पृथ्वी की उत्पति एवं विकास के साथ संख्या प्रकार के जीवों की भी उत्पति हुई| इन्हीं में से एक केंचुए भी हैं केंचुए पूरी धरती पर समान रूप से पाए जाते हैं मुख्यतया केंचुए जमीनी धरातल या जमीन के नीचे रहते हैं| दोनों ही प्रकार से रहने के दौरान केंचुओं द्वारा कचरा एवं मिट्टी को खाकर उसके अवशिष्ट पदार्थ को खाद के रूप में पेड़-पौधों को उपलब्ध कराने की व्यवस्था प्रकृति ने शायद मानव की बढ़ती हुई जरूरतों को ध्यान में रखकर की थी| लाखों करोड़ों वर्षों से पृथ्वी पर पेड़ पौधों के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्त्व उपलब्ध कराने में इन केंचुओं की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है| केंचुओं की करीब 4200 से अधिक प्रजातियाँ पूरे विश्व में अब तक पाई गयी है करीब 50 वर्ष पहले तक जब रासायनिक खाद का विकास नहीं हुआ था| उस समय केंचुवे द्वारा बनाई खाद पेड़ पौधों को नैसर्गिक रूप से मिलती रही| केंचुवे द्वारा नैसर्गिक रूप में की जाने वाली क्रिया को मात्र 10-12 वर्ष पहले ही कृत्रिम तरीकों द्वारा अपनाया जाने लगा है| इस कृत्रिम तरीकों को वर्मी कल्चर कहा जाता है| केंचुवे को अंग्रेजी में अर्थवार्म खा जाता है अर्थवार्म द्वारा कृत्रिम कल्चर की प्रक्रिया के कारण इसका नाम वर्मीकल्चर पड़ा है| गत 20 वर्षों में रासायनिक खाद के उपयोग से होने वाले दुष्परिणामों से चिंतित वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन से पाया कि केंचुआ ही एक ऐसा जीव हा जो ऐसी खाद बना सकता है जो कि वास्तव में रासायनिक खाद का विकल्प बन सके|
वैज्ञानिक तरीके से नियंत्रित दशाओं में केंचुओं के पालन वर्मी कल्चर कहलाता है| केंचुओं से विकसित पदार्थ को वर्मी कास्ट कहते हैं तथा अपघटनशील व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों जैसे- भूसा, सूखी घास, पुआल, सब्जियों आदि को खिलाकर केंचुओं से प्राप्त विकसित पदार्थ वर्मी कंपोस्ट कहलाता है
खाद बनाने के लिए 3 फीट लंबा 3 फीट चौड़ा तथा 2.5 फीट ऊँचा पिट तैयार करते हैं जिसमें 2 फीट ऊंचाई तक 10-15 दिन पुराना गोबर भरते हैं तथा लगभग 150 केंचुवे छोड़ देते हैं| गोबर के ऊपर 5-10 सेमी पुआल/सूखी पत्तियाँ डाल दें| इस इकाई में बराबर 20-25 दिन तक पानी का छिड़काव करें| इसमें 40 प्रतिशत नमी को बनाए रखने की आवश्यकता होती है| 40-45 दिन बाद वर्मी कंपोस्ट बन जाए तो 2 से 3 दिन तक पानी का छिड़काव बंद कर दें| पिट को सीधे तेज धुप, बरसात व बर्फ से बचाने लिए छप्पर से ढक सकते हैं| जब खाद पकी हुई चाय की पत्ती की तरह दिखे तो खाद तैयार समझें|
तैयार खाद को पिट से एक तरफ एकत्र कर दें तथा दूसरी ओर फिर से नया गोबर भर दें| ऐसा करने से तैयार कंपोस्ट के सभी के केंचुवें नये गोबर में चले जाएंगे| खाद को पिट से निकालकर छाया में ढेर लगा दें और हल्का सूखने के बाद 2 मि मी छन्नी से छान लें| छनी हुई खाद को बोरी में भर कर रख लें इस तैयार खाद में 20 – 25 प्रतिशत नमी होनी चाहिए खाद को ऐसी जगह स्टोर करें जहाँ सूख न सकें|
सावधानियाँ :-
