्षा अधिक लाभप्रद होता है। सभी फसलों में 20-25 टन प्रति हेक्टेयर एक-एक में 10 टन, गोबर की खाद खेत में दी जाती है। सब्जियों के खेत में 50-100 टन प्रति हेक्टेयर व गमलों में साईज व मिट्टी के अनुसार 200 से 600 ग्राम बड़े गमलों में 1 किग्रा, से 1.5 किग्रा. तक प्रति गमला साल में 2-3 बार डालें।
लेखन: प्रमोद कुमार
स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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