देश के विभिन्न शोध संस्थानों में किए गए परीक्षणों के अनुसार वर्मी कंपोस्ट में 1.25 से 2.5 प्रतिशत नेत्र्जन्म 0.75 से 1.6 प्रतिशत, 3.0 – 4.0 प्रतिशत मैग्नीशियम, 13 पी.पी.एम. सल्फर, 45.50 पी. पी.एम. लोग, 20-25 पी. पी. एम. जस्ता, 4-5 पी. पी. एम. तांबा, 60-70 पी. पी. एम. मैग्जीन पाया जाता है वर्मी कंपोस्ट का पी. एच. मान 7-7.8 तथा इसमें कार्बन नेत्रजन का अनुपात 12:1 होता है| वर्मी कंपोस्ट में उपरोक्त तत्त्व घुलनशील अवस्था में रहते हैं|
वर्मी कंपोस्ट उत्पादन के लिए मुख्य रूप से दो पद्धतियों क्रमश: इनडोर पद्धति एवं आउटडोर पद्धति का प्रयोग किया जाता हा| केंचुआ खाद बनाने के लिए नमीयुक्त भूमि, कार्बनिक व्यर्थ पदार्थ के साथ ही केंचुओं की जरूरत होती है|
क. इनडोर पद्धति : इनडोर पद्धति में किसी भी पक्के शैड, छप्पर या पेड़-पौधे की छाया में कार्बनिक पदार्थ के ढेर तैयार कर वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन किया जा सकता है| इस ढेर पर पानी छिड़कने के उपरांत केंचुए छोड़ दिए जाते हैं| इसमें 40 फीसदी नमी को बनाए रखने की आवश्यकता होती है| केंचुए कार्बनिक व्यर्थ पदार्थ को खाकर जो मल त्यागता है, उसी को वर्मी कंपोस्ट कहते हैं, हवा, तापमान, नमी एवं खाद्य पदार्थ की उपयुक्त परिस्थितियाँ केंचुए के प्रजनन में सहायक होती है और केंचुए अपनी संख्या में गुणात्मक वृद्धि भी करते हैं|
वर्मी कंपोस्ट तैयार करने/भरने का तरीका :
वर्मी कंपोस्ट के लिए वर्मी बैड तैयार करने के लिए निम्न चरणों का अनुपालन करने की जरूरत है|
प्रथम परत : 3 इंच मोटी पत्थर की बजरी या ईंट के छोटे रोड़े तथा बालू रेत के मिश्रण की तह टैंक/क्यारी के फर्श पर बिछाएं| इसे पानी छिड़कर भिगो दें|
प्रयोग की मात्रा :
दूसरी परत : इसके ऊपर शोकेह सख्त कार्बनिक वेस्ट जैसे कपास के सूखे तने, ज्वार – बाजरा, मक्का की कड़वी, धान का छिल्का, गन्ने की खोई, बुरादा, नारियल की जटा आदि जिसे गलने सड़ने तथा मुलायम होने में 8-10 माह का समय लग सकता है. की तह बिछा दें| इसे अच्छी तरह पानी छिड़कर भिगो दें| यह परत हार्ड बैड कहलाती है|
वैज्ञानिक तरीके से नियंत्रित दशाओं में केंचुओं को पालन वर्मी कल्चर कहलाता है| केंचुओं से विकसित पदार्थ को वर्मी कास्ट कहते हैं तथा अपघटनशील व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों जैसे भूसा, सूखी, घास, पुआल, सब्जियों के लिए आदि को खिलाकर केंचुओं से प्राप्त विकसित पदार्थ वर्मी कंपोस्ट कहलाता है|
तीसरी परत: 2 इंच मोटी तह पूर्णत: डिकम्पोज्द कंपोस्ट, गोबर की सड़ी खाद को बिछा दें| इस पर पानी छिड़कर अच्छी तरह भिगो दें|
चौथी परत : सड़े कंपोस्ट की तह वर्मी कंपोस्ट (केंचुएँ सहित) की पतली परत बिछा दें|
पाँचवी परत : सबसे ऊपर शीघ्र व आसानी से सड़न – गलन योग्य कार्बनिक वेस्ट जैसे गोबर या गोबर गैस स्लरी व सूखे कार्बिनक वेस्ट आदि का मिश्रण, जिसका 15-20 दिन प्रारंभिक अपघटन हो चुका है, की 10-15 इंच मोटी तह शंकू आकार ढेर में लगा दें| शुरू से आखिर तक एक ढेर भी लगाया जा सकता है अथवा छोटी-मोटी बहुत से ढेरियाँ एक दुसरे से सटा कर लगायी जा सकती है| छोटी – छोटी बहुत से ढेरियाँ एक दुसरे से सटाकर लगायी जा सकती है| छोटी ढेरियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए|
छठवीं परत : सूखी घांसे, पत्ते भूसा, पुआल आदि अथवा टाट के बोरे की मल्चिंग परत, जो नमी को रोकने तथा केंचुओं की सक्रियता बनाए रखने के लिए उपयुक्त सूक्ष्म वातावरण बनाए रखें|
इस विधि में कंक्रीट व रेत की परत अधिक पानी के उपयुक्त निकास का कार्य करती है तथा तली में बिछाई गई हार्ड बैड “बफर फीडर” का कार्य करती है| ऊपर की भोजन सामग्री समाप्त हो जाने के बाद केंचूएँ नीचे की तह में भक्षण करते हैं, जिसके अपघटन के प्रक्रिया धीमी है नयी खाद्य सामग्री डालने पर फिर केंचुएँ ऊपर आसानी से अपघटनशील व्यर्थ पदार्थ में आ जाती हैं| इस प्रकार बार-बार ऊपर की भक्षण सामग्री नयी डालते जाते हैं| आवश्यक्तानुसार 6 से 9 माह में एक बार क्यारी/ टैंक को खाली कर हार्ड बैड को नये सिरे से बिछा देना चाहिए|
ख. आउटडोर पद्धति : यह खुले स्थानों में कंपोस्ट बनाने की पद्धति प्राय: अपने बगीचे में ही उपयोग हेतु बड़े स्तर पर कंपोस्ट तैयार करने के लिए अपनायी जाती है| इस पद्धति में कंपोस्टिंग आर्गेनिक वेस्ट के स्रोत (जैसे बगीचे व बड़े एवं छायादार वृक्ष) पर ही की जाती है| इस पद्धति का लाभ यह है कि आर्गेनिक वेस्ट तथा कंपोस्ट के लिए बहुत बचत होती है| आर्गेनिक वेस्ट से वर्मी कंपोस्ट बनाने का कार्य बगीचे में पेड़ के चारों ओर के उथले-गहरे स्थानों (बेसिंस) अथवा गढ्डों में किया जा सकता है| बगीचों में बिना अवरोध वाले उपलब्ध स्थान का उपयोग भी ढेर विधि से कम्पोस्टिंग के लिए किया जा सकता है|
फसल काटने के बाद खाली खेतों की मेढ़ों को 8-10 इंच ऊंचा करके खेत में सड़न व गलनशील कार्बनिक व्यर्थ पदार्थों में फैला देते हैं| तत्पश्चात उसमें थोड़ी गोबर की खाद मिलकर पानी लगा देते हैं| स्वयं की क्रियाशीलता द्वारा 3-4 माह में उनकी संख्या काफी बढ़ जाती है| यदि केंचूएँ अन्य उपयोग के लिए नहीं चाहिए, तो खेतों में छोड़ दिये जाते हैं| अन्यथा हैड पीकिंग द्वारा | पकड़कर अन्य उपयोगों में लाये जाते हैं विधि अमेरिका में प्रचलित है, जहाँ किसानों के पास कृषि भूमि अधिक है तथा अगला फसलचक्र आने पर खेतों को जोत कर खेती के लिए उपयोग करते हैं|
वर्मी कंपोस्ट के प्रयोग से सुधारी भूमि में केंचुओं की संख्या बढ़ती है, जो ऊसर भूमि में नहीं होती हैं|
इस विधि में किसान वर्मी कल्चर को न्यूनतम छाया व बचाव के साथ खुले खेतों में करना पसंद करते हैं| आर्गेनिक वेस्ट वर्मी कम्पोस्टिंग बैड 60 सेंटी मीटर (दो फुट) ऊँचाई व इच्छित लम्बाई एवं चौड़ाई के अनुसार धरातल पर तैयार की जाती है| केंचुओं प्रजनन व बढ़ोत्तरी दर की क्षमता अधिक होने के कारण, केंचुओं को कुछ क्षति परभक्षी शत्रुओं से होने के बावजूद जीवित रह केंचुए अपनी जनसंख्या बनाए रखने तथा किसान को आवश्यक कंपोस्ट दे सकने में सहायक होते हैं| यह किसानों को अपने तरीके से केंचुओं की संख्या वर्मी कंपोस्टिंग के लिए बनाए रखने का बहुत ही सस्ता तरीका है| न्यूनतम ध्यान देकर इस विधि से छोटे स्तर (3-10 टन), मध्य स्तर (36- 120 टन) तथा बड़े स्तर (3600 टन प्रतिवर्ष तक का) वर्मी कम्पोस्टिंग देश के दक्षिणी संभाग में विभिन्न प्रक्षेत्र भूमियों व उद्योगों में किया जा रहा है|
स्रोत : हलचल, जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